Mahamaari

 समयविज्ञान !

दो शब्द

     विश्व के सबसे प्राचीन गणितविज्ञान की ऐसी सक्षम विधा सनातनधर्मियों के पास है| जिसके द्वारा प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के न केवल कारणों को गणित के आधार पर समझा जाता रहा है,प्रत्युत उनके विषय में पूर्वानुमान भी लगा लिया जाता रहा है| सनातनधर्मियों को यह विज्ञान परंपरा से प्राप्त हुआ है| इसके आधार पर अभी भी समाज में घटित होने वाली घटनाओं को तो समझा जा ही सकता है | उसके साथ ही साथ समस्त प्राकृतिक वातावरण में समय समय पर होते रहने वाले परिवर्तनों को भी समझा जा सकता है और उनके विषय में महीनों वर्षों पहले पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है |
    सनातन धर्म के प्राचीन वैज्ञानिकऋषि मुनि इसीविज्ञान के द्वारा भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ चक्रवात बज्रपात जैसी घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिया करते थे |ऐसा वर्णन सनातन धर्म के अनेकों ग्रंथों में अभी भी मिलता है |उसी प्राचीन ज्ञान विज्ञान के आधार पर मैं पिछले चार दशकों से अनुसंधान करता आ रहा हूँ | उससे आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ चक्रवात जैसी घटनाओं के विषय में मेरे द्वारा महीनों पहले लगाए गए पूर्वानुमान सही निकलते रहे हैं | उसी प्राचीन गणित विज्ञान के द्वारा मैंने महामारी के विषय में भी जितने भी पूर्वानुमान लगाए थे | वे प्रायः सही  निकलते रहे हैं | 
      प्रकृति की भाषा गणित है| इसलिए प्रकृति  एवं जीवन में घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं को गणित के द्वारा ही समझा जा सकता है| इसी गणितविज्ञान के द्वारा ही रेलवे समय सारिणी की तरह ही प्राकृतिक समयसारिणी भी अनुसंधान पूर्वक खोजी जा सकती है |जिसप्रकार से आज के सैकड़ों वर्ष बाद घटित होने वाली खगोलीय घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | उसीप्रकार से भूगोलीय घटनाओं के विषय में भी बहुत पहले ही पूर्वानुमान लगाया जा  सकता है | 
     जिसगणित के द्वारा सुदूर आकाश में घटित होने वाली सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी घटनाओं के विषय में या अन्य ग्रहों के संचार के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है|उसी गणित के द्वारा भूकंप आँधी तूफ़ान ,चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ जैसी घटनाओं के विषय में अनुसंधान पूर्वक बहुत पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | उसी गणित के आधार पर गणितज्ञों के द्वारा किसी महामारी के आने के विषय में  भी सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाया जाना  संभव है | 
     किस महामारी या प्राकृतिक आपदा से जनधन का नुक्सान कितना हो सकता है तथा उससे किस व्यक्ति के पीड़ित होने की संभावना कितनी है |इसका आगे से आगे पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |मौसम संबंधी घटनाओं तथा महामारियों के विषय में इसी प्रक्रिया से पूर्वानुमान लगाया जाता है | इसी प्रक्रिया से कोरोना महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में मैंने जो जो पूर्वानुमान लगाए हैं वे सही निकलते रहे हैं |
                                                                   भूमिका   
    किसी वृक्ष में फल लगे देखकर केवल फलों के आधार पर उस संपूर्ण प्रक्रिया को समझना संभव नहीं है ,क्योंकि फल लगना तो उस वृक्ष के विकास की अंतिम अवस्था होती है| उससे पहले भी उसमें बहुत सारे परिवर्तन हुए होते हैं | 
      किसी आम के वृक्ष में फल लगने की घटना को ही लिया जाए तो सबसे पहले कोई बीज अंकुरित हुआ होगा | उससे पौधा बना होगा | उसकी जड़ें विकसित हुई होंगी | उसके बाद उसमें पत्ते लगते रहे होंगे|शाखाएँ फूटी होंगी |इस संपूर्ण प्रक्रिया में पाँचों तत्वों का  संतुलित योगदान लगा होगा | इनमें से यदि किसी तत्व की कमी या अधिकता रही होती तो इसके वृक्ष बनने की यात्रा वहीं रुक जाती या फिर बृक्ष में उस तत्व की कमी से उससे  संबंधित बिकार आ गए होते |  
    वह बृक्ष स्वस्थ और बड़ा तो हो गया किंतु  उसमें फूल और फल नहीं लगे | उसे इसके लिए समय का योगदान चाहिए था | जब समय रूपी बसंतऋतु आई तब उसमें फूल लगे होंगे | उसके बाद उन फूलों में फल फले होंगे| समय के साथ वे फल बढ़े होंगे | उसके बाद ग्रीष्म ऋतु में वे पके होंगे|जितनी अधिक लू चली होगी उतने अधिक मीठे हुए होंगे | ये एक लंबी प्रक्रिया है|जिसे समझने के लिए संपूर्ण प्रक्रिया को अनुसंधान पूर्वक अनुभव  करना होगा | इसमें प्रत्यक्ष देखा जाए तो आम का बीज  होता है | जिस भूमि में बोया जाता है वो होती है और जिस जल से सींचा जाता है वो होता है | बीज भूमि और जल ये प्रत्यक्ष हैं किंतु आकाश अग्नि वायु और  समय (बसंत) के योगदान को प्रत्यक्ष रूप से भले न देखा जा सकता हो किंतु इनके योगदान के बिना इस प्रक्रिया का पूर्ण होना संभव न था | 
   यदि इस घटना को प्रत्यक्षविज्ञान की प्रक्रिया से समझने का प्रयत्न किया जाएगा तो बीज भूमि और जल ही तो प्रत्यक्ष हैं | केवल इन्हीं तीन चीजों को आधार बनाकर  बृक्ष की निर्माण प्रक्रिया को समझकर कोई सही निष्कर्ष निकाला जाना संभव नहीं है |  
      प्रत्यक्ष अनुसंधान पद्धति मेंकिसी प्रत्यक्ष घटना को प्रत्यक्ष देखकर उसके प्रत्यक्ष घटकों को आधार बनाकर उसे समझने का प्रयत्न होता है | प्रत्यक्ष तो कोई घटना तब दिखाई पड़ती है जब घटित होने लगती है | उस समय उस घटना के घटित  होने के विषय में जिसके पास जितनी विद्या बुद्धि अनुभव आदि होते हैं वो उस प्रकार के काल्पनी तर्क देता है | अनुसंधान जनित तथ्य आधारित सच्चाई किसी  के पास नहीं होती है | उस घटना के बीतने के बाद उसे भुला दिया जाता है | जिससे उनके रहस्य कभी खुल ही नहीं पाते हैं | 
    कुल मिलाकर प्रत्येक घटना के तैयार होने में प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों घटकों का योगदान होता है | परोक्ष की उपेक्षा करके केवल प्रत्यक्ष के आधार पर  सही अनुसंधान नहीं किए जा सकते हैं | 
      जिस प्रकार आम प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों घटकों का योगदान रहा है | परोक्ष मदद करने वाले आकाश, तापमान (अग्नि ),वायु और  समय  उस आम पर प्रभाव तो डालते हैं,किंतु प्रत्यक्ष रूप से आम के साथ जुड़े नहीं होते हैं |ऐसी स्थिति में किसी आम को काटकर उसमें से उन परोक्ष सहयोगी तत्वों  को खोजा नहीं जा सकता है | 
     इसी प्रकार से किसी भूकंप के निर्माण में पृथ्वी तो मुख्य तत्व है किंतु पृथ्वी का स्वभाव हिलना नहीं है | इसीलिए उसे अचला कहते हैं |भूकंप में पृथ्वी के हिलने के कारण जितने प्रत्यक्ष होते हैं उतने ही परोक्ष होते हैं | पृथ्वी में गहरा गड्ढा खोदकर  यदि प्रत्यक्ष कारण खोज भी लिए जाएँ तो भी परोक्ष कारण अनुद्घाटित ही रह जाएँगे | जिससे भूकंपों का रहस्य तो अनसुलझा ही रह जाता है | इसीलिए भूकंपों को समझने में सफलता नहीं मिल पा रही है | 
    कुलमिलाकर जिस प्रकार से आम की इस संपूर्ण प्रक्रिया को किसी उपग्रह रडार या सुपरकंप्यूटर जैसे यंत्रों से समझना संभव नहीं है | उसीप्रकार से प्रकृति में घटित होने वाली वर्षा भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात महामारी जैसी किसी भी प्राकृतिक घटना केवल यंत्रों के आधार पर समझना संभव नहीं है | 
      कोई व्यक्ति किसी का कर्ज चुकाने के लिए रुपए लेकर उसके  घर जा रहा है |रास्ते में जिन जिन के घर पड़ते हैं | उनके दरवाजों के सामने से होकर उसे इसलिए जाना होगा,क्योंकि रास्ता वही है| रास्ते में जिनके घर पड़ते हैं |  वे  उसे अपने घर की ओर आते देखकर इसलिए प्रसन्न हो जाएँ कि वो मेरे घर की ओर आ रहा है  और उसके पास पैसे भी हैं | इसलिए वो हमें ही पैसे देने आ रहा है,जबकि वो देने उसे जा रहा है जिससे कभी उधार लिए थे |
         इसी  प्रकार से कभी कभी अपने शहर की ओर आ रहे बादलों को देखकर लगता है कि बादल हमारे प्रदेश या शहर की ओर आ रहे हैं | इसलिए हमारे यहाँ आज वर्षा होगी किंतु ऐसा होता नहीं हैं | आकाश में घिरी काली काली घटाएँ धीरे धीरे  बिना बरसे  ही आगे बढ़ते चले जाते हैं | कुछ देर बाद आकाश शांत एवं स्वच्छ हो जाता है  
     वस्तुतः सूर्य की गर्मी से भाफ बनती है | उस भाफ से बादल बनते हैं|उन बादलों का निर्माण पृथ्वी के जिस भाग पर होता है |वे बादल उस स्थान का ऋण वर्षा काल में वहाँ बरसकर चुकाते हैं | वहाँ जाकर बरसने के लिए बादलों को विभिन्न देशों प्रदेशों से होते हुए आगे बढ़ना होता है | 
     वर्त्तमान समय में कहीं का लक्ष्य लेकर जा रहे ऐसे बादलों को उपग्रहों रडारों से देख लिया जाता है | वे जिस दिशा में जितनी गति से जा रहे होते हैं | उसी हिसाब से बादलों के  उस दिशा में उतने समय में उतनी दूरी पर पहुँचने का अनुमान लगा लिया जाता है |चूँकि बादलों में नमी है इसका मतलब उनके पास पानी है |इसलिए बादल उस दिन वहाँ पहुँचकर बरसेंगे | इसका अंदाजा भी लगा लिया जाता है | ये अंदाजा गलत तब निकल जाता है जब वे बादल वहाँ होते हुए बिना बरसे ही आगे निकल जाते हैं और जहाँ उनका निर्माण हुआ था वे वहाँ जाकर बरसते हैं | 
      इसीलिए प्राचीन काल में जहाँ सूखा पड़ता था वहाँ यज्ञ किया जाता था | यज्ञ के धुएँ से बादल बनते थे | वे बादल वर्षाकाल में उस स्थान के हिस्से का पानी वहाँ ले जाकर बरस देते थे | इससे सभी जगह प्रायः एक समान वर्षा  होते देखी जाती थी |वर्तमान समय में यज्ञों की प्रक्रिया बंद हो जाने से बर्षा योग्य बादलों का निर्माण कम हो पाता  है ,वर्षा योग्य बादल घटते जा रहे हैं | इसलिए कुछ बादल  ही सारा जल समेटकर चल देते हैं वे कहीं बहुत अधिक बरस जाते हैं और कहीं फट जाते हैं  तो कहीं पहुँच ही नहीं पाते हैं | इसलिए कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा पड़ते देखा जाता है | उन कुछ बादलों को ही सारा पानी बरसना पड़ता है | उनके लिए वर्षा काल में यह बड़ा काम हो जाता है | इसलिए वे किस्तों में बरसने  लगे हैं | थोड़ा शिशिर(सर्दी) ऋतु में बरस लेते हैं तो थोड़ा बसंत और ग्रीष्म(गर्मी)की  ऋतु  में बरस लेते हैं |बाकी जो बचता है उसे वर्षा ऋतु में बरस देते हैं | इस प्रकार से वर्षाऋतु में वर्षा की मात्रा कम हो जाती है | जिससे धरती की गरमी शांत नहीं हो पाती है|सितंबर अक्टूबर के महीनों में मई जून की तरह गर्मी पड़ते देखी जाती है | ऋतुओं के इसप्रकार के असंतुलन से जहाँ एक ओर प्राकृतिक आपदाएँ घटित होती हैं | वहीं दूसरी ओर रोग और महारोग (महामारी )पैदा होते देखे जाते हैं | 
        
                                                        अनुसंधान और विज्ञान 

     प्रत्येक फल किसी वृक्ष में फलता है |यह सच्चाई सर्व विदित है ,किंतु वृक्ष की जड़ से लेकर शाखा तक की कितनी भी चीर फाड़ करके देखा जाए तो उसकी जड़ों में तने में शाखाओं टहनियों आदि में कहीं भी वे फल या उनके कोई छोटे अंश भी नहीं मिलते !जबकि फल उन्हीं शाखाओं में फले होते हैं | ऐसे ही जिस बीज के अंकुरित होने से बृक्ष बनता है |उस बीज को कितने भी छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया जाए उसके अंदर उस वृक्ष का छोटा से छोटा अंश भी प्राप्त नहीं होता है | ऐसे ही पृथ्वी में जिस जगह बीज बोने से इतना बड़ा वृक्ष तैयार हो जाता है | उस जगह को कितना भी खोदा जाए तो उस जमीन में वृक्ष का कोई छोटा से छोटा अंश भी प्राप्त नहीं होगा ,जबकि वृक्ष का कारण उसका बीज है | वृक्ष यदि बीज में नहीं है धरती में नहीं है तो है कहाँ !ऐसे ही फल यदि वृक्ष के किसी अंश में नहीं है तो वो फल फलता कैसे है |फल के गुण यदि बीज में नहीं  हैं वृक्ष में नहीं हैं तो होते कैसे हैं | कच्चा आम खट्टा एवं पका आम मीठा होता है | ये दोनों गुण न तो बीज में होते हैं और न ही वृक्ष में होते हैं तो फल में कहाँ से आते हैं | ऐसे ही कुछ अन्य  वृक्षों के फूलों में सुगंध एवं फलों में स्वाद तथा बनस्पतियों आदि में गुण धर्म होते हैं |   
      इसमें विशेष बात ये है कि ऐसे ही किसी संतान का जन्म माता पिता के रज वीर्य से होता है | ये सर्व विदित है किंतु उस रजवीर्य में प्रत्यक्ष रूप से संतान के शरीर का कोई अंश विद्यमान नहीं होता है ,फिर भी माता पिता से संतान होती है | ऐसा सभी को पता है | संतानों के जन्म का कारण यदि माता पिता ही होते हैं तो संतान का शरीर रंग रूप आदि माता की तरह हों या पिता की तरह हों या दोनों की तरह हों तब तो माता पिता को ही संतान के जन्म का कारण माना जा सकता है ,किंतु माता पिता दोनों का रंग काला हो और बच्चा बिल्कुल गोरा हो !माता पिता दोनों नाटे हों और बच्चा लंबा हो | माता पिता स्वस्थ हों बच्चा दृष्टि विहीन हो | माता पिता के  शरीर सामान्य हों और संतान के हाथ या पैर में छै छै अँगुलियाँ हों | माता पिता से अलग संतान में दिखने वाले ऐसे अतिरिक्त लक्षणों के निर्माण का कारण  यदि माता पिता नहीं  तो और दूसरा और जो भी  हो सकता है |वो केवल उसके उन लक्षणों के लिए ही जिम्मेदार नहीं से माता पिता से अलग हैं | उन घटकों का योगदान उन लक्षणों में भी उतना ही होगा जो माता पिता की तरह होते हैं|इसलिए बच्चों के स्वभाव लक्षण  शारीरिक प्रकृति आदि का अध्ययन करते समय उन बाह्य प्रभावों को भी सम्मिलित किया जाना आवश्यक होता है |   
     इसी प्रकार से वृक्ष में बीज से अलग लक्षणों का होना ये सिद्ध करता है कि बीज से वृक्ष के बनने में उस बीज के अलावा अन्य अप्रत्यक्ष घटक भी सम्मिलित होते हैं | जिनके सम्मिलित हुए बिना उस बीज का न तो वृक्ष बन पाना संभव था और न ही उस वृक्ष में फल लग पाना संभव था और न ही उन फलों के स्वाद गुण धर्म आदि में परिवर्तन होना संभव था |
    कुल मिलाकर बीज के बिना वृक्ष नहीं बन सकता है| उसी प्रकार से उन घटकों के सम्मिलित हुए बिना केवल बीज से भी वृक्ष नहीं बन सकता है |बीज के वृक्ष बनने में उन घटकों की यदि इतनी प्रभावी भूमिका होती है तो उन वृक्षों में उनके फूलों फलों में उन घटकों का स्वभाव स्वाद गुण धर्म आदि भी अवश्य सम्मिलित होता होगा | 
    इसप्रकार से वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों के स्वाद गुण धर्म के परिवर्तित होने में उन बाह्य प्रभावों का का योगदान होता है जिनकी भूमिका उस बृक्ष के बनने में उस बीज की तरह ही होती है | जो उसके जन्म का कारण माना जाता है | 
      किसी वृक्ष बनस्पति या संतान आदि के बनने में बीज की तरह ही  बाह्य प्रभावों की भी उतनी ही भूमिका होती है | इसलिए उनसे संबंधित अध्ययनों अनुसंधानों में  उन बाह्य प्रभावों  को  भी  उतना ही महत्त्व दिया जाना चाहिए अन्यथा उनके निर्माण की सच्चाई को समझना संभव न हो पाएगा | 
    इसीप्रकार से  वर्षा भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात तथा महामारी जैसी घटनाओं की निर्माण प्रक्रिया में कई प्रकार के बाह्य प्रभाव  अपना अपना योगदान दे  रहे होते हैं | जिनके बिना ऐसी घटनाओं का निर्मित  होना या  घटित होना संभव ही नहीं  होता है | ऐसी घटनाओं के निर्माण में मूल कारणों की तरह ही उन बाह्य प्रभावों का भी उतना ही योगदान होता है | इसलिए  ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के स्वभाव वेग विस्तार आदि को समझने के लिए उन घटनाओं के मूल कारणों की तरह ही उन्हीं के साथ सम्मिलित करते हुए उन बाह्य प्रभावों का भी अध्ययन अनुसंधान आदि करना होगा | उस संयुक्त अनुसंधान के आधार पर ही ऐसी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव हो पाएगा | 

                                                            बाह्य प्रभाव और घटनाएँ 

       प्रकृति की प्रत्येक घटना  कुछ घटकों के संयोग से घटित होती है|इसलिए उन समस्त घटकों को अनुसंधान में सम्मिलित किए बिना अपेक्षित परिणाम नहीं लाए जा सकते हैं | इसीप्रकार से भूकंपों के निर्माण में योगदान देने वाले बाक़ी घटकों की उपेक्षा करके भूकंपों का अध्ययन नहीं किया जा सकता है |जिस प्रकार से किसी हरे भरे फलदार वृक्ष को जड़ से खोद दिया जाए तो नीचे उस पृथ्वी की जड़ों के आस पास न तो उसका हरा भरापन मिलेगा और न ही वृक्ष में लगे पत्ते फूल फल आदि ही मिलेंगे | जिस वृक्ष को प्रत्यक्ष देखा जा रहा है | ऊपर दिखने वाला उसका कोई भी अंश धरती के अंदर खोदने पर नहीं मिलता है तो किसी घटित हो चुके भूकंप का कोई भी अंश पृथ्वी के अंदर खोदने से कैसे मिल जाएगा | 
     जिसप्रकार से वृक्ष का ऊपरी भाग विभिन्न घटकों के योगदान से निर्मित हुआ होता है,जबकि पृथ्वी के अंदर वाला वृक्ष का जो जड़ों वाला भाग है |उसकी परिस्थितियाँ बाहर की अपेक्षा अलग होती हैं | इसलिए वृक्ष के बाह्य और पृथ्वी के अंदर वाले भाग  में भिन्नता दिखाई देती है | 
    इसीप्रकार से पृथ्वी में गड्ढा खोदकर भूकंपों को समझना संभव नहीं है,क्योंकि किसी भूकंप के निर्माण की प्रक्रिया पर पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य घटकों का जो प्रभाव पड़ा होता है | उसका अनुमान पृथ्वी में  गड्ढा खोदकर लगाया जाना इसलिए संभव नहीं है |  
   ऐसे ही केवल बादलों को उपग्रहों रडारों से देखकर वर्षा के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि इसलिए नहीं लगाया जा सकता है ,क्योंकि बादल तो वर्षा होने का एक पक्ष मात्र हैं | उनके अतिरिक्त भी बहुत कुछ होता है | अनुसंधान के लिए उन बाह्य प्रभावों को भी समझा जाना आवश्यक होता है | यदि देखा जाए तो बादल कभी आते और कभी नहीं आते हैं | कभी बरसते तो कहीं नहीं बरसते हैं | कहीं बरसते तो कहीं नहीं बरसते हैं | ऐसा सब कुछ करने के लिए बादल बाह्य प्रभाव से प्रभावित होते हैं | ऐसा ही आँधी तूफानों आदि के विषय में देखा जाता है |
    ऐसे ही महामारी आदि से संक्रमितों का परीक्षण करके रोगी की परिस्थिति को भले समझ लिया जाए किंतु  इससे महामारी को  पहचानना या इसके विषय में पूर्वानुमान लगाना  संभव नहीं होता है | महामारी सभी के लिए एक जैसी ही आई है | उससे कुछ लोग संक्रमित होते हैं कुछ नहीं होते हैं | 
      ऐसी घटनाओं को समझने के लिए उन मूल घटनाओं के साथ साथ उन बाह्य प्रभावों  को भी अध्ययनों अनुसंधानों में सम्मिलित किया जाना चाहिए जो उन घटनाओं के घटित होने में  सहायक होते हैं | 
        किसी वृक्ष के बीज में अकेले इतनी क्षमता नहीं होती है कि वो वृक्ष को पैदा करके उसे बड़ा भी कर दे और उसमें फूल फल भी लग जाएँ | किसी बीज को जिस मिटटी में बीज बोया गया वो मिट्टी कैसी है | जिस जल से सींचा गया वह जल कैसा है | जितने तापमान की आवश्यकता थी उतना तापमान मिला| उसे फैलने के लिए जितना आकाश चाहिए था उसे उतना खुला आकाश मिला | जैसी और जितनी हवाओं की आवश्यकता थी | उस प्रकार की हवाएँ उसे मिलीं |वह बीज इतने सारे घटकों का सहयोग पाकर स्वस्थ और हरा भरा वृक्ष बन पाया | फूलने फलने के लिए बसंत ऋतु की आवश्यकता लगी तो समय के प्रभाव से वह फूल फल पाया !तापमान के प्रभाव   से वह पका और उसका खट्टा स्वाद मीठे में परिवर्तित हो गया | लू जैसी उष्ण हवाओं के संपर्क में आने से उसकी मधुरता बढ़ गई | 

        ऐसी परिस्थिति में किसी बीज की फल  तक पहुँचने की प्रक्रिया समझनी होगी | उस पर पड़ने वाले प्रभावों को समझना होगा | बीज के बृक्ष बनने या उसमें फल लगने में पृथ्वी आकाश अग्नि वायु और जल के योगदान को समझना होगा | इसके न्यूनाधिक होते ही वृक्ष और फल दोनों में बिकार आ जाते हैं | जिस वायु(लू) के प्रभाव से खरबूजा तरबूज इमली अंबी आदि के स्वाद और गुणों में परिवर्तन आ जाते हैं | उस वायु के प्रभाव को समझना होगा | जिस समय (बसंत) के प्रभाव से आम के पेड़ में बौर आते हैं | हेमंत के प्रभाव से गन्ना मीठा हो जाता है|                 इसमें जिस  भी घटक का साथ न मिला होता उसके प्रभाव का अभाव उस  आम के वृक्ष और उसके फल  के स्वाद और  गुण आदि में होता | ऐसा सभी न केवल वृक्षों के साथ होता है ,प्रत्युत प्राकृतिक वातावरण में घटित हो रही सभी घटनाओं के निर्माण में भी इसी प्रक्रिया का पालन वृक्षों की तरह ही हो रहा होता है |  उन घटकों के अलग अलग प्रभाव को समझने की प्रक्रिया ही इसका विज्ञान है | इन सारे प्रभावों का संयुक्त अध्ययन ही अनुसंधान है | 
    इसी प्रकार से वर्षा भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात महामारी जैसी घटित होते दिखने वाली घटनाएँ भी ऐसी ही किसी प्रक्रिया का परिणाम अर्थात फल होती हैं |ऐसी घटनाओं को समझने की प्रक्रिया ही  विज्ञान है | ऐसी घटनाओं के निर्माण में योगदान देने वाले घटकों का संयुक्त अध्ययन ही अनुसंधान है | ऐसी घटनाओं के निर्माण की निश्चित प्रक्रिया हमें न पता हो तो इसे विज्ञान कैसे कहा जा सकता है | ऐसी घटनाओं के निर्मित होने में जिन जिन प्रभावों का योगदान सम्मिलित होता है | उन सबका संयुक्त अध्ययन न किया गया हो तो इसे अनुसंधान कैसे कहा जा सकता है | 
     प्रकृति की प्रत्येक घटना में समय आदि कारकों का जो परोक्ष योगदान होता है | उसकी उपेक्षा हो जाने के कारण घटनाओं की सच्चाई सामने नहीं आ पाती है |उस घटना से संबंधित केवल प्रत्यक्ष कुछ घटक तत्वों के आधार पर किए गए अनुसंधान अधूरे होने के कारण उनके आधार पर निकाले गए निष्कर्ष भी अधूरे या फिर गलत निकलते हैं | सभी प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारी का पूर्वानुमान बताना इसीलिए संभव नहीं हो पाता है |जो  बताया भी जाता है तो गलत निकल जाता है | | 
                
पृथ्वी में गड्ढा खोदने से भूकंप नहीं मिल जाएँगे |भूकंप बनने की एक प्रक्रिया होती है | उसके विकास की अंतिम अवस्था भूकंप होती है |   ऐसे ही वर्षा भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात महामारी जैसी घटनाएँ तो किसी लंबी प्राकृतिक प्रक्रिया का परिणाम  होती हैं |ऐसी घटनाओं को समझने के लिए उस संपूर्ण प्रक्रिया को समझना होगा | उसमें लगे पंच तत्वों के योगदान को समझना होगा | 
    इसी प्रकार से वर्षा भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात महामारी जैसी घटनाओं के निर्मित  होने की उनकी अपनी अपनी लंबी प्राकृतिक प्रक्रिया होती है |उसका पूर्ण विकास हो जाने के बाद उस उस प्रकार की घटनाएँ घटित होते दिखाई पड़ती है|यदि उनका घटित होना प्रारंभ हो ही चुका होगा | उनके बाद उन्हें सहने के अतिरिक्त कोई विकल्प बचता ही नहीं है | 
    जिस प्रकार से कोई नदी बहुत अधिक जलराशि लेकर उफनती बहुत पीछे से चली आ रही हो |उसके प्रवाह से जब घर गाँव पेड़ पौधे सब बहने लगें | उस समय उस बाढ़ से समाज की सुरक्षा के लिए कितना भी बड़ा रिसर्च करके न तो बाढ़ को रोका जा सकता है और न ही समाज को बाढ़ से सुरक्षित बचाया जा सकता है |ऐसे ही भूकंप चक्रवात आदि आकर समाज में विध्वंस करने लगे उस समय अत्यंत उन्नत विज्ञान की मदद लेकर भी ऐसे प्राकृतिक संकटों से समाज को सुरक्षित नहीं बचाया जा सकता है | 
     इसीप्रकार से महामारी के आने पर जब लोग तेजी से संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त होने लगें | उससमय  अत्यंत उन्नत विज्ञान की मदद लेकर भी समाज को सुरक्षित बचाया जाना संभव नहीं हो पाता है | तुरंत की तैयारियों के बल पर इतने बड़े संकटों से समाज की सुरक्षा कैसे की जा सकती है |तैयारियाँ करने में जितना समय लगता है उतने समय में ऐसे संकट स्वयं समाप्त हो  जाते हैं |    
       इसमें विशेष बात ये है कि उस प्रकार के संकटों से सुरक्षा करने में ऐसी तैयारियों से कोई मदद मिलती भी है या नहीं ये संशय बना ही रहता है|कोरोना महामारी के समय ही देखा जाए तो प्लाज्माथैरेपी से रोगियों को रोगमुक्ति दिलाने में मदद मिलती है पहले ऐसा कहा गया था | यदि दूसरी लहर न आती तो इस बात को और अधिक बल मिलता !किंतु दूसरी लहर आने पर जब उससे लाभ नहीं मिला तो उसे कोरोना महामारी से मुक्ति दिलाने में सक्षम नहीं माना गया | ऐसा ही विश्वास  रेमडेसिवीर इंजेक्शन पर किया गया | जिससे उसे खोजने ले लिए लोग प्राण प्रण से प्रयत्न करने लगे | बाद में उसके भी उस प्रकार के प्रभाव से किनारा कर लिया गया | ऐसे न जाने कितने अनुसंधानों के नाम पर गढ़ी गई कल्पित मान्यताओं के सच से आवरण हटना अभी भी बाकी हो | उस सच को सामने लाने के लिए केवल कल्पनाओं की नहीं प्रत्युत उस प्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता है | जिसके द्वारा उस सच को खोजा जाना संभव हो जिसे अनुसंधान पूर्वक तार्किक ढंग से सत्यापित किया जा सके कि यह ऐसा ही है |
       इसलिए तुरंत की तैयारियों की अपेक्षा पहले से सही पूर्वानुमान लगाया जाना आवश्यक है |उसके आधार पर पहले से ऐसी मजबूत तैयारियाँ करके रखी जाएँ  जिनके विषय में विश्वास पूर्वक कहा जा सके कि इन तैयारियों के बलपर ऐसे प्राकृतिक संकटों से मनुष्यों की सुरक्षा की जा सकती है | 
                                                              विनम्र निवेदन 
      
वातात्जलं  जलाद्देशं 

विश्वास  किया जाना चाहिए कि वर्तमान विज्ञान से पहले भी कोई ऐसा विज्ञान अवश्य रहा होगा | जिसके द्वारा ऐसी घटनाओं से मनुष्यों की सुरक्षा होती रही होगी | ग्रहों के संचार एवं सूर्यचंद्र ग्रहण आदि विषयों में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लेने वाले भारत के प्राचीन वैज्ञानिकों के द्वारा प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से मनुष्यों की सुरक्षा के लिए पहले भी प्रयत्न किए जाते रहे होंगे | 

वर्तमानसमय में प्रचलित वैज्ञानिक विधा का इतिहास मात्र कुछ सौ वर्षों का है |उसमें भी महामारियाँ तो कभी कभी ही आती हैं | लाखों वर्षों से घटित होती आ रही घटनाओं के निर्मित होने की प्रक्रिया को कुछ सौ वर्षों के अनुभवों से समझना संभव नहीं हो पा रहा है |
    कुलमिलाकर 
उसी आधार परअनुसंधान पूर्वक भविष्य में संभावित ऐसे संकटों से बचाव के लिए मार्ग खोजे जाने की आवश्यकता है | उस युग में उन संकटों से मनुष्यों ने अपने को जिस ज्ञान विज्ञान के आधार पर सुरक्षित रखा होगा | उसी के आधार पर भी प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारी जैसे आकस्मिक  संकटों का समाधान अभी भी खोजा जाना चाहिए |

                                                                          book 
                                                           
                                                          महामारी और अनुसंधान   

   पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी ऐसे भविष्यविज्ञान की आवश्यकता है |जिसके द्वारा भविष्य में झाँका जा सके | इसके बिना भविष्य में घटित होने वाली किसी घटना के विषय में कोई पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है |भविष्यविज्ञान के बिना पूर्वानुमान लगाने का आधार क्या होगा | लगाया हुआ पूर्वानुमान यदि गलत निकल भी जाए तो गलती कहाँ हुई |उससे अनुभव लेकर उसके बाद वाले पूर्वानुमानों में सुधार कैसे किया जा सकता है |ऐसा सबकुछ भविष्यविज्ञान से ही संभव है |पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी घटना के वास्तविक कारण को खोजना होगा |
    जिस प्रकार से किसी नदी की धारा में बहते जा रहा फूल कब कहाँ पहुँचेगा | ये फूल को स्वयं पता नहीं होता है | क्योंकि वो अपनी इच्छा से नहीं बहा जा  रहा होता है,प्रत्युत उसे नदी की जलधारा के द्वारा बहाकर ले जाया जा रहा होता है | वो तो जलधारा पर बेवश पड़ा हुआ है |जलधारा जहाँ जा रही है फूल भी वहीं जा रहा है |फूल के बहने में फूल का कोई योगदान नहीं है |फूल के बहने का  कारण जलधारा है | जहाँ ढलाव होगा वहाँ पानी तेज गति से चलेगा वहाँ फूल भी तेज गति से चलेगा | जहाँ फैलाव के कारण जलधारा में ठहराव होगा वहाँ जलधारा की गति धीमी होने के कारण वहाँ  फूल के बहने की गति भी धीमी हो जाएगी | यह गुण फूल का नहीं प्रत्युत जलधारा का है | ऐसी स्थिति में फूल को देखकर इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है कि फूल बहकर कहाँ कितनी गति से जाएगा |इसके लिए जलधारा को ही देखना होगा |
      जिसप्रकार से जलधारा में फूल के बहने में फूल का कोई योगदान नहीं होता है |उसके लिए जलधारा को ही देखना समझना होगा |इसीप्रकार से बादल वायु के साथ उड़ रहे होते हैं| इसलिए  बादलों के कहीं आने जाने बरसने न बरसने में वायु प्रवाह ही कारण होता है | इसीप्रकार से प्रकृति और जीवन में स्वतः घटित होने वाली घटनाओं का कारण समय होता है | किसी नदी में पानी आएगा या नहीं आएगा या कब कितना आएगा | कितनी तेज आएगा या धीमे आएगा | इसका कारण जलधारा नहीं प्रत्युत नदी की बनावट और जल की उपलब्धता है | ऐसे ही जीवन में सुख दुःख हानि लाभ जन्म मृत्यु  जैसी घटनाओं के घटित होने में मनुष्यों की अपनी कोई विशेष भूमिका नहीं होती है |इसका कारण समय होता है | जिस प्रकार से नदियाँ जल के आधीन होती हैं | उसी प्रकार से प्रकृति और जीवन समय के आधीन होता है | 
     ऐसे ही सुदूर आकाश में उड़ रहे बादलों या आँधी तूफानों को दूरदर्शी यंत्रों से देखकर उनकी गति और दिशा के अनुसार उनके कहीं दूसरी जगह पहुँचने के विषय में सही अंदाजा लगाया जाना इसलिए संभव नहीं होता,क्योंकि वर्षा बादलों एवं आँधी तूफानों के घटित होने का कारण जो हवा होती है| बादल आदि स्वयं में स्वतंत्र नहीं होते हैं | वे तो हवा में उड़ रहे होते हैं | हवा जहाँ जाती है बादलों को उड़ाकर वहीं ले जाती है |हवाओं के रुख  में जब जैसा परिवर्तन होगा वर्षा बादलों एवं आँधी तूफानों के घटित होने में तब तैसे बदलाव होने लगते हैं  |हवा दिखाई नहीं पड़ती है | इसलिए वह दूरदर्शी यंत्रों से भी देखी नहीं जा सकती है| ऐसी परिस्थिति में वर्षा बादलों एवं आँधी तूफानों के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए हवाओं के रहस्य को समझना एवं उनके संचार के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता है |इसके बिना यह कैसे कहा जा सकता है कि बादल कब कहाँ पहुँचेंगे या कब कहाँ वर्षा होगी या आँधी तूफ़ान आएगा |वायु समूहों के स्वभाव और संचार को समझे बिना प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि  कैसे लगाया जा सकता है | 
     सामान्यतः प्राकृतिक रोगों या महामारियों के पैदा होने या उनका वेग घटने बढ़ने के लिए मौसमसंबंधी असंतुलन  को जिम्मेदार माना जाता है|ऐसा संतुलन जब बड़े स्तर पर बिगड़ता है,तब महामारी पैदा होती है |
    ऐसी परिस्थिति में महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसमसंबंधी प्राकृतिक असंतुलन को समझना होगा |प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अध्ययन करना होगा | इसके विषय में जितना सही पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा !महामारी के विषय में उतना सही पूर्वानुमान लगाना संभव हो पाएगा | 
     प्राकृतिक वातावरण कब कैसा बनेगा| कब  किस प्रकार की हवाएँ चलेंगी |इसका पूर्वानुमान लगाए बिना मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में  सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है | मौसम को समझने के लिए भी विज्ञान की आवश्यकता होती है |मौसम विज्ञान में विज्ञान क्या है | इसका वैज्ञानिक पक्ष क्या है | इस पर बिचार करना होगा | मौसमसंबंधी परिवर्तनों को समझे बिना एवं मौसमी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने में सफलता पाए बिना असंतुलितमौसम के कारण पैदा होने वाली  महामारियों को समझना कैसे संभव है |  
    कुलमिलाकर महामारियों के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए पहले मौसम के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना होगा |इसके लिए भविष्य में झाँकने वाला विज्ञान चाहिए |भविष्यविज्ञान के बिना मौसम हो या महामारी किसी के भी विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है | कब किस प्रकार की महामारी आने वाली है|इसके विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाए बिना महामारी से समाज को सुरक्षित बचाने के लिए अग्रिम तैयारियाँ  करके कैसे रखी जा सकती हैं | इसके बिना इतने बड़े वेग से यदि अचानक कोई महामारी आ जाए उससे लोग तेजी से संक्रमित होने लगें | इतने कम समय में पहले से की गई तैयारियों के बिना समाज को सुरक्षित कैसे बचाया जा सकता है |

                                                  भविष्यविज्ञान और पूर्वानुमान   
      
     प्राकृतिक घटनाओं को समझना है या उनके वेग को समझना है या उनके अच्छे बुरे प्रभाव को समझना है अथवा उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना है तो समयशक्ति ,समयसंचार एवं समय की प्रवृत्ति को आगे से आगे अनुसंधानपूर्वक पता करके रखना होगा | इस पर निरंतर दृष्टि इसलिए बनाए रखनी होगी! क्योंकि समय संचार में न जाने कब किस प्रकार के परिवर्तन होने लगें |
    कुलमिलाकर समयसंचार को समझे बिना न तो किसी घटना को सही समझा जा सकता है और न ही उसके विषय में सही पूर्वानुमान ही लगाए जा सकते हैं |
     आकाश में उड़ती  दिख  रही पतंग का कारण वह व्यक्ति है | जिसके हाथ में पतंग की डोरी होती है | कारण के रूप में उस व्यक्ति की पहिचान  होते  ही उस पतंग का संपूर्ण रहस्य न केवल उद्घाटित हो जाता है,प्रत्युत उसे और अधिक ऊपर उड़ाना या खींच कर नीचे ले आना आदि संभव हो जाता है |
   इसीप्रकार से प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली प्रत्येक घटना समय की डोरी में बँधी हुई है |समय की पहचान होते ही उस घटना के रहस्य को समझना उसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना आसान  हो जाता है |  
     मौसम के क्षेत्र में कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएँ घटित हो जाती हैं, जैसी घटनाएँ हमेंशा नहीं घटित होती रही होती हैं | इसलिए उनके रहस्य को समझना या उनके विषय में अंदाजा लगाना कठिन हो जाता है | कई बार लगाया हुआ अंदाजा गलत निकल जाता है | मौसम और महामारी के विषय में ऐसा होते  बार बार  देखा जाता रहा है | ऐसी घटनाओं के घटित होने के लिए कारण के रूप में जलवायुपरिवर्तन या महामारी के स्वरूपपरिवर्तन को बताया जाता रहा है ,किंतु ऐसे कल्पित कारणों को न तो तर्क की कसौटी पर कसा जा सकता है और न वैज्ञानिक प्रक्रिया से ही प्रमाणित किया जा सकता है | ऐसी कल्पनाओं को यदि कारण के रूप में स्वीकार कर भी लिया जाए तो ऐसे कल्पित कारण प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से पीड़ित लोगों की सुरक्षा में कैसे सहायक हो सकते हैं | 
     किसी ताले को चाभी से खोला जा रहा हो किंतु वो खुल न रहा हो, तो इसका कारण उस ताले का बदल दिया जाना या उसका खराब होना ही नहीं होता है | संभव यह भी है कि जिस चाभी से ताले को खोलने के प्रयत्न किए जा रहे हैं वह उस ताले की चाभी हो ही न | 
     इसी प्रकार से मौसम एवं महामारी को जिस वैज्ञानिक प्रक्रिया से समझने के प्रयास किए जाते रहे हैं ,किंतु उन्हें समझना संभव नहीं हो पाया है | इसका कारण जलवायुपरिवर्तन या महामारी का स्वरूपपरिवर्तन ही हो | ऐसा निश्चित नहीं है | ऐसा भी तो हो सकता है कि जिस वैज्ञानिक प्रक्रिया से मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में अनुसंधान  किया जाता  रहा है | उन घटनाओं के विषय में  अनुसंधान  करने का वह विज्ञानं ही न हो  | इसके बिना ऐसी घटनाओं को समझना एवं इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना कैसे संभव हो सकता है | 
      किसी घटना के कारण को खोजने का अर्थ केवल कल्पना कर लेना ही पर्याप्त नहीं होता है ,प्रत्युत परीक्षण में उसे कारण के रूप में प्रमाणित भी होना  चाहिए |जिस प्रकार से किसी नदी में फूल बहता देखकर उस फूल के बहने का कारण जलधारा है | ऐसी कल्पना तो की जा सकती है किंतु इसका भी परीक्षण करके यह देखा जा सकता है कि रुकने के बाद भी फूल बहकर आगे जा सकता है क्या ? यदि हाँ तो फूल के बहने का कारण जलधारा नहीं है ,अन्यथा जलधारा के प्रभाव से ही फूल बह रहा है | यह प्रमाणित हो जाता है,किंतु प्राकृतिकआपदाओं एवं महामारियों के पैदा होने या विस्तार होने के लिए जलवायुपरिवर्तन या महामारी के स्वरूपपरिवर्तन को कारण मान भी लिया जाए तो उसका परीक्षण नहीं किया जा सकता है | 
    जिस प्रकार से बादलों के कहीं आने जाने का कारण वायुसंचार  है | उसी प्रकार से प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली घटनाओं का कारण समय होता है | समय के अनुसार परिवर्तन होते रहते हैं | इसीलिए जब  जैसा  समय चल रहा होता है,तब तैसी घटनाएँ घटित होती हैं | प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए उन घटनाओं को नहीं प्रत्युत समय संचार को ही समझना होता है | पूर्वानुमान घटनाओं का नहीं प्रत्युत समय का लगाना होता है | समय संबंधी संभावित परिवर्तनों के विषय में पूर्वानुमान लगाना होता है |
   जिसप्रकार से कौन ट्रेन किस दिन कितने बजे किस स्टेशन से जाएगी कितने बजे किस स्टेशन पर पहुँचेगी | कितने बजे किस स्टेशन पर उसका गंतव्य पूरा होगा | यह सब कुछ किसी ट्रेन को जाते देखकर पता नहीं लगाया जा सकता है ,किंतु ट्रेन की समयसारिणी देखकर महीनों पहले इस  पूर्वानुमान लगाया सकता है कि कौन ट्रेन किस दिन कितने बजे किस स्टेशन से जाएगी और कब कहाँ पहुँचेगी | 
    इसीप्रकार से प्राकृतिक घटनाओं की समय सारिणी यदि खोज ली जाए तो प्रत्येक प्राकृतिक घटना के घटित होने का कारण एवं समय आगे से आगे पता लगाया जा सकता है|समय को समझने एवं उसके विषय में पूर्वानुमान लगाने के दो रास्ते हैं| एक तो प्राकृतिक घटना समूहों के द्वारा भावी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाए तो दूसरे गणित के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने की समय सारिणी खोज ली जाए उसके आधार पर प्राकृतिक घटनाओं एवं महामारियों के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाए| यह सूर्य चंद्र ग्रहणों का गणित के आधार पर पूर्वानुमान लगाने की पद्धति है | 
    जिसप्रकार से सूर्य चंद्र तथा पृथ्वी के मंडलों को नापे बिना केवल गणित के आधार पर पूर्वानुमान लगा लिया जाता है|उसी प्रकार से गणित के द्वारा बादलों आँधी तूफानों को एवं महामारी से संक्रमित होते लोगों को देखे बिना भी ऐसी घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं | गणितीय पद्धति के द्वारा भूकंप चक्रवात बज्रपात जैसी घटनाओं के विषय में भी अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगा सकता है |
  
                                        प्राचीनविज्ञान में महामारी से सुरक्षा की तैयारियाँ  
    महामारियाँ तथा प्राकृतिक आपदाएँ समय के साथ ही घटित  होती चली आ रही हैं | ये तो प्राचीन काल में भी घटित होती रही होंगी | उस समय  जनसंख्या भी बहुत कम रही होगी | उस युग में ऐसी आपदाओं से यदि इतनी ही जनहानि होती रही होती,तब तो सृष्टिक्रम आगे बढ़ना संभव ही नहीं हो पाता | ऐसा होने के बाद भी लोगों का सुरक्षित बचा रहना इस बात के संकेत देता है कि प्राचीनकाल में  महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा के लिए कोई न कोई ऐसी प्रभावी व्यवस्था अवश्य रही होगी | जिससे मनुष्यों  की सुरक्षा होती रही होगी | संभव है कि प्राचीन भविष्य  वैज्ञानिकों ने महामारी आदि घटनाओं के  विषय में पूर्वानुमान लगाने में प्राचीन काल में ही सफलता  प्राप्त कर ली हो | जिसके सहारे सृष्टिक्रम सुरक्षित रूप से चलता  आ रहा है |
     प्राचीन वैज्ञानिकों की  इस क्षमता पर विश्वास इसलिए भी किया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने उस युग में ही ग्रहों के संचार एवं सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में पूर्वानुमान लगाने में सफलता प्राप्त कर ली थी| ये अत्यंत कठिन कार्य था | उस युग के वैज्ञानिकों की अनुसंधान भावना  कितनी उन्नत रही होगी | इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है |   भरोसा इसलिए भी किया जाना चाहिए कि भारत का प्राचीनविज्ञान प्रकृति और जीवन को समझने एवं इनसे संबंधित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने में अधिक सक्षम रहा होगा |उस युग में न तो प्राकृतिक आपदाएँ अचानक घटित होती रही होंगी और न ही महामारियाँ ! 
    कुलमिलाकर प्राचीनवैज्ञानिक प्राकृतिकआपदाओं एवं महामारियों  के विषय में भी अत्यंत सतर्कता बरतते देखे जाते थे|प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों से सुरक्षा की दृष्टि से पूर्वानुमान लगाना सबसे आवश्यक होता था ,क्योंकि पूर्वानुमान लगाए बिना प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से मनुष्यों की सुरक्षा कैसे की जा सकती है |     
    आयुर्वेद के चरक संहिता जैसे प्राचीन ग्रंथों में इसी गणितीयपद्धति से महामारियों के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाने की विधि बताई गई है | इसकी झलक आयुर्वेद के शीर्ष ग्रंथ 'चरकसंहिता' में भी मिलती है |वहाँ महामारी पैदा होने से पहले भगवान पुनर्वसु महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाते हुए अपने शिष्यों से कहते हैं कि  देखो अश्वनी भरणी आदि नक्षत्र ग्रह  सूर्य चंद्र अग्नि(पित्त)  वायु आदि  महामारी आने की सूचना दे रहे हैं | इसलिए महामारी से बचाव के लिए अभी से तैयारियाँ शुरू कर देनी चाहिए |   
     ग्रह नक्षत्रों के आधार पर ही भगवान पुनर्वसु ने महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया था | इससे ये स्पष्ट है कि प्राचीनकाल में महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाता रहा है |
       उस युग में महामारियों से सुरक्षा के लिए  सबसे पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता था कि कब कैसी महामारी आने वाली है | जिस प्रकार की महामारी  जब आने वाली होती थी | उस महामारी में किस किस प्रकार के रोग होंगे | उस समय किस किस प्रकार  की औषधियों  से लाभ मिल सकता है | ये महामारी आने से पहले ही न केवल पता लगा लिया जाता था,प्रत्युत महामारी से मुक्ति दिलाने में सक्षम औषधीय द्रव्यों बनस्पतियों आदि का संग्रह कर लिया जाता था | उसी पूर्वानुमान के आधार पर  महामारी प्रारंभ होने से पहले ही महामारी से मुक्ति दिलाने वाली औषधियों का निर्माण करके रख लिया जाता था | इतनी सारी तैयारियाँ कर लेने के बाद महामारी आती थी | शुरू से ही चिकित्सा शुरू कर देने से लोगों को सुरक्षित बचाने में मदद  मिल जाती थी |  
    "आयुर्वेद के शीर्ष ग्रंथ 'चरकसंहिता' में महामारी पैदा होने से पहले भगवान पुनर्वसु महामारी के विषय में अपने शिष्यों से कहते हैं कि  देखो अश्वनी भरणी आदि नक्षत्र ग्रह  सूर्य चंद्र अग्नि(पित्त)  वायु आदि के संचार में कुछ ऐसे बदलाव आते देखे जा रहे हैं जो हमेंशा नहीं आते हैं | इससे प्राकृतिक वातावरण में ऐसे बिकार पैदा हो रहे हैं | ये सब महामारी आने की सूचना दे रहे हैं | इसलिए महामारी का पैदा होना अब निश्चित है | 
     प्राकृतिक वातावरण में महामारी का प्रभाव बढ़ने के  कारण पृथ्वी भी औषधियों में रस वीर्य विपाक और प्रभाव आदि अभी की तरह  उस समय पैदा नहीं करेगी | उस प्रभाव में कमी आएगी |इसलिए महामारी से बचाव के लिए अभी से तैयारियाँ शुरू कर देनी चाहिए | पृथ्वी रस रहित हो उससे औषधियों का रस वीर्य विपाक प्रभाव आदि नष्ट हो उससे पहले औषधियों का संग्रह करके रख लो | जिससे जनपदों को बिनाश होने से बचाया जा सके | महामारी आने पर उनके रस वीर्य विपाक प्रभाव आदि का प्रयोग करके महामारी के समय समाज की सुरक्षा कर ली जाएगी | "
    इस प्रकार से महामारियों के विषय में पूर्वानुमान तो लगाया ही जाता था |उसके आधार पर महामारी से बचाव के लिए सुरक्षा की तैयारियाँ करके पहले से रख ली जाती थीं| यहाँ तक कि महामारी से बचाव के लिए आवश्यक औषधियों का निर्माण करके भी पहले से रख लिया जाता था | ऐसी मजबूत तैयारियाँ पहले से कर लेने के बलपर ही ही  महामारियों से सुरक्षा की जानी संभव हो पाती  थी |

                                        महामारी का पूर्वानुमान और प्राचीन विज्ञान 

      पिछले 35 वर्षों से मैं प्राकृतिक घटनाओं के विषय में प्राचीनविज्ञान के आधार पर अनुसंधान करता आ रहा हूँ | सन 2010 के बाद प्राकृतिकवातावरण धीरे धीरे असंतुलित होता जा रहा था|सन 2015 के बाद इसके कारण कुछ उस प्रकार की असंतुलित घटनाएँ दिखाई भी पड़ने लगी थीं |सन 2018 में मुझे प्राकृतिक वातावरण में कुछ विशेष रोगकारक बिषाणुओं की बहुलता का अनुभव होने लगा था |जिसकी  सूचना सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र संघ को दी थी |   
मेलें आदि 

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                                                            समय और महामारी 
    समय का प्रभाव संपूर्ण प्रकृति पर पड़ता है |प्राकृतिक वातावरण में बिषाणुओं के बढ़ने की प्रक्रिया भी समय प्रभाव से ही प्रारंभ होती है |महामारी आने से पहले प्राकृतिक वातावरण स्वतः बिषैला होने लग जाता है |वैसे बिषाक्त  वातावरण में साँस लेने से लोग अस्वस्थ होने लगते हैं | इसके साथ ही उस समय खाने पीने की चीजें फल शाक सब्जियाँ आदि भी तो  ऐसे बिषैले वातावरण में ही पली बढ़ी होती हैं | इसलिए बिषाणुओं के उन अंशों से वे भी प्रभावित होती हैं | उन्हें खाने पीने से भी स्वास्थ्य बिगड़ते देखे जाते हैं |शाक सब्जियों की तरह ही  औषधीय द्रव्य बनस्पतियाँ आदि भी उसी बिषैले वातावरण में पली बढ़ी होती हैं | वे  भी बिषाक्त  वातावरण प्रभावित होती हैं | उनसे निर्मित औषधियों में भी उसी प्रकार के बिकार आ जाने के कारण रोगमुक्ति दिलाने योग्य नहीं रह जाती हैं |
    ऐसी परिस्थिति में  बिषैले वातावरण में साँस लेने कारण लोग अस्वस्थ होते हैं | उसी बिषैले वातावरण से प्रभावित भोजन पानी पेट में जाने वाले बिषैलेबिकार और अधिक बढ़ जाते हैं| उसी बिषैले वातावरण में पली बढ़ी औषधीय बनस्पतियों आदि से निर्मित औषधियाँ स्वगुणों से हीन हो जाने के कारण ऐसे समय होने वाले रोगों महारोगों से मुक्ति दिलाने में सक्षम नहीं रह जाती हैं | इसके कारण जिन औषधियों को जिस प्रभाव के लिए पहले से पहचाना जाता रहा होता है | समय प्रभाव से उनमें वो गुण नहीं रह जाते हैं | इसलिए वे उन रोगों से मुक्ति दिलाने में सक्षम नहीं रह जाती हैं |औषधियों का प्रभाव न पड़ने पर ये भ्रम होना स्वाभाविक ही है कि रोग ही इतना भयानक है जिस पर औषधियों का प्रभाव ही नहीं पड़ पा रहा  है|  इसी प्रकार से महामारी जैसे संकट का  निर्माण हो जाता है | 
    विशेष बात ये है कि बड़े बड़े घने जंगलों में ओले गिरते होंगे | आँधी तूफ़ान आते होंगे भूकंप आता होगा महामारी वाले बिषाणु वहाँ के प्राकृतिक वातावरण में भी  फैलते होंगे, किंतु  वहाँ मनुष्यादि प्राणियों के न होने से कोई पीड़ित नहीं  होता होगा | इसलिए उसकी चर्चा नहीं होती है | ऐसे ही आदिकाल में भी होता रहा होगा |प्राकृतिक घटनाएँ तो तब भी ऐसी ही घटित होती रही होंगी ,किंतु सर्दी गर्मी वर्षा तथा महामारी आदि से परेशान होने या रोगी होने वाले मनुष्यादि प्राणी नहीं होते रहे होंगे | महामारी एवं प्राकृतिकआपदाओं जैसी आपदाएँ स्वतः आती जाती रहती होंगी |प्राकृतिक आपदाओं और महामारियों का संबंध समय के साथ जुड़ा हुआ है|ये तभी से चली आ रही हैं जबसे समय का संचार प्रारंभ हुआ होगा |
    मानवीसृष्टि उसके बहुत बाद में प्रारंभ हुई थी| उसके बाद से ही लोग ऐसी घटनाओं  से पीड़ित होने लगे | इसलिए उन्हें सुरक्षा की चिंता सताने लगी | उसी समय से उनकी सुरक्षा के लिए प्रयत्न किए जाने लगे | इसके लिए आवश्यक अनुसंधानों की व्यवस्था की गई होगी  | 
         समय और प्रकृतिपरिवर्तन   
    समय हमेशा बदलता रहता है |समय के साथ साथ संपूर्ण ब्रह्मांड में बदलाव होते रहते हैं |समय के अनुसार  ग्रहों नक्षत्रों का संचार होता है | प्रकृति और जीवन में अधिकांश परिवर्तन समय के अनुसार होते हैं|समय आने पर प्राकृतिक वातावरण का आकार प्रकार बदलने लग जाता है|स्वभाव बदलने लगता है |समय जैसे जैसे बीतता जाता है,वैसे वैसे घटनाएँ घटित होती जाती हैं |जब जैसा समय आता है तब तैसी घटनाएँ घटित होती हैं |

     शिशिरऋतु का अर्थ होता है ठंडासमय |इसीलिए शिशिरऋतु का समय आने पर सूर्य की किरणें मंद पड़ने लगती हैं| कोहरा पाला हिमपात जैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं|तापमान काफी कम हो जाता है | लोग सर्दी से काँपने लगते हैं |शिशिरऋतु के अनुसार ही संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण बनता चला जाता है |  प्रकृति भी समय के अनुरूप व्यवहार करने लगती है |इससे यह  प्रमाणित होता है कि प्रकृति में हो रहे सभी बदलावों (घटनाओं) का कारण समयका प्रभाव ही है |

     ग्रीष्म शब्द का अर्थ होता है उष्ण (गरम) ऋतु का अर्थ है समय ! ग्रीष्मऋतु का अर्थ होता है उष्ण अर्थात गरम समय ! ग्रीष्मऋतु के प्रभाव से तापमान काफी बढ़ जाता है |नदी तालाब आदि सूखने लग जाते हैं |धूल भरी गरम हवाएँ चलने लगती हैं |आँधी तूफ़ान आने की घटनाएँ अधिक घटित होने लग जाती हैं | नदियों तालाबों आदि का पानी सूख जाता है | 

    ऐसे ही वर्षाऋतु का अर्थ है बारिश का समय ! इसीलिए वर्षाऋतु के समय आकाश में  बादलों का आना जाना प्रारंभ हो जाता है| काली काली घटाएँ घिरने लग जाती हैं|उस प्रकार की हवाएँ चलने लगती हैं |  बादल बरसना शुरू कर देते हैं | जगह जगह बाढ़ जैसे दृश्य देखने को मिलते हैं |उससे नदियाँ तालाब आदि भर जाते हैं | तापमान कम होने लगता है| वर्षाऋतु में तरह तरह के रोग पैदा होने लगते हैं | 

       समय के अनुसार वृक्षों बनस्पतियों में बदलाव होने लगते हैं | समय के अनुसार बीजों में अंकुरण होता है |समय से अनाज बोए जाते हैं हैं और समय से ही पक जाते हैं | ऐसे ही मार्च अप्रैल में खेतों में झड़ गए बीज मिट्टी और पानी में यूँ ही छै महीने तक पड़े रहते हैं |लेकिन अंकुरित समय आने पर ही होते हैं | ऐसे ही बारहों महीने बाग़ बगीचों में खड़े हरे भरे आम जामुन आदि फूल फलदार वृक्षों में समय आने पर  ही फूल फल लगते  देखे जाते हैं| समय से कमल खिलते हैं | समय से ही समुद्र में ज्वार भाटा जैसी घटनाएँ घटित होती हैं |  
  समय की पहचान जितनी पेड़ पौधों को होती  है|उतनी ही प्राकृतिक वातावरण में रहने वाले पशु पक्षियों समेत समस्त प्राणियों को होती है |ऐसे परिवर्तनों के प्रभाव से उनके व्यवहार में बदलाव होने लगते हैं| सुनामी भूकंप आदि आने से पहले जंगलों में रहने वाले आदि वासी लोगों को उन स्थानों को छोड़कर कहीं और जाते देखा जाता है |ऐसे स्थानों से पशु पक्षियों को भी कहीं दूर चले जाते देखा जाता है |समय संबंधी परिवर्तनों की पहचान समस्त जीव जंतुओं को होती है|बसंत आते ही कोयलें कूकने लगती हैं| वर्षाऋतु में मेढक टर्राने लगते हैं |प्रातः काल मुर्गे बोलने लगते हैं |ऐसे ही बहुत मनुष्यों को समय के परिवर्तनों का अनुभव आगे से आगे हो जाता है|      

      जिसप्रकार से ऋतुओं के आने जाने का समय निश्चित है| अमावस्या पूर्णिमा का समय  निश्चित है|सूर्यादि ग्रहों के उदय और अस्त होने का समय निश्चित है| प्राकृतिक घटनाएँ अपनी अपनी ऋतुओं में घटित होती हैं उनका भी अपना अपना समय निश्चित है|इसीप्रकार से भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बादलों चक्रवातों बज्रपातों आदि के भी आने जाने का समय  भी निश्चित होता है|जिस घटना के घटित होने का जब समय आता है तब वो घटना घटित हो जाती है |अंतर इतना है कि ऋतुओं तथा अमावस्या पूर्णिमा आदि तिथियों एवं ग्रहों के उदय अस्त होने के समय को गणितविज्ञान के द्वारा अनुसंधानपूर्वक खोज लिया गया है | इसलिए इनके विषय में आगे  से आगे  पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |सूर्य चंद्र ग्रहणों  के  विषय में भी सैकड़ों  वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |  

      प्राकृतिक घटनाएँ यदि समय के अनुसार घटित होती हैं तो वर्षा बाढ़ भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात  बज्रपात महामारी आदि भी तो प्राकृतिक घटनाएँ  ही हैं |ये भी समय के अनुसार ही घटित होती हैं|प्रकृति और जीवन को   समझने के लिए समय के संचार को समझना होगा | इसकी पहचान आदिकाल में ही कर ली गई थी |उस युग में ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा भी लिए जाते थे कि प्रकृति और जीवन में कब किस प्रकार की घटना घटित होने वाली है |  

    इसलिए सभीप्रकार की घटनाओं को समझने एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए सबसे पहले  समय संबंधी संभावित परिवर्तनों को आगे से आगे समझना एवं इनके विषय में पूर्वानुमान लगाना आवश्यक होता है |

                                        

वातादि दोष !(यहाँ रखा जाएगा )

https://drsnvajpayee1965.blogspot.com/2025/04/blog-post.html
     इसके बाद 
नक्षत्र राशि और ग्रह
     

 समय के अनुसार घटित होती हैं घटनाएँ !

      समय के प्रभाव से प्रकृति में परिवर्तन होते हैं | इनके घटित होने में मनुष्यकृत प्रयत्न सम्मिलित नहीं होते हैं | जिस प्रकार से समय के अनुसार घटित होने वाली सूर्य चंद्र ग्रहण आदि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाता है | उसी प्रकार से वर्षा बाढ़ भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात  बज्रपात महामारी आदि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में  भी समय के अनुसार अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है | 

     जिसप्रकार की घटनाएँ जब घटित होती दिखाई दें तब उस प्रकार का समय चल रहा होता है |अच्छी बुरी प्राकृतिक घटनाओं को देखकर अच्छे बुरे समय की पहचान की जाती है |गणितविज्ञान के द्वारा भी अच्छे  बुरे समय की पहचान कर ली जाती है |भविष्य के अच्छे बुरे समय के विषय में भी गणित के द्वारा पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए|उसी के अनुसार प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाया जा सकता है|

     इसमें गणितविज्ञान के द्वारा समय संबंधी जो  जानकारी मिलती है | उसके आधार पर अच्छे बुरे समय के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता  है | अच्छे बुरे समय के विषय में पूर्वानुमान लगते ही समय के प्रभाव से घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं के विषय में भी सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान  लगाना संभव हो पाएगा |

    ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से पहले उनसे संबंधित छोटे छोटे चिन्ह प्रकृति के सभी अंगों में उभरने लगते हैं |ऐसे छोटे से छोटे परिवर्तनों पर ध्यान देना होता है | वे संभावित घटनाओं की सूचना दे रहे होते हैं | प्रकृति के सभी अंगों में होने वाले समय के परिवर्तनों का अनुभव करने का सबसे अच्छा माध्यम प्राकृतिक वातावरण में रहकर प्राकृतिक जीवन जीना होता है |

     ऐसे ही समय संबंधी प्राकृतिक परिवर्तनों को प्राकृतिकवातावरण में रहकर ही सबसे अच्छा अनुभव किया जा सकता है| इसीलिए प्राचीनकाल में ऋषियोंमुनियों को जंगलों में रहकर अनुभव करते देखा जाता था | उनके  रहने खाने पीने आदि की सुख सुविधाएँ उन्हें भी राजदरवारों में मिल सकती थीं | तपस्या वो वहाँ भी रहकर कर सकते थे  किंतु प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव करने के लिए उन्हें जंगलों में ही रहना पड़ता था | उनसे  उनके  अनुभव प्राप्त करने के लिए राजा लोग प्रायः जंगलों में जाया करते थे |कभी कभी कुछ आकस्मिक संकेत प्राप्त होने पर ऋषियोंमुनियों को भी राजदरवारों में आते देखा जाता था | वहाँ उनका बहुत आदर सत्कार होता था | इसमें विशेष बात यह भी है कि जंगलों में हिंसक जीव जतुओं का भय रहता है | भोजन आदि की कठिनाई होती है | इससे बचाव के लिए ऋषि चाहते तो जंगलों में भी समूहों में रहकर एक दूसरे के सहायक बन सकते थे | इससे कठिनाइयाँ कुछ कम हो सकती थीं किंतु उन्हें भिन्न भिन्न स्थानों की प्रकृति का अनुभव करना होता था |इसलिए ऋषियों के आश्रम एक दूसरे से काफी दूर होते देखे जाते थे | 
      ऐसी परिस्थिति में समाज को स्वस्थ और प्रसन्न रखने के लिए प्राकृतिक वातावरण में हो रहे परिवर्तनों एवं  वायुप्रवाह का सतत परीक्षण करते रहना चाहिए | प्राचीन काल में ऋषि मुनि महात्मा आदि इसी प्राकृतिक वातावरण का अनुभव अध्ययन आदि करने के लिए  जंगलों में आश्रम बनाकर रहा करते थे | त्रिकाल संध्या करते  थे | संध्या का प्राण प्राणायाम होता है | प्राणायाम करते समय स्वरोदय विज्ञान के आधार पर इड़ा पिंगला सुषुम्णा के साथ साथ पंचतत्वों के प्रवाह का निरंतर निरीक्षण करते रहते थे |चैत्र शुक्ल प्रतिपदा प्रातः काल से ही यह प्रक्रिया प्रारंभ करके निरंतर अभ्यास करना होता था |वायु प्रवाह बिगड़ना जैसे ही प्रारंभ होता था | उसी समय से उसे नियंत्रित करने की दृष्टि से प्रभावी प्रयत्न प्रारंभ कर दिए जाते थे |यहीं से प्राकृतिक वातावरण  सुधरने लगता था  | जिससे  अन्न फूल फल शाक सब्जियाँ आदि प्रदूषित होने से बच जाया  करती थीं | इससे महामारी जैसे रोग प्रारंभ में ही नियंत्रित होने लग जाते थे | महामारी प्रारंभ होने से पहले जिन बनौषधियों का संग्रह करके रख लिया जाता था | उनसे निर्मित औषधियाँ अत्यंत प्रभावी होती थीं | महामारी के विषाणुओं से  कुछ लोग यदि संक्रमित हो भी गए तो उन औषधियों से उन्हें तुरंत रोगमुक्त कर लिया जाता था | इस प्रक्रिया से प्राचीन काल में महामारियाँ  उतनी अनियंत्रित नहीं हो पाती थीं |
     वर्तमान समय में ऐसी घटनाओं के विषय में समय आधारित अनुसंधानों की परंपरा ही विलुप्त होती जा रही है | इसी कारण प्रकृति एवं जीवन से संबंधित घटनाएँ अचानक घटित होते दिखाई दे रही हैं |आवश्यकता ऐसी घटनाओं के घटित होने के निश्चित समय को खोजे जाने की है |   

       कोरोना जैसी महामारियों के अनियंत्रण में यह भी एक बड़ा कारण होता है कि जब बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं | उस समय इतने भयंकर महारोग को समझने के लिए समय ही कहाँ था | सही निदान के बिना उचित औषधि के विषय में निर्णय कैसे लिया जाए | औषधीय द्रव्यों का इतनी बड़ी मात्रा में तुरंत संग्रह कैसे किया जाए |  इतने कम समय में इतनी अधिक मात्रा में औषधि का निर्माण कैसे किया जाए | ऐसी औषधियों को जनजन तक पहुँचाना अत्यंत कठिन कार्य था | महामारी से हुए जनधन के नुक्सान के लिए यह भी एक बड़ा कारण बना है 
   
 प्रकृति दे रही थी महामारी आने के संकेत !

अग्नि तत्व 
     ऑस्ट्रेलिया में आग लगने की भयंकर घटनाएँ घटित होते देखी जाती रहीं ,जो लंबे समय तक चलती रही हैं |कुछ अन्य देशों में भी ऐसी घटनाएँ देखने को मिलती रही हैं |उत्तराखंड के जंगलों में तो 2 फरवरी 2016   से ही आग लगने की घटनाएँ प्रारंभ हो गई थी जो  क्रमशः धीरे धीरे बढ़ती चली जा रही थीं | 10 अप्रैल 2016 के बाद ऐसी घटनाओं में बहुत तेजी आ गई थी !आग लगने की घटनाओं से हैरान परेशान होकर 28 अप्रैल 2016 को बिहार सरकार के राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने ग्रामीण इलाकों में सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक खाना न पकाने की सलाह दी थी . इतना ही नहीं अपितु इस बाबत जारी एडवाइजरी में इस दौरान हवन करने, गेहूँ  का भूसा और डंठल जलाने पर भी पूरी तरह रोक लगा दी गई थी | इसी समय जमीन के अंदर का जलस्तर तेजी से नीचे जाने लगा था, बहुत इलाके पीने के पानी के लिए तरसने लगे | पानी की कमी के कारण ही पहली बार पानी भरकर दिल्ली से लातूर एक ट्रेन भेजी गई थी |प्राकृतिक वातावरण में बहुत अधिक ज्वलन शीलता बढ़गई  थी | ऐसा होने के पीछे का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था |इस वर्ष आग लगने की घटनाएँ इतनी अधिक घटित हो रही थीं | ये अनुसंधान का विषय होना चाहिए था कि क्या ऐसी घटनाओं का भी महामारी से कोई संबंध था !
जल में कोरोना -
 19-1-2020- ऑस्ट्रेलिया मूसलाधार बारिश और बाढ़ झेल रहा है।मौसम विभाग के मुताबिक यह 100 साल में सबसे अधिक होने वाली बारिश है | पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन और क्वींसलैंड में भारी तबाही हुई है। 
    सूखा वर्षा बाढ़ जैसी  भयानक हिंसक घटनाएँ पिछले कुछ वर्षों से विश्व के अनेकों देशों प्रदेशों  में घटित होते देखी जा रही हैं | भारत में भी असम  केरल कश्मीर बिहार महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में समय समय पर घटित होती देखी जाती रही हैं | अगस्त 2018 में केरल में भीषण बाढ़ आई ! 2020 के  अप्रैल में इतनी बारिश हुई जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। मई की बारिश ने भी चौका दिया है।गरमी की ऋतु में  मई जून तक वर्षा होती रही |ऐसी बहुत सारी घटनाएँ घटित होती रही हैं | ऐसी घटनाएँ इतनी अधिकता में पहले तो नहीं घटित होती थीं | ऐसा होने का कारण आगे आने वाली कोरोना महामारी ही तो नहीं थी |
आकाश तत्व 
      26 Apr 2020-वैज्ञानिकों का दावा: अपने आप ठीक हुआ ओजोन परत पर बना सबसे बड़ा छेद ! दुनिया इस समय कोविड-19 महामारी से लड़ रही है। वहीं एक अच्छी खबर यह है कि पृथ्वी के बाहरी वातावरण की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार ओजोन परत पर बना सबसे बड़ा छेद स्वत: ही ठीक हो गया है। वैज्ञानिकों ने पुष्टि है कि आर्कटिक के ऊपर बना दस लाख वर्ग किलोमीटर की परिधि वाला छेद बंद हो गया है। इसके बारे में वैज्ञानिकों को अप्रैल महीने की शुरुआत में पता चला था। ऐसे और भी बदलाव वातावरण में आए थे |
वायु तत्व -19 जून 2020 ऑस्ट्रेलिया में  100 साल का सबसे भीषण तूफान आया है |इस प्रकार के हिंसक आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि पिछले कुछ वर्षों से विश्व के अनेकों देशों में घटित होते देखे जाते रहे हैं | विशेषरूप से  भारत में भी ऐसी आपदाएँ अक्सर घटित होते देखी जाती  रही हैं | 
         
समय  प्रकृति  महारोग और उपाय !
        
     कुल मिलाकर प्रकृति और जीवन के स्वस्थ रहने में समय और समय के प्रभाव की बहुत भूमिका होती है | कोरोना महामारी आने के लगभग एक दशक पहले से ऋतुएँ अपनी समय सीमा लाँघने लगी थीं |सर्दी और  गरमी से संबंधित ऋतुओं में काफी अधिक वर्षा होते देखी जा रही थी जबकि वर्षाऋतु  के समय में उतनी अधिक वर्षा नहीं होती थी | सितंबर के महीने में जून जैसी गरमी होने लगती थी | जनवरी फरवरी से ही तापमान बढ़ने लगता था | सन 2020 में भी अप्रैल मई तक वर्षा होते देखी जा रही थी |
      इतिहास में पहली बार अप्रैल 2016 में दिल्ली से लातूर ट्रेन में पानी भरकर भेजा गया था | बिहार आपदा प्रबंधन विभाग ने प्रातः 9 बजे से सायं 6 बजे के बीच चूल्हा जलाने पर रोक लगाई थी | उस वर्ष बिहार राजस्थान उत्तर प्रदेश आदि में आग लगने की बहुत अधिक घटनाएँ घटित हुई थीं | 2 फरवरी 2016 को उत्तराखंड के जंगलों में आग लगनी शुरू हुई थी | ये दिनोंदिन बढ़ती चली जा रही थी | 10 अप्रैल 2016 से इसका स्वरूप और अधिक बिकराल हो गया था | 
      22 अप्रैल 2015 को नेपाल में भीषण तूफ़ान आया था !इसमें नेपाल  और भारत के बहुत लोग मृत्यु को प्राप्त हुए थे | 2 मई 2018 को राजस्थान एवं पूर्वी भारत में हिंसक तूफ़ान आया था | इसके बाद आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित होती रही थीं |ऐसी और भी हिंसक आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित होते देखी जा रही थीं |  
     वायु प्रदूषण बार बार बढ़ते देखा जा रहा था | भूकंप आते बार बार देखे जा रहे थे | ऋतुओं का व्यवहार समय के अनुरूप नहीं रह गया था |ऋतुओं का प्रभाव कभी बहुत अधिक तो कभी बहुत कम दिखाई पड़ने लगा था|
     इसी प्रकार से कहीं बहुत अधिक वर्षा बाढ़ जैसे दृश्य तो कहीं सूखा पड़ते देखा जाता रहा था | बार बार चक्रवात बज्रपात जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जा रही थीं | ऐसी प्राकृतिक उथलपुथल संपूर्ण विश्व में घटित होते देखी जा  रही थी | इस प्रकार के  प्राकृतिक असंतुलन से भविष्य में महामारी जैसी किसी बड़ी घटना के घटित होने के संकेत मिल रहे थे | जिन्हें समय रहते पहचाना नहीं जा सका था | 
       जिस प्रकार से  सब्जी बनाते समय जिस मसाले को जिस अनुपात में डालने से स्वादिष्ट होता है | उससे कम या अधिक डाला जाए तो सब्जी का स्वाद  बिगड़ जाता है | 
      उसीप्रकार से किसी औषधि के निर्माण के लिए जिस घटकद्रव्य को जितनी मात्रा में डाला जाना है | उनमें से कुछ घटक द्रव्य यदि बहुत अधिक डाल दिए जाएँ और कुछ यदि बहुत कम डाले जाएँ तो उस औषधि के गुणों में बदलाव हो जाएगा | कभी कभी तो हानिकारक होते भी देखी जाती है |
    इसी प्रकार से प्राकृतिक वातावरण में जितनी सर्दी गर्मी वर्षा आदि के ऋतु प्रभाव की आवश्यकता होती है | ऋतु प्रभाव उससे कम या अधिक हो रोग कारक और यदि यह बहुत कम या अधिक हो और लंबे समय तक ऐसा ही होता रहे तो महामारी जैसे महारोगों को जन्म देने वाला होता है | 
     ऐसा  असंतुलित ऋतु प्रभाव हो जाने से प्राकृतिक वातावरण स्वास्थ्य के लिए हानिकर हो जाता है|ऐसे वातावरण में साँस लेते रहने से शरीरों  की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त होने लगती है|ऐसे वातावरण के प्रभाव में पैदा होने वाले फल फूल अनाज शाक सब्जियाँ बृक्ष बनस्पतियाँ आदि अपने गुणों से रहित होकर स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले  हो जाते  हैं | इन्हें खाने पीने से बड़े बड़े रोग पैदा होने लगते हैं | यदि यह प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाए तो महामारी जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |
    ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने वाली औषधियाँ जिन बनस्पतियों से बनती हैं| वे औषधीय बनस्पतियाँ भी ऐसे ही  प्रदूषित वातावरण में पली बढ़ी होती हैं | जिसके प्रभाव से उन औषधियों में वे गुण नहीं रह जाते हैं|जिस प्रभाव के लिए वे जानी जाती हैं| इसलिए ऐसे प्राकृतिक रोगों में उन औषधियों के प्रयोग से उन रोगों से मुक्ति दिलाने में कोई मदद नहीं मिल पाती है | 
      ऐसी परिस्थिति में जिस वातावरण में साँस लेने से प्रतिरोधक क्षमता नष्ट होती जा  रही हो,ऐसे वातावरण में पैदा हुए फल फूल अनाज शाक सब्जियाँ आदि खाने से रोग पैदा हो रहे हों,उसी प्रदूषित वातावरण में पली बढ़ी गुण हीन हो चुकी बनस्पतियों से निर्मित प्रभावविहीन औषधियाँ रोगों से मुक्ति दिलाने में सक्षम न हो पा रही हों और रोग दिनों दिन बढ़ते जा रहे हों तो इसी अवस्था को महामारी मान लिया जाना स्वाभाविक ही है | 
      ऐसे कठिन समय में जब अधिकाँश लोग रोगी होते देखे जा रहे हों,औषधियों से लाभ न मिल पा रहा हो बहुत लोगों की मृत्यु होते देखी जा रही हो |ऐसे महारोगों से मनुष्यों की सुरक्षा कैसे की जा सकती है |

                                      महामारी आने से पहले बेचैन होने लगे थे मनुष्यादि जीव जंतु  !
       महामारी प्रारंभ होने के लगभग  12 वर्ष पहले से  मनुष्यादि समस्त प्राणियों में बेचैनी  बढ़ने लगती है |उस बेचैनी को कम करने के लिए मनुष्य मनोरंजन के साधन अपनाने लगते हैं |कोरोना महामारी के 12 वर्ष पहले से लोग अपनी बेचैनी घटने के लिए हास्यव्यंग का सहारा लेने लगे थे ! इसीलिए ऐसी फिल्मों सीरीरियलों आदि के प्रति लोगों का झुकाव बढ़ता जा रहा था | 
     ईंधन के बिना भी अचानक आग लगने की घटनाएँ घटित होनी शुरू हो जाती हैं | सन  2016  में जगह जगह आग लगते देखी जा रही थी | यथाहि -अनग्निर्दीप्यते यत्र राष्ट्रे यस्य निरिंधनः  !
     बिना किसी कारण से वायु प्रदूषण बढ़ना शुरू हो जाता है |यथाहि -
        अनैशानि तमांसि स्युर्बिना पांशु  च !धूमश्चानग्निजो यत्र तत्र विद्यानमहाभयं || 
  वर्षा कहीं बहुत कम तो कहीं बहुत अधिक होने लगती है | कई बार वर्षा ऋतु के बिना भी बहुत बारिश होते देखी जाती है | यथाहि -
      अतिवृष्टिरनावृष्टिर्दुर्भिक्षादि  भयं मतं | अनृतौ तु दिवानंता वृष्टिर्ज्ञेया भयानका || 

   इसी प्रकार से 12 वर्ष पहले से पशुओं की जन्मदर बढ़ जाती है |टिड्डों की जन्मदर काफी अधिक बढ़ जाती है | यथाहि  -
        मूषकांशलभान दृष्टवा प्रभूतं  रुजभयं भवेत् || 

कोरोना महामारी के समय भारत के कई प्रदेशों  में किसानों को आवारा पशुओं के क्रोध का शिकार होना पड़ रहा था | सारी खेती चौपट होती जा रही थी | इन्हीं कुछ वर्षों में पशु अचानक इतने अधिक बढ़ गए थे | पशुओं के स्वभाव में ऐसा बदलाव हुआ था कि वे अपने स्वभाव से अलग आचरण करते देखे जा रहे थे | ये  बुरे समय का प्रभाव था | 
      टिड्डी दल ओमान के रेगिस्‍तानों में भारी बारिश के बाद तैयार होते हैं। हिंद महासागर में भी साइक्‍लोन आने से रेगिस्‍तान में बारिश होने लगी है, इस वजह से भी टिड्डियां पैदा होती हैं। भारत में अप्रैल महीने के बीच टिड्डियों ने राजस्‍थान में एंट्री की थी। तब से वे पंजाब, हरियाणा, मध्‍य प्रदेश और महाराष्‍ट्र तक फैल चुकी हैं।
    2018 में आए साइक्‍लोन की वजह से ओमान के रेगिस्‍तान में टिड्डियों के लिए परफेक्‍ट ब्रीडिंग ग्राउंड बना। इसके बाद, टिड्डी दल यमन की ओर बढ़ा फिर सोमालिया और बाकी ईस्‍ट अफ्रीकी देश पहुँचा। दूसरी तरफ, ईरान, सऊदी अरब और यमन से एक और झुंड निकला। यही दल पाकिस्‍तान और भारत में घुसा है।
   वर्ष 2019 में मानसून पश्चिमी भारत में समय से पहले (जुलाई के पहले सप्ताह से छह सप्ताह पहले) शुरू हुआ, विशेषकर टिड्डियों से प्रभावित क्षेत्रों में। यह सामान्य रूप से सितंबर/अक्टूबर माह के बजाय एक माह आगे नवंबर तक सक्रिय रहा। विस्तारित मानसून के कारण टिड्डी दल के लिये उत्कृष्ट प्रजनन की स्थितियाँ पैदा हुई। इसके साथ ही प्राकृतिक वनस्पति का भी उत्पादन हुआ, जिससे वे लंबे समय तक भोजन के लिये आश्रित रह सकती थीं।रेगिस्तानी टिड्डे आमतौर पर अफ्रीका के निकट, पूर्वी और दक्षिण-पश्चिम एशिया के अर्ध-शुष्क और शुष्क रेगिस्तान तक सीमित होते हैं, जो वार्षिक रूप से 200 मिमी से कम बारिश प्राप्त करते हैं।सामान्य जलवायुवीय परिस्थितियों में, टिड्डियों की संख्या प्राकृतिक मृत्यु दर या प्रवासन के माध्यम से घट जाती है।कुछ मौसम विज्ञानियों का मानना है कि टिड्डियों का इस प्रकार प्रजनन, जो कृषि कार्यों के लिये चिंता का विषय है, हिंद महासागर के गर्म होने का एक अप्रत्यक्ष परिणाम है।
  • पश्चिमी हिंद महासागर में सकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव या अपेक्षाकृत अधिक तापमान पाया गया परिणामस्वरूप भारत समेत पूर्वी अफ्रीका में घनघोर वर्षा हुई।
  • वर्षा के कारण नम हुए अफ्रीकी रेगिस्तानों ने टिड्डियों के प्रजनन को बढ़ावा दिया और वर्षा की अनुकूल हवाओं द्वारा इन्हें भारत की ओर बढ़ने में सहायता मिली।
 
चूहों का आतंक बढ़ा :-
24-10- 2021यूपी के कानपुर में चूहों ने करीब 40 करोड़ की पुल को कुतर दिया है. कानपुर में 4 साल पहले राज्य सेतु निगम की ओर से खपरा मोहाल रेलवे ओवरब्रिज बनाया गया था. चूहों की वजह से पुल का एक हिस्सा भरभरा कर गिर गया है | 
16-12-2021-चूहे मारने पर लाखों खर्च कर चुका है रेलवे, फिर भी कम नहीं हो रहा आतंक !
चूहों से होने वाले नुकसान की खबरें अक्सर सामने आती रहती हैं. रेलवे स्टेशन !कोई भी हो हर जगह मोटे-मोटे चूहे आपको आसानी से दिख जाएंगे. झांसी से लेकर नागपुर तक इन चूहों को मारने के लिए रेलवे द्वारा बड़ी रकम खर्च की जा चुकी है.  लेकिन चूहों के आतंक (Rat's Terror) से Indian Railways को मुक्ति नहीं मिल सकी है
21-2-2022कोरोना महामारी के बाद ब्रिटेन में फैला चूहों का आतंक, टॉयलेट के रास्ते घरों में घुस रहे बिल्ली के आकार के चूहे !कोरोना के कारण चूहों की संख्या में हर साल 25% की वृद्धि ब्रिटेन में चूहों की संख्या में हुए विस्फोट से अफरातफरी मची हुई है। एक अनुमान के अनुसार उनकी संख्या 150 मिलियन तक पहुंच गई है, जो की अब तक की सबसे अधिक है। हेलैंड्स ने कहा कि कोविड महामारी के कारण इसमें हर साल 25% की वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि लोग काफी डरे हुए हैं और ये स्वभाविक है। ब्रिटेन में पहले से कहीं अधिक चूहें हैं और वे लगातार हावी हो रहे हैं। मैंने कुछ बिल्लियों के आकार के चूहे भी देखे हैं। 
सन 2020 में प्रकाशित -यूके में लॉकडाउन में डेढ़ फुट लम्बे गुस्सैल चूहों का आतंक; भूख ऐसी कि एक-दूसरे को खा रहे, इन पर जहर भी बेअसर हो रहा है | ब्रिटेन में चूहे इतने बढ़ गए, जितने कि 200 साल पहले की औद्योगिक क्रांति के दौरान भी नहीं थे |लॉकडाउन में चूहे खाने और रहने के नए ठिकाने ढूंढ़ने में लगे हैं |बताया जाता है कि चूहों से 55 तरह की बीमारियां फैलती है | दुनियाभर में लॉकडाउन के दौरान जानवरों के नए रूप देखने को मिले हैं। लेकिन, ब्रिटेनवासी कोरोना के साथ-साथ बड़े चूहों से बेहद परेशान और खौफ में हैं। 18 इंच तक लम्बे इन चूहों को जाइंट रेट कहा जाता है और लॉकडाउन के दौरान इन्होंने अपने व्यवहार को अधिक आक्रामक बना लिया है | बीते दो महीनों से ये सीवर-अंडरग्राउंड नालियों से निकल कर रहवासी इलाकों में घुस रहे हैं। बंद शहरों से दूर ये उपनगरीय कस्बों की ओर बढ़ रहे हैं। पता चला है कि ये इतने भूखे हैं कि अब एक-दूसरे को खाने लगे हैं। इन पर रेट पॉयजन का भी असर नहीं हो रहा है।
17-7-2020 कोरोना वायरस: स्पेन में एक लाख ऊदबिलाव को मारने का आदेश !
उत्तर-पूर्वी स्पेन के एक फ़ार्म में कई ऊदबिलाव कोरोना वायरस संक्रमित पाए गए हैं जिसके बाद यह फ़ैसला किया गया है| 
 30 जून 2020-चरवाहे को हुआ कोरोना वायरस, बकरियों और भेड़ों को सांस लेने में दिक्कत!
विशेष बात :विश्व के कई देशों प्रदेशों में पक्षियों के मरने की घटनाएँ सुनाई देती रही हैं |  भारत के कई प्रदेशों मेंबड़ी संख्या में  कौवों के मरने की घटनाएँ दिखाई सुनाई देती रहीं | 
  मई 2020 में गोरखपुर बरेली बिहार मध्यप्रदेश आदि में कोरोना काल में बहुत बड़ी संख्या में मरे हुए चमगादड़ पाए गए हैं। एक साथ इतनी बड़ी संख्‍या में चमगादड़ों की मौत से ग्रामीणों में अज्ञात सा डर फैल गया है। 
   लंपी रोग से बड़ी संख्या में गायों को मरते देखा जा रहा है |  
     मार्च 2019 की घटना थी जब समाचार माध्यमों से किसी गौशाला का वीडियो प्रसारित किया गया जिसमें गाय मुर्गा खा रही थी ! गाय मांसाहारी नहीं होती फिर भी यदि ऐसी घटना घटित हुई है तो ये गाय का स्वभाव नहीं प्रत्युत उस बुरे समय का प्रभाव है | जिसके कारण जीवों के स्वभाव व्यवहार आदि में बदलाव आ जाते हैं |  

 मार्च 2019 की घटना थी जब समाचार माध्यमों से किसी गौशाला का वीडियो प्रसारित किया गया जिसमें गाय मुर्गा खा रही थी ! गाय मांसाहारी नहीं होती फिर भी यदि ऐसी घटना घटित हुई है तो ये गाय का स्वभाव नहीं प्रत्युत उस बुरे समय का प्रभाव है | जिसके कारण जीवों के स्वभाव व्यवहार आदि में बदलाव आ जाते हैं | मार्च 2019 की घटना थी जब समाचार माध्यमों से किसी गौशाला का वीडियो प्रसारित किया गया जिसमें गाय मुर्गा खा रही थी ! गाय मांसाहारी नहीं होती फिर भी यदि ऐसी घटना घटित हुई है तो ये गाय का स्वभाव नहीं प्रत्युत उस बुरे समय का प्रभाव है | जिसके कारण जीवों के स्वभाव व्यवहार आदि में बदलाव आ जाते हैं |
    
                                                                           समय विज्ञान 
 महामारी  समय और चिकित्सा 
     चिकित्सक चिकित्सा करते हैं किंतु किसी को स्वस्थ करने की जिम्मेदारी नहीं लेते हैं|उन्हें ये पता होता है कि रोगी का स्वस्थ होना या न होना रोगी के अपने समय के अनुसार ही निश्चित होता है| ऐसे ही किसी रोगी के आपरेशन से पहले उसके परिजनों से लिखवा लिया जाता है| इसका मतलब ये नहीं है कि अयोग्य चिकित्सक ऑपरेशन करेंगे या उन्हें रोगी के स्वस्थ होने में संशय है | वस्तुतः उन्हें ये विश्वास होता है कि इस आपरेशन का परिणाम क्या होगा | ये उस रोगी के समय के आधार पर निश्चित होगा | समय संचार को समझे बिना उस परिमाण का पता लगा पाना संभव नहीं है |  
    किसी चिकित्सालय में बहुत सारे एक जैसे रोगियों की चिकित्सा की जाती है| उस चिकित्सा का परिणाम चिकित्सा के अनुसार न मिलकर उन रोगियों के अपने अपने समय के अनुसार मिलता है| इसी लिए कुछ रोगी स्वस्थ होते हैं कुछ अस्वस्थ रहते हैं कुछ की मृत्यु हो जाती है|जिस रोगी का जब जैसा समय होता है चिकित्सा का उस पर वैसा प्रभाव पड़ता है |  
     किसी प्राकृतिकआपदा से बहुत सारे लोग एक जैसे प्रभावित होते हैं,किंतु उनमें से कुछ लोगों को खरोंच भी नहीं लगती कुछ लोग घायल होते हैं जबकि कुछ लोगों की मृत्यु हो जाती है | उस प्राकृतिकआपदा से एक जैसा प्रभावित होने पर भी परिणाम अलग अलग दिखाई पड़ने का कारण उन सबका अपना अपना समय होता है | 
    चिकित्सालयों का निर्माण तो रोगियों को स्वस्थ करने के लिए होता है,उसमें शवगृहों का निर्माण किए जाने का कारण समय का ही भय है | प्रयत्न तो रोगियों को स्वस्थ करने के लिए किए जाएँगे किंतु यदि परिणाम प्रयत्नों के अनुरूप न मिलकर रोगियों के अपने अपने समय के अनुसार मिलते हैं | जिन लोगों का समय ही मृत्यु का चल रहा होता है | उन पर चिकित्सा का प्रभाव पड़ेगा ही उनका जीवन पूरा होगा ही| किसका समय कैसा चल रहा है इसकी जानकारी न होने के कारण चिकित्सालयों में  शवगृहों का निर्माण किया जाता है | 
   कोरोना जैसी महामारी के आने पर संक्रमित केवल वही लोग होते हैं जिनका अपना समय खराब चल रहा होता है !अन्यथा बाक़ी लोग उन्हीं परिस्थितियों में रहते हुए उन्हीं संक्रमितों के साथ उठते बैठते खाते पीते सोते जागते भी संक्रमित नहीं होते हैं |  

     समय के साथ साथ प्रकृति में बदलाव होते रहते  हैं| समय के संचार में कब कैसे बदलाव हो सकते हैं | इसका पूर्वानुमान गणित के द्वारा सूर्य चंद्र ग्रहणों की तरह सैकड़ों वर्ष पहले लगाया जा सकता है | दूसरी बात समय में कब कैसे बदलाव हो रहे हैं | यह बहुत सूक्ष्मता से देखते  रहना होता है | प्राकृतिक घटनाओं के माध्यम से मिलने वाले संकेतों को समझना होता है| यह  जानने के लिए एक तो गणित का माध्यम है और दूसरा प्राकृतिक वातावरण एवं पशु पक्षियों के बदलते व्यवहार को बहुत बारीकी से देखते रहना होता है | 

      प्राकृतिक परिवर्तनों की स्थिति इतनी बिगड़ती जा रही थी कि ऋतुएँ अपनी मर्यादा छोड़ती जा रही थीं | जनवरी फरवरी में तापमान का अस्वाभाविक रूप से बढ़ गया था | अप्रैल मई तक वर्षा होती रही थी !सितंबर में जून की तरह गर्मी होने लगी थी | प्राकृतिक दृष्टि से देखा जाए तो ये मानवता पर काफी बड़ा प्राकृतिक संकट था | ऋतुओं के असंतुलन से आनाज शाक सब्जियों फूलों फलों के गुणधर्म बदलने लगे थे |जिन  वृक्षों के लिए कहा जाता है कि कितना भी खाद पानी दो किंतु ये अपने समय से पहले फूलते फलते नहीं हैं | उन वृक्षों को बिना ऋतु आए भी फूलते फलते देखा जा रहा था |कुछ फलों का आकार प्रकार रंग रूप स्वाद आदि बदला बदला सा लग रहा था | लीचियों के आकार अपेक्षाकृत छोटे होने लगे थे | 

     कुल मिलाकर कोरोना महामारी प्रारंभ होने के कुछ वर्ष पहले से प्राकृतिक वातावरण बहुत तेजी से बदलने लगा था |सन 2014 के बाद  दिनोंदिन भूकंप की आवृत्तियाँ बढ़ती जा रही थीं |  बार बार भूकंप आते देखे जा रहे थे |हिंसक आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात बाढ़ जैसी हिंसक घटनाएँ बार बार घटित होते देखी जा रही थीं |  हैरान परेशान आवारा पशुओं के आक्रामक व्यवहार से किसान परेशान थे | दुनियाभर में कोरोना काल में जानवरों के नए रूप अधिक आक्रमक देखने को मिल रहे  थे।ऐसा पहले नहीं होता था और न ही महामारी के बाद उस प्रकार की आक्रामकता रहेगी | महामारीजनित प्रभाव से जीव जंतुओं का स्वभाव आहार विहार आदि काफी बदल गया था |टिड्डियों पक्षियों पशुओं तथा चूहों का प्रजनन अधिक होने से इनकी संख्या अचानक बहुत अधिक बढ़ गई थी |  इसी बेचैनी का शिकार होकर  कोरोना काल में अनेकों देश एक दूसरे से युद्ध लड़ते देखे जा रहे थे|कई देशों के अंदर अंतर्कलह से बड़ी संख्या में लोग हिंसा की भेंट चढ़ते जा रहे थे |कुछ देशों के अंदर हिंसक घटनाएँ,दंगे,आतंकी घटनाएँ हिंसक विस्फोट एवं हिंसक आंदोलन आदि होते देखे जा रहे थे | कुछ असहिष्णु लोग छोटी छोटी बातों पर दूसरे की हत्या करते देखे जा रहे थे |भारत की दिल्ली समेत समस्त उत्तर भारत में एवं मणिपुर आदि स्थानों पर हिंसक दंगे ,पड़ोसी म्यांमार में हिंसक दंगे होते देखे जा रहे थे |ऐसे ही कोरोनाकाल में मनुष्यों पशुओं पक्षियों आदि में बेचैनी काफी अधिक बढ़ गई थी | 

    ऐसी प्राकृतिक उथलपुथल का कारण यदि जलवायु परिवर्तन को भी माना जाए तो भी इसे अनुसंधानों की दृष्टि से अत्यंत गंभीरता से लिया जाना चाहिए था | परिस्थितियाँ वर्ष दर वर्ष बिगड़ती चली गईं | दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन होने का उलाहना तो दिया जाता रहा किंतु उसके जो दुष्परिणामों पर भी गंभीर अनुसंधान किए जाने चाहिए थे | 

    कुलमिलाकर ऋतुओं का प्रभाव जब उचित मात्रा में होता है तो प्राकृतिक वातावरण उत्तम बना रहता है | आनाज शाक सब्जी फल फूल आदि शक्तिबर्द्धन करने वाले होते हैं |स्थूल रूप से देखा जाए तो चार महीने सर्दी चार महीने गर्मी और चार महीने वर्षा के होते हैं | उचित मात्रा में सर्दी और उचित मात्रा में गर्मी एवं उचित मात्रा में वर्षात हो तो प्रकृति अपने स्वास्थ्य के अनुकूल वर्ताव करती है | मनुष्य समेत सभी प्राणी स्वस्थ सुखी बने रहते हैं |      ऋतुओं का समय अथवा  प्रभाव यदि घटने बढ़ने लगे तो प्राकृतिक वातावरण में विकार आने लगते हैं | मनुष्य समेत समस्त प्राणियों में रोग एवं बेचैनी बढ़ने लगती है | ऐसी स्थिति में ऋतुएँ जब अपनी मर्यादा छोड़ने लगी थीं | जनवरी फरवरी में तापमान अस्वाभाविक रूप से बढ़ने लगा था |अप्रैल मई तक वर्षा होती रहना !सितंबर में जून की तरह गर्मी होने लगी थी तो रोग या महारोग के रूप में इसके दुष्परिणाम भी सामने आने ही थे | 

  भोजन निर्माण प्रक्रिया में किसी ब्यंजन को बनाते समय सभी द्रव्य उचित मात्रा में डाले जाएँ तभी वह स्वादिष्ट बनता है |नमक मिर्च या कोई घटक द्रव्य कम या अधिक पड़ दिया जाए तो उसका स्वाद तो बदलता ही है गुण धर्म भी बदल जाता है |किसी औषधि का निर्माण करते समय घटकद्रव्य यदि उचित अनुपात में न डाले जाएँ तो निर्मित औषधियाँ लाभ पहुँचाने की जगह हानिकर भी हो सकती हैं |

     इसीप्रकार से ऋतुओं का  प्रभाव जब अवभाविक रूप से घटने बढ़ने बढ़ने लगा तो ये प्रकृति और स्वास्थ्य दोनों पर ही प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला था | इससे एक ओर शरीर तो रोगी हो ही रहे थे दूसरी ओर प्रकृति भी बिकारित हो रही थी | इसका दुष्प्रभाव यह हुआ जिन रोगों से शरीर  रहे थे उन्हीं रोगों का शिकार पेड़ पौधे बनस्पतियाँ अनाज शाक सब्जियाँ आदि हो रहे थे | इसके कारण कुछ महामारी का समय होने के कारण  वातावरण में साँस लेने से लोग रोगी हो रहे थे | कुछ रोगी हो चुके  अनाज शाक सब्जियाँ आदि खाने से रोगी हो रहे थे | कुछ लोग विकारित बनस्पतियों से निर्मित औषधियों का सेवन करने से रोग बढ़ते जा रहे थे | 

     मौसम में आ रहे थे बड़े बदलाव ! दे रहे थे महामारी आने की सूचना |

     2020 की जनवरी इतिहास की सबसे गर्म जनवरी बताई जा रही थी ! कुल मिलाकर सर्दी के सीजन  में सर्दी  बहुत कम हुई एवं गर्मी के सीजन में गर्मी कम हुई !मार्च अप्रैल तक वर्षा होती रही |   यूरोप में जनवरी का तापमान औसत से 3 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया , जबकि  पूर्वोत्तर यूरोप के कई हिस्सों में औसत से 6 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया !जनवरी माह का वैश्विक तापमान अपने चरम पर पहुँच गया था। 

     भारत में लगातार वर्षा होते रहने के कारण अप्रैल 2020  सबसे ठंडा बीत रहा था,जबकि ब्रिटेन में लू चल रही थी !बताया जाता है कि ब्रिटेन में गर्मी ने  पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है.|अप्रैल 2020 में कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका की हालत दिनोंदिन बिगड़ रहे थे | में बारिश-बाढ़ और भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं से चीन का बुरा हाल हुआ जा रहा था  ! सितंबर 2020 में दिल्ली बासियों को मई-जून जैसी तपिश झेलनी पड़ रही थी ।मॉनसून की विदाई देर से हुई थी | जो पहले 1 सितंबर से होनी शुरू हो जाती थी, वो  17 सितंबर के करीब विदा हुआ था | 

    कुल मिलाकर कोरोना काल में एशिया, यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका, चीन और रूस आदि में मौसम का प्रचंड रूप देखा जा रहा था |  दुनिया के कई देशों में मौसम के बदलते मिजाज को देखा गया है. यूरोप से लेकर एशिया और नॉर्थ अमेरिका से लेकर रूस तक कहीं बाढ़ है, कहीं गर्म हवाएँ हैं  तो कहीं पर सूखे की स्थिति है. यूरोप के देश , नॉर्थ अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में कहीं बाढ़, कहीं तूफान, कहीं हीट वेव, कहीं जंगलों में लगी आग तो कहीं सूखे की स्थिति थी | रूस, चीन, अमेरिका और न्‍यूजीलैंड में लोग गर्मी, बाढ़ और जंगलों में लगी आग से परेशान थे |पश्चिमी यूरोप में भारी बारिश हो रही थी कहा जा रहा था कि एक सदी में पहली बार ऐसी बाढ़ आई है|  बेल्जियम, जर्मनी, लक्‍जमबर्ग और नीदरलैंड्स में 14और15जुलाई 2020 को इतनी अधिक बारिश हो गई है जितनी दो माह में होती थी |  नॉर्थ यूरोप में गर्मी से हालात बिगड़ते जा रहे थे | फिनलैंड जहाँ गर्मी कभी नहीं पड़ती थी , वहाँ भी गर्मी पड़ रही थी | देश के कई हिस्‍सों में तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से भी ज्‍यादा हो गया था | रूस में साइबेरिया का तापमान इतना बढ़ गया था कि 216 ये ज्‍यादा जंगलों में आग लगी हुई थी | वहीं पश्चिमी-उत्‍तरी अमेरिका में अत्‍यधिक गर्मी ने हालात खराब कर दिए थे | कैलिफोर्निया, उटा और पश्चिमी कनाडा में सर्वाधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया था |  कैलिफोर्निया की डेथ वैली में पिछले दिनों ट्रेम्‍प्रेचर 54.4 डिग्री सेंटीग्रेट तक पहुँच गया था | इसी तरह से एशिया के कई देशों जैसे कि चीन, भारत और इंडोन‍ेशिया के कुछ हिस्‍सों में बाढ़ की स्थिति थी | इसीप्रकार की और बहुत सारी घटनाएँ ऋतुओं की सीमाएँ लाँघकर घटित होते देखी जा रही थीं | 

           बुरे समय के प्रभाव से आंदोलित हो रहे थे  पंचतत्व!

     भूकंप आँधी तूफान जैसी जिन प्राकृतिक घटनाओं के लिए पंचतत्वों को दोषी  माना जाता है | जल एवं वायु परिवर्तन को दोषी बताया जाता है | वे पंचतत्व भी तो समय के ही आधीन होते हैं | समय के परिवर्तन के साथ साथ उन्हें भी परिवर्तित होना पड़ता है|प्रकृति के संचालन में उन पंचतत्वों की बड़ी भूमिका होती है और पंचतत्वों के  संचालन में समय की बड़ी भूमिका होती है | प्रातः काल जलतत्व प्रबल होता है, मध्यान्ह काल में अग्नि तत्व प्रबल रहता है और अपराह्न काल में वायुतत्व प्रबल रहता है |सूर्यास्त के समय सुषुम्ना प्रवाह में आकाशतत्व का प्राबल्य रहता है| इसी प्रकार से रात्रि में या भिन्न भिन्न ऋतुओं में पंचतत्वों के प्रभाव में समय के अनुशार परिवर्तन होते देखे जाते हैं |जब जैसा समय होता है तब तैसे बदलाव होते देखे जाते हैं | 

      बुरे समय के प्रभाव से जब अचानक पंचतत्वों में कुछ ऐसे बदलाव होने लगते हैं |जो लंबे समय से चले आ रहे प्रकृति क्रम से अलग हटकर घटित होते हैं |पंचतत्व उसप्रकार के परिवर्तन को सहने के अभ्यासी नहीं रहे होते हैं |जिन परिवर्तनों को  उन्हें अचानक सहने के लिए बाध्य होना पड़ता है | ऐसे समय में पंचतत्व स्वयं आंदोलित होने लगते हैं | जिनकी बेचैनी उनसे संबंधित प्राकृतिक घटनाओं के माध्यम से देखी एवं अनुभव की जा सकती है |             महामारी के समय केवल वायु ही प्रदूषित नहीं होती है उसके साथ साथ पृथ्वी जल अग्नि आकाश आदि सभी विकारों से युक्त असंतुलित  होने लगते हैं |सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं के समय प्रभाव आदि में ऐसे बदलाव होने लगते हैं ,जो हमेंशा होते नहीं देखे जाते हैं| शिशिर(सर्दी)ऋतु में सर्दी का बहुत अधिक या बहुत कम होना या सर्दी की अवधि का घट - बढ़ जाना | ऐसा ही ग्रीष्मऋतु में  गर्मी का बहुत अधिक या बहुत कम होना या ग्रीष्मऋतु की अवधि का घट - बढ़ जाना ! ऐसा ही असंतुलन वर्षाऋतु में देखा जाता है !भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं के  बार बार घटित होने जैसे लक्षण जितने कम या अधिक होते हैं उतने ही बड़े रोग या महारोग के पैदा होने का संकेत दे रहे होते हैं | ऐसी घटनाओं के आगे या पीछे घटित होने वाली छोटी बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ भी उन संकेतों के बारे में ही कुछ सूचित कर रही होती हैं | ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाएँ जिस समय घटित होती हैं उस समय का  भी महत्त्व होता है |कोरोना महामारी के समय प्राकृतिक वातावरण में ऐसा असंतुलन होते बार बार देखा गया था |  

  पृथ्वी तत्व -

     कोरोना महामारी के समय पृथ्वी तत्व काफी अधिक आंदोलित था | जो भूकंप पहले कभी कभी आते देखे सुने जाते थे | सन 2014  के बाद वही भूकंप बार बार घटित होते देखे जा रहे थे |इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि  कोरोनाकाल के एक वर्ष में वैश्विक स्तर पर 38,816 बार भूकंप आ चुके थे | डेढ़ वर्ष में केवल भारत में ही 1000 से अधिक भूकंप आए थे | मार्च -अप्रैल  2020  के मात्र डेढ़ महीने में दिल्ली-एनसीआर में  10 बार भूकंप आए थे |   23 नवंबर 2020 को पूरी दुनिया में कुल 95 स्थानों पर भूकंप आए थे | एक सप्ताह में 700 जगहों पर भूकंप आये। एक महीने में 3105 भूकंप पूरी दुनिया में आये। भूकंपों की इतनी अधिकता पहले तो नहीं देखी जा रही थी | इसी समय ऐसा क्यों हुआ ?         

   17\18जुलाई 2020 को अनेकों स्थानों पर काफी अधिक संख्या में भूकंप आए हैं |इनके बाद 19 जुलाई 2020 से भारत में कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड शुरू हो गया था !

    क्या इन  भूकंपों से महामारी का भी कोई संबंध होता है | यदि ऐसा नहीं है तो इसी समय इतने अधिक भूकंपों के आने का कारण क्या  है |इस संबंध को खोजना अनुसंधानों की जिम्मेदारी है |

   2018 के अप्रैल और मई में पूर्वोत्तर भारत में हिंसक  आँधी तूफान  आए थे | ऐसी आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं | 2 मई 2018 की रात्रि में आए तूफ़ान से काफी जन धन हानि हुई थी | इसी समय आँधीतूफानों के कारण  ऐसी ही कई और हिंसक घटनाएँ घटित हुई थीं  | ऐसी  वायु तत्व संबंधी असंतुलित घटनाएँ क्या भावी महामारी की सूचना दे रही थीं | 

ऋतुध्वंस का ही मतलब है  जलवायुपरिवर्तन !

      जल और वायु भी तो पंचतत्वों में ही सम्मिलित हैं| परिवर्तन होगा तो पाँचोंतत्वों में एक साथ होगा !किसी एक तत्व में परिवर्तन शुरू होते ही दूसरे तत्व भी उससे प्रभावित होने लगते हैं|किसी गाड़ी के चार पहियों में से कोई एक पहिया भी यदि खाँचे में चला जाए तो शेष तीनों पहियों की भी गति बाधित हो जाती है |ऐसी स्थिति में यह कैसे संभव है कि जलवायु परिवर्तन हो किंतु बाक़ी तीन तत्वों में कोई परिवर्तन ही न हो |  तापमान बढ़ने के बाद सर्दी को कम करना नहीं पड़ता है अपितु सर्दी स्वतः कम हो जाती है|
      हमारे कहने का अभिप्राय जलवायुपरिवर्तन का मतलब केवल जल और वायु तत्व में ही परिवर्तन न होकर प्रत्युत पाँचों तत्वों में होने वाला परिवर्तन है | अचानक तापमान बढ़ने लगे या सर्दी अधिक बढ़ने लगे, बार बार  तूफ़ान आने लगें ! हिंसक महामारी आ जाए !लीक से हटकर घटित होने वाली  ऐसी सभी घटनाओं के घटित होने के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार माना जाता है ,किंतु ऐसा कैसे हो सकता है | तापमान बढ़ने का कारण जल और वायु में होने वाले परिवर्तन न होकर प्रत्युत अग्नि तत्व में होने वाला परिवर्तन है | भूकंप जैसी घटनाएँ पृथ्वी अग्नि एवं वायुतत्व  के संयोग से  घटित होती हैं |तूफ़ान जैसी घटनाएँ अग्नि एवं वायु के संयोग से घटित होती हैं | इसलिए सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के लिए केवल जलवायुपरिवर्तन को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया  जा सकता है |  
    चिकित्साशास्त्र में भी प्रकृति एवं जीवन को प्रभावित करने वाले जिन वातपित्तकफ के असंतुलन चर्चा की जाती है वह भी जलवायुपरिवर्तन ही तो है | उसमें अग्नि तत्व को भी सम्मिलित किया गया है जिसके बिना  केवल जलवायुपरिवर्तन प्रकृति एवं जीवन को प्रभावित करने में सक्षम नहीं है |वातपित्तकफ के असंतुलन से संपूर्ण प्रकृति एवं जीवन पर बिपरीत प्रभाव पड़ता है | त्रितत्वों के वैषम्य से संपूर्ण प्रकृति प्रभावित होती है | खाने पीने की चीजें प्रभावित होती हैं |उन्हें खाने पीने से स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है |ऐसी हवा में साँस लेने से  रोग पैदा होते हैं 
   वर्षा आदि होने न होने तथा कम या अधिक होने का कारण केवल जलवायुपरिवर्तन ही नहीं अपितु पंचतत्वों का वैषम्य होता है |ऐसी बिषमता का कारण समय में होने वाले परिवर्तन होते हैं | समय के संचार में होने वाले परिवर्तनों को  समझे बिना पंचतत्वों के वैषम्य को समझना या इनके विषय में अनुमान  पूर्वानुमान आदि लगाना कठिन होता है |इसके बिना भूकंप आँधी तूफ़ान आदि किसी भी प्राकृतिक घटना को समझना केवल  कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी है | 
     विभिन्न प्राकृतिकघटनाओं के लिए केवल जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा देने मात्र से अनुसंधानों का उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता है |लक्ष्य तो प्राकृतिक आपदाओं के कारणों एवं उनके समाधानों को खोजना होता है | ऐसी घटनाएँ यदि जलवायुपरिवर्तन के कारण घटित होती हैं,तो जलवायुपरिवर्तन होने का कारण खोजना होगा | उसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाना होता है |तभी ऐसे अनुसंधानों से लक्ष्य साधन हो सकता है | 
      पंचतत्वों के संतुलन से ही जीवधारियों के रहने लायक वातावरण का निर्माण हो पाता है | समस्त जीवधारियों को इसीप्रकार के वातावरण में रहने की आदत सी पड़ी हुई है | इस वातावरण  में जितना परिवर्तन होता है उतना ही जीवन के लिए असहनीय होता जाता है|  जिसे  सहने का जीवन को अभ्यास ही नहीं है |इसीलिए रोग महारोग  आदि पैदा होने लगते हैं | ऐसे समय मनुष्यों से लेकर पशु पक्षियों समेत समस्त जीवधारियों में बेचैनी  घबड़ाहट आदि बढ़ने लगती है |
      ऐसी  बेचैनी  घबड़ाहट आदि बढ़ने  के लिए वो अपने खान पान रहन सहन आहार बिहार आदि को जिम्मेदार मान लेते हैं| कुछ लोग अपने सुख साधनों का सहारा लेकर मन की ऐसी बेचैनी घटाने का प्रयत्न करते हैं |कुछ लोग इसके लिए मनोरंजक साधनों का सहारा लेते हैं | इसीलिए हास्यकविसम्मेलनों ने कोरोना महामारी आने से पहले काफी जोर पकड़ा था | ऐसी बातों से मनुष्यों का ध्यान दूसरी ओर भटक जाता है !जिससे उन्हें प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव नहीं हो पाता है | इसी बेचैनी को न सह पाने के कारण अपराध उन्माद हिंसात्मकप्रवृत्ति आंदोलन भावना आदि दिनों दिन बढ़ते जा रहे होते हैं |
     इसलिए जलवायु परिवर्तन का मतलब केवल उतना ही नहीं होता है,प्रत्युत जलवायु परिवर्तन  का मतलब प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के पैदा होने का पूर्व संकेत होता है |

  

पंचतत्वों के  असंतुलित होते ही पैदा होने लगते हैं रोग और महारोग  !

महामारी आने के कारण बेचैन थे पशु पक्षी !

गाय ने मुर्गा खाया : 

टिड्डियों का आतंक  - 

    28-5-2020- टिड्डियों  दिसंबर 2019 से आरंभ हुआ है। टिड्डियों ने सबसे पहले गुजरात तबाही मचाई। अनुमान के तौर पर सिर्फ दो जिलों के 25 हजार हेक्टेयर की फसल तबाह होने का आंकड़ा राज्य सरकार ने पेश किया है।भारत में टिड्डों से प्रभावित राज्य,राजस्थान,पंजाब,मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश इन टिड्डियों से प्रभावित है।

मौसम और टिड्डियों के बीच संबंध !

26 -7- 2016 को प्रकाशित चूहों से संक्रमण और बीमारियां तेजी से फैलती हैं इसलिए प्रधानमंत्री जॉन की ने 2050 तक चूहों और अन्‍य उपद्रवी जानवरों से छुटकारा पाने की महत्‍वकांक्षी योजना की घोषणा की है | 

8-6-2020-कोरोना वायरस: क्या लॉकडाउन ने चूहों को भी गुस्सैल बना दिया है?

28-5-2021चूहों  जन्मदर बढ़ी - 29 -5 -2021 ऑस्ट्रेलिया में चूहों से हाहाकार, खेतों को किया बर्बाद अब घर में लगा रहे आग, भारत को 5 हजार लीटर जहर का ऑर्डर !आस्ट्रेलिया चूहों से बहुत ज्यादा परेशान है. फैक्ट्री और खेतों से निकलने वाले इन चूहों की संख्या लाखों में है, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया के लोगों को न सिर्फ परेशान कर दिया है बल्कि वहां लोग चूहों से डरे हुए हैं.| ऑस्ट्रेलिया के कृषि मंत्री एडम मार्शल ने कहा है कि 'अगर हम वसंत तक चूहों की संख्या को कम नहीं कर पाते हैं तो ग्रामीण और क्षेत्रीय साउथ वेल्स में आर्थिक और सामाजिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।' । लाखों की तादाद में चूहों ने किसानों और फैक्ट्री मालिकों को परेशान कर रखा है। लाखों चूहें ऑस्ट्रेलिया के अलग अलग फैक्ट्री और खेतों से निकल रहे हैं  | 

 20-1-2022-हांगकांग में चूहे भी हो रहे कोरोना पॉजिटिव, 2000 से ज्यादा चूहों को मारने का आदेश !22 दिसंबर से पालतू जानवरों की दुकानों से चूहे खरीदने वालों को भी अनिवार्य रूप से कोविड-19 की जांच करानी होगी

भारत में भी मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और राजस्थान समेत कई राज्यों से चूहों के आतंक और करोड़ों के माल की नुकसान की खबरें मिली हैं, हालांकि हमारे यहाँ के चूहे ब्रिटेन के चूहे जितने बड़े नहीं हैं।

ब्रिटेन के चूहों की मुंह से लेकर पूंछ तक की लंबाई करीब 18 से 20 इंच तक देखी गई है। ब्रिटेन ही नहीं, दुनिया के अन्य देश भी लॉकडाउन के दौरान चूहों के आतंक का सामना कर रहे हैं। अमेरिका में, सेंटरफॉर डिसीज कंट्रोल ने चूहों के आक्रामक हो रहे व्यवहार के बारे में लोगों को सचेत किया है।ब्रिटिश पेस्ट कंट्रोल एसोसिएशन के एक सर्वे से पता चला है कि ब्रिटेन में बड़े चूहों के उपद्रव की घटनाओं में 50 फीसदी का इजाफा हुआ है। द सन अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में चूहे पकड़ने वालों ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा है कि उनका काम बढ़ गया है। एसोसिएशन की टेक्निकल ऑफिसर नताली बुंगे के मुताबिक: "हमारे पास अब तक ये रिपोर्ट आती थी कि चूहे खाली इमारतों में ठिकाने बना रहे हैं लेकिन,अब ऐसा लगता है कि उनके रहवास का पैटर्न भी बदल रहा है | मैनचेस्टर के रैट कैचर मार्टिन किर्कब्राइड ने टेलीग्राफ को बताया कि, ब्रिटेन में चूहे इतने बढ़ गए हैं जितने कि 200 साल पहले की औद्योगिक क्रांति के दौरान भी नहीं थे। वैज्ञानिकों ने लॉकडाउन के शुरू होने के बाद से ही यहां के उपनगरों में बड़े चूहों की आबादी में बढ़ोतरी देखी है। कुतरने वाले जीवों पर पीएचडी करने वाले अर्बन रोडेन्टोलॉजिस्ट बॉबी कोरिगन कहते हैं कि:हमने मानव जाति के इतिहास में देखा है, जिसमें लोग जमीन पर कब्जा करने की कोशिश करते हैं। वे पूरी सेना के साथ धावा बोलते हैं और जमीन हथियाने के लिए आखिरी सांस तक लड़ते हैं। और, चूहे भी अब ऐसा ही कर रहे हैं।दिलचस्प बात यह है कि चीनी कैलेंडर के हिसाब से कोरोनावायरस की भेंट चढ़ा साल 2020 चूहों का साल माना गया है।

पशुओं पक्षियों में कोरोना 

 20 Apr 2020-अमेरिका में एक बाघ में कोरोना पाया गया. वहीं कई जगहों में कुत्तों में भी कोरोना के निशान मिले. अब फ्रांस की राजधानी पेरिस में पानी में कोविड पाया गया है |

05 May 2020-राष्ट्रपति ने कहा-टेस्ट किट सही नहींकोरोना वायरस के ये सैंपल बकरी  भेड़ से लिए गए थे। सैंपल को जांच के लिए तंजानिया की लैब में भेजा गया, जहां बकरी आदि कोरोना पॉजिटिव निकले।

28Jul 2020,ब्रिटेन में बिल्ली कोरोना पॉजिटिव, पालतू जानवर में कोविड-19 के मामले मिले | 

13Aug2020-चीन से आई चौंकाने वाली खबर, चिकन में भी कोरोना वायरस!चीन ने फ्रोजन चिकनके पंख में भी कोविड-19 के होने की पुष्टि की है.| 

समय की शक्ति और विज्ञान

     हवा जिस दिशा की ओर चल रही हो हवा में उड़ने वाली किसी हल्की वस्तु को उसी दिशा की ओर फेंका जाए तो वो अधिक दूर जाकर गिरती है |उसी प्रकार से जब जैसा समय चल रहा हो उस समय उसीप्रकार का काम किया जाए तो उस कार्य में आशा से अधिक सफलता मिलती है | 
      कुलमिलाकर समय ही सबकुछ है | प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली अधिकाँश घटनाओं के घटित होने का कारण समय है | जिसप्रकार से हवा का प्रवाह जिस दिशा की ओर होता है | किसी उड़ने वाली वस्तु को यदि उसी दिशा में फेंका जाए तो वो वह अनुमान  से अधिक दूर तक जाकर  गिरेगी | यदि हवा के बिपरीत दिशा में फेंका जाए तो पास में ही गिर जाएगी| उस उड़नशील वस्तु को यदि हवा की बिपरीत दिशा में फेंका जाए और हवा का वेग अधिक हो तो फेंकी गई वस्तु फेंकने से बिपरीत दिशा में ही उड़ जाएगी |  
   ऐसे ही समय के स्वभाव से बिपरीत प्रकृति का कोई कार्य किया जाए तो उसके सफल होने की संभावना बहुत कम होती है | जिसप्रकार से उड़ने वाली वस्तु को यदि हवा की बिपरीत दिशा में फ़ेंक दिया जाए और  हवा का वेग यदि बहुत अधिक हुआ तो वह फेंकी हुई वस्तु उस दिशा की ओर न जाकर उससे बिपरीत दिशा में चली जाती है | जिधर की ओर हवा चल रही होती है |  
     इसीप्रकार से मनुष्यों के द्वारा किए हुए कार्य भी यदि अच्छे  समय में प्रारंभ किए जाते हैं, तो जितनी आशा से किए जाते हैं उससे अधिक सफलता मिलती है !यदि समय मध्यम हुआ तो कुछ कम सफलता मिलती है, और यदि समय बहुत अधिक बिपरीत हुआ तो अपने प्रयासों से सफलता तो मिलती ही नहीं है ,तथा कई बार तो आशा के बिपरीत परिणाम आते देखे जाते हैं | इसलिए  किसी कार्य को करने के लिए प्रयत्न अच्छे हों और समय भी अच्छा हो तभी सफलता मिलती है |
      ऐसी स्थिति में ही किसी  रोगी को दी गई अच्छी से अच्छी औषधियों के भी दुष्प्रभाव होते देखे जाते हैं | रोगियों को स्वस्थ करने के लिए किए गए ऑपरेशन के बिपरीत परिणाम होते देखे जाते हैं | इसका कारण दवा तो अच्छी है किंतु समय अच्छा नहीं रहा | इसलिए औषधि अच्छी और समय भी अच्छा हो तभी रोगी स्वस्थ होता है |किसी के स्वस्थ होने में समय की बहुत बड़ी भूमिका होती है|सुदूर जंगलों में रहने वाले पशु पक्षी मनुष्य आदि आपस में लड़भिड़कर या कोई चोट चभेट लगने से कई बार घायल हो जाते हैं या किसी गंभीर रोग से पीड़ित हो जाते हैं |चिकित्सा  का लाभ न मिलने पर भी केवल समय के सहयोग से ही उन्हें स्वस्थ होते देखा जाता है | दूसरी ओर  महानगरों में रहने वाले अत्यंत साधन संपन्न लोगों के शरीरों में ऐसी ही स्वास्थ्यसंबंधी समस्याएँ पैदा होने पर वे अत्यंत उन्नत चिकित्सालयों में  रहकर उच्च कोटि की चिकित्सा को लाभ ले रहे होते हैं | इसके बाद भी जिन लोगों का समय बिपरीत होता है | उन पर चिकित्सा का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है|  जिससे वे स्वस्थ नहीं हो पाते हैं | 
     कोरोना महामारी के समय  बहुत जगह सामूहिक रूप से बहुत लोग एक साथ रहते सोते जागते खाते पीते थे|उनमें से कुछ लोग महामारी से संक्रमित हो जाते थे| उन संक्रमितों के साथ रहने सोने  जागने खाने  पीने वाले बहुत लोग इसलिए स्वस्थ बने रहे क्योंकि उनका समय अच्छा चल रहा होगा | कोरोना काल में  दिल्ली मुंबई सूरत से बड़ी संख्या में श्रमिकों का पलायन हुआ | उनके द्वारा कोविड  नियमों का पालन बिल्कुल नहीं किया जा सका | जहाँ जिसने जिसप्रकार के हाथों से जो कुछ दिया वही उन्होंने खा लिया ! उनके विषय में बार बार कहा जाता रहा कि ये लोग जहाँ जाएँगे वहाँ बहुत लोगों को संक्रमित करेंगे | लेकिन ऐसा कुछ तो नहीं हुआ | 
    ऐसे ही कोरोना काल में बिहार बंगाल जैसे प्रदेशों में बड़ी बड़ी चुनावी रैलियाँ  होती रहीं |  जिनमें भारी भीड़ें उमड़ती रहीं | उनके विषय में भी ऐसा ही अनुमान लगाया जाता रहा कि इन प्रदेशों में बहुत बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होंगे किंतु ऐसा कुछ होते देखा नहीं गया| कोरोना काल में ही दिल्ली में बड़ी संख्या में किसान आंदोलन पर बैठे रहे| जिसके विषय में अनुमान लगाए गए उनमें बड़ी संख्या में लोग सम्मिलित हुए जिनके द्वारा किसी भी रूप में कोविड  नियमों का पालन नहीं किया जाता रहा | उसके बिषय में कहा जाता था कि बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होंगे ,किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ|ऐसे ही हरिद्वार में कुंभ मेले में उमड़ी भीड़ देखकर कहा गया कि बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होंगे किंतु  ऐसा कुछ नहीं हुआ |
    कुछसाधन संपन्न लोग कोरोना काल प्रारंभ होते ही संपूर्ण रूप से कोविड नियमों का पालन करने लगे थे | ऐसे एकांतव्रती लोग बिना किसी के संपर्क में आए हुए भी संक्रमित होते देखे जाते  रहे थे |
      ऐसे ही वायप्रदूषण बढ़ने के विषय में कहा गया कि वायु प्रदूषण बढ़ने से कोरोनाजनित  संक्रमण  बढ़ेगा ,किंतु भारत में सबसे भयंकर दूसरी लहर जब आई थी|उस समय वातावरण पूरी तरह संक्रमण मुक्त था| इसीलिए अमृतशर और बिहार  से  हिमालय दिखाई पड़ने लगा था| इसके बाद भी कोरोना संक्रमण दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था | ऐसे ही सन 2020 के अक्टूबर नवंबर महीनों में  जब वायुप्रदूषण  बहुत अधिक बढ़ा हुआ था तब कोरोना संक्रमण दिनोंदिन समाप्त होता जा रहा था | 
    इसीप्रकार से कहा गया कि  तापमान कम होने से कोरोना संक्रमण बढ़ेगा और तापमान अधिक होने से संक्रमण कम होगा किंतु ऐसा नहीं हुआ | कम तापमान के समय (सर्दी ) में केवल तीसरी लहर ही आई थी, बाक़ी तीनों लहरें तब आईं जब तापमान बढ़ा हुआ था |    
     ऐसे ही उपायों के नाम पर पहले कहा गया कि प्लाज्मा थैरेपी से संक्रमितों को स्वस्थ करने में मदद मिलेगी |इसके बाद संक्रमितों पर प्रयोग करके देखा गया कि प्लाज्मा थैरेपी से रोगियों में तेजी से सुधार हुआ है कुछ समय बाद में प्लाज्मा थैरेपी को चिकित्सा प्रक्रिया से अलग कर दिया गया | 
    ऐसे ही पहले कहा गया कि रेमडीसीवीर इंजेक्शन से संक्रमितों को स्वस्थ करने में मदद मिलती है |बड़ी संख्या में लोग ऐसे इंजेक्शन पाने के लिए प्रयत्न करने लगे | कुछ समय बाद रेमडीसीवीर इंजेक्शन के उस प्रकार के प्रभाव से किनारा  कर लिया गया | 
                                       

समय को समझना ही है सबसे बड़ा विज्ञान |

    कोरोनामहामारी आने के कुछ वर्ष पहले से विभिन्नप्रकार की प्राकृतिकआपदाओं एवं मनुष्यकृत हिंसक घटनाओं कुछ देशों के आपसी युद्धों आंदोलनों मार्ग दुर्घटनाओं आतंकीघटनाओं से बड़ी संख्या में लोग मृत्यु को प्राप्त होते देखे जा रहे थे |इनमें बहुत लोगों की मृत्यु होते देखी जा रही थी | उन मौतों के लिए उन उन युद्धों या दुर्घटनाओं को जिम्मेदार मान लिया जाता रहा है | मौतों का क्रम बढ़ते बढ़ते बहुत अधिक बढ़ गया | इसके बाद धीरे धीरे मौतों की संख्या घटने लगी | धीरे धीरे विराम लगता जा रहा था | 
    इन मौतों में एक विशेष देखी गई कि जब तक प्राकृतिकआपदाओं ,मनुष्यकृत हिंसक घटनाओं, कुछ देशों के आपसी युद्धों, आतंरिक हिंसक आंदोलनों, मार्ग दुर्घटनाओं, आतंकीघटनाओं में लोगों की मृत्यु होती रही,महारोग ( महामारी ) फैलने पर  लोगों की मृत्यु होने लगी तब तक लोगों की मृत्यु होने के लिए उन उन घटनाओं को जिम्मेदार मान लिया जाता रहा है | इसके बाद एक समय ऐसा भी आया जब लोग बिना रोगी हुए बिना किसी दुर्घटना से पीड़ित हुए ही उठते बैठते हँसते खेलते सोते जागते नाचते गाते अभिनय करते मृत्यु को प्राप्त होते देखे जा रहे थे | छोटे छोटे बच्चे बूढ़े जवान आदि बिना किसी कारण के मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे | 
     समय की समझ के अभाव में इसी समय इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौतें होने के वास्तविक कारण को खोजा नहीं जा सका | मौतों के साथ घटनाओं  को चिपकाया जाता रहा |लोग  जबतक संक्रमित होकर मृत्यु को प्राप्त होते रहे तब तक तो उन्हें महामारी से होने वाली मौतें माना जाता रहा किंतु जब बिना किसी दुर्घटना या रोग के भी जब लोगों की मौतें होती जा रही थीं तब ये भ्रम भी टूट गया कि मौतों का कारण महामारी ही है |

 मृत्यु का समय 
       प्राचीनकाल से ही मृत्यु के विषय में सनातन धर्मियों का विश्वास  रहा है कि प्रत्येक जीव की मृत्यु पूर्व निर्धारित समय पर ही होती है | प्रत्येक जीव के मृत्यु का समय उसके जन्म के समय ही निश्चित हो जाता है |वह समय आने से पहले उसकी रक्षा समय स्वयं करता है |इसीलिए बड़ी बड़ी दुर्घटनाएँ घटित होती हैं |जिनमें बहुत लोगों की मृत्यु हो जाती है,किंतु उन्हीं के साथ उसीप्रकार की पीड़ा सह रहे बहुत लोगों को खरोंच भी नहीं आती है,क्योंकि उनकी आयु का समय पूरा नहीं हुआ होता है |   
      प्राचीन विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो मनुष्यों की मृत्यु का समय स्थान और कारण उनके जन्म के समय ही निश्चित हो जाता है |मृत्यु का समय आने पर प्रत्येक व्यक्ति उस स्थान पर पहुँच जाता है जहाँ उसकी मृत्यु होनी होती है |उस समय वो कारण भी सम्मुख उपस्थित होता है|जिसके कारण मृत्यु होनी होती है|इस बात पर विश्वास करने वाले लोगों का विश्वास यह भी है कि प्रत्येक व्यक्ति जीवन भर जो जो  कुछ करता है | वो सब कुछ उसके द्वारा अपनी मृत्यु की तैयारी की जा रही होती है | 
      बचपन से ही मनुष्य उसी प्रकार की शिक्षा ग्रहण करता है,उसी प्रकार का कार्य चुनता है,उसी प्रकार के साथी संबंधी चुनता है |जिनके  सहयोग से मृत्यु का समय आने पर वह उस स्थान पर पहुँच सके जहाँ मृत्यु होनी निश्चित होती है |
    भारत की महान पुत्री कल्पनाचावला जी की मृत्यु 1फरवरी 2003 को टेक्सास अमेरिका के ऊपर अंतरिक्ष यान कोलंबिया के नष्ट हो जाने से हुई थी। पृथ्वी के वायुमंडल में वापस प्रवेश करते समय अंतरिक्ष यान में विस्फोट हो गया और उसमें सवार था | 
     इस दुर्घटना को भारत के प्राचीन विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो उन्होंने उस प्रकार की शिक्षा ली,उस प्रकार का कार्य चुना,उस प्रकार के अंतरिक्ष अभियान में सम्मिलित होकर उस समय उतनी उँचाई पर पहुँच गईं जहाँ मृत्यु होनी निश्चित रही होगी | 
     इसमें विशेष बात यह है कि उसप्रकार की शैक्षणिक योग्यता न होती तो ऐसे अंतरिक्ष अभियान में सम्मिलित होने का अवसर ही न मिलता |उस प्रकार की  शिक्षा बचपन में ही शुरू हो गई थी | यदि ये सब तैयारी पहले से करके न रखी गई होती तो उस समय अपने व्यक्तिगत प्रयास से उस अंतरिक्ष अभियान में सम्मिलित होकर उतनी उँचाई पर पहुँचना संभव न था |
     ऐसे अनेकों उदाहरण मिलते हैं जिनमें जो व्यक्ति जहाँ  व्यक्तिगत साधनों से पहुँच  नहीं सकता था|समय के द्वारा उसे वहाँ पहुँचाया जाता है |जो खा नहीं सकता था उसे वो खिलाया जाता है |जिससे मिल नहीं सकता था उससे मिलाया जाता था | ऐसी बहुत सारी घटनाएँ घटित हुई हैं| जब मृत्यु का समय आने पर उस प्रकार की परिस्थितियों का निर्माण स्वयं समय ने ही किया है | जिनमें मृत्यु होना निश्चित हुआ था | मृत्यु के समय जिस प्रकार का रोग होना था वो रोग होता है|जिस प्रकार की दुर्घटना में मृत्यु होनी निश्चित होती है मृत्यु के समय उस प्रकार की दुर्घटना घटित  होती है |ऐसे ही जिनकी मृत्यु के समय महामारी होनी थी|उनकी मृत्यु के समय महामारी की रचना रची जाती है | 
     इस दृष्टि से देखा जाए तो इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु जिस समय होनी थी वही समय महामारी आने का था तो महामारी अपने समय से आयी और लोगों की मृत्यु अपने अपने समय से हुई | जिस समय के प्रभाव से दोनों घटनाएँ अपने अपने समय से घटित हुईं | समय दिखाई नहीं पड़ता है,वे घटनाएँ  एक दूसरे के साथ घटित होते दिखाई देती रहीं | इसलिए उन दोनों को एक साथ जोड़कर उन लोगों की मृत्यु होने का कारण कोरोना महामारी को बताया जाने लगा | 
     यह बिल्कुल उसीप्रकार की घटना है जैसे  प्रातः काल होने पर सूर्योदय होता है और प्रातःकाल होने पर ही कमल खिलता है | दोनों घटनाएँ एक साथ घटित होते दिखाई दे रही होती हैं |समय दिखाई नहीं देता है | इसलिए उन दोनों घटनाओं को एक दूसरे के साथ जोड़कर देखा जाने लगा कि सूर्योदय होने पर कमल खिलता है |                               
        
समयप्राण और महामारी
     जीवन और मृत्यु ये दोनों घटनाएँ महत्वपूर्ण हैं | शरीर और प्राणों का संयोग ही जीवन  है तथा  शरीर को  प्राण छोड़ देते हैं तो मृत्यु  हो जाती है|वस्तुतः  शरीर और प्राणों के मिलने बिछुड़ने की प्रक्रिया ही जीवन और मृत्यु है | इन दोनों में शरीर तो दिखाई पड़ता है किंतु प्राण दिखाई नहीं पड़ते हैं|किसी यंत्र से नहीं दिखाई पड़ते हैं | प्राणों  के विषय में केवल  अनुभव किया सकता है|
     इसीप्रकार से समय को देखा नहीं जा सकता है|समय के विषय में गणित के आधार पर गणना करके जिस प्रकार से अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिए जाते हैं| उसीप्रकार से प्राणों के विषय में गणना करके जन्म मृत्यु सुख दुःख जैसी घटनाओं के विषय में  पूर्वानुमान लगाया सकता है | 
     प्राण और समय दोनों निराकार हैं| इसलिए निराकार प्राणों को समयकृत सुरक्षा से ही सुरक्षित किया जा सकता  है| समय जब सुरक्षा करता है तो मनुष्य सुरक्षित हो जाता है| संसार में बहुत सारे लोग ऐसी दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं| जिनमे बहुत सारे लोग घायल होते हैं| उनमें से कुछ तो मृत्यु को भी प्राप्त हो चुके होते हैं | उसे देखकर लगता है कि बचना संभव नहीं होगा किंतु समय से सुरक्षित व्यक्ति का बचाव ऐसा हो जाता है कि उसे खरोंच भी नहीं लगती है | 
    मनुष्यकृत सुरक्षा बहुत शासकों प्रशासकों को प्राप्त होती है|अत्यंत सतर्क सुरक्षा घेरा होने पर भी कई शासकों पर हमला हो जाता है | जिनमें उनकी मृत्यु भी हो जाती है|इसलिए मनुष्यकृत सुरक्षा  रहकर लोग उतने सुरक्षित नहीं होते हैं| जितनेसमयकृत सुरक्षा से सुरक्षित होते हैं|कभी दुर्घटनाओं में जो मनुष्य प्राणों को देखने और अनुभव मनुष्यकृत सुरक्षा तो दिखाई पड़ती है, किंतु समयकृत सुरक्षा दिखाई भले न पड़े किंतु ये सबसे मजबूत होती है |इसी सुरक्षा के बल पर सभी प्राणियों की सुरक्षा होते देखी जा रही है| परस्पर विरोधी स्वभाव के हिंसक जीव एक ही जंगल में सारे जीवन बने रहकर भी सुरक्षित बचे रहते हैं | जंगल में हिरण और शेर दोनों सारे जीवन साथ साथ रहते हैं |वहीं रहते खाते पीते सोते जागते हैं | उन्ही जंगलों में हिरणों के लिए अलग से कोई सुरक्षित स्थान नहीं होता है | किसी के द्वारा उनकी सुरक्षा नहीं की जा रही होती है | इसके बाद भी उनका अपना समय उनकी तब तक सुरक्षा करता है जब तक उनकी आयु पूरी नहीं होती है | 
          समयकृत सुरक्षा प्राप्त  कुछ लोग ट्रेन के नीचे आ जाते हैं |दोनों पटरियों बीच पड़े रहते हैं |उनके ऊपर से पूरी ट्रेन निकल जाने के बाद वे सुरक्षित निकलते हैं| ऐसे ही किसान लोग खेतों में दिन रात काम करते हैं |कई बार जब पौधे बड़े बड़े हो जाते हैं | उस समय खेतों में घुसने पर पैरों के नीचे सर्प आदि हों भी तो दिखाई नहीं पड़ते हैं | इसके बाद भी वर्षा ऋतु की घनघोर अँधेरी रात्रि में किसानों को उन खेतों में घुसना पड़ता है|ऐसे अवसर अनेकों बार आते हैं, फिर भीकिसान मजदूर आदि  सुरक्षित बचते देखे जाते हैं |
    ऐसे ही जंगलों के पास बसे गाँवों में गरीब लोग छप्परों के नीचे या खुले आसमान में अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ रहते हैं |घरों में दीवारें या तो होती  नहीं हैं या फिर मजबूत नहीं होती हैं | रात्रि में हिंसक जीव जंतु वहीं  घूम कर चले जाते हैं, जहाँ लोग अपने बच्चों के साथ सो रहे होते हैं | ऐसी परिस्थिति में समय  ही उन सबकी सुरक्षा करता है |   
    ऐसे ही बहुत लोग महानगरों के अत्यंत उन्नत चिकित्सालयों में चिकित्सा का लाभ लेकर भी मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते हैं ,जबकि जंगलों में रहने वाले कुछ लोग या जीव जंतु आदि भी बड़े बड़े रोगों से ग्रस्त होकर या चोट लगने से  घायल होने के बाद भी कुछ समय बाद सुरक्षित बच जाते हैं| बिना चिकित्सा के ही उनके घाव भर जाते हैं |
     मनुष्य बड़ी बड़ी दुर्घटनाओं से  पीड़ित होकर भी समय का सहयोग पाकर  सुरक्षित बच निकलते हैं|कई बार भूकंप में गिरे मकानों के मलबे में दबे लोग कई कई सप्ताह बाद भी सुरक्षित निकलते देखे हैं |उसीप्रकार की परिस्थिति में फँसे हुए जिन लोगों का समय पूरा हो चुका होता है| वे मृत्यु को प्राप्त हो चुके होते हैं |
    कुल मिलाकर प्रत्येक व्यक्ति समय और संसाधन दोनों  के बल पर सुरक्षित रहता है |कोरोना महामारी के समय बहुत लोग संपूर्ण सतर्कता पूर्वक कोविडनियमों का पालन करते हुए भी संक्रमित हुए उनमें से कुछ मृत्यु को भी प्राप्त हुए |बहुत लोग ऐसे भी थे, जिन्हें न तो कभी पौष्टिक भोजन मिला था और न ही साफ स्वच्छ  रहन सहन खान पान आदि रहा और न बिटामिन टॉनिक आदि ही रहा | उन्होंने कोविड नियमों का पालन नहीं किया | अच्छी चिकित्सा सुविधाएँ भी उनके पास नहीं थीं | इसके बाद भी समय से सुरक्षित होने के कारण वे सुरक्षित बने रहे |

समय का प्रभाव प्रकृति पर पड़ता है !
      गणित विज्ञान की समझ के अभाव में प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर भी अल्पकालीन समय के संचार को समझा जा सकता है | समय के आधार पर घटनाओं को समझा जाए या फिर घटनाओं के आधार पर समय को समझा जाए | ऋतुएँ जैसे ही आती हैं तो प्रकृति भी उसी प्रकार का आचरण करने लगती है | वर्षा बसंत में पतझड़ होना,हेमंत में  बीजों का अंकुरितहोना, काँसफूलना, ग्रीष्मऋतु की गर्मी होना,सर्दी में कोहरा पाला आदि | 
    
     अच्छी बुरी घटनाओं से समय के संचार का ज्ञान !
    जिसप्रकार से  दूर से देखने पर नदी के जल का बहाव नहीं दिखाई देता है किंतु नदी की धारा में बहते जा रहे काष्ठ खंड या पेड़ पौधे  आदि देखकर नदी की धारा के बहाव का अनुमान लगा लिया जाता है | ऐसे ही हवा दिखाई नहीं पड़ती है किंतु हवा में उड़ते हुए तिनकों पत्तों कपड़ों आदि को देखकर हवा के बहने का अनुमान लगा लिया जाता है | इसी प्रकार से निराकार समय को देखा नहीं जा सकता है किंतु  समय के आधार पर प्रकृति और जीवन में घटित हो रही घटनाओं को  देखकर उसके आधार पर समय के संचार का अनुभव कर लिया जाता है | 
    प्राकृतिक  या मनुष्यकृत घटनाओं में अंतर ! 
     जिसप्रकार से नदी में केवल एक वस्तु बह रही हो तो वो किसी मनुष्य की सहायता से या किसी यंत्र की सहायता से भी बहती हो सकती है किंतु पानी पर तैरने वाली भिन्न भिन्न प्रकार की अनेकों वस्तुएँ जब धारा में एक ही गति से बहती दिखाई पड़  रही हों  तो उसका कारण नदी की धारा का बहाव ही होता है | इसलिए ये घटना प्राकृतिक ही होती है|ऐसे ही कोई पतंग या खिलौना आदि आकाश में उड़ता जाता दिखे तो उसका कारण मनुष्यकृत प्रयत्न हो सकता है किंतु हवा में उड़ने वाली जब अनेकों वस्तुएँ एक ही गति से उड़ती दिखें तो इसका कारण प्राकृतिक ही हो सकता है | 
      महामारी प्राकृतिक थी या मनुष्यकृत !
      महामारी जैसी कोई भी मनुष्यकृत घटना किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित रहती है उसका विस्तार इतना अधिक नहीं हो सकता है|दूसरी बात मनुष्य किसी जगह माचिस की तीली जलाकर फ़ेंक तो सकता है,वहाँ वो तीली जलकर आग शांत हो जाएगी |उस तीली के जलने से आग भयंकर रूप तभी धारण कर सकती है,जब उस जलती हुई माचिस की तीली को ज्वलनशील ईंधन अधिक मात्रा में मिले| इसीलिए कोरोना महामारी पैदा होने के लिए किसी देश विशेष की प्रयोगशाला से निकले बिषाणुओं को जिम्मेदार मान भले लिया जाए,हो सकता है कि ऐसा हुआ भी हो किंतु उसे प्रकृति का उस प्रकार का सहयोग मिले बिना उस मनुष्यकृत महामारी का इतना अधिक विस्तार होना संभव न था कि वो संपूर्ण विश्व में फैल जाती |दूसरी बात मनुष्यकृत घटना से केवल मनुष्य परेशान हो सकते थे किंतु संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण में उसीप्रकार की उथल पुथल मनुष्यों के द्वारा की जानी संभव न थी |
     महामारी के समय तो पृथ्वी आकाश जल अग्नि वायु आदि से लेकर पेड़ों पौधों फूलों फलों आदि में प्राकृतिक रूप से उस प्रकार के परिवर्तन होने लगे थे |मनुष्य समेत सभी पशु पक्षी आदि  जीव जंतुओं को बारबार  बेचैन होते देखे जा रहे थे |इतना सबकुछ मनुष्यों के द्वारा किया जाना संभव न था | 
     
  पशु पक्षियों पर पड़ता है समय का प्रभाव !
बसंत में कोयलें,वर्षा ऋतु में मेढक आदि! चातक पक्षी स्वाती नक्षत्र में बरसने वाले जल को बिना पृथ्वी में गिरे ही ग्रहण करता है | 
समय के अनुसार होते हैं स्वास्थ्य में बदलाव !
     ऋतुपरिवर्तन होने पर शरीर रोगी होने लगते हैं|अति गर्मी या अति सर्दी होने से भी शरीर रोगी होने लगते हैं !वर्षाऋतु आने पर शरीर रोगी होने लगते हैं | 


                                                       

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