विज्ञान खंड

  दो शब्द 


     वर्तमान समय में उन्नत विज्ञान के द्वारा मनुष्यजीवन  की  कठिनाइयों  को कम करने के लिए अत्यंत प्रभावी प्रयत्न किए जा रहे हैं |अनुसंधान पूर्वक सुख सुविधाओं के लिए काफी महत्वपूर्ण संसाधन खोज लिए गए हैं, किंतु जिन मनुष्यों  को सुखी करने के लिए ऐसी खोजें की  गई  हैं| प्राकृतिक आपदाओं या  महामारियों से उन मनुष्यों को ही यदि सुरक्षित नहीं रखा जा सकेगा तो उन सुख सुविधाओं का क्या होगा | जो मनुष्यजीवन की कठिनाइयाँ कम करके उन्हें सुख सुविधा संपन्न बनाए जाने के लिए खोजी गई हैं |   
   विगत कुछ दशकों में भारत परिश्रम तो को पड़ोसी देशों  के साथ तीन युद्ध लड़ने पड़े  हैं| उन तीनों युद्धों में  जितने देशवासियों की मृत्यु हुई थी |उससे बहुत अधिक लोग केवल कोरोना महामारी में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए हैं |ऐसे कई लोग जब संक्रमित हुए तब हमारी उनसे बात हुई | उस अवस्था में भी उन्हें यह विश्वास था कि अत्यंत उन्नत विज्ञान की मदद से वैज्ञानिक लोग महामारी से हमें सुरक्षित बचा लेंगे | उन्हें सरकार पर भी भरोसा था कि हमारी सरकारें हमारी सुरक्षा के लिए ऐसे आवश्यक सभी प्रयत्न करेंगी जिससे हमें सुरक्षित बचाया जा सके | उनका भी देश के  विकास में हम लोगों  से कम  योगदान  नहीं  रहा होगा | उनके विश्वास को सुरक्षित न रख पाने के बाद भावी पीढ़ियों को यह भरोसा कैसे दिलाया जा सकेगा कि ऐसे संकटों से भविष्य में तुम्हें सुरक्षित बचा लिया जाएगा | इसलिए अब वैज्ञानिकों सरकारों एवं वैश्विक समाज  की जिम्मेदारी बहुत अधिक बढ़ गई है| ऐसे विषयों पर अत्यंत गंभीरता से बिचार किए जाने की आवश्यकता है |  
      शत्रुओं की तरह ही प्राकृतिक आपदाएँ और महामारियाँ हमेंशा से बिना बोलाए और बिना बताए अचानक ही हमला करती रही हैं |इनके वेग एवं आक्रामकता के कारण ऐसी घटनाओं में अधिक जनधन की हानि होती है|     इतनी शक्तिशाली  घटनाओं को रोका तो जा  नहीं सकता है | इनसे समाज को सुरक्षित बचाने के लिए प्रयत्न ही किए जा सकते हैं |पूर्वानुमान विज्ञान के अभाव  में इतने कम समय में ऐसी भयंकर हिंसक घटनाओं से समाज की सुरक्षा करना तो  दूर इन्हें समझना भी संभव नहीं हो पाता है |
      जिसप्रकार से शत्रुओं से सुरक्षा के लिए  हर समय हर प्रकार की तैयारियाँ करके रखी जाती हैं | उसीप्रकार से प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से लोगों को सुरक्षित जाने की आवश्यकता है| शत्रु के षड्यंत्रों  को आगे से आगे पता करने  के लिए  खुपिया सूचनाएँ  जिसप्रकार  से सहायक होती हैं | उसी प्रकार से प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से लोगों को सुरक्षित बचाने की दृष्टि  से ऐसी घटनाओं के विषय में आगे से  आगे लगाया गया पूर्वानुमान  सहायक  होता है | 
                                                                        भूमिका 
      उपग्रहों रडारों आदि से बादलों को दूर से ही देखा जा सकता है | उनकी दिशा और गति को समझा जा सकता है | उसके अनुसार ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये बादल यदि इतनी गति से इस  ओर जा रहे हैं तो उसी दिशा में इतनी गति से आगे बढ़कर इतने समय में अमुक देश प्रदेश में आदि में पहुँच सकते हैं | इसके आधार पर वर्षा होने की भविष्यवाणी कर भी  दी जाए तो उसके सही होने की संभावना कितनी हो सकती है |  
      इसमें विशेष बात ये है कि वो बादल जिन हवाओं के साथ उड़ रहे होते हैं उन हवाओं की दिशा या गति कभी भी बदल सकती है |जिससे बादलों की गति और दिशा के आधार पर पहले लगाया हुआ अंदाजा गलत निकल जाएगा | हवा का रुख और गति कब बदल जाएगी | इसका पूर्वानुमान लगाने के लिए जब तक कोई विज्ञान नहीं है,तब तक मौसमविज्ञान में विज्ञान क्या है ?इसे गंभीरता से सोचना पड़ेगा |  
      दूसरी बात उपग्रहों रडारों से  केवल ये पता लग सकता है कि बादल इतनी गति से इस दिशा में जा रहे हैं ,किंतु इससे  यह पता लगाया जाना संभव नहीं है कि बादल बरसेंगे कहाँ !क्योंकि बादल जहाँ जहाँ से निकलेंगे सभी जगह तो बरसते नहीं जाएँगे|ऐसी स्थिति में वर्षा होगी या नहीं होगी और यदि होगी तो कहाँ होगी कितनी होगी !वर्षाविज्ञान के बिना केवल उपग्रहों रडारों की मदद से यह पता लगाया जाना संभव नहीं है | 
    दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी ऐसे विज्ञान की आवश्यकता होती है|  जिसके द्वारा भविष्य में झाँका  जाना संभव हो | ऐसे विज्ञान के अभाव में मौसम संबंधी भावी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है | 
  मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी ऐसे भविष्य विज्ञान की आवश्यकता सुपरकंप्यूटर को भी होगी |जिसके द्वारा भविष्य में झाँका  जाना संभव हो |इसके बिना मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने में सुपरकंप्यूटर की भूमिका क्या हो सकती है | डेटा विश्लेषण  के लिए भी किसी भविष्यविज्ञान का अवलंबन तो चाहिए | मेरी जानकारी के अनुसार सुपरकंप्यूटर  प्रति सेकंड खरबों गणनाएँ करने में सक्षम है | उससे फीड किए डेटा के अनुसार कुछ भावी घटनाओं के विषय में रुझान तो पता लगाए जा सकते हैं ,किंतु उससे भविष्यवाणी कैसे की जा सकती है | 
      कोरोना महामारी से संबंधित विभिन्न पक्षों  को आधार बनाकर जो डेटा विश्लेषण करके महामारी की लहरों के आने और जाने के विषय में भविष्य की दृष्टि से जो रुझान बताए जाते रहे | उनकी सच्चाई कितने प्रतिशत रही होगी | इसका आकलन करके यही तो समझा जा सकता है कि इसी कार्य को सुपरकंप्यूटर  की मदद से और अधिक डेटा विश्लेषण उससे कम समय में कर लिया जाएगा,किंतु भविष्यविज्ञान के बिना भविष्यवाणी कैसे की जा सकती है | इसके बिना उपग्रहों रडारों  या सुपर कंप्यूटरों  की मदद  से भविष्य में झाँकना  कैसे  संभव  है | प्रकृति  के स्वभाव को समझे बिना ये पता लगाया जाना कैसे संभव है कि भविष्य में प्रकृति किस प्रकार का करवट लेगी | जिसके प्रभाव से भविष्य में कब कब कैसी कैसी प्राकृतिक घटनाएँ  घटित  होने की संभावना बन सकती है | 
    कुलमिलाकर भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं की तरह ही महामारी भी आई और चली गई|उसमें जिन्हें संक्रमित होना था | वे संक्रमित हुए जिनकी मृत्यु होनी थी | वे मृत्यु को प्राप्त हुए |जिन्हें बचना था वे बचे रहे|मनुष्यकृत प्रयासों का इसमें क्या योगदान रहा | प्राकृतिक घटनाओं को समझने एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने की दृष्टि से हमारी क्षमता क्या है | जिम्मेदारीपूर्वक  ऐसा सोचने  का समय आ गया है |
      जिस महामारी को हम चली  गई है | ऐसा मान रहे हैं | निकट भविष्य में यदि वो दोबारा लौटने वाली  हो तो क्या वर्तमान अनुसंधानों के बल पर यह पता लगाया जाना संभव है कि महामारी की ऐसी कोई लहर अब दोबारा आ सकती है या नहीं  और यदि आनी  ही  है तो कब आ  सकती है | ऐसी किसी लहर को वैज्ञानिक प्रयासों रोका जाना या उससे समाज  सुरक्षित बचाया जाना  क्या संभव  है | यदि नहीं तो ऐसी घटनाओं से संबंधित अनुसंधानों पर और अधिक गंभीरता से न केवल बिचार किए जाने की आवश्यकता है ,प्रत्युत कोई ऐसा  वैज्ञानिक विकल्प खोजने की आवश्यकता है |जो महामारी जैसे संकटों के समय  मनुष्यों की सुरक्षा करने में सक्षम हो | 
    किसी शत्रु के अचानक आक्रमण करने की तरह ही प्राकृतिक आपदाएँ एवं महामारियाँ  भी अचानक ही अत्यंत वेग से हमला करती हैं |शत्रु देशों  से सुरक्षा के लिए भारत ने बहुत मजबूत तैयारियाँ कर रखी हैं|जिनके बलपर देश की सीमाएँ एवं देशवासी पूरी तरह से सुरक्षित कर लिए गए हैं | ऐसे ही महामारी  एवं  प्राकृतिक आपदाओं जैसे आकस्मिक संकटों से  भी देश वासियों  को सुरक्षित करने के लिए क्या कुछ किए जाने की आवश्यकता है |उस पर गंभीरता से बिचार किए जाने की आवश्यकता है | 

             विज्ञान के अभाव में भटकते अनुसंधान ! 

    प्रत्येक घटना मनुष्यकृत हो या प्राकृतिक उसकी कोई न कोई पटकथा अवश्य होती है उसी के अनुशार उस घटना  को घटित होते देखा जाता है | किसी भी नाटक या फ़िल्म में उसकी पटकथा ही उस नाटक या फ़िल्म का प्राण होती है उसी के अनुसार उस नाटक या फ़िल्म में पात्रों का चयन होता है उसमें किस पात्र की क्या भूमिका होगी यह उसी पटकथा के आधार पर निश्चित होता है उसी के अनुसार पात्र अपना अपना अभिनय करते रहते हैं | 
     वह पटकथा लिखने वाला व्यक्ति उस फ़िल्म या नाटक में अभिनय भी करे  निश्चित नहीं होता है कई बार तो संपूर्ण नाटक या फ़िल्म बन जाने के बाद भी पटकथा लिखने वाला व्यक्ति पूरी तरह अप्रत्यक्ष बना रहता है किंतु उस सारी कथा वस्तु का वही रचयिता होता है | 
     प्रत्येक फ़िल्म या नाटक की कथा वस्तु समझने के लिए उस फ़िल्म या नाटक को अच्छी प्रकार से देखना पड़ेगा उसके आधार पर उस कहानी को समझा जा सकता है | कुछ लोग किसी फ़िल्म या नाटक को कई कई बार देखा होता  है इसलिए उन्हें सारा कथानक याद हो जाता है | इसीलिए वे जब उस फ़िल्म या नाटक को देखने बैठते हैं तब आगे आगे बोलते देखा जाता है कि अब ये पात्र ऐसा बोलेगा या ये करेगा वो वैसे बोलेगा और वैसा करेगा और वैसा ही होता जाता है| यह मनुष्यकृत फ़िल्मों नाटकों आदि में तो चल जाती है किंतु इसका अनुशरण वैज्ञानिक अनुसंधानों में नहीं किया जा सकता है | 
     पिछली बार ऐसा हुआ था इसलिए अबकी बार भी वैसा ही होगा या  इतने वर्षों से इस क्षेत्र में  इस निर्धारित  समय के बीच इतने सेंटीमीटर बारिश  होती रही है इसलिए अबकी बार भी इतनी ही बारिश हो सकती है | इस रेगिस्तान में कभी बारिश नहीं होती रही  है इसलिए अभी भी ऐसा ही हो सकता है |मानसून पिछली बार इस तारीख को आया या गया था तो अबकी बार भी उस तारीख को ही आएगा |  पिछली महामारी के समय इस इस प्रकार से संक्रमण बढ़ा था अबकी बार ही ऐसा ही हो सकता है |पिछली बार की महामारी में इतने इतने अंतराल में  इतनी इतनी लहरें आई थीं इसलिए अबकी बार भी संभवतः वैसा ही होगा आदि आदि बहुत सारी ऐसी बातें हैं जो वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर अपनाई जाती हैं जिनका विज्ञान भावना से कोई लेना देना ही नहीं होता है | इसके बाद जब ऐसे तीर तुक्के गलत निकलते हैं तो उसके लिए जलवायुपरिवर्तन जैसी चीजों को जिम्मेदार  बता दिया जाता है |जलवायुपरिवर्तन जैसी कोई चीज है या नहीं मौसम आदि पर इसका कोई प्रभाव बज्रपात आदि पड़ता भी है या नहीं ये तो बाद की बात है जब इसके विषय में कोई वैज्ञानिक अनुसंधान पद्धति खोज ली जाएगी तब इसके विषय में सोच लिया जाएगा,अभी तो फिलहाल यही देखा जाना चाहिए कि महामारी मौसम जैसी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए जो जो कुछ किया जाता है उसका वैज्ञानिक आधार क्या है ?उनमें  यदि वैज्ञानिकता का अभाव है तो उनके गलत निकल जाने पर आश्चर्य क्यों होता है |उसका कारण जलवायुपरिवर्तन को बता देने की जल्दबाजी क्यों होती है | उसका भी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं  होता है |  
    वैज्ञानिक अनुसंधानों को इस तरह से चलाया भी नहीं जा सकता है | ऐसा करने से तो भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ या महामारी जैसी अचानक घटित होने वाली घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की कभी कल्पना ही नहीं की जा सकती है क्योंकि इसमें वो पद्धति लगी ही नहीं हो सकती है कि पिछले वर्ष या वर्षों में ऐसा ऐसा होता रहा है इसलिए अबकी बार भी ऐसा ऐसा होगा क्योंकि ऐसी घटनाएँ हमेंशा न घटित होकर कभी कभी और अचानक ही घटित होती हैं | इसलिए इसमें उसप्रकार के तीर तुक्कों से काम कैसे चलाया जा सकता है कि हर वर्ष वैसा होता था इसलिए अबकी बार भी ऐसा ही सकता है | ऐसी सुविधा न होने के कारण इन घटनाओं को जलवायुपरिवर्तन जनित बता देना वैज्ञानिक अनुसंधानों के  क्षेत्र में एक प्रकार का पलायन बाद है |इससे बचा जाना चाहिए और परिस्थितियों का सामना किया जाना चाहिए | कोरोना महामारी वैज्ञानिकअनुसंधानों के लिए एक बड़ी चुनौती की तरह है | इसलिए इसे यूँ ही तो नहीं भुलाया जा सकता है | ऐसी घटनाओं की वो पटकथा खोजनी होगी जिसके आधार पर इस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित हो रही होती हैं |

 अनुसंधानों के लिए आवश्यक है प्राकृतिक घटनाओं के वास्तविक कारणों की खोज ! 
    जिस प्रकार से किसी ट्रेन को जाते हुए देखकर इन बातों का अनुमान पूर्वानुमान आदि कतई नहीं लगाया जा सकता है कि ये कहाँ तक जाएगी किस रास्ते से जाएगी प्रतिदिन जाएगी या नहीं जाएगी या सप्ताह में कुछ दिन ही जाएगी | इसके जाने का समय क्या होगा आदि किंतु यदि ट्रेन विषयक  समय सारिणी के साथ साथ वह पटकथा  भी मिल जाए जिसके आधार पर ट्रेन संचालित होती है उसमें उस ट्रेन के विषय की संपूर्ण जानकारी लिखी होती है | उसी के आधार पर ट्रेन को देखे बिना भी ट्रेन के विषय की संपूर्ण सही जानकारी सहज रूप से प्राप्त की जा सकती है |जिसे केवल ट्रेन को देखकर प्राप्त किया जाना संभव नहीं होता है | 
     इसी प्रकार से अति विशाल आकाश में विमान उड़ रहे होते हैं वे किसी भी तरफ उड़कर जा सकते हैं उनके लिए चारों ओर आसमान खाली ही खाली होता है | इसलिए आकाश में विमानों को उड़ते देखकर यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि ये कब कहाँ पहुँचेगा कहाँ कितनी देर रुकेगा आदि | प्रतिदिन का इसका क्या क्रम होगा इस बात का भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता है किंतु उसी विमान की समय सारिणी एवं पटकथा आदि यदि  खोज ली जाए तो विमान को देखे बिना भी उसके विषय में ऐसी सभी बातों की सही सही जानकारी आसानी से प्राप्त की जा सकती है |
    इसी प्रकार से आकाश में उड़ते बादलों आँधी तूफानों चक्रवातों आदि को उपग्रहों रडारों की मदद से या प्रत्यक्ष रूप से देखकर यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि ये कब कहाँ पहुँचेंगे !कहाँ कितने समय तक रहेंगे इनका किस देश प्रदेश आदि में कैसा वर्ताव रहेगा | ऐसी घटनाओं का  प्रतिदिन का क्या क्रम होगा इन बातों का अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सकता है किंतु उन्हीं प्राकृतिक घटनाओं की समय सारिणी पटकथा आदि खोज ली जाए तो घटनाओं को प्रत्यक्ष रूप से देखे बिना भी उन घटनाओं के विषय में सही सही जानकारी आसानी से प्राप्त की जा सकती है |
     इसलिए महामारियों भूकंपों आँधी तूफानों चक्रवातों एवं सूखा वर्षा बाढ़ जैसी घटनाओं के विषय में किसी भी प्रकार की जानकारी जुटाने या अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए उन घटनाओं की समय सारिणी पटकथा  आदि की खोज  किया जाना नितांत आवश्यक है इसके बिना ऐसी किसी घटना के विषय में कुछ भी पता लग पाना संभव नहीं है|
   किसी विषय की समयबद्ध पटकथा खोजा जाना ही उसके विषय का वास्तविक वैज्ञानिक अनुसंधान होता  है | इसके बिना प्राकृतिक विषयों में वैज्ञानिक अनुसंधान संभव ही नहीं हैं | यही वह प्रमुख कारण है  जिससे  महामारी से लेकर मौसम तक जितने भी अनुसंधान किए जा रहे हैं उनके आधार पर जो भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जा रहे हैं उनमें वैज्ञानिकता कम एवं कल्पित किस्से कहानियाँ अधिक होते हैं | इसीलिए उनका उनके द्वारा किए गए अनुसंधानों का घटनाओं के साथ कोई मेल नहीं खाता है और वे प्रायः गलत निकलते देखे जाते हैं | 

अनुसंधानों का असमंजस 
 
     कोई ताला किसी चाभी से खोलने पर न खुले तो  इसका मतलब यह नहीं होता है कि ताले में ही खराबी है अपितु इसका मतलब यह भी होता है कि वह चाभी इस ताले की हो ही न |  जिससे उस ताले को खोलने का प्रयास किया जा रहा है |   
    कोई अन्य व्यक्ति किसी दूसरी चाभी से यदि वही  ताला खोल और बंद कर लेता है तब तो यह बात पक्की हो जाती है कि ताले में कोई खराबी नहीं है अपितु जिस चाभी से खोलने का प्रयास किया जा रहा है वह चाभी ही उस ताले की नहीं है जिससे उसे खोलने के प्रयत्न किए जा रहे हैं |  
   इसके लिए यह तर्क देना उचित नहीं है कि कई दिन से ताले को खोलने के प्रयत्न हो रहे थे किंतु ताला खुल नहीं रहा था | इसलिए इस विषय में वैज्ञानिकों ने उसी चाभी से ताला खोलने की  रिसर्च करना शुरू किया | उस रिसर्च को पूरा करने के बाद वैज्ञानिकों ने बताया कि ताला अपना स्वरूप बदलता जा रहा है |इस स्वरूप परिवर्तन के कारण ही ताला अब पुरानी चाभी से नहीं खुल रहा है यदि ऐसा न होता तो ताले को उसी चाभी से खुल जाना चाहिए था जो चाभी हमारे पास है | भले उस चाभी का इस  ताले से कोई संबंध ही न हो | 
     ऐसी परिस्थिति में तमाम चाभियाँ बदल बदल कर बार बार ताला खोलने का प्रयास करने पर भी ताले के न खुलने का मतलब यह नहीं कि ताला और अधिक खतरनाक होता जा रहा है या ताले का कोई  वेरियंट बदल रहा है या उसका जलवायु परिवर्तन हो रहा है | हजारों चाभियों के द्वारा जो ताला नहीं खुला वो उसके बाद भी अपनी चाभी से उसी प्रकार आसानी से खुल जाता है जैसा हजारों चाभियों से प्रयत्न करने के पहले अपनी चाभी से खुल सकता है क्योंकि समस्या ताले के खतरनाक होने या वेरियंट बदलने की नहीं थी अपितु ये तो सामान्य बात है कि किसी भी ताले को उसकी अपनी चाभी से खोला जाए तभी खुलेगा | उसी पाले को उसकी अपनी चाभी से न खोलकर किन्हीं दूसरी लाखों करोड़ों चाभियों से खोलने का प्रायः किया जाए तो भी नहीं खुलेगा | 
    ऐसी परिस्थिति में किसी ताले को उसकी अपनी चाभी से न खोलकर अपितु किन्हीं दूसरी लाखों करोड़ों चाभियों से खोलने का प्रयास किया जाता रहे !ऐसे परिणामशून्य उद्देश्यभ्रष्ट निरर्थककार्य को कोई रिसर्च मान कर थोपना चाहे तो समाज ये कैसे स्वीकार कर लेगा | समाज यह भी तो देखना चाहेगा कि इस रिसर्च से निकला क्या है और वह सही कितना घटित होता है |वैसे भी कोई ताला यदि  किसी चाभी से खुलने लग  जाएगा तब तो उस ताले का तालापन ही समाप्त हो जाएगा |
     इसलिए उचित तो यह है कि यदि तमाम प्रयासों को करने का उद्देश्य ताला खोलना ही है तब तो जिस दूसरी चाभी से ताला खुल जा रहा होता है उसी ताली को स्वीकार करके इस प्रयत्न को संपूर्ण मान लिया जाना चाहिए | ऐसा करके यदि यह सोचा जाने लगे कि यह ताला जिस ताली से खुल रहा है चूँकि वह किसी दूसरे के द्वारा खोजी गई है इसलिए ऐसे किसी दूसरे के द्वारा की गई खोज को मान्यता देने से अच्छा है कि रिसर्चरच के नाम पर कुछ भी क्यों न करते रहें फिर भी ताले की वास्तविक चाभी भले न खोजी जा सके ,जिसके परिणाम स्वरूप ताला भले  खुले अपने रिसर्च में समय और पैसा निरर्थक व्यय होता रहे फिर भी विज्ञान हमारी  शोध पद्धति को ही माना जाए और रिसर्च हमारे ताला खोलने के प्रयासों को ही माना जाए भले हमसे ताला खुले या न खुले किंतु दूसरा कोई व्यक्ति यदि आसानी से वह ताला खोल दे तो भी उसके प्रयत्न को पहचान न मिलने दी जाए |  
     ऐसी परिस्थिति में जनता की आवश्यकता तो ताला खोलने की है यह कार्य जिन वैज्ञानिकों को सौंपा जाए  फिर भी वे न खोल पावें और जो खोल पावे उसे न खोलने दिया जाए | इससे तो समय संसाधनों एवं धन की बहुत सारी बर्बादी होने के बाद भी ताला तो नहीं ही खुलता है | इतने सारे रिसर्चों के बाद भी जनता की आवश्यकताओं  पूर्ति तो नहीं ही हो पाती है |   
    इसी प्रक्रिया के द्वारा कोरोना जैसी महामारियों तथा भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में सदियों से चलाए जा रहे से अनुसंधानों से न अभी तक कुछ निकल पाया है और न ही भविष्य में किसी ऐसे सार्थक अनुसंधान की उम्मींद की जानी चाहिए जो ऐसी घटनाओं के विषय में भविष्य में जनता के किसी काम आने लायक ही हो | 
        सामान्य तीर तुक्कों से यदि महामारी संक्रमित लोगों को रोग मुक्ति दिलाना संभव ही होता तो महामारी किस बात की ,फिर तो सामान्य रोगों की श्रेणी में महामारी जनित रोग भी होते |वस्तुतः महामारी उतनी भयावह नहीं थी जितना कि महामारी से संबंधित सार्थक अनुसंधानों का अभाव था|ऐसी कोई वैज्ञानिक अनुसंधान विधा ही नहीं दिखाई पड़ी जिसके  द्वारा महामारी के विषय में कोई भी जानकारी जुटाना संभव होता|
  
   महामारी और शंकाएँ
    वर्तमान वैज्ञानकि युग में विज्ञान की महत्ता सर्वविदित है | अत्यंत उन्नत विज्ञान के प्रभाव से मनुष्य जीवन की कठिनाइयाँ कम हुई हैं | सुख सुविधा के संसाधनों में बहुत बढोत्तरी हुई है | जिससे लाभान्वित होकर हम आप सभी सुखी हुए हैं | इसमें कोई संशय नहीं है |इसी के समानांतर बिचार इस बात का भी करना होगा कि हमारा सुखी होना पहले आवश्यक है या सुरक्षित होना | जीवन सुरक्षित रहेगा तो सुख कुछ कम भी मिलें तो भी संतोष किया जा सकता है | जीवन ही यदि असुरक्षित हो तो उन सुख सुविधाओं का क्या होगा | जो हम मनुष्यों को सुखी करने के लिए बनाई या खोजी गई हैं |
     जीवन को  सुरक्षित बचाए रखने के लिए  संपूर्ण समाज चिंतित है | इसके लिए किए जाने वाले अनुसंधानों पर होने वाला आर्थिक व्यय जो व्यक्ति संस्था आदि स्वयं वहन करते हैं |उनकी तो कोई बात नहीं किंतु जो अनुसंधान सरकारी खर्च पर करवाए जाते हैं | उनमें जनता का धन लगता है |  इसलिए ऐसे अनुसंधानों की सार्थकता को जनहित की कसौटी पर कसा जाना चाहिए कि प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों  के संकट से जूझते समाज को अनुसंधानों से ऐसी क्या और कितनी मदद मिल  पाती है |जो इन अनुसंधानों  बिना संभव  न थी |
      हमें ये याद रखना चाहिए कि ऐसे अनुसंधानों  के लिए आर्थिक सहभागिता निभाकर जनता स्वयं को सुरक्षित करना चाहती है | जनता का लक्ष्य अनुसंधानों के द्वारा  कुछ ऐसा खोजा  जाना  है | जिसके द्वारा प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों से समाज की सुरक्षा की जा सके | 
      भूकंपों के अचानक आने के कारण जनधन का नुक्सान बहुत अधिक हो जाता है | जनधन की सुरक्षा का लक्ष्य लेकर जो अनुसंधान प्रारंभ किए गए थे | भूकंपों के आने पर अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों से जनता को कितना सुरक्षित किया जा सकता है | यह सोचे जाने की बात है | यदि सुरक्षा संभव नहीं है तो भूकंप संबंधी अनुसंधानों के विषय में जितनी भी बातें बताई जाती हैं वे जनता के किस काम की |  इसलिए  महामारी के विषय में अनुसंधान तो होते ही रहते होंगे,किंतु महामारी आने पर उससे समाज को सुरक्षित बचाने के लिए  क्या कुछ खोजा जा सका है | इस पर बिचार किए जाने की आवश्यकता है | 
     प्रकृति और जीवन से संबंधित सभी प्रकार के प्राकृतिक संकटों से मनुष्य जीवन को सुरक्षित बचाने की तैयारियाँ यदि इतनी कमजोर हैं तो ऐसे संकटों से समाज को सुरक्षित बचाया जाना कैसे संभव है |
      कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी पैदा होने के लिए या उसकी लहरों के आने जाने के लिए जिन मौसम संबंधी घटनाओं को जिम्मेदार बताया गया था | यदि इस बात को सच मानकर मौसम के आधार पर महामारी या उसकी लहरों के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए सोचा भी जाता तो ऐसा किया जाना इसलिए संभव नहीं था ,क्योंकि मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में ही सही पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो सका है| ऐसी स्थिति में प्रकृति  में होने वाले स्वाभाविक परिवर्तनों  को  समझे बिना मौसम एवं उसके कारण घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है | 
      ऐसे ही महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने के लिए वायु प्रदूषण बढ़ने को जिम्मेदार बताया जाता रहा है| इसके लिए पहले वायु प्रदूषण बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाना होगा उसी के आधार पर महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा | वायुप्रदूषण बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाना ही यदि संभव नहीं हो सका है तो उसके कारण बढ़ने वाले महामारी  संबंधी संक्रमण के विषय में किसी प्रकार का पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकेगा |
     इस प्रकार से जितने पहले मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगा लिया जाएगा | उतने ही पहले का महामारी संबंधी पूर्वानुमान लगाया  जाना संभव हो पाएगा |महामारी से संबंधित पूर्वानुमान लगाए बिना उससे अचानक लोगों की सुरक्षा कैसे की जा सकती है |
      भूकंप आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों को समझना ही यदि संभव नहीं हो पाएगा तो तो ऐसी घटनाओं से मनुष्यों को सुरक्षित बचाने में कोई मदद कैसे मिल सकती है |इसलिए ये सोचा जाना चाहिए कि ऐसे अनुसंधानों से प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों में जो मदद मिल पाती है क्या वो पर्याप्त है |

महामारी से  सुरक्षा की वैज्ञानिक तैयारियाँ !
     समाज को एक संयुक्त परिवार मान लिया जाए तथा कोरोना महामारी में संक्रमितों एवं मृतकों को अपने परिवार का सदस्य मानकर उसी पीड़ा के साथ महामारी जैसी आपदा पर बिचार किया जाए | जिसमें सारा रोजी रोजगार बंद हो गया हो | ऐसा महामारी से पीड़ित परिवार  इस भयानक सदमे से उबरने का प्रयास कर रहा हो | इसी विषय में परिवार के सदस्यों का संयुक्त बिचार मंथन चल रहा है |
     विगत समय में पड़ोसी देशों के साथ भारत को तीन युद्ध लड़ने पड़े हैं | उन तीनों युद्धों में मिलाकर जितने लोगों की मृत्यु हुई थी |उससे बहुत अधिक लोग केवल कोरोना महामारी में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए हैं | ये बहुत बड़ी जनहानि है | इसे बातों बातों में यूँ ही नहीं टाला जा सकता है |किसी निष्कर्ष पर तो पहुँचा ही जाना चाहिए | 
    कोरोनामहामारी से मनुष्यों की सुरक्षा के लिए जो कुछ किया जा सकता था | क्या वह किया जा सका !उससे जितनी सुरक्षा की अपेक्षा थी क्या उतनी सुरक्षा हो सकी !यदि हाँ तो क्या यह कहा जा सकता है कि यदि वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी से सुरक्षा के लिए प्रयत्न न किए गए होते तो क्या इससे भी अधिक नुक्सान हो सकता था ?जो सार्थक प्रयत्न किए गए वे क्या थे और समाज को सुरक्षित बचाने में उनका किस प्रकार का क्या योगदान रहा |  इसपर गंभीरता से बिचार किया जाना अब बहुत आवश्यक इसलिए हो गया है |
     इसमें कोई संशय नहीं है कि विज्ञान ने बहुत तरक्की की है | विज्ञान के द्वारा जिन मनुष्यों की कठिनाइयाँ कम करके सुख सुविधा प्रदान करने वाली बहुत सारी वस्तुएँ खोज ली गई हैं| उन्हीं मनुष्यों का जीवन इतना असुरक्षित है कि कोई भी प्राकृतिक आपदा आवे या महामारी आवे और लाखों लोगों को मार कर चली जाए | ऐसी स्थिति में वैज्ञानिक अनुसंधानों के होने या न होने का क्या औचित्य रह जाता है | अनुसंधानों का पहला उद्देश्य तो मनुष्य जीवन की सुरक्षा करना ही है | यदि मनुष्य ही सुरक्षित नहीं रहेंगे तो उन सुख सुविधाओं को भोगेगा कौन !जो अत्यंत परिश्रम पूर्वक खोजी गई हैं |
       महामारियों या प्राकृतिक आपदाओं से जिस समाज की सुरक्षा करने के लिए हमेंशा से अनुसंधान होते आ रहे हैं |वही समाज उन अनुसंधानों पर व्यय  होने वाली धनराशि कर(टैक्स)के रूप में वहन करता है |उसी समाज को कोरोना महामारी से सुरक्षा की आवश्यकता पड़ी तो उसे उन अनुसंधानों से जो मिला क्या वह पर्याप्त था | यदि नहीं तो भी समाज के कष्ट को कितने प्रतिशत कम किया जा सका |
    कुल मिलाकर प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों से मनुष्यों को सुरक्षित बचाने के लिए ऐसा क्या किया गया है | अनुसंधानों के द्वारा यदि मनुष्य ही सुरक्षित नहीं किए जा सके तो उन सुख सुविधाओं का क्या होगा | जो वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा हमें उपलब्ध करवाई गई हैं | जिनसे लाभान्वित समाज अपने उन्नत विज्ञान पर गर्व करता है |
     इतनी बड़ी संख्या में मनुष्यों के संक्रमित होने या मृत्यु होने के लिए यदि महामारी की भयानकता या उसके वेग अधिक होने को जिम्मेदार माना जाए तो प्रश्न उठता है कि महामारी संबंधी अनुसंधानों के द्वारा महामारी के विषय में ऐसा क्या  खोजा  जा सका है| जिससे मदद न मिली होती तो इससे भी अधिक नुक्सान हो सकता था |
    वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा क्या यह पता लगाया जा सका कि महामारी का विस्तार कितना था,प्रसार माध्यम क्या था,अंतर्गम्यता कितनी थी | महामारी संबंधी संक्रमण घटने बढ़ने पर मौसम का प्रभाव पड़ता था  या नहीं! वायुप्रदूषण का प्रभाव पड़ता था या नहीं | कोविड नियमों के पालन का प्रभाव पड़ता था या नहीं !प्लाज्मा थैरेपी का प्रभाव पड़ता था या नहीं !रेमडेसिविर इंजेक्शन से लाभ होता था या  नहीं| ऐसे और भी  विषयों में अनुसंधान पूर्वक ऐसी कोई विश्वसनीय जानकारी समाज को नहीं उपलब्ध करवाई जा सकी है|जिससे ऐसे प्राकृतिक विषयों में उन्नत  विज्ञान की झलक मिलती हो | इतनी कमजोर तैयारियों के बलपर महामारी से सुरक्षा कैसे की जा सकती है |
   महामारीजनित संक्रमण बढ़ने के लिए यदि मौसम संबंधी घटनाएँ या वायुप्रदूषण का बढ़ना ही जिम्मेदार हो तो इसके लिए भी मौसम या वायु प्रदूषण के विषय में जिन दीर्घावधि पूर्वानुमानों की आवश्यकता है | उन्हें  लगाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है| इसके आधार पर महामारी के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है |
     उपग्रहों रडारों या सुपर कंप्यूटरों से प्राप्त दृश्यों गणनाओं के आधार पर केवल उन्हीं घटनाओं को देखा समझा जा सकता है | जो कहीं किसी रूप में पैदा हो चुकी होती हैं | उपग्रहों रडारों से उन घटनाओं को प्रत्यक्ष रूप से किसी एक स्थान पर घटित होते देखकर उनकी गति और दिशा के अनुसार अंदाजा लगाया जाता है कि ये कहाँ कब पहुँच सकती हैं |
    ऐसे समय हवा का रुख बदला तो भविष्यवाणियाँ बदल जाती हैं|इस प्रक्रिया में न तो कहीं विज्ञान है और न ही  अनुसंधान हैं | ये पूर्वानुमान भी  नहीं हैं |ये तो अंदाजे हैं | जो सही गलत कुछ भी निकल सकते हैं | इनके आधार पर मौसम और महामारी के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है | 
    भूकंप महामारी जैसी घटनाओं के विषय में तो ऐसे जुगाड़ भी नहीं हैं | जिनके आधार पर कुछ भी कल्पना की  की जा सकती हो |इसलिए ऐसी घटनाओं के विषय में तो अंदाजा  भी नहीं लगाया जा सकता है| इतनी कमजोर  तैयारियों के बलपर महामारी का सामना किया जाना कैसे संभव है | 
      ऐसी परिस्थिति में प्राचीन भारतवर्ष का वह गणितीयविज्ञान विशेष लाभदायक सिद्ध हो सकता है| जिसके आधार पर ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं |इसकी विधि आयुर्वेद की चरकसंहिता आदि ग्रंथों में बताई गई है | उसी के आधार पर अभी भी अनुसंधानपूर्वक  पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं |मैंने महामारी संबंधी सभी लहरों के विषय में जो जो पूर्वानुमान लगाए हैं | वे पूरी तरह से सही निकलते रहे हैं |
 महामारी का सामना करने की तैयारियाँ क्या थीं ?
    वैज्ञानिकों के द्वारा  महामारी के विषय में अभी तक किए गए अनुसंधानों को यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए तो वे कितने प्रतिशत सफल हुए हैं | जनता के जीवन से संबंधित संभावित सभी प्रकार के संकटों को कम करने या जीवन को आसान बनाने के लिए वैज्ञानिकों के द्वारा किए जाने वाले सभी प्रकार के अनुसंधान आवश्यक हैं किंतु केवल अनुसंधानों से क्या होगा उनकी सार्थकता भी तो सिद्ध होनी चाहिए | अनुसंधानों की सार्थकता  बहुत महत्त्व रखती है | 
   महामारी जैसी घटनाएँ अचानक घटित होने लगती हैं जिससे बड़ी तेजी से जनधन हानि होने लगती है | उस समय महामारी के स्वभाव को समझने के लिए समय बहुत कम मिल पाता है उसके बाद बचाव के लिए औषधि खोजना और उसका अच्छी प्रकार से परीक्षण करना उतने कम समय में अत्यंत कठिन होता है | उसके बाद  इतनी अधिक मात्रा में उस औषधि का तुरंत निर्माण करके जन जन तक पहुँचाना ताकि प्रत्येक व्यक्ति की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके |ये सब अत्यंत कठिन काम जो बहुत कम समय में करना होता है |औषधि अनुसंधान एवं निर्माण प्रक्रिया विशुद्ध वैज्ञानिक होने के बाद भी उनके साथ सरकारों की संपूर्ण सहभागिता रहती है जिसके बिना यह इतना कठिन कार्य संभव भी नहीं होता है | 
    महामारी पीड़त समाज की सुरक्षा के साथ साथ उन्हें जीवन यापन के लिए आवश्यक वस्तुएँ  संसाधन आदि इतने कम समय में उपलब्ध करवाने होते हैं | इसके अतिरिक्त भी  महामारी जैसी घटनाओं के समय सरकारों को और भी बहुत सारी जिम्मेदारियाँ निभानी पड़ती हैं | 
    समाज को भी ऐसी आकस्मिक आपदाओं से अपने और अपने परिवारों को सुरक्षित रखने के लिए व्यक्तिगत स्तर  पर भी  बहुत सारे इंतिजाम तुरंत करने होते हैं |सारे आवश्यक संसाधन इतने कम समय में जुटाने होते हैं | 
    समाज का अत्यंत गरीब वर्ग जिसे रोज खाना रोज कमाना होता है उस वर्ग के पास संचित धन तो होता नहीं है कि वो कुछ दिन घर बैठ कर अपना जीवन यापन कर ले |समय रहते उसे यदि महामारी जैसी आपदाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि पता लग जाएँ तो वह अपने एवं अपने परिवार के भरण पोषण के लिए सुरक्षित स्थान खोज सकता है |  
     फैक्ट्री मालिकों एवं अन्य व्यापारी वर्ग को काफी बड़ी मात्रा में कर्जा उठाकर कई बार व्यापार करना होता है जिसका ब्याज भी देना होता है | बड़ी मात्रा में कर्मचारियों को बेतन देना होता है | कार्य संचालन के लिए अधिक मात्रा में माल संचय करके रखना होता है |कोरोना जैसी महामारी के विषय में उन्हें अचानक अनिश्चित काल के लिए कार्य बंद करना पड़ा जिसमें सभी प्रकार से बहुत नुक्सान हुआ | यदि उन्हें महामारी के विषय में पहले से अनुमान पूर्वानुमान आदि पता लग जाते तो इतना बड़ा नुक्सान होने से उनका भी बचाव हो सकता था | 
    ऐसे समय में वैज्ञानिकों सरकारों एवं समाज को समय की सबसे  बड़ी आवश्यकता होती है ताकि ऐसे संकट काल के लिए आवश्यक कार्यों को समय से पूरा किया जा सके| इसके लिए महामारी जैसी बड़ी घटनाओं के विषय में  सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि जितने पहले से पता लग जाएँ सभी के लिए उतना ही हितकर माना गया है | 
    ऐसी परिस्थिति में इस बात की गहन समीक्षा होनी ही चाहिए कि वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी से संबंधित  जिस भी विषय में जितने भी अनुमान पूर्वानुमान आदि बताए गए उनमें से जितने प्रतिशत सही निकले महामारी का सामना करने की वैज्ञानिक तैयारियों को उतने ही प्रतिशत सफल माना जाना चाहिए |

                                  इन प्रश्नों के उत्तर खोजने होंगे !   

प्रतिरोधक क्षमता या समयकृत सुरक्षा ! 

        प्रतिरोधक क्षमता का मतलब है, शरीर की वह क्षमता जिससे मनुष्य बाहरी संक्रमण से लड़ पाता है. यह शरीर की एक जटिल प्रणाली है.प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए, स्वस्थ आहार, शारीरिक व्यायाम, और अच्छी नींद लेना चाहिए | 
      कुछ लोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होने के लिए अच्छे पौष्टिक खानपान आदि को कारण मानते हैं | वो तर्क इसलिए उचित नहीं है क्योंकि अधिकतर संक्रमित हुए साधन संपन्न लोगों के पौष्टिक खानपान में कोई कमी नहीं थी | बचपन से उनका खाना पीना पौष्टिक रहा | समय पर सारे टीके लगते रहे |बिटामिन एवं टॉनिक आदि लेते रहे |  चिकित्सकों की देखरेख में उनका जीवन बीता | संपूर्ण रूप से कोविड नियमों के पालन करते रहे | इन सबके बाद भी उनमें से बहुत लोग संक्रमित होते देखे गए थे | 
    गरीबों को संसाधनों के अभाव में पौष्टिक खानपान तो मिला ही नहीं, पेट भर भोजन भी नहीं मिलता रहा |उन्हें बचपन से टीके टॉनिक आदि भी सुलभ नहीं हुए |सोने के लिए अच्छा घर बिस्तर भी नहीं मिला | मलिन बस्तियों में अभावग्रस्त रहन सहन रहा | वे कोविड नियमों का पालन भी नहीं कर सके | इसके बाद भी ऐसे वर्ग के अधिकाँश लोग स्वस्थ बने रहे | यदि इसका कारण उनकी प्रतिरोधक क्षमता की मजबूती मानी जाए तो इसका कारण क्या है |
   गरीब वर्ग जीवन की  आवश्यक आवश्यकताओं  की पूर्ति के अभाव में अत्यंत संघर्षपूर्ण जीवन जीता है | यदि वो संक्रमित होता रहा तो इसका कारण प्रतिरोधक क्षमता की कमी को माना जा सकता है ,किंतु यदि सुख सुविधा के समस्त साधनों से संपन्न लोगों के भी संक्रमित होने का कारण भी यदि प्रतिरोधक क्षमता की कमी को ही माना जाएगा तो खोजना पड़ेगा कि प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती कैसे है| वैसे भी गरीब वर्ग अपेक्षाकृत कम संक्रमित हुआ है | इसका कारण कुछ ऐसा खोजना होगा ,जो संपन्न वर्ग में न हो |
     इसमें विशेष बात ये है कि संपन्न वर्ग के पास अच्छे सुख सुविधा के साधन तो हैं किंतु शारीरिक परिश्रम कम होने के कारण उन्हें भोगने की क्षमता का अभाव है | पाचनशक्ति उतनी मजबूत प्रायः नहीं होती है | साधन विहीन वर्ग के पास उन सुख सुविधाओं का अभाव है जबकि उन्हें खाने पचाने की क्षमता अच्छी है | इसलिए इन दोनों में प्रतिरोधक क्षमता कम होनी स्वाभाविक है | 
     प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अच्छा स्वादिष्ट भोजन और पाचनशक्ति दोनों की ही आवश्यकता होती है |  पौष्टिक एवं स्वादिष्ट भोजन की व्यवस्था हो तो पाचन शक्ति भी अच्छी होनी चाहिए | घर और बिस्तर अच्छा हो नींद भी अच्छी होनी चाहिए | पति या पत्नी सुंदर और एक दूसरे के प्रति समर्पित हों तो शरीर भी स्वस्थ एवं बलिष्ठ होना  चाहिए |मित्र एवं सगे संबंधी अच्छे हों तो वे अपने से छलहीन स्नेह करने वाले भी हों|जिसके जीवन में इसप्रकार के सुख सुलभ हों तथा उनका सुख भोगने की क्षमता भी हो तो प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है|शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की शक्ति के सहयोग से ही प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है| दोनों प्रकार के सुख उसी को मिलते हैं जिनका अपना समय अच्छा होता है | प्रतिरोधक क्षमता  का मतलब अच्छा समय ही होता है |                                                

लोगों की मृत्यु होने का कारण महामारी थी या चिकित्सा का अभाव !
 
     भारत को पड़ोसी देशों के साथ तीन युद्ध लड़ने पड़े उन तीनों में मिलाकर जितने लोगों की मृत्यु हुई है | उससे बहुत अधिक लोग केवल कोरोना महामारी में ही मृत्यु को प्राप्त हुए हैं|ऐसी कोई घटना भविष्य में फिर कभी न घटित हो इसलिए ये पता लगाया जाना आवश्यक है कि कोरोना महामारी के समय इतने अधिक लोगों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण  क्या रहा है | भविष्य में फिर कभी ऐसी घटना न घटित हो अथवा ऐसी किसी घटना के घटित होने पर उससे होने वाली जनधन की हानि को कम करने  के लिए इतनी बड़ी संख्या में हुई लोगों की मृत्यु का वास्तविक कारण खोजना ही होगा | 
    कुछ विद्वान ऐसी मौतों का कारण महामारी को बताते हैं,तो कुछ विद्वान लोगों में प्रतिरोधक क्षमता की कमी को मौतों का कारण मानते हैं| कुछ लोग समय पर उचित चिकित्सा  के अभाव को कारण मानते हैं|कुछ विद्वान महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में पूर्वानुमान न लगा पाने को इसका कारण इसलिए मानते हैं क्योंकि महामारी को समझने एवं इससे बचाव के लिए समय ही नहीं मिल पाया | ऐसी सभी कल्पनाओं से ऊपर उठकर भविष्य के लिए यदि ईमानदार प्रयत्न किए जाने हैं तो अनुसंधानपूर्वक वास्तविक कारणों तक पहुँचना ही होगा |
   लोगों की मृत्यु कोरोना महामारी से ही हुई है|ये विश्वासपूर्वक कहा जाना इसलिए भी संभव नहीं है क्योंकि महामारी  बीत जाने के बाद भी जब लोग सामान्य जीवन जीने लगे थे |उस समय पूर्व स्वस्थ लोग हँसते खेलते नाचते गाते चलते फिरते  सोते जागते अचानक मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे | ऐसी मौतों के होने का भी विश्वसनीय वास्तविक कारण खोजा  जाना चाहिए | 
     कोरोना काल में बड़ी संख्या में ऐसे लोगों की भी मृत्यु हुई है | जिनका प्रत्यक्ष कारण कोरोना महामारी तो नहीं थी | कुछ देशों के आपसी युद्ध हुए ,कुछ देशों में आपसी युद्ध हुए तो कुछ देशों में , हिंसक आंदोलन हुए,कुछ देशों में आतंकी घटनाएँ हुईं | ऐसी ही मार्ग दुर्घटनाएँ | हत्या या आत्म ह्त्या जैसी घटनाएँ यद्यपि हमेंशा घटित होती रहती हैं,किंतु कोरोना काल में ऐसी हिंसक घटनाओं में अन्य समय की अपेक्षा बहुत अधिक लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं |इसी समय ऐसी हिंसक घटनाएँ इतनी अधिक संख्या में क्यों  घटित हुईं | लोगों की मनोवृत्ति इतनी अधिक हिंसक होने का कारण क्या था |                                                

 महामारी भयावह है या उसे समझने का विज्ञान नहीं है ?

      महामारी का स्वरूप ही इतना भयावह था कि उसे समझना या उसके विषय में कोई भी जानकारी जुटाना या अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव ही नहीं था या फिर किए जा रहे वैज्ञानिक अनुसंधानों में ये क्षमता ही नहीं थी कि उनके द्वारा महामारी को समझना संभव हो पाता |कहीं ऐसा तो नहीं है कि जिस वैज्ञानिक प्रक्रिया का अनुशरण करके महामारी जैसे अत्यंत भयंकर महारोग को समझना संभव  ही नहीं है उसी प्रक्रिया के आधार पर महामारी को समझने के प्रयास किए जाते रहे | महामारी को ठीक ठीक समझने के लिए कोई विज्ञान है  भी या नहीं !

   पिछले कुछ सौ वर्षों से प्रत्येक सौ वर्षों के अंतराल में महामारी को आते देखा जा रहा है | हर बार जन धन की हानि होती रही है उसे कम करने या उससे पूरी तरह से बचाव करने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान भी होते  रहे हैं | उन अनुसंधानों से कुछ तो अनुभव ऐसे मिले ही होंगे जो महामारी से बचाव की दृष्टि से मददगार होने चाहिए थे ऐसी केवल आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास भी  था कि वर्तमान समय में विज्ञान इतना उन्नत है कि अब यदि महामारी आएगी भी तो उसकी पीड़ा से समाज को पहले की तरह नहीं जूझना पड़ेगा |अब तो विज्ञान बहुत तरक्की  कर चुका है |
    कोरोना काल में यह सभी ने देखा था कि वैज्ञानिकों को महामारीविज्ञान के विषय में जो जानकारी थी उसके अनुसार वे प्रयत्न पूर्वक महामारी के विषय में जो भी अनुमान या पूर्वानुमान लगाते जा रहे थे वे सबके सब गलत निकलते जा रहे थे | बार बार ऐसा क्यों हो रहा है इस विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा कोई ऐसा संतोषजनक उत्तर नहीं दिया जा सका है जिससे समाज का भय कुछ कम करने में मदद मिलती |
   महामारी संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों की कमजोरी के कारण वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में समय समय पर दिए जाते रहे वक्तव्य जब जब गलत निकलते रहे तब तब इसका कारण वैज्ञानिक अनुसंधानों की असफलता स्वीकार करने के बजाए महामारी के स्वरूप को ही परिवर्तित एवं और अधिक भयावह बता दिया जाता रहा | इससे जनता का भय और अधिक बढ़ता जा रहा है | 
    महामारी बहुत भयंकर थी यह कहना तब तक उचित नहीं होगा जब तक महामारी के विषय में हमारी जानकारी कितनी थी | यह स्पष्ट नहीं होता है | परीक्षा का प्रश्न पत्र कठिन था यह कहने का अधिकार केवल उसी विद्यार्थी को होता है जिसने पाठ्यक्रम में निर्धारित किए  गए अपने विषय को ठीक से पढ़ा हो| जिसने विषय ही न पढ़ा हो उसे जानकारी के अभाव में सब कुछ कठिन ही लगेगा | 
     इसलिए गंभीर चिंतन पूर्वक यदि सोचा जाए तो महामारी की भयावहता को तो तभी दोषी माना जा सकता है जब यह पता लगे कि महामारी विज्ञान के विषय में हमारी जानकारी कितनी थी |महामारी के स्वभाव को समझने में हम कितने प्रतिशत सफल हुए और जितने प्रतिशत सफल  हुए उसके आधार पर कोरोना महामारी के विषय में ऐसे कौन कौन से अनुमान पूर्वानुमान आदि बताए जा सके जो सच भी निकले हों | उनके द्वारा महामारी के कारण होने वाली संभावित जनधन हानि को कितने प्रतिशत बताया जा सका | यदि वे अनुसंधान न हुए होते तो इस इस प्रकार से नुक्सान की मात्रा इससे भी अधिक बढ़ सकती थी |
     ऐसा कहने के पीछे हमारे पास आधारभूत कुछ ऐसे अनुसंधान जनित अनुभव हैं जिनसे ऐसा लगता है कि महामारी को ठीक ठीक समझना एवं उसके विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव है |जिन अनुसंधानों से महामारी का कोई संबंध ही नहीं है उनसे महामारी को समझा जाना कैसे संभव है |महामारी के विषय में जो भी अनुसंधान किए गए उनकी सार्थकता  तभी है जब उनके आधार पर महामारी के विषय में जुटाई गई जानकारी या लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि सही सिद्ध हों  |
    इसका प्रभाव वैक्सीन लगाते समय समाज में दिखाई भी पड़ा !समाज का एक वर्ग  शुरू में वैक्सीन पर विश्वास करने को ही नहीं तैयार नहीं था |समाज को लगता था कि जिन वैज्ञानिकों के द्वारा रोग को ही नहीं समझा जा सका वे उसकी कोई औषधि टीका आदि का निर्माण कैसे कर सकते हैं जबकि चिकित्सा सिद्धांत के अनुसार किसी भी रोग से बचाव या मुक्ति दिलाने के लिए किसी औषधि का निर्माण करना तभी संभव है जब उस रोग की प्रकृति को भली प्रकार समझा जा चुका हो |     

 
                                          कहाँ है पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान !  
     पूर्वानुमान लगाने का मतलब भविष्य की घटनाओं को देखना या उनके विषय में पता लगाना है | भविष्य की घटनाएँ देखने के लिए किसी ऐसे विज्ञान की आवश्यकता होती है | जिससे भविष्य में झाँका जा सके | इसके बिना भविष्य में  घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सकते हैं |
    जिस प्रकार से कहीं जाने के लिए कोई ट्रेन पकड़नी हो तो ट्रेन कब आएगी यह जानने के लिए या तो स्टेशन पर पहुँचकर ट्रेन के आने की तब तक प्रतीक्षा करते रहनी पड़ती है जब तक ट्रेन न आवे या फिर रेलवे समयसारिणी देखकर ट्रेन के आने का समय पता लगाकर उसीसमय स्टेशन पर पहुँचे | जो समय ट्रेन के आने का हो तो ट्रेन की प्रतीक्षा में बहुत समय प्रयत्न पूर्वक निरर्थक नहीं बर्बाद करना पड़ता है| इसी प्रकार से समय की जानकारी यदि हो तो कार्य समय पर ही प्रारंभ कर लिया जाता है | सफलता के लिए बार बार प्रयत्न नहीं करते रहना पड़ता है |समाज के तेजी से रोगी होने का कारण यदि प्रतिरोधक क्षमता की कमी को माना जाए तो जिस साधन संपन्नवर्ग का खान पान रहन सहन आगे से आगे औषधि सेवन आदि सबकुछ स्वास्थ्य के अनुकूल ही होता है| इसका निर्णय उनके पारिवारिक चिकित्सक लेते हैं |  जन्म से लेकर सारा जीवन चिकित्सकों की देख रेख में ही बीतता है | उस वर्ग में प्रतिरोधक क्षमता की कमी होने का कारण क्या है | इस वर्ग के अधिक रोगी होने का कारण क्या रहा है |  दूसरा संसाधन विहीन वर्ग जो हमेंशा अभावों में ही जीवन जीता रहा|मलिन बस्तियों में रहन सहन अभावयुक्त खानपान रहा | इस वर्ग को जहाँ जैसा जो कुछ मिलता रहा | वो वही खाकर पले बढ़े | उसमें ऐसी प्रतिरोधक क्षमता कैसे तैयार हुई कि वो वर्ग महामारी से  उतना  रोगी  नहीं हुआ |    

                                       पूर्वानुमान लगाने के विज्ञान  के अभाव में   
   16 जून 2013 को उत्तराखंड में बादल फटने से आई विनाशकारी बाढ़ ने कई शहरों और गाँवों को तबाह कर दिया था | इस बाढ़ में हज़ारों की संख्या में लोग बह गए |पशु बह गए,गाँव बह गए | इतनी बड़ी घटना घटित होने जा रही है | एक दिन पहले तक इसके विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था | 
    22 अप्रैल 2015 को नेपाल और भारत में भीषण हिंसक तूफ़ान आया था ! इसमें सैकड़ों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए थे | ऐसे ही नेपाल में 25  अप्रैल 2015 को भीषण भूकंप घटित हुआ था | उसमें भी हजारों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए थे | निकट भविष्य में इतनी बड़ी हिंसक घटनाएँ घटित होने वाली हैं | इसके विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | 
      14 अक्टूबर 2014 को हुदहुद चक्रवात के कारण ,28 जून 2015 को वाराणसी में भारी बारिश के कारण तथा 16 जुलाई 2015 को भी वाराणसी में भीषण बर्षात के कारण प्रधानमंत्री जी की सभाएँ टालनी पड़ीं |ऐसी घटनाओं के   विषय  में कोई  पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था |  
     2 मई 2018 की रात्रि को उत्तर प्रदेश बिहार आदि में भीषण तूफ़ान आया | जिसमें सैकड़ों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए | इतनी बड़ी हिंसक घटना आज की रात्रि में  घटित  होने वाली है | इसके   विषय  में कोई  पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | 
    ऐसी अनेकों प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती रहती हैं | उनमें जनधन हानि भी होती है | उनके विषय में या तो पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सका होता है या फिर जो लगाया जाता है वो गलत निकल जाता है | उसके गलत निकलने का कारण पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी विज्ञान का न होना होता है किंतु  पूर्वानुमान गलत निकलने या पूर्वानुमान न लगा पाने के  लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार बताया जाता है | 
     कोरोना महामारी को ही लें तो भारत में 2019 की दीपावली बड़ी धूम धाम से मनाई गई थी | किसी को इस बात की आशंका ही नहीं थी कि अगले कुछ महीनों में इतनी बड़ी महामारी से हाहाकार मच जाएगा |उससे इतनी अधिक  संख्या में लोग संक्रमित हो जाएँगे या इतने लोग मृत्यु को प्राप्त जाएँगे | पूर्वानुमानविज्ञान के अभाव में इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया  जा सका था | 
     महामारीविशेषज्ञों ने महामारी की लहरों के विषय में बार बार पूर्वानुमान लगाए जाते रहे | ये गलत तो विज्ञान के अभाव में निकलते रहे किंतु इसके लिए महामारी के स्वरूप परिवर्तन को जिम्मेदार बताया जाता रहा है | 
    कुल मिलाकर भविष्य में कब किसप्रकार की कितनी भयंकर घटना से पीड़ित होना पड़ सकता है| इसे पता लगाने के लिए अभी तक विश्व के पास कोई वैज्ञानिक विकल्प नहीं है | 
     विज्ञान के द्वारा मनुष्य जीवन की कठिनाइयों को कम करके सुख सुविधा संपन्न बनाने के लिए इतने सारे अनुसंधान किए गए हैं,किंतु  प्राकृतिक आपदाओं एवं  महामारियों से मनुष्य जीवन को सुरक्षित बचाने के लिए ऐसा क्या किया जा सका है | जिससे महामारी पीड़ितों को कुछ तो मदद पहुँचाई जा सकी हो | यदि जीवन ही नहीं रहेगा  तो उन सुख सुविधाओं का क्या होगा | जो इतने उन्नत विज्ञान के द्वारा  मनुष्यों के लिए खोजी गई हैं | 
    इसीलिए हमारे अनुसंधानों का पहला उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं  महामारियों तथा सभीप्रकार के संकटों से से मनुष्य जीवन को सुरक्षित बचाना है| वैदिकविज्ञान के आधार पर मैं पिछले 35 वर्षों से जो अनुसंधान करता आ रहा हूँ | उससे प्राप्त अनुभवों के आधार पर मेरा विश्वास है कि अनुसंधान पूर्वक प्रकृति के स्वभाव को समझा जा सकता है तथा मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
                                              अनुसंधानों  की  उपयोगिता  
 
         कोरोनामहामारी में लोगों के संक्रमित होने की गति,संक्रमितों के स्वस्थ होने की गति  वैक्सीन लेने वालों की गति आदि के अनुसार महामारी की लहरों के आने और जाने के विषय में जो अंदाजे लगाए जाते रहे |वे सही नहीं निकलते रहे | वैसे भी इसके आधार पर भविष्य में आने वाली किसी महामारी के विषय में कोई पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है ,क्योंकि महामारी के प्रारंभ होने से पहले न तो कोई संक्रमित होता है और न संक्रमितों के स्वस्थ होने के उदाहरण मिलते हैं न वैक्सीन लेने वालों की संख्या होती है| ऐसी स्थिति में महामारी प्रारंभ होने से पूर्व महामारी आने के विषय में पूर्वानुमान लगा लेने की कल्पना कैसे की जा सकती है | 
    मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है | भूकंपों के आने के विषय में चार छै महीने में केवल इतना बोल दिया जाता है कि हिमालय के आसपास कोई बड़ा भूकंप आने वाला है | इसकी न कोई तारीख न कोई समय और ही कोई वैज्ञानिक आधार होता है | इसलिए ऐसी बातें समाज के मन में भय पैदा करती हैं | 
    विश्व के अधिकांश देशों में ऐसे प्राकृतिक विषयों में अनुसंधानों के लिए सरकारों ने मंत्रालय बना रखे हैं | जिनमें ऐसी घटनाओं के विषय में अनुसंधानों के नाम पर जो कुछ भी किया जाता हो वो मुझे नहीं पता है,किंतु  उनपर खर्च होने वाला धन उस देश की जनता का होता है |जो ऐसे अनुसंधानों से इतनी अपेक्षा रखती है कि जब ऐसी हिंसक घटनाएँ घटित होती हैं तो देशवासियों की सुरक्षा की दृष्टि से वे अनुसंधान कुछ तो सहायक हों | 
     ऐसे अनुसंधानों से कोरोना महामारी को समझना ही संभव नहीं हो पाया तो समाज की  दृष्टि से वे कितने सहायक सिद्ध हो सके होंगे | इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है |इसलिए प्राकृतिक घटनाओं एवं महामारियों से संबंधित अनुसंधानों से अभीतक क्या कुछ खोजा जा सका है | वो तो उन्हें ही पता होगा जिन्होंने किया होगा !क्योंकि समाज की अपेक्षा की कसौटी पर ऐसे अनुसंधान खरे नहीं उतर पा रहे हैं | इसलिए  ऐसे विषयों पर नए सिरे से सोचे जाने की आवश्यकता है |
      अनुसंधानों की  कठिनाइयाँ 
     किसी भी अनुसंधान के लिए  विज्ञान  की आवश्यकता तो होती ही है |प्रकृति विषयक अनुसंधानों के लिए प्रकृति विज्ञान की आवश्यकता है |उसके बिना प्राकृतिक घटनाओं को समझना संभव नहीं है |ऐसे ही भविष्य विज्ञान के बिना भविष्यसंबंधी घटनाओं को समझना संभव नहीं है | इसके बिना उसके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सकते हैं | पूर्वानुमानों का मतलब ही भविष्य में झाँकना होता है | 
    किसी भी घटना को समझने के लिए उसकी उत्पत्ति का कारण खोजना होगा !उसके आधार पर उस घटना की प्रवृत्ति पहचाननी होगी |उस कारण और प्रवृत्ति के आधार पर उस घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाना होगा | वह पूर्वानुमान जितने प्रतिशत सच निकलेगा उतने ही प्रतिशत वो कारण सच होगा जिसे उस घटना के घटित होने के लिए जिम्मेदार माना गया है | उस घटना की प्रवृत्ति जो पहचानी गई है | वह भी उतने ही प्रतिशत सच होगी जितने प्रतिशत पूर्वानुमान सच होगा | 
     इसलिए भूकंप महामारी वर्षा तूफ़ान जैसी जिस भी घटना के विषय में हमारे द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान सच न निकल पा रहे हों | इसका मतलब हम उस घटना के घटित होने का कारण ही हम समझ नहीं पाए हैं |उस घटना के घटित होने का कारण क्या है | उस घटना की प्रवृत्ति क्या है | इस विषय में हमने जो कल्पनाएँ की हैं वे सच नहीं हैं |जिन कारणों कल्पनाओं आदि के अनुसार पूर्वानुमान लगाने पर पूर्वानुमान सच निकलें तो उन कल्पनाओं को सच माना जा सकता है | 
    भूकंपों के आने का कारण भूमिगत प्लेटें टकराना है या कुछ और कैसे पता लगे !पूर्वानुमान लगाने में सफलता पाए  बिना  निश्चित तौर पर कुछ कहा जाना संभव नहीं होता है | ऐसी बहुत सारी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में कारणों की कल्पना कर ली जाती है,किंतु उनके आधार पर पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाता है |जो लगाए भी जाते हैं| वे गलत निकल जाते हैं |इसका मतलब उस घटना के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार माना गया है वे नहीं हैं | उनके अतिरिक्त कुछ और दूसरे ही होंगे | जिन्हें खोजा नहीं जा सका है | ऐसी आधारविहीन कल्पनाएँ अनेकों अनुसंधानों को दशकों शतकों तक उलझाए रहती हैं | उन अनुसंधानों की सच्चाई समझना संभव ही नहीं हो पाता है |   
    भूकंप वर्षा तूफ़ान महामारी जैसी घटनाओं के घटित होने का कारण मनुष्य नहीं हैं | ऐसी घटनाएँ तो स्वयं ही घटित होती हैं | इसका मतलब है कि ऐसी घटनाएँ  उस समय भी घटित होती रही होंगी जब संसार में मनुष्यों का पदार्पण नहीं हुआ था | ऐसा विश्वास इसलिए किया जाना चाहिए ,क्योंकि प्राकृतिक घटनाओं का संबंध समय से होता है और समय तो उस समय भी था | 
      घनघोर जंगलों में, पहाड़ों में ,गहरे समुद्रों में या सुदूर आकाश में  ऐसे बहुत स्थान होंगे | जहाँ दूर से देखने पर सब कुछ शांत दिखाई देता है | इसका कारण ये नहीं है कि वहाँ भयानक घटनाएँ नहीं घटित होती हैं | वहाँ भी ऐसी भयानक घटनाएँ घटित हो  रही होंगी ,किंतु ऐसे स्थान मनुष्यों की पहुँच से दूर हैं|इसलिए उन घटनाओं के विषय में पता नहीं लग पाता  है|यदि मनुष्यों का वहाँ भी आना जाना प्रारंभ हो जाए तो उन  घटनाओं की चिंता भी मनुष्यों को सताने लगेगी | ऐसी घटनाओं पर मनुष्यों का कोई वश नहीं होता है | 

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