अनुसंधानों के उद्देश्य और परिणामों में अंतर !
वर्तमान समय में प्राकृतिक आपदाओं महामारियों आदि को अचानक घटित होते देखा जाता है | जिससे जनधन को सुरक्षित करने के लिए समय ही नहीं मिल पाता है | बड़ी संख्या में लोग जब पीड़ित होने लगते हैं | उस समय उन घटनाओं को समझने का प्रयास शुरू किया जाता है, तब तक जो होना होता है वो हो जाता है |ऐसा तब होते देखा जा रहा है जब ऐसी घटनाओं के विषय में निरंतर अनुसंधान होते रहते हैं | उनपर भारी भरकम धनराशि खर्च हो जाती है उसकी सार्थकता आखिर क्या रह जाती है |
अनुसंधानों के द्वारा मनुष्यों के जितने प्रतिशत संकटों को घटाकर उनकी सुख सुविधाओं को बढ़ाया जा सके उन अनुसंधानों की उतनी ही सार्थकता होती है |इसी प्रक्रिया से समाज की अपेक्षाओं के आधार पर सभी अनुसंधानों का परीक्षण होना चाहिए | सभी अनुसंधानों का जनहित की इसी कसौटी पर कस कर परीक्षण किया जाना चाहिए |
भूकंपों के अचानक आ जाने से जनधन का नुक्सान होता है| ऐसा न हो इसके लिए भूकंपों के आने के विषय में पूर्वानुमान लगाना आवश्यक माना गया है|पूर्वानुमान लगाने के लिए पूर्वानुमान लगाने के लिए अनुसंधान किए गए | उनसे पता लगा कि भूगर्भगत जिन टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने से या भूमिगत ऊर्जा बाहर निकलने से भूकंप आते हैं|
जिससमाज समाज का धन भूकंपों से बचाव के लिए भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगाने संबंधी अनुसंधाओं पर व्यय किया गया था | उस समाज को भूकंप संबंधी अनुसंधानों से ऐसी क्या मदद पहुँचाई जा सकी| जिससे मनुष्यों में व्याप्त भूकंप संबंधी भय को कम किया जा सके |
इसीप्रकार से आँधी तूफानों के आने से जो जनधन का नुक्सान होता है | समाज की सुरक्षा के लिए आँधी तूफानों के विषय में पूर्वानुमान लगाने की आवश्यकता पड़ी | इसके लिए यह जानना आवश्यक है कि आँधी तूफानों के बनने का कारण क्या है | यह खोजने के लिए किए गए अनुसंधानों से पता लगा कि पृथ्वी की सतह गर्म होने से हवा भी गर्म हो जाती है |गर्म हवा ठंडी हवा की अपेक्षा हल्की होती है इसलिए ऊपर उठती है और फैलती है. उसकी जगह लेने के लिए ठंडी हवा आ जाती है. इस तरह हवा चलती है |ऐसा बताया गया किंतु समाज की जिज्ञासा तो आँधी तूफानों के विषय में पूर्वानुमान जानने की है | अनुसंधान आँधी तूफानों के आने के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए किए गए थे | उनसे पूर्वानुमान तो पता नहीं लगे | इससे ऐसे अनुसंधानों की सार्थकता सिद्ध नहीं हो पायी |
ऐसे ही वर्षा होने के विषय में कहा जाता है कि बादल के भीतर, पानी की बूंदें एक दूसरे पर संघनित होती हैं, जिससे बूंदें बढ़ती हैं। जब ये पानी की बूंदें इतनी भारी हो जाती हैं कि बादलों में टिके नहीं रह पातीं, तो वे बारिश के रूप में पृथ्वी पर गिरती हैं ।
इस काल्पनिक कहानी का सच तो तभी सामने आ पाएगा जब इसके आधार पर सूखा वर्षा या बाढ़ के विषय में सही पूर्वानुमान लगाकर समाज को सुरक्षित एवं चिंता मुक्त किया जा सके|
वायुप्रदूषण बढ़ने का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है| इसलिए वायुप्रदूषण से समाज को सुरक्षित बचाने के लिए वायु प्रदूषण बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए जो अनुसंधान किए गए !उनमें वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार माना गया !उन कारणों से संबंधित कारोबार करने वालों को आर्थिक रूप से दंडित किया जाने लगा !किंतु अनुसंधानों के द्वारा वायुप्रदूषण बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका | अनुसंधान तो पूर्वानुमान जानने के लिए ही किए गए थे | इसके बिना ऐसे अनुसंधानों से न तो मनुष्यों की सुरक्षा में कोई सहयोग मिल सकेगा और न ही ये विश्वास किया जा सकेगा कि वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिन कारकों को जिम्मेदार माना गया है वे सच हैं |
कोरोना महामारी पैदा होने या उसके संक्रमण बढ़ने और घटने के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार बताया जाता रहा ! उनके आधार पर ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान तो नहीं लगाया जा सका है | इसके बिना उन काल्पनिक कारणों को कैसे विश्वसनीय मान लिया जाए जिन्हें महामारी पैदा होने के लिए जिम्मेदार माना गया था |
कुलमिलाकर ऐसी जितनी भी घटनाओं के विषय में जितने भी कारणों को जिम्मेदार माना गया है | उन कारणों के आधार पर उन घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना यदि संभव नहीं हो पाया है | उन अनुसंधानों के द्वारा समाज को सुरक्षित किया जाना यदि संभव नहीं हो पाया है तो ऐसे अनुसंधानों की सार्थकता ही क्या है क्योंकि अनुसंधान तो समाज की सुरक्षा के उद्देश्य से ही किए जाते हैं | इसीलिए ऐसे अनुसंधानों पर जनधन की भारी भरकम राशि व्यय की जाती है |
भूमिका
महामारी किसी बाढ़ की तरह आई और चली गई ,अपने साथ जितना जो कुछ बहाकर ले जा सकती ले गई !जितनी जनधन हानि होनी थी वो हुई |महामारियाँ अचानक ही आती हैं और उनके आने पर जन धन का नुक्सान होता है |ये सबको पता है |कोरोना महामारी भी अचानक ही आई है और अपने स्वभाव के अनुसार ही उसने जनधन का नुक्सान किया है | वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो इसमें असंख्य संक्रमित हुए और करोड़ों लोगों की मृत्यु हुई है | केवल भारत की दृष्टि से देखा जाए तो भी बहुत बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए हैं और लाखों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं |विगत कुछ दशकों में भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ तीन युद्ध लड़ने पड़े | उनमें बहुत लोगों की मृत्यु हुई है | इसका दुःख तो है किंतु मन में एक बात तो आती है कि अपनी युद्ध संबंधी मजबूत तैयारियों के बल पर समय रहते शत्रु के षड्यंत्रों को न केवल समझा जा सका प्रत्युत पहले से करके रखी गई अपनी मजबूत तैयारियों के बलपर दुश्मनों के मनोबल को कुचलकर देश के बाहर खदेड़ा जा सका है| ऐसी घटनाओं से सीख लेते हुए वर्तमान समय में अपनी सामारिक तैयारियाँ इतनी मजबूत कर ली गई हैं कि दुश्मन देशों के लिए अपना प्यारा भारत अजेय हो गया है |
विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि तीनों युद्धों में मिलाकर जो लोग मृत्यु को प्राप्त हुए उनसे सीख लेते हुए भारत ने अजेय सामरिक तैयारियाँ करके रखी हैं,किंतु उन तीनों युद्धों में मिलाकर जितने लोगों की मृत्यु हुई थी | उनसे बहुत अधिक लोग केवल कोरोना महामारी में ही मृत्यु को प्राप्त हुए हैं |इतना अधिक आर्थिक नुक्सान हुआ है |पहले भी महामारियाँ आती रही हैं |महामारियों से सुरक्षा के लिए पहले से अनुसंधान होते रहे हैं |उनके आधार पर महामारी से बचाव के लिए पहले से कितनी मजबूत तैयारियाँ करके रखी गई थीं| उनसे महामारियों को लेकर अनुसंधानजनित जो अनुभव प्राप्त होते रहे ! कोरोना महामारी के समय जनधन की सुरक्षा की दृष्टि से वे कितने सहयोगी सिद्ध हुए | वे अनुसंधान यदि उस समय न किए जाते रहे होते तो कोरोना महामारी से जितना नुक्सान अभी हुआ है क्या उससे भी अधिक नुक्सान हो सकता था |आखिर उन अनुसंधानों से ऐसी क्या मदद मिल सकी है | जिससे महामारी से जूझते समाज को सुरक्षित किया जा सका हो |
वर्तमान समय के उन्नत विज्ञान के द्वारा महामारी के विषय में न तो सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सका और न ही उसकी लहरों के आने जाने के विषय में ही सही पूर्वानुमान लगाए जा सके हैं | जितने पूर्वानुमान लगाए भी जाते रहे वे गलत निकलते रहे | ऐसे ही महामारी प्राकृतिक है या मनुष्यकृत ! इसका विस्तार कितना है ! प्रसार माध्यम क्या है ! अंतर्गम्यता कितनी है |इस पर तापमान का प्रभाव पड़ता है या नहीं ! मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं !वायु प्रदूषण का प्रभाव पड़ता है या नहीं! भूकंपों का प्रभाव पड़ता है या नहीं,आदि ऐसे अनेकों महत्वपूर्ण प्रश्न हैं | जिनका उत्तर खोजे बिना महामारी को समझना संभव ही नहीं है |
जिन अनुसंधानों के द्वारा महामारी को समझा ही नहीं जा सका और जो समझा भी गया वो गलत निकलता रहा | ऐसी स्थिति में महामारी के विषय में जो अनुमान लगाए गए वे कितने विश्वास करने योग्य हो सकते हैं | किस आधार पर यह कहा जाता रहा कि महामारी स्वरूप बदल रही है | महामारी का वायरस शरीर के अंदर छिपकर बैठ जाता है ! यह वायरस संक्रमितों के संपर्क में रहने से फैलता है |तापमान कम होने पर फैलता है | कुछ औषधियों के सेवन से लाभ होता है |महामारी को यदि समझा ही नहीं जा सका तो ये सब किस आधार पर बताया जाता रहा है | प्लाज्माथैरेपी को पहले हितकर बताया गया बाद में इससे मना कर दिया गया |वैक्सीन बनाई गई लोगों को लगाई जाती रही |उसके विषय में तमाम तर्क वितर्क होते सुने गए |रेमडीसिविर के विषय में भी ऐसा ही संशय बना रहा |
इतने बड़ी महामारी से निपटने की इतनी दुर्बल तैयारी को देखसुन कर यह संशय होना स्वाभाविक ही है कि महामारी के विषय में जो जो कुछ बताया जाता रहा वो कितना विश्वसनीय था | आखिर किन अनुसंधानों से पता लगाया गया होगा कोरोना वायरस का स्वभाव क्या है या वो छूने से फैलता है आदि और भी बहुत कुछ |
वर्तमान समय में विज्ञान ने बहुत उन्नति कर ली है | ऐसे उन्नत विज्ञान से महामारी को समझने में या उसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में जो सफलता मिली है वो जितने प्रतिशत सच निकली है | महामारी के विषय में जो भी बातें बताई जाती रहीं उनपर उतने प्रतिशत ही विश्वास किया जाना चाहिए |
कुलमिलाकर वैज्ञानिक अनुसंधानों का लक्ष्य मनुष्यों के जीवन को सुरक्षित एवं सुखी बनाना है तो प्रत्येक अनुसंधान को इस कसौटी पर कसा जाना चाहिए | वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा बहुत सारी सुख सुविधाओं के साधन जुटा लिए जाएँ बहुत तरक्की कर ली जाए| इस सबके द्वारा कितनी भी उपलब्धियाँ अर्जित कर ली जाएँ | उनका लाभ उठाने के लिए या उन सुख सुविधाओं को भोगने के लिए मनुष्यों को सुरक्षित और स्वस्थ रखा जाना अत्यंत आवश्यक है|कोरोना जैसी महामारियाँ यदि ऐसे ही आती रहीं और इतने बड़े समुदाय को यूँ ही निगलती रहीं | इसलिए ऐसी आपदाओं से मनुष्यों को सुरक्षित बचाने के लिए पहले मजबूत प्रबंध नहीं किए जाने आवश्यक हैं |इसके लिए उदारता पूर्वक उन सभी विकल्पों पर भी बिचार किया जाना चाहिए | जो महामारी जैसी समस्त प्राकृतिक आपदाओं को समझने में सहायक हो सकते हों |
इसके बल पर हमें भरोसा था कि महामारी से हम सुरक्षित बचा लिए जाएँगे ,किंतु महामारी से होने वाली जनहानि को विज्ञान के द्वारा न तो रोका जा सका और न ही कम किया जा सका| महामारी उन मनुष्यों को वर्षों तक रौंदती रही जिन्हें सुख सुविधा पहुँचाने के लिए न जाने कितने संसाधनों का आविष्कार किया है|मनुष्यजीवन की कठिनाइयाँ कम करके उसे सरल बनाने के लिए जिस विज्ञान ने न जाने कितनी दुर्गम गुत्थियों को सुलझाया है| सफलता के न जाने कितने शिखर चूम लिए हैं |वही विज्ञान महामारी जैसे इतने भयंकर संकट की भनक तक नहीं पा सका कि इतनी बड़ी महामारी आने वाली है | ये मनुष्यमात्र के लिए सबसे अधिक चिंता की बात है | मनुष्य जीवन ही सुरक्षित नहीं बचेगा तो उन सुख संसाधनों का क्या होगा जिनका मनुष्यों को सुखी करने के लिए आविष्कार किया गया है |
उन अनुभवों के बिना कोरोना महामारी से क्या इससे भी अधिक नुक्सान हो सकता था |आखिर उनसे ऐसी क्या मदद मिली तथा महामारी से सुरक्षा की दृष्टि से वे अनुभव कितने सहयोगी सिद्ध हुए !
उनसे बचाव की दृष्टि से कितनी मदद मिल सकी | भविष्य में ऐसी क्या अनुसंधान योजना है जो
वे महामारी के समय बचाव की दृष्टि से कितनी काम आ सकीं
उससे निपटने के लिए पहले से क्या तैयारियाँ करके रखी गई थीं
किंतु जितने लोगों की मृत्यु हुई है |
महामारियों में ऐसा होता ही है इसलिए इसमें नया कुछ नहीं है |
आधुनिक विज्ञान के जन्म होने के हजारों वर्ष पहले से जिस प्राचीन विज्ञान
ने यह जिम्मेदारी सँभाल रखी थी |उसका प्रयोग करके भी देखा जाना चाहिए संभव
है कि महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य समाज को सुरक्षित बचाने में
सनातनविज्ञान से कुछ मदद मिल सके |
प्राचीन काल में जब उपग्रहों रडारों की व्यवस्था नहीं थी | सुपर कंप्यूटर नहीं थे |रोगों
का परीक्षण करने के लिए ऐसे प्रभावी चिकित्सा सहायक यंत्र नहीं थे|
दूरसंचार माध्यम नहीं थे, यातायात के साधन नहीं थे | नए प्रकार की सोच रखने
वाले आधुनिक चिकित्सक नहीं थे| इतने बड़े बड़े चिकित्सालय नहीं थे |वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप आदि आपदाएँ एवं महामारियाँ तो उस प्राचीनकाल में भी घटित होती रही होंगी|जीवन को सुरक्षित बचाने की चुनौती तो तब भी कठिन होती रही होगी |इतने
सारे अभावों के बाद भी प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से लोगों की
सुरक्षा उस युग में कैसे की जाती रही होगी | जिससे कम जनसंख्या के समय में भी सृष्टि का विस्तार निरंतर होता चला आ रहा है |
इससे
ये विश्वास किया जाना चाहिए कि उस युग में जिस प्राचीनविज्ञान के द्वारा
प्राकृतिक आपदाओं महामारियों आदि से मनुष्यों की सुरक्षा होती रही होगी | उसके
द्वारा अभी भी प्राकृतिक आपदाओं महामारियों आदि से सुरक्षा की जा सकती है
क्या ये प्रयोगपूर्वक अनुभव किया जाना चाहिए |उस प्राचीन वैज्ञानिकपद्धति
के आधार पर अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता है |
महामारी तथा मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में यदि प्राचीन काल में सही सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता था तो अब क्यों नहीं ! इसी उद्देश्य से उसी प्राचीनवैज्ञानिक विधा के अनुशार पिछले 35 वर्षों से मैं अनुसंधान करता
आ रहा हूँ और वह प्राचीन विज्ञान अनुभव में अभी भी सही निकलते देखा जा रहा
है | इससे ऐसी आपदाओं के विषय में सही पूर्वानुमान तो लगाया ही जा सकता है
|इसके साथ ही साथ प्राचीन याज्ञिक प्रयोगों से ऐसे प्राकृतिक संकटों के
वेग को भी कम होते अनुभव किया जा रहा है |
वैज्ञानिकों के द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों का उद्देश्य भविष्य में होने वाले ऐसे रोगों महारोगों के विषय में आगे
से आगे अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना होता है | स्वास्थ्य संबंधी प्रतिकूल परिस्थिति पैदा होने पर
उससे समाज को सावधान करना होता है !बचाव के लिए आगे से आगे उपाय खोजना होता है ! समाज को उन उपायों से अवगत कराना ! ऐसे रोगों महारोगों से मुक्ति
दिलाने के लिए चिकित्सा खोजना,औषधीय द्रव्यों का संग्रह करना, औषधियों का
निर्माण करना ,औषधियों को जन जन तक पहुँचाने की व्यवस्था करना आदि होता है| वैज्ञानिकों को ऐसी जिम्मेदारियाँ
निभाने के लिए अग्रिम तैयारियाँ करके रखनी होती हैं |
कोरोना
महामारी आने से पहले भी ऐसा होता रहा होगा|वे पूर्वकृत तैयारियाँ कितनी
सार्थक रहीं ये तभी पता लग पता है जब महामारी या ऐसा कोई स्वास्थ्य संकट
उपस्थित होता है| कोरोना महामारी आने पर पहले की गई अनुसंधानजनित तैयारियाँ
महामारी पीड़ितों के कितने काम आ सकीं ! इसपर बिचार किए जाने की आवश्यकता है |
कोरोना के समय चिकित्सकों ने जो जो समझाया उसे सच मानकर उसका पालन किया गया |महामारी के विषय में जो
अनुमान पूर्वानुमान आदि बताए गए उन पर भरोसा किया गया |उन्होंने
संक्रमितों को तुरंत अस्पताल ले जाने के लिए कहा वैसा ही किया गया |
उन्होंने प्लाज्मा थैरेपी को महामारी से मुक्ति दिलाने में सक्षम बताया
! तो प्लाज्मा थैरेपी को अपनाया जाने लगा | ऐसे ही रेमडेसिविर इंजेक्शन को लाभप्रद बताया गया |उस पर भरोसा किया गया | कोविड नियमों के पालन के लिए प्रेरित किया गया तो समाज बड़ी निष्ठा के साथ उन नियमों का पालन करता रहा ! चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा जिन जिन औषधियों आहारों व्यवहारों उपायों आदि को बताया वो सब कुछ करने के बाद भी कोरोना
महामारी से जनधन का इतना अधिक नुक्सान होते जाने का कारण क्या था | ये
मनुष्यकृत प्रयासों की असफलता के कारण ही अस्पतालों से लेकर श्मशानों तक
में जगह नहीं बची थी | चिकित्सा संबंधी
संसाधनों से संपन्न अत्यंत विकसित देशों प्रदेशों नगरों महानगरों के अत्यंत
उन्नत अस्पतालों में वेंटिलेटर पड़े रोगियों की मृत्यु हो रही थी | साधन
संपन्न लोग अत्यंत उन्नत चिकित्सा सेवाओं
का लाभ लेते हुए वेंटीलेटरों पर पड़े पड़े प्राण छोड़ रहे थे |आखिर चूक कहाँ
हुई है | पता तो लगना चाहिए |
इतना उन्नत विज्ञान है, इतने विद्वान एवं अनुभवशील वैज्ञानिक हैं |उन्होंने महामारी के समय जो जो कुछ करने को कहा वो सब कुछ किया गया | इसके
बाद भी महामारी में जनधन का इतना बड़ा नुक्सान हुआ | इसके लिए कौन कितना
जिम्मेदार है|क्या जनता से कोई चूक हुई है या सरकारों से या वैज्ञानिकों से !महामारी से सुरक्षित रहने
के लिए जनता को ऐसा क्या करना चाहिए था,जो जनता के द्वारा नहीं किया जा
सका | सरकारों को ऐसा क्या करना चाहिए था जिसे करने में सरकारें असफल रहीं | जिसके कारण महामारी से इतना बड़ा नुक्सान हुआ है |
महामारी के रूप में इतनी बड़ी दुर्घटना घटित होने के बाद जिम्मेदारी तो तय
होनी ही चाहिए ,ताकि भविष्य के लिए पहले से कुछ और अच्छी तैयारियाँ करके
रखी जा सकें |
बिचारणीय विषय यह है कि कोरोना महामारी के विषय में क्या किया जा सका और
क्या नहीं वो बात बीत गई उससे जनधन को जो नुक्सान होना था वो हो गया,अब वो
तो वापस लौटेगा नहीं| वैज्ञानिकों को कोरोना महामारी के समय ऐसे क्या अनुभव हुए
जिनसे भविष्य की महामारियों में मदद
मिल सकती है |उन अनुभवों का संचय पूर्वक उपयोग किया जाना चाहिए |
मेरा विनम्र निवेदन !
महामारी से इतना तो समझ में आ ही जाना चाहिए कि रिसर्च करने का मतलब कुछ भी करना या कुछ भी कह देना नहीं होता है !रिसर्च
सही दिशा में हो, सही लक्ष्य लेकर हो उससे जो परिणाम निकलें उनका उस
व्यक्ति वस्तु स्थान घटना आदि से कुछ तो संबंध सिद्ध हो |
जिससे उन परिणामों के आधार पर आगे के लिए भी जो पूर्वानुमान लगाए जा रहे
हों वे सही निकलें !निरर्थक रूप से कुछ भी करने लगने को रिसर्च कैसे कहा जा
सकता है |
कुछ दृष्टिहीन (अंधे) लोगों को एक रिसर्च का काम सौंपा गया !जिसमें पता लगाना था कि "हाथी कैसा होता है !"उन्होंने हाथी को कभी देखा नहीं था और न ही उसके विषय में कभी कुछ सुना था | हाथी कैसा होता है यह पता करने के लिए उन्होंने हाथी को छुआ तो जिसका हाथ हाथी के जिस अंग पर पड़ा उसे लगा कि हाथी वैसा ही है | जिसका हाथ हाथी
के पैर पर पड़ा उसे हाथी खंभे जैसा लगा !पेट पर जिसका हाथ पड़ा उसे हाथी
पहाड़ जैसा लगा | ऐसे ही जिसका हाथ जिस अंग पर पड़ा उसने हाथी को वैसा ही
समझा | इसी प्रकार से सभी ने अपने अपने अनुभवों का संग्रह किया गया !जिससे
एक थीसिस तो लिख दी गई, किंतु उस पूरे शोधप्रबंध को पढ़कर यह निष्कर्ष नहीं
निकाला
जा सका कि हाथी वास्तव में होता कैसा है |
इसलिए उन्हीं लोगों को रिसर्च
करने के लिए एक अवसर और दिया गया | उन्होंने फिर हाथी के भिन्न भिन्न
अंगों पर हाथ रखे |अबकी बार उनके हाथ कुछ दूसरे अंगों पर पड़े | इसलिए अबकी
अनुभव भी पहले की अपेक्षा अलग आए | पहले के शोध प्रबंध से इस शोध प्रबंध की विषयवस्तु में बहुत
अंतर आ गया | जिसने हाथी को पहले खंभे
जैसा माना था अबकी उसके हाथ में हाथी की पूँछ पड़ी तो उसे वैसा अनुभव हुआ |
ऐसे ही पेट पर हाथ पड़ने से जिसने पहले हाथी को पहाड़ जैसा माना था | उसके
हाथ में अबकी बार हाथी की सूँड लगी | इसलिए अबकी बार उसे हाथी का अनुभव अजगर जैसा
हुआ | उनसे जब पूछा गया कि हाथी को आपने पहले तो पहाड़ जैसा बताया था अब
उसकी अपेक्षा पतला अजगर जैसा बताया है | इन दो प्रकार के उत्तरों में अंतर
आने का कारण क्या है ? उसने कहा हाथी था तो पहाड़ जैसा ही किंतु जलवायु
परिवर्तन के प्रभाव से दुबला होकर वह अजगर जैसा हो गया है | ऐसे अनुभवों से शोधप्रबंध तो एक और तैयार हो गया किंतु यह नहीं पता लगाया जा सका कि हाथी होता कैसा
है |
ऐसे ही महामारी हो या भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक
घटनाएँ इन्हें समझने का विज्ञान न होने के कारण ऐसी घटनाओं के विषय में
अनुसंधान खूब होते रहते हैं किंतु प्राकृतिक घटनाओं की सच्चाई पता नहीं लग पाती
है कि कौन घटना किस कारण से घटित होती है | जलवायु
परिवर्तन या स्वरूप परिवर्तन जैसे भ्रम अलग से पाल लिए जाते हैं |यही कारण
है कि महामारी के विषय में जितने मुख उतनी बातें सुनी जा रही थीं !कोरोना
महामारी के विषय में बड़े बड़े वैज्ञानिकों के द्वारा बड़े बड़े वक्तव्य दिए
जा रहे थे किंतु उन सभी के वक्तव्यों का मंथन करके भी कोरोना महामारी की
विभिन्न अवस्थाओं के विषय में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँच पाना संभव
नहीं हो सका |
एक बार किसी गाँव में घुसकर हाथी उपद्रव मचा रहा था |गाँव के कुत्ते हाथी के आगे पीछे भौंक तो रहे थे,किंतु उस हाथी को गाँव से बाहर भगा नहीं पा रहे थे |हाथी उपद्रव मचाते चला जा रहा था |बेवश कुत्ते उसे ताकते घूरते भौंकते उसके पीछे पीछे चले जा रहे थे |हाथी जब गाँव से जाने लगता है तो कुत्तों को भ्रम होता है कि उनके भौंकने से डरकर हाथी भगा जा रहा है | इससे उत्साहित होकर कुत्ते और तेज तेज भौंकने लगते हैं |इसी बीच हाथी दोबारा लौटकर फिर उपद्रव मचाने लगता है ! ऐसा बार बार होता रहता है |
कोरोना महामारी उसी उन्मत्त हाथी की तरह निरंकुश होकर उपद्रव करती जा रही थी और महामारी को भगाने के लिए किए
जा रहे सभी प्रकार के मनुष्यकृत प्रयत्न उन बेवश लाचार ग्रामीण कुत्तों के
भौंकने जैसे निरर्थक थे! न कोई अनुमान सहीं निकल रहा था और न ही
पूर्वानुमान !जिसे जो मन आ रहा था वो वही कहे जा रहा था |
इसी प्रकार से महामारी में चिकित्सकीय प्रयत्नों का योगदान रहा | समय
प्रभाव से संक्रमितों की संख्या जब कम होने लगती तब जो औषधि आदि दी जा रही
होती थी | संक्रमण कम होने का श्रेय उसी औषधि को देने लग जाते थे | संक्रमितों की संख्या कम होने का कारण उसी औषधि आदि का प्रभाव मान लिया जाता था!संक्रमितों की संख्या बढ़ने पर उसी औषधि आदि का प्रयोग जब दोबारा किया जाता तो उस औषधि
का संक्रमितों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था, तब यह भ्रम टूटता कि पहले भी
जो लोग स्वस्थ हुए थे वे किसी औषधि के प्रभाव से नहीं अपितु समय के प्रभाव
से ही स्वस्थ हुए थे |इसके बाद उन औषधियों को महामारी की चिकित्सा व्यवस्था
से अलग कर दिया जाता |
जिसप्रकार से गाँव में उपद्रव मचा रहे हाथी को गाँव छोड़कर कभी तो जाना ही होता है | इसलिए हाथी जब जी भर उपद्रव मचाकर चला जाता तब भी उन कुत्तों को यही भ्रम बना रहता है कि उनके भौंकने के भय से भयभीत होकर ही हाथी गाँव से बाहर चला गया है | महामारी से निपटने के लिए हम मनुष्यों के द्वारा किए गए प्रयासों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही रही है |महामारी भी उस उन्मत्त हाथी की तरह जितना उपद्रव मचाना था वो मचाकर ही गई है |मनुष्यकृत प्रयासों से उसे रोका जाना संभव नहीं हो सका है |
अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की तरह महामारी चीन के वुहान से निकलती है और मनुष्यों को संक्रमित करती हुई निर्ममतापूर्वक आगे बढ़ती जाती है |संपूर्ण विश्व का चक्कर लगाकर भारत पहुँचती है| इस विश्वपरिक्रमा में उसे अन्य देशों के साथ साथ कुछ विकासशील देश तो कुछ विकसित देश भी मिले |जिनकी चिकित्सा व्यवस्था अति उन्नत मानी जाती है | कोई भी देश अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं के बल पर अपने देश वासियों को ऐसा कोई महामारीसुरक्षाकवच उपलब्ध नहीं करवा जा सका |जिसके बल पर यह लगे कि महामारी से अब कोई विशेष भय नहीं है |
इसमें विशेष चिंता की बात यह है कि महामारी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा मनुष्यकृत प्रयासों से कहीं रोका नहीं जा सका |महामारी महीनों वर्षों तक संपूर्ण विश्व को रौंदती रही और लोग सहते रहे | महामारी
जब वापस लौटने लगती तो चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न लोग महामारी को
पराजित कर देने के दावे करने लग जाते !महामारी पुनः संक्रमित करने लग जाती !
ऐसा कई बार हुआ | इसीलिए महामारी बार बार घट घट कर बढ़ते देखी जा रही थी
|ऐसा सबकुछ वर्षों तक होता रहा | उस समय कोई भी देश अपनी वैज्ञानिक तैयारियों के बलपर महामारी का सामना करने का साहस नहीं जुटा सका | कोई अनुसंधान औषधि उपाय आदि महामारी के सामने ठहर नहीं सका ! महामारी अपने अश्वमेध यज्ञ को संपूर्ण समझकर दिग्विजय पताका लहराती हुई अंतर्ध्यान हो गई |इससे संबंधित अनुसंधान अधूरे ही बने रहे |
विनम्रनिवेदन !
महामारी या प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अनुसंधानों का उद्देश्य ऐसे
घटनाओं से मनुष्यों की सुरक्षा करना है | इसके लिए घटनाओं के निर्मित होने
के लिए जिम्मेदार सही कारण खोजने होते हैं | जो कारण खोजे गए हैं वे कितने
सही हैं|इसका परीक्षण करने के लिए उन कारणों के आधार पर भूकंप आँधी तूफ़ान
वर्षा बाढ़ महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में जो अनुमान पूर्वानुमान आदि
लगाए जाते हैं | वे जितने प्रतिशत सही निकलते हैं|खोजे गए उन कारणों में
उतने ही प्रतिशत सच्चाई होती है |
मौसम
के विषय में मानसून का समय से पहले या पीछे आना या जाना,वर्षा या आँधी
तूफ़ान आदि मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के गलत निकल जाने कारण जलवायुपरिवर्तन
न होकर प्रत्युत ऐसी घटनाओं के घटित होने के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार
मानकर ऐसी भविष्यवाणियाँ की जाती हैं | उन कारणों के चयन का आधार ही गलत
होता है |
इसीप्रकार से महामारी
या उसकी लहरों के विषय में जो भी पूर्वानुमान लगाए गए उनके गलत निकलने का
कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन न होकर प्रत्युत उन कारणों को खोजने में
गलती हुई होती है | जिन्हें महामारी आने या उसकी लहरों के आने के लिए जिम्मेदार
माना जा रहा था |
वस्तुतः प्राकृतिक घटनाएँ परोक्ष कारणों से घटित होती हैं |उन्हें समझने के लिए परोक्षविज्ञान का ही सहारा लेना पड़ेगा |परोक्ष
कारणों से निर्मित घटनाओं को प्रत्यक्ष विज्ञान से समझना संभव ही नहीं
है,फिर भी जो लोग ऐसा करते हैं तो वे अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत निकल जाते
हैं| उसके लिए स्वरूपपरिवर्तन या जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहराकर जवाबदेही से बच भले लिया जाए किंतु ये अनुसंधान भावना के अनुरूप नहीं है
वर्तमान समय में अक्सर देखा जा रहा है कि भूकंप आता है चला जाता है उससे
जनधन का जो नुक्सान होना होता है वो हो जाता है|भूकंपविज्ञान की सार्थकता
तभी है,जब इस नुक्सान को कम किया जा सके|यदि नुक्सान हो ही जाता है|उसके
बाद भूकंप की गहराई कितनी थी|भूकंप का केंद्र कहाँ था|ऐसी बातों का कोई
मजबूत आधार तो होता नहीं है और यदि हो भी तो ऐसे अंदाजे माज के किस काम के
हैं |भूकंपविज्ञान का उद्देश्य ऐसी घटनाओं से समाज की सुरक्षा करना है
|भूकंप की गहराई और केंद्र बता देने से समाज की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित हो
जाती है |
इसलिए आवश्यकता के अनुसार अनुसंधान होने चाहिए |इसलिए आवश्यकता है
महामारी के विषय में सही पूर्वानुमान पता लगाने की किंतु पता लगाया जा रहा
है कि महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है | ऐसे ही मौसम संबंधी घटनाओं
के विषय में आवश्यकता है सही पूर्वानुमान लगाने की,किंतु जलवायुपरिवर्तन होने की सूचना दी जा रही है| आवश्यकता है भूकंप का पूर्वानुमान लगाने की किंतु भूकंप की गहराई और केंद्र की सूचना दी जा रही है |
ऐसे ही वर्षा बाढ़ आदि से संबंधित अनुसंधान भी मनुष्य केंद्रित होने चाहिए
!अर्थात किस प्राकृतिक घटनाओं से अपनी सुरक्षा के लिए अनुसंधानों का
उद्देश्य ही प्राकृतिक आपदाओं से समाज को सुरक्षित रखना है|ऐसे प्राकृतिक संकटों से यदि समाज को जूझना पड़ ही गया,तो उन अनुसंधानों से उसे क्या लाभ हुआ !
इसी प्रकार से कोरोना महामारी से संबंधित अनुसंधानों की सार्थकता इसी
में थी कि महामारी से समाज को सुरक्षित बचाया जा सका होता|महामारी में
जितने लोगों को संक्रमित होना था, वे हुए | जिन लोगों की मृत्यु होनी थी
उनकी मृत्यु हुई| इसके बाद महामारी और भी कुछ बुरा करना चाहती तो वो भी कर
सकती थी | मनुष्यकृत ऐसी कोई तैयारी नहीं थी जिससे मनुष्यों को सुरक्षित
रखा जाना संभव होता |
बताया जाता है कि विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है | इसके बाद भी यह पता लगाया जाना संभव नहीं हो पाया है कि महामारी की कितनी लहरें अभी
और आनी जानी हैं| उनका समय कब कब होगा |निकट भविष्य में ऐसी कोई महामारी
या प्राकृतिक आपदा आनेवाली है या नहीं! मनुष्यों की सुरक्षा से जुड़े ऐसे
पूर्वानुमान लगाए जाने आवश्यक हैं|मनुष्यों को ये तो पता होना ही चाहिए कि
उनके साथ कब क्या घटित होने की संभावना है|उससे बचाव के लिए जो संभव होगा
वो किया जाएगा |
कोरोनामहामारी
ने विश्ववैज्ञानिकों को अपने
अनुसंधानों की गुणवत्ता प्रकट करने के लिए यह सर्वोत्तम अवसर उपलब्ध करवाया
था| इसमें वैज्ञानिक क्षमता के बल पर महामारी आने से पहले उसके विषय में या उसकी लहरों के
विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जा सकते थे| आवश्यक उपाय अपनाकर महामारी से समाज को
सुरक्षित
बचा सकते थे| संक्रमितों की मदद करके महामारी से मुक्ति दिला सकते थे |
ऐसे सफल प्रयासों से विश्वमंच पर ये स्वतः सिद्ध हो जाता कि वास्तव में विज्ञान ने बहुत
उन्नति कर ली है |
कुलमिलाकर महामारी
आने से यह तो सिद्ध हो ही गया है कि वर्तमानवैज्ञानिक क्षमता के आधार पर
प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों से सुरक्षा के लिए कोई मजबूत इंतजाम
नहीं हैं| इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए ऐसी हिंसकघटनाओं के विषय में नए सिरे से अनुसंधान शुरू किए जाने की आवश्यकता है|
जिस प्रकार से किसी
देश में अवैध कब्जे रोकने के लिए नियम बना दिया जाएँ या भूमिगत जलस्तर
नीचे चले जाने के कारण बोरिंग करने पर प्रतिबंध लगा दिए जाएँ |ऐसे
प्रतिबंधों के पालन के लिए कुछ अधिकारी कर्मचारियों को जिम्मेदारी सौंप दी
जाए | इसके बाद भी अवैध कब्जे एवं अवैध बोरिंग होती रहें | वे इन्हें रोकने
में सफल न हों तो उन्हें पारिश्रमिक क्यों दिया जाए ! जनता के द्वारा कर रूप में शासक को दिया गया धन उन्हीं कार्यों पर खर्च होना चाहिए |जो जनता को सुरक्षा और सुख सुविधा प्रदान करने में सहायक हों |
इसी प्रकार से जिस आवश्यकता की पूर्ति के लिए जो अनुसंधान किए जाते हैं
उन कार्यों को करने में सफल होने वाले व्यक्ति को ही उससे संबंधित पद
प्रतिष्ठा एवं पारिश्रमिक आदि प्रदान किया जाना चाहिए |
अधूरे अनुसंधानों का महामारी से हुआ सामना !
वर्तमानसमय विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है|जिससे मनुष्यजीवन की कठिनाइयों
को कम करके सुख सुविधा के साधन जुटा लिए गए हैं| विज्ञान
की उपलब्धियाँ जिस जनता के काम आनी हैं | उन्हीं लाखों
लोगों का जीवन महामारी निगल गई| इतने उन्नत विज्ञान के होने पर भी कोरोनामहामारी से लाखों लोगों की मृत्यु हो जाना गंभीर चिंता की बात है | इसलिए वैज्ञानिक उपलब्धियों की सार्थकता तभी है जब महामारी से जीवन की सुरक्षा का प्रबंध पहले कर लिया जाए,बाकी सारी सुख सुविधाएँ उसके बाद हैं|जीवन सुरक्षित बचेगा तभी ऐसी सुख सुविधाओं का आनंद लिया जा सकेगा |
महामारी
या प्राकृतिक आपदाओं के विषय में यदि सही सही अनुमानपूर्वानुमान आदि लगाना
संभव नहीं हो पाया है, तो इसके लिए जितने आधुनिकवैज्ञानिक जिम्मेदार हैं|प्राचीन
वैज्ञानिकों की भी उतनी ही जिम्मेदारी बनती है|जिन प्राकृतिक घटनाओं के
विषय में आधुनिकवैज्ञानिक अपनी वैज्ञानिकपद्धति से अनुसंधान करते
हैं|उन्हीं प्राकृतिक घटनाओं
के विषय में प्राचीनवैज्ञानिकों को भी अपनी पद्धति से अनुसंधान करके के
सरकार एवं समाज के सामने प्रस्तुत करना चाहिए | दोनों की अपनी अपनी
वैज्ञानिक विधाएँ हैं|दोनों अपने अपने विषयों के अनुसार अनुसंधान करते हैं |
विशेष बात यह है कि आधुनिकवैज्ञानिकों के अनुसंधानों से प्राकृतिकघटनाओं के विषय में जो अनुभव अनुमान पूर्वानुमान आदि प्राप्त होते हैं| वे तो समाज को पता लगते हैं और उनसे कभी कभी समाज को भी लाभ मिलता है| आधुनिकविज्ञान
का जब जन्म नहीं हुआ था तब तो यही सारी जिम्मेदारी प्राचीनवैज्ञानिकों को ही सँभालनी पड़ती थीं| ऐसी प्राकृतिकआपदाओं रोगों
एवं महामारियों से स्वास्थ्यसुरक्षा वही प्राचीन वैज्ञानिक ही प्रदान किया करते थे| आधुनिकविज्ञान और उससे संबंधित वैज्ञानिकों के आ जाने से अब ऐसा क्या हो
गया कि प्राचीनवैज्ञानिकों के द्वारा किए जा रहे अनुसंधानों का पता ही
नहीं लग पा रहा है| प्राकृतिकआपदाओं या महामारियों से चाहें जितनी भी
जनधन हानि हो उससे बचाव में प्राचीन वैज्ञानिकों का योगदान ही पता नहीं लग पाता है |
ज्योतिष की तरह ही आयुर्वेद या वेद आदि प्राचीन विज्ञान के क्षेत्र में जो अनुसंधान होते हैं उनसे क्या प्राप्त होता है | ये न तो समाज को पता लगता है और न ही समाज उससे लाभान्वित होता है| प्राचीनवैज्ञानिकों के द्वारा इन्हीं क्षेत्रों में बहुत
बड़े बड़े कार्य किए गए हैं |प्रकृति के अनेकों रहस्य सुलझाए गए हैं| सूर्य
चंद्र ग्रहणों के विषय में न केवल पूर्वानुमान लगाए गए हैं,प्रत्युत
पूर्वानुमान लगाने के लिए गणितीय प्रक्रिया भी खोजी गई है |
आधुनिकविज्ञान और उससे संबंधित वैज्ञानिकों के आ जाने से अब ऐसा क्या हो
गया कि प्राचीन वैज्ञानिकों ने अब अपने को बिल्कुल ही पीछे कर लिया है |
कोरोना महामारी या प्राकृतिक आपदाओं के विषय में उनके द्वारा भी
पूर्वानुमान लगाए जाने चाहिए |संभव है कि आधुनिकवैज्ञानिकों और प्राचीन
वैज्ञानिकों के द्वारा यदि मिलजुल कर संयुक्त रूप में अनुसंधान किए जाएँ तो
वर्तमान समाज की कुछ बड़ी समस्याओं के समाधान निकाले जा सकते हैं |
ज्योतिषशास्त्र को अत्यंत प्राचीनकाल से ही भविष्य को देखने
में सक्षम माना जाता रहा है |इसके द्वारा जिस प्रकार से प्रकृति और जीवन
में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाता रहा है|उसी प्रकार से महामारियों के विषय में भी तो पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |ज्योतिष विद्वानों के ऐसा न कर पाने का कारण क्या है ?इसके द्वारा यह भी पता
लगाया जा सकता है कि इस महामारी से किस व्यक्ति के संक्रमित होने की कितनी
संभावना है |किस व्यक्ति को कितना कष्ट मिल सकता
है | इस प्रकार से ज्योतिषशास्त्र महामारी जैसी घटनाओं से बचाव के लिए बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है |
इसीप्रकार से आयुर्वेद संबंधी चिकित्साविज्ञान है | जो भारत की अत्यंत प्राचीन परंपरा है |आधुनिक विज्ञान आने से पहले उसी के आधार पर बड़े बड़े रोगों की सफल चिकित्सा होती रही है | चरकसंहिता और सुश्रुतसंहिता
जैसे शीर्ष ग्रंथों में रोगों महारोगों (महामारियों) के आने से पहले
अनुमान
पूर्वानुमान आदि लगाने ,औषधीय द्रव्यों के आहरण करने एवं चिकित्सा प्रारंभ
करने के लिए जो ज्योतिषीय विधि बताई गई है |भविष्य में आने वाली महामारी से सुरक्षा के लिए आवश्यक औषधीयद्रव्यों का संग्रह कर लेने के लिए भी समझाया गया है | जिनके प्रभाव से महामारी आने पर उससे मुक्ति दिलाना संभव हो सके |
विशेष बात ये है कि उसप्रकार की ज्योतिषीय बातों को समझने के लिए ज्योतिष
की
जानकारी होनी आवश्यक है|प्राचीनकाल में वैद्य लोग ज्योतिष भी जानते थे
उसके आधार पर रोगों महारोगों के विषय में पूर्वानुमान तो लगा ही लिया करते
ही थे|इसके साथ ही साथ रोगी परीक्षण एवं रोग परीक्षण के लिए भी
ज्योतिषविज्ञान का सहारा लेकर ये भी पता लगा लिया करते थे कि किस रोगी को
स्वस्थ होना है और किसको नहीं ! उसी के अनुसार वे चिकित्सा किया करते थे |
यही कारण है कि उस युग में वैद्यों के सान्निध्य में न तो किसी रोगी की
मृत्यु होती थी और न ही उन्हें अपने यहाँ शवगृह बनाकर रखने पड़ते थे|वर्तमान
आयुर्वैदिक शिक्षा पाठ्यक्रम में ज्योतिष का अभाव है| इसीलिए आयुर्वेद के चरकसंहिता और सुश्रुतसंहिता आदि ग्रंथों में वर्णित ज्योतिषीय प्रकरणों को समझना संभव नहीं हो पाया है |
प्राचीनविज्ञान के द्वारा ऐसी घटनाओं के विषय में न केवल पूर्वानुमान
लगाया जाना संभव है, प्रत्युत ऐसी हिंसक घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए
भी यज्ञवैज्ञानिक प्रयोग बताए गए हैं |वैदिकविज्ञान
अत्यंत प्राचीन विज्ञान है | इसमें यज्ञों के माध्यम
से महामारी एवं प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्यों को सुरक्षित रखने की विधि
बताई गई है | प्राचीनकाल में प्रकृति एवं जीवन से संबंधित ऐसी बड़ी बड़ी
आपदाओं महामारियों को यज्ञों के द्वारा नियंत्रित करने का वर्णन मिलता है |
ऐसा किया जाना अभी भी संभव है ,किंतु महामारी से बचाव क्यों नहीं किया जा
सका !
ऐसे ही धर्म के नाम पर कुछ लोग किसी के मन की बात या बीती बात बता देते हैं| कुछ लोग बड़े बड़े दरवार लगाकर रोगों या संकटों से मुक्ति दिलाने का दावा करते हैं| कुछ लोग स्वयं को भगवान बताते हैं !कुछ लोग गुरु
जगद्गुरु ब्रह्मांडगुरु योगगुरु ,साधक,सिद्ध तांत्रिक मांत्रिक आदि बनकर
समस्याओं का समाधान करने के लिए चौकी
गद्दी सभा दरवार आदि लगाते हैं| ऐसे ही भिन्न भिन्न धर्मों से
संबंधित जो लोग अपने अपने धर्म को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए दूसरे धर्म वालों से लड़ा करते हैं|ऐसे
धर्मों में ऊँचे पदों पर प्रतिष्ठित लोग अपने को साधक सिद्ध सर्वज्ञ
आदि बताते हैं|ऐसे सभी लोगों से भी आग्रह किया जाना चाहिए कि यदि आपके पास
ऐसा कोई तपोबल है तो कोरोना जैसी महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं के समय
जनसुरक्षा की दृष्टि प्रभावी भूमिका निभाएँ अन्यथा ऐसे दावों पर विराम लगा
दिया जाना चाहिए |
दो शब्द
किसी नदी की जल धारा के साथ साथ उसमें पड़ी पत्तियाँ फल फूल लकड़ियाँ आदि सब कुछ बहते जा रहे होते हैं |जल की धारा जहाँ तेज होती है वहाँ उसमें बहने वाले पत्तियाँ फल फूल लकड़ियाँ आदि भी तेजी से बहने लगते हैं | जहाँ जलधारा की गति धीमी होती है वहाँ धीरे धीरे बहती हैं |कई जगह जलधारा में भँवर पड़ने के कारण किसी एक स्थान पर जल बहुत तेजी से घूमने लगता है | ऐसे स्थानों पर जल में पड़ी पत्तियाँ फल फूल लकड़ियाँ आदि भी उसी तरह घूमने लगते हैं |पत्तियों फल फूल लकड़ियों आदि के घूमने में या तेज और धीमे चलने में उनका अपना कोई योगदान नहीं होता है | उनका अपना कोई लक्ष्य भी नहीं होता है | जलधारा में पड़े होने के कारण उन्हें जलधारा के साथ साथ बहना ही पड़ता है |
जिस प्रकार से नदी में जल ही जल होता है | सब कुछ जल के आधीन ही बहता है | जल पर पड़ी वस्तुओं को जल के साथ साथ बहना पड़ता है | इसी प्रकार से इस विशाल संसार में समय की धारा बह रही है | यहाँ सबकुछ समय की धारा में बहता जा रहा है | समय निरंतर बदलता चलता है |समय के साथ होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों को देखकर समय बीत रहा है | ऐसा अनुमान लगाया जाता है | समय जब जैसा परिवर्तित होता है प्रकृति से लेकर जीवन तक में उससमय उसीप्रकार के परिवर्तन होने लगते हैं | प्रकृति और जीवन से संबंधित सभी घटनाएँ समय की उसी धारा में बहती चली जा रही हैं | समय संचार के क्रम में जिस घटना के घटित होने का जब समय आ जाता है,तब वो घटना घटित हो जाती है | संपूर्ण संसार में समय के अनुसार ही अच्छी बुरी घटनाएँ घटित होने लगती हैं | जिस प्रकार से पृथ्वी की घूर्णन और परिक्रमणभेद से दो गतियाँ होती हैं | घूर्णन वह है जिसमें पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और परिक्रमण वह है जिसमें पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है | इसी प्रकार से मनुष्य आदि प्राणी समय से दो प्रकार से प्रभावित होते हैं | एक प्राकृतिकसमय और दूसरा व्यक्तिगत समय | प्राकृतिकसमय के अनुसार ऋतुएँ आती और जाती रहती हैं | उसी के अनुसार उनका सर्दी गर्मी वर्षा आदि का कम प्रभाव होता है| भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात आदि प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं |
व्यक्तिगत समय क्रम में सुख दुःख हानि लाभ जीवन मृत्यु स्वस्थ अस्वस्थ सफलता असफलता तथा किसी से मिलना बिछुड़ना आदि घटनाएँ व्यक्तिगत समय के अनुसार घटित होती हैं | कई बार लोग भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं में फँसकर तो मृत्यु को प्राप्त होते ही हैं |इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत समय पूरा होने पर बिना किसी कारण के सहज सामान्य अवस्था में बैठे बैठे भी मृत्यु को प्राप्त होते हैं |
कई बार सुयोग्य चिकित्सकों के द्वारा की जा रही सघन चिकित्सा के बाद भी लोगों की मृत्यु हो जाती है | ऐसे ही कई बार ऑपरेशन करने के बाद भी किसी की मृत्यु हो जाने पर चिकित्सकों को भी कहते सुना जाता है कि मृत्यु का समय ही आ गया था |किसी रोगी के आपरेशन के पहले चिकित्सकों के द्वारा पहले ही लिखवा लिया जाता है कि कोई अनहोनी हो गई तो वे जिम्मेदार नहीं होंगे| देखा जाए तो जो चिकित्सा कर रहा है वो जिम्मेदार क्यों नहीं होगा | इससे निष्कर्ष यही निकाला जा सकता है कि चिकित्सा शरीर की होती है समय की नहीं ! रोगी का यदि समय ही बुरा चल रहा होगा तो चिकित्सा से लाभ नहीं होगा | दूसरी बात समय ही मृत्यु का चल रहा होगा तो चिकित्सा के द्वारा किसी रोगी को स्वस्थ या जीवित कैसे कर लिया जाएगा |
ऐसी स्थिति में सुख दुःख हानि लाभ जीवन मृत्यु स्वस्थ अस्वस्थ सफलता असफलता तथा किसी संबंध के बनने बिगड़ने में समय की बहुत बड़ी भूमिका होती है| इसलिए समय के संचार को समझे बिना प्रकृति और जीवन को संपूर्ण रूप से न तो समझना संभव है और न ही समस्याओं को निदान (पहचानना) संभव है | इसके बिना समस्याओं को अच्छी प्रकार से समझे पहचाने बिना समस्याओं के समाधान निकलने संभव ही नहीं हैं |
पूर्वानुमान लगाने के लिए विज्ञान खोजा जाए !
व्यवहारिक जीवन में यदि पता करना हो कि किस दिन कौन ट्रेन किस स्टेशन से कितने बजे छूटेगी और किस स्टेशन पर कितने बजे पहुँचेगी | यह पता करने के लिए दो ही मार्ग हैं | एक परोक्ष मार्ग और दूसरा प्रत्यक्ष मार्ग !
परोक्ष मार्ग जो प्रत्यक्ष दिखाई न पड़ता हो किंतु प्रभावी वही हो | इसमें रेलवे की समय सारिणी देखकर ट्रेनों के आवागमन के विषय में पता करना होता है | उसमें सभी ट्रेनों के आने जाने और अपने गंतव्य पर पहुँचने का समय दिया होगा | इस प्रक्रिया से एक स्थान पर बैठे बैठे सभी ट्रेनों के विषय में पता कर लिया जाएगा |
दूसरा प्रत्यक्ष मार्ग है | इसमें प्रत्यक्ष साक्ष्यों के आधार पर ट्रेनों के आवागन के विषय में अंदाजा लगाना होता है |इसके लिए प्रतिदिन स्टेशन स्टेशन पर जा कर देखना होगा कि कौन ट्रेन कितने बजे किस स्टेशन से छूट रही है और किस स्टेशन पर कितने बजे पहुँच रही है | ऐसे कुछ दिनों के अनुभव के अनुसार यह अंदाजा लगा लिया जाए कि अमुक ट्रेन इतने बजे अमुक स्टेशन पर पहुँच सकती है |कई बार कुछ विशेष दिनों में रेलवे समयसारिणी के अनुसार ट्रेनों के मार्ग एवं समय में कुछ बदलाव किया गया होता है |ऐसे समय उस प्रकार के प्रत्यक्ष मार्ग से लगाए गए अंदाजे गलत निकल जाते हैं|इसका कारण ट्रेनों के आवागमन में बदलाव नहीं हुआ है,प्रत्युत ट्रेनों के आवागमन के विषय में बनाई गई रेलवे समय सारिणी की जानकारी न होना है | वही परोक्ष मार्ग है | ट्रेनों की समय सारिणी यदि पता होती तो ये जानकारी पहले से पता होती कि किस दिन इस ट्रेन को किस मार्ग से जाना है और किस दिन अपना मार्ग बदलकर किसी दूसरे मार्ग से जाना है |
वर्तमानसमय में मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए भी इसी प्रत्यक्षपद्धति का उपयोग किया जाता है |जिस प्रकार से ट्रेनों से संबंधित पूर्वानुमान के लिए ट्रेनों को स्टेशन स्टेशन पर जा कर देखना होता है| उसी प्रकार से मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए बादलों आँधी तूफानों आदि को उपग्रहों रडारों से देख लिया जाता है| उनकी गति और दिशा के अनुशार बादलों या आँधी तूफानों के दूसरे स्थान पर पहुँचने की भविष्यवाणी कर दी जाती है |
इस जुगाड़ से लगाए गए मौसमसंबंधी अंदाजे तबतक सही निकलते रहते हैं जब तक हवाएँ उसी गति से उसी दिशा में चलती रहती हैं |जैसे ही हवाओं की दिशा गति आदि बदली, जिससे मौसमसंबंधी घटनाओं का क्रम थोड़ा बहुत बदला वैसे ही वैज्ञानिकों के द्वारा प्रत्यक्ष विज्ञान के आधार पर लगाए गए अंदाजे गलत निकलने लग जाते हैं |इसका कारण जलवायुपरिवर्तन को मान लिया जाता है |
मौसम संबंधी किसी घटना के विषय में जलवायुपरिवर्तन का दोष तो तब माना जाएगा जब मौसम संबंधी घटनाओं को समझने लायक कोई विज्ञान हो |जिसके द्वारा मौसमसंबंधी घटनाओं के स्वभाव संचार आदि को समझना संभव हो |ऐसा कोई ही विज्ञान ही नहीं है| यदि प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए ही कोई विज्ञान नहीं है और जलवायुपरिवर्तन होता ही है, यह समझने के लिए भी कोई विज्ञान नहीं है | विज्ञान के बिना ही मनमाने ढंग से भविष्यभाषण करते रहा जाए | उनमें से संयोगवश जो सही निकलते जाएँ उन्हें भविष्यवाणी मानलिया जाए और जो गलत निकलते जाएँ उनका कारण जलवायुपरिवर्तन को मान लिया जाए| महामारी के विषय में ऐसे अंदाजे गलत निकलें तो उसका कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन मान लिया जाए|ऐसी स्थिति में जलवायुपरिवर्तन या महामारी के स्वरूपपरिवर्तन को समझने के लिए भी तो कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया होनी चाहिए ! केवल आशंका के आधार पर ऐसा कह दिया जाना उचित नहीं है | इससे वैज्ञानिक सोच का अनादर होता है तथा अनुसंधान भावना में गंभीरता का अभाव झलकता है |
पूर्वानुमान लगाने का मतलब किसी घटना के भविष्य के स्वरूप को देखना होता है | इसके लिए किसी ऐसे विज्ञान की आवश्यकता होती है | जिसके द्वारा भविष्य में झाँका जा सके | ऐसे किसी प्रमाणित विज्ञान के बिना किसी प्राकृतिक घटना के विषय में केवल अंदाजा लगाया जा सकता है, किंतु पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है |
परोक्ष वैज्ञानिकविधि से भविष्य की घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव है,किंतु प्राकृतिक विषयों को समझने या इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए अभी तक ऐसी कोई परोक्ष वैज्ञानिकपद्धति खोजी ही नहीं जा सकी है | जिसके आधार पर किसी भी प्राकृतिक घटना के विषय में सही पूर्वानुमान लगाए जा सकते हों |
अनुसंधान के परोक्षमार्ग और प्रत्यक्ष मार्ग में यह अंतर होता है| परोक्षमार्ग वह समयसारिणी होती है जिसके अनुसार घटनाओं को घटित होना होता है और दूसरा जो प्रत्यक्ष मार्ग है| उसे घटनाओं के अनुसार व्यवस्थित करना होता है | परोक्ष मार्ग की विशेषता यह है कि रेलवे की समयसारिणी के आधार पर जो जानकारी मिलेगी वो पक्की इसलिए होगी क्योंकि ट्रेनें उसी के अनुसार चलाई जानी होती हैं | उसमें लिखे समय का मतलब ट्रेन संचालन प्रक्रिया के लिए आदेश होता है कि प्रत्येक ट्रेन को इसी समयसारिणी के अनुसार चलाया जाना होगा| अमुक ट्रेन को अमुक स्टेशन पर इतने बजे पहुँचना ही होगा |
कुलमिलाकर परोक्षमार्ग में ट्रेनों के आवागमन के लिए समयसारिणी का पालन करना होता है,जबकि प्रत्यक्ष मार्ग में ट्रेनों का आवागमन देखकर उसके आधार पर ट्रेनों के आवागमन के विषय में अंदाजा लगाना होता है |
प्रत्यक्ष विज्ञान पूर्वानुमान लगाने की दृष्टि से एक जुगाड़ मात्र है | जिसका उपयोग प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में छोटे बड़े कार्यों घटनाओं आदि के लिए किया करता है | किंतु इस जुगाड़ को विज्ञान नहीं कहा जा सकता है|ऐसे जुगाड़ तो सभी लोग लगा ही लेते हैं |
कुलमिलाकर हेमंत और शिशिर ऋतुओं में सर्दी होगी| बसंत और ग्रीष्मऋतु में गर्मी होगी | प्रावृट और वर्षा ऋतु में वर्षा होगी | ये हर किसी को पता होता है| ऐसा सभी ऋतुओं का प्रभाव किसी वर्ष कुछ कम तो किसी वर्ष कुछ अधिक होगा | ये हमेशा से होता चला रहा है | इसलिए इसके विषय में सभी जानते हैं |
भूकंपआँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी मौसमसंबंधी कुछ हिंसक घटनाएँ जब उस क्रम से अलग हटकर अचानक घटित होने लगती हैं|उनमें जनधन का नुक्सान बहुत अधिक हो जाता है|उनके विषय में सही अंदाजे लगाए जाने की आवश्यकता है| ऐसी घटनाओं के विषय में आगे से आगे सही पूर्वानुमान लगाना बहुत आवश्यक होता है |प्राकृतिक आपदाओं के विषय में ही यदि सही पूर्वानुमान न लगाया जा सके या पूर्वानुमान न लगा पाने या गलत पूर्वानुमान लगाने के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाए और जलवायु परिवर्तन के विषय में यह कहकर असमर्थता व्यक्त कर दी जाए कि यह कितना मनुष्यकृत है और कितना प्राकृतिक है ये नहीं कहा जा सकता है | इसका मौसम संबंधी किस घटना पर कितना किस प्रकार का प्रभाव पड़ता है ये नहीं कहा जा सकता है | प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमानों को जलवायुपरिवर्तन कैसे प्रभावित करता है ये नहीं कहा जा सकता है | जलवायुपरिवर्तन होता ही है यह कैसे पता लगा इसके विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता है |
ऐसी परिस्थिति में एक ही बात सामने निकलकर आती है कि प्राकृतिक आपदाओं के विषय में चूँकि पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके या जो पूर्वानुमान लगाए गए वे गलत निकल गए | इससे लगता है कि जलवायुपरिवर्तन हो रहा है |ये विज्ञान सम्मत नहीं है |
इसलिए अनुसंधानों का उद्देश्य यदि मनुष्यों के सुख दुःख की चिंता करना है तो प्राकृतिक विषयों में किए जाने वाले अनुसंधानों के लिए भी मर्यादा रेखा खींची जानी चाहिए | इसके साथ ही साथ यह भी तय किया जाना चाहिए कि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अभी तक जो भी अनुसंधान किए गए हैं | उनके द्वारा जो जो कुछ खोजा जा सका है | उससे प्राकृतिक आपदाओं के भय को कितना कम किया जा सका है |इसी के आधार पर यह निश्चित किया जाना चाहिए कि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में किए जा रहे अनुसंधानों पर जो भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती है | उसकी सार्थकता कितने प्रतिशत है |
कोरोना महामारी संबंधी लहरों के विषय में ऐसे अंदाजे गलत निकलते रहे तो महामारी के स्वरूप परिवर्तन का भ्रम होता रहा है |आवश्यकता रेलवे की समयसारिणी की तरह ही ऐसी प्राकृतिक घटनाओं की समयसारिणी खोजे जाने की है |जिसके द्वारा ऐसी घटनाओं के विषय में आगे से आगे जानकारी प्राप्त की जा सके| मेरा विश्वास है कि गणित विज्ञान के द्वारा प्रयत्न पूर्वक लगभग दस हजार वर्ष पहले तक की समय सारिणी खोजी जा सकती है |
महामारियाँ भी बुरे समय के ही प्रभाव से पैदा होती हैं !
कभी अच्छा और कभी बुरा समय होता है |अच्छे
समय में तो सब कुछ अच्छा अच्छा होता है ,जबकि बुरा समय प्रारंभ होते ही
प्राकृतिक वातावरण बिषैला होने लगता है| बुरे समय के प्रभाव से प्रकृति
स्वयं ही हिंसक होने लगती है |सूखा बाढ़ बादल फटना, बज्रपात चक्रवात भूकंप प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने लगती हैं |रोग महारोग आदि फैलने लग जाते हैं |
बुरे समय के कारण प्राकृतिक वातावरण बिगड़कर जीवन जीने के योग्य नहीं रह
जाता है |ऐसे वातावरण में साँस लेकर स्वस्थ रहना कठिन होता है |वातावरण के
बिषैलेपन का प्रभाव खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ने से उनमें उन पोषक तत्वों
की कमी हो जाती है | जो शरीरों को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक होते हैं |
ऐसे बिषैले वातावरण में पैदा हुए फल फूल अन्न दाल शाक सब्जियों को खा पीकर
पेट भले भर जाता हो किंतु ऐसे भोजन से शरीरों को वो पौष्टिकता नहीं मिल
पाती है | इसलिए ऐसा भोजन शरीरों को स्वस्थ रखने लायक नहीं रह जाता है |
इसीलिए उसे खा पीकर प्राणियों के स्वास्थ्य बिगड़ते हैं |
इसीप्रकार के बिषैले वातावरण का प्रभाव औषधियों औषधीयद्रव्यों एवं
बनस्पतियों पर पड़ने के कारण उनके उन स्वाभाविक गुणों में कमी आ जाती है |
जो शरीरों को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं तथा रोग मुक्ति दिलाने में
सक्षम माने जाते हैं |
ऐसी स्थिति में एक तो शरीर रोगी होते हैं, दूसरे बिषैले वातावरण में साँस
लेने से रोग बढ़ते हैं| तीसरे खान पान बिगड़ते रहने से रोग बढ़ने की प्रतिपल
प्रक्रिया चलती रहती है |औषधियों का प्रभाव न पड़ने से रोग मुक्ति दिलाने का
कोई साधन नहीं होता है | जिससे रोग दिनोंदिन बढ़ता हुआ महारोग बनते चला जाता
है | इससे मुक्ति तभी मिलती है जब बुरा समय बीतता है |
प्राचीन विज्ञान वेत्ताओं का मानना रहा है कि महामारी
एवं मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में
अनुमान या पूर्वानुमान लगाना गणितविज्ञान के द्वारा संभव है | प्राचीन काल में उपग्रहों रडारों सुपर
कंप्यूटरों की सुविधा नहीं थी, फिर भी मौसम या महामारी से संबंधित
पूर्वानुमान बिल्कुल सही निकलते थे| इसका कारण उस युग में मौसम एवं महामारी
जैसी घटनाओं के विज्ञान को गणितविज्ञान के द्वारा ही खोजा जाता था | ऐसी
घटनाओं के विषय में आगे से आगे अनुमान पूर्वानुमान लगाकर उनसे बचाव के लिए
उपाय भी करने प्रारंभ कर दिए जाते थे |
भूमिका
वर्तमान समय में भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा बाढ़ जैसी हिंसक प्राकृतिक आपदाएँ दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं | उनसे वैश्विक स्तर पर जनधन का बहुत नुक्सान
होता है | कोरोना महामारी में ही वर्षों तक जनधन का नुक्सान होता रहा है |
ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ जीवन को प्रभावित कर रही हैं| मनुष्यों का इनसे
चिंतित होना स्वाभाविक ही है| ऐसे तनाव को कम करने के लिए ही विज्ञान की
परिकल्पना की गई है|समस्याओं से बचाव के लिए समय समय पर किए जाने वाले
जुगाड़ों को विज्ञान नहीं माना जा सकता| विज्ञान
और जुगाड़ में यह अंतर होता है | विज्ञान के द्वारा घटना के स्वभाव को समझा
जाता है ,जबकि समस्याएँ सामने आते देखकर बचाव के लिए कुछ जुगाड़ किए जाते
हैं | जिनसे बचाव होता भी है और नहीं भी होता है |
कुछ
हाथी किसी गाँव में घुस कर अक्सर उपद्रव मचाने लगते थे | उनसे बचाव के लिए
गाँव के चारों ओर कैमरे लगा दिए गए | हाथी जैसे ही गाँव की ओर आते कैमरे
में दिखते ,तो उन्हें खदेड़ दिया जाता ! इससे हाथियों के द्वारा किए जाने वाले
संभावित नुक्सान से बचाव करने में कुछ मदद तो मिली, किंतु यह एक जुगाड़ मात्र है| इसे हाथी विज्ञान नहीं कहा जा सकता है | इससे ये पता लगाया जाना संभव नहीं है कि हाथियों का झुंड आस पास के गाँवों में क्यों नहीं जाता है | इसी गाँव में आकर उपद्रव मचाने का कारण क्या है |
इसीप्रकार से सुदूर आकाश में स्थित बादलों या आँधीतूफानों को यदि उपग्रहों
रडारों की मदद से देखकर उनकी गति और दिशा के हिसाब से उनके दूसरे स्थान पर
पहुँचने के विषय में अंदाजा लगा लिया जाए,तो इससे थोड़ा बहुत बचाव हो सकता है,किंतु इस
जुगाड़ को मौसमविज्ञान नहीं कहा जा सकता है| अँधेरे में रखी वस्तुएँ खोजने में टार्च की जो भूमिका होती है |दूरस्थ बादलों या आँधीतूफानों को देखने में उपग्रहों रडारों की भी लगभग वही भूमिका होती है |इसमें विज्ञान कहाँ है ? इसीलिए
प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं हो
पा रहा है| इसके लिए घटनाओं के स्वभाव को समझने के विज्ञान की आवश्यकता है |
ऐसे ही चिकित्सा विज्ञान है | रोगों की
वर्तमान अवस्था को समझने में चिकित्सा संबंधी यंत्र सहायक होते हैं
किंतु वे चिकित्साविज्ञान नहीं हैं | चिकित्सा विज्ञान के द्वारा रोग के
स्वभाव को समझा जा सकता है | उससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि किस कारण
से कौन रोग कब पैदा होने वाला है | किसी स्वस्थ मनुष्य के शरीर में कब किस
प्रकार का रोग होने वाला है|चिकित्साविज्ञान के द्वारा इसके विषय में भी
पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |आयुर्वेद में वर्णित चिकित्साविज्ञान में
रोगों महारोगों के विषय में पूर्वानुमान लगाने की चर्चा मिलती है |
प्राकृतिक दुर्घटनाओं से संबंधित अनुसंधानों की वर्तमान स्थिति ऐसी है,जैसे किसी व्यक्ति को कोई डंडे से पीटने लगे !उसका जब तक मन आवे वो पीटता चला जाए | पिटने
वाला व्यक्ति डंडे के हर प्रहार को अपने हाथ पर लेकर अपने बाक़ी शरीर को
बचाने के लिए प्रयास करता जाए !हाथ भी तो उस व्यक्ति के शरीर के ही अंग हैं
इसलिए इस प्रक्रिया से उसका बचाव तो बिल्कुल नहीं हुआ ,किंतु जो चोटें
उसने अपना बाकी शरीर बचाने के लिए अपने हाथ पर ले लीं | इसे वो बचाव मान कर
संतोष भले कर ले किंतु बचाव हुआ बिल्कुल नहीं है |उसे जितना पीटना था उतना
तो पीट ही दिया गया |
इसीप्रकार से भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा बाढ़ जैसी घटनाओं में जितना नुक्सान होना होता है वो तो होता ही है | दूसरी तरफ अनुसंधान चला ही करते हैं | वैज्ञानिक अनुसंधानों के
नाम पर कुछ भी करने लगना अनुसंधानों का उद्देश्य नहीं होता है | नुक्सान
होने की परिस्थिति ही पैदा न हो ऐसा प्रयत्न करना होता है | किसी घटना के
घटित होने से पहले उसके स्वभाव को समझकर उसके आधार पर घटनाओं के विषय में
अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना होता है |
भूकंप आने पर उसकी गति गहराई आदि का अंदाजा लगा लेना विज्ञान का उद्देश्य
इसलिए नहीं है क्योंकि यह जानकारी भूकंपों से बचाव की दृष्टि से समाज के
लिए सहायक नहीं है | इसके लिए जो यंत्र
मॉडल आदि बनाए जाते हैं उनके द्वारा भूकंपों के विषय में कोई ऐसी जानकारी
नहीं मिल पाती है | जो भूकंपों से समाज की सुरक्षा करने में सहायक हो | इस
प्रक्रिया में ऐसी वैज्ञानिकता कहाँ होती है |
इसीलिए भूकंपविज्ञान के द्वारा अभीतक न तो भूकंप आने का निश्चित कारण पता लगाया जा सका है और न ही भूकंप आने के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि ही पता लगाया जा सका है |इस प्रक्रिया में भूकंपविज्ञान जैसा ऐसा क्या है ,जो ये न होता तो भूकंप आने पर क्या इससे भी अधिक नुक्सान हो सकता था |
घटनाएँ और उनके पूर्व संकेत
इसमें विशेष बात ये है कि यह आवश्यक नहीं है कि जिस तत्व से संबंधित घटना घटित होनी हो, संकेत भी उसी तत्व से संबंधित मिलते हों|वर्तमानसमय की अनुसंधान प्रक्रिया में ऐसा देखा जाता है |वर्षा होने का दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाने के लिए भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र के तापमान में उतार-चढ़ाव को देखा जाता है | ऐसे ही भूकंप को समझने के लिए जमीन के अंदर गहरा गड्ढा खोद कर उसका अध्ययन किया जाता है |भूकंप जमीन से संबंधित घटना है उसे समझने के लिए जमीन के अंदर ही गड्ढा खोदने की आवश्यकता क्यों पड़ती है | कोई मनुष्य सर्दी की ऋतु ठंडी ठंडी हवाओं के स्पर्श से काँपने लगता है | किसी मनुष्य के सामने अचानक शेर आ जाए तो भय से मनुष्य काँपने लगता है | किसी बच्चे को उसके किसी अपराध के बदले कोई गंभीर सजा सुना दी जाए तो घर बैठे उसके मातापिता के हाथ पैर काँपने लगते हैं |
ऐसे सभी प्रकरणों में देखा जाए तो कंपन जिन शरीरों में हो रहा होता है| काँपने का कारण उन शरीरों के अंदर नहीं होता है| जो काँप रहे होते हैं | ऐसी स्थिति में भूकंपों के आने का कारण पृथ्वी के अंदर ही होगा | ऐसा कहने के पीछे वैज्ञानिक आधार क्या है | मनुष्यों के काँपने का कारण खोजने के लिए उनके पेट का ऑपरेशन करके तो नहीं देखना पड़ता है,फिर पृथ्वी के काँपने का कारण खोजने के लिए पृथ्वी के अंदर गड्ढा करने की आवश्यकता क्यों पड़ती है |
इस प्रकार से किसी व्यक्ति वस्तु स्थान आदि काँपने के अनेकों ऐसे कारण हो सकते हैं |संभव है कि वे उस व्यक्ति वस्तु स्थान आदि से संबंधित न हों ,प्रत्युत उनसे दूर हों |
किसी बच्चे का मन पढ़ाई में न लग रहा हो इसका कारण आवश्यक नहीं कि शिक्षा से संबंधित उसकी कापी किताब स्कूल अनुशिक्षण (ट्यूशन) शिक्षक आदि ही हो |संभावना इसकी भी हो सकती है कि उसकी संगति बिगड़ गई हो या उसका स्वास्थ्य ही ठीक न चल रहा हो या उसके मन में कोई और ही विकार पल रहा हो | इस प्रकार से मुख्य घटना से दूर कुछ अन्य कारण भी ऐसे हो सकते हैं | जो उस मुख्यघटना के घटित होने की सूचना दे रहे हों |
इसके लिए संपूर्ण प्रकृति एवं प्राकृतिक परिवर्तनों पर बहुत बारीक दृष्टि रखनी होती है | प्रकृति का संतुलन जैसे ही बिगड़ने लगता है,वैसे ही वैसे ही वहाँ किसी विशेष घटना के निर्मित होने की संभावना बनने लगती है |
अनुसंधानों का उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं से जनधन की सुरक्षा करना होता है| इसलिए अनुसंधानों की मदद से प्राकृतिक घटनाओं के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाकर यथा संभव सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए | यदि ऐसा किया जाना संभव नहीं हो पाता है | इसीलिए कोई घटना जब घटित होनी होती है तो हो ही जाती है| उससे जनधन का जो नुक्सान होना है वो हो ही जाता है| उसके बाद ऐसी कल्पनाओं अंदाजों अनुमानों पूर्वानुमानों को करने से क्या लाभ |प्राकृतिक घटनाओं के घटित हो जाने के बाद उनके घटित होने के लिए भिन्न भिन्न कारणों को काल्पनिक रूप से जिम्मेदार ठहराने जाने विज्ञानजनित दृढ़ता नहीं होती है| प्राकृतिक संकेतों को न समझपाने के कारण ही ऐसी परिस्थिति पैदा होती है |
प्रकृति में अच्छी और बुरी घटनाएँ हमेंशा से ही घटित होती रही हैं| ऐसा होने के लिए जिम्मेदार कारण क्या हैं |प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए तथा इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए सबसे पहले अनुसंधान पूर्वक यह खोजना होगा कि ऐसी घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार कारण क्या हैं| भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी मौसमसंबंधी घटनाएँ घटित होने के पीछे कोई प्राकृतिक कारण है या मनुष्य कृत ! यदि प्राकृतिक है तो किस घटना के लिए किस प्रकार का प्राकृतिक कारण जिम्मेदार है और यदि मनुष्यकृत है तो किस प्रकार का मनुष्यकृत कारण जिम्मेदार है |
प्राचीन वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो समय एक जैसा कभी नहीं रहता है |परिवर्तन समय का स्वभाव है | प्राकृतिक रूप से समय जब बदलता है तब प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं और जीवन संबंधी जब जिसका समय बदलता है तब जीवन संबंधी घटनाएँ घटित होने लगती हैं | प्राकृतिक रूप से बुरा समय आने पर प्राकृतिक आपदाएँ या महामारियाँ आती हैं ,किंतु उनसे पीड़ित वही होते हैं | जिनका उस समय अपना बुरा समय चल रहा होता है | यही कारण है कि महामारी आने पर कुछ लोग संक्रमित होते तथा उनमें से कुछ लोग मृत्यु को प्राप्त होते हैं | उन्हीं परिस्थितियों में उन्हीं के साथ रह रहे कुछ दूसरे लोगों को जुकाम भी नहीं होता है,क्योंकि उस समय उनका अपना समय अच्छा चल रहा होता है |ऐसा प्राकृतिक एवं मनुष्यकृत दुर्घटनाओं में घटित होते देखा जाता है| भूकंपों के समय भवनों के मलबे में बहुत लोग दब जाते हैं |रेल आदि दुर्घटना घटित होने पर बहुत लोग प्रभावित होते हैं ,किंतु ऐसी सभी दुर्घटनाओं में जहाँ कुछ लोगों की मृत्यु हो जाती है | कुछ लोग घायल हो जाते हैं जबकि कुछ लोगों को खरोंच भी नहीं लगती है |ये उनके अपने अच्छे या बुरे समय का प्रभाव होता है |
किसी बड़े चिकित्सालय में बहुत लोगों की चिकित्सा होती है,उसके बाद कुछ लोग स्वस्थ, कुछ अस्वस्थ तो कुछ मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | इससे भी यही प्रमाणित होता है कि चिकित्सा का फल भी सबके अपने अपने अच्छे या बुरे समय के अनुसार ही मिलता है |
इस प्रकार से अच्छे बुरे समय के प्रभाव से प्रकृति और जीवन में घटित हो रही अच्छी बुरी घटनाओं को देखकर अच्छे बुरे समय के विषय में अनुमान लगा लिया जाता है |
कब कैसा समय चल रहा है कैसे पता लगे !
जब जैसा समय तब तैसी घटनाएँ !
आने पर कहा जाता है कि संकट का समय चल रहा है | ऐसे ही व्यक्तिगत समय में भी ठंढा गर्म आदि प्रभाव होता है | इससे शरीर मन आदि प्रभावित होता है| इसी समय के विषय में लोग कहते सुने जाते हैं कि मेरे पास समय नहीं है |
घटनाएँ अपने आने की सूचना विभिन्न माध्यमों से देती रहती हैं !
मनुष्य की आयु जैसे जैसे पूरी होने लगती है वैसे वैसे उसके शरीर में उस प्रकार के बदलाव होने प्रारंभ हो जाते हैं | जीभ और नासिका का अग्रभाग नहीं दिखने लगता है | कान में अँगुली लगा लेने से हमेंशा होते रहने वाली ध्वनि सुनाई देनी बंद हो जाती है | कई कई दिन तक एक ही तरफ का नासिका स्वर चलने लगता है |मसूड़ों और वृषणों को दबाने से पीड़ा नहीं होने लगती है | मृत्यु होने से महीनों पूर्व ऐसे अनेकों संकेत शरीर स्वयं देने लगता है | कोई मकान जब गिरता है तो देखने वालों को भले लगता हो कि अचानक गिर गया है,किंतु वो अचानक नहीं गिरता है| गिरने से महीनों पहले से उसमें उसप्रकार के छोटे छोटे बदलाव होने लगते हैं|जिन्हें ध्यानपूर्वक देखना होता है | उन संकेतों को जो लोग समझ जाते हैं उन्हें उस प्रकार की घटना के विषय में अनुमान पता लग जाता है जो लोग नहीं समझ पाते हैं | उन्हें ऐसा लगता है कि ये घटना अचानक घटित हुई है | कानपुर के शिवराजपुर में एक आलूमिल गिरा था तो उसमें कार्य करने वाले मजदूर बाद में कहते सुने गए थे कि इसमें महीनों पहले से कंपन होने लगता था |बाद में वो आलू मिल गिर गया था | मेरे कहने का मतलब कोई भी घटना घटित होने से पहले अपने घटित होने के संकेत देने लगती है |उन संकेतों को समझने वाले लोगों को यह पहले से पता लग जाता है |
प्राकृतिक आपदाओं के शुरू होने के महीनों पहले से उनके आने के विषय में छोटे छोटे संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं |भूकंप आने के पहले से वहाँ की प्रकृति में हवा में जल में बृक्षों बनस्पतियों पेड़ों पौधों तथा फसलों में कुछ ऐसे परिवर्तन आने लगते हैं जो हमेंशा नहीं देखे जाते हैं | उस क्षेत्र के जीव जंतुओं के स्वभाव में कुछ ऐसे परिवर्तन आने लगते हैं जो सामान्य समय में नहीं दिखाई पड़ते हैं | ऐसे ही वर्षा आँधी तूफ़ान आदि आने के पहले से कुछ संकेत मिलने लग जाते हैं |उत्तर भारत के प्रसिद्ध कवि घाघ ऐसे संकेतों को समय रहते समझ कर आगे से आगे मौसम संबंधी घटनाओं के विषय मून भविष्यवाणियाँ कर दिया करते थे | ऐसे संकेतों को समय रहते समझ लिया जाए तब तो ठीक है अन्यथा घटनाएँ घटित हो जाती हैं तब लगता है कि ये घटना अचानक घटित हो गई है |
कुल मिलाकर प्रकृति में अचानक कुछ नहीं घटित होता है | सूर्योदय होने से पहले अँधेरा छटने लगता है !चंद्रमा की चमक कमजोर होने लगती है|आकाश में तारे अदृश्य होने लगते हैं | मुर्गे बाँग देने (बोलने) लगते हैं | सूर्योदय होने से पहले पूर्व दिशा में अरुणिमा फैलने लगती है | कमल खिलने लगते है और सूर्योदय होने लगता है |
इसमें ध्यान से देखा जाए सूर्य से सीधा संबंध इनमें से किसी घटना का नहीं है | इसके बाद भी ये भिन्न भिन्न प्रकार की घटनाएँ अपने अपने स्वभाव के अनुसार आचरण करती हुई सूर्योदय होने के संकेत दे रही हैं | प्राचीनकाल में ऐसे ही संकेतों को शकुन अपशकुन नाम से जाना जाता था |
विशेष बात ये है कि संकेतों को स्वयं नहीं पता होता है कि वे क्या सूचित कर रहे हैं |बिल्ली के रास्ता काट देने से यात्रा के लिए अशुभ मान लिया जाता है,किंतु यह शक्ति बिल्ली में नहीं होती है |यात्रा करते समय यदि बिल्ली रास्ता काट देती है तो यात्रा करने वाले के लिए अशुभ होता है | ये केवल बिल्ली की विशेषता नहीं है,प्रत्युत बिल्ली का रास्ता काटने और उस यात्री की यात्रा शुरू करने से एक घटना घटित हुई | उस यात्री जितने महत्वपूर्ण कार्य के लिए जा रहा होता है | उसका नुक्सान उतना अधिक होता है |
जिस प्रकार से किसी माचिस या उसकी तीली को जेब में डाला जा सकता है | पेट्रोल में भिगोया जा सकता है | हाथ या लात से कुचला जा सकता है | इससे आग नहीं जलने लगेगी | आग तो तब जलेगी जब माचिस की तीली को माचिस के मसाले से रगड़ा जाए | इसके बाद उसे जितने बड़े ज्वलनशील ईंधन के ढेर पर डाल दी जाएगी उतना विशाल रूप धारण कर लेगी |
इस प्रकरण में देखा जाए तो आग की जन्मदात्री माचिस और उसकी छोटी सी तीली ही होती है |जिससे पैदा की हुई आग अतिविशाल स्वरूप धारण कर लेती है | उसी प्रकार से छोटी सी बिल्ली से संबंधित हुआ अपशकुन कभी कभी बहुत बड़ा नुकसान होने के संकेत दे रहा होता है | जिस बिल्ली के रास्ता काटदेने से यह अपशकुन घटित हो रहा होता है | उस बिल्ली को भी यह पता नहीं होता है कि इस समय उसके उधर से निकल जाने के कारण इतनी बड़ी घटना घटित होने जा रही है |
वस्तुतः इस अपशकुन का कारण बिल्ली नहीं प्रत्युत वह समय है | जिससे प्रेरित होकर उस बिल्ली को उसी समय उसरास्ते को पार करना पड़ा है |
इसी प्रकार से भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा बाढ़ महामारी जैसी बड़ी बड़ी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में संकेत देने वाले अनेकों चिन्ह प्रकृति के भिन्न भिन्न स्वरूपों में उभरते हैं | जीव जंतुओं के स्वभाव बदलते हैं,नदियों तालाबों के जलों में परिवर्तन होते हैं | वृक्षों बनस्पतियों के गुणधर्म में बदलाव होते हैं | लोगों का मानसिक चिंतन बदलता है | ऐसे छोटे छोटे संकेतों का संग्रह करके बड़ी बड़ी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान सकता है |
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