पंचम: आधुनिक विज्ञान खंड 4, book 18-11-20024

   इतना उन्नत विज्ञान फिर भी नहीं मिल पा रहे समस्याओं के समाधान !

     विज्ञान भले सफलता के शिखर पर पहुँच चुका हो  किंतु प्राकृतिक आपदाएँ हों या कोरोना जैसी महामारियाँ इन्हें न तो अभी तक समझना संभव हो पाया है और न ही इनके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान ही खोजा जा सका है| महामारी के विषय में विशेषज्ञों के द्वारा लगाए जाते रहे अनुमान पूर्वानुमान आदि तो गलत निकलते ही रहे | इसके साथ ही महामारी संक्रमितों की चिकित्सा के लिए  प्लाज्माथैरेपी या रेमडेसिविर जैसे प्रयोगों के प्रभाव के विषय में भी लगाए गए अनुमान सही नहीं निकले | ये गंभीर चिंता और चिंतन का विषय इसलिए है कि इतनी बड़ी महामारी से सुरक्षा के लिए हमारी ऐसी चिकित्सकीय तैयारियाँ थीं | महामारी विषयक अनुमानों पूर्वानुमानों के गलत निकलते जाने पर महामारी के स्वरूप परिवर्तन होने की बात कही गई | 

     इससे ये ध्वनित हुआ कि महामारी के विषय में जो समझकर अनुमान पूर्वानुमान लगाए गए उनके सही न होने का कारण महामारी का स्वरूपपरिवर्तन है |जो वैक्सीनें बनाई जा रही थीं | उनके विषय में भी विभिन्न विशेषज्ञों को कहते सुना गया कि महामारी के जिस स्वरूप से सुरक्षा का लक्ष्य रखकर वैक्सीनें बनाई जा रही हैं | महामारी का  स्वरूपपरिवर्तन हो जाने के कारण अब उनकी भी उपयोगिता नहीं रह जाएगी | 

    ऐसी सभी बातों को यदि महामारी से सुरक्षा की कसौटी पर कसकर देखा  जाए तो महामारी के स्वरूपपरिवर्तन के कारण ऐसे अनुसंधानों के विषय में न तो अनुमान पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं और न ही वैक्सीन आदि निर्माण की जा सकती है | ऐसी स्थिति में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि अनुसंधानों के द्वारा महामारी पीड़ितों को ऐसी क्या मदद पहुँचाई जा सकी जो ऐसे अनुसंधानों के बिना संभव न थी |महामारी संबंधी अनुसंधान यदि न किए गए होते तो इस इस प्रकार से  इतना इतना नुक्सान और अधिक हो सकता था | अनुसंधानों के कारण उस संभावित नुक्सान से बचाव हो गया |

    ऐसी दुविधा प्रकृति और जीवन से संबंधित अनुसंधानों में प्रायः हर जगह दिखाई दे रही है |भूकंप विज्ञान है,भूकंप वैज्ञानिक हैं,भूकंपों के विषय में अनुसंधान भी किए जा रहे हैं !उन अनुसंधानों से भूकंप संबंधी आपदा से बचाव के लिए समाज को ऐसी क्या मदद पहुँचाई जा सकी है जो भूकंप संबंधी अनुसंधानों के बिना संभव नहीं है |       ऐसी बहुत सारी प्राकृतिक घटनाओं से समाज को जूझना न पड़े उसकी सुरक्षा की जा सके |  इसीलिए तो ऐसे अनुसंधानों को करने की आवश्यकता पड़ी है| मदद मिलनी तो दूर उन प्राकृतिकघटनाओं और उनके कारणों को खोजना ही अभीतक संभव नहीं हो पाया है|

    इसी कारण प्रकृति के बहुत सारे रहस्य अभी तक अनसुलझे पड़े हुए हैं|जो जीवन को प्रभावित तो करते हैं किंतु उन्हें समझने के लिए कोई विज्ञान नहीं है | इसीलिए  उन घटनाओं के विषय में कुछ कोरी कल्पनाओं के अतिरिक्त कोई मजबूत जानकारी अभी तक सामने नहीं लाई जा सकी है| ऐसी कल्पनाएँ रहस्यों को और अधिक उलझा देती हैं | 

     कहा जाता रहा कि जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर थी वे संक्रमित हुए हैं! प्रश्न उठता है कि प्रतिरोधक क्षमता के कमजोर होने पर तो महामारी के बिना भी लोग रोगी हो सकते हैं और हमेंशा होते रहते हैं ! उनके रोगी होने का कारण उनके अपने शरीर में प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना है या कोरोना महामारी का दुष्प्रभाव ! निजी कारणों से अस्वस्थ होने के लिए किसी महामारी को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता  है !

    प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने  के विषय में कहा जाता है कि स्वास्थ्य के अनुकूल रहन सहन सुपौष्टिक खान पान आदि अपनाकर प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत किया जा सकता है,किंतु व्यवहार में ऐसा देखा जाता है  जो साधन संपन्न वर्ग अपनी एवं अपने बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने के लिए जन्म से लेकर जीवन भर  ऐसे सभी प्रयत्न करता रहता है |वही वर्ग उन साधन विहीन लोगों की तुलना में अधिक संक्रमित हुआ है !

     कहा जाता रहा कि संक्रमण के थोड़े भी लक्षण दिखाई दें तो चिकित्सालयों में शरण लो !वहाँ चिकित्सा का लाभ लेकर स्वस्थ हुआ जा सकता है, किंतु जिन विकसित  देशों या विकसित नगरों महानगरों की चिकित्सा व्यवस्था विशेष उन्नत मानी जाती है | उन अमेरिका जैसे देशों या भारत के दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में महामारी का प्रकोप अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक हुआ ! यहाँ तक देखा गया कि गहन चिकित्सा कक्षों में वेंटीलेटरों पर रहते हुए भी उस वर्ग के रोगियों को प्राण छोड़ने पड़ रहे थे |  जिसके जन्म से सारे टीके लगे टॉनिक पी,समय समय पर आवश्यक विटामिन लेता रहा ! स्वास्थ्य के अनुकल रहन सहन खानपान आदि अपनाता रहा !फिर भी सबसे अधिक संक्रमण का शिकार हुआ है !

    कहा जाता रहा कि कोविड नियमों के पालन न करने से कोविड संक्रमण  बढ़ता है किंतु कोरोना काल में दिल्ली मुंबई सूरत आदि से निकले यूपी बिहार के श्रमिक लोग ,दिल्ली में धरने पर बैठे किसान एवं बिहार बंगाल की चुनावी रैलियाँ एवं कुंभमेला समेत समस्त ऐसे स्थल जहाँ बहुत भीड़ होने के कारण कोविड नियमों का पालन नहीं किया जा सका ! विशेषज्ञों के द्वारा ऐसी संभावना भी व्यक्त की गई कि ऐसे स्थानों से संक्रमण बहुत फैलेगा !किंतु उन अवसरों पर उन भीड़ों में सम्मिलित लोगों से संक्रमण तो नहीं बढ़ा !

     कहा गया कि वायु प्रदूषण बढ़ने से संक्रमण बढ़ता है किंतु अक्टूबर नवंबर 2020 में वायु प्रदूषण बढ़ने पर भी कोरोना संक्रमण कम होता जा रहा था तथा मार्च अप्रैल 2021 जब वायु प्रदूषणमुक्त आकाश होने के कारण पंजाब एवं बिहार से हिमालय दिखाई पड़ने लगा था | इतना प्रदूषणमुक्त वातावरण होने पर भी भारत में   सबसे बड़ी कोरोना की लहर इसी समय आई थी |  

       सर्दी जैसी ऋतुओं के समय तापमान घट जाने के कारण कोरोनाजनित संक्रमण बढ़ने का अनुमान व्यक्त किया जाता रहा है और गर्मी में तापमान बढ़ जाने के कारण कोरोनाजनित संक्रमण कम होने की बातें कही जाती रही हैं | व्यवहार में देखा जाए तो सर्दी में तो केवल तीसरी लहर ही आई थी बाक़ी तीनों लहरें गर्मी के समय ही आईं  थीं जब तापमान बढ़ा हुआ था | 

    ऐसे ही चिकित्सा  के लिए जिन प्लाज्मा थैरेपी एवं रेमडेसिविर इंजेक्शनों को पहले तो संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए प्रचारित किया जाता रहा किंतु उनका वैसा प्रभाव नहीं दिखाई पड़ा जैसा कि अनुमान लगाया गया था |

    कुलमिलाकर जहाँ एक ओर गर्व करने लायक इतना उन्नत विज्ञान वहीं दूसरी ओर इतनी बड़ी बड़ी हिंसक महामारियों समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं से अभी भी मनुष्य इतना अनजान है कि न जाने कब कितनी बड़ी प्राकृतिक आपदा या महामारी आ जाए जिससे अचानक समाज को जूझना पड़ जाए | महामारी अपने आपसे गई है या किसी मनुष्यकृत प्रयास से गई है या कोई लहर अभी और आने वाली है | इस विषय में किसी को कुछ पता ही नहीं है |इतने उन्नतविज्ञान के द्वारा उपलब्ध कराई गई सुख सुविधा की चीजों को भोगने के लिए जीवन की सुरक्षा तो सर्वप्रथम आवश्यक है | जीवन ही सुरक्षित न बचे तो सुख सुविधा के इतने सारे संसाधन मनुष्यों के  किस का महामारी पैदा होने का कारण और पूर्वानुमान !

     
       महामारी पैदा होने का स्पष्ट कारण पता लगे तो उसके आधार पर पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | किसी भी घटना के घटित होने के कारण को जाने बिना पूर्वानुमान लगाया जाना संभव ही नहीं है | किसी रोग की चिकित्सा करने से पहले रोग का कारण पता  लगाना होता है कारण पता लगने के बाद न केवल पूर्वानुमान लगाना आसान हो जाएगा प्रत्युत उस कारण के आधार पर ही रोग का निवारण कर लिया जाएगा |
     कारण पता लगे बिना पूर्वानुमान लगाना तो संभव नहीं है किंतु संकट के अनुसार ही समाधान के लिए प्रयत्न कर लिए जाते हैं !चक्रवात आते हैं तो उन्हें उपग्रहों रडारों से देखकर यथा संभव बचाव करने का प्रयत्न किया  जाता है |बिल्कुल मदद न मिलने की अपेक्षा इस जुगाड़ से जितनी भी मदद मिल पाती है | उतनी भी बहुत है |
   कभी कभी कई कई चक्रवात बहुत कम अंतराल में आते देखे जाते हैं | ऐसी स्थिति में उपग्रहों रडारों से देखकर यह अंदाजा तो लगाया जा सकता है कि एक और आ रहा है | उसके बाद भी वही कि एक और आ रहा है,किंतु उपग्रहों रडारों या सुपर कंप्यूटरों से यह नहीं पता लगाया जा सकता है कि इस वर्ष इस समय ही ऐसा क्यों हो रहा है कि इतने कम समय में इतने अधिक चक्रवात आते देखे जा रहे हैं | 
     ऐसा ही वर्षा के विषय में होता है |उपग्रहों रडारों से जितनी दूर तक के बादल देखे जा सकते हैं |उतने के विषय में ही अंदाजा लगाया जा सकता है | इसीलिए कई बार जो बादल दिखाई दिए उनकी गति और दिशा के अनुसार ये पता लगा लिया गया कि ये कब कहाँ पहुँच कर लगभग कितने दिन बरस सकते हैं | उसी के अनुसार भविष्यवाणी कर दी जाती है कि उस स्थान पर तीन दिन वर्षा होने की संभावना है | उन तीन दिनों में दो दिन बीतने के बाद कुछ दूसरे बादल फिर से उपग्रहों रडारों में दिखाई देने लगे !उनके अनुसार फिर भविष्यवाणी कर दी जाती है कि अभी 48 घंटे वर्षा और होगी | उन 48 घंटों के बीत जाने के बाद भी वर्षा होना बंद नहीं हुआ !उधर उपग्रहों रडारों में कुछ और बादल भी आते दिखाई देने लगे तो 72 घंटे और वर्षा होने की भविष्यवाणी कर दी जाती है | इस बार इतने कम समय में लगातार इतने दिनों तक वर्षा होने का कारण क्या है | इस प्रश्न का उत्तर उपग्रहों रडारों या सुपर कंप्यूटरों से मिल पाना कैसे संभव है | 
     ऐसी स्थिति में यदि चक्रवात निर्मित होने के वास्तविक कारण पता होते तो उन कारणों के आधार पर चक्रवात आने से काफी पहले चक्रवातश्रंखला के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है|ऐसे ही  वर्षा होने के लिए जिम्मेदार यदि वास्तविक कारण पहले से पता होते तो उन कारणों के आधार पर वर्षा शुरू होने से पूर्व ही यह पूर्वानुमान लगाया जा चुका होता कि इस वर्ष इस समय में इतने दिनों तक वर्षा होगी | 
      इसी प्रकार से कोरोना महामारी के पैदा होने का यदि वास्तविक कारण पता होता तो  महामारी पैदा होने के विषय में एवं उसकी लहरों के आने और जाने के विषय में उसी कारण के आधार पर महामारी या उसकी लहरों के आने और जाने के विषय में काफी पहले ही पूर्वानुमान लगाया जा सकता था |
      इसमें विशेष बात यह है कि वह कारण यदि परिवर्तनशील है तो पहले उस कारण के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना आवश्यक होता | उन्हीं कारण संबंधी पूर्वानुमानों के आधार पर महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता था |

      उदाहरणरूप में महामारी पैदा होने के लिए यदि तापमान बढ़ने या घटने  को जिम्मेदार कारण माना जाता,तो तापमान बढ़ने और घटने के विषय में जितना सही पूर्वानुमान लगाया जा पाता महामारी या उसकी लहरों के आने और जाने के विषय में उतना ही सही पूर्वानुमान लगाया जा सकता था |ऐसे ही  ,वर्षा होने न होने,वायु प्रदूषण बढ़ने  घटने जैसी जिस किसी भी घटना को महामारी पैदा होने के लिए जिम्मेदार कारण  माना जाता | उसके विषय जितना सही पूर्वानुमान लगाया जा पाता महामारी या उसकी लहरों के आने और जाने के विषय में उतना ही सही पूर्वानुमान लगाया जा सकता था | 



ऐसे अनुसंधानों से क्या हो पाएँगे समस्याओं के समाधान !

      किसी भी शब्द के साथ विज्ञान अनुसंधान रिसर्च) आदि शब्द जोड़ देने से वो उस विषय का विज्ञान नहीं हो जाता है |जिस प्रक्रिया के द्वारा रोगों को समझकर उनसे मुक्ति दिलाने के कार्य में सफलता प्राप्त की जा सके |वही चिकित्सा विज्ञान है | चिकित्सा करने के नाम पर जितना जो कुछ भी किया जाए वो सब कुछ चिकित्सा विज्ञान नहीं हो  सकता है | 
    भोजन  बनाने संबंधी प्रक्रिया में ईंधन आटा दाल चावल लाने की प्रक्रिया को रसोईविज्ञान नहीं माना  जा सकता है |ऐसे ही यंत्रों के द्वारा भूकंपों की तीव्रता गहराई आदि नापने को भूकंप विज्ञान नहीं  माना जा सकता है | यंत्रों के द्वारा बादलों या आँधी तूफानों को दूर से देखकर उनके विषय में कोई अंदाजा लगाने को मौसम विज्ञान नहीं कहा जा सकता है |यंत्रों की मदद से वायुप्रदूषण के स्तर को नाप लेने या उसके बढ़ने के लिए कुछ काल्पनिक कारणों को जिम्मेदार मान लेने की प्रक्रिया को पर्यावरण विज्ञान नहीं कहा जा सकता है |
       प्राकृतिक घटनाओं के स्वभाव को जिस ज्ञान विशेष के द्वारा समझा जा सके वही उस घटना से संबंधित विज्ञान हो सकता है | वर्तमान समय में चिंता की बात यह है कि इतने उन्नत विज्ञान के होते हुए भी कोरोना महामारी के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाए जा सके| जो लगाए भी गए वे सही नहीं निकले | ऐसे ही महारोग मुक्ति दिलाने की विश्वसनीय चिकित्सा नहीं खोजी जा सकी | महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए बनाए गए टीकों के प्रभाव को संशय मुक्त नहीं रखा जा सका !कोविड  से बचाव के लिए बनाए गए नियमों का प्रभाव प्रायोगिक रूप से प्रमाणित नहीं किया जा सका !चिकित्सा संबंधी प्लाज्मा थैरेपी जैसे कुछ प्रयत्नों को एक बार प्रभावी बताने के बाद प्रायोगिक रूप से प्रमाणित न सिद्ध हो पाने पर कदम पीछे खींचने पड़े | ऐसे संपूर्ण क्रिया कलापों वक्तव्यों दावों को महामारीविज्ञान कैसे माना जा सकता है | इसकी उपयोगिता  को जनहित में कैसे सिद्ध किया जा सकता है |
    कुल मिलाकर प्राकृतिक घटनाओं या महामारियों को समझने के लिए जो भी वैकल्पिक व्यवस्थाएँ हैं| उन्हें तब तक उनका विज्ञान नहीं माना जाना चाहिए ,जब तक उस शोध से संबंधित मनुष्यों की चिंताओं को कम करके  सुरक्षित रखने एवं सुख सुविधा पहुँचाने संबंधी अनुभवों में सहायक रूप से प्रमाणित न किए जा सकें |   

      मौसम संबंधी जिन प्राकृतिक घटनाओं के विषय में हमेंशा अनुसंधान होते रहते हैं !उन अनुसंधानों का आधार यदि सही हो और अनुसंधानों में सही वैज्ञानिक प्रक्रिया का परिपालन किया जाए तो मौसम मानसून एवं प्राकृतिक आपदाओं के विषय में तो सही पूर्वानुमान लगाया ही जा सकता है | इसके साथ ही साथ महामारी जैसी घटनाओं से भी समाज की सुरक्षा करने में इतनी कठिनाई नहीं होती |जैसे अनुसंधान होंगे वैसे परिणाम निकलेंगे ! ऐसी रिसर्चों से सच्चाई कैसे सामने लाई जा सकती है |

     एक बार कुछ दृष्टिहीन (अंधे) लोगों को रिसर्च करने की जिम्मेदारी सौंपी गई | उन्हें पता लगाना था कि "हाथी कैसा होता है !" उन दृष्टिहीन लोगों ने हाथी को कभी देखा नहीं था और न ही उसके विषय में कभी कुछ सुना था |ऐसे लोगों के बीच हाथी को लाकर खड़ा किया गया | उन्होंने अपनी अपनी सुविधा के अनुसार  हाथी का स्पर्श किया | उनमें से जिसका हाथ हाथी के जिस अंग पर पड़ा उसे लगा कि हाथी वैसा ही होता है | जिसका हाथ हाथी के पैर पर पड़ा उसने लिखा कि हाथी खंभे जैसा होता है !पेट पर जिसका हाथ पड़ा उसने लिखा कि हाथी पहाड़ जैसा होता है |इसी प्रकार से उनके अनुभवों से एक  शोधप्रबंध (थीसिस)लिख तो दिया गया किंतु उसे पढ़कर यह जानना संभव नहीं हो पाया कि "हाथी कैसा होता है !"

     इसलिए उन्हीं लोगों को रिसर्च करने के लिए  एक और अवसर दिया गया | उन्होंने  फिर अपनी अपनी सुविधानुसार हाथी को स्पर्श किया |अबकी बार उनके हाथ पहली बार से अलग कुछ दूसरे अंगों पर पड़े | इसलिए अबकी उनके अनुभव भी पहले की अपेक्षा अलग हुए |इसलिए पहले के शोध प्रबंध से इस शोधप्रबंध की विषयवस्तु में बहुत अंतर आ गया |

      पहली बार जिसका हाथ हाथी के पैर पर पड़ा था | इसलिए उसे लगा था कि हाथी खंभे जैसा होता है | अबकी बार उसका  हाथ हाथी की पूँछ पर पड़ा तो उसे लगा कि हाथी सर्प जैसा होता है| ऐसे ही सभी के हाथ हाथी के कुछ दूसरे अंगों पर पड़े | इसलिए अब उन सभी के अनुभव बदल चुके थे | पहली बार  पेट पर हाथ पड़ने से जिसने पहले हाथी को पहाड़ जैसा माना था | उसके हाथ में अबकी बार हाथी की सूँड लगी | इसलिए अबकी बार उन्होंने हाथी को अजगर जैसा बताया | 

     इस प्रकार से उन सभी के अनुभव बदलते देख कर उनसे पूछा  गया कि हाथी को आपने पहले तो  पहाड़ जैसा बताया था, किंतु अबकी बार आपने हाथी को अजगर जैसा बताया है |  इन दो प्रकार के उत्तरों में अंतर आने का कारण क्या है ? अपनी अनुसंधान क्षमता की कमी स्वीकार करने के बजाए उन्होंने कहा कि हाथी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है | इसलिए " हाथी कैसा होता है " अनुसंधानों के द्वारा यह पता लगाया जाना संभव ही नहीं है | इस प्रकार से  "हाथी कैसा होता है |" यह पता लगाने के लिए शोधप्रबंध तो दो तैयार हो गए किंतु यह पता नहीं लगाया जा सका  कि  "हाथी कैसा होता है |" 

     इसी प्रकार से वर्षा आँधी तूफ़ान बज्रपात चक्रवात भूकंप एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में अनुसंधानों के नामपर शोध प्रबंध तो न जाने कितने तैयार किए जा चुके होंगे किंतु किसी भी घटना के स्वभाव के आधार पर उसे सही सही समझना एवं उसके विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान लगाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है |  मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में ऐसी स्थिति हमेंशा से देखी जाती रही है | महामारी के विषय में अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं से समाज पहली बार परिचित हुआ है | इन्हीं अनुसंधानों के घमंड से जो लोग भारत के जिस प्राचीन विज्ञान को अंधविश्वास बताया करते हैं | उन्हीं के सामने भारत की उसी प्राचीन वैज्ञानिक क्षमता को प्रस्तुत कर रहा हूँ जिससे ये अनुमान लगाया जा सकता है कि इससे संबंधित अनुसंधान मौसम एवं महामारी संबंधी अनुसंधानों के लिए कितने सहायक हो सकते हैं |

                                    वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए अनुमान !

                                   मौसम से महामारी 

                                  वायुप्रदूषण से महामारी 

                                  तापमान कम होने से महामारी 

                                    कोविड नियम  और महामारी  
                                    वैक्सीन और महामारी 

                                      वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान !


                                            महामारी की चिकित्सा 

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