तृतीय : समय विज्ञान खंड 3, book 18-11-20024 महामारी रहस्य पर लेख डालने हैं !
महामारी संक्रमण बढ़ने घटने में मौसम की भूमिका !
कुछ वैज्ञानिक इस बात से भले सहमत नहीं हैं कि महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने में मौसम का प्रभाव पड़ता है,जबकि वैज्ञानिकों के बड़े वर्ग को यह कहते सुना जाता रहा है कि महामारी जनित संक्रमण बढ़ने और घटने का कारण मौसम संबंधी घटनाएँ होती हैं| संभवतः इसीलिए महामारी संबंधी अनुसंधानों को करने की प्रक्रिया में मौसमवैज्ञानिकों को सम्मिलित किया गया है | वैज्ञानिकों के ऐसे दोनों प्रकार के वक्तव्यों से किसी निष्कर्ष पर पहुँचना संभव नहीं है| इससे कोई निष्कर्ष निकाला जाना तभी संभव है जब महामारी के घटने बढ़ने के विषय में मौसम के आधार पर पूर्वानुमान लगाया जाए यदि वो सही निकले तो मान लिया जाए कि महामारी पर मौसम का प्रभाव पड़ता है अन्यथा नहीं पड़ता है |
इसी उद्देश्य से कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी
का वेग बढ़ने घटने के जो पूर्वानुमान व्यक्त किए गए वे सही नहीं घटित हुए
! वैसे भी कुछ वैज्ञानिकों के
द्वारा वर्षा होने पर संक्रमण कम होने की बात कही गई थी,किंतु पहली लहर का
पीक 18 सितंबर 2020 को जब आया था उस समय वर्षा ऋतु ही चल रही थी और दूसरी
लहर जब आई उस समय वर्षाऋतु न होने पर भी वर्षा निरंतर होते देखी जा रही थी
| वर्षा के प्रभाव से यदि संक्रमण कम होना होता तब तो उस समय संक्रमण बढ़ना
ही नहीं चाहिए था किंतु ऐसा नहीं हुआ |ऐसी स्थिति में महामारी संबंधी
संक्रमण बढ़ने घटने पर मौसम संबंधी प्रभाव पड़ता है या नहीं | ये तर्कों एवं
साक्ष्यों के आधार पर कहा जाना अभीतक संभव नहीं हो सका है |
तापमान बढ़ने घटने से घटता बढ़ता है महामारी संक्रमण ?
कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा तापमान बढ़ने घटने का प्रभाव महामारी पर पड़ने की बात कही गई थी| जिसे मानकर कुछ लोगों ने अनावश्यक रूप से गर्म पानी से नहाना तथा गर्म पानी पीना आदि शुरू कर दिया था | वैज्ञानिकों के वक्तव्यों का अभिप्राय यह था कि तापमान बढ़ने पर महामारी संक्रमण कम होगा और तापमान कम होने पर महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ेगा | इस हिसाब से ग्रीष्म(गर्मी)की ऋतु में महामारी संबंधी संक्रमण कम होना चाहिए था और हेमंत एवं शिशिर जैसी सर्दी की ऋतुओं में बढ़ना चाहिए था |ऐसा कुछ हुआ नहीं !पहली लहर का पीक 18 सितंबर 2020 को जब आया था उस समय वर्षा ऋतु होते हुए भी ग्रीष्मऋतु की तरह ही तापमान काफी बढ़ा हुआ था |सामान्य वर्षों में ऐसा होते कम देखा जाता है | उस समय इतनी अधिक गर्मी थी | दूसरी लहर मार्च अप्रैल 2021 में जब आई उस समय बसंत और ग्रीष्मऋतुओं की संधि थी | ये कालखंड तापमान बढ़ने के लिए जाना जाता है | उस समय तापमान बढ़ने के प्रभाव से संक्रमण कम होना होता तो हो जाता,किंतु ऐसा हुआ नहीं प्रत्युत संक्रमण काफी अधिक बढ़ गया था |ऐसी स्थिति में महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने - घटने पर तापमान बढ़ने -घटने का प्रभाव पड़ता है या नहीं | ये तर्कों एवं साक्ष्यों के आधार पर कहा जाना अभीतक संभव नहीं हो सका है |
क्या वायुप्रदूषण बढ़ने से बढ़ जाता है संक्रमण !
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महामारी का विस्तार कितना है ?
कोरोना काल में पृथ्वी पर बिचारण
करने वाले मनुष्य उन्मादित थे | पशुओं में ऐसा पागलपन सवार था कि किसानों
की फसलें बर्बाद किए डाल रहे थे | आकाश में उड़ने वाले पक्षी भी बेचैन थे |
टिड्डियाँ आकाश ढके ले रही थीं |संपूर्ण
कोरोना काल में विभिन्न देशों प्रदेशों में अचानक बहुत बड़ी संख्या में
पक्षियों की मृत्यु होते देखी जा रही थी | बार बार आँधी तूफानों चक्रवातों
बज्रपातों की घटनाएँ घटित होते देखी जा रही थीं |वायु प्रदूषण विशेष बढ़ रहा
था | ऐसे ही संपूर्ण कोरोना काल में समूचे विश्व के समुद्रों नदियों
तालाबों में अचानक बड़ी संख्या में मछलियों की मृत्यु होते देखी जा रही थी
|कोरोना काल में धरती के अंदर रहने वाले चूहे इतने अधिक उन्मादित हो गए थे
कि ब्रिटेन आस्ट्रेलिया जैसे अनेकों देशों प्रदेशों में चूहों के कारण
लोगों का जीना मुश्किल हो रहा था |धरती में बार बार भूकंप आते देखे जा रहे
थे |
ऐसे सभी उपद्रव विशेषकर कोरोना काल में ही अधिक घटित हुए थे | ऐसी स्थिति
में जल थल आकाश पाताल समेत संपूर्ण पृथ्वी में जीव जंतुओं के साथ साथ
मनुष्यकृत उपद्रव घटित होते देखे जा रहे थे | कुछ देश एक दूसरे पर हमला
करते देखे जा रहे थे | कुछ देशों में आतंरिक कलह के कारण हिंसक आंदोलन
होते देखे जा रहे थे | ऐसी समस्त घटनाएँ कोरोना काल में अचानक घटित होने
लगने का कारण कोरोना महामारी से संबंधित था या कुछ और ! महामारी को समझने
के लिए इसे समझा जाना आवश्यक है कि महामारी का प्रभाव केवल पृथ्वी पर ही है, या आकाश और पाताल भी महामारीजनित बिषैलेपन से प्रभावित हुए हैं |महामारी
का विस्तारक्षेत्र अभी तक अघोषित है |
महामारी का प्रसार माध्यम क्या है ?
महामारी संक्रमितों के स्पर्श से फैलती है या इसके फैलने का कारण कुछ और
ही है |बहुत साधन संपन्न लोग ऐसे हैं जिन्होंने संपूर्ण रूप से कोविड
नियमों का पालन किया इसके बाद भी संक्रमित हुए | उन तक कोरोना संक्रमण कैसे
पहुँचा होगा |
कुछ देशों में फूलों फलों आदि खाद्य पदार्थों की जाँच किए जाने पर उनके अंदर महामारी के बिषाणुओं को पाया गया है | कुछ देशों में नदियों नालों तालाबों आदि के जलों को संक्रमित पाया गया है | कुछ देशों में पशुओं को संक्रमित होते देखा गया है |कुछ देशों में कौवों चमगादड़ों आदि को संक्रमित होते देखा गया है |यदि ऐसा है तब तो बहुत आसानी से प्रसार हो सकता है क्योंकि खाए पिए बिना तो कोई रहा नहीं होगा |
ऐसे ही कुछ देशों में पशुओं को भी संक्रमित पाया गया था |जिन पशुओं के दुग्ध का सेवन किया जा रहा था वे पशु यदि संक्रमित रहे होंगे तो उनका दुग्ध भी तो संक्रमित हुआ होगा | दुग्ध और दुग्ध संबंधी चाय आदि पीने खाने की चीजों का उपयोग तो हमेंशा होता ही रहा है |ये भी संक्रमण प्रसार का एक माध्यम हो सकता है |ये संशय अभी तक बना हुआ है कि कोरोना के प्रसार का माध्यम क्या रहा होगा |
कैसा है महामारी का स्वरूप और उसमें परिवर्तन क्या हुआ !
किसी भी रोगी की चिकित्सा करते समय सर्व प्रथम रोग और रोगी की प्रकृति
पहचाननी होती है |उसका स्वरूप समझना होता है |उसी के अनुशार औषधि या चिकित्सा के विषय में निर्णय लिया जाता है |महामारी का वेग इतना अधिक होता है कि रोग और रोगी की प्रकृति पहचानने या स्वरूप समझने के लिए समय ही नहीं होता है |उस समय तो बचाव के लिए तुरंत प्रभावी
प्रयत्न शुरू करने होते हैं |ऐसी स्थिति में जब रोग की प्रकृति और स्वरूप
पता ही नहीं लगाया जा सका तो ये किस आधार पर कहा जा सकता है कि महामारी का
स्वरूप परिवर्तन हो गया !ऐसा कहने के लिए महामारी के दोनों स्वरूपों को
सामने रखना होगा कि पहले स्वरूप वैसा था किंतु अब ऐसा है | ऐसा किया नहीं
जा सका !
महामारी का वेग काफी अधिक होने के कारण उसकी प्रकृति और स्वरूप समझे बिना ही केवल लक्षणों के आधार पर रोगियों को स्वस्थ करने के उद्देश्य से औषधियाँ देनी पड़ती हैं | रोग के विषय में कुछ भी पता न होने के कारण अंदाजे के आधार पर दी गई ऐसी औषधियों से रोगी को रोग मुक्ति मिलेगी या रोग और अधिक बढ़ जाएगा ! इस विषय में विश्वासपूर्वक कुछ भी कहा जाना संभव नहीं होता है|
महामारी के स्वरूपपरिवर्तन का मतलब क्या !
महामारी संबंधी संक्रमण प्राकृतिकरूप से कभी बढ़ने तथा कभी कम होने लगता है| संक्रमण बढ़ते समय बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होने लगते हैं और संक्रमण घटते समय अधिकांश संक्रमितों में सुधार तो प्राकृतिकरूप से होता है ,किंतु जो लोग कोई औषधि ले रहे होते हैं उन्हें लगता है कि उनके शरीरों में उसी औषधि के प्रभाव से सुधार हो रहा है |
ऐसे समय लोग स्वस्थ तो प्राकृतिक रूप से हो रहे होते हैं ,किंतु बहुत लोग स्वस्थ होने के लिए कोई न कोई उपाय भी कर रहे होते हैं | कुछ लोग औषधि ले रहे होते हैं !कुछ अपने अपने धार्मिक विश्वास के अनुशार कोई उपाय कर रहे होते हैं | वे सब अपने स्वस्थ होने का श्रेय अपने द्वारा किए जा रहे उपायों को देते हैं | चिकित्सालयों में भर्ती कुछ लोग चिकित्सा का लाभ ले रहे होते हैं | ऐसे समय उन्हें चिकित्सकों के द्वारा जो औषधियाँ दी जा रही होती हैं |उनके स्वस्थ होने का न केवल न केवल श्रेय उन औषधियों को दिया जाता है ,प्रत्युत उसी औषधि को महामारी की प्रभावी औषधि मानलिया जाता है |ऐसा भ्रम तब तक बना रहता है जब तक महामारी की दूसरी लहर नहीं आती है |
महामारी की दूसरी लहर आने पर जब संक्रमितों की संख्या अचानक तेजी से बढ़ने लगती है | ऐसे रोगियों पर तब उसी औषधि का प्रयोग किया जाता है जिसे पिछली बार महामारी से मुक्ति दिलाने वाली प्रभावी औषधि माना गया था | दूसरी लहर में जब उस औषधि से किसी रोगी को जब कोई लाभ नहीं होता है ,प्रत्युत संक्रमण तेजी से बढ़ता चला जा रहा होता है ,तब यह भ्रम टूट जाता है और सच्चाई सामने आ जाती है कि पहली लहर में प्राकृतिक रूप से स्वस्थ हुए लोगों को इस औषधि के प्रभाव से स्वस्थ हुआ गलती से मान लिया गया था | प्रत्यक्ष रूप से यह गलती स्वीकार किया जाना काफी कठिन होता है | इसलिए इस औषधि के विषय में हमारा अनुमान गलत निकला ऐसा न कहकर यह कह दिया जाता है कि महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो जाने के कारण उस प्रभावी औषधि का इन संक्रमितों पर प्रभाव नहीं पड़ रहा है | सच्चाई ये है कि महामारी संक्रमितों पर उस औषधि का प्रभाव न उस समय पड़ा होता है और न ही अबकी बार पड़ा है | प्राकृतिक रोगों में ऐसा भ्रम होते हमेंशा से देखा जाता रहा है |वैसे भी जब महारोग और रोगी की प्रकृति एवं स्वरूप पहचाना ही न जा सका हो तो उसकी चिकित्सा के विषय में विश्वास पूर्वक कुछ कैसे कहा जा सकता है|
ऐसी स्थिति में यह पता लगाया जाना आवश्यक है कि उन औषधियों से पहली बार कोई लाभ हुआ था या नहीं !यदि हुआ था तो दूसरी बार उनसे लाभ न होने का कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन था या कुछ और !यदि स्वरूप परिवर्तन था तो पहले क्या स्वरूप था और बाद में उसमें किस प्रकार का ऐसा क्या बदलाव आया जिससे उन औषधियों से कोई लाभ नहीं हुआ ?
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कोविडनियमों का पालन न करके भी कुछ लोग संक्रमित नहीं हुए ?
नगरों महानगरों में गरीबों के बच्चे भोजन के लिए लाइनों में लगे रहे !जहाँ जिसने जो जैसा दिया वही खा या पहन लेते रहे ! शहरों में फल और सब्जी वाले लोग संपूर्ण कोरोनाकाल में फल सब्जी बेचते रहे ! संपन्न लोगों के यहाँ नौकरी करने वाले लोग उनके यहाँ न केवल फल सब्जी पहुँचाते रहे प्रत्युत उनके संक्रमित होने पर उन्हें लेकर अस्पताल जाते रहे उनके पहने हुए कपड़े लेकर घर आते रहे | कोरोना संक्रमण से मृत्यु होने पर पुजारी क्रियाकर्म कराने जाते रहे ! उनका स्पर्श किया हुआ किया समान भी लेते रहे !घनी बस्तियों में या बड़ी बड़ी फैक्ट्रियों में आवासीयसंस्थाओं आश्रमों एवं अनाथाश्रमों आदि में जहाँ कहीं भी सामूहिक रहन सहन खानपान सोना जागना आदि होता रहा ! वहाँ ऐसा भी देखा गया कि उनमें से कुछ लोग संक्रमित हो भी गए तो उन्हीं के साथ रहने सोने जागने खाने पीने वाले लोग तो संक्रमित नहीं हुए |ऐसे ही दिल्ली मुंबई सूरत आदि से पलायित श्रमिक ,दिल्ली में किसानआंदोलन में सम्मिलित लोग, बिहार और बंगाल की चुनावी रैलियाँ एवं हरिद्वार में आयोजित कुंभमेला ऐसे सभी स्थानों पर भारी भीड़ें उमड़ीं वहाँ कोविड नियमों का पालन संभव ही न था |
कोविडनियमों के न पालन करने से कोरोनासंक्रमण बढ़ता है |ऐसा मानने वाले वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसी आशंका भी व्यक्त की गई थी कि ऐसे स्थानों पर कोविड नियमों का पालन न करने के कारण संक्रमितों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाएगी !किंतु ऐसा कुछ न करके भी वे सभी स्वस्थ बने रहे |
कोरोना बाहर से आया या शरीरों के अंदर ही पैदा हुआ !
कोरोनाविषाणुओं को हवा में भी पाया गया था ! यदि छुआछूत को संक्रमण के प्रसार का माध्यम मान लिया जाए तो कोरोना हवा में कैसे पहुँचा उस माध्यम को भी खोजा जाना चाहिए |कोरोना प्राकृतिक वातावरण से साँस के साथ मनुष्यों के अंदर पहुँचा या फिर मनुष्यों से साँस के साथ प्राकृतिक वातावरण में पहुँचा |
एक देश विशेष में की गई रिसर्च के अनुसार कहा गया कि कोरोना वायरस जंगल से इंसानों के बीच कस्तूरी बिलाव, चूहे और रैकून कुत्तों के जरिये पहुँचा। इस पर प्रश्न उठता है कि ऐसे जीवों को यह वायरस कहाँ से मिला और उनसे मनुष्यों में कैसे पहुँचा !
इसके समर्थन में तर्क दिए जाते हैं कि कोरोना एक दूसरे के संपर्कों से फैलता है | यदि ऐसा है तो लॉकडाउन जैसे कोविड नियमों का कठोर पहरा बैठाकर लोगों को एक दूसरे के संपर्क में नहीं आने दिया गया ! उस समय तो संक्रमण रुक जाना चाहिए था किंतु उसके बाद भी लोग महामारी से संक्रमित होते देखे जाते रहे हैं |इसलिए ऐसी शंकाएँ उठनी स्वाभाविक ही हैं कि ऐसा किया जाना विश्ववैज्ञानिक जगत का भ्रम ही तो नहीं था |
एक बात यह भी है कि तंजानियाँ जैसे कुछ देशों में फलों की जाँच किए जाने पर उनके आतंरिक भाग कोरोना संक्रमित पाए गए ! चारों ओर से पूरी तरह बंद पपीता आदि फलों का आतंरिक भाग बाह्य कारणों से कैसे संक्रमित हो सकता है |उसमें तो बाहरी हवा या पानी का प्रवेश संभव ही नहीं था| इसलिए स्पर्श के कारण तो कोरोना उसमें प्रवेश कर ही नहीं सकता था,तो उसके अंदर कोरोना कहाँ से आया होगा !
ऐसे ही एक गर्भस्थ शिशु को कोरोना था जबकि उसके माता पिता को कोरोना कभी हुआ ही नहीं था | 24 मई 2021 को बीएचयू अस्पताल में भर्ती हुई महिला की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई,जबकि उसने जिस बच्ची को जन्म दिया। उसका कोरोना टेस्ट कराया गया तो कोरोना संक्रमित पाई गई ! यदि पति पत्नी समेत परिवार के किसी सदस्य को कोरोना कभी हुआ ही नहीं था,तो उनकी गर्भस्थ बच्ची में कोरोना संक्रमण कैसे पहुँचा !ऐसी ही एक घटना दक्षिण भारत की भी सुनी गई थी |
ऐसी परिस्थिति में जिस प्रकार से बिना किसी प्रत्यक्ष माध्यम के चारों ओर से बंद पपीता आदि फलों के अंदर महामारी संबंधी बिषाणु पहुँच सकते हैं| उसी प्रकार से खाने पीने की वस्तुओं में ,औषधियों एवं औषधीय द्रव्यों से कोरोना पहुँच सकता है |
ऐसे ही जिस प्रकार से गर्भस्थ शिशु के अंदर ऐसे बिषाणु पहुँच सकते हैं |उसी प्रकार से सभी मनुष्यों के अंदर सबका अपना अपना कोरोना पैदा हो सकता है| ऐसे ही सभी प्राणियों के अंदर भी कोरोनाबिषाणु स्वयं ही पैदा हो सकते हैं|ऐसे ही लोगों के मुख की साँस के आवागमन से यदि हवा में बिषाणु पहुँच सकते हैं तो उसी हवा में साँस लेने के कारण हवा से दूसरे मनुष्यों के अंदर भी प्रवेश कर सकते हैं|खाने पीने की वस्तुओं से संक्रमण पहुँच सकता है|औषधियों एवं औषधीय द्रव्यों से कोरोना पहुँच सकता है|
ऐसी स्थिति में महामारी के बिषाणु यदि मनुष्यों के अंदर ही पैदा हुए हों | वे मनुष्य जो कुछ खा पी रहे थे वो भी संक्रमित था | जिससे संक्रमण और बढ़ रहा था | वो जिस हवा में साँस ले रहे थे वो हवा संक्रमित थी | जो उस संक्रमण को बढ़ाने में सहायक हो रही थी |महामारी जनित संक्रमण से संक्रमित होने के कारण संक्रमितों को दी जाने वाली औषधियाँ बनस्पतियाँ आदि भी संक्रमित हो सकती थीं |जिनके सेवन से कोरोना संक्रमितों को रोगमुक्ति दिलाने के लिए प्रयत्न किए जा रहे थे |
ऐसा बिचार करके मैंने ऐसे सभी विषयों में आवश्यक जानकारियाँ जुटाकर
उनके आधार पर महामारी को समझने के लिए प्रयत्न किया है |प्राचीन गणितविज्ञान आधार पर महामारी के विषय में मैं
जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाता रहा हूँ | वे सही
निकलते रहे हैं | प्रत्येक लहर के विषय में मैंने अभी तक जो जो पूर्वानुमान
लगाए हैं वे सही निकलते रहे हैं |वे तारीखों के साथ पीएमओ की मेल पर भेजता रहा हूँ |
सोचने वाली बात है कि यदि फलों के अंदर कोरोना के बिषाणु पाए गए हैं | गर्भिणी एवं उसके पति को कभी कोरोना न होने पर भी उसके गर्भस्थ शिशु को संक्रमित पाया गया है |ऐसे स्थानों पर बिषाणुओं के पहुँचने का कोई प्रत्यक्ष कारण दिखाई न देने पर ये आशंका होनी स्वाभाविक ही है कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि कोरोनासंक्रमण शरीरों के अंदर आतंरिक कारणों से ही पैदा होता हो ! संभव है कि कोरोना महामारी प्रकृति में हुए किसी बड़े परिवर्तन का ही अंश हो ! इसलिए मनुष्य शरीरों में कोरोना संक्रमण कहीं बाहर से आ रहा था या कि शरीरों के अंदर ही पैदा हो रहा था | इस रहस्य को सुलझाया जाना बहुत आवश्यक है |कोविड नियमों का पालन करने बाद भी लोगों का कोरोना संक्रमित होना भी यही सिद्ध करता है | ऐसे कोई प्रामाणिक या अनुभवजनित साक्ष्य घोषित नहीं किए जा सकें हैं जिनके आधार पर यह कहा जाना संभव हो कि कोविड नियमों का पालन करने वाले महामारी जैसे संक्रमण से सुरक्षित हो जाते हैं |
कोरोना का प्रसार कैसे होता था !
कोरोना संक्रमितों के स्पर्श से ही कोरोना फैलता होगा यदि इसे सच मान लिया जाए तो उस पहले व्यक्ति में कोरोना कहाँ से आया होगा | जिसने किसी संक्रमित व्यक्ति को छुआ ही नहीं था फिर भी सबसे पहले संक्रमित हुआ था | दूसरी बात विश्व को यह तो पता चल ही गया था कि किसी देश विशेष में ऐसी किसी महामारी ने जन्म ले लिया है | उसका प्रसार प्रारंभ हो गया है |ऐसी स्थिति में चिकित्सा की दृष्टि से अत्यंत उन्नत साधनों से संपन्न अमेरिका जैसे देश उस देश विशेष से दूरी बनाकर अपने को सुरक्षित क्यों नहीं रख सखे | कुछ अन्य देश भी अपने संसाधनों के बलपर अपने को सुरक्षित रख सकते थे, किंतु ऐसा क्यों नहीं किया जा सका !
महामारी पीड़ितों पर नहीं पड़ रहा था औषधियों का प्रभाव !
चिकित्सा में प्रयोग की जाने वाली औषधियाँ कितनी शुद्ध थीं|ऐसी शंका होनी इसलिए स्वाभाविक है | क्योंकि महामारीजनित संक्रमण यदि फलों के अंदर तक पहुँच सकता है तो उन बनस्पतियों ,औषधियों या निर्मित औषधियों के भी आतंरिक भाग में प्रविष्ट होकर उन औषधियों के चिर प्रतिष्ठित गुणों में भी बिकार उत्पन्न कर सकता है | इससे जिन रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए जो ओषधियाँ जानी जाती रही हैं | उन रोगों पर उन औषधियों का अब वैसा प्रभाव पड़ना संभव नहीं होगा जैसा पहले पड़ता रहा है|ऐसी स्थिति में जिन औषधियों का प्रयोग करके जिसप्रकार के रोगों से मुक्ति दिलाई जाती रही है |उन औषधियों में बिकार आ जाने के कारण अब उस प्रकार का प्रभाव उनमें नहीं रहेगा जैसा पहले था |उस प्रकार के रोगियों पर जब उन औषधियों का प्रयोग किया जाएगा तो उनसे लाभ नहीं होगा ! ऐसी स्थिति में औषधियाँ देखने में वैसी ही लगती हैं | इसलिए उन पर तो संशय होता नहीं है,प्रत्युत रोग पर संशय होने लगता है कि यदि यह वही रोग होता तो उन औषधियों से लाभ मिलना चाहिए था !किंतु ऐसा न होने से लगता है कि महारोग का स्वरूप परिवर्तन हो गया है | इसलिए ऐसी औषधियों का गुणपरिवर्तन एवं महामारी के स्वरूप परिवर्तन का संयुक्त अनुसंधान करके यह पता लगाया जाना चाहिए कि महामारी से संक्रमितों पर औषधियों का प्रभाव न पड़ने का कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन था या औषधियों का गुणपरिवर्तन !
लोग महामारी के कारण रोगी हुए या प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण !
महामारी काल में संक्रमित होने का कारण प्रतिरोधक क्षमता की कमी को बताया जाता रहा है|इसका मतलब ये हुआ कि प्रतिरोधक क्षमता के मजबूत होने से संक्रमित होने का भय कम रह जाता है | इसीलिए जिनकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रही वे संक्रमित ही नहीं हुए ! इनसे भी अधिक मजबूत प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग संक्रमितों के बीच रहकर भी संक्रमित नहीं हुए !इन दोनों से अधिक मजबूत प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग संक्रमितों के साथ रहकर भी स्वस्थ बने रहे !उन्हें वैक्सीन आदि औषधियों की भी आवश्यकता नहीं पड़ी |इन तीनों से भी अधिक मजबूत प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों ने तो न कोविड नियमों का पालन किया और न वैक्सीन आदि औषधियों का ही सेवन किया !संक्रमितों के बीच भी निर्भीक घूमते रहे फिर भी वे बिल्कुल संक्रमित नहीं हुए |
इसका मतलब क्या यह हुआ लोगों के संक्रमित होने का कारण महामारी न होकर प्रत्युत प्रतिरोधक क्षमता की कमजोरी थी |क्या ऐसा भी संभव है कि देशवासियों की प्रतिरोधक क्षमता यदि मजबूत होती तो देशवासियों को कोरोना महामारी से कोई भय ही नहीं होता |प्रतिरोधक क्षमता के बलपर क्या देश और समाज को महामारी मुक्त बनाए रखा जा सकता है |इस विषय में अनुसंधान पूर्वक कोई निश्चित उत्तर खोजा जाना चाहिए ! जो भविष्य के लिए हितकर होगा |
प्रतिरोधक क्षमता कैसे बढ़ती है ?
बताया जाता है कि स्वास्थ्य के अनुकूल पौष्टिक खाने पीने से,समय से टीके लगवाने से,टॉनिक पीने,बिटामिन सेवन करने से, वातानुकूलित सुविधा पूर्ण शयन कक्षों में सुखद बिछौनों पर सोने आदि से प्रतिरोधक
क्षमता बढ़ती है| साधन संपन्न लोगों के यहाँ तो ये सारी सुविधाएँ होती ही
हैं | वहाँ तो बच्चों का जन्म भी चिकित्सकों के हाथों में होता है|चिकित्सकों के द्वारा बताए गए टीके,टॉनिक,बिटामिन आदि का समय से सेवन किया जाता है|चिकित्सकों के द्वारा निर्द्धारित किए गए रहन सहन खानपान आदि का अनुपालन होता रहा है|इस
वर्ग ने चिकित्सकों के द्वारा बताए गए कोरोना नियमों का पालन बड़ी कठोरता
से किया है |ऐसा करने में इनकी कोई मजबूरी भी नहीं थी | ऐसे साधन संपन्न
लोग बड़ी बड़ी कोठियों के एकांत कमरों में रहकर अपने पारिवारिक चिकित्सकों से
सलाह लेते बने रहे | आवश्यक सामान कर्मचारी लोग समय से पहुँचाते रहे |इन सबसे उस साधनसंपन्न वर्ग की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो जानी चाहिए थी,किंतु
यदि ऐसा हुआ होता तो साधन संपन्न वर्ग संक्रमित नहीं होता !किंतु यह वर्ग
गरीबों की अपेक्षा अधिक संक्रमित हुआ है| इसका कारण खोजा जाना अत्यंत
आवश्यक है |प्रतिरोधक क्षमता
के द्वारा कोरोना महामारी से बचाव हो सकता या नहीं !यदि हो सकता है तो हुआ
क्यों नहीं !दूसरी बात ऊपर कहे गए पौष्टिक खान पान आदि से प्रतिरोधक
क्षमता बढ़ती है या नहीं |यदि बढ़ती है तो ऐसे लोगों की बढ़ी क्यों नहीं और
यदि नहीं बढ़ती है तो फिर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती कैसे है ?
प्रतिरोधकक्षमता से मृत्यु को टालना संभव है क्या ?
महामारीकाल में कुछ लोग स्वस्थ बने रहे !माना गया कि उनकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रही होगी |कुछ लोग संक्रमित होने बाद स्वस्थ हो गए ! माना गया कि इनकी प्रतिरोधक क्षमता पहले कमजोर रही होगी तब संक्रमित हुए बाद में मजबूत हो गई तो स्वस्थ हो गए | विशेष बात यह है कि जो लोग संक्रमित होने के बाद मृत्यु को प्राप्त हो गए !क्या ऐसी घटनाएँ भी प्रतिरोधक क्षमता की कमी के कारण घटित हुई हैं | प्रतिरोधक क्षमता यदि मजबूत होती तो क्या मृत्यु होने जैसी घटनाएँ टाली जा सकती थीं |दूसरी बात जो लोग संक्रमित हुए बिना ही हँसते खेलते नाचते गाते बात करते उठते बैठते खाते पीते पूजा पाठ करते समय अचानक मृत्यु को प्राप्त हो गए |ऐसे लोगों की मृत्यु तो हुई किंतु वे संक्रमित नहीं हुए | ऐसे लोगों की प्रतिरोधक क्षमता यदि कमजोर थी तो वे संक्रमित क्यों नहीं हुए और यदि प्रतिरोधक क्षमता मजबूत थी इसलिए संक्रमित नहीं हुए ! ऐसी स्थिति में प्रतिरोधक क्षमता यदि मजबूत ही थी तो उनकी मृत्यु होने का कारण क्या था ? अनुसंधान पूर्वक तर्क संगत ढंग से इस रहस्य को उद्घाटित किए जाने की आवश्यकता है |
मृत्यु होने का कारण रोग होता है या दुर्घटनाएँ !
महामारी में कुछ लोग संक्रमित हुए |उनमें से कुछ लोगों की मृत्यु हो गई | ऐसी मौतों के लिए महामारी से संक्रमित होने को जिम्मेदार मान लिया गया ! कुछ रोगियों को चिकित्सा के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया ! उन सभी की पूर्ण सतर्कता पूर्वक अच्छी से अच्छी चिकित्सा की गई ,फिर भी उनमें से कुछ लोगों की मृत्यु हो गई जिसके लिए चिकित्सकीय लापरवाही को जिम्मेदार मान लिया गया | किसी स्थान पर कोई दुर्घटना घटित हुई | उसकी चपेट में आने पर भी कुछ लोगों को खरोंच भी नहीं आई !कुछ घायल हुए ! उनमें से कुछ घायलों की मृत्यु हो गई | ऐसी मौतों के लिए उस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है |
इसमें विशेष बात ये है कि संक्रमितों की मृत्यु का कारण यदि महामारी होती तो सभी संक्रमितों की मृत्यु होती !ऐसे ही चिकित्सकीय
लापरवाही से मृत्यु होती तो उन सभी की होती जिनकी एक जैसी चिकित्सा की गई
थी | दुर्घटना से मृत्यु होती उन सभी की होती जो एक ही दुर्घटना के शिकार
हुए थे !ऐसी स्थिति में महामारी के समय हुई इतनी अधिक मौतों का कारण क्या
था ये इसलिए पता लगाया जाना आवश्यक है | महामारी के समय हुई इतनी अधिक
मौतों के लिए क्या वास्तव में महामारी ही जिम्मेदार थी या कुछ और !यदि और
तो वह और क्या था !उस और से बचाव किया जा सकता है क्या यदि हाँ तो कैसे ?
मृत्यु होने का कोई कारण होना आवश्यक है क्या ?
कोई रोग हुए बिना या किसीप्रकार की चोट लगे बिना भी कुछ लोग अचानक मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | महामारी के समय और उसके बाद में भी ऐसा हुआ |रोगी होने के बाद संभव है कि शरीर अधिक दुर्बल होकर प्राणों को धारण करने लायक न रहे |ऐसे ही किसी दुर्घटना का शिकार होने से संभव है कि शरीर प्राणों को धारण करने लायक ही न बचे | ऐसे मृत्यु होने पर कारण प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा होता है | इसलिए उन घटनाओं को मृत्यु का कारण माना जा सकता है,परंतु जो लोग संक्रमित हुए बिना ही हँसते खेलते नाचते गाते बात करते उठते बैठते खाते पीते पूजा पाठ करते समय अचानक मृत्यु को प्राप्त हो गए |उनकी मृत्यु का प्रत्यक्षकारण दिखाई न देने पर उनकी मृत्यु के लिए किसे जिम्मेदार माना जाना चाहिए | ऐसे लोगों की मृत्यु के लिए जो कारण जिम्मेदार हो सकता है | वही कारण रोगी एवं दुर्घटनाग्रस्त लोगों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार क्यों नहीं हो सकता है |जो भी हो किंतु किसी की मृत्यु होने का वास्तविक कारण खोजे बिना इस बात को स्पष्ट किया जाना कैसे संभव है कि किसकी मृत्यु का कारण क्या है | मृत्यु के कारण को अच्छी प्रकार से समझे बिना महामारी के समय हुई मौतों के लिए महामारी को किस आधार पर जिम्मेदार ठहराया जा सकता है |जिस प्रकार से रोग का कारण समझे बिना चिकित्सा की जानी संभव नहीं है,उसी प्रकार से मृत्यु का वास्तविक कारण पता लगाए बिना लोगों के जीवन को सुरक्षित बचाने के लिए प्रभावी प्रयत्न किया जाना कैसे संभव है |
मृत्यु होने का कारण समय भी हो सकता है क्या ?
भारत का प्राचीन परंपरा विज्ञान किसी की मृत्यु होने का कारण उसका अपना
समय मानता है | उसकी मान्यता यहाँ तक है कि कोई ऐसा रोग या कोई ऐसी
दुर्घटना जिससे मृत्यु होनी होती है | इसकी चपेट में वही व्यक्ति आता है
जिसकी अपनी आयु पूरी हो चुकी होती है | इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि कई
बार अधिक संख्या में लोग अचानक रोगी होने लगते हैं |जिनकी मृत्यु का समय नहीं आया होता है | ऐसे रोगी स्वस्थ हो जाते हैं |
उन रोगियों में कुछ रोगी ऐसे भी होते हैं,जिनकी आयु उसी समय पूरी हुई होती
है |इसलिए उनकी मृत्यु हो जाती है |मृत्यु आयु पूरी होने के कारण होती है
किंतु आयु पूरी होना परंपरा विज्ञान में तो माना जाता है किंतु आयु पूरी
होते प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ता है |इसलिए विज्ञान आयु पूरी होने को मृत्यु का कारण न मान कर उनके रोगी होने या दुर्घटनाग्रस्त होने जैसे प्रत्यक्षकारण को मृत्यु के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है |
कुछ रोगियों को चिकित्सा के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया जाता है ! उनमें से कुछ रोगियों की आयु पूरी हो चुकी होती है| इसलिए पूर्ण सतर्कता के साथ अच्छी से अच्छी चिकित्सा तो उन सभी रोगियों की गई होती है ,किंतु स्वस्थ वही होते हैं जिनकी आयु पूरी नहीं हुई होती है | जिनकी आयु पूरी हो गई होती है अच्छी से अच्छी चिकित्सा का लाभ लेकर भी वे स्वस्थ नहीं हो पाते हैं | उनकी मृत्यु हो ही जाती है | आयु पूरी होना प्रत्यक्ष दिखाई न पड़ने के कारण चिकित्सा में लापरवाही को जिम्मेदार कारण मान लिया जाता है |
ऐसे ही किसी स्थान पर जिस समय कोई दुर्घटना घटित हुई | वहाँ उपस्थित लोगों में से कुछ लोग उस दुर्घटना के शिकार हो गए हों | उन घायलों में से कुछ की मृत्यु का समय भी तभी आ पहुँचा हो !इसलिए उन लोगों की मृत्यु तो समय के प्रभाव से उसी समय हो जाती है | समय का प्रभाव प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ता है | दुर्घटना प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रही होती है | इसलिए ऐसी मौतों का प्रत्यक्ष कारण उस दुर्घटना को मान लिया जाता है |
इसी प्रकार से जिस समय महामारी आई उसी समय कुछ लोगों की मृत्यु का समय आ पहुँचा होगा | जिनकी मृत्यु का समय आया | इसलिए उन लोगों की मृत्यु तो समय प्रभाव से हुई होगी ,किंतु ऐसी मौतों के लिए महामारी को जिम्मेदार मान लिया जाता है !
कुल मिलाकर मृत्यु होने का कारण यदि समय ही होता है तो महामारी के समय इतनी बड़ी संख्या में लोगों की आयु पूरी होने का कारण क्या था | ये अनुसंधानपूर्वक पता लगाया जाना चाहिए |
मृत्यु होने का कारण केवल शरीर ही तो नहीं होता है !
परंपरा विज्ञान की दृष्टि से तो किसी की मृत्यु होने या न होने में शरीर के साथ साथ प्राणों और आत्मा की भी भूमिका होती है| शरीर के साथ प्राण आत्मा आदि का संयोग जब तक रहता है तब तक जीवन रहता है और जैसे ही प्राण आत्मा आदि शरीर से निकल जाते हैं वैसे ही मृत्यु हो जाती है | यह सच है कि शरीर के नष्ट होते ही प्राण आत्मा आदि शरीर को छोड़ देते हैं किंतु शरीर के संपूर्ण रूप से सुरक्षित रहते हुए भी जिनकी मृत्यु अचानक हो जाती है |ऐसे स्वस्थ एवं सुरक्षित शरीरों को भी प्राण आत्मा आदि छोड़कर जाने का कारण क्या होता है | प्राण आत्मा आदि के छोड़कर जाने की उनकी अपनी कोई परिस्थिति होती है ! जिसके कारण ऐसे शरीरों में उन्हें घुटन होने लगती है और ऐसे शरीरों में उनका रह पाना कठिन हो जाता है !उनके शरीरों में कोई बिकार आ जाता है या मन में कोई बिकार आ जाता है ! ऐसी भी संभावना हो सकती है क्या कि किसी अप्रत्यक्ष शक्ति के निर्देश के अनुशार ही उन्हें शरीरों में रहना या छोड़ना होता है |प्राण और आत्मा को किसी चिकित्सा के बलपर क्या किसी शरीर से बाँध कर रखा जाना संभव है यदि नहीं तो ये कैसे कहा जा सकता है ,कि अमुक व्यक्ति को यदि समय से चिकित्सा मिल जाती तो उसकी मृत्यु नहीं होती ! कुलमिलाकर प्राण और आत्मा के संचार को ठीक ठीक समझे बिना ये कैसे कहा जा सकता है कि किसकी मृत्यु होने का कारण क्या है ?इसलिए अनुसंधानों के आधार पर मृत्यु के रहस्य को सुलझाया जाना चाहिए | जिससे यह पता लगाया जा सके कि किसकी मृत्यु महामारी से हुई है या किसकी मृत्यु का समय ही आ गया था |क्या लौकिक प्रतिरोधक क्षमता के बलपर वो अलौकिक क्षमता विकसित की जा सकती है | जिससे मनुष्य के स्वस्थ रहने के साथ साथ प्राण रक्षा भी हो सके |
धर्म कर्म से जुड़े लोगों का भी होता रहा महामारी से बचाव !
किसान मजदूर गरीब ग्रामीण एवं रिक्साचालक, शहरों में फल सब्जी बेचने वाले
आदि मजबूरीबश कोविड नियमों का पालन न करके भी साधन संपन्न वर्ग की अपेक्षा
कम संक्रमित हुए हैं होते देखा गया | इसका कारण ये माना जा सकता है कि वे
परिश्रम अधिक करते हैं | इसलिए उनके शरीर अधिक मजबूत हो चुके हैं |प्रश्न
उठता है कि साधू संतों आदि धर्म कर्म से जुड़े लोगों को भी अपेक्षाकृत कम
संक्रमित होते देखा गया है |माना जा सकता है कि वे अपने अपने आश्रमों में
एकांतबास करते रहे | इसलिए कम संक्रमित हुए होंगे |यजमानों के यहाँ दुर्भाग्यवश किसी की मृत्यु होने पर महामारी काल में भी पंडितों
पुजारियों ने घर घर जाकर श्राद्ध आदि कर्म करवाए हैं ,फिर भी औरों की
अपेक्षा वे बहुत कम संख्या में संक्रमित हुए हैं |ऐसे ही श्मशानों में अंत
क्रिया करवाने वाले पंडा लोग भी कम संक्रमित हुए हैं | ऐसे लोंगों का
संक्रमित होने से बचाव होने का वास्तविक कारण क्या हो सकता है | ये
अनुसंधान पूर्वक पता लगाया जाना चाहिए |
गरीबों ग्रामीणों किसानों और श्रमिकों पर कम रहा महामारी का प्रभाव !
साधन संपन्न वर्ग की अपेक्षा किसानों मजदूरों श्रमिकों में कोरोना संक्रमण का प्रभाव कम पड़ा ! श्रमिकलोग अपने अपने गाँव जाने के लिए जब दिल्ली
मुंबई सूरत आदि शहरों से निकले उस समय कोविड नियमों का पालन संभव न था !
उस समय विशेषज्ञों को यह कहते सुना गया था कि ये श्रमिक जहाँ जहाँ जाएँगे ,
वहाँ वहाँ बहुत तेजी से संक्रमण फैलेगा !किंतु वे सब अपने अपने गाँवों में
सकुशल पहुँचे और सभी स्वस्थ बने रहे !बिहार बंगाल की चुनावी रैलियों के
समय भी ऐसी आशंका जताई गई थी ! दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के समय भी
ऐसा अनुमान किया गया था !हरिद्वार के कुंभ मेले के विषय में भी ऐसा कहा गया
था | महानगरों में फल और सब्जी वालों के विषय में भी यही आशंका जताई जा
रही थी !किंतु इसप्रकार की आशंका अंदाजे अनुमान आदि सही नहीं निकले और वे
लोग स्वस्थ एवं सुरक्षित बने रहे !जबकि इसी आशंका के कारण कोविडनियमों को
अनिवार्य बनाया गया था | बचाव के उद्देश्य से ही लॉकडाउन लगाया गया था |
ऐसी आशंकाएँ कितनी उचित थीं !ये केवल अंदाजा ही था या ऐसे अनुमानों का कोई
वैज्ञानिक आधार भी था और वो क्या था ! उस अनुमान के सच न निकलने का
अनुसंधान जनित कारण क्या था|भविष्य की सुरक्षा के लिए अनुसंधान पूर्वक इसका
सच सामने लाया जाना चाहिए |
प्राकृतिक रोगों की चिकित्सा और भ्रम !
ऐसी परिस्थिति में रोग और रोगी के विषय में वास्तविक जानकारी न होने पर चिकित्सा
से लाभ होगा या फिर नहीं होगा बात केवल इतनी ही नहीं है ,प्रत्युत कई
औषधियों के भयंकर दुष्प्रभाव भी होते देखे जाते हैं | ऐसी स्थिति में
महामारी जनित बड़ी बड़ी समस्याएँ जहाँ एक ओर डरा रही होती हैं | वहीं आधी
अधूरी कच्ची पक्की जानकारी के आधार पर की गई चिकित्सा के दुष्प्रभाव भी कई
बार भुगतने पड़ते हैं | महारोग से पीड़ितों के शरीर दुर्बल वैसे भी होते हैं |
ऐसे दुष्प्रभावों को सह पाना उनके लिए न केवल कठिन होता प्रत्युत कई बार असंभव भी होता है | जिसके बड़े दुष्प्रभाव भी देखने को मिलते हैं |
इसलिए सही तथ्यों के बिना किसी ऐसी औषधि को रोगविशेष की औषधि मान लेना उचित नहीं है जो उस रोग की औषधि ही न हो | कोरोना महामारी के समय में प्लाज्मा थैरेपी इसी का उदाहरण है |जिसे पहले औषधि माना गया बाद में चिकित्सा प्रक्रिया से अलग कर दिया गया | ऐसी स्थिति के पैदा होने का कारण यह है कि जिन लोगों को पहले प्लाज्मा दी गई थी |उसके बाद कुछ लोग स्वस्थ होते देखे गए थे | वे प्लाज्मा लेने के बाद स्वस्थ हुए थे, किंतु प्लाज्मा के प्रभाव से स्वस्थ नहीं हुए थे |वे स्वस्थ प्राकृतिक रूप से ही हुए थे |जिसे भ्रमवश प्लाज्मा का प्रभाव समझकर प्लाज्माप्रयोग को संक्रमितों की चिकित्सा के लिए उचित माना गया था |
मृत्यु का रहस्य क्या है ?
कौन रोगी होगा किसकी होगी मृत्यु समझिए गणितविज्ञान से !
इसमें कोई संशय नहीं है कि विज्ञान ने बहुत उन्नति की है |संशय इसमें भी नहीं है कि इतने उन्नत विज्ञान के होते हुए भी कोरोना महामारी के समय केवल भारत में ही लाखों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं|मृतकों की यह संख्या इतनी अधिक है कि भारत को पडोसी देशों के साथ जो तीन युद्ध लड़ने पड़े हैं | उन तीनों युद्धों में जितने लोगों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हुई थी | उससे कई गुना अधिक लोगों की मृत्यु केवल कोरोनामहामारी में हुई है |ऐसे ही भूकंप बाढ़ आँधी तूफानों में बहुत जनधन की हानि हो जाती है |
चिकित्सा वैज्ञानिकों के प्रयत्नों से बड़ी संख्या में रोगियों को
आरोग्य प्रदान करके सुरक्षित कर लिया जाता है |ऐसे कार्यों में वैज्ञानिक
उपलब्धियाँ बड़ी सहायक सिद्ध होती हैं,किंतु कोरोनामहामारी से जूझते
संक्रमितों को स्वस्थ करने में एवं मृत्यु से सुरक्षित करने में किसी भी
प्रयत्न से जनता को कोई मदद नहीं पहुँचाई जा सकी है |
जिसप्रकार से शत्रुओं तथा शत्रुदेशों के द्वारा किए जाने वाले हमलों से
अपनी सुरक्षा सुनिश्चित के लिए शत्रुकृत उपद्रवों के विषय में
गुप्तसूचनाओं को पहले से पता लगाकर आगे से आगे से आगे तैयारियाँ करके रखनी
पड़ती हैं तब शत्रुओं को पराजित करके उसपर विजय पाना संभव हो पाता है| शत्रुओं से निपटने की जो तैयारियाँ हमेंशा चला
करती हैं|वही आवश्यकता पड़ने पर काम आती हैं| शत्रुपर विजय प्राप्त करने की
योजना बनाते समय सेना यह नहीं देखती है कि कहाँ किससे कितनी मदद लेनी पड़
रही है|वो किसानों मजदूरों चरवाहों से भी शत्रु संबंधित सूचनाएँ एकत्रित
करती है |किसान मजदूर चरवाहे आदि स्वयं सैनिक भले न हों किंतु हुए भी उनकी सहायता से सैनिकों को युद्ध जीतने में मदद मिलती है |
इसीप्रकार से महामारी से सुरक्षा का लक्ष्य लेकर आगे से आगे मजबूत तैयारियाँ की जानी चाहिए | महामारी के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान या प्रभावी चिकित्सकीय सहयोग जितना जहाँ से मिले वहाँ से लिया जाना चाहिए | महामारी पर विजयप्राप्त करने के लक्ष्य की पूर्ति में जितनी भी विधियाँ सहायक हो सकती हैं |उन सभी का सहयोग लेकर लक्ष्य साधन किया जाना चाहिए|आधुनिकविज्ञान,प्राचीनविज्ञान, आयुर्वेद, ज्योतिष आगम आदि जितनी भी विधाएँ सहायक हो सकती हैं| उन सबका सहयोग लेकर महामारी जैसी बड़ी समस्या का समाधान खोजा जाना चाहिए|शत्रुदेशों से सुरक्षा के लिए जैसे शक्तिसंचित की जाती है| कोरोना जैसी महामारियों से सुरक्षा के लिए उससे भी मजबूत तैयारियाँ करके हमेंशा रखकर चलना होगा |
इसके बिना कोई भी वैज्ञानिक उपलब्धि मनुष्यों को निर्भय एवं सुखशांति पूर्ण सुरक्षित जीवन नहीं प्रदान कर सकेगी |महामारियों आदि से मनुष्यों का जीवन सुरक्षित बचेगा तभी वैज्ञानिक उपलब्धियों से प्राप्त सुख सविधाओं का लाभ लिया जा सकेगा |
वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य तो मनुष्यों की कठिनाइयाँ कम करके उन्हें सुखी एवं सुरक्षित रखना है |महामारी से यदि मनुष्यों की ही सुरक्षा नहीं की जा सकी तो समय रहते इस पर बिचार किया जाना चाहिए | अभी तक तो ये सबकुछ किसी प्रकार से सहा गया | भविष्य की महामारियों से जीवन को सुरक्षित बचाने के लिए ऐसे अनुसंधानों का कोई प्रभावी विकल्प खोजना होगा !यदि ऐसा नहीं किया जा सकता तो ऐसे अनुसंधानों का औचित्य सिद्ध किया जाना भी कठिन होगा |
महामारी पैदा होने का कारण क्या था ?
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