द्वितीय : समय विज्ञान खंड 2 , book 18-11-20024 समय पर जो लेख हैं उन्हें डालना है !

                              वर्तमान चिकित्सा प्रक्रिया में ऐसा क्या है,जो पहले नहीं था  ?
 
    कई आधुनिकचिकित्सा चिंतकों का मत है कि प्राचीनकाल में आधुनिकविज्ञान जब नहीं था तब चिकित्सा की अच्छी व्यवस्था नहीं थी |उससमय  रोगों के परीक्षण के लिए अभी की तरह प्रभावी यंत्र नहीं होते थे| चिकित्सा की इतनी उन्नत व्यवस्था नहीं थी| जिसके  कारण लोगों के छोटे छोटे रोग भी चिकित्सा के अभाव में बढ़ते बढ़ते एक दिन भयंकर रूप धारण कर लिया करते थे| चिकित्सा की इतनी अच्छी व्यवस्था न होने के कारण  बहुत लोग चिकित्सा के अभाव में मृत्यु को प्राप्त हो जाया करते थे | 
   वर्तमान समय में चिकित्सा विज्ञान अत्यंत उन्नत हो गया है | रोग मुक्ति दिलाने में सहायक बड़े बड़े यंत्रों का आविष्कार कर लिया गया है | जिनसे रोगों के सटीक परीक्षण में बहुत मदद मिलते देखी जाती है |चिकित्सा के विषय में नित नूतन अनुसंधान होते देखे जा रहे हैं |जिनसे बड़े बड़े रोगों की चिकित्सा करना और अधिक विश्वसनीय एवं आसान होता जा रहा है | इससे ऐसे गंभीर रोगियों की भी चिकित्सा कर ली जाती है| जिनके विषय में ऐसा सोचा जाता रहा है कि ये शायद स्वस्थ नहीं हो पाएँगे|उन्हें भी चिकित्सा के द्वारा स्वस्थ कर लिया जाता है | बड़े बड़े गंभीर रोग आपरेशन आदि करके ठीक कर लिए जाते हैं| 
   विशेष बात यह है कि चिकित्सा का लाभ लेने के बाद जिनके स्वास्थ्य में सुधार हो जाता है|उनके स्वस्थ होने का श्रेय चिकित्सा को दिया जाना स्वाभाविक है,किंतु यह भी बिचार किए जाने की आवश्यकता है कि जंगलों में निवास करने वाले बनबासियों को भी सभीप्रकार के रोग होते होंगे| उन्हें उन्नत चिकित्सा का लाभ भले न मिल पा रहा हो किंतु वे भी स्वस्थ होते हैं| उनमें भी कुछ लोग अस्वस्थ बने रहते हैं और कुछ की मृत्यु होते देखी जाती है |यदि उन्नतचिकित्सा का लाभ लेने और न लेने वाले दोनोंप्रकार के लोगों में लगभग एक जैसी घटनाएँ घटित होती हैं तो चिकित्सा से होने वाले लाभ और बिना चिकित्सा के होने वाले नुक्सान के विषय में आकलन किस आधार पर किया जा सकता है |
    उन्नत  चिकित्सा के अभाव में बनबासी भी रोगी होने के बाद स्वस्थ तो होते ही होंगे| चिकित्सा का लाभ न मिलने पर भी उनकी मृत्यु  तो नहीं ही हो जाती होगी|इसीलिए तो उनकी बंश परंपरा अभी तक सुरक्षित चलते देखी जा रही है | 
  किसी के  रोगों के बढ़ने का कारण यदि चिकित्सा का अभाव होता अथवा किसी की मृत्यु होने का कारण यदि चिकित्सा का अभाव होता तो प्राचीन काल में अधिकाँश लोग या तो गंभीर रोगों के शिकार होते या फिर मृत्यु को प्राप्त हो चुके होते ! उससमय जनसंख्या वर्तमानसमय की अपेक्षा बहुत कम रही होगी | ऐसीस्थिति में सृष्टिक्रम का अभी तक चलना कैसे संभव हो पाता | 
    जंगलों में पशु पक्षी तथा वहाँ के निवासी एक दूसरे से लड़ झगड़ कर घायल हो जाते होंगे | कुछ के बड़े बड़े घाव भी हो जाते होंगे | चिकित्सा के बिना भी उनके घाव भर कर कुछ समय में उन्हें स्वस्थ होते देखा जाता होगा |                                                                                                                                                             दूसरी ओर चिकित्सकीय साधनों से संपन्न कुछ लोग पूर्णतः स्वस्थ होते हैं | उसी बीच बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के उन्हें पहले कोई सामान्य रोग होता है | उस रोग से मुक्ति पाने के लिए वे किसी बड़े  चिकित्सालय में एडमिट होते हैं |रोग से मुक्ति दिलाने के लिए एक ओर चिकित्सक अच्छी से अच्छी चिकित्सा करते जा रहे होते हैं,तो दूसरी ओर  उस रोगी का रोग बढ़ते बढ़ते गंभीर हुआ जा रहा होता है |इसीक्रम में रोगी वेंटिलेटर पर पहुँच जाता है|उसीसमय उच्चस्तरीय चिकित्सकों की सघन चिकित्सा का लाभ लेते हुए भी वेंटिलेटर पर पड़े उस रोगी की अचानक मृत्यु हो जाती है |
    देखा जाए तो वह रोगी घर से जब आया था तब उसे कोई बहुत साधारण रोग था | उच्चस्तरीय चिकित्सकों की सघन चिकित्सा का लाभ लेते हुए ही वह दिनोंदिन अस्वस्थ होता चला जाता है और अंत में मृत्यु होते देखी जाती है | ऐसी स्थिति में ये कहना उचित नहीं होगा कि प्राचीनकाल में चिकित्सा के अभाव में लोग गंभीर रोगों के शिकार होते थे या चिकित्सा के अभाव में लोगों की मृत्यु होती थी| वर्तमानसमय में भी ऐसा होता है|अभी कोरोनाकाल में भी बहुत लोगों की मृत्यु वेटीलेटरों पर पड़े पड़े हुई|
    ऐसीस्थिति में ये कहा जाना उचित नहीं होगा कि चिकित्सा के अभाव में बढ़ते चले जाते हैं| समयजनित जिन रोगों को जिसके शरीर में जब पैदा होना होता है तब पैदा होते ही हैं| उन्हें जितना बढ़ना होता है उतना बढ़ते ही हैं | उनकी जब समाप्ति होनी होती है तभी होती है | 
   किसी रोगी की मृत्यु हो जाती है | या उनमें से किस रोगी की मृत्यु उसी रोग से होनी है| चिकित्सालयों में बने शवगृह  इस बात की गवाही देते हैं कि समय के आधार पर जिसकी मृत्यु जब होनी है | उसे चिकित्सा से टाला जाना संभव नहीं है |
    ऐसे साधन संपन्न लोगों के घायल होने पर उच्चस्तरीय चिकित्सकों के द्वारा अच्छी से अच्छी चिकित्सा किए जाने पर भी घाव भरने में समय लगता है और जंगलों में पशुओं या लोगों के घायल होने पर उनके भी घाव भरने में समय लगता है|बिचार किया जाए तो उन दोनों प्रकार के लोगों में घाव भरने के लिए बाक़ी परिस्थितियाँ अलग अलग हो सकती हैं, किंतु घाव के भरने में समय की आवश्यकता उन दोनोंप्रकार के लोगों को पड़ती है| इसलिए घाव भरने का मुख्यकारण समय ही तो नहीं है|

                                    मृत्यु का कारण चिकित्सा का अभाव है या कुछ और !    

  रोगमुक्त हो चुके रोगियों को देखकर तो कहा जा सकता है कि ये चिकित्सा के प्रभाव से स्वस्थ हुए हैं !किंतु स्वस्थ होना यदि चिकित्सा से संभव होता तो चिकित्सा के बाद भी जिनकी मृत्यु हुई होती है | चिकित्सा का प्रभाव उन पर भी वैसा ही पड़ना चाहिए था और उन्हें भी चिकित्सा के प्रभाव से स्वस्थ हो जाना चाहिए था | यदि उसमें सुधार न भी होता तो चिकित्सा का प्रभाव  इतना तो पड़ना ही चाहिए था कि रोगी अस्वस्थ ही बना रहता उसकी मृत्यु ही नहीं हुई होती ! तो सोच लिया जाता कि चिकित्सा के प्रभाव से रोगी की स्थिति बिगड़ने नहीं दी गई |
      चिकित्सालय लाए जाने के बाद  चिकित्सा का लाभ लेते हुए भी रोगी की स्थिति यदि बिगड़ती चली गई |उसके बाद रोगी की मृत्यु हो गई,तो उसकी मृत्यु होने का कारण यदि चिकित्सा का दुष्प्रभाव न भी माना जाए तो भी ये तो कहा ही जा सकता है कि उस रोगी पर चिकित्सा का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है | ऐसी स्थिति में ये कहा जाना कितना तर्कसंगत है,कि जो रोगी स्वस्थ हुए हैं वे चिकित्सा के प्रभाव से स्वस्थ हुए हैं | आखिर एक  जैसी चिकित्सा के दो प्रकार के परिणाम निकलने का कारण क्या है | उसे खोजे जाने की आवश्यकता है |   
     चिकित्सालयों में अनेकों प्रकार के रोगी लाए जाते हैं|उनमें से कुछ के स्वस्थ होने,कुछ के अस्वस्थ रहने एवं कुछ की मृत्यु होने का क्या कारण होता है |चिकित्सालयों में शवगृह बनाए जाने से ये सिद्ध होता है कि चिकित्सा का लाभ लेने के बाद भी कुछ रोगी मृत्यु को प्राप्त होंगे ही !इससे  प्रश्न उठता है कि चिकित्सा के द्वारा क्या उन्हीं रोगियों को स्वस्थ किया जा सकता है| जो रोगी स्वस्थ होने लायक होते हैं | यदि ऐसा है तो स्वस्थ होने लायक रोगी तो जहाँ कहीं रहेंगे वहीं स्वस्थ हो जाएँगे | उन्हें चिकित्सालय लाए जाने या चिकित्सा करने की आवश्यकता ही क्या है? 
     विशेष बात यह है कि यदि वर्तमानसमय के अति उन्नत चिकित्सालयों में पहुँचकर उन्नत चिकित्सा का लाभ लेने के बाद भी कुछ रोगी अस्वस्थ बने ही रहते हैं | उनमें से कुछ रोगियों की मृत्यु हो ही जाती है तो यह कहा जाना कितना उचित होगा कि प्राचीनकाल में जब चिकित्सा की उचित व्यवस्था नहीं थी तब बहुत लोगों के रोग चिकित्सा के आभाव में बढ़ते जाते थे एवं बहुत लोगों की मृत्यु चिकित्सा के अभाव में हो जाती थी |
    इसी प्रकार से बनवासी लोग वर्तमान उन्नत चिकित्सा के लाभ से बंचित रहकर भी  रोगी होने के बाद स्वस्थ हो जाते हैं एवं लंबी आयु तक जीवित रहते देखे जाते हैं तो चिकित्सा के आभाव से किसी के रोग बढ़ते हैं या किसी की मृत्यु हो जाती  है यह कहा जाना कितना तर्कसंगत  है |
            
                              समय के कारण जलवायु के साथ साथ होते हैं सभी में परिवर्तन !
 
      परिवर्तन तो समय का स्वभाव है | पाताल से लेकर आकाश तक कण कण में होने वाले परिवर्तनों का कारण समय ही है | समय के साथ ऋतुएँ बदली हैं, भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात आदि घटनाएँ भी समय संबंधी परिवर्तन का ही स्वरूप हैं|समय बदलने के कारण ही तापमान बढ़ता घटता है | मौसम बदलता है | वायु प्रदूषण बढ़ता घटता है | जलवायु परिवर्तन,अलनीनो लानिना जैसी काल्पनिक घटनाओं के घटित होने में भी यदि सच्चाई होगी तो उनके घटित होने का कारण भी समय ही होगा |समय के सहयोग के बिना कोई परिवर्त संभव भी नहीं हैं |
    कुल मिलाकर समय के साथ साथ प्रकृति से लेकर जीवन तक सब कुछ बदलता रहता है | सभी परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं|जीवन में शरीर स्वरूप सौंदर्य स्वाद स्वास्थ्य संपत्ति सम्मान बिचार भाव  आदि सब कुछ समय के साथ साथ बदलता रहता है | समय के साथ स्वभाव बदलता है सोच बदलती है संबंध बदलते हैं सुख सुविधाएँ बदलती हैं हानि लाभ बदलता है पद प्रतिष्ठा बदलती है |इसलिए समय को समझो तो न केवल सब कुछ समझ में आ जाएगा,प्रत्युत जलवायुपरिवर्तन,अलनीनो लानिना जैसी  घटनाओं के साथ साथ भूकंप आँधी तूफान बाढ़ बज्रपात तथा महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं को समय के आधार पर ही समझा जा सकता है और इनके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए  जा सकते हैं |
      ऐसे ही किसी नदी की धारा में बहते जा रहे लकड़ी के टुकड़ों को देखकर उनके आधार पर यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि ये कब कहाँ पहुँचेंगे| इसके लिए  सबसे पहले उनके बहने के आधार अर्थात उस जलधारा को समझना पड़ेगा जिसमें वे बहते चले जा रहे होते हैं| उस जलधारा के आधार पर लकड़ी के टुकड़ों के बहने के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए जाएँगे वे सही निकलेंगे |केवल लकड़ी के टुकड़ों को देखकर उसी के आधार पर लगाया गया पूर्वानुमान बहुत विश्वसनीय नहीं होगा | 
     इसीप्रकार से वर्षा के विषय में बादलों को देख कर उनके आधार पर लगाए गए पूर्वानुमानों के सच निकलने की संभावना उतनी नहीं होगी, जितनी कि उस वायु के आधार पर पूर्वानुमान लगाने से होगी | बादल तो परतंत्र होते हैं | हवाएँ ही उन्हें उड़ाकर ले जा रही होती हैं | जिधर हवाएँ मुड़ेंगी बादलों को भी उधर ही मुड़ना होगा !जिस गति से हवाएँ चलेंगी बादलों को भी उसी गति से उड़ना पड़ेगा | ऐसी स्थिति में बादल कब कहाँ पहुँच सकते हैं | यह समझने के लिए उन हवाओं को समझना होगा जिसमें बादल उड़ रहे होते हैं | 
    ऐसे ही आँधी तूफान बाढ़ बज्रपात तथा महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाएँ स्वयं तो निर्जीव होती हैं | उन्हें घटित होने के लिए किसी दूसरे बल की आवश्यकता होती है | उस बल को समझे बिना एवं उसके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए बिना भूकंप आँधी तूफान बाढ़ बज्रपात तथा महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं को समझना एवं इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं हो पाएगा |      
      इसी प्रकार से भूकंप आने के लिए भूगर्भगत जिन प्लेटों के आपस में टकराने को जिम्मेदार माना जाता है या धरती के गर्भ में संचित ऊर्जा के बाहर निकलने को जिम्मेदार कारण बताया जाता है|भूगर्भगत प्लेटों के आपस में टकराने या धरती के गर्भ में संचित ऊर्जा के बाहर निकलने का कारण भी समय ही है | समय को समझकर ऐसी सभी घटनाओं के घटित होने का कारण खोजै जा सकता है एवं इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है |                  
______________________________________________

प्राचीनविज्ञान  महामारी और प्राकृतिक आपदाएँ ! 
     वर्तमान समय में प्रकृति से लेकर जीवन तक सभी जगह तनाव बढ़ता अनुभव किया जा रहा है|भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा बाढ़ बज्रपात रोग महारोग (महामारी ) जैसे हिंसक प्राकृतिक संकट   दिनोंदिन बढ़ते देखे जा रहे हैं| तरह तरह की दुर्घटनाएँ महारोग आदि पैदा होते देखे जा रहे हैं|लोगों में उन्माद असहनशीलता हिंसकभावना दिनों दिन बढ़ती जा रही है|अपराध,खाद्य सामग्री में मिलावट एवं धोखाधड़ी जैसी घटनाएँ अधिक मात्रा में घटित होते देखी जा रही हैं |वैवाहिक संबंध टूट रहे हैं|परिवार बिखर रहे हैं | समाज में वैमनस्यता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है| अच्छे अच्छे पढ़े लिखे ज्ञानी गुणवान अनुभवी लोगों पर समाज को दिशा देने की नैतिक जिम्मेदारी होती है | उन्हीं लोगों को वर्त्तमान समय में असहनशील होते देखा जा रहा है |हत्या आत्महत्या जैसी घटनाएँ उनके द्वारा भी घटित होती जा रही हैं |व्यापारियों विद्यार्थियों अफसरों से भी धर्म न्याय दयालुता कर्तव्यपालन आदि सदाचरण दूर होते देखे जा रहे हैं | पशुओं पक्षियों चूहों चमगादड़ों टिड्डियों में उन्माद की भावना बढ़ती दिख रही है |प्राकृतिक हिंसक घटनाएँ बार बार घटित होती देखी जा रही हैं|लोग हों या देश हिंसक भावना से भवित हैं | भूकंपों की आवृत्तियाँ बार बार होती दिख रही हैं |

      ऐसी घटनाओं का कोरोना महामारी से कोई अंतर्संबंध तो नहीं है | यह पता लगाने के लिए ऐसी घटनाओं के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना  आवश्यक है,क्योंकि ऐसी आपदाओं के शुरू हो जाने या घटित होने के बाद सुरक्षा के लिए कुछ भी किया जाना तुरंत संभव नहीं होता है|इनका वेग ही इतना अधिक होता है|इसके लिए तो पहले से ही तैयारी करके रखी जानी चाहिए |जो नहीं हो पा रहा है|यदि ऐसा होता तो प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों  में उतना नुक्सान न हुआ होता जितना हो रहा है|

    विज्ञान के बिना किसी भी रहस्य को सुलझाया जाना संभव नहीं हैं !इसी प्रकार से भविष्य को समझने के लिए भी विज्ञान की आवश्यकता होती है |विज्ञान के बिना भविष्य में झाँकना संभव नहीं है | इसके बिना भविष्य में कौन घटना कब घटित होगी |इसके विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं है|पूर्वानुमान लगाए बिना प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों से समाज को सुरक्षित बचाया जाना संभव नहीं है !यही कारण है कि तीनों युद्धों में मिलाकर भारत को जितना नुक्सान नहीं उठाना पड़ा था |उससे कई गुना अधिक नुक्सान केवल कोरोना महामारी के समय में ही उठाना पड़ा है |

     ऐसी परिस्थिति में सामरिक तैयारियाँ करके केवल शत्रु देशों से तो अपने देशवासियों की सुरक्षा की जा सकती है,किंतु कोरोना जैसी महामारी से मारे गए लाखों लोगों की सुरक्षा के लिए अभी भी तैयारियाँ क्या हैं|महामारी को समझने में या उसके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में वर्तमान समय के उन्नतविज्ञान से ऐसी क्या मदद मिल सकी है|जो वैज्ञानिक अनुसंधानों के बिना संभव न थी|कोरोना महामारी के कारण  जितनी जनधन हानि हुई है ! वैज्ञानिक अनुसंधान न हुए होते तो क्या इससे भी अधिक नुक्सान हो सकता था |इस विषय में गंभीर चिंतन किए जाने की आवश्यकता है|

    इसमें विशेष बिचारणीय यह है कि कोरोनामहामारी के समय जनधन का जितना नुक्सान हुआ है|उसका कारण  महामारी की भयंकरता थी या महामारी से सुरक्षा के लिए कोई तैयारियाँ नहीं थीं|ऐसे ही कोरोना महामारी के कारण इतने लोगों की मृत्यु हुई है या प्रतिरोधक क्षमता की कमी के कारण ! ऐसे प्रश्नों का तर्क संगत उत्तर खोजा जाना चाहिए|महामारी पैदा कैसे हुई !इसका विस्तार कितना था ! प्रसारमाध्यम क्या था ! अंतर्गम्यता कितनी थी|इसपर मौसम का प्रभाव पड़ता था या नहीं ! वायुप्रदूषण का प्रभाव कैसा पड़ता था|तापमान बढ़ने या घटने का क्या प्रभाव पड़ता था या नहीं | ऐसे आवश्यक प्रश्नों के उत्तर खोजे बिना महामारी को समझना संभव नहीं है और महामारी को अच्छी प्रकार से समझे बिना उससे समाज को सुरक्षित रखने या संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए किसी भी प्रभावी औषधि  का निर्माण किया जाना संभव नहीं है |

      मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं को समझने एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की जो विधि भारत के प्राचीन ग्रंथों में बताई गई है |मैंने उसी के अनुसार आज के तीस वर्ष पूर्व जो अनुसंधान प्रारंभ किया था | उससे जो अनुभव प्राप्त हुए उनके द्वारा मौसम संबंधी घटनाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों के स्वभाव को न केवल समझा जा सकता है| प्रत्युत उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है|जो प्रायः सही निकलता है | ये जनहित में बहुत उपयोगी है | इसकी मदद लेकर प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों में हो रही जनधन हानि को कम करके मनुष्यों की सुरक्षा की जा सकती है |

समयसंचार को समझे बिना विज्ञान अधूरा है !

      सुख सविधाओं को पाने, भोगने या उनके न  मिलने पर दुखी होने जैसा मूर्छित जीवन जीने वाले लोग प्रकृति से दिनोंदिन दूर होते चले जा रहे हैं |उन्हें न तो प्रकृति के संकेत समझ में आते हैं और न ही प्रकृति की पुकार पर ध्यान है | उन्होंने प्रकृति को निर्जीव समझकर उसके स्वभाव एवं सम्मान के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर दिया है | 

    बहुत सारे जीव जंतु पशु पक्षी मनुष्य आदि प्रकृति के स्वभाव को समझते  हैं | उससे मिलने वाले संकेतों पर ध्यान देते हैं | उसके अनुसार उन्हें इस बात का अनुमान होने लगता है कि निकट भविष्य में कब कैसी घटनाएँ घटित होने वाली हैं वे उसी के अनुरूप व्यवहार करने लगते हैं | वर्षा ,तूफ़ान ,भूकंप या महामारी जैसी घटनाएँ घटित होने से पहले बहुत जीवों का स्वभाव व्यवहार आदि बदल जाता है | सर्प जैसे कुछ जीव ऐसे भी हैं जो मृत्यु का समय समीप आने पर एकांतवास एवं निराहार जीवन जीते हुए मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगते हैं | कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो जाती है |  

    प्रकृति के संकेत न समझ पाने के कारण ही प्राकृतिक घटनाओं के विषय में बहुत सारी निराधार कल्पनाएँ कर ली जाती हैं | जिनकी वास्तविकता हमेंशा संदिग्ध बनी रहती है | ऐसे रहस्यों को उदघाटिक किया जाना तभी संभव है जब समय गणित और प्रकृतिपरिवर्तनों के आपसी संबंध को समझा जाए और उसके भावी परिवर्तनों के विषय में सही पूर्वानुमान लगाए जाएँ | 

      प्रकृति और जीवन से संबंधित बहुत सारी घटनाओं को जलवायुपरिवर्तनजनित बता दिया जाता है | ऐसा होने के लिए मनुष्यों की जीवन शैली को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है |ऐसे ही महामारीजनित संक्रमण बढ़ने पर महामारी के  स्वरूपपरिवर्तन को दोषी बता दिया जाता है| ऐसे परिवर्तनों के लिए मनुष्यों की लापरवाही को जिम्मेदार  ठहरा दिया जाता है|यद्यपि ऐसा किया जाना कुछ काल्पनिक कारणों पर आधारित होता है |ऐसे प्रकरणों में यह सोचा जाना चाहिए कि ये परिवर्तन समय जनित भी तो हो सकते हैं | संभव है कि ऐसे परिवर्तन प्रकृति क्रम के अनुसार किसी निश्चित अवधि के बाद स्वाभाविक रूप से होते ही हों |जिन्हें अज्ञानता के कारण हम समझ पाने में असमर्थ हों |जिस प्रकार से प्रतिदिन प्रातःकाल सूर्य का प्रकाश और ऊष्मा कम होती है मध्यान्ह काल में सबसे अधिक और सायंकाल फिर कम हो जाती है | 

     कल्पना कीजिए कि किसी के जीवन में यदि प्रातः मध्याह्न और सायंकाल जैसी घटना पहली बार घट रही हो तब तो ऐसा सोचा जाएगा कि प्रातः से मध्यान्ह काल तक सूर्य का प्रकाश और ऊष्मा यदि इतनी बढ़ सकती है तो इसी अनुपात में सायंकाल तक बढ़कर न जाने कितनी अधिक हो जाएगी | विशेष बात ये है कि जब तक हम इस विषय से अनजान रहेंगे तभी तक ऐसी अज्ञानजनित कल्पनाएँ की जा सकती हैं | इस रहस्य को समझते ही इस सच्चाई का पता लग जाता है कि मध्याह्न काल के बाद सूर्य का प्रकाश और ऊष्मा दोनों स्वयं ही ढलने लगेंगे  और सायंकाल में शांत हो जाएँगे | इसीप्रकार से जलवायुपरिवर्तन या  महामारी के  स्वरूपपरिवर्तन जैसी घटनाएँ स्वाभाविक एवं प्रकृतिक्रम के अनुसार घटित हो रही हैं | अपने अज्ञान के कारण हम इन्हें समझ नहीं पा  रहे हैं | ये अज्ञानजनित  भ्रम है |

    जिस प्रकार से किसी ताले को  उसकी अपनी चाभी की जगह किसी दूसरी चाभी से खोलने का प्रयत्न किया जा रहा हो और उस ताले के न  खुलने पर ताले में परिवर्तन हो गया है | इस प्रकार से जलवायुपरिवर्तन या महामारी के स्वरूपपरिवर्तन की तरह  ताले को ही दोषयुक्त सिद्ध किया जा रहा हो |

    वस्तुतः ये कमी न तो उस ताले की है और न ही उस चाभी की | ये कमी उस ताला खोलने वाले की है जो अज्ञानवश उस ताले को पहचाने बिना ही किसी चाभी से ताला खोल देना चाह रहा हो | उसकी वास्तविक चाभी को खोज न पा रहा हो | इसके साथ ही  लापरवाही उस शासक की भी है | जिसने किसी अयोग्य आदमी को विशेषज्ञ मानकर उसे इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंप रखी है |ये काम यदि इतना ही आसान होता तब तो कोई भी कर लेता ! इसीलिए तो विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है |

    विशेष बात है कि परिवर्तन कुछ स्वाभाविक और कुछ आकस्मिक होते हैं| जो परिवर्तन आकस्मिक होते हैं वो तो अहितकर हो सकते हैं किंतु स्वाभाविक परिवर्तनों को अहितकर कैसे कहा जा सकता है | आम के छोटे फल का रंग हरा स्वाद खट्टा होता है उसकी गुठली भी शक्त नहीं होती है | उसी फल के बड़े होने पर उसकी गुठलीशक्त रंग पीला और स्वाद मधुर हो जाता है | स्वाभाविक परिवर्तन तो प्रतिपल प्रकृति के कण कण में होते देखे जा रहे हैं | ऐसे परिवर्तन तो प्रत्येक व्यक्ति वस्तु परिस्थिति आदि में होते ही रहते हैं | उन्हें न तो अहितकर कहा जा सकता है और न ही दोष युक्त माना जा सकता है | उन्हें तो समझकर ही हम अपनी योग्यता सिद्ध कर सकते हैं यही उस विषय के विद्वान् की विशेषज्ञता होती है | जिससे संपन्न होने के कारण ही तो उसे उस विषय के वैज्ञानिक होने जैसा बड़ा सम्मान सुख सविधाएँ आदि प्रदान की जाती हैं | 


जीवन में शरीर और समय की भूमिका ! 
      प्रत्येक व्यक्ति अपने शरीर से  नहीं प्रत्युत अपने समय से स्वस्थ अस्वस्थ सुखी दुखी जन्म मृत्यु आदि को प्राप्त करता है| उसका किसी से मिलना बिछुड़ना भी उसके शरीर से नहीं प्रत्युत समय के आधार पर होता है | जिन स्त्री पुरुषों या  व्यक्तियों का समय जब तक अच्छा या बुरा रहता है तक वो अपने  जैसे समय वाले लोगों को अपना मित्र बनाया करता है | इसीलिए कई बार बहुत संपन्न परिवारों की अत्यंत सुंदर संतानें किसी गरीब कुरूप दुर्गुणी आदि को अपना साथी या जीवन साथी बना लेते हैं ,क्योंकि उस समय उन लोगों का शरीर सुंदरता संपन्नता पद प्रतिष्ठा आदि में अंतर भले हो किंतु समय उन दोनों का एक जैसा ही होता है |उनमें से किसी एक का या दोनों का समय बदलते ही उन दोनों का साथ छूट जाता है,क्योंकि समय बदलते ही स्वास्थ्य सुंदरता स्वाद स्वभाव सफलता व्यवहार आदि में वर्तमान समय के अनुसार बदलाव आ जाते हैं | समय बदलने पर भी संबंध न टूटे इसीलिए ऋषियों ने विवाह जैसे पवित्र संबंध को सुरक्षित रखने के लिए धर्म को साथ में जोड़ा है | 
     इसीलिए तो जो व्यक्ति किसी को सुंदर स्वस्थ मित्र आदि लगता है वो सब वैसा रहते हुए भीउसका संबंध टूटना का कारण समय ही होता है | कोई व्यक्ति जिस योग्यता अनुभव परिश्रम आदि से किसी व्यवसाय को खड़ा करता है | वो व्यक्ति वैसा ही बना रहता है किंतु उसी व्यवसाय में नुक्सान हो जाता है | इसका कारण समय में बदलाव है बाक़ी सबकुछ तो वैसा ही होता है |
     कुछ लोगों  को विवाह संबंधी सुख उत्तम होता है | संतान की दृष्टि से पति पत्नी पूरी तरह स्वस्थ होते हैं | इसलिए उनकी मेडिकल रिपोर्ट सभी ठीक आ रही होती हैं किंतु समय  की दृष्टि से नपुंसकता का प्रभाव होता है | इसलिए उन्हें शरीर स्वस्थ होने एवं मेडिकल रिपोर्ट नार्मल  होने के बाद भी समयसंबंधी नपुंसकता के कारण संतान नहीं होती है | 
     कुल मिलाकर समय शरीर से अलग रहते हुए भी शरीर संबंधी अधिकाँश निर्णय समय ही लेता है | अपने मन से मनुष्य जो कुछ करता है | समय चाहता है तो उसमें सफल कर देता है अन्यथा उस कार्य को रोककर किसी दूसरे कार्य में सफल कर देता है |  
      जीवन में समय की सबसे बड़ी भूमिका होती है | जिस मनुष्य का जिस समय अपना समय ठीक चल रहा होता है | उस समय वो जिससे मिलता है मित्रता करता है या काम के लिए जहाँ जाता है उसका भी समय ठीक ही चल रहा होता है | अच्छे समय के प्रभाव से उसका  तो काम हो जाता है और जिसके पास काम के लिए जाता है उसे यश मिल जाता है | 
     इसी प्रकार से चिकित्सा में अच्छे समय वाले रोगी अच्छे समय वाले चिकित्सक के पास जाते हैं | समय प्रभाव से उन रोगियों को स्वस्थ होना ही होता है | इसलिए अच्छे समय वाले चिकित्सक अच्छे समय वाले रोगियों को औषधि के नाम पर मिट्टी दे दे उससे भी वह स्वस्थ हो जाता है | इससे रोगी को स्वास्थ्य लाभ एवं चिकित्सक को यश मिल जाता  है |
       ऐसे रोगी अपने स्वस्थ होने का श्रेय उस चिकित्सक को देने लगते हैं |इसलिएदूसरों को भी उसी चिकित्सक के पास चिकित्सा के लिए भेजने लगते हैं |जिन जिन का समय अच्छा होता है |वे तो स्वस्थ हो जाते हैं और जिनका समय अच्छा नहीं होता है |  ऐसे बुरे समय वाला रोगी यदि उसी चिकित्सक के पास जाना चाहता है तो पहली बात उसे उस पर विश्वास नहीं होता है | किसी तरह विश्वास कर भी ले और चिकित्सक से मिलने चला भी जाए तो उससे या तो मुलाक़ात नहीं हो पाती या उसकी बातों पर भरोसा नहीं होता या फिर जो दवाएँ वो लिखता है वो मिलती नहीं हैं तो मिल गईं तो उन्हें खाने के बाद उसे नुक्सान करने का वहम होने लगता है |जिससे  चिकित्सा छोड़ दी जाती है | 
      कुल मिलाकर बुरे समय से पीड़ित रोगी अच्छे समय वाले चिकित्सकों से चिकित्सा नहीं करवा पाते हैं और बुरे समय वाले चिकित्सकों के पास जाएँगे तो उनकी चिकित्सा से लाभ नहीं होगा !ऐसे ही अच्छे समय वाले चिकित्सक बुरे समय से पीड़ित रोगियों की चिकित्सा करने में रुचि ही नहीं लेते |
समय की शक्ति और अनुसंधान
 
     प्रत्यक्ष कारणों से घटित होने वाली घटनाओं को तो समझ लिया जाता है |किसी को किसी ने तलवार मारी उसे चोट लग गई |इसमें सबकुछ प्रत्यक्ष होते देखा जा रहा है | इसलिए घटना भी समझ में आ गई | उसका कारण भी समझ में आ गया | उसकी चिकित्सा भी समझ ली गई | उसकी चिकित्सा की गई वह स्वस्थ हो गया |
    इसके अतिरिक्त कोई पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के अचानक अस्वस्थ हुआ हो | उस रोग और रोग का कारण समझ में न आ रहा हो | चिकित्सा से भी लाभ न हो पा रहा हो !रोग धीरे धीरे रोग बढ़ता जा रहा हो | जिससे रोगी की स्थिति बिगड़ती जा  रही हो | अंत में मृत्यु को प्राप्त हो गया हो,तो उसके रोगी होने के  कारण,उसके रोग के परीक्षण एवं निवारण के लिए प्रयत्न किस आधार पर किया जाए !ऐसा करने के लिए विज्ञान कहाँ है | 
    इस घटना को यदि प्रत्यक्षदृष्टि से  देखा जाए तो जो रोगी पहले स्वस्थ और सुखी दिखाई पड़ रहा होता है|वो बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के अस्वस्थ हो जाता है | धीरे धीरे दुर्बल होते जाता है और मृत्यु हो जाती है | ऐसा होने के लिए जो भी कारण जिम्मेदार हो उसे समझना संभव न हो पाया !सुयोग्य चिकित्सकों के द्वारा की गई गंभीर चिकित्सा से भी रोगी की स्थिति में थोड़ा भी सुधार नहीं किया जा सका | चिकित्सकों की देखरेख में वेंटिलेटर पर पड़े पड़े उस रोगी की मृत्यु होते देखी जाती है | ऐसे रोगों एवं रोगियों को समझना एवं उस पर चिकित्सा का प्रभाव डालना संभव नहीं हो पाया | इसका कारण खोजा जाना चाहिए |
    ऐसे ही  प्रकृति हरी भरी है| पर्वतों समुद्रों आदि का निर्माण किसने किया है !नदियाँ किसके प्रभाव से बह रही हैं | समुद्रों के जल को किसने रोक रखा है !वो नदियों की तरह ऊपर से नीचे की ओर क्यों नहीं बह रहा है| चंद्रमा के प्रभाव से जो लहरें समुद्रों में उठती देखी जाती हैं | चंद्रमा का प्रभाव तो नदियों तालाबों झीलों पर भी पड़ता है| उस प्रकार की लहरें उसमें क्यों नहीं उठती हैं | उसमें बड़ी नहीं तो छोटी लहरें तो उठ सकती हैं | कई बार आकाश में अचानक घनघोर बादल छा जाते हैं | वर्षा होने लगती है |कुछ समय बाद बादल छँट जाते हैं और धूप निकल आती है | ऐसी घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार कारण को अनुसंधापूर्वक खोजना होगा |     
      ऐसे ही प्रकृति या जीवन में घटित होने वाली ऐसी बहुत सारी घटनाएँ हैं | जिनके घटित होने का कारण पता नहीं है |जीवन में  किसी को अचानक कोई रोग हो जाता है| जो चिकित्सा के द्वारा भी ठीक नहीं होता है| अत्यंत  प्रयास करने पर भी कोई काम बिगड़ जाता है|नुक्सान हो जाता है ,नौकरी छूट जाती है |अकारण मानसिक तनाव बढ़ने लगता है | बिना किसी कारण के पति पत्नी के आपसी संबंध बिगड़ने लगते हैं| मानसिक तनाव बढ़ने लगता है |ऐसी अनेकों प्रकार की दुर्घटनाएँ घटित होने लगती हैं |जिसके लिए उस व्यक्ति ने या किसी अन्य ने ऐसा कोई प्रयत्न  ही नहीं किया होता है | प्रयत्न करना तो दूर उसके जीवन में ऐसी दुर्घटना घटित हो ! वह ऐसा चाहता भी नहीं है | उस दुर्घटना से बचाव के लिए वो प्रयत्न  भी करता है,फिर भी वह दुर्घटना घटित हो जाती है|ऐसी दुर्घटनाओं के घटित होने में मनुष्यों का कोई योगदान नहीं होता है | उनका कर्ता  कौन होता है |मनुष्य जीवन की सीमाएँ समझने के लिए  उसे खोजा जाना चाहिए |       
      ऐसी सभी घटनाओं में कोई प्रत्यक्ष कारण दिखाई नहीं पड़ता है | जिसे इस परिस्थिति के लिए जिम्मेदार माना जा सके |कोई घटना बिना किसी कारण के घटित नहीं होती है | इसलिए ऐसी घटनाओं के लिए भी कोई न कोई कारण तो जिम्मेदार होता ही है | वह प्रत्यक्ष या परोक्ष कुछ भी हो सकता है |जिन घटनाओं का प्रत्यक्ष कारण दिखाई नहीं पड़ रहा होता है | उनका परोक्ष कारण अवश्य होगा | 
    समस्या यह है कि  प्रत्यक्ष कारण खोजने के लिए तो बड़े बड़े यंत्रों का आविष्कार कर लिया गया है,किंतु ऐसी घटनाओं के परोक्ष कारणों को खोजने के लिए न तो विज्ञान है न यंत्र हैं न अनुसंधान किए जाते हैं | कुछ काल्पनिक किस्से कहानियाँ होते हैं | जिन्हें अपनी अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी घटना के घटित होने का कारण मान लिया जाता है |   
    प्रकृति से लेकर जीवन तक ऐसी बहुत सारी घटनाएँ घटित होती  हैं| जिनके लिए कोई प्रत्यक्ष कर्ता जिम्मेदार नहीं होता है | ऐसा विश्वास है कि उन घटनाओं के घटित होने का कारण समय होता है | इसलिए उनका कर्ता समय होता है|उन्हें समझने के लिए समय को समझना होगा |इसीलिए कोरोना महामारी संबंधी चिंतन करते समय कई बार ऐसा लगता है कि महामारी पैदा होने के लिए मनुष्यकृत  कारण ही जिम्मेदार हों ऐसा आवश्यक तो नहीं है | इसके लिए प्राकृतिक कारण भी जिम्मेदार हो सकते हैं | जो विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं के रूप में दिखाई पड़ते हैं | प्राचीन काल से ही ऐसा विश्वास बना चला आ रहा है कि प्राकृतिक घटनाएँ समय के प्रभाव से घटित होती हैं |ऐसी प्रत्येक घटना घटित होने के लिए अपने समय की प्रतीक्षा किया करती हैं | समय आते वो स्वयं घटित हो जाती है|उसके लिए किसी मनुष्य को कोई प्रयास नहीं करना पड़ता है | 
                                समय के प्रभाव से भी पैदा हुई हो सकती है महामारी !
 
    प्रत्यक्ष कारणों से घटित होने वाली घटनाओं के प्रत्यक्ष कारण होते हैं !जो प्रत्यक्ष या किसी यंत्र के माध्यम से देखे समझे या अनुभव किए जा सकते हैं !ऐसे कारणों से घटित होने वाली बुरी घटनाओं का निवारण भी प्रत्यक्ष प्रयत्नों से किया जा सकता है ,किंतु जिनका प्रत्यक्ष कर्ता न दिखाई पड़ने के कारण वे अपने आपसे घटित होती दिखाई देती हैं |उनके घटित होने का कारण वह समय होता है | जिसमें उन्हें घटित होना पड़ता है | ऋतुएँ  समय का ही स्वरूप होती हैं | समय का प्रभाव प्राकृतिक घटनाओं पर इतना अधिक होता है कि प्राकृतिक घटनाएँ अपनी अपनी ऋतुओं की प्रतीक्षा किया करती हैं | समय आते ही घटनाएँ समयबल से स्वयं घटित होने लगती हैं | ऐसे ही वर्षाऋतु आने पर बादल आकाश मंडल को घेर लेते हैं और अधिक वर्षा करते देखे जाते हैं | ग्रीष्मऋतु में सूर्य की किरणें अधिक तेज हो जाती हैं| तेज हवाएँ चलने लगती हैं | हेमंत और शिशिर जैसी ऋतुओं के आने पर सूर्य की किरणें मंद पड़  जाती हैं |कोहरा पाला आदि पड़ने लगता है |सर्दी अधिक होते देखी जाती है | ऐसी सभी घटनाओं के घटित होने का कारण सबका अपना अपना समय है | 
     ग्रह नियमबद्ध रूप से समय के अनुसार आकाश में भ्रमण कर रहे हैं | जिस ग्रह को जब जहाँ पहुँचना है |वो  अनंतकाल से  निश्चित है |उसी के अनुसार सभीग्रहों को चलते देखा जा रहा है | सूर्य चंद्र प्रतिदिन अपने अपने समय से उगते और अस्त होते रहते हैं|सूर्य चंद्र ग्रहण अपने अपने समय से शुरू और समाप्त होते देखे जाते हैं |ऋतुएँ अपने अपने समय से आती जाती रहती हैं| ये सारी घटनाएँ अपने आपसे घटित होती रहती हैं |ऐसे ही सूर्योदय निश्चित समय पर अपने आपसे होता है | सूर्यास्त होने का समय भी निश्चित होता है | उसीसमय पर सूर्यास्त हो जाता है |ऐसी घटनाओं में न तो मनुष्यकृत प्रयत्नों का कोई योगदान होता है और न ही हो सकता है | ये सभी घटनाएँ अपने आपसे घटित होती हैं |
    ऐसे ही वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं के पैदा होने का अपना समय होता है | ऐसी  सभी घटनाएँ समय के प्रभाव से पैदा और समाप्त होती  हैं | उन सबके पैदा और समाप्त होने का अपना अपना समय होता  है | उसी के अनुसार सारी घटनाएँ घटित होती हैं | उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए समय के अनुसार गणना करनी होती है | कृति और जीवन में ऐसी असंख्य घटनाएँ समय के प्रभाव से घटित होती रहती हैं |    सभी प्राकृतिक घटनाएँ अपने अपने समय से स्वयं घटित हो सकती हैं, तो विश्वास किया जाना चहिए कि  वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि घटनाएँ भी समय प्रभाव से ही घटित होती होंगी|  संभव है कि कोरोना महामारी भी उसीप्रक्रिया से पैदा और समाप्त हुई हो |  महामारी को समझने एवं उसके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान लगाने के लिए इस दृष्टि से भी अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता है |  
     महामारी मनुष्यकृत है या प्राकृतिक !यदि मनुष्यकृत है तो उसके लिए कोई न कोई कारण जिम्मेदार होगा | उस कारण की प्रवृत्ति  को समझे बिना महामारी को समझा जाना संभव नहीं है | महामारी को समझने के लिए उसका कारण खोजा जाना बहुत आवश्यक है,क्योंकि  कारण को समझे बिना न तो महामारी को समझा जा सकता है और न ही उसके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि ही लगाया जा सकता है| इन सबके बिना न तो महामारी से सुरक्षा के लिए प्रभावी प्रयत्न किए जा सकते हैं और न ही संक्रमितों की चिकित्सा की जा सकती है | 
     महामारी यदि प्राकृतिक है तो भी उसको सही सही समझे बिना मानवता की मदद नहीं की जा सकती है|महामारी को समझने के लिए उसका कारण खोजा जाना बहुत आवश्यक है| कारण को खोजे बिना महामारी का  विस्तार कितना है!प्रसार माध्यम क्या है! इसमें अंतर्गम्यता कितनी है|इसपर मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं ! इसपर वायुप्रदूषण का प्रभाव पड़ता है या नहीं ! महामारी संबंधी संक्रमण वायु में विद्यमान था या नहीं | महामारीजनित संक्रमण छुआछूत से फैलता था या नहीं !इसके बिना महामारी से सुरक्षा के लिए इन आवश्यक बातों का पता लगाया जाना संभव नहीं हो पाएगा | 
   कोरोनामहामारी पैदा होने  के लिए कोई न कोई कारण अवश्य जिम्मेदार रहा होगा | उस वास्तविक कारण को खोजे बिना महामारी को समझना संभव नहीं है| इसीलिए महामारी से संबंधित बहुत प्रश्न अभी तक अनुत्तरित हैं |महामारी पैदा होने का  कारण न समझ पाने के कारण महामारी को न तो समझा जा सका और न ही उसके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि ही लगाए जा सकेहैं  | जो अनुमान या पूर्वानुमान लगाए भी जाते रहे वे न तो विश्वसनीय थे और न ही सच निकले |
     किसी रोग के पैदा होने या घटने बढ़ने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण समझे बिना चिकित्सा के द्वारा उस रोग से मुक्ति दिलाना संभव नहीं होता है | रोग का कारण ही पता न हो तो उससे मुक्ति दिलाने संबंधी औषधि का निर्माण किस आधार पर किया जा सकता है |    
    कोरोना महामारी क्यों आई! इससे लोग संक्रमित क्यों हुए और जो नहीं हुए उनके संक्रमित न होने का कारण क्या था ! इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु होने का कारण क्या था !ऐसे सभी प्रश्नों का उत्तर यही है कि  ऐसी सभी  घटनाओं के घटित होने का कोई न कोई प्राकृतिक  कारण होता है |  जिसे खोजकर ही ऐसी घटनाओं के पैदा होने का कारण समझना होगा| उसके बाद ऐसी  घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव  हो पाएगा |   
      महामारी से जो लोग संक्रमित हुए उसका कारण महामारी की संक्रामकता थी या लोगों में प्रतिरोधक क्षमता की कमी !इसका कारण यदि महामारी की संक्रामकता को माना जाए तो महामारी का एक समान प्रभाव सभी लोगों पर पड़ता है | इसलिए सभी को संक्रमित होना चाहिए |  
      कोरोनाकाल में  लोगों के संक्रमित  होने का कारण यदि प्रतिरोधकक्षमता की कमी है तो इतनी बड़ी संख्या में लोगों की प्रतिरोधक क्षमता इसी समय कम होने का कारण क्या था ?उसे खोजा  जाना चाहिए | महामारी से सुरक्षा संबंधी चिकित्सा के लिए इन आवश्यक बातों का पता लगाया जाना बहुत आवश्यक है |
     ऐसे ही महामारी के समय में जिनकी मृत्यु हुई उसका कारण महामारी थी या लोगों की आयु ही पूरी हो चुकी थी !ऐसा संशय इसलिए भी होना स्वाभाविक है,क्योंकि घटनाएँ बदलती रही हैं मौतें होती रही हैं |उसी समय महामारी के अतिरिक्त भी बहुत सारी घटनाएँ घटित हुई हैं | जिनमें बहुत बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु हुई है | यहाँ तक कि महामारी के महीनों वर्षों बाद तक हँसते खेलते नाचते कूदते बातें करते सोते सोते बहुत लोगों की मृत्यु होती देखी जा रही है |इस समय महामारी तो नहीं है और न  ही मृत्यु को प्राप्त होने वाले लोग संक्रमित ही हैं | उनकी मृत्यु होने का कारण खोजे बिना कोरोनाकाल में मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों की  मृत्यु होने के लिए महामारी को केवल इस आधार पर जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि उनकी मृत्यु उस समय हुई थी जब कोरोना महामारी  का समय चल रहा था | इसलिए कोरोना महामारी के समय लोगों की मृत्यु का कारण क्या है ! उस कारण को खोजा जाना चाहिए | 
समय के  कारण घटित होती हैं अच्छी बुरी घटनाएँ !
      प्रकृति एवं जीवन से संबंधित अनुसंधान यात्रा में मैंने अनेकों बार अनुभव किया है कि समय को समझे बिना ऐसी घटनाओं को समझना एवं उनके विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव ही नहीं है | संभवतः यही कारण है कि समय की गणना किए बिना लगाए गए पूर्वानुमान सच नहीं निकलते हैं | मौसम हो या महामारी किसी के विषय में भी विश्वास पूर्वक यह नहीं कहा जा सकता है कि यह हमारे द्वारा लगाया गया पूर्वानुमान सच निकलेगा |कितने भी उपग्रह रडार आदि स्थापित कर लिए जाएँ | कितने भी सुपर कंप्यूटरों की मदद ले ली जाए फिर भी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण पता न होने से घटनाओं की प्रवृत्ति को समझना संभव नहीं हो पाता है | इसके  बिना पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाता है |
     प्रकृति पूर्ण अनुशासित है | इसमें घटित हो रही सभी प्रकार की घटनाएँ समय के द्वारा ही नियंत्रित होती हैं |समय की शक्ति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कोई मनुष्य अपने जीवन के विषय में जो करना चाहता है | वह करने के लिए प्रयत्न भी करता है,किंतु उसमें असफल हो जाता है और कुछ दूसरा करने में सफल हो जाता है जिसके विषय में उसने न तो कभी कुछ सीखा या पढ़ा था, न ही वैसा करने को सोचा था और न कोई प्रयत्न किया था |समय से प्रेरित उसके किसी मित्र ने वैसा संकेत किया ! समय प्रभाव से उसे मित्र की सलाह पर विश्वास हो गया ! उसने वह करना शुरू कर दिया | उसमें सफल होता चला गया | ये समयशक्ति  का प्रभाव है | 
   कुल मिलाकर समय के द्वारा सबकुछ पहले से ही निर्द्धारित है | सबकुछ अपने अपने समय पर ही घटित होता जाता है| ऋतुएँ अपने समय से न केवल आती जाती हैं,प्रत्युत प्रकृति भी ऋतुओं के अनुसार ही व्यवहार करते देखी जाती है | ग्रीष्मऋतु में गर्मी पड़ने लगती है, वर्षा ऋतु में बारिस होने लगती है,हेमंत शिशिर जैसी ऋतुओं में सर्दी पड़ने लगती है |ऐसे ही सूर्य  और चंद्र का उदय या अस्त होना,अमावस्या पूर्णिमा का आना जाना तथा सूर्य और चंद्र के ग्रहणों का घटित होना ये सभी समय के आधार पर ही घटित होने वाली घटनाएँ है | 
      बसंत ऋतु में पेड़ पुराने पत्ते छोड़कर नई नई कोपलें धारण कर लेते हैं |सूर्योदय के समय कमल खिल जाते हैं सूर्यास्त के समय  बंद  हो जाते हैं | अमावस्या पूर्णिमा आते ही समुद्र में ज्वारभाटा जैसी घटनाएँ घटित होते देखी  जाती हैं | जिस प्रकार से प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली सभी घटनाएँ समय के आधार पर घटित होती हैं | उसी प्रकार से भूकंप आँधी तूफान बाढ़ बज्रपात तथा महामारी जैसी सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ भी समय के अनुसार ही घटित होती हैं | 
                                          मृत्यु के लिए समय जिम्मेदार होता है या घटनाएँ 
 
      भारत को पडोसी देशों के साथ तीन बड़े युद्ध लड़ने पड़े उन तीनों युद्धों में मिलाकर जितने नागरिकों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हुई है उससे बहुत अधिक लोगों की मृत्यु केवल कोरोना महामारी के समय हुई है | इन मृत्युओं का कारण यदि कोरोना महामारी को माना जाए तो फिर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि इतने उन्नत विज्ञान के होने पर भी यदि महामारी के समय इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु होनी ही है तो इतने महँगे अनुसंधानों को करने से लाभ ही क्या है | यदि महामारी काल में इनकी कोई उपयोगिता ही नहीं सिद्ध हो पा रही है |
      विशेष बात यह है कि कोरोनाकाल में जिनकी मृत्यु हुई है | उन मृत्युओं का कारण महामारी को माना जाए तो महामारी जाने के बाद जिन लोगों की मृत्यु हँसते खेलते नाचते कूदते अभिनय करते बातें करते उठते बैठते सोते जागते हो जा रही है | उन मृत्युओं का कारण यदि महामारी नहीं तो और दूसरा क्या है ?
     भूकंप आँधी तूफान बाढ़ बज्रपात तथा महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के समय बहुत लोगों की मृत्यु हो जाती है किंतु उन मृत्युओं का कारण उन सबका अपना अपना समय होता है| समय के महत्त्व को न समझने वाले लोग उन लोगों की मृत्यु का कारण उन  प्राकृतिक आपदाओं को मान लेते हैं जो उस समय घटित हो रही होती हैं |     प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने एवं उन लोगों की मृत्यु होने जैसी घटनाएँ एक साथ घटित होने के कारण उन लोगों की मृत्यु होने के लिए प्राकृतिक घटनाओं को जिम्मेदार मान लिया जाता है | बिचार किया जाए तो महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के न होने पर यहाँ तक कि शरीर में कोई रोग न होने पर कोई प्रत्यक्ष घटना न घटित होने पर भी लोगों की मृत्यु होते देखी जाती है |उन मृत्युओं का कारण क्या होता है |
    जिस प्रकार से किसी जगह कोई रैली की जा रही हो उसी के पास यदि कोई आतंकी विस्फोट हो जाए,तो विस्फोट  होने के लिए उस रैली को जिम्मेदार  नहीं ठहराया  जा सकता | उसीप्रकार से प्राकृतिक आपदाएँ और उसी स्थान पर,उसी समय हुई लोगों की मृत्यु  ये दोनों घटनाएँ एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग हैं | प्राकृतिक आपदाओं या महामारी में होने वाली मृत्युओं का आपस में कोई संबंध ही नहीं होता है !प्राकृतिक आपदाएँ अपने समय से घटित हो रही होती हैं ,उसी स्थान पर उसी समय कुछ ऐसे लोगों की मृत्यु हो रही होती है |जिनकी अपनी मृत्यु का समय आ गया हो | जिन जंगलों में शेर आदि अनेकों हिंसक जीव जंतु रहते हैं | उन्हीं जंगलों में हिरण खरगोश आदि जीव जंतु रहते हैं | जो कभी उनका भोजन बन सकते हैं | उनकी सुरक्षा के लिए कोई घर या दीवार भी नहीं होती,फिर भी उन्हीं जंगलों में ऐसे सभी जीव जंतु हजारों वर्षों से समय रूपी बाड़े रहते चले आ रहे हैं | 
      कुल मिलाकर मृत्यु जैसी इतनी बड़ी घटना  यूँ ही अचानक नहीं घटित हो जाती है | वो प्रत्येक व्यक्ति के अपने अपने समय के अनुसार ही घटित होती है |जिस प्रकार से सूर्योदय के समय ही सूर्यास्त का समय निश्चित हो जाता है | उसी प्रकार से किसी मनुष्य के जन्म के समय ही उसकी मृत्यु का समय निश्चित हो जाता है | किसी भवन के निर्माण के समय ही उसके नष्ट होने का समय निश्चित हो जाता है और सृष्टि के आरंभकाल में ही भूकंप आँधी तूफान बाढ़ बज्रपात तथा महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का समय निश्चित हो जाता है |कभी कभी ये तीनों घटनाएँ एक साथ घटित हो जाती हैं | भूकंप अपने समय पर आता है, भवन अपने पर गिरता है और मनुष्य की मृत्य अपने समय पर होती है | ये तीनों प्रकार की घटनाएँ कभी कभी एक ही समय पर एक ही स्थान पर घटित हो जाती हैं | उस समय यह भ्रम होता है कि भूकंप अचानक आया है ! भवन भूकंप से गिरा है,मृतक लोग भवन के मलवे में दबकर मृत्यु को प्राप्त हुए हैं | बिचार किया जाए तो उसी भवन ने अनेकों भूकंप सही हैं तब नहीं गिरा और उस भवन के मलबे में अनेकों लोग दबे कुछ तो कुछ सप्ताह बाद भी सुरक्षित निकले | उसमें कुछ लोगों की मृत्यु होने का कारण यदि समय नहीं तो और दूसरा क्या हो सकता है | 
     प्रत्येक व्यक्ति या वस्तु अपनी मजबूती से मजबूत नहीं होती है ,प्रत्युत अपने समय की मजबूती से मजबूत होती हैं | किसी मनुष्य का शरीर कितना भी मजबूत हो फिर भी उसके शरीर को नष्ट करने की लाखों प्रक्रियाएँ होती हैं ,किंतु जिसका अपना समय जबतक मजबूत रहता है ,तब तक वो हजारों संकटों में फँसकर भी सुरक्षित लौटता है | इसके लिए उसका अपना समय उसे सुरक्षित बचाकर रखता है | ये उसके अपने समय की जिम्मेदारी होती है |     जिस प्रकार से  प्रत्येक व्यक्ति एवं वस्तु के पैदा होते ही उसके नष्ट होने का समय शुरू और निश्चित हो जाता है | जन्म के समय कोई व्यक्ति या वस्तु समय की दृष्टि से यदि सौ प्रतिशत मजबूत होती है,तो वहीं से उसका क्रमिक रूप से नष्ट होना प्रारंभ हो जाता है | एक एक प्रतिशत नष्ट होते होते एक दिन उसके समय की मजबूती शून्य प्रतिशत रह जाती है | उस दिन उसका शरीर देखने में कितना भी मजबूत हो कोई दुर्घटना घटित हो या न घटित हो फिर भी वह शरीर छूट ही जाता है |जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है | समय संबंधी इस रहस्य को न समझने वाले लोग मृत्यु के लिए किसी न किसी ऐसी घटना को जिम्मेदार मानते हैं | जिससे शरीर पीड़ित हो किंतु बहुत लोग व्यायाम आदि क्रियाओं एवं पौष्टिक खानपान आदि से अपने शरीरों को तो मजबूत बनाए रखते हैं किंतु  समय दुर्बल हो जाता है | इसीलिए कहा जाता है जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु अवश्य होती है |
 मृत्यु का सच क्या है  ?

     दुर्घटनाओं में जिन मनुष्यों की मृत्यु होती है |उन मृत्युओं का कारण उन दुर्घटनाओं को मान लिया जाना उचित इसलिए नहीं है ,क्योंकि दुर्घटनाएँ न घटित होतीं तो क्या मृत्यु नहीं होती !वैसे भी दुर्घटनाएँ तो निर्जीव होती हैं वे स्वयं किसी दूसरे के बल से घटित हो रही होती हैं | उन्हें तो उस बल के अनुसार ही  घटित होना होगा !  उनमें ये शक्ति नहीं होती है कि दुर्घटनाओं के घटित होने का समय आने पर भी  वे घटित न हों |
    ऐसी स्थिति में दुर्घटनाएँ किसी दूसरी घटना के घटित होने का कारण नहीं हो सकती हैं |इसके लिए वे जिस कारण से घटित हो रही होती हैं  | उस कारण को अच्छी प्रकार से समझना पड़ेगा |
     कुल मिलाकर ऐसी सभी घटनाओं को किसी  अप्रत्यक्ष शक्ति के प्रभाव से घटित होना पड़ रहा होता है | वह अप्रत्यक्ष शक्ति कौन है, कहाँ है,उसका प्रभाव कितना है,उसकी कार्यशैली क्या है|यह खोजने के लिए उस प्रकार के सक्षम अनुसंधान किए जाने चाहिए |उसे अच्छीप्रकार से समझे बिना प्रकृति या जीवन में घटित होने वाली किसी भी घटना के वास्तविक कारण को समझना संभव नहीं है | 
                        कोरोना काल में हुई मौतों का कारण महामारी ही थी या कुछ और !

       प्राचीन विज्ञान की मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि सभी की मृत्यु अपने निर्द्धारित समय और स्थान पर ही होती है | उस समय और स्थान को आगे पीछे नहीं किया जा सकता है | ऐसी स्थिति में क्या यह मान लिया जाए कि लोगों की मौतों का कोरोना महामारी से कोई संबंध ही नहीं था |लोग तो अपनी मृत्यु से मर रहे थे |ध्यान दिया जाना चाहिए कि कोरोना काल में ही कोरोना महामारी के अतिरिक्त  कुछ अन्य हिंसक घटनाओं युद्धों दंगों आदि में भी बहुत बड़ी संख्या में लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं |विभिन्न  प्रकरणों में थोड़े थोड़े कारणों ,पैसों, बातों का  बहाना लेकर लोग ह्त्या आत्महत्या करते देखे जा रहे थे |
      किसी की मृत्यु निर्द्धारित समय पर ही होती है | यदि इस बात को ही सच मान लिया जाए तो  प्रश्न उठता है कि क्या इतनी बड़ी संख्या में लोग एक साथ ही अपनी अपनी आयु खो चुके थे !यदि हाँ तो ऐसा होने का कारण क्या था उसे भी अनुसंधान पूर्वक खोजा जाना चाहिए | कोरोना का समय बीतने के बाद हँसते खेलते नाचते कूदते स्वस्थ और युवा लोगों की  मृत्यु होते  देखी जा रही थी !उन मौतों के होने का कारण खोजे बिना कोरोनाकाल  में हुई मौतों के लिए कोरोना महामारी को जिम्मेदार कैसे माना जा सकता है | संभव है कि उन मौतों का कोरोना से कोई संबंध ही न रहा हो ! संभव है कि कोरोना का समय बीतने के बाद हँसते खेलते नाचते कूदते स्वस्थ युवाओं की मृत्यु होने का भी वही कारण रहा हो, जो कोरोना काल में हुई मौतों का रहा हो !यदि ऐसा है तो वो कारण क्या रहा होगा !पहले उसे खोजा जाना चाहिए | इसके बाद इस बात का निर्णय किया जाना चाहिए कि कोरोना काल से उसके बाद तक  होती रही लोगों की मौतों का कारण क्या था |
    समयविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो जन्म और मृत्यु दोनों भाई बहन हैं | ये दोनों भाई बहन एक दूसरे के साथ लुका छिपी का खेल खेल रहे होते हैं | बहन छिप जाती है तो बहन को खोजने भाई निकलता है और जब भाई छिप जाता है तो भाई को खोजने बहन निकलती है | 
      इसीलिए इस संसार में जन्म लेने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपनी मृत्यु को खोजने निकला है|मृत्यु से मुलाक़ात जैसे और जहाँ होनी होती है|उसीप्रकार के माता पिता के यहाँ उसका जन्म होता है|वो वचपन से ही उसी प्रकार का आचरण करने लगता है |उसीप्रकार की शिक्षा ग्रहण करता है | उसी प्रकार का कार्य व्यापार नौकरी आदि चुनता है |उसी प्रकार के लोगों को मित्र शत्रु आदि बनाता है | मृत्यु के मिलने की संभावना होती है वो उन सभी स्थानों पर जाता है | जिस दिन जिस समय जिस स्थान पर मृत्यु से मुलाक़ात हो जाती है |  उसी दिन खेल पूरा हो जाता है | उसके बाद जन्म का खेल शुरू हो जाता है | 
     कल्पना चावला की मृत्यु यदि पृथ्वी से उतनी उँचाई पर छिपी हुई थी तो वहाँ ऐसे हर किसी का पहुँचना तो संभव होता नहीं है |इसलिए भारत के करनाल में पैदा होने के बाद उस प्रकार की शिक्षा लेकर उस प्रकार के देश में जाकर उस प्रकार की संस्था से जुड़कर उसप्रकार के मिशन में सम्मिलित होकर वे वहाँ तक पहुँचीं जहाँ उनकी मृत्यु उनकी प्रतीक्षा कर रही थी | उससे मिलते ही जीवन का खेल पूरा हो गया |
     इसीप्रकार से पूर्व लोक सभाध्यक्ष जीएमसी बालयोगी एवं पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी जैसे अनेकों लोग जिन सामान्य परिवारों में पैदा हुए वहाँ से उस उँचाई पर पहुँचकर जीवन को पूरा करना संभव न था | इसके लिए उन्हें आर्थिकदृष्टि से सक्षम होना या फिर राजनीति के उन उच्चपदों तक पहुँचना आवश्यक था| जिनसे उस प्रकार के  संसाधनों का पाना आसान हो जाए | जिनकी मदद से उस समय उस ऊँचाई पर पहुँच पाना  संभव हो पावे | जहाँ जीवन पूरा होना है | 
      कोरोना काल में ही देखा कि जिन साधन संपन्न लोगों ने एकांतबास करके कोविड नियमों का पालन पूर्ण रूप से किया उनमें से बहुत लोग संक्रमित हुए |जिन्हें उच्चस्तरीय चिकित्सा सुविधाएँ मिलीं ,फिर भी उनमें से बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु हुई |दूसरी ओर  संपूर्ण कोरोना काल में गरीबों के बच्चे भोजन की तलाश में सभी जगह जाते और सभी का छुआ खाते रहे,यहाँ तक कि बहुत लोगों का रहन सहन खान पान आदि सामूहिक था | किंतु उनमें से अधिकाँश लोग सुरक्षित बने रहे | 

उन्नत विज्ञान पर भरोसा भी है और भविष्य को लेकर चिंताएँ भी !

      अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की तरह महामारी चीन के वुहान से निकलती है और निर्ममतापूर्वक मनुष्यों को संक्रमित करती हुई आगे बढ़ती जाती है |संपूर्ण विश्व का चक्कर लगाकर भारत पहुँचती है| इस विश्वपरिक्रमा में उसे अन्य देशों के साथ साथ कुछ विकासशील देश तो कुछ विकसित देश भी मिले |जिनकी चिकित्सा व्यवस्था अति उन्नत मानी जाती है | उन देशों की वैज्ञानिक क्षमता की परवाह न करती हुई महामारी आगे बढ़ती चली गई |  वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा ऐसा कोई महामारीसुरक्षाकवच खोजा नहीं जा सका |जिसके बल पर समाज को यह विश्वास दिलाया जा सका हो कि महामारी से अब कोई भय नहीं है |
      जिस प्रकार से गाँव में घुसे हाथी को भौंक भौंक कर भगाने के लिए ग्रामीण कुत्ते बहुत प्रयत्न करते हैं,किंतु उनके भौंकने का प्रभाव हाथी पर बिल्कुल नहीं पड़ता है |उसे जबतक उपद्रव करना होता है तब तक करता है बाद में वह हाथी अपने मन से ही गाँव छोड़कर जाता है |
        कोरोना महामारी उसी उन्मत्त हाथी की तरह निरंकुश होकर उपद्रव करती जा रही थी और उस महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए किए जा रहे सभी प्रयत्न निरर्थक होते दिख रहे थे |  न कोई अनुमान सहीं निकल रहा था और न ही पूर्वानुमान !अनुसंधानों के नाम पर जिसे जो मन आ रहा था | वो वही बोले जा रहा था | 
       कुलमिलाकर महामारी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा मनुष्यकृत प्रयासों से कहीं रोका नहीं जा सका | महामारी महीनों वर्षों तक संपूर्ण विश्व को रौंदती रही और लोग सहते रहे|जिसप्रकार से गाँव में उपद्रव मचा रहे हाथी को गाँव  छोड़कर कभी तो जाना ही होता है | इसलिए हाथी जब जी भर उपद्रव मचाकर चला जाता है ,तब भी उन कुत्तों को यही भ्रम बना रहता है कि उनके भौंकने के  भय से भयभीत होकर ही  हाथी गाँव से बाहर चला गया है | 
     महामारी से निपटने के लिए हम मनुष्यों के द्वारा किए गए प्रयासों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही रही है | महामारी अपने आप से  जब वापस लौटने लगती तो संक्रमितों की संख्या घटने लगती थी | इसे देखकर चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न लोग महामारी को पराजित कर देने के या महामारी पर विजय प्राप्त कर लेने के दावे करने लग जाते !महामारी पुनः संक्रमित करना शुरू कर देती और वे दावे गलत निकल जाते ! ऐसा कई बार हुआ | इसीलिए कुछ वर्षों तक महामारी बार बार घट घट कर बढ़ते देखी जा रही थी |  
   ऐसे कठिन समय में कोई भी देश अपनी वैज्ञानिक तैयारियों के बलपर महामारी का सामना करने का साहस नहीं जुटा पा रहा था |  कोई अनुसंधान औषधि उपाय आदि महामारी के सामने ठहर नहीं पा रहे थे !  महामारी भी उस उन्मत्त हाथी की तरह जितना उपद्रव मचाना था वो मचाकर ही गई है | मनुष्यकृत प्रयासों से उसे रोका जाना संभव नहीं  हो सका है | महामारी अपने अश्वमेध यज्ञ को संपूर्ण समझकर दिग्विजय पताका लहराती हुई अपने आपसे अंतर्ध्यान हो गई |इससे संबंधित अनुसंधान अधूरे ही बने रहे |ऐसी स्थिति में ये कैसे पता लगे कि ऐसे प्रयत्नों का प्रभाव महामारी पर पड़ सकता था या नहीं !
     कुल मिलाकर  समय प्रभाव से संक्रमितों की संख्या जब अपने आपसे कम होने लगती तब जो औषधि आदि दी जा रही होती थी | संक्रमण कम होने का श्रेय लोग उसी औषधि को देने लग जाया करते थे | संक्रमितों की संख्या कम होने का कारण  उसी औषधि धर्माचरण या टोने  टोटके आदि का प्रभाव मान लिया जाता था! संक्रमितों की संख्या बढ़ने पर उसी प्रकार के प्रयत्नों का प्रयोग जब दोबारा किया जाता तो उस औषधि का संक्रमितों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता  था, तब यह भ्रम टूटता था कि पहले भी जो लोग स्वस्थ हुए थे | वे किसी औषधि आदि के प्रभाव से नहीं प्रत्युत समय के प्रभाव से ही स्वस्थ हुए थे |इसके बाद उन औषधियों को महामारी की चिकित्सा व्यवस्था से अलग  कर दिया जाता रहा है | मुझे महामारी से इतना तो समझ में आ ही जाना चाहिए कि महामारी से बचाव के लिए अभी तक ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे सुरक्षा की जा सके |

                                                                           समय खंड

                               विज्ञान से  हमें पहले सुख सुविधाएँ चाहिए या सुरक्षा !
        वर्तमान समय विज्ञान बहुत उन्नत है | यह कहने के बजाए सोचने की आवश्यकता है कि प्राकृतिक विषयों में अनुसंधानों की आवश्यकता क्यों पड़ी ! मनुष्यों की आवश्यकताओं पर अनुसंधान कितने खरे उतर पा रहे हैं| वर्तमान परिस्थिति में यह हम सभी को मिलकर तय करना है ,कि हमें सुख सुविधा के संसाधन पहले चाहिए या फिर प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों आदि से मनुष्यों की  सुरक्षा !वर्तमान समय में सुख सुविधा के साधन तो बहुत हैं किंतु प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से मनुष्यों को सुरक्षित बचाने की तैयारियों को कोरोनाकाल में दुनियाँ ने देखा है |  कोरोना महामारी काल में हुए अनुभवों को सामने रखकर ये सोचे जाने की आवश्यकता है कि महामारी कैसे पैदा होती है !लोग संक्रमित कैसे होते हैं और चिकित्सा से कितनी मदद मिलती है ?     

     चिंता की बात यह है कि गर्व करने लायक इतने उन्नत विज्ञान की मदद से अभी तक यह समझा जाना संभव नहीं हो पाया है कि महामारी पैदा कैसे हुई ? महामारी से लोग रोगी कैसे हुए ? महामारी से संक्रमित लोग स्वस्थ कैसे हुए ? महामारी समाप्त कैसे हुई ? समाप्त हुई या अभी और आएगी ! महामारी की लहरें आने और जाने का कारण क्या था ?महामारी के बिषाणु पदार्थों या जीवों के अंदर प्रवेश कर सकते है या नहीं ? महामारी के बिषाणु प्राकृतिक वातावरण में मनुष्य शरीरों से पहुँचते हैं या मनुष्य शरीरों से प्राकृतिक वातावरण में ? महामारी से मुक्ति दिलाने में चिकित्सा की क्या भूमिका रही ? कोविडनियमों के पालन से क्या मदद मिली ?  

    तापमान बढ़ने घटने का महामारी पर  प्रभाव पड़ता है या नहीं ? तापमान घटने बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव है क्या ?

 वायुप्रदूषण बढ़ने से महामारीजनित संक्रमण बढ़ता है क्या ?वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण क्या है?वायुप्रदूषण बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है क्या ?

 महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने में मौसम की भूमिका होती है या नहीं? मौसम संबंधी परिवर्तनों का कारण क्या होता है ?मौसम के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव है क्या ?    

भूकंपों का भी महामारी पर प्रभाव पड़ता है क्या ? महामारी के समय इतने अधिक भूकंप आने का कारण क्या था ?

   महामारी के समय कुछ वृक्षों में उनकी ऋतुओं के बिना भी फूल फल लगते देखे जा रहे थे | फूलों फलों  के आकार स्वाद सुगंध आदि में बदलाव होते सुने जा रहे थे |इसका कारण महामारी ही थी या कुछ और ! ऐसे परिवर्तन कृषि संबंधी उत्पादों में भी होते देखे जा रहे थे | ऐसा होने का कारण महामारी थी या कुछ और !

    महामारी के समय पशुओं पक्षियों में इतनी अधिक बेचैनी क्यों थी ? पशुओं पक्षियों चूहों टिड्डियों ,कुत्तों, भेड़ियों आदि के उन्माद का  कारण महामारी थी या कुछ और ?

    महामारी के समय कुछ देशों में  तनाव आतंकी घटनाएँ हिंसक आंदोलन एवं युद्ध जैसी हिंसक घटनाएँ घटित हो रही थीं !ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण महामारी थी या कुछ और !

    महामारी काल से अभी तक उठते बैठते हँसते खेलते नाचते कूदते कुछ लोगों की मृत्यु होते देखी जा रही है | इसका कारण कोरोना महामारी है या कुछ और !

 महामारी का पूर्वानुमान लगाने के लिए भविष्य में  झाँकने का विज्ञान होना आवश्यक है ऐसा विज्ञान न होने के बाद भी भविष्य महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाए जाते रहे कैसे !

      कुलमिलाकर  महामारी आकर चली भी गई है किंतु ऐसे प्रश्नों के उत्तर अभी तक खोजे नहीं जा सके हैं | इसके बिना महामारी को समझना संभव नहीं है और महामारी को समझे बिना इससे मनुष्यों की सुरक्षा की जानी संभव नहीं है | 

       महामारी यदि लौटकर दोबारा भी आ जाए और उसका स्वरूप इससे भी भयंकर हो तो वैज्ञानिक अनुसंधानों के बलपर इससे भी मना नहीं किया जा सकता है कि अब ऐसा नहीं होगा | ऐसा भी कहा जाना संभव नहीं है कि ऐसा कुछ होने से पहले उसके विषय में हम सही सही पूर्वानुमान लगा लेंगे |कोविडनियमों का पालन करके,प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के प्रयत्न करके या औषधियों टीकों आदि का अग्रिम प्रयोग करके समाज को रोगी होने से बचा लिया जाएगा ! महामारी से संक्रमित हो चुके रोगियों को चिकित्सा करके सुरक्षित बचा लिया जाएगा |विज्ञान के अत्यंत उन्नत अवस्था में पहुँचने पर भी ऐसी आपदाओं से यदि मनुष्य जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकी है तो उन सुख सुविधाओं का क्या होगा जो मनुष्यों  की कठिनाइयाँ कम करके उन्हें सुखी बनाने के लिए खोजकर रखी गई हैं |   

                               ऐसे अनुसंधानों से कितनी मदद मिलने की आशा की जाए !  

      महामारी पहले पैदा हो फिर लोग उससे तेजी से संक्रमित होने लगें,उनमें से  कुछ की मृत्यु होते देखी जाए | इसके बाद उसे पहचानना प्रारंभ किया जाए ! वो रोग है या महारोग यह निश्चित किया जाए | उसका स्वभाव संक्रामकता लक्षणों आदि का  पता लगाया जाए !उससे बचाव के उपाय खोजे जाएँ फिर उससे संक्रमितों को रोगमुक्ति दिलाने के लिए औषधियों को खोजा जाए ! औषधियों के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए | उसके लिए इतनी बड़ी मात्रा आवश्यक द्रव्यों का संग्रह किया जाए | इतनी अधिक मात्रा में औषधियों का निर्माण किया जाए | इतने विशाल समुदाय में जन जन तक पहुँचाया जाए | इसके बाद चिकित्सा पूर्वक संक्रमितों को रोग मुक्ति दिलाने के लिए प्रयत्न किया जाए |

     ऐसा सब कुछ करने में बहुत समय लग जाएगा तब तक महामारी प्रतीक्षा  तो नहीं करती रहेगी कि जब वैज्ञानिक अनुसंधान सफल हो जाएँ या औषधि निर्माण की सारी प्रक्रिया पूरी हो जाए | उतने समय में तो लाखों लोग संक्रमित होकर मृत्यु को भी  प्राप्त  जाएँगे | इसके बाद यदि  चिकित्सा के प्रभाव से संक्रमितों को स्वस्थ करने में सफलता प्राप्त कर भी ली गई तो उससे उन लोगों को तो जीवित नहीं ही कर लिया जाएगा ! जो मृत्यु को प्राप्त हो चुके होंगे | जो संक्रमित होकर एक बार पीड़ा पा चुके हैं | उनके उस भय को भगाया नहीं जा सकेगा | 

     इसलिए महामारी में यदि समाज की मदद करनी ही है तो सबसे पहले ऐसा कोई विज्ञान खोजना होगा ! जिसके द्वारा महामारी आने से पहले उसके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सके कि महामारी आने वाली है |जिससे महामारी आने से पहले इससे बचाव के साधनों से समाज को अवगत करा दिया जाए एवं ऐसी औषधियों का प्रबंध कर लिया जाए | ऐसा प्रयत्न करके महामारी आने पर भी महामारी के प्रकोप से समाज को सुरक्षित रखा जा सकता है | इससे मुक्त समाज निर्माण  की संकल्पना को साकार किया जा सकता है |


 प्रकृति और जीवन को समझिए  गणितविज्ञान से !   
     
        प्राकृतिक बिषयों में गणित के बिना विज्ञान अधूरा होता है|किसी प्राकृतिकघटना के घटित होने के बिषय में विज्ञान के द्वारा यदि यह पता लगा भी लिया जाता है कि ऐसी घटना घटित होने की संभावना है|तो प्रश्न उठता है कि कब घटित होगी | इसका कोई संतोष जनक उत्तर नहीं होता है | भूकंप विशेषज्ञों के द्वारा अक्सर कहा जाता है कि निकट भविष्य में हिमालय के आस पास बहुत बड़ा भूकंप आ सकता है | इसका आधार क्या है प्रमाण क्या है और ऐसी घटना के घटित होने का संभावित समय क्या होगा ! इसका किसी के पास कोई उत्तर नहीं होता है | 
      ऐसे ही जलवायु परिवर्तन के प्रभाव विषय में कहा जाता है कि जंगलों में आग लग  सकती है | सूखा , तूफान और बाढ़ जैसी चरम मौसम की घटनाएँ अधिक तीव्र और अप्रत्याशित हो सकती हैं।इसके कारण तरह तरह के रोग महामारियाँ आदि फैलेंगी | जलवायु परिवर्तन कहीं भयंकर सूखे का कारण बन सकता है जबकि दूसरी जगह भयंकर बाढ़ हो सकती है।ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे |उससे समुद्र का जलस्तर बढ़ सकता है | ऐसा सब कुछ कहाँ होगा कब होगा कितना होगा ऐसे प्रश्नों का किसी के पास कोई उत्तर नहीं होता है |
     कुल मिलकर तापमान बढ़ने,सूखा , तूफान ,बाढ़,रोग और महारोग जैसी मौसमसंबंधी घटनाओं के घटित होने का कारण जिस जलवायुपरिवर्तन को बताया जाता है | उस जलवायुपरिवर्तन के कारण मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना असंभव बताया जाता है|ऐसी घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसमविज्ञान की परिकल्पना की गई है | यदि मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है तो मौसमविज्ञान है क्या और इसका औचित्य ही क्या बचता है |
   जलवायुपरिवर्तन के प्रभाव को लेकर सुदूरभविष्य के विषय में एक ओर इतनी बड़ी बड़ी बातें तो दूसरी ओर मौसम एवं महामारी के विषय में घटनाओं के घटित होने के चार दिन पहले लगाने जाने वाले पूर्वानुमान अक्सर गलत निकलते रहते हैं | मौसम संबंधी मध्यावधि दीर्घावधि पूर्वानुमान सही निकलते ही नहीं हैं | तात्कालिक पूर्वानुमान भी विश्वसनीय बहुत कम ही देखे जाते हैं | ऐसी स्थिति में जलवायुपरिवर्तन के प्रभाव के विषय में की गई भविष्यवाणी कितनी सच एवं विश्वसनीय हैं कैसे पता लगे | 
       ऐसे ही दुविधापूर्ण वक्तव्य प्रकृति विषयक अन्य क्षेत्रों में भी  देखे जाते हैं| ऐसा होने का कारण प्राकृतिक अनुसंधानों का गणितीय आधार न होना होता है |ऐसे विषयों में प्राचीन गणितविज्ञान  के आधार पर किए गए अनुसंधान अधिक सटीक होते हैं | इसीलिए गणित और विज्ञान दोनों मिलकर ही प्राकृतिक रहस्यों  को सुलझा सकते हैं | भारत की जो प्राचीन पारंपरिक विज्ञान पद्धति थी | उसका मूल आधार गणित ही है | प्राचीन काल में गणित के बलपर प्रकृति एवं जीवन से संबंधित घटनाओं के रहस्यों को सुलझा लिया जाता था | 
       वस्तुतः अच्छे बुरे मौसम और महामारियों का कारक सूर्य के संचार को माना जाता है | गणित के द्वारा सौरसंचार को समझना संभव है तभी तो  सूर्य सिद्धांत जैसे अनेकों आर्ष ग्रंथों में प्रकृति एवं जीवन को समझने के लिए गणित के सूत्रों का उपयोग किया गया है | गणित के द्वारा सूर्य आदि ग्रहों के संचार के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया बताई गई है | उसी पद्धति से पृथ्वी सूर्य चंद्र आदि के एक सीध में आने के विषय में सही सटीक अनुमान या पूर्वानुमान आदि लगाकर गणित के द्वारा ही सूर्य चंद्रग्रहणों का भी सही सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |                                               

      प्राचीनविज्ञान हो या आधुनिकविज्ञान इनमें एक समानता तो है कि दोनों का आधार गणित ही है|प्राचीन विज्ञान प्राचीन गणितीय पद्धति पर आधारित है | प्राकृतिक विषयों में उसकी गणना अधिक सटीक बैठती है | गणित का प्रकृति से सीधा संबंध है | ऐसा विभिन्न वैज्ञानिकों ने समय समय पर स्वीकार किया है |

     एक वैज्ञानिक प्रोफेसर  गणितविज्ञान के साथ प्रकृति के सजीव संबंध को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि     हमारी प्रकृति कुछ इस प्रकार से बनी है कि गणित के फार्मूले जो कागज़ पेन से लिखे जाते हैं | वे प्रकृति के कई सारे नियमों को ठीक तरीके से पकड़ लेते हैं |प्रकृति में क्या हो रहा है | ये वो गणित के सूत्र बता देते हैं | इसका कारण क्या है इसे कोई भी अच्छी तरीके से नहीं समझता है लेकिन ये हर जगह देखा  गया है | चाहें न्यूटन के लॉ हों आइंस्टीन के लॉज हों सिंपल क्वेश्चंस हों |

    एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित में आंकड़ों की प्रधानता है तथा विज्ञान में तत्वों की और ये दोनों प्रकृति से जुड़े हुए हैं । गणित का उपयोग प्राचीन समय से ब्रह्मांड में तारा एवं ग्रहों की दूरी का पता लगाने  के लिए किया जा रहा है ।"    
    एक वैज्ञानिक का मत है -"विज्ञान में हम सिद्धांतों की बात करते है और गणित के द्वारा ही उन सिद्धान्तों को सूत्रों में बदला जाता है।साफ़ तौर पर कहें तो विज्ञान ‘क्यों’ का उत्तर देता है और गणित ‘कब’ और ‘कितना’ का उत्तर देती है।"
   एक वैज्ञानिक कहते हैं -  "गणित विभिन्न नियमों, सूत्रों, सिद्धांतों आदि में संदेह की संभावना नहीं रखती है।"
  गैलीलियो कहते हैं , “गणित वह भाषा है जिसमे परमेश्वर ने संपूर्ण जगत या ब्रह्मांड को लिख दिया है।”

      एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित के नियम, सिद्धांत, सूत्र सभी स्थानों पर एक समान होते हैं | जिससे उनकी सत्यता की जाँच किसी भी समय तथा स्थान पर की जा सकती है।गणित ज्ञान का आधार निश्चित होता है | जिससे उस पर विश्वास किया जा सकता है।
एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेंद्रियाँ हैं।" 

   कुल मिलाकर  प्रकृति या जीवन में जो जो कुछ घटित हो रहा है | गणित के द्वारा उसका आगे से आगे पता लगा लिया जाता है | जिस गणित विज्ञान के द्वारा सूर्य चंद्र आदि ग्रहों से संबंधित घटनाओं के विषय में  हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता रहा है|उसी गणितविज्ञान के द्वारा ग्रहों के परिवर्तनों से घटित होने वाली ऋतुओं ऋतुप्रभावों एवं महामारी भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात आदि घटनाओं के विषय में भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाता है|गणित के द्वारा ऐसा किया जाना संभव है| 

     इसीलिए विभिन्न आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी इस गणित विधा को वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए सहयोगी के रूप में स्वीकार किया है | प्राचीन समय की तरह ही अभी भी मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में गणित के द्वारा अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है | यही सोचकर ऐसी घटनाओं के विषय  में गणित के आधार पर अनुसंधान पूर्वक मैं जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाता रहा हूँ| वे सही निकलते रहे हैं |आधुनिक विज्ञान की तरह ही  ऐसे विषयों में अभी भी गंभीर अनुसंधानों की आवश्यकता है |प्राचीन विज्ञान भी गणित पर ही आधारित है |

                         मौसम एवं महामारियों को समझिए ग्रहगणितविज्ञान  से 

        इनमें से   जल,अग्नि अर्थात कफ और पित्त का अभिप्राय सर्दी और गर्मी ही प्रमुख हैं |यदि ग्रहों की दृष्टि से देखा जाए तो सर्दी से अभिप्राय चंद्र तथा गर्मी का प्रतिनिधित्व सूर्य करता है | विशेष बात यह है कि चंद्र शीतलता का प्रतिधित्व अवश्य करता है किंतु प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव सूर्य का ही दिखाई पड़ता है ,क्योंकि पूर्णमासी को चंद्रमा पूर्ण प्रकट दिखाई देता है उस रात्रि को देखने में अच्छा तो लगता है किंतु उससे ठंड होने का अनुभव नहीं होता है | ऐसे ही अमावस्या को चंद्रमा के क्षीण हो जाने पर गर्मी अधिक नहीं पड़ते देखी जाती है | वैसे भी चंद्रमा तो सूर्य के  प्रकाश से ही प्रकाशित है | इसलिए चंद्रमा का चमकना एवं उसकी शीतलता सूर्य के आधीन ही रहती है | सूर्य जैसे जैसे अपना प्रभाव प्रकाश आदि कम करता जाता है वैसे वैसे चंद्र का प्रभाव अँधेरा शीतलता आदि बढ़ते देखी जाती है| ग्रीष्मऋतु में सूर्य का प्रभाव बढ़ने पर वातावरण में गर्मी बढ़ते देखी जाती है और शिशिर ऋतु में सूर्य का प्रभाव घटने से दिन छोटे एवं रातें बड़ी होने लगती हैं | इससे वातावरण में सर्दी होते दिखाई देती है | इसी प्रकार से दिन में सूर्य की उपस्थिति रहने के कारण रात्रि की अपेक्षा दिन का तापमान बढ़ा रहता है | 
    कुलमिलाकर बात जो तापमान के बढ़ने और घटने की है इसका कारण तो सूर्य ही है | सूर्य का प्रभाव बढ़ते ही तापमान बढ़ जाता है और सूर्य का प्रभाव घटते ही तापमान कम होना शुरू हो जाता है | इसप्रकार से प्राकृतिक वातावरण में तापमान का कम और अधिक होना दोनों ही परिस्थितियाँ सूर्य के ही आधीन हैं |  मौसम बनता बिगड़ता है | मानसून आता जाता है | ऋतुखंडों में उनका प्रभाव अत्यधिक बढ़ने सम रहने एवं कम होने का कारण सूर्य ही है | सूर्य की ऊष्मा के कारण ही हवाओं, बादलों, चक्रवातों भूकंपों एवं अन्य मौसमसंबंधी परिघटनाओं का जन्म होता है। पृथ्वी पर बेमौसम बारिश, बाढ़, सूखा, ग्लेशियरों के पिछलने जैसी घटनाएँ भी तो सूर्य संबंधी परिवर्तन के ही प्रभाव हैं |मौसम में परिवर्तन अचानक हो सकता है एवं इसका अनुभव किया जा सकता है जबकि ऋतु परिवर्तन अपने समय से ही होता है ऋतुध्वंस कभी भी हो सकता है किंतु ये बात हमेंशा पृथ्वी के मौसम रूपी इंजन को चलाने वाला ऊर्जा स्रोत सूर्य ही है। सूर्य की ऊर्जा व ऊष्मा के बगैर कोयला, जीवाश्म ईंधन, पौधे, हवा और बारिश ही नहीं अपितु जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं है। सूर्य ही हवा के गर्म या ठंडी, तूफानी या शांत होने का कारण है | 
     इसलिए प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए सूर्य के संचार को समझना आवश्यक होता है |सूर्य के  स्वभाव और प्रभाव में समय समय पर आते रहने वाले परिवर्तनों के कारण ही तापमान बढ़ता घटता है |उसका प्रभाव वायु के संचार पर पड़ता है | 
    भविष्य में घटित होने वाले सूर्य के संभावित संचार के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाना होता है | ऐसा किया जाना  प्राचीन विज्ञान के द्वारा ही संभव है |इसे  उपग्रहों रडारों दूरवीनों आदि से देखा नहीं जा सकता और अलनीनो लानिना जैसी कल्पनाओं के आधार पर सूर्य के संचार या सूर्य चंद्र ग्रहण के विषय में अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है | इसके लिए काल्पनिक विज्ञान से ऊपर उठकर गणितविज्ञान के आधार पर अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता है |  
      विशेष बात यह है कि यदि उपग्रहों रडारों दूरवीनों आदि के द्वारा निकट समय में घटित होने वाले संभावित ग्रहणों के विषय में पूर्वानुमान लगाना जिस किसी भी प्रकार से संभव मान भी लिया जाए तो भी भविष्य संबंधी ग्रहणों के विषय में कोई पूर्वानुमान लगाने के परिकल्पना कैसे की जा सकती है ! जबकि आज के हजारों वर्ष पहले  घटित होने वाले ग्रहणों के विषय में जो पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | वह एक एक सेकेंड सही घटित होता है | ऐसा तभी संभव हो पाया है जब प्राचीन विज्ञान को आधार बनाकर ऐसी घटनाओं की गणना  की गई है | 
  इसकी एक विशेषता यह भी है कि इस ज्ञान के द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमानों को कोई अलनीनो लानिना एवं जलवायु परिवर्तन आदि प्रभावित नहीं कर पाता है |सूर्य चंद्र ग्रहण हों या सभी ग्रहों के उदयअस्त के समय के विषय में गणित के द्वारा लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि कभी गलत नहीं हुए हैं | 
     ऐसी परिस्थिति में यदि सूर्य और चंद्र के संचार को गणित के द्वारा समझा जा सकता है इनके विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाता है तो उसी सूर्य के प्रभाव से घटित होने वाली महामारी एवं मौसमसंबंधी वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात आदि घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सकता है |  

समय का स्वभाव और सामर्थ्य !

      प्रकृति और जीवन में  समय के अनुसार ही घटनाएँ घटित होती  हैं | अच्छा समय होता है तो अच्छी घटनाएँ घटित होती हैं और बुरा समय होता है तो बुरी घटनाएँ घटित होती हैं | समय निरंतर चलता रहता है| उसी क्रम में कभी अच्छा तो कभी बुरा समय आता जाता रहता है |उसी के अनुसार प्रकृति और जीवन में घटनाएँ घटित होती रहती हैं | भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात एवं महामारी जैसी  प्राकृतिक घटनाएँ समय के अनुसार ही घटित होती हैं | समय संचार की प्रक्रिया को समझे बिना ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं है |समय को समझना आवश्यक है |  

      समय की शक्ति - समय किसी के आधीन नहीं है कि वो जब जैसा चाहे वैसा समय चला ले ! इसीलिए बड़े बड़े पराक्रमी लोग इस पृथ्वी पर हुए किंतु समय के  साथ उन्हें भी समाप्त होना पड़ा है | यहाँ तक कि ईश्वर का अवतरित होना या परमधाम गमन भी समय के ही आधीन है |

    जिस समय के अनुसार ईश्वर को भी चलना पड़ता है | वह समय स्वयं में सर्वतंत्र स्वतंत्र है | इसीलिए कहा गया है -" कालः साक्षादीश्वरः" अर्थात समय साक्षाद ईश्वर है | वह असीम शक्ति से संपन्न एवं सर्वसक्षम है |

    समय अपरिवर्तनीय है - समय के संचार क्रम को बदला नहीं जा सकता है | समय के स्वभाव को बदला नहीं जा सकता | समय अनंत काल से स्वनिर्धारित गति क्रम के अनुसार बढ़ता चला जा रहा है | समय स्वतंत्र तो है किंतु वो इतना भी स्वतंत्र नहीं है कि कभी भी कैसा भी परिवर्तित होकर चलने लगे | वो स्वनिर्धारित नियमों से इतनी दृढ़ता से निबद्ध है कि उसीप्रकार चलेगा जैसा हमेंशा से चलता आ रहा है | 

    संसार एवं अपने जीवन को समझने के लिए तथा प्रकृति तथा अपने जीवन में घटित होने वाली घटनाओं को समझने के लिए एवं सही अनुमान पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रत्येकव्यक्ति  को समय की जानकारी हमेंशा रखनी चाहिए |समय कभी किसी के अनुसार  चलता है | प्रत्युत समय के अनुसार ही सभी को चलना पड़ता है | समय के अनुसार चलने के लिए ये पता होना आवश्यक है कि कब कैसा समय चल रहा है तथा किसके जीवन में कब कैसा समय चल रहा है | ये पता लगे बिना न तो प्राकृतिक आपदाओं और न ही महामारियों के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव हो सकता है |

   हमें इस सच्चाई को  समझना होगा कि घटनाएँ उपग्रहों रडारों के आधीन न होकर प्रत्युत समय के आधीन होती   हैं | इसलिए उनके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए समय को ही आधार बनाकर मौसम एवं महामारियों के विषय में  अनुसंधान करने होंगे | इस वास्तविकता को जितनी जल्दी समझ लिया जाएगा ,उतनी जल्दी प्राकृतिक  आपदाओं एवं महामारियों से संबंधित रहस्य सुलझने लग जाएँगे | इस क्षेत्र में बीते डेढ़  सौ वर्षों में जो नहीं किया जा सका वो दस वर्षों में होने लगेगा | ऐसा मेरा विश्वास है | 

                                                     यंत्रविज्ञान और समय का अनुसंधान

     वर्तमानसमय में इतने बड़े बड़े विकसित यंत्रों को देखकर ऐसा लगना स्वाभाविक ही है कि प्राचीनकाल में जब ऐसे यंत्र नहीं थे| उससमय विज्ञान का आस्तित्व ही नहीं होगा| इसलिए प्राचीनकाल के लोगों के जीवन और जीवनशैली के विषय में  कितनी ऊटपटाँग कल्पनाएँ कर ली जाती हैं | उतने गिरे स्तर से सोचने का कारण उस युग की वैज्ञानिकक्षमताओं के विषय में जानकारी का न होना होता है | उस युग में यंत्र नहीं थे ये बात नहीं है उस युग में यंत्रों की आवश्यकता ही नहीं थी | जिन यंत्रों की आवश्यकता होती थी वे बना लिए जाते थे | इस रहस्य को न समझकर प्राचीन  विज्ञान पर आधार विहीन शंकाएँ  किया करते हैं | इसे ऐसे समझिए -

     जो लोग ऐसा कहते हैं कि समय को देखने के लिए अब तो घड़ी है | प्राचीन काल में क्या था ?उन्हें पता होना चाहिए कि उस युग में समय पता करने के लिए घड़ियों(उदकयंत्र) का प्रयोग किया जाता था |  यद्यपि उस युग में  समय देखने के लिए घड़ियों की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी | उस समय प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के समय को गणित के द्वारा पहले ही पता कर लिया जाता था | जिस समय वह घटना घटित होने लगती थी, तब उतना समय हुआ है ऐसा मान लिया जाता था | उस युग में प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का समय घड़ियों में नहीं देखना पड़ता था प्रत्युत घड़ियों के समय का मिलान प्राकृतिक घटनाओं से किया जाता था |विश्वास था कि घड़ियों का समय आगे पीछे हो भी सकता है किंतु प्राकृतिक घटनाएँ अपने समय पर ही घटित होती हैं | इसलिए उन्हें ही प्रमाण माना जाता था | 

   एक घडी 24 मिनट(60पल) की होती है |उदक यंत्र में समय का मान घड़ियों में पता लगता था | इसीलिए उस यंत्र का नाम घड़ी रखा गया था | उस युग में दिन की शुरुआत सूर्योदय से ही मानी जाती थी | सूर्योदय के बाद  जितनी घड़ियाँ बीतती थीं | उतना समय हुआ है ऐसा माना माना जाता था |इसे ही इष्टकाल कहा जाता है | ज्योतिषी लोग कुंडली बनाते समय आज भी उसी इष्टकाल का प्रयोग करते हैं | 

   वर्तमान समय में जिसे कहा तो घड़ी कहा जाता है ,किंतु वो समय की जानकारी घंटों के रूप में देती है | इसलिए उसे घंटा कहा जाना चाहिए किंतु प्राचीनकाल से उसे घड़ी कहने का अभ्यास पड़ा हुआ है इसलिए उस घंटे को अभी भी घड़ी ही कहा जाता है | प्राचीन भारत में समय देखने के लिए घड़ी पल का ही प्रचलन था | इस प्रकार से घड़ी शब्द और यंत्र की खोज प्राचीनभारत में ही की गई थी |

     समय को पूछने बताने के लिए  कहा जाता है कि कितने बजे हैं या अभी इतने बजे हैं | सच्चाई ये है कि अब तो बजते नहीं हैं | प्राचीनकाल में जब उदकयंत्र से समय का पता लगाया जाता था | उस समय समाज को सूचित करने के लिए घंटे बजाए जाते थे | जब जितना समय होता था उतने घंटे बजाए जाते थे | जिन्हें सुनकर आपस में लोग चर्चा करते थे कि कितने बजे हैं तो दूसरे बताते थे अभी इतने बजे हैं| ये 'बजना' शब्द भी प्राचीनकाल से ही चला आ रहा है | 

    विशेष बात ये है कि समय प्रत्यक्ष तो दिखाई नहीं पड़ता है| इसीलिए सुदूर आकाश में जहाँ कोई दृश्य दिखाई नहीं पड़ते हैं|वहाँ समय के गतिशील होने का पता भी नहीं लगता है| प्रकृति और जीवन में होने वाले  परिवर्तनों को देखकर ही समय के बीतने का अनुभव होता है | घड़ी यंत्रों से से ये पता लगना संभव नहीं है | कब अच्छा और कब बुरा समय चल रहा है|भविष्य में बुरे समय के प्रभाव से घटित होने वाली प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए ये पता करना होगा कि कब कैसा समय चलेगा !इस जानकारी को पाने के लिए प्राचीनकाल में 'कालज्ञानग्रहाधीनं' अर्थात समय का ज्ञान ग्रहों के आधार पर किया जाता था | सूर्य चंद्रादि ग्रहों के संचार के आधार पर न केवल समय के संचार के विषय में पता लगा लिया जाता था ! प्रत्युत अच्छे और बुरे समय के विषय में भी आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिया जाता था |

                                                        








Comments

Popular posts from this blog

Mahamaari

विज्ञान खंड

वातादि दोष !