द्वितीय : समय विज्ञान खंड 2 , book 18-11-20024 समय पर जो लेख हैं उन्हें डालना है !
ऐसी घटनाओं का कोरोना महामारी से कोई अंतर्संबंध तो नहीं है | यह पता लगाने के लिए ऐसी घटनाओं के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना आवश्यक है,क्योंकि ऐसी आपदाओं के शुरू हो जाने या घटित होने के बाद सुरक्षा के लिए कुछ भी किया जाना तुरंत संभव नहीं होता है|इनका वेग ही इतना अधिक होता है|इसके लिए तो पहले से ही तैयारी करके रखी जानी चाहिए |जो नहीं हो पा रहा है|यदि ऐसा होता तो प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों में उतना नुक्सान न हुआ होता जितना हो रहा है|
विज्ञान के बिना किसी भी रहस्य को सुलझाया जाना संभव नहीं हैं !इसी प्रकार से भविष्य को समझने के लिए भी विज्ञान की आवश्यकता होती है |विज्ञान के बिना भविष्य में झाँकना संभव नहीं है | इसके बिना भविष्य में कौन घटना कब घटित होगी |इसके विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं है|पूर्वानुमान लगाए बिना प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों से समाज को सुरक्षित बचाया जाना संभव नहीं है !यही कारण है कि तीनों युद्धों में मिलाकर भारत को जितना नुक्सान नहीं उठाना पड़ा था |उससे कई गुना अधिक नुक्सान केवल कोरोना महामारी के समय में ही उठाना पड़ा है |
ऐसी परिस्थिति में सामरिक तैयारियाँ करके केवल शत्रु देशों से तो अपने देशवासियों की सुरक्षा की जा सकती है,किंतु कोरोना जैसी महामारी से मारे गए लाखों लोगों की सुरक्षा के लिए अभी भी तैयारियाँ क्या हैं|महामारी को समझने में या उसके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में वर्तमान समय के उन्नतविज्ञान से ऐसी क्या मदद मिल सकी है|जो वैज्ञानिक अनुसंधानों के बिना संभव न थी|कोरोना महामारी के कारण जितनी जनधन हानि हुई है ! वैज्ञानिक अनुसंधान न हुए होते तो क्या इससे भी अधिक नुक्सान हो सकता था |इस विषय में गंभीर चिंतन किए जाने की आवश्यकता है|
इसमें विशेष बिचारणीय यह है कि कोरोनामहामारी के समय जनधन का जितना नुक्सान हुआ है|उसका कारण महामारी की भयंकरता थी या महामारी से सुरक्षा के लिए कोई तैयारियाँ नहीं थीं|ऐसे ही कोरोना महामारी के कारण इतने लोगों की मृत्यु हुई है या प्रतिरोधक क्षमता की कमी के कारण ! ऐसे प्रश्नों का तर्क संगत उत्तर खोजा जाना चाहिए|महामारी पैदा कैसे हुई !इसका विस्तार कितना था ! प्रसारमाध्यम क्या था ! अंतर्गम्यता कितनी थी|इसपर मौसम का प्रभाव पड़ता था या नहीं ! वायुप्रदूषण का प्रभाव कैसा पड़ता था|तापमान बढ़ने या घटने का क्या प्रभाव पड़ता था या नहीं | ऐसे आवश्यक प्रश्नों के उत्तर खोजे बिना महामारी को समझना संभव नहीं है और महामारी को अच्छी प्रकार से समझे बिना उससे समाज को सुरक्षित रखने या संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए किसी भी प्रभावी औषधि का निर्माण किया जाना संभव नहीं है |
मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं को समझने एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की जो विधि भारत के प्राचीन ग्रंथों में बताई गई है |मैंने उसी के अनुसार आज के तीस वर्ष पूर्व जो अनुसंधान प्रारंभ किया था | उससे जो अनुभव प्राप्त हुए उनके द्वारा मौसम संबंधी घटनाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों के स्वभाव को न केवल समझा जा सकता है| प्रत्युत उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है|जो प्रायः सही निकलता है | ये जनहित में बहुत उपयोगी है | इसकी मदद लेकर प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों में हो रही जनधन हानि को कम करके मनुष्यों की सुरक्षा की जा सकती है |
समयसंचार को समझे बिना विज्ञान अधूरा है !
सुख सविधाओं को पाने, भोगने या उनके न मिलने पर दुखी होने जैसा मूर्छित जीवन जीने वाले लोग प्रकृति से दिनोंदिन दूर होते चले जा रहे हैं |उन्हें न तो प्रकृति के संकेत समझ में आते हैं और न ही प्रकृति की पुकार पर ध्यान है | उन्होंने प्रकृति को निर्जीव समझकर उसके स्वभाव एवं सम्मान के साथ खिलवाड़ करना शुरू कर दिया है |
बहुत सारे जीव जंतु पशु पक्षी मनुष्य आदि प्रकृति के स्वभाव को समझते हैं | उससे मिलने वाले संकेतों पर ध्यान देते हैं | उसके अनुसार उन्हें इस बात का अनुमान होने लगता है कि निकट भविष्य में कब कैसी घटनाएँ घटित होने वाली हैं वे उसी के अनुरूप व्यवहार करने लगते हैं | वर्षा ,तूफ़ान ,भूकंप या महामारी जैसी घटनाएँ घटित होने से पहले बहुत जीवों का स्वभाव व्यवहार आदि बदल जाता है | सर्प जैसे कुछ जीव ऐसे भी हैं जो मृत्यु का समय समीप आने पर एकांतवास एवं निराहार जीवन जीते हुए मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगते हैं | कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो जाती है |
प्रकृति के संकेत न समझ पाने के कारण ही प्राकृतिक घटनाओं के विषय में बहुत सारी निराधार कल्पनाएँ कर ली जाती हैं | जिनकी वास्तविकता हमेंशा संदिग्ध बनी रहती है | ऐसे रहस्यों को उदघाटिक किया जाना तभी संभव है जब समय गणित और प्रकृतिपरिवर्तनों के आपसी संबंध को समझा जाए और उसके भावी परिवर्तनों के विषय में सही पूर्वानुमान लगाए जाएँ |
प्रकृति और जीवन से संबंधित बहुत सारी घटनाओं को जलवायुपरिवर्तनजनित बता दिया जाता है | ऐसा होने के लिए मनुष्यों की जीवन शैली को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है |ऐसे ही महामारीजनित संक्रमण बढ़ने पर महामारी के स्वरूपपरिवर्तन को दोषी बता दिया जाता है| ऐसे परिवर्तनों के लिए मनुष्यों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है|यद्यपि ऐसा किया जाना कुछ काल्पनिक कारणों पर आधारित होता है |ऐसे प्रकरणों में यह सोचा जाना चाहिए कि ये परिवर्तन समय जनित भी तो हो सकते हैं | संभव है कि ऐसे परिवर्तन प्रकृति क्रम के अनुसार किसी निश्चित अवधि के बाद स्वाभाविक रूप से होते ही हों |जिन्हें अज्ञानता के कारण हम समझ पाने में असमर्थ हों |जिस प्रकार से प्रतिदिन प्रातःकाल सूर्य का प्रकाश और ऊष्मा कम होती है मध्यान्ह काल में सबसे अधिक और सायंकाल फिर कम हो जाती है |
कल्पना कीजिए कि किसी के जीवन में यदि प्रातः मध्याह्न और सायंकाल जैसी घटना पहली बार घट रही हो तब तो ऐसा सोचा जाएगा कि प्रातः से मध्यान्ह काल तक सूर्य का प्रकाश और ऊष्मा यदि इतनी बढ़ सकती है तो इसी अनुपात में सायंकाल तक
बढ़कर न जाने कितनी अधिक हो जाएगी | विशेष बात ये है कि जब तक हम इस विषय
से अनजान रहेंगे तभी तक ऐसी अज्ञानजनित कल्पनाएँ की जा सकती हैं | इस रहस्य
को समझते ही इस सच्चाई का पता लग जाता है कि मध्याह्न काल के बाद सूर्य का
प्रकाश और ऊष्मा दोनों स्वयं ही ढलने लगेंगे और सायंकाल में शांत हो जाएँगे | इसीप्रकार से जलवायुपरिवर्तन या महामारी
के स्वरूपपरिवर्तन जैसी घटनाएँ स्वाभाविक एवं प्रकृतिक्रम के अनुसार घटित
हो रही हैं | अपने अज्ञान के कारण हम इन्हें समझ नहीं पा रहे हैं | ये
अज्ञानजनित भ्रम है |
जिस प्रकार से किसी ताले को उसकी अपनी चाभी की जगह किसी दूसरी चाभी से खोलने का प्रयत्न किया जा रहा हो और उस ताले के न खुलने पर ताले में परिवर्तन हो गया है | इस प्रकार से जलवायुपरिवर्तन या महामारी के स्वरूपपरिवर्तन की तरह ताले को ही दोषयुक्त सिद्ध किया जा रहा हो |
वस्तुतः ये कमी न तो उस ताले की है और न ही उस चाभी की | ये कमी उस ताला
खोलने वाले की है जो अज्ञानवश उस ताले को पहचाने बिना ही किसी चाभी से ताला
खोल देना चाह रहा हो | उसकी वास्तविक चाभी को खोज न पा रहा हो | इसके साथ
ही लापरवाही उस शासक की भी है | जिसने किसी अयोग्य आदमी को विशेषज्ञ मानकर
उसे इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंप रखी है |ये काम यदि इतना ही आसान होता तब तो
कोई भी कर लेता ! इसीलिए तो विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है |
विशेष बात है कि परिवर्तन कुछ स्वाभाविक और कुछ आकस्मिक होते हैं| जो परिवर्तन आकस्मिक
होते हैं वो तो अहितकर हो सकते हैं किंतु स्वाभाविक परिवर्तनों को अहितकर
कैसे कहा जा सकता है | आम के छोटे फल का रंग हरा स्वाद खट्टा होता है उसकी
गुठली भी शक्त नहीं होती है | उसी फल के बड़े होने पर उसकी गुठलीशक्त रंग
पीला और स्वाद मधुर हो जाता है | स्वाभाविक परिवर्तन तो प्रतिपल प्रकृति के कण कण में होते देखे जा रहे हैं | ऐसे परिवर्तन तो प्रत्येक
व्यक्ति वस्तु परिस्थिति आदि में होते ही रहते हैं | उन्हें न तो अहितकर
कहा जा सकता है और न ही दोष युक्त माना जा सकता है | उन्हें तो समझकर ही हम
अपनी योग्यता सिद्ध कर सकते हैं यही उस विषय के विद्वान् की विशेषज्ञता
होती है | जिससे संपन्न होने के कारण ही तो उसे उस विषय के वैज्ञानिक होने
जैसा बड़ा सम्मान सुख सविधाएँ आदि प्रदान की जाती हैं |
उन्नत विज्ञान पर भरोसा भी है और भविष्य को लेकर चिंताएँ भी !
अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की तरह महामारी चीन के वुहान से निकलती है और निर्ममतापूर्वक मनुष्यों को संक्रमित करती हुई आगे बढ़ती जाती है |संपूर्ण विश्व का चक्कर लगाकर भारत पहुँचती है| इस विश्वपरिक्रमा में उसे अन्य देशों के साथ साथ कुछ विकासशील देश तो कुछ विकसित देश भी मिले |जिनकी चिकित्सा व्यवस्था अति उन्नत मानी जाती है | उन देशों की वैज्ञानिक क्षमता की परवाह न करती हुई महामारी आगे बढ़ती चली गई | वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा ऐसा कोई महामारीसुरक्षाकवच खोजा नहीं जा सका |जिसके बल पर समाज को यह विश्वास दिलाया जा सका हो कि महामारी से अब कोई भय नहीं है |विज्ञान से हमें पहले सुख सुविधाएँ चाहिए या सुरक्षा !
चिंता की बात यह है कि गर्व करने लायक इतने उन्नत विज्ञान की मदद से अभी तक यह समझा जाना संभव नहीं हो पाया है कि महामारी पैदा कैसे हुई ? महामारी से लोग रोगी कैसे हुए ? महामारी से संक्रमित लोग स्वस्थ कैसे हुए ? महामारी समाप्त कैसे हुई ? समाप्त हुई या अभी और आएगी ! महामारी की लहरें आने और जाने का कारण क्या था ?महामारी के बिषाणु पदार्थों या जीवों के अंदर प्रवेश कर सकते है या नहीं ? महामारी के बिषाणु प्राकृतिक वातावरण में मनुष्य शरीरों से पहुँचते हैं या मनुष्य शरीरों से प्राकृतिक वातावरण में ? महामारी से मुक्ति दिलाने में चिकित्सा की क्या भूमिका रही ? कोविडनियमों के पालन से क्या मदद मिली ?
तापमान बढ़ने घटने का महामारी पर प्रभाव पड़ता है या नहीं ? तापमान घटने बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव है क्या ?
वायुप्रदूषण बढ़ने से महामारीजनित संक्रमण बढ़ता है क्या ?वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण क्या है?वायुप्रदूषण बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है क्या ?
महामारी
संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने में मौसम की भूमिका होती है या नहीं? मौसम
संबंधी परिवर्तनों का कारण क्या होता है ?मौसम के विषय में पूर्वानुमान
लगाया जाना संभव है क्या ?
भूकंपों का भी महामारी पर प्रभाव पड़ता है क्या ? महामारी के समय इतने अधिक भूकंप आने का कारण क्या था ?
महामारी
के समय कुछ वृक्षों में उनकी ऋतुओं के बिना भी फूल फल लगते देखे जा रहे थे
| फूलों फलों के आकार स्वाद सुगंध आदि में बदलाव होते सुने जा रहे थे |इसका कारण
महामारी ही थी या कुछ और ! ऐसे परिवर्तन कृषि संबंधी उत्पादों में भी होते
देखे जा रहे थे | ऐसा होने का कारण महामारी थी या कुछ और !
महामारी के समय पशुओं पक्षियों में इतनी अधिक बेचैनी क्यों थी ? पशुओं पक्षियों चूहों टिड्डियों ,कुत्तों, भेड़ियों आदि के उन्माद का कारण महामारी थी या कुछ और ?
महामारी के समय कुछ देशों में तनाव आतंकी घटनाएँ हिंसक आंदोलन एवं युद्ध जैसी हिंसक घटनाएँ घटित हो रही थीं !ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण महामारी थी या कुछ और !
महामारी काल से अभी तक उठते बैठते हँसते खेलते नाचते कूदते कुछ लोगों की
मृत्यु होते देखी जा रही है | इसका कारण कोरोना महामारी है या कुछ और !
महामारी का पूर्वानुमान लगाने के लिए भविष्य में झाँकने का विज्ञान होना आवश्यक है ऐसा विज्ञान न होने के बाद भी भविष्य महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाए जाते रहे कैसे !
कुलमिलाकर महामारी आकर चली भी गई है किंतु ऐसे प्रश्नों के उत्तर अभी तक खोजे नहीं जा सके हैं | इसके बिना महामारी को समझना संभव नहीं है और महामारी को समझे बिना इससे मनुष्यों की सुरक्षा की जानी संभव नहीं है |
महामारी यदि लौटकर दोबारा भी आ जाए और उसका स्वरूप इससे भी भयंकर हो तो वैज्ञानिक अनुसंधानों के बलपर इससे भी मना नहीं किया जा सकता है कि अब ऐसा नहीं होगा | ऐसा भी कहा जाना संभव नहीं है कि ऐसा कुछ होने से पहले उसके विषय में हम सही सही पूर्वानुमान लगा लेंगे |कोविडनियमों का पालन करके,प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के प्रयत्न करके या औषधियों टीकों आदि का अग्रिम प्रयोग करके समाज को रोगी होने से बचा लिया जाएगा ! महामारी से संक्रमित हो चुके रोगियों को चिकित्सा करके सुरक्षित बचा लिया जाएगा |विज्ञान के अत्यंत उन्नत अवस्था में पहुँचने पर भी ऐसी आपदाओं से यदि मनुष्य जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकी है तो उन सुख सुविधाओं का क्या होगा जो मनुष्यों की कठिनाइयाँ कम करके उन्हें सुखी बनाने के लिए खोजकर रखी गई हैं |
ऐसे अनुसंधानों से कितनी मदद मिलने की आशा की जाए !
महामारी पहले पैदा हो फिर लोग उससे तेजी से संक्रमित होने लगें,उनमें से कुछ की मृत्यु होते देखी जाए | इसके बाद उसे पहचानना प्रारंभ किया जाए ! वो रोग है या महारोग यह निश्चित किया जाए | उसका स्वभाव संक्रामकता लक्षणों आदि का पता लगाया जाए !उससे बचाव के उपाय खोजे जाएँ फिर उससे संक्रमितों को रोगमुक्ति दिलाने के लिए औषधियों को खोजा जाए ! औषधियों के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ की जाए | उसके लिए इतनी बड़ी मात्रा आवश्यक द्रव्यों का संग्रह किया जाए | इतनी अधिक मात्रा में औषधियों का निर्माण किया जाए | इतने विशाल समुदाय में जन जन तक पहुँचाया जाए | इसके बाद चिकित्सा पूर्वक संक्रमितों को रोग मुक्ति दिलाने के लिए प्रयत्न किया जाए |
ऐसा सब कुछ करने में बहुत समय लग जाएगा तब तक महामारी प्रतीक्षा तो नहीं करती रहेगी कि जब वैज्ञानिक अनुसंधान सफल हो जाएँ या औषधि निर्माण की सारी प्रक्रिया पूरी हो जाए | उतने समय में तो लाखों लोग संक्रमित होकर मृत्यु को भी प्राप्त जाएँगे | इसके बाद यदि चिकित्सा के प्रभाव से संक्रमितों को स्वस्थ करने में सफलता प्राप्त कर भी ली गई तो उससे उन लोगों को तो जीवित नहीं ही कर लिया जाएगा ! जो मृत्यु को प्राप्त हो चुके होंगे | जो संक्रमित होकर एक बार पीड़ा पा चुके हैं | उनके उस भय को भगाया नहीं जा सकेगा |
इसलिए महामारी में यदि समाज की मदद करनी ही है तो सबसे पहले ऐसा कोई विज्ञान खोजना होगा ! जिसके द्वारा महामारी आने से पहले उसके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सके कि महामारी आने वाली है |जिससे महामारी आने से पहले इससे बचाव के साधनों से समाज को अवगत करा दिया जाए एवं ऐसी औषधियों का प्रबंध कर लिया जाए | ऐसा प्रयत्न करके महामारी आने पर भी महामारी के प्रकोप से समाज को सुरक्षित रखा जा सकता है | इससे मुक्त समाज निर्माण की संकल्पना को साकार किया जा सकता है |
प्राचीनविज्ञान हो या आधुनिकविज्ञान इनमें एक समानता तो है कि दोनों का आधार गणित ही है|प्राचीन विज्ञान प्राचीन गणितीय पद्धति पर आधारित है | प्राकृतिक विषयों में उसकी गणना अधिक सटीक बैठती है | गणित का प्रकृति से सीधा संबंध है | ऐसा विभिन्न वैज्ञानिकों ने समय समय पर स्वीकार किया है |
एक वैज्ञानिक प्रोफेसर गणितविज्ञान के साथ प्रकृति के सजीव संबंध को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि हमारी प्रकृति कुछ इस प्रकार से बनी है कि गणित के फार्मूले जो कागज़ पेन से लिखे जाते हैं | वे प्रकृति के कई सारे नियमों को ठीक तरीके से पकड़ लेते हैं |प्रकृति में क्या हो रहा है | ये वो गणित के सूत्र बता देते हैं | इसका कारण क्या है इसे कोई भी अच्छी तरीके से नहीं समझता है लेकिन ये हर जगह देखा गया है | चाहें न्यूटन के लॉ हों आइंस्टीन के लॉज हों सिंपल क्वेश्चंस हों |
एक वैज्ञानिक का मत है -"विज्ञान में हम सिद्धांतों की बात करते है और गणित के द्वारा ही उन सिद्धान्तों को सूत्रों में बदला जाता है।साफ़ तौर पर कहें तो विज्ञान ‘क्यों’ का उत्तर देता है और गणित ‘कब’ और ‘कितना’ का उत्तर देती है।"
एक वैज्ञानिक कहते हैं - "गणित विभिन्न नियमों, सूत्रों, सिद्धांतों आदि में संदेह की संभावना नहीं रखती है।"
गैलीलियो कहते हैं , “गणित वह भाषा है जिसमे परमेश्वर ने संपूर्ण जगत या ब्रह्मांड को लिख दिया है।”
एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित के नियम, सिद्धांत, सूत्र सभी स्थानों पर एक
समान होते हैं | जिससे उनकी सत्यता की जाँच किसी भी समय तथा स्थान पर की जा
सकती है।गणित ज्ञान का आधार निश्चित होता है | जिससे उस पर विश्वास किया जा
सकता है।
एक वैज्ञानिक कहते हैं -"गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेंद्रियाँ हैं।"
कुल मिलाकर प्रकृति या जीवन में जो जो कुछ घटित हो रहा है | गणित के द्वारा उसका आगे से आगे पता लगा लिया जाता है | जिस गणित विज्ञान के द्वारा सूर्य चंद्र आदि ग्रहों से संबंधित घटनाओं के विषय में हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता रहा है|उसी गणितविज्ञान के द्वारा ग्रहों के परिवर्तनों से घटित होने वाली ऋतुओं ऋतुप्रभावों एवं महामारी भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात आदि घटनाओं के विषय में भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाता है|गणित के द्वारा ऐसा किया जाना संभव है|
इसीलिए विभिन्न आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी इस गणित विधा को वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए सहयोगी के रूप में स्वीकार किया है | प्राचीन समय की तरह ही अभी भी मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में गणित के द्वारा अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है | यही सोचकर ऐसी घटनाओं के विषय में गणित के आधार पर अनुसंधान पूर्वक मैं जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाता रहा हूँ| वे सही निकलते रहे हैं |आधुनिक विज्ञान की तरह ही ऐसे विषयों में अभी भी गंभीर अनुसंधानों की आवश्यकता है |प्राचीन विज्ञान भी गणित पर ही आधारित है |
मौसम एवं महामारियों को समझिए ग्रहगणितविज्ञान से
समय का स्वभाव और सामर्थ्य !
प्रकृति और जीवन में समय के अनुसार ही घटनाएँ घटित होती हैं | अच्छा समय होता है तो अच्छी घटनाएँ घटित होती हैं और बुरा समय होता है तो बुरी घटनाएँ घटित होती हैं | समय निरंतर चलता रहता है| उसी क्रम में कभी अच्छा तो कभी बुरा समय आता जाता रहता है |उसी के अनुसार प्रकृति और जीवन में घटनाएँ घटित होती रहती हैं | भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाएँ समय के अनुसार ही घटित होती हैं | समय संचार की प्रक्रिया को समझे बिना ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं है |समय को समझना आवश्यक है |
समय की शक्ति - समय किसी के आधीन नहीं है कि वो जब जैसा चाहे वैसा समय चला ले ! इसीलिए बड़े बड़े पराक्रमी लोग इस पृथ्वी पर हुए किंतु समय के साथ उन्हें भी समाप्त होना पड़ा है | यहाँ तक कि ईश्वर का अवतरित होना या परमधाम गमन भी समय के ही आधीन है |
जिस समय के अनुसार ईश्वर को भी चलना पड़ता है | वह समय स्वयं में सर्वतंत्र स्वतंत्र है | इसीलिए कहा गया है -" कालः साक्षादीश्वरः" अर्थात समय साक्षाद ईश्वर है | वह असीम शक्ति से संपन्न एवं सर्वसक्षम है |
समय अपरिवर्तनीय है - समय के संचार क्रम को बदला नहीं जा सकता है | समय के स्वभाव को बदला नहीं जा सकता | समय अनंत काल से स्वनिर्धारित गति क्रम के अनुसार बढ़ता चला जा रहा है | समय स्वतंत्र तो है किंतु वो इतना भी स्वतंत्र नहीं है कि कभी भी कैसा भी परिवर्तित होकर चलने लगे | वो स्वनिर्धारित नियमों से इतनी दृढ़ता से निबद्ध है कि उसीप्रकार चलेगा जैसा हमेंशा से चलता आ रहा है |
संसार एवं अपने जीवन को समझने के लिए तथा प्रकृति तथा अपने जीवन में घटित होने वाली घटनाओं को समझने के लिए एवं सही अनुमान पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रत्येकव्यक्ति को समय की जानकारी हमेंशा रखनी चाहिए |समय कभी किसी के अनुसार चलता है | प्रत्युत समय के अनुसार ही सभी को चलना पड़ता है |
समय के अनुसार चलने के लिए ये पता होना आवश्यक है कि कब कैसा समय चल रहा
है तथा किसके जीवन में कब कैसा समय चल रहा है | ये पता लगे बिना न तो
प्राकृतिक आपदाओं और न ही महामारियों के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान
आदि लगाना संभव हो सकता है |
हमें इस सच्चाई को समझना होगा कि घटनाएँ उपग्रहों रडारों के आधीन न होकर प्रत्युत समय के आधीन होती हैं | इसलिए उनके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए समय को ही आधार बनाकर मौसम एवं महामारियों के विषय में अनुसंधान करने होंगे | इस वास्तविकता को जितनी जल्दी समझ लिया जाएगा ,उतनी जल्दी प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से संबंधित रहस्य सुलझने लग जाएँगे | इस क्षेत्र में बीते डेढ़ सौ वर्षों में जो नहीं किया जा सका वो दस वर्षों में होने लगेगा | ऐसा मेरा विश्वास है |
यंत्रविज्ञान और समय का अनुसंधान
वर्तमानसमय में इतने बड़े बड़े विकसित यंत्रों को देखकर ऐसा लगना स्वाभाविक
ही है कि प्राचीनकाल में जब ऐसे यंत्र नहीं थे| उससमय विज्ञान का आस्तित्व
ही नहीं होगा| इसलिए प्राचीनकाल के लोगों के जीवन और जीवनशैली के विषय में
कितनी ऊटपटाँग कल्पनाएँ कर ली जाती हैं | उतने गिरे स्तर से सोचने का कारण
उस युग की वैज्ञानिकक्षमताओं के विषय में जानकारी का न होना होता है | उस
युग में यंत्र नहीं थे ये बात नहीं है उस युग में यंत्रों की आवश्यकता ही
नहीं थी | जिन यंत्रों की आवश्यकता होती थी वे बना लिए जाते थे | इस रहस्य
को न समझकर प्राचीन विज्ञान पर आधार विहीन शंकाएँ किया करते हैं | इसे
ऐसे समझिए -
जो लोग ऐसा कहते हैं कि समय को देखने के लिए अब तो घड़ी है | प्राचीन काल में क्या था ?उन्हें पता होना चाहिए कि उस युग में समय पता करने के लिए घड़ियों(उदकयंत्र) का प्रयोग किया जाता था | यद्यपि उस युग में समय देखने के लिए घड़ियों की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी | उस समय प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के समय को गणित के द्वारा पहले ही पता कर लिया जाता था | जिस समय वह घटना घटित होने लगती थी, तब उतना समय हुआ है ऐसा मान लिया जाता था | उस युग में प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का समय घड़ियों में नहीं देखना पड़ता था प्रत्युत घड़ियों के समय का मिलान प्राकृतिक घटनाओं से किया जाता था |विश्वास था कि घड़ियों का समय आगे पीछे हो भी सकता है किंतु प्राकृतिक घटनाएँ अपने समय पर ही घटित होती हैं | इसलिए उन्हें ही प्रमाण माना जाता था |
एक घडी 24 मिनट(60पल) की होती है |उदक यंत्र में समय का मान घड़ियों में पता लगता था | इसीलिए उस यंत्र का नाम घड़ी रखा गया था | उस युग में दिन की शुरुआत सूर्योदय से ही मानी जाती थी | सूर्योदय के बाद जितनी घड़ियाँ बीतती थीं | उतना समय हुआ है ऐसा माना माना जाता था |इसे ही इष्टकाल कहा जाता है | ज्योतिषी लोग कुंडली बनाते समय आज भी उसी इष्टकाल का प्रयोग करते हैं |
वर्तमान समय में जिसे कहा तो घड़ी कहा जाता है ,किंतु
वो समय की जानकारी घंटों के रूप में देती है | इसलिए उसे घंटा कहा जाना
चाहिए किंतु प्राचीनकाल से उसे घड़ी कहने का अभ्यास पड़ा हुआ है इसलिए उस
घंटे को अभी भी घड़ी ही कहा जाता है | प्राचीन भारत में समय देखने के लिए घड़ी पल का ही प्रचलन था | इस प्रकार से घड़ी शब्द और यंत्र की खोज प्राचीनभारत में ही की गई थी |
विशेष बात ये है कि समय प्रत्यक्ष तो दिखाई नहीं पड़ता है| इसीलिए सुदूर आकाश में जहाँ कोई दृश्य दिखाई नहीं पड़ते हैं|वहाँ समय के गतिशील होने का पता भी नहीं लगता है| प्रकृति और जीवन में होने वाले परिवर्तनों को देखकर ही समय के बीतने का अनुभव होता है | घड़ी यंत्रों से से ये पता लगना संभव नहीं है | कब अच्छा और कब बुरा समय चल रहा है|भविष्य में बुरे समय के प्रभाव से घटित होने वाली प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए ये पता करना होगा कि कब कैसा समय चलेगा !इस जानकारी को पाने के लिए प्राचीनकाल में 'कालज्ञानग्रहाधीनं' अर्थात समय का ज्ञान ग्रहों के आधार पर किया जाता था | सूर्य चंद्रादि ग्रहों के संचार के आधार पर न केवल समय के संचार के विषय में पता लगा लिया जाता था ! प्रत्युत अच्छे और बुरे समय के विषय में भी आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिया जाता था |
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