प्रथम : समय विज्ञान खंड 1 , book 18-11-20024 : मेलें और पूर्वानुमान 1. प्राकृतिक परिवर्तन 2. पशुपक्षियों में परिवर्तन

                                                        समय विज्ञान

                                   अपनीबात !
     मनुष्य प्राकृतिक आपदाओं से डरते हैं | इसलिए ऐसी घटनाएँ पैदा हों इसके लिए मनुष्य तो कभी प्रयास करेंगे नहीं | ऐसी स्थिति में इसप्रकार की घटनाओं के घटित होने का कारण क्या हो सकता है | इसके लिए इतनी भारी भरकम ऊर्जा कहाँ से मिलती है |ऐसी घटनाएँ किसके द्वारा पैदा होती हैं एवं किससे प्रेरित होकर  घटित होती हैं | ये अनुसंधान का विषय है पूर्वक खोजा जाना चाहिए |
       भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात चक्रवात या महामारी जैसी घटनाओं में चेतना तो होती नहीं है| इसलिए ये नहीं कहा जा सकता है कि ऐसे निर्णय उन घटनाओं के द्वारा स्वयं लिए जाते होंगे |ऐसी घटनाओं के घटित होने के पीछे कोई कोई न कोई शक्ति तो होगी ही जिसकी ऊर्जा से ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं| ऐसा अनुमान है कि वो शक्ति बिजली की ऊर्जा की तरह निर्जीव नहीं होगी,प्रत्युत वह चेतन तत्व होगा| ऐसा इसलिए कहा जा सकता है ,क्योंकि भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात चक्रवात या महामारी जैसी हिंसक घटनाएँ किसी क्षेत्र विशेष में घटित होकर सीमित संख्या में लोगों को पीड़ित करती हैं | हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसी घटनाओं का वेग प्रलयकाल की तरह इससे कई गुणा अधिक बढ़ भी सकता है |कल्पना कीजिए कि यदि ऐसी घटनाएँ अनियंत्रित होकर इससे कई गुणा अधिक भयानक रूप धारण कर लें और सृष्टि को ही समाप्त करने लगें तो बेचारा मनुष्य क्या कर लेगा |ऐसे संकट के समय में हमारा इतना उन्नत विज्ञान भी हमें कैसे सुरक्षित बचा पाएगा | 
      इसलिए हमें याद रखना चाहिए कि भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात चक्रवात या महामारी जैसी घटनाओं के घटित होने का जो शक्ति निर्णय लेती है या जो शक्ति ऊर्जा उपलब्ध करवाती है | वह शक्ति जड़ नहीं हो सकती !वह मनुष्य समाज को उसकी गलतियों का दंड भी उसी प्रकार से आत्मीयता पूर्वक देती है जैसे माता पिता अपनी संतानों से हुई गलतियों का दंड देते समय यह ध्यान रखते हैं कि इनके शरीरों में अधिक चोट न लग जाए|इसीलिए  बड़ी बड़ी प्राकृतिक आपदाएँ घटित होती हैं किंतु इस अतिविशाल सृष्टि की संख्या के अनुपात में बहुत कम लोगों को दंडित करके उन्हें ही सदाचरण के लिए प्रेरित किया जाता है | प्रकृति की सांकेतिक भाषा को समझने वाले लोग ऐसे संकेत पाते ही आत्मानुशासन का पालन करने लग जाते हैं | 
     कुलमिलाकर भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात चक्रवात या महामारी आदि प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण जिस शक्ति का संकल्प होता है जिसके द्वारा बनाई गई योजना होती है | उनमें जिस शक्ति की ऊर्जा लगी होती है उस शक्ति के स्वभाव को समझे बिना हम किस वैज्ञानिक पद्धति से उन प्राकृतिक घटनाओं को समझने एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने का सपना देख रहे हैं |उस शक्ति के स्वभाव को समझने के लिए यदि कोई विज्ञान ही नहीं है तो अनुसंधान कैसे हो सकते हैं |किसी व्यक्ति ने अपनी मुठ्ठी में कोई चिड़िया दबा रखी है | वो उसे जीवित छोड़ देगा या मार देगा ये तो वही जानता है | उसके स्वभाव को समझे बिना उसके मन की बात का कोई दूसरा व्यक्ति पूर्वानुमान कैसे लगा लेगा |  इसलिए प्राकृतिक घटनाओं के पैदा होने के कारण के स्वभाव को समझे बिना इनके विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है |
    जिसप्रकार से भूगर्भगत ऊर्जा निकलने को तथा भूमिगत प्लेटों का आपस में टकराने जैसी घटनाओं को भूकंप आने के लिए जिम्मेदार मान भले लिया जाए , किंतु  ये तब तक केवल कल्पना मात्र ही रहेगा,जबतक भूगर्भगत ऊर्जा निकलते समय भूकंप आते या फिर टैक्टॉनिक प्लेटों को आपस में टकराते समय भूकंप आते देखा न जाए  |
     इसमें विशेष बात यह है कि भूगर्भगत ऊर्जा निकलते या टैक्टॉनिक प्लेटों को आपस में टकराते और उसी समय भूकंप आते यदि न भी देखा जाए तथा इसके अतिरिक्त किसी अन्य घटना को भूकंप के आने का कारण मान लिया जाए तो भी ऐसी सभी कल्पनाओं की सच्चाई तभी प्रमाणित हो सकेगी जब इनके आधार पर भूकंपों के विषय में  लगाए हुए पूर्वानुमान सच निकलेंगे !अन्यथा कल्पनाएँ तो किसी भी घटना के विषय में कुछ भी की जा सकती हैं | वास्तविक वैज्ञानिक अनुसंधानों के अभाव में ऐसा भ्रम सभी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में होते देखा जाता है |जिनसे संबंधित अनुसंधानों के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं को समझना संभव नहीं हो पा रहा है | एक ओर भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात चक्रवात या महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाएँ अचानक घटित होती रहती हैं | उनसे जो जनधन हानि होनी होती है वो होती रहती है | दूसरी ओर अनुसंधान चला ही करते हैं |  
      विज्ञान के द्वारा  भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात चक्रवात या महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं को न तो जन्म देना संभव है और न ही इन्हें रोका जाना संभव है | इनके वेग को नियंत्रित किया जाना ही संभव नहीं है |इनके स्वभाव को समझना या इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना ही संभव है | उपग्रहों रडारों की मदद से बादलों आँधी तूफानों को कुछ पहले से देख भले लिया जाता हो किंतु वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा इनके स्वभाव को समझना अभी तक संभव नहीं हो पाया है |इनके विषय में निरंतर होते रहने वाले अनुसंधानों से आखिर हम खोजना क्या चाहते हैं और खोज क्या पा रहे हैं |ये निश्चित करके ही अपने अनुसंधानों को हमें आगे बढ़ाना होगा |
     वैश्विक दृष्टि से देखा जाए तो प्रायः सभी देशों में  प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुसंधान करने काम  बड़े जोर शोर से चलाया जा रहा है |ऐसे कार्यों के लिए अलग से मंत्रालय बना दिए गए हैं | उनके संचालन पर एवं उनसे संबंधित अनुसंधानों पर भारी भरकम धनराशि व्यय की जाती है |जो समाज के द्वारा टैक्स रूप में सरकारों को दिया गया धन होता है | उसके बदले ऐसे अनुसंधानों से समाज को ऐसी क्या मदद पहुँचाई जा पाती है | जो ऐसे अनुसंधानों के बिना संभव न थी | जिसे मदद समझकर मनुष्यों को वैज्ञानिक अनुसंधानों का ऋणी समझा जा रहा है|
    प्राकृतिक घटनाओं के विषय में देखा जाए तो ये कहीं भ्रम ही तो नहीं हैं ,क्योंकि अभी भी इन्हें समझना संभव नहीं हो पा रहा है | वैज्ञानिकअनुसंधानों के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के स्वभाव को समझने में हम कितने सफल हुए हैं |  

 

                                                  परोक्षशक्ति की खोज !
      हमलोगों के मन में ऐसा विश्वास सा बन गया है कि संसार में जो भी घटना होती है वो मनुष्यकृत प्रयत्नों का ही परिणाम हो सकती है| इसीलिए मौसमसंबंधी  प्राकृतिक आपदाओं को घटित होने के लिए जलवायुपरिवर्तन को और जलवायुपरिवर्तन होने के लिए मनुष्यकृत कार्यों को जिम्मेदार  मान लिया जाता है | ऐसे ही  वायुप्रदूषण  बढ़ने के लिए मनुष्यकृत कार्यों को जिम्मेदार मान लिया जाता है |कोरोना महामारी के पैदा होने के लिए किसी देश विशेष को जिम्मेदार मान लिया गया | ऐसी मान्यताओं के पीछे तर्कसंगत कोई वैज्ञानिक आधार होना चाहिए | जो नहीं हैं | 
    प्रकृति से जीवन तक घटित होने वाली घटनाओं का कारण  प्रत्यक्ष दिखाई न पड़ने वाली किसी महाशक्ति की कार्य योजना है|जो संपूर्ण संसार को संचालित कर रही है | मनुष्य जो काम करता है |उसे होना है या नहीं होना है या वो उससे भी अधिक बिगड़ जाना है | इसका निर्णय वो महाशक्ति करती है| कोरोना जैसी महामारियों के गंभीर प्रकोप के समय भी किसे स्वस्थ रहना है और किसे संक्रमित होना है तथा उनमें से किसकी मृत्यु होनी है | यह निर्णय भी उसी महाशक्ति के द्वारा उन लोगों के जन्म के समय ही ले लिया गया होता है |उसी के अनुसार घटनाएँ घटित होती हैं | ऐसे ही किसी दुर्घटना से प्रभावित  लोगों में से किसे खरोंच भी नहीं लगनी है और किसे घायल होना है| किसे घायल होने के बाद स्वस्थ हो जाना है और किसकी मृत्यु होनी है| ऐसी सभी संभावित परिस्थितियों के विषय में निर्णय उस महाशक्ति का ही चलता है |यहाँ तक कि दुर्घटना से प्रभावित घायलों में से चिकित्सा के प्रभाव से किसे स्वस्थ होना है और किसे नहीं होना है | यह निर्णय भी उस महाशक्ति का ही होता है |  
     इसप्रकार की दुविधा इसलिए होनी स्वाभाविक है क्योंकि सुदूर जंगलों में जहाँ चिकित्सा की पहुँच नहीं है | वहाँ के पशुओं या मनुष्यों को भी चोटें लगती होंगी | वे भी घायल होते होंगे |उनमें से बहुतों के घाव भरकर वे स्वस्थ भी हो जाते होंगे | उनके स्वस्थ होने में यदि चिकित्सा की कोई भूमिका नहीं है तो उनके स्वस्थ होने का कारण उस महाशक्ति की कार्य योजना के | बिना चिकित्सा के भी  धीरे धीरे उनके भी घाव भरकर वे स्वस्थ हो जाते होंगे| उस महाशक्ति की कार्य योजना के अतिरिक्त दूसरा और क्या हो सकता है | यह अनुसंधान का विषय है | 
     दूसरी बात महानगरों में रहने वाले बड़े बड़े साधन संपन्न लोग भी किसी दुर्घटना की चपेट में आने से घायल हो जाते हैं| उन्हें बड़े बड़े अस्पतालों में अच्छी से अच्छी चिकित्सा सुविधा मिल जाती है | इसके बाद भी उनमें से बहुत लोग ऐसे भी होते हैं चिकित्सा का लाभ लेकर भी  जिनके घाव नहीं भरते हैं | उनमें से कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनकी मृत्यु भी हो जाती है |उनपर चिकित्सा का प्रभाव जिस प्रकार का दिखाई पड़ना चाहिए वो नहीं दिखाई पड़ता है |
      ऐसे  प्रकरणों को देखकर ऐसी आशंका होनी स्वाभाविक ही है कि महाशक्ति की कार्य योजना के अनुसार अनुसार जिन्हें स्वस्थ होना होता है वे ही चिकित्सा के द्वारा स्वस्थ होते हैं और वे ही बिना चिकित्सा के भी स्वस्थ होते हैं | जिन्हें स्वस्थ नहीं होना होता है वे बिना चिकित्सा के तो अस्वस्थ रहते ही हैं ,चिकित्सा का लाभ मिलने पर भी अस्वस्थ रहते देखे जाते हैं |
    इसमें विशेष बिचार करने या अनुसंधान करने योग्य बात यह है कि चिकित्सा के द्वारा क्या केवल वही स्वस्थ होते हैं | जिन्हें महाशक्ति की कार्य योजना के अनुसार स्वस्थ होना होता है या चिकित्सा के द्वारा उस महाशक्ति की कार्य योजना को परिवर्तित किया जा सकता है | इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए अनुसंधान की आवश्यकता है |
      इसीप्रकार से मृत्यु के विषय में भी चिंतन किया जा सकता है | एक वर्ग ऐसा भी सोचता है कि प्राचीनकाल में रोगी होने के बाद काफी लोगों की मृत्यु चिकित्सा के अभाव में जाया करती होगी | 
   ऐसे ही जंगलों में जहाँ चिकित्सा की व्यवस्था बिल्कुल नहीं होती है | वहाँ रोगी होने के बाद बहुत लोग चिकित्सा के अभाव में मृत्यु को प्राप्त हो जाते होंगे | 
    चिकित्सा के अभाव में लोगों की मृत्यु हो सकती है |यदि इस बात पर विश्वास किया जाए तो विश्वास  इस बात पर भी करना होगा कि चिकित्सा मृत्यु को टालने में सक्षम है | यदि इन दोनों बातों पर विश्वास किया जाए तो अनुसंधान पूर्वक इस प्रश्न का उत्तर खोजना होगा कि चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न सुयोग्यचिकित्सकों या धनवान लोगों की मृत्यु होने का कारण क्या है | उन्हें तो चिकित्सा संबंधी सभी सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं | उनकी मृत्यु होने का कारण क्या है | सघन चिकित्सा कक्ष में  वेंटीलेटरों पर पड़े पड़े बहुत लोगों की मृत्यु होते देखी जाती है |
    ऐसी परिस्थिति में किसी रोगी पर चिकित्सा का प्रभाव कितना पड़ता है|चिकित्सा किसी रोगी को स्वस्थ करने में सक्षम है या नहीं | जिन गंभीर रोगियों को चिकित्सा का लाभ नहीं मिल पाता फिर भी यदि वे रोगों से मुक्ति पाने में सफल हो जाते हैं , तो उनके स्वस्थ होने का कारण उस महाशक्ति की कार्य योजना के अतिरिक्त और क्या क्या हो सकता है |उसे अनुसंधान पूर्वक खोजा जाना चाहिए |
     किसी रोगी की चिकित्सा हो या ऑपरेशन करने पर भी उस रोगी को स्वस्थ होना है या अस्वस्थ रहना है या उस रोगी की मृत्यु होनी है | इसका निर्णय करने की क्षमता यदि चिकित्सा विज्ञान के पास होती तो चिकित्सालयों में शवगृह न बनवाने पड़ते एवं किसी रोगी का ऑप्रेशन करते समय उसके परिजनों से किसी अनहोनी के विषय में लिखवाकर न रखना पड़ता | ऐसी स्थिति में चिकित्सा का लाभ लेने के बाद भी रोगी को स्वस्थ होना है या अस्वस्थ रहना है या उस रोगी की मृत्यु होनी है |इसके निर्णय का आधार उस महाशक्ति की कार्य योजना नहीं तो दूसरा और क्या हो सकता है | 
                                                   समय ही है वह महाशक्ति !
 
      समय को प्राचीनकाल से ही भाग्य भगवान् काल आदि के नामों से जाना जाता रहा है|समय की शक्ति को ही महाशक्ति के स्वरूप में स्वीकार किया जाता रहा है |इसीलिए होनी अर्थात भवितव्यता को टालना भगवान् की कृपा के बिना असंभव होता है | यही कारण है कि बड़े बड़े संकटों से प्राकृतिक आपदाओं से महामारियों से मुक्ति पाने के लिए भगवान् का स्मरण किया जाता है |अनादिकाल से  लोगों का ऐसा विश्वास चला आ रहा है कि  प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली सारी अच्छी या बुरी घटनाएँ समय के प्रभाव से ही घटित होती हैं | 
     इसीलिए  जिन घटनाओं से हमें दुःख मिलता है| उसका उलाहना(शिकायत) केवल उन्हें ही दिया जा सकता है | जिन्होंने उसे बनाया है | वे ही दया करके संकट कम कर सकते हैं |ऐसे ही हमारी जो इच्छाएँ प्रयत्न करने पर भी पूरी नहीं हो रही हैं | उसका कारण भी समय ही है | अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए हमें भगवान् की आराधना करनी होती है | अनादिकाल से लोग इसी भावना से ईश्वर आराधन करते आ रहे हैं |
     इसीभावना से समय की शक्ति का अनुभव करते हुए मैंने भी अनुसंधान पूर्वक अपने जीवन के कुछ दशक लगाए हैं |समय की साधना करते हुए मुझे भी कुछ वैसे ही अनुभव हुए हैं !जो परंपरा पूर्वक प्राचीन काल से चले आ रहे हैं |इसीलिए  प्रकृति और जीवन से संबंधित अनुसंधानों में मिले अनुभवों के आधार पर मैंने भी समय को ही आधार बनाकर प्रकृति और जीवन के रहस्यों को समझने का प्रयत्न किया है | 
       मनुष्य को किसी का जिस प्रकार के काम में जो नुक्सान हुआ होता है | उस नुक्सान के लिए उस कार्य को, उस व्यक्ति को या उसके द्वारा लिए गए निर्णयों आदि को जिम्मेदार मान लिया जाता है| इसमें विशेष बात यह है कि उसी व्यक्ति ने अतीत में भी कुछ वैसे ही बड़े निर्णय लिए होते हैं |जिनमें उसे बहुत लाभ हो चुका होता है | यदि उसमें अनुभव की कमी होती या निर्णय लेने की क्षमता का अभाव होता तो उस समय भी सफल न हुआ होता !उस समय की अपेक्षा अब तो अनुभव अधिक है,धन अधिक है ,सहयोगी अधिक हैं,संपर्क अधिक हैं | इसलिए व्यवहारिक दृष्टि से पहले की अपेक्षा अब अधिक सफल होना चाहिए ,किंतु अब असफल होने का कारण उनका वह समय है जिसमें सफलता नहीं मिलनी होती है |वह समय दिखाई नहीं पड़ रहा होता है | इसलिए उन बातों को जिम्मेदार मान लिया जाता है | जो दिखाई पड़ रही होती हैं | 
    कुछ लड़के लड़की एक दूसरे के जिन गुणों सुंदरता आदि से एक दूसरे पर प्रभावित होकर आपस में प्रेम करते हैं,फिर विवाह करते हैं | कुछ समय बाद आपस में तनाव शुरू होता है !धीरे धीरे संबंध बिगड़ते जाते हैं और तलाक हो जाता है| इस प्रकरण में यदि बिचार किया जाए तो ऐसे लड़के लड़की जिन गुणों सुंदरता आदि से प्रभावित होकर एक दूसरे से जुड़े थे | प्रेम पूर्वक विवाह करके पति पत्नी बने थे|वो सब कुछ वैसा ही रहने पर भी आपस में एक दूसरे से तनाव शुरू होकर तलाक होने का कारण यदि उन दोनों का अच्छा बुरा समय नहीं तो दूसरा और क्या हो  सकता है |योग्यता सुंदरता आदि तो पहले वाली ही रही केवल समय बदलने मात्र से इतना बड़ा बदलाव हो गया | जिस समय के प्रभाव से उन दोनों ने एक दूसरे के साथ विवाह किया था | उस समय के बदलते ही उनका तलाक हो जाता है |ऐसी स्थिति किसी के एक दूसरे से मिलने एवं अलग होने का कारण समय ही होता है |
     समय प्रकृति और जीवन दोनों को ही अपने अनुसार प्रभावित किया करती है | उसके द्वारा जो कार्य योजना बनाई जाती है | प्रकृति और जीवन दोनों को ही उसी योजना के अनुसार चलना पड़ता है |उसके द्वारा जिस विषय में जो निर्णय जैसा लिया जाता है |वो वैसा ही पालन करना पड़ता है |उसे बदलना मनुष्यों के वश की बात नहीं है |
    मेरे अनुभव में ऐसा आया है कि प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली सभी घटनाएँ अपने अपने समय पर घटित हो रही होती हैं| उनके लिए किसी प्रयत्न की आवश्यकता नहीं होती है | इसलिए उन्हें प्राकृतिक घटनाओं के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है | 
    प्रकृति और जीवन में प्रतिपल अच्छी बुरी असंख्य घटनाएँ घटित होती रहती हैं | किसी की मृत्यु जैसी घटना भी उन्हीं में से एक होती है |कुछ लोग किसी  रोग या दुर्घटना से पीड़ित होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं| उनकी मृत्यु के लिए उन दुर्घटनाओं को ही जिम्मेदार इसलिए मान लिया जाता है | 
    वस्तुतः जिस समय किसी की मृत्यु हो रही होती है|उसीसमय में उसीस्थान पर कुछ अन्य अच्छी बुरी घटनाएँ भी घटित हो रही होती हैं |उनमें से जो बुरी घटनाएँ घटित होती हैं| उन्हें उस मृत्यु के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है | इसमें विशेष ध्यान देने वाली बात ये होती है कि जिस घटना में जिसकी मृत्यु हुई होती है | उसी घटना में  कुछ और लोग भी उसी प्रकार से पीड़ित हुए होते हैं | जिनमें से  कुछ लोग घायल हुए होते हैं जबकि कुछ लोगों को खरोंच भी नहीं लगी होती है| मृत्यु का कारण यदि वह दुर्घटना होती तब तो उससे पीड़ित सभी लोगों पर उसका प्रभाव लगभग एक जैसा पड़ा होता,लेकिन ऐसा न होने का कारण अनुसंधान पूर्वक खोजा जाना चाहिए |हमारे अनुभव के अनुसार इसका कारण उन सबका अपना अपना समय होता है |
    जिस समय के कारण किसी की मृत्यु हो रही होती है |वो समय दिखाई नहीं पड़ता और वे दुर्घटनाएँ दिखाई पड़ रही होती हैं |इसलिए उस मृत्यु का कारण उन दुर्घटनाओं को ही मान लिया जाता है | 
    ऐसे ही जिस समय के कारण किसी को चोट लगती है !वह समय दिखाई नहीं पड़ता है चोट दिखाई पड़ती है |विशेष बात यह है कि कुछ लोग किसी  को चोट पहुँचाने या जान से मार देने के लिए उस पर प्रहार करते हैं,किंतु वह प्रहार का निशाना चूक जाता है और जिस पर प्रहार किया गया होता है वो सुरक्षित बच जाता है |इसका कारण उसका अपना अच्छा समय होता है | जो उसे सुरक्षित बचा देता है | 
     इसीप्रकार से  जिस समय के कारण लोग रोगी हो रहे होते  हैं| वह समय न दिखाई पड़ने के कारण लोग उनके रोगी होने के लिए उन्होंने  जो जो कुछ खाया पिया होता है, या जैसे वातावरण में रहा गया होता है ,अथवा जिसको छुआ गया होता है| रोगी होने का कारण उन्हें मान लिया जाता है | अनुसंधान की दृष्टि से देखा जाए तो उन खाद्य वस्तुओं के खाने पीने में तथा उसप्रकार के वातावरण में रहने में,कुछ उस प्रकार के लोगों को छूने में कुछ दूसरे लोग भी तो सम्मिलित रहे होंगे | यदि वे भी उस प्रकार के रोगों से ग्रसित हुए तब तो वही कारण हैं जो माने जा रहे हैं किंतु यदि कोई अकेला ही अस्वस्थ हुआ है तो उसका कारण उसका अपना समय होता है |
     विशेष बात यह है कि इस विषय में हमें अनुसंधान संबंधी जो अनुभव मिले हैं | उनके आधार पर मुझे लगता है कि प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु होने का कारण उसका अपना समय होता है |जो उस महाशक्ति की कार्ययोजना के अनुसार निर्द्धारित होता है | किसी की मृत्यु का समय समीप आने पर वो दिखाई नहीं पड़ता है,किंतु उसके प्रभाव से घटित होने वाली दुर्घटनाएँ दिखाई पड़ रही होती हैं | इसलिए उस मृत्यु के समय पर उसी स्थान पर घटित हुई दुर्घटनाओं को ही उसकी मृत्यु का कारण मान लिया जाता है | इससे वे दुर्घटनाएँ ही उस मृत्यु का बहाना बन जाती हैं | वस्तुतः समय दिखाई नहीं पड़ता है और दुर्घटनाएँ दिखाई दे जाती हैं | इसलिए ,जबकि उसी शक्ति  के आधीन वे दुर्घटनाएँ स्वयं में पराधीन होती हैं |वे भी किसी की मृत्यु के समय या स्थान पर घटित हो रही होती हैं तो वे भी उसी महाशक्ति की कार्य योजना के अनुसार ही घटित हो रही हैं | प्रत्येक जीव या वस्तु के जीवन में यह घटना घटित होती ही है| इसे मनुष्यकृत किसी उपाय से टाला नहीं जा सकता है| 
   कुलमिलाकर जिस प्रकार से सभी प्रकार की प्रकृति और जीवन से संबंधित घटनाओं  घटित होने का कारण समय होता है | उसी समय के प्रभाव से भूकंप वर्षा आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुआ करती हैं | महामारी जैसी घटनाओं के पैदा एवं समाप्त होने तथा उसकी लहरों के आने और जाने का कारण भी समय ही है | उसी समय के आधार पर महामारी की लहरों के आने और जाने के विषय में मैंने जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए हैं वे सच निकलते रहे हैं |

                                 प्रयत्न और परिणामों  में समानता का अभाव ! 
     
     किसी एक व्यक्ति के द्वारा एक समय पर एक जैसे प्रयास से अनेकों कर्म किए जाते हैं | कर्म का फल यदि कर्म के अनुरूप मिलता होता, तब तो सफलता या असफलता उन सभी कार्यों में एक जैसी सफलता मिल जानी चाहिए थी ,किंतु ऐसा होता नहीं है| किए गए कार्यों में से कुछ कार्य सफल हो जाते हैं तो कुछ असफल बने रहते हैं,जबकि कुछ कार्य बिगड़ जाते हैं |
    इनमें से जो कार्य सफल हो गए उन्हें यदि उस व्यक्ति के प्रयत्न का परिणाम मान भी लिया जाए,तो जो कार्य असफल हुए वे तो किसी प्रयत्न के परिणाम नहीं हैं ,क्योंकि प्रयत्न तो सफलता के लिए किए गए असफलता के लिए तो प्रयास ही नहीं किए गए फिर असफलता मिलने का कारण क्या है | वह असफलता किसके किन प्रयत्नों के परिणाम स्वरूप मिली है| वह खोजा जाना चाहिए | 
     इसीप्रकार से उन सफल और असफल हुए कार्यों के साथ ही कुछ अन्य कार्यों की सफलता के लिए भी जो प्रयत्न उन्हीं प्रयत्नों के साथ किए गए थे |वे कार्य सफल तो हुए ही नहीं प्रत्युत बिगड़ गए |इनमें प्रयास तो सफलता के लिए किए गए थे फिर उन कार्यों के बिगड़ने का कारण क्या रहा ! उन कार्यों के बिगड़ने के लिए तो किसी ने प्रयास नहीं किए थे | फिर उन कार्यों के बिगड़ने में जो  ऊर्जा लगी वो कहाँ से मिली | इसे अनुसंधान पूर्वक खोजा जाना चाहिए |   
      विशेष बात यह है कि एक व्यक्ति के द्वारा किए गए एक प्रकार के प्रयत्न से एक ही प्रकार का परिणाम प्राप्त होता तब तो उस परिणाम का जन्मदाता वह व्यक्ति माना जा सकता था | एक ही साथ किए गए कार्यों के दो या दो से अधिक प्रकार के परिणाम प्राप्त होने से यह स्पष्ट हो जाता है कि ये उस व्यक्ति के द्वारा किए गए प्रयत्न का परिणाम तो नहीं ही है | उसके अतिरिक्त कुछ और ही हो सकता है |वह और क्या हो सकता है उसे अनुसंधान पूर्वक खोजा जाना चाहिए | उसी के अनुसार कर्मफल प्राप्त होता है | 
    वस्तुतः कार्यों का होना या न होना या कार्यों का बिगड़ जाना किसी मनुष्य के वश में नहीं होता है | जो व्यक्ति जिस कार्य के लिए प्रयत्न करता है | वो चाहता ही है कि वो कार्य सफल हो|अपने किए हुए प्रयत्न को असफल होते या उस कार्य को बिगड़ते कोई नहीं देखना चाहेगा| इसलिए उसकार्य के असफल होने या बिगड़ जाने में उस मनुष्य का कोई योगदान नहीं है | 
      इसी प्रकार से कोई कार्य स्वयं न तो सफल हो सकता है और न ही असफल हो सकता है और न ही बिगड़ सकता है | उसकी इन तीनों अवस्थाओं का कारण क्या है |
   कुछ सामान्य रोगी चिकित्सालयों में एडमिट हो जाते हैं|सुयोग्य चिकित्सकों के द्वारा अत्यंत उत्तम चिकित्सा करते रहने के बाद भी रोग दिनों दिन बढ़ते बढ़ते हालत बिगड़ते चली जाती है | 
   प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने की न तो कोई प्रक्रिया दिखाई पड़ती है और न ही कोई कर्ता !उसमें तो केवल घटनाएँ ही घटित होते दिखाई पड़तीहैं |ऐसी घटनाओं के लिए कोई प्रयत्न करना भी चाहे तो क्या करेगा !भूकंप आँधी तूफान जैसी प्राकृतिक घटनाओं को मनुष्यकृत प्रयत्नों के द्वारा कैसे  तैयार किया जा सकता है | 
     जिन  घटनाओं को मनुष्यों के द्वारा तैयार ही नहीं किया जा सकता है,फिर भी उन घटनाओं को घटित होते  देखा जाता है |उनका कर्ता भी प्रत्यक्ष या परोक्ष कोई तो होगा ही | ऐसे कर्ता को अनुसंधान पूर्वक खोजा जाना चाहिए | 
     बीते तीन दशकों के अनुसंधानों से मुझे जो अनुभव मिले हैं| उनके आधार पर मुझे विश्वास हो रहा है कि प्रकृति से जीवन तक जितनी भी घटनाएँ घटित होते देखी जा रही हैं | उनका कारण कोई ऐसी महाशक्ति है जो समस्त संसार को संचालित कर रही है | प्रकृति से लेकर जीवन तक की संपूर्ण घटनाएँ उसी की योजना के अनुसार घटित हो रही हैं | यदि ऐसा न होता तब तो जो व्यक्ति जिस काम को जैसा करता उस काम को वैसा हो जाना चाहिए था| ऐसे ही कोई चिकित्सक जिस मनुष्य की चिकित्सा करता उसे स्वस्थ हो जाना चाहिए था किंतु चिकित्सा करके प्रत्येक रोगी को स्वस्थ किया जाना संभव नहीं हो पाता है| यदि ऐसा हो जाता तब तो ऐसे कार्यों का कर्ता मनुष्यों को मान लिया जाता !ऐसा न होने के कारण किसी कार्य को करने के लिए मनुष्य को केवल प्रयत्नकर्ता माना जा सकता है कार्य का कर्ता नहीं |
   कोई कार्य यदि मनुष्य के करने से हो सकता है तब तो जो जो काम मनुष्य करते जाते ,उन उन कार्यों को पूरा होते जाना चाहिए था,किंतु ऐसा होता नहीं है |कई बार प्रयत्नों के विपरीत भी परिणाम घटित होते देखे जाते हैं | मनुष्य के द्वारा प्रयत्न तो कार्य करने के लिए किए गए यदि वे बिगड़ गए इसके लिए मनुष्य इसलिए  जिम्मेदार नहीं है,क्योंकि मनुष्य के द्वारा कार्य बनाने के लिए प्रयत्न किए गए थे |ऐसी स्थिति में मनुष्य के प्रयत्न के परिणाम स्वरूप या तो कार्य बन जाता या फिर जैसा था वैसा ही बना रहता| कार्य यदि बिगड़ गया तो कार्य का बिगड़ना  मनुष्यकृत प्रयत्न का परिणाम नहीं था ,क्योंकि उस कार्य के बिगड़ने में जो शक्ति लगी वो किसकी थी ! अनुसंधान पूर्वक उसे खोजना होगा |  
                                            प्राकृतिक और मनुष्यकृत घटनाओं में अंतर !  
    
     जिन कार्यों के लिए हमें विश्वास हो कि हम जैसा करेंगे वैसा हो भी जाएगा |हमारे अतिरिक्त यदि कोई दूसरा भी उसी प्रकार से करेगा तो भी हो जाएगा| ऐसे कार्य मनुष्यकृत होते हैं | जिन कार्यों के लिए 
प्रयत्नकर्ता के द्वारा प्रयास तो किया जा रहा हो किंतु उसके परिणाम पर प्रयत्नकर्ता को भरोस न हो | उसके मन में संशय हो कि जैसा करने के लिए मैंने प्रयत्न किया है वैसा होगा या नहीं होगा |यदि नहीं होगा तो दुबारा हम वैसा कर ही लेंगे जैसा हम चाहते हैं | किसी को यदि अपने प्रयत्न पर इतना बड़ा भरोसा हो और सच्चाई भी यही हो तो ऐसे कार्यों को मनुष्यकृत माना जा सकता है |

     कुलमिलाकर जिस कार्य के लिए प्रयत्न करने वाले व्यक्ति का अधिकार यदि परिणाम पर हो  तब तो  प्रयत्न के अनुसार परिणाम आवे या न आवे या प्रयत्न के बिपरीत भी परिणाम घटित हो सकते हैं | ऐसा कुछ भी हो जिसे बदलकर अपने अनुसार कर लेना प्रयत्न कर्ता के बश में हो तब तो ऐसे कार्यों को मनुष्यकृत माना जा सकता है अन्यथा नहीं !जिन कार्यों में प्रयास और परिणाम में एक रूपता नहीं होती है |ऐसी घटनाएँ मनुष्यकृत  न होकर प्रत्युत प्राकृतिक ही होती हैं | उनमें मनुष्यों का प्रयास अवश्य लगा होता है किंतु परिणाम पर उनका कोई अधिकार नहीं होता है | 
    कुछ चिकित्सक रोगियों को स्वस्थ करने के लिए उनका ऑपरेशन तो करते हैं, किंतु आपरेशन करने से पहले रोगी के परिजनों से लिखवा लेते हैं कि यदि रोगी स्वस्थ नहीं हुआ या उसकी मृत्यु हो गई तो वे जिम्मेदार नहीं होंगे | ऐसे प्रकरणों में चिकित्सक केवल प्रयत्न कर रहे होते हैं | उन प्रयत्नों के परिणाम पर उनका कोई अधिकार नहीं होता है | 
    इसके अतिरिक्त कभी कभी ऐसा होता है कि प्रकृति या जीवन में कुछ घटनाएँ अपने आपसे घटित होने जा रही होती हैं | उसी समय मनुष्यों के द्वारा कुछ उसीप्रकार के प्रयत्न किए जाने लगते हैं| इसके बाद जब उसप्रकार की घटनाएँ घटित हो जाती हैं तो उन्हें अपने प्रयत्नों का परिणाम मान लिया जाता है | ऐसी घटनाओं की वास्तविकता तब सामने आ पाती है जब प्रयत्न के अनुरूप परिणाम नहीं आते हैं | उस प्रकार की घटनाएँ नहीं घटित होती हैं | ऐसी घटनाएँ प्राकृतिक रूप से घटित हो रही होती हैं | जिन्हें भ्रमवश अपने प्रयत्नों का परिणाम मान लिया जाता है | 
      विशेष बात यह है कि संसार में बहुत सारी घटनाओं के घटित होने का कारण समय होता है !जब जिस घटना के घटित होने का समय आता है तब वो घटना घटित हो जाती है |उस समय उसे रोकना संभव नहीं होता है | महाभारत का युद्ध रोकने के लिए भगवान् श्रीकृष्ण ने प्रयत्न तो किया किंतु युद्ध को टाला नहीं जा सका | ऐसे ही सती जी को भगवान शिव जी ने बहुत समझाया किंतु सती जी नहीं मानीं ,इसी प्रकार से दशरथ जी ने कैकेयी को बहुत समझाया किंतु कैकेयी नहीं मानीं| मंदोदरी विभीषण माल्यवान आदि ने रावण को बहुत समझाया किंतु  रावण नहीं माना | समय की धारा के साथ जिस घटना को घटित होना होता है | वो  किसी के रोकने से रुकती नहीं है |प्रत्येक घटना अपने  अपने समय पर ही  घटित होती ही है | 
    इसीप्रकार से किसी का जन्म - मृत्यु, स्वस्थ -अस्वस्थ , सुख- दुःख, उन्नति- अवनति,लाभ-हानि एवं संबंधों के जुड़ने - टूटने जैसी घटनाएँ  मनुष्यजीवन पर केंद्रित अवश्य हैं,किंतु इनका घटित होना या न होना ये सब कुछ प्राकृतिक रूप से निश्चित होता है|ऐसी घटनाएँ अपने आपसे घटित होती हैं| इनके घटित होने का समय भी प्राकृतिक रूप से पूर्वनिर्धारित होता है | 
    जन्महोना ,स्वस्थरहना ,सुखीहोना,उन्नतिपाना,लाभ प्राप्तकरना एवं  संबंधों के जोड़ने की प्रक्रिया ये सब कुछ सभी को अच्छा लगता है|इसके लिए हर कोई हमेंशा प्रयत्न करता रहता है | इनमें से जब जिस घटना के घटित होने का समय आ जाता है, तब वो घटना घटित हो जाती है |चूँकि प्रयत्न निरंतर किए जाते हैं| इसलिए जब जो कार्य हो जाता है तब वो अपना किया हुआ ही लगता है |
    कोई नहीं चाहता है कि उसके यहाँ मृत्यु,अस्वस्थता,दुःख,अवनति,नुक्सान या संबंधों के टूटने जैसी दुःख देने वाली घटनाएँ घटित हों| इसलिए ऐसी घटनाओं के न घटित होने के लिए प्रत्येक मनुष्य हमेंशा प्रयत्न करते रहता है ,फिर भी ऐसी अप्रिय घटनाएँ भी प्रायः प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में घटित होते देखी जाती हैं| उनसे जो नुक्सान होना होता है वो हो ही जाता है|
    कुलमिलाकर मनुष्य जो चाहता है,उसके होने के लिए प्रयत्न करता है और जो नहीं चाहता है| उसके न होने के लिए प्रयत्न करता है |इसमें विशेष बात यह है कि मनुष्य जिसके होने के लिए प्रयत्न करता है |वो कभी होता है और कभी नहीं भी होता है | वो जब प्रयत्न करता है कभी तब होता है और कभी उसके आगे पीछे होता है| ऐसी कभी नहीं भी होता है| ऐसे भिन्न भिन्न प्रकार के परिणामों को देखकर लगता है कि किसी एक समय में किए गए एक प्रकार के प्रयत्न के अनेक प्रकार के परिणाम नहीं हो सकते हैं | भिन्न भिन्न प्रकार के परिणामों से यह सिद्ध होता है कि ये किसी के द्वारा किए गए किसी प्रयत्न का परिणाम नहीं हैं |प्रत्युत ये स्वतंत्र रूप से घटित हुई घटनाएँ हैं |
   किसी के प्रयत्न करने या न करने पर भी ऐसी अच्छी या बुरी सभीप्रकार की घटनाएँ अपने अपने समय पर घटित होती रहती हैं| इन्हें देखकर लगता है कि ऐसी सभीप्रकार की घटनाओं के घटित होने में प्रयत्नों की नहीं प्रत्युत समय की प्रधानता है,किंतु  हम मनुष्यों का स्वभाव है कि जिससे हम पराजित हो जाते हैं | उसे पहलवान समझ लेते हैं | ऐसे ही जिन घटनाओं को टालने के लिए हम  हर संभव प्रयत्न करके थक जाते हैं फिर भी टाल नहीं पाते हैं | केवल उन्हीं के घटित होने के लिए हम भाग्य समय किस्मत कुदरत आदि को जिम्मेदार मानते हैं | जो जैसा हम करना चाहते हैं |वो यदि वैसा हो जाता है तब तो उसका कर्ता हम स्वयं को ही मानते हैं| समयविज्ञान संबंधी अनुसंधान के आधार पर कहा जाए तो अच्छी बुरी सभी प्रकार की घटनाओं के घटित होने का कारण समय ही है |    
                                       घटनाएँ अपने आप से ही घटित होती हैं !

     मनुष्यकृत प्रयासों से प्राकृतिक घटनाओं को न तो बदला जा सकता है और न घटाया बढ़ाया जा सकता है | उससे होने वाली जनधन हानि को प्रयत्न पूर्वक घटाया जा सकता है |जो जनधन हानि प्राकृतिक रूप से सुनिश्चित होती है वो होती ही है | कितने भी प्रयास करके उसे घटाना संभव नहीं होता है | 
     भूकंप आने से कोई भवन गिर जाता है| उस भवन के पास से निकल रहा राहगीर उसमें दबकर मृत्यु को प्राप्त हो  जाता है | समय विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए इसमें चार घटनाएँ घटित हुई हैं | राहगीर उस समय निकला जब भूकंप आने वाला था | राहगीर वहीं से निकला जहाँ भूकंप आने वाला था | राहगीर उसी मकान के पास पहुँचा जो गिरने वाला था | राहगीर जब मकान के मलबे के नीचे दबा था |उसीसमय उसकी आयु पूरी हुई | आयु पूरी होने के कारण  उसकी मृत्यु हुई | 
    समय के रहस्य को न समझने वाले लोगों को अज्ञानवश ऐसा लगता है कि भूकंप के आने से उसकी मृत्यु हुई है | इसी घटना को समय की दृष्टि से देखा जाए तो इस दिन भूकंप आना है | ये अनादि काल से निश्चित है| इसदिन उस भवन को गिरना है ये उस समय निश्चित हो गया था जिस समय भवन का शिलान्यास हुआ था | उस मनुष्य की उस दिन वहाँ मृत्यु होनी है ये उससमय  निश्चित हुआ था जिस समय उसका जन्म हुआ था | 
   विशेष बिचार किया जाए तो ये सभी घटनाएँ अपने अपने समय से घटित हुई हैं किंतु एक स्थान पर एक ही समय पर सभी घटनाओं के घटित होने के कारण ये भ्रम हुआ कि वह घर भूकंप आने से गिरा है और उस राहगीर की मृत्यु मकान के मलबे में दबकर हुई है |इसी मकान के साथ और भी मकान खड़े थे वे नहीं गिरे यही मकान क्यों गिरा !ऐसे ही मकान के मलबे में कई लोग दबे थे किंतु मृत्यु केवल राहगीर की ही क्यों हुई | समयविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो भूकंप अपने समय से आया ! मकान अपने समय से गिरा और राहगीर की मृत्यु उसके अपने समय से हुई | ये सभी समय प्रेरित घटनाएँ प्राकृतिक रूप से घटित हुई हैं | ऐसी घटनाओं को टालने का प्रयास भले कर लिया जाए किंतु  इन्हें घटित होने से रोका नहीं जा सकता है | 

    जिसप्रकार  कपास के धागों से वस्त्र बुने होते हैं | उसी प्रकार से समय के धागों से प्रकृति और जीवन को मिलाकर विभिन्न प्रकार की घटनाएँ बुनी हुई हैं|ऐसी घटनाओं का अपना अपना समूह होता है| अनुसंधान पूर्वक लक्षणों के आधार पर वे समूह पहचानने होते हैं कि किस घटना के साथ कितनी घटनाओं का समूह है |किस समूह में कितनी प्राकृतिक घटनाएँ होंगी और कितनी मनुष्यकृत होंगी | जिन्हें अपने अपने समय पर घटित  होते जाना होगा |
     प्रत्येक समूह की एक घटना के विषय में पता लग जाने पर उसी समूह की दूसरी घटना खोजी जाती है | दूसरी घटना की अच्छीप्रकार से पहचान कर लेने के बाद तीसरी घटना की पहचान शुरू की जाती है| उसका भी सही मिलान हो जाने के बाद उस समूह की बाक़ी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाकर उनके  घटित होने की भविष्यवाणी कर दी जाती है | जो प्रायः सच निकलती है |
   जिस प्रकार से भोर होने के क्रम में  मुर्गा बोलने लगना अँधेरा छटने लगना,पक्षियों का चहचहाने लगना,सूर्योदय होना एवं कमल खिलना  आदि घटनाएँ भोर होने की अग्रिम सूचना दे रही होती हैं | भोर होने का पूर्वानुमान लगाना हो तो मुर्गे की आवाज सुनकर लगता है कि ये भोर होने के संकेत हो सकते हैं | थोड़ी देर में अँधेरा छटने लगा तो भोर होने का दूसरा लक्षण मिल गया, कुछ देर बाद पक्षी चहचहाने लगे ,तो भोर होने का तीसरा लक्षण मिल गया | इन तीन लक्षणों के आधार पर सूर्योदय होने और कमल खिलने की भविष्यवाणी की जा सकती है |
     इसी प्रकार से भूकंप आँधीतूफान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात महामारी आदि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाते समय भी उन उन घटनाओं के समूह खोजकर उनके आधार पर प्राकृतिक घटनाओं  से संबंधित कुछ दूसरी  घटनाओं के मिलान करके उनसे संबंधित घटनाओं के विषय में लक्षणों के आधार पर पूर्वानुमान लगाने होते हैं |  
    पूर्वानुमान लगाने की दूसरी गणितागत प्रक्रिया भी होती है |जिसमें सूर्य चंद्र ग्रहणों की तरह ही गणित के आधार पर सूर्योदय होने के समय का भी पहले से पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |ये बिल्कुल ट्रेन परिचालन की तरह की प्रक्रिया है |कौन ट्रेन किस स्टेशन पर कितने बजे पहुँचेगी इसका पूर्वानुमान लगाने की दो विधाएँ हैं | एक तो दिल्ली से अलीगढ टूंडला होते हुए इटावा पहुँच चुकी ट्रेन को देखकर ये अनुमान लगाया जा सकता है कि ये ट्रेन कानपुर भी जाएगी और वहाँ इतने समय पर पहुँच सकती है |इसकी दूसरी विधि यह भी है कि ट्रेन की समय सारिणी खोज ली जाए उसके आधार पर तो काफी पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि कौन ट्रेन किस दिन कितने बजे किस स्टेशन पर पहुँचेगी | 
      इसी प्रकार से भूकंप आँधीतूफान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात महामारी आदि प्राकृतिक घटनाओं के विषय में दोनों प्रकार से पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए | हमारे द्वारा ऐसा करने पर ये पूर्वानुमान अधिक सही निकलते देखे जाते हैं | 

                  

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