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प्राकृतिक घटनाओं  के उतार चढ़ाव का कारण है समय 
     कोरोनामहामारी के समय भी ऐसा ही होते देखा गया था | कोरोनामहामारी से संक्रमितों की संख्या कुछ दिनों में बहुत अधिक बढ़ जाती थी और कभी बहुत कम हो जाती थी | ऐसा लगने लगता था कि कोरोना अब समाप्त हो गया | कुछ महीनों बाद संक्रमितों की संख्या फिर बढ़ने लग जाती थी | अचानक कुछ दिनों में विशेष बढ़ने घटने का  प्रत्यक्ष कारण खोजा नहीं जा सका है | 
     महामारीसंक्रमण बढ़ने के लिए कोविड  नियमों के न पालन को जिम्मेदार बताया जाता था,किंतु कोविड  नियमों का पालन तो महामारी आने के पहले भी नहीं किया जाता था | ऐसा भी नहीं है कि कोविड नियमों का पालन करके ही महामारी को समाप्त किया जा सका हो | उसके बाद कोविड नियमों का पालन लगातार किया जा रहा हो |इसलिए महामारी जनित संक्रमण उसके बाद न बढ़ पा रहा हो |  
   ऐसे ही हेमंत और शिशिरऋतु में कुछ क्षेत्रों में वायु प्रदूषण कुछ दिन अधिक बढ़ता है | इसके बाद कुछ दिन तक सामान्य रहता है | कुछ दिन फिर काफी अधिक बढ़ जाता है | उसके बाद  फिर सामान्य हो जाता है | इसके बार बार घटने बढ़ने का कारण क्या हो सकता है | 
     चीन या ईरान जैसे जिन देशों में दिवाली नहीं मनाई जाती है| उन देशों में भी उन्हीं दिनों में वायुप्रदूषण बढ़ता है | दिवाली के कुछ दिन होते हैं | वह वर्ष में एक बार आती है | पराली कुछ समय जलाई जाती है | वायुप्रदूषण तो उसके बाद भी बढ़ता है| जिससमय ऐसी घटनाएँ नहीं घटित होती हैं | इसलिए वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण यदि दिवाली या पराली होती तो उसके बाद वायु प्रदूषण नहीं बढ़ना चाहिए,किंतु उसके बाद भी बढ़ता है | बढ़ता तो अन्य ऋतुओं में भी है |उद्योग ,वाहन और निर्माण कार्य तो बारहों महीने चलते हैं |वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण यदि ये होते तो हर ऋतु में एक जैसा बढ़ा रहना चाहिए था | ईंटभट्ठे वर्षाऋतु को छोड़कर आठ महीने चलते हैं | वायु प्रदूषण  बढ़ने का कारण यदि उन्हें माना जाए तो सर्दी और गर्मी के पूरे समय में एक जैसा वायुप्रदूषण बढ़ा रहना चाहिए | वायु प्रदूषण के कुछ दिनों में अधिक बढ़ने और कुछ दिनों में सामान्य रहने का कारण क्या है |  कुछ दिनों में वायुप्रदूषण बहुत अधिक बढ़ा रहता है | कुछ दिन सामान्य रहता है | उसके बाद फिर बढ़ जाता है |सर्दी के अतिरिक्त कुछ अन्य ऋतुओं में भी इन्हीं कुछ दिनों में वायु प्रदूषण बढ़ जाता है | वो सर्दी की ऋतु के जितना भले न बढ़ता हो लेकिन उन कुछ दिनों में भी बढ़ तो अवश्य जाता है |विशेष बात यह है कि उन कुछ दिनों में बढ़ता है  तो  सभी जगह बढ़ता है | 
   शिशिर ग्रीष्म एवं वर्षा आदि ऋतुएँ सर्दी गर्मी एवं वर्षा होने के लिए जानी जाती है| इसमें विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि शिशिर आदि ऋतुओं में उनका प्रभाव एक जैसा नहीं दिखाई पड़ता है |ऋतुओं के प्रभाव का समय और स्तर घटता बढ़ता रहता है | 
    ऋतुओं के शुरू और समाप्त होने का समय निश्चित है | इसलिए ऋतुओं का प्रभाव भी ऋतुओं के के साथ ही शुरू और समाप्त हो जाना चाहिए,किंतु ऐसा कभी कभी ही होता है | कभी कभी ऋतुओं  का समय शुरू होने के पहले से ही ऋतुओं के समाप्त होने के बाद तक ऋतु प्रभाव चलते देखा जाता है | ऐसे ही कई बार ऋतुएँ शुरू होने के काफी बाद में ऋतुप्रभाव प्रारंभ होता है और ऋतुओं के समाप्त होने से पहले ही ऋतु  प्रभाव समाप्त हो जाता है | इस प्रकार से अपनी अपनी ऋतुओं में भी कभी कभी निर्धारित समय से कम या अधिक समय तक सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का प्रभाव रहते देखा जाता है |
     कई बार ऋतुओं के लिए निर्धारित समय में ही ऋतुओं का प्रभाव काफी अधिक बढ़  या घट जाता है | कभी सर्दी बहुत अधिक पड़ती है तो कभी बहुत कम पड़ती है |ऐसे ही गर्मी  वर्षा  आदि का भी प्रभाव काफी अधिक बढ़ते या घटते देखा जाता है | 
    कई बार ऋतुओं का प्रभाव कुछ दिन बहुत अधिक बढ़ जाता है फिर सामान्य हो जाता है| उसके बाद कुछ दिनों के लिए ऋतुप्रभाव फिर बहुत अधिक बढ़ जाता है |उसके बाद फिर कम हो जाता है |एक एक ऋतु  में ऐसा कई कई बार होते देखा जाता है |  शिशिर (सर्दी) ऋतु में सर्दी कुछ दिन बहुत अधिक बढ़ती है | कुछ दिन सामान्य होती है | कुछ दिन फिर बढ़ जाती है | कुछ दिन फिर सामान्य रहती है | ऐसे ही ग्रीष्मऋतु में गर्मी के प्रभाव में उतार चढ़ाव होते देखा जाता है |वर्षा ऋतु में वर्षा भी किसी दिन बहुत अधिक होती है | किसी दिन बिल्कुल नहीं होती | किसी दिन सामान्य होती है और किसी दिन फिर बहुत अधिक होती है | 
         इसमें विशेष बात ये है कि ऋतुओं में ऋतु कम प्रभाव हो ये तो ठीक है |कुछ दिन बहुत अधिक ऋतुप्रभाव रहने एवं कुछ दिन सामान्य रहने तथा फिर कुछ दिन बहुत अधिक रहने का कारण क्या हो सकता है |  
     विशेष बात ये है कि जिस प्रकार से वर्ष के कुछ महीनों में सर्दी अधिक होने का कारण शिशिर ऋतु अर्थात समय है | उसी प्रकार से शिशिर ऋतु में कुछ दिन सर्दी बहुत अधिक बढ़ने का कारण भी समय ही है | ऐसे ही सर्दी बढ़ाने वाला यह समय ग्रीष्म(गर्मी)की  ऋतु में भी आता है | उस दिन या  तो वर्षा हो जाती है या कुछ अन्य कारणों से या बिना किसी कारण केवल समय के प्रभाव से इन दिनों में अन्य दिनों की अपेक्षा तापमान कम हो जाता है | 
    ऐसा ही वर्ष के कुछ महीनों में गर्मी अधिक होने का कारण ग्रीष्म(गर्मी)ऋतु अर्थात समय का प्रभाव है |ग्रीष्म(गर्मी)ऋतु के कुछ दिनों में गर्मी विशेष अधिक बढ़ जाने का कारण भी समय का ही प्रभाव है| यही कुछ दिन जब सर्दी की ऋतु में आते हैं | सर्दी के भी उन दिनों में तापमान अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ बढ़ा रहता है | 
      ऐसे ही वर्षा के कुछ महीनों में वर्षा अधिक होती है | इसका कारण वर्षाऋतु  अर्थात समय है | वर्षा ऋतु के महीनों में ही कुछ दिनों में वर्षा  बहुत अधिक होती है | यही कुछ दिन जब दूसरी ऋतुओं में आते हैं उनमें भी कुछ वर्षा होते देखी जाती है | 
      कुछ दिनों में सर्दी के अधिक बढ़ने का कारण क्या हो सकता है | सर्दी अधिक बढ़ने का महीनों और दिनों से क्या संबंध है |उन महीनों और दिनों में ऐसा विशेष क्या होता है | महीनों के लिए तो सूर्य के परिभ्रमण को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है किंतु सर्दी की ऋतु के कुछ दिनों में सर्दी अधिक होने फिर कम हो जाने और फिर अधिक हो जाने का कारण क्या है |उन कुछ दिनों में जब सर्दी अधिक बढ़ती है | ऐसी स्थिति में सर्दी बढ़ने का उन कुछ दिनों से क्या संबंध है |  
   कुछ दिनों में ऐसी घटनाएँ बहुत अधिक घटित होती हैं,फिर कुछ दिन तक सामान्य रहती हैं | उसके बाद कुछ दिनों तक फिर बहुत अधिक तापमान बढ़ जाता है |
      कोरोना महामारी एक बार आई उसी समय जितना बढ़ना होता बढ़ जाती फिर शांत हो जाती तो समाप्त हो जाती !किंतु महामारी संबंधी लहरों के आने और जाने का कारण क्या रहा होगा | एक बार महामारी बहुत अधिक बढ़ गई फिर घटी कैसे और यदि घट ही गई तो दुबारा बढ़ने का कारण क्या रहा होगा | इस घटना की पुनरावृत्ति बार बार होती रही !कुछ महीने शांत रहने के बाद फिर कुछ दिनों के लिए कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ने का कारण क्या रहा होगा |इसके बाद कोरोना महामारी के समाप्त होने का क्या कारण रहा होगा |
     कुछ निश्चित दिनों में वर्षा बाढ़ के अधिक दृश्य देखे जाते हैं | ऐसी वर्षा सर्दी गर्मी एवं वायु प्रदूषण बढ़ने जैसी प्राकृतिक घटनाएँ एक साथ अनेकों देशों में घटित होते देखी जाती हैं |
     विशेष बात यह है कि प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने में अंतराल चाहें वर्षों का हो या महीनों का या दिनों का किंतु एक निश्चित अंतराल में ऐसी घटनाओं के घटित होने से ऐसा तो लगता है कि इन घटनाओं के घटित होने का कारण समय ही है | 
    कई बार ग्रीष्मऋतु के अतिरिक्त कुछ दूसरी ऋतुओं के भी कुछ दिनों में आँधी तूफ़ान आते हैं | ऐसे ही ग्रीष्मऋतु के अतिरिक्त कुछ दूसरी ऋतुओं में भी उन ऋतुओं के अपने स्वभाव की अपेक्षा तापमान बढ़ जाता है|
 इसमें विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि वर्षाऋतु का समय आने पर भी कुछ दिनों में वर्षा अधिक होती है | इसके अतिरिक्त कुछ दूसरी ऋतुओं का समय आने पर भी कुछ दिनों में वर्षा होती है | अंतर इतना होता है कि वर्षा ऋतु में अन्य ऋतुओं  की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है |
     इसीप्रकार से कोरोना जैसी महामारियों के विषय में कहा जाता है कि ऐसी महामारियाँ लगभग एक सौ वर्ष के अंतराल में एक बार आती हैं | ऐसी घटना पिछले कुछ सदियों से घटित हो रही है | सौ वर्ष के निश्चित अंतराल में ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण क्या है |


दो शब्द                                               

      कोरोना जैसी महामारियों एवं  भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात आदि मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए प्राकृतिक वातावरण को समझना होगा |संपूर्ण ब्रह्मांड में सबकुछ प्राकृतिक वातावरण के द्वारा ही नियंत्रित किया जा रहा है| इसीलिए महामारी ,मौसम एवं प्राकृतिक आपदाओं को अच्छी प्रकार से समझने के लिए एवं इनके विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए हवाओं के न केवल अच्छे बुरे प्रवाह को समझना होगा |प्रत्युत ये भी समझना होगा कि हवाओं के पास शक्ति कितनी है|वह शक्ति उनकी अपनी है या उनकी शक्ति का स्रोत कहीं और है |
     हवाओं की शक्ति के विषय में कल्पना की जाए तो  ग्रहों नक्षत्रों का पिंड रूप में बना रहना,उनकी गति आदि हवाओं के द्वारा नियंत्रित है |बादलों के निर्माण से लेकर उन्हें कहीं लाने  ले जाने का कार्य हवाएँ ही सँभालती हैं|वर्षा होना आदि हवाओं के सहज प्रवाह से ही संभव हो पाता है | 
     आकाश में तारों के टूटने,पृथ्वी में भूकंपों के आने ,समुद्रों में सुनामी के आने  एवं समुद्रों में लहरों के उठने आदि का कारण प्रकुपित हवाएँ ही हैं |आँधीतूफ़ान चक्रवात बज्रपात उल्कापात आदि अप्रिय घटनाएँ भी वायु के प्रकुपित होने से ही घटित होती हैं |
     इसके बिपरीत सहज स्वच्छ शीतल सुगंधित एवं वायु का मंद प्रवाह प्रकृति और जीवन दोनों के लिए ही अच्छा होता है | ऐसी हवा में साँस लेने से मनुष्यों के शरीर स्वस्थ रहते हैं | दूसरी बात ऐसी स्वच्छ सुंदर हवाओं के संयोग से उस समय जो अन्न फूल फल शाक सब्जियाँ आदि पैदा होते हैं |उन्हें खाने से मनुष्यों के शरीर स्वस्थ एवं सबल बनते हैं |तीसरी बात ऐसी हवाओं का स्पर्श पाकर पली बढ़ी औषधीयबनस्पतियाँ एवं उनसे निर्मित औषधियाँ रोगों से मुक्ति दिलाकर शरीरों को स्वस्थ करने में सक्षम होती हैं | 
    प्रकुपित हवाओं में साँस लेने से मनुष्यों के शरीर रोगी होने लगते हैं | दूसरी बात उसी प्रदूषित वातावरण में उन्हीं प्रदूषित हवाओं का स्पर्श पाकर पले बढ़े अन्न फूल फल शाक सब्जियाँ आदि खाने से रोग बढ़ने लगते हैं| तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रदूषित हवाओं के संयोग से पली बढ़ी औषधीयबनस्पतियाँ एवं उनसे निर्मित औषधियाँ स्वयं विकारित हो जाती हैं |ऐसी औषधियाँ  रोगों से मुक्ति दिलाने की जगह कई बार रोगों के बढ़ने में सहायक होने लगती हैं | ऐसी स्थिति बनते ही रोग असाध्य होते चले जाते हैं | 
      विशेष बात ये है कि यदि विषैले वातावरण में साँस लेने  शरीर रोगी होते जा रहे हों | उसी विकारित वातावरण में पैदा हुए अन्न फूल फल शाक सब्जियाँ आदि खाने से पाचनतंत्र बिगड़ता  जा रहा हो|वैसे ही बिपरीत वातावरण में पली बढ़ी औषधीयबनस्पतियों से निर्मित औषधियों के सेवन से रोगों को नियंत्रित किया जाना संभव न हो पा रहा हो | महामारी पैदा होने के लिए यही अवस्था जिम्मेदार होती है |        
     महामारियों के पैदा होने  का क्रम यही होता है | कुछ वर्ष पहले से हवाएँ प्रदूषित होनी प्रारंभ हो जाती हैं |उससे शरीरों में वात पित्त कफ आदि असंतुलित होने लगते हैं |जिससे धीरे धीरे शरीर रोगी होने शुरू हो जाते हैं | ऐसे प्रदूषित वातावरण में पले बढ़े अन्न फूल फल शाक सब्जियाँ खाने से पाचनतंत्र बिगड़ने लगता है |उसी प्रदूषित वातावरण में पली बढ़ी बनौषधियों में बिकार आने लगते हैं| जिससे वे जिन रोगों से मुक्ति दिलाने में सक्षम मानी जाती हैं | वे उन गुणों से हीन होकर  कुछ दूसरे गुणधर्म से युक्त हो जाती हैं |ऐसी परिस्थिति में रोग पैदा होते हैं | भोजन विकारों से रोग मजबूत होते चले जाते हैं | बिकारित औषधियों के प्रयोग से रोग मुक्ति मिल नहीं पाती है और रोग बढ़ते चले जाते हैं | 
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उपग्रहों रडारों से बादलों आँधी तूफानों आदि को हम देख सकते हैं उनके स्वभाव को नहीं समझ सकते कि कहाँ जाएँगे और इनका अगला कदम क्या होगा !हथियार सैनिक के हाथ में होते हैं और हमलावर के हाथ में भी होते हैं |उनके स्वभाव से ही यह समझा जा सकता है कि ये हमारा रक्षक है या हिंसक !प्रकृति हो या मनुष्य उनके स्वभाव को समझना होगा स्वभाव समय के अनुसार बदलता है | 



     
    किस कार्य के होने का निर्धारित समय कौन सा है|यह पता लगाने के लिए रेलवे समय सारिणी की तरह ही प्राकृतिक समयसारिणी भी होती है | जिसमें  प्रत्येक कार्य के निर्धारित समय का संकेत दिया गया होता है | जिस प्रकार से रेलवे समय सारिणी प्रत्येक देश की अपनी अपनी भाषा में लिखी गई होती है | उस भाषा को जानने वाले लोग उसे पढ़कर समझ जाते हैं कि किस ट्रेन को किस स्टेशन पर किस समय पर आना या जाना है| 
    इसीप्रकार से 
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    समय का प्रभाव सभी पर पड़ता है |यहाँ तक कि  प्रत्येक कार्य को अपने समय पर ही पूर्ण होना होता है |समय गाय की तरह है | कार्य उसके बच्चे (बछड़े ) की तरह है | बछड़ा भूख से व्याकुल होकर कितनी भी गायों के पास चला जाए | कोई गए उसे अपना स्तनपान नहीं क़रवाएगी | इसके लिए उसे अपनी माँ को ही  खोजना होगा | माँ के मिलते ही उसके कार्य की सिद्ध हो जाएगी,अर्थात दूध पिलाकर बछड़े की भूख शांत कर देगी |
     इसीप्रकार से कार्य आप करना चाहते हैं | उस कार्य को जिस समय में सफल होना है | उस समय को खोजना होगा |अपने कार्य के अनुकूल समय खोजे बिना सफलता नहीं  मिलेगी | जिस कार्य  को  जब सफल होना होता है |उस कार्य को उसीसमय करने पर सफलता मिलेगी |सफलता का समय आने से जितने पहले कार्य को प्रारंभ किया  गया होगा | उतने समय तक निरर्थक प्रयत्न करने होंगे, किंतु सफलता उस समय पर ही मिलेगी |जो समय उस कार्य के लिए निर्धारित है |   

       जिसप्रकार से रेलवे के द्वारा  प्रत्येक ट्रेन के आने जाने का समय  निर्धारित किया जा चुका  होता है कि कौन ट्रेन किस स्टेशन पर किस समय पहुँचेगी|यदि वह ट्रेन उसी समय पहुँचती है तब तो उसे आने के लिए लाइन खाली मिलती है| यदि वह ट्रेन अपने  समय से पहले पहुँच जाए तो उसे स्टेशन के बाहर खड़े होकर अपने समय की प्रतीक्षा करनी पड़ती है |
    इसीप्रकार से किसी कार्य के होने का जब समय आता है| उसकार्य को उसी समय पर किया जाए  तब तो सफलता मिल जाती है | यदि उस समय के आने से पहले ही प्रयत्न करना शुरू कर दिया जाए ,कार्य तो तब भी निर्धारित समय पर ही होगा,किंतु पहले से किए जा रहे प्रयत्नों में जो अतिरिक्त परिश्रम धन संसाधन आदि लग रहे होते हैं| वे निरर्थक चले जाते हैं | 
     कुछ लोग समय के महत्त्व को न समझकर ऐसा कहते सुने  जाते हैं कि पहले से रिसर्च करके उस प्रकार के अनुभव न प्राप्त किए गए होते तो कार्य उस समय भी सफल नहीं होता | उनके कहने का अभिप्राय होता है कि सफलता मिलने का कारण वह अनुभव है जो इतने समय तक प्रयत्न करके  गया होता है | ऐसे तर्कों पर  विश्वास किया जाए तो यह भी सोचना होगा कि कुछ लोग बहुत बार सफल होते रहने के बाद जब असफल होने शुरू होते हैं तब अनुभव तो कई गुणा अधिक होता है फिर भी असफलता मिलती है | इसलिए सफलता असफलता का कारण अच्छा बुर समय ही होता है | 



कर्मफल और समय    
    
      हमने एक कंकड़ पूर्व दिशा की ओर फेंका तो उसे पूर्व दिशा की ओर ही जाना चाहिए |यदि न जाए तो वहीं रह जाए जहाँ से हमने फेंका है किंतु पूरब दिशा की ओर फेंकने पर यदि वह कंकड़ पूरब दिशा की ओर न जाकर पश्चिम की ओर चला जाता है| इसका मतलब उसके पश्चिम दिशा की ओर जाने का कारण  हमारे द्वारा पूर्व दिशा की ओर फेंका जाना नहीं था, प्रत्युत उस कंकड़ को पश्चिम की ओर ले जाने में जो बल लगा वो हमारा नहीं था |उसे पश्चिम की ओर ले जाने में जो बल लगा वो किसका था | पश्चिम की ओर जाने वाली हवाएँ अधिक  तेज चल रही थीं | जिसके प्रभाव से पूरब को फेंका गया कंकड़ पश्चिम की ओर चला गया | उसका पश्चिम की ओर जाना हमारे कर्म का फल नहीं था | उसे हमारे द्वारा किए गए प्रयत्न का परिणाम नहीं माना जा सकता है | 
      इसी प्रकार से हमारे जीवन में बहुत सारी ऐसी घटनाएँ घटित हुआ करती हैं | जो हमारे प्रयत्न का परिणाम नहीं होती हैं,लेकिन भ्रमवश हम उसे अपने प्रयत्न का परिणाम मान लेते हैं |वही कार्य उसी प्रकार का प्रयत्न करके हम दूसरी या तीसरी बार करते हैं तब वो कार्य नहीं होता है | हमारे प्रयत्न के विरुद्ध परिणाम आ जाते हैं तब हमें आभाष होता है कि पहले प्रयत्न के बाद जो कार्य हुआ था | वो भी हमारे प्रयत्न का परिणाम नहीं था | उस कार्य के होने या न होने में कोई अन्य बल  लगा था |  उस अन्य बल को खोजे बिना ऐसे अनुसंधानों का संपूर्ण होना कैसे संभव है |
     ऐसे ही कुछ पाने के लिए हम परिश्रम पूर्वक प्रयत्न करते हैं | उसके परिणाम स्वरूप जैसा हम चाहते हैं कभी वैसा हो जाता है |कभी नहीं भी होता है और कभी कभी हमारे प्रयत्न के बिपरीत हो जाता है | जो कार्य जैसा हम करना चाहते हैं | जिसके लिए हम प्रयत्न करते हैं वो यदि वैसा हो जाता है तो अनुमान कर लिया जाता है कि ये कार्य हमने किया है,किंतु कई बार हमारी इच्छा एवं प्रयत्नों के विरुद्ध वो कार्य बिगड़ते देखा जाता है | जैसा हम न तो चाहते थे और न ही उसके लिए प्रयत्न किए थे | ऐसी स्थिति में उस कार्य के बिगड़ने में जो ऊर्जा लगी  वो किसकी थी |अनुसंधान पूर्वक उसे खोजा जाना चाहिए | 
     जिस रोग से पीड़ित कोई रोगी किसी चिकित्सक से चिकित्सा करवाता है |उसके बाद वो स्वस्थ हो जाता है | रोगी को लगता है कि उसका स्वस्थ होना उस चिकित्सक की चिकित्सा का परिणाम है|ऐसा समझकर वो व्यक्ति उसी प्रकार के कुछ अन्य रोगी उस चिकित्सक के पास भेज देता है | उसकी चिकित्सा से वे स्वस्थ नहीं होते हैं |उनका स्वस्थ न होना और उस  पहले रोगी का स्वस्थ हो जाना | उस एक चिकित्सा के दो परिणाम निकलने का कारण जो भी कारण रहा हो | अनुसंधानों को आगे बढ़ाने के लिए उस कारण को खोजा जाना बहुत आवश्यक होता है |   
     कई बार किसी रोगी की अच्छी से अच्छी चिकित्सा किए जाने के बाद भी वो स्वस्थ नहीं होता है,प्रत्युत उसकी इच्छा के विरुद्ध चिकित्सकों की इच्छा और प्रयत्नों के  विरुद्ध रोगी को दी गई औषधियों के प्रभाव के विरुद्ध उस रोगी की मृत्यु जैसी बड़ी घटना घटित  हो जाती है | उसे मारते कोई प्रत्यक्ष देखा नहीं गया | ऐसी स्थिति में उस रोगी की मृत्यु जैसी बड़ी घटना (कार्य) का कर्ता  किसे माना जाए | किसी भी कार्य को करने के लिए कर्ता की आवश्यकता होती है | उस रोगी की मृत्यु का कर्ता प्रत्यक्ष दिखाई भले न पड़ रहा हो,कार्य होने का मतलब ही कर्ता का भी होना है  | वह करता कौन है कहाँ है |अनुसंधान पूर्वक  उसकी खोज की जानी चाहिए | 
     सिद्धांततः ताकत लगे बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता है तो भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी इतनी बड़ी बड़ी घटनाओं के घटित होने में भी कोई ताकत(ऊर्जा)तो लगती ही होगी| उस ऊर्जा के स्रोत का अनुसंधान पूर्वक पता लगाया जाना चाहिए | उसके बिना ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं है | 
    ऐसी घटनाओं का कर्ता  प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ता इसलिए परोक्ष है | परोक्षकर्ता समय होता है| जिस समय से प्रेरित होकर भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी इतनी बड़ी बड़ी घटनाएँ घटित हो सकती  हैं |उसी समय से प्रेरित होकर मनुष्यजीवन  से संबंधित बहुत सारी घटनाएँ  घटित  होती हों या महामारी भी उसी समय के प्रभाव से पैदा हुई हो तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए |
     ऐसी जो भी दुर्घटनाएँ किसी के जीवन में घटित होती हैं | उनके लिए उसने न तो प्रयत्न किया और न ही किसी दूसरे ने किया  तो वैसी घटनाओं के घटित होने में लगी ऊर्जा किसकी थी | उसका पता किया जाना अनुसंधानों की जिम्मेदारी है|
    ऐसा किए बिना ऐसी घटनाओं को न तो समझा जा सकता है और न ही उनका समाधान खोजा  जा सकता है | उनके विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना भी संभव नहीं है |पूर्वानुमान लगाए बिना महामारी जैसी घटनाओं  से समाज की सुरक्षा की जानी संभव नहीं है | 
      चिकित्सा की दृष्टि से देखा जाए तो सैकड़ों एक जैसे रोगियों की  एक साथ  एक जैसी चिकित्सा किए जाने पर भी  एक जैसे परिणाम निकलते नहीं देखे जाते हैं | कुछ स्वस्थ होते हैं कुछ अस्वस्थ रहते हैं कुछ की मृत्यु हो जाती है | किसी एक कार्य को एक प्रकार से करने पर भी उसके तीन प्रकार के परिणाम आने का कारण खोजे बिना रोगियों के स्वस्थ करने या महामारी  जैसे  समय में लोगों को सुरक्षित करने के लिए  ऐसे  प्रभावी प्रयत्न कैसे किए जा सकते हैं | जिनके विषय में ये कहा जा सके कि इस औषधि के प्रभाव से उस असाध्य रोगी को स्वस्थ कर ही लिया जाएगा | ऐसे विषयों के लिए कुछ उस प्रकार के और अधिक गंभीर अनुसंधानों की आवश्यकता है | 
     ऐसी समस्याओं के समाधान के उद्देश्य से ही आयुर्वेद में  रोगों महारोगों की प्रकृति को समझने के लिए रोगों के साथ साथ समय के संचार को भी समझने पर बल दिया गया है | उसी के आधार पर  रोगों महारोगों तथा रोगियों और  महा रोगियों को समझने एवं इनके विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाने की विधि बताई गई है| इसके लिए समय, लक्षण दूत परीक्षा  गणित आदि को माध्यम बनाया जाता है | प्राचीनकाल में कुछ  लोग ज्योतिष एवं आयुर्वेद दोनों के ही विद्वान हुआ करते थे | ऐसे अनुसंधानों एवं महामारी जैसे अध्ययनों में उनकी बड़ी भूमिका होती थी | 
                                                        

                                                    समय को समझे बिना भी सफल होते हैं लोग !

    
      बिजली के महत्व को न समझने वाले लोग भी यदि तार छू लें तो उन्हें भी करेंट लगती है| ऐसे ही यदि अनजान में भी पंखे का स्विच दब जाए तो पंखा चल पड़ता है | इसी प्रकार से जो लोग समय के महत्त्व को नहीं समझते हैं या मानते हैं | अच्छा बुरा समय तो उनके भी जीवन में आता है | उसके अच्छे बुरे परिणाम उन्हें भी मिलते हैं |अंतर इतना है कि सभी लोगों की तरह ही समय प्रभाव को न मानने वाले लोग जब सफल होते हैं तो वे उसे अपने परिश्रम या बौद्धिक कौशल का फल मान लेते हैं |ऐसे लोग जब असफल होते हैं तो या तो अपने को या किसी दूसरे को जिम्मेदार मान लेते हैं | 
     समय की समझ न होने के कारण ऐसे लोगों को भ्रम होने लगता है कि उनके सफल होने का कारण उनके परिश्रम प्रयत्न एवं कार्य करने की प्रक्रिया ही है|ऐसे लोग कुछ उन लोगों का बड़ा नुक्सान पहुँचाते हैं | जिनका अपना बुरा समय चल रहा होता है |ये उन्हें भी अपनी कार्यशैली का उपदेश करते हैं | मैंने ऐसे ऐसे किया तो सफल हो गया | तुम भी ऐसा करोगे तो सफल हो जाओगे |       
      ऐसे भाषण सुन कर कुछ लोग बड़े बड़े लक्ष्य बना लेते हैं | उन्हें प्राप्त करने के लिए अपनी शक्ति के अनुसार प्राण प्रण से प्रयत्न करने लगते हैं  | उनके पास जितना जो कुछ होता है | वो सबकुछ उस लक्ष्य के लिए न्योछावर कर देते हैं |उसके बाद सफल तो कुछ लोग ही होते हैं ,बाक़ी लोग सफल भी नहीं होते और उनके पास कुछ बचता  भी नहीं है |  ऐसे मोटिवेशनलों के गलत चिंतन के शिकार कुछ लोग तनावग्रस्त होकर अस्वस्थ हो जाते हैं | कुछ लोग उन्माद के शिकार हो जाते हैं | निराश होकर कुछ लोग अपराध की ओर मुड़ जाते हैं |
      ऐसे मोटिवेशनल स्पीकरों को अपने भाषणों में यह कहते सुना जाता है कि लक्ष्य कितना भी बड़ा हो ,तुम उसे पाने का प्रयत्न करो तो तुम्हें  सफल होने से कोई शक्ति रोक नहीं सकती है | ऐसे लोगों की बातों पर भरोसा करके कुछ लड़के बड़े परिवारों की अत्यंत सुंदरी कन्याओं से विवाह करने का लक्ष्य चुन लेते हैं | उसमें असफल होने के बाद कुछ उसके और कुछ अपने प्राणों पर खेल जाते हैं | समय के प्रभाव को समझते तो ऐसी परिस्थिति से बचा जा सकता था | 
     ऐसे ही कुछ साधन संपन्न माता पिता धनबल से अपने बच्चों को डॉक्टर इंजीनियर या आईएएस जैसी परीक्षाओं में सफल करने का लक्ष्य बना लेते हैं | महँगी महँगी कोचिंग करवा देते हैं | अपने बच्चों को सफल करने के लिए बहुत  धन खर्च करते हैं | बच्चे भी सफल होने के लिए बहुत परिश्रम करते हैं | कोचिंग चलाने वाले शिक्षक भी बहुत परिश्रम पूर्वक अपने विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं |इस प्रकार से जितने अच्छे से अच्छे प्रयत्न किए जा सकते हैं|उन सभी संबंधित पक्षों के द्वारा किए जाते हैं | ऐसा करने के बाद भी बहुत विद्यार्थी सफल नहीं हो पाते हैं | इसका कारण उन्हें सब कुछ तो मिला किंतु उस समय का सहयोग नहीं मिला होता है | 
      इसके बिपरीत कुछ गरीबों के बच्चे जिनके पास शिक्षा के अनुकूल कोई संसाधन नहीं होते हैं | उनके  पिता जी रिक्सा चलाते हैं | सब्जी बेचते हैं |किसान हैं ,मजदूर हैं |उनकी  परिस्थितियाँ शिक्षा की दृष्टि से बिल्कुल बिपरीत हैं | इसके बाद भी  समय की मदद पाकर उन बच्चों को ऊँचे ऊँचे पदों पर पहुँचते देखा जाता है |इसलिए कोई भी लक्ष्य बनाते समय अपने समय पर भी बिचार किया जाना चाहिए कि इस कार्य को करने में समय का कितना सहयोग मिलेगा |
     कुल मिलाकर किसी के सफल होने का कारण केवल उसके परिश्रम प्रयत्न एवं कार्य करने की प्रक्रिया को ही मानना उचित नहीं है | इसमें उस व्यक्ति के अपने समय की बहुत बड़ी भूमिका  होती है | इसलिए समय की उपेक्षा करके किसी भी कार्य या अनुसंधान को पूरा नहीं किया जा सकता है | 

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 कर्म  और उसका फल ! 

     गीता में  लिखा है कि 'कर्मण्येवाधिकारस्ते' अर्थात  केवल कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है !'माफलेषुकदाचन'  अर्थात कर्म के फल पर तुम्हारा अधिकार नहीं है | इस पर प्रश्न उठता है कि फल पर अधिकार क्यों नहीं है | विशेष बात ये कि हमारे कर्म पर  हमारा ही अधिकार नहीं है तो उस पर किसका अधिकार है और क्यों है ? 

     कर्मफल किसे कहेंगे | कर्म जिस उद्देश्य से किए जाते हैं |जिस क्रिया से उस उद्देश्य की पूर्ति हो रही हो तो उसे कर्मफल या सफलता मिलना कहा जा सकता है | जिस कर्म को करने के बाद उस उद्देश्य की पूर्ति आंशिक रूप से भी न हो उस कर्म को असफल  माना जा सकता है | उस कर्म का कोई फल ही नहीं हुआ इसलिए वो तो निष्फल मान लिया गया |जिस कर्म को करने के बाद उद्देश्यपूर्ति होना तो दूर प्रत्युत नुक्सान होते देखा गया | इसे कर्मफल माना जाएगा या नहीं |

    कोई चिकित्सक किसी रोगी की चिकित्सा करता है | उसके बाद तीन घटनाएँ घटित हो सकती हैं | पहली रोगी स्वस्थ हो सकता है | दूसरी रोगी अस्वस्थ बना रह सकता है और तीसरी रोगी की मृत्यु हो सकती है,तो इन तीनों प्रकार की घटनाओं में चिकित्सक की मृत्यु को कर्मफल तो नहीं माना जा सकता है,क्योंकि ऐसा हो ये कर्म करने वाले का उद्देश्य ही नहीं था |
    रोगी की मृत्यु हो ये चिकित्सक का उद्देश्य भी नहीं था, इसके लिए उसने प्रयत्न भी नहीं किया फिर भी मृत्यु  होने की घटना घटित हुई | यदि मृत्यु होने की घटना बिना किसी प्रयत्न के घटित हो सकती है तो उसके स्वस्थ होने की घटना को कर्मफल कैसे कहा जा सकता है | इसका आधार केवल इतना ही तो है कि चिकित्सा करने के बाद वह स्वस्थ हुआ है ,चूँकि स्वस्थ करने के लिए चिकित्सा की गई थी | इसलिए उसके स्वस्थ होने को चिकित्सक के कर्म का फल मान लिया जाना इसलिए उचित नहीं है, क्योंकि जिस प्रकार से कोई प्रयत्न किए बिना यदि मृत्यु होने की घटना घटित हो सकती है तो रोगी के स्वस्थ होने की घटना भी अपने आप से घटित हुई घटना क्यों नहीं माना जा सकता है | 
      किसी के स्वस्थ होने को चिकित्सा का परिणाम कैसे माना जा सकता है| जिसप्रकार के रोगों से पीड़ित साधन संपन्न लोग बड़े बड़े अस्पतालों में जाकर बड़े बड़े चिकित्सकों से चिकित्सा सेवाओं का लाभ लेने के बाद स्वस्थ होते हैं,यदि उसीप्रकार के रोगों से पीड़ित दूसरे कुछ ऐसे लोग भी उसी प्रकार से स्वस्थ होते हैं | जिन्हें चिकित्सा  की कोई सुविधा नहीं मिली है|ऐसी परिस्थिति में चिकित्सा का लाभ लेने के बाद जिनके स्वास्थ्य में सुधार हुआ है | उसे चिकित्सा का फल मानना कितना तर्कसंगत  होगा |चिकित्सा का लाभ मिले बिना भी लोगों का स्वस्थ होना एवं चिकित्सा का लाभ मिलने के बाद भी कुछ लोगों की मृत्यु हो जाना | ये दोनों घटनाएँ चिकित्सा रूपी कर्म के फल को संदिग्ध करती हैं | इससे ये सिद्ध होता है कि चिकित्सा से उसी रोगी को स्वस्थ किया जा सकता है |  जिसे स्वस्थ होना है | स्वस्थ किसे होना है|जिसका समय अच्छा है|अच्छे समय से प्रभावित व्यक्ति को ही यदि स्वस्थ होना है तो किसी रोगी के स्वस्थ होने को चिकित्सा रूपी कर्म का फल कैसे माना जा सकता है,फिर तो जिसका समय अच्छा होगा उसे चिकित्सा मिले या न मिले वह स्वस्थ होगा ही |  
     किसी के स्वस्थ अस्वस्थ होने का कारण समय ही है | इस बात पर विश्वास इसलिए भी करना पड़ता है कि कोरोनाकाल में जिन परिस्थितियों में रह रहे कुछ लोग स्वस्थ बने रहे उन्हीं परिस्थितियों में बने रहे बहुत सारे लोग अस्वस्थ हो गए | बहुत लोगों ने कोविड नियमों का संपूर्ण रूप से पालन किया इसके बाद भी अस्वस्थ हुए | चिकित्सा का लाभ लिया इसके बाद भी मृत्यु होते देखी गई | इसके अतिरिक्त कुछ लोग ऐसे भी रहे जिन्होंने कोविड नियमों का पालन भी नहीं किया और अस्वस्थ भी नहीं हुए | कुछ लोग अस्वस्थ हुए भी किंतु चिकित्सा का लाभ नहीं ले पाए इसके बाद भी स्वस्थ  होते देखे गए | 
      इसप्रकार से चिकित्सा रूपी कार्य का फल क्या है इस विषय में विश्वास पूर्वक ऐसा कुछ कहा जाना संभव नहीं हो पाया कि  जिसकी चिकित्सा होगी वह स्वस्थ होगा ही या जिसकी चिकित्सा प्रारंभ कर दी जाएगी उसकी मृत्यु नहीं होगी | ऐसा कोई निश्चित आश्वासन दिया जाना संभव नहीं हो पाया है ,जबकि कार्य का फल तो निश्चित होता है | 
    कोई अग्नि में हाथ डालेगा  तो हाथ जलेगा ये निश्चित है | इसलिए इसे अग्नि में हाथ डालने रूपी कर्म का फल हाथ के जलने को माना जा सकता है | जो भी अग्नि में हाथ डालेगा उसका भी हाथ जलेगा | ऐसा निश्चय जहाँ जहाँ हो वो तो कर्म का फल है |इसके अतिरिक्त जो भी हो रहा है उसका कारण समय है | 
     इसीलिए  भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है कि  केवल कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है ! कर्म के फल पर अधिकार न  होने का कारण जिसे तुम कर्मफल मान रहे हो वो कर्म फल है भी या नहीं | उसे केवल इसलिए कर्मफल मान लिया गया है क्योंकि वह घटना कर्म करने के बाद घटी है | जिसे कर्मफल माना जा रहा है | उस बाद में घटी घटना का कर्म से कोई संबंध है भी या नहीं इसका निश्चय किस प्रकार किया जा सकता है | 
     रोगी जैसा है वैसा ही रहता तो कर्म निष्फल और यदि रोगी की मृत्यु हो जाती है तो इसे कर्मफल कैसे कहा जा सकता है | मृत्यु होने के लिए कर्म नहीं किया गया था | इसलिए कर्म से इसका कोई संबंध नहीं है | यदि इसका संबंध कर्म से नहीं है तो रोगी के स्वस्थ होने को चिकित्सा का परिणाम केवल इस आधार पर नहीं माना जा सकता है कि जिस अपेक्षा से कर्म किया गया था उसके बाद उसी प्रकार की घटना घटी है | यदि कर्म इतना ही प्रभावी होता तो कर्म के बिपरीत मृत्यु जैसी घटना नहीं घटित होनी चाहिए थी | 
                                                  समयविज्ञान  के बिना अधूरा है विज्ञान 
     जिन कार्यों या लक्ष्यों को हम अपना समझकर करना शुरू करते हैं | वो हमारे अपने नहीं  होते हैं प्रत्युत वे समय द्वारा निर्धारित होते हैं | समय की ही प्रेरणा से उस प्रकार के कार्य प्रारंभ किए जाते हैं और समय के प्रभाव से ही वे कार्य संपन्न होते हैं | 
     ऐसे जिन कार्यों को प्राकृतिक रूप से ही होना होता है | उनके करने की जिम्मेदारी प्रकृति विधान में कुछ उन लोगों को सौंप दी जाती है | जिन्हें उनके पुण्य प्रभाव से उसका यश प्रदान किया जाना होता है |उन कार्यों को करने के लिए वे प्रयत्न करते हैं | समय प्रभाव से वे कार्य संपन्न हो जाते हैं | उससे श्रेय उन पुण्यवानों भक्तों या ईश्वर समर्पितों को मिल जाता है | 
     "यश अपयश विधि हाथ "| ईश्वर  जिस व्यक्ति पर कृपा करना चाहता है| उसे किसी ऐसे कार्य का माध्यम बना लेता है | जो कार्य समय प्रभाव से पूर्ण होने जा रहा होता है | ईश्वर के कृपापात्र चिकित्सकों को स्वस्थ होने लायक रोगी मिलने लगते हैं | वकीलों को जीतने लायक  मुकदमे मिलने लगते हैं | ऐसे और भी कार्यों में अपने अनुकूल व्यवहार होते देखा जाता है |  
    महाभारत में भगवान  श्री कृष्ण जी ने अर्जुन की यही तो मदद की थी | जब देखा कि समय के प्रभाव से भीष्म द्रोणाचार्य कृपाचार्य कर्ण दुर्योधन जैसे बड़े बड़े बीरों की आयु समाप्त हो चुकी है | इनकी मृत्यु का समय समीप आ चुका है तो उन्होंने उनसे युद्ध करने के लिए पांडवों को प्रेरित किया | समय बिपरीत होने के कारण पाँच गाँव देने वाली बात को भी दुर्योधन ने मानने से मना कर दिया | अर्जुन स्वजनों से  करना चाहते थे तो दिव्या दृष्टि देकर अर्जुन को भविष्य  घटनाओं के दर्शन करवाए | जिसमें आयु समाप्त होने के कारण निर्जीव होकर सभी  पृथ्वी पर पड़े थे | श्री कृष्ण जी ने अर्जुन का मोह दूर करने के लिए उन्हें गीता का उपदेश किया | इसका अभिप्राय यही था कि कौरव अपनी आयु पूरी होने के कारण मृत्यु को प्राप्त होंगे | संसार यही समझेगा कि पांडव इतने बड़े वीर थे कि उन्होंने इतने बड़े बड़े वीरों को पराजित कर दिया | इसका यश पांडवों को मिल जाएगा | 
    संसार में प्रत्येक कार्य अपने समय से ही सफल होता है |समय संचार की प्रक्रिया को समझने वाले लोग हमेंशा यह पता  किया करते हैं  कि कब किस प्रकार का समय आने वाला है | उस समय उसी प्रकार के कार्य करने शुरू कर देते हैं | उन कार्यों के सफल होने पर यश उनको मिल जाता है | ऐसा किया जाना तभी संभव हो पाता है जब समयविज्ञान  को समझने की सामर्थ्य हो |   
      समय के संचार को न समझ पाने के कारण कभी कभी अति उत्साहित होकर हम कुछ बड़े बड़े लक्ष्य बनाना शुरू कर देते हैं |उन्हें पूरा करने में प्राण प्रण से लग जाते हैं |उस कार्य को करने में समय के द्वारा जितनी हमारी भूमिका निर्धारित की गई होती है |उतना कार्य तो हमारे द्वारा आसानी से हो जाता है |उससे अधिक  कार्य को करने में कठिनाई होती है | इसलिए वे कार्य नहीं हो पाते हैं | 
                                      रेलवे  समयसारिणी  और  प्राकृतिक समयसारिणी  
      प्राकृतिक समयसारिणी में जिस कार्य का विस्तार बहुत अधिक रखा गया होता है| उस विस्तार को समझने की हमारी सामर्थ्य ही न हो| समय के द्वारा उसी कार्य के छोटे से अंश को करने की हमें भी भूमिका सौंपी गई हो |प्रकृति विधान को न जानने के कारण कुछ लोग संपूर्ण कार्य हमें ही करना है | ऐसा समझने लगते हैं | इससे पूरा कार्य करने की हठ ठान लेते हैं| इसलिए हमें परेशान होना पड़ता है | ऐसे कार्यों को पूर्ण करने का लक्ष्य यदि हम अपने आपसे बना लेते हैं तो हमें तनाव होता है | प्रकृति के विधान के विरुद्ध किसी कार्य को करके हम सफल नहीं हो सकते हैं | ऐसे निश्चयों से हमें अपने जीवन को संकट में नहीं डालना चाहिए |
      ऐसे कार्यों को पूरा करने की भूमिका समय के द्वारा जिसे नहीं सौंपी गई  होती है | वो उस कार्य को  पूर्ण कैसे कर लेगा | किस व्यक्ति को कौन सा कार्य करना है | ये प्राकृतिक रूप से निश्चित होता है | किस कार्य को कितने लोगों से करवाया जाना है |यह भी निश्चित होता है |इसे बिचारे बिना किसी भी कार्य को करने के लिए प्रयत्न तो किए जा सकते हैं किंतु परिणाम समय के अनुसार ही प्राप्त होते हैं |अपनी इच्छा के अनुसार परिणाम न मिलने पर तनाव होता है | 
    संसार में जितने भी कार्य होने होते हैं वे तो होते ही हैं |प्रकृति द्वारा प्रायोजित होने के कारण उन कार्यों को तो होना ही होता है | उनमें से कुछ कार्य ऐसे होते हैं |जिनमें लोगों के योगदान की भी भूमिका होती है|ऐसे कार्य भी प्राकृतिक रूप से ही संपन्न होते हैं,किंतु इनमें कभी किसी एक की तो कभी अनेक लोगों की भूमिका होती है | कुछ कार्यों में तो कई कई पीढ़ियों का योगदान प्राकृतिक रूप से सम्मिलित होता है|
     जिस प्रकार से लंबी दूरी की ट्रेनों को गंतव्य तक ले जाने के लिए रेलवे के द्वारा निर्धारित दूरी या स्टेशन पर पहुँचने के बाद चालक बदल दिया जाता है| वहाँ से दूसरा चालक उस ट्रेन को आगे लेकर जाता है|निर्धारित दूरी तय करने के बाद वह  चालक भी बदल दिया जाता है | ऐसा कई बार करना पड़ता है |उसके बाद ट्रेन गंतव्य तक पहुँच पाती है | ट्रेन को गंतव्य तक पहुँचाने का लक्ष्य रेलवे का होता है चालकों का नहीं | चालकों को तो केवल अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपनी भूमिका अदा करनी होती है |  
    प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका अलग अलग होती है|जिस मनुष्य की जितनी भूमिका होती है | वो केवल उतनी भूमिका का ही सफलता पूर्वक निर्वाह कर सकता है| ऐसे  कार्यों में प्रत्येक व्यक्ति को केवल अपने कर्तव्य का पालन करते जाना  होता है |उसे ही उस कार्य को पूर्ण करने का सौभाग्य मिलता है  | 
     ऐसे सभी कार्यों का संविधान प्राकृतिक रूप से बना हुआ है | इसके अतिरिक्त उस कार्य को पूरा करने के लिए अपनी भूमिका से अलग हम जो हठ ठान लेते हैं | उसके लिए हमें बहुत संघर्ष करना होता है |उस प्रकार के धन और संसाधन लगाने होते हैं | इसके बाद भी उतना कार्य इसलिए पूर्ण नहीं होता है ,क्योंकि समय के द्वारा उस कार्य को पूर्ण करने की जिम्मेदारी किसी और को सौंपी गई होती है |  इसलिए हमारे द्वारा वह कार्य पूर्ण नहीं होगा |अंततः हमें निराश होना पड़ता है | इसलिए हमें कार्य के परिणाम से न जुड़कर केवल अपने कर्तव्य का ही पालन करना चाहिए |  
   
                                                                                                              समय विज्ञान और तनाव !
     
     दो या दो से अधिक लोगों के आपसी संबंध तभी बन और चल पाते हैं |जब उन दोनों को एक दूसरे की आदतें पसंद हों |एक अधिकारी हो दूसरा उद्योगपति हो तीसरा दलाल हो और चौथा शराब की सप्लाई देता हो| यदि ये  चारों शराब पसंद करते हों तो शराब प्रेम के कारण ये चारों आपस में मित्र हो सकते हैं| इन चार में से एक भी यदि शराब पीना बंद कर देगा तो वो एक व्यक्ति इन तीनों से मिलना बंद कर देगा और ये तीनों भी उससे दूरी बनाने लगेंगे | ये चारों आपस में मित्र नहीं हैं प्रत्युत शराब प्रेम के कारण एक दूसरे से प्रेम करने लगे हैं | ऐसे ही कोई गुण हो या दुर्गुण जितने लोगों में एक  जैसा होगा | उतने लोग आपस में एक दूसरे के मित्र बन जाते हैं | 
    इसीप्रकार से किसी लड़की लड़के  का समय जब तक एक जैसा रहता है तब तक उन दोनों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण होता है | एक दूसरे की आदतें अच्छी लगती हैं |इसलिए वे प्रेमी प्रेमिका बनते हैं | कई बार आपस में विवाह करके पति पत्नी भी बन जाते हैं | इसके बाद समय बदलते ही एक दूसरे की आदतें अच्छी नहीं लगने लगती हैं | इसलिए एक दूसरे से  अरुचि होने लगती है |संबंध बिगड़ने एवं विवाह टूटने लगते हैं | 
      ऐसे ही जितने लोगों का समय जबतक एक जैसा चलता है,तबतक वे एक दूसरे के संपर्क में आते ही आपस में मित्र बन जाते हैं|जिस जिस का समय जैसे जैसे बदलते जाता है|वे वैसे वैसे एक दूसरे से अलग होते जाते हैं| समय में यदि अधिक अंतर हुआ तो एक दूसर के शत्रु बन जाते हैं|ऐसे समय में पति पत्नी का विवाह विच्छेद होते देखा जाता है|बहुत ऐसे दंपति भी होते हैं जो विवाह विच्छेद होने के कुछ वर्ष बाद पुनः एक दूसरे से मिलकर एक साथ जीवन यापन करने लगते हैं |प्राचीन काल में जब बिपरीत समय आता था तब पति पत्नी  सहनशीलता पूर्वक उस समय को पार कर लिया करते थे | उसके कुछ समय बाद फिर  के साथ प्रेम पूर्वक रहने लगते थे | इसलिए उस समय विवाह विच्छेद जैसी घटनाएँ घटित होते नहीं सुनी जाती थीं |  
    ऐसे ही शिक्षा चिकित्सा व्यवसाय नौकरी पद प्रतिष्ठा आदि सभी क्षेत्रों से संबंधित लोगों को अच्छे बुरे समय का सामना करना पड़ता है 
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