samay vigyaaan


  •      दो शब्द 
      किसी गतिशील बिंदु के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाने के अंतराल को ही समय  कहा जाता है।समय बदलने पर प्रकृति और जीवन में  घटनाएँ घटित होने लगती हैं| संसार के प्रत्येक जीव जंतु व्यक्ति वस्तु स्थान भाव परिस्थिति आदि में छोटे बड़े परिवर्तन हमेंशा होते रहते हैं | सृष्टि में जो कुछ जैसा पहले दिखाई पड़ रहा होता है बाद में उसमें कुछ बदलाव आ गया होता है  बाद में वो वैसा नहीं रहता है | ऐसे परिवर्तनों को देखकर ही समय के बीतने का अनुभव होता है| ऐसे परिवर्तन न हों तो समय बीत रहा है | ये पता ही नहीं लग पाएगा | 
        विशेष बात ये है कि इतने विराट ब्रह्मांड में इतने बड़े स्तर पर परिवर्तन करने वाली इतनी शक्तिशाली परिवर्तक ऊर्जा कहाँ से आती है|जिससे छोटे से छोटे परमाणु से लेकर ब्रह्मांड में होने वाले बड़े से बड़े परिवर्तन प्रतिपल होते रहते हैं |इन परिवर्तनों के होने के लिए जिम्मेदार कारण क्या है |  
         समयविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो परिवर्तन समय का स्वभाव है| समय ही ऐसे परिवर्तनों को करने वाली परिवर्तक ऊर्जा है| जिस प्रकार से नदियों में बहने वाली जलधारा की गति कहीं तेज कहीं धीमी होती है | वही जलधारा  नदियों के कुंडों में घूमते हुए जलती है| ये नदी की धारा का स्वभाव है |इसलिए नदी की धारा में बह रही प्रत्येक वस्तु को जलधारा के अनुसार ही बहना पड़ता है | ऐसे ही हवा में उड़ने वाली प्रत्येक वस्तु को हवा के अनुसार ही धीरे तेज या धूमते हुए उड़ना पड़ता है | 
        इसीप्रकार से संसार में सबकुछ समय के आधीन होकर समय की धारा में बहता जा रहा है | समय परिवर्तनशील होने के कारण सबकुछ समय के साथ ही बदलता रहता है| समय के अनुसार ही प्रकृति और जीवन में बदलाव होते रहते हैं| समय जब जैसा चल रहा होता है तब तैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं|भूकंप आँधी तूफान वर्षा बादल चक्रवात बज्रपात तथा महामारी जैसी घटनाओं का जन्म भी समय जनित परिवर्तन का ही परिणाम होता है|
         कुलमिलाकर इस विराट ब्रह्मांड  की प्रत्येक वस्तु को समय के अनुसार परिवर्तित होना पड़ता है| जीवन संबंधी जन्म मृत्यु रोग महारोग सुख दुख हानि लाभ संयोग वियोग आदि समय के साथ होते रहने वाले परिवर्तन ही तो हैं|जो मनुष्य ऐसा नहीं करता है वो असफल होता है,वो अस्वस्थ चिंताग्रस्त हैरान परेशान होकर समय पीड़ित होकर जीवन जीता है |     
        संसार में कोई कविता हो या कार्य हो, ये सभी एक बार बनाए जा चुके हैं |अब इन्हें केवल खोजना है !कोई कवि किसी कविता को बनाता नहीं प्रत्युत खोजता है |कोई वैज्ञानिक या सामान्य व्यक्ति किसी कार्य को करता नहीं प्रत्युत खोजता है |समय के गर्भ में उस कार्य कविता या अनुसंधान का गर्भप्रवेश  हो चुका होता है |इसी प्रक्रिया से संपूर्ण ब्रह्मांड में कब क्या घटित होना है | यह सबकुछ निश्चित है | प्रकृति और जीवन में जब जो घटित होना है वो भी निश्चित है | भूकंप आँधी तूफान वर्षा बादल चक्रवात बज्रपात तथा महामारी जैसी घटनाओं का जन्म भी समय के गर्भ में हो चुका है | इनमें से जब जिस घटना के प्रसव होने या घटित होने का समय आएगा तब वो घटना घटित हो जाएगी |
         ब्रह्मांड रचयिता ईश्वर ने  इससंसार को छुपंछुपाई का खेल बना दिया है| इसमें सबकुछ बनाकर छिपा दिया गया है |मनुष्यों को उसे खोजने का काम सौंपा गया है |जिसे जो चाहिए वो खोज ले| 
                                                        
                                                                  भूमिका 

         आँखें खराब होने के कारण कुछ लोग देखने में असमर्थ होते हैं | ऐसे दृष्टिबाधित(अंधे) लोग अपने व्यवहार को गणित के आधार पर व्यवस्थित कर लेते हैं | कितने कदम चलने के बाद कौन स्थान आ जाएगा |कितने बार गिनती गिनने के बाद या कौन सा मंत्र कितना जपने के बाद कितना समय हो जाएगा आदि आदि|ऐसे कई लोगों का इतना अच्छा अभ्यास हो जाता है कि वे कब कितना बज रहा है | इसका लगभग सही अंदाजा लगा लेते हैं | 
        ऐसे ही दिव्यदृष्टि के बिना न तो समय को देखा जा सकता है और न ही समय के गर्भ में पल बढ़ रही उन घटनाओं को देखा जा सकता है |जो भविष्य में घटित होनी हैं | दिव्यदृष्टि बड़े बड़े साधकों महात्माओं तपस्वियों भक्तों को ईश्वर के द्वारा कृपापूर्वक प्रदान की जाती है |जिसके द्वारा तपस्वी ऋषि मुनि आदि साधक भक्तगण  ब्रह्मांड की प्रत्येक घटना को दिव्यदृष्टि से देख लेते हैं किंतु  दिव्यदृष्टि प्राप्त करना हर किसी के लिए संभव नहीं है |इसलिए दिव्यदृष्टि के अभाव में समयजनित (प्राकृतिक) घटनाओं को समझने  एवं इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए संभावित समय संचार को गणित के द्वारा ही समझना पड़ता है | 
        समयजनित प्रत्येक प्राकृतिक घटना समय के गर्भ में पड़े पड़े अपने घटित होने के समय की प्रतीक्षा कर रही होती है | जिस प्रकार की घटना के घटित होने का जब समय आता है तब वो अपने समय पर घटित होती चली जाती है| भूकंप आँधी तूफान वर्षा बादल चक्रवात बज्रपात तथा महामारी जैसी घटनाएँ भी अपने अपने निर्धारित समय पर ही घटित होती हैं |समय के संचार को न समझने के कारण ये अचानक घटित होती सी प्रतीत होती हैं |
          इस विराट ब्रह्मांड की भाषा गणित ही है| इसी भाषा में ब्रह्मांड की संरचना की पटकथा (स्क्रिप्ट) आदिकाल में ही लिखी जा चुकी है |सूर्य चंद्र आदि ग्रहों एवं  अश्वनी आदि नक्षत्रों को कब कहाँ पहुँचना है |ग्रहों की गति इनके उदय अस्त होने का निश्चित समय तथा ऋतुओं के आने और जाने का समय गणित के द्वारा ही सैकड़ों वर्ष पहले पता लगा लिया करते हैं| ऐसे ही सूर्य चंद्र ग्रहणों में से किस ग्रहण को कब कितने समय पर कितने समय के लिए पड़ना है | ये सब कुछ इसी गणित के द्वारा ही सैकड़ों वर्ष पहले पता लगा लिया जाता है |  
       ग्रहणों की तरह ही सभी प्रकार की समयजनित भूकंप आँधी तूफान वर्षा बादल चक्रवात बज्रपात तथा महामारी जैसी घटनाएँ भी उसी भाषा में उसी समय लिखी जा चुकी हैं | उन्हें गणित विज्ञान के आधार पर खोजे जाने की आवश्यकता है |प्राचीन काल में ऐसा ही होता रहा है | गणितवेत्ता लोग गणित के द्वारा समय में होने वाले बदलावों एवं समयजनित प्राकृतिक घटनाओं को समझने एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाने का प्रयत्न करने के लिए निरंतर अनुसंधान किया करते हैं |भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बादलों चक्रवातों बज्रपातों आदि की समयसारिणी को गणित भाषा से ही लिखा गया है उस समयसारिणी को खोजे जाने की आवश्यकता है |   
       जिसप्रकार से किसी ट्रेन की समयसारिणी देखकर ही महीनों पहले पता लगाया जा सकता है कि किस ट्रेन को किस दिन कितने बजे किस स्टेशन पर पहुँचना है | इसीप्रकार से गणितविज्ञान के द्वारा भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बादलों चक्रवातों बज्रपातों की भी समयसारिणी को खोजकर उसके आधार पर ये पता लगाया जा सकता है कि इनमें से कौन घटना कब घटित होने वाली है | जिस प्रकार से समयसारिणी देख लेने के बाद ट्रेनों को प्रत्यक्ष देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है | ट्रेन आने जाने के विषय में सही सही पूर्वानुमान पता लग जाता है | 
       इसी प्रकार से समयजनित प्राकृतिक घटनाओं की समय सारिणी खोज लेने के बाद उनके विषय में सही पूर्वानुमान पता लग जाता है |उन्हें देखने के लिए उपग्रहों रडारों से देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है | प्राचीन युग में उपग्रहों रडारों की सुविधा नहीं थी | सुपर कंप्यूटर नहीं थे | उस युग में भी ऐसी घटनाओं के  विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिए जाते थे | महाकवि घाघभंडरी  के समय भी ऐसी कोई सुविधा नहीं थी, फिर भी वे न केवल प्राकृतिक घटनाओं के विषय में सहीसही  पूर्वानुमान लगा लिया करते थे ,प्रत्युत वैसे सूत्रों का निर्माण भी  कर लिया करते थे कि यदि ऐसा ऐसा होगा तो इस इस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित होंगी |  
        इसी प्रकार से  भूकंप कब कब आ सकते हैं |वर्षा किस वर्ष कैसी हो सकती है !आँधी तूफ़ान किन किन दिनों में आ सकते हैं | चक्रवात बनने की संभावना कब है !बज्रपात कब हो सकता है | महामारी किस वर्ष के किस महीने में प्रारंभ हो सकती है | महामारी प्राकृतिक है या मनुष्यकृत इसका पता भी उसी गणितविज्ञान के द्वारा लगाया जा सकता है | ऐसे ही जीवन से संबंधित बहुत सारी घटनाओं के घटित होने का निश्चित समय खोजने के लिए भी गणितीय प्रक्रिया के आधार पर अनुसंधान किए  जा सकते हैं | 
        प्राचीनकाल  में चिकित्सा वैज्ञानिक गणित विज्ञान के भी विद्वान हुआ करते थे | इसलिए गणित विज्ञान के द्वारा रोगों महारोगों के विषय में पूर्वानुमान लगाकर पहले से ही रोकथाम करने के उद्देश्य से चिकित्सा प्रारंभ कर दिया करते थे |इसलिए रोग बढ़ने नहीं पाते थे |
       आयुर्वेद के ग्रंथों में रोगी परीक्षा की गणितीय विधि बताई गई है कि कौन रोगी कितना साध्य या असाध्य है|महामारी का पूर्वानुमान लगाने की गणितीय विधि भी उन्हीं आयुर्वेद के ग्रंथों में बताई गई है किंतु गणितीय विधि से अनजान चिकित्सकों के द्वारा ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाता है और गणितीय विधि के विद्वान चिकित्साशास्त्र से अनजान होने के कारण ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगा पाते हैं | ऐसा करने के लिए चिकित्सा वैज्ञानिकों और  गणितवैज्ञानिकों के द्वारा संयुक्त अनुसंधानों को किए जाने की आवश्यकता है |    
                                                           विज्ञान का  मोह और महामारी |  
           
       अपने समाज को एक संयुक्त परिवार मान लिया जाए  और कोरोना महामारी में संक्रमितों एवं मृतकों को अपने परिवार के  ही  ऐसे स्वजन जिनका वियोग सहना अत्यंत कठिन हो रहा हो| सारा रोजी रोजगार बंद हो गया हो | परिवार  इस भयानक सदमे से उबरने का प्रयास कर रहा हो | ऐसे समय में ये बिचार किया जाना आवश्यक हो जाता  है कि इस समय महामारी जैसा संकट आना ही था | महामारी से जितने अधिक लोग संक्रमित हुए या जिनकी मृत्यु हुई वो होनी ही थी या इसे उपायों के द्वारा टाला भी जा सकता था | यदि हमें विश्वास है कि ऐसा होना ही था तब तो कोई बात नहीं जो हुआ सो हुआ और यदि उपायों के द्वारा उनकी सुरक्षा की जा सकती थी तो क्यों नहीं की जा सकी | 
         या उसे उपायों के द्वारा क्या उनकी सुरक्षा की जा सकती थी | जिससे लोग संक्रमित न होते या कम होते तथा उपायों से मृतकों का जीवन सुरक्षित बचा लिया जाता | 


    कोरोना महामारी के समय जब तेजी से संक्रमण बढ़ता जा रहा था | संक्रमितों में बहुत लोग मृत्यु को प्राप्त होते जा रहे थे | 
           भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ लगभग तीन युद्ध लड़े हैं,उन तीनों युद्धों में जितने लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं उससे कई गुणा  अधिक लोग केवल कोरोना महामारी में ही मृत्यु को प्राप्त हुए हैं |  
        उपग्रहों रडारों या सुपर कंप्यूटरों से प्राप्त दृश्यों गणनाओं के आधार पर केवल उन्हीं घटनाओं को देखा समझा जा सकता है | जो कहीं किसी रूप में पैदा हो चुकी हैं | प्रत्यक्ष दिखाई दे रही होती हैं |उस प्रकार की घटनाएँ इसके बाद कहाँ जाकर घटित होंगी |ये उनकी गति और दिशा के अनुसार अंदाजा लगाया जाता है |हवा का रुख बदला तो भविष्यवाणियाँ बदल जाती हैं|इस प्रक्रिया में न तो कहीं विज्ञान है और न ही  अनुसंधान हैं | 
        भूकंप महामारी जैसी घटनाओं के विषय में तो ऐसे जुगाड़ भी नहीं हैं | जिनके आधार पर कुछ झूठ साँच भी बोला जा सके द्वारा ऐसी घटनाओं के विषय में अंदाजा  लगाया जा सकता हो | 

                                                                     भूमिका 

         ब्रह्मांड की भाषा गणित है| ब्रह्मांड को समझना है तो गणित के आधार पर ब्रह्मांड के स्वभाव को समझना होगा | समय को समझने के दो ही माध्यम होते हैं एक तो गणित के आधार पर समझा जा सकता है और दूसरा प्राकृतिक लक्षणों के आधार पर समझा जा सकता है| गणित के आधार पर तो किसी भी प्राकृतिक घटना के स्वभाव को समझा जा सकता है| भविष्य में घटित होने वाली कितने भी पहले की घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है| गणित का विस्तार असीम है | इसी  गणितीयप्रक्रिया से सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले सही पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | 

        प्रत्यक्ष प्राकृतिक लक्षणों के आधार पर अल्पअवधि की घटनाओं को समझा जा सकता है|उनके विषय में अंदाजा लगाया जा सकता है किंतु इसके आधार पर मध्यावधि या दीर्घावधि घटनाओं को समझना संभव नहीं है और उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाना भी संभव नहीं है |

        इसीलिए प्राकृतिकघटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगाने के लिए दोनों ही विधाओं के आधार पर पूर्वानुमान लगाना आवश्यक है |गणित के द्वारा सही पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं| उस गणितीयप्रक्रिया में कोई गलती न रह गई हो| जिससे लगाए गए पूर्वानुमान गलत न निकल जाएँ| इसके लिए उस मुख्यघटना के घटित होने से पहले प्राकृतिक वातावरण में घटित हो रही घटनाओं या उस समय के प्राकृतिक लक्षणों का अध्ययन करना आवश्यक होता है |इनके साथ गणितीय पूर्वानुमानों का मिलान करके उन पूर्वानुमानों को मजबूत बना लेना चाहिए ,ताकि उनकी सूक्ष्म सच्चाई का पता लगाया जा सके |  

          तीसरी प्रक्रिया के अंतर्गत कुछ तत्कालीन घटनाओं को एक स्थान पर घटित होते देखकर उनकी गति और दिशा के अनुसार उनके दूसरे स्थान पर पहुँचने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |  

        गणित के द्वारा सैकड़ों वर्ष पहले ये पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि किन वर्षों के किन महीनों के किन दिनों में कैसी वर्षा होगी |उन पूर्वानुमानों के अनुसार जो समय पता लगाया गया था | उस समय के कुछ पहले से प्राकृतिक लक्षणों को पैनी दृष्टि से देखना चाहिए |उन गणितीय पूर्वानुमानों से उन पूर्व लक्षणों का मिलान करना चाहिए |  इस विधि से जब यह निश्चय हो जाए कि वे गणितीय पूर्वानुमान सही हैं अर्थात वर्षा होगी | इसके बाद उन दिनों में कहाँ वर्षा होगी| यह पता लगाने के लिए प्रत्यक्ष प्राकृतिक लक्षणों के साथ साथ तत्कालीन बादलों आदि को उपग्रहों रडारों आदि के माध्यम से देखा या पहचाना जा सकता है कि ये किस गति से किस ओर जा रहे हैं |उसी के अनुसार अनुमान लगा लिया जाता है | 

        ऐसे ही किसी बड़े तूफ़ान या चक्रवात के पैदा होने के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |उस दिन तूफ़ान पैदा होगा |गणित विज्ञान के द्वारा ऐसा निश्चित हो जाने के बाद यह पता लगाना आवश्यक होता है कि यह तूफ़ान किस देश की ओर जाएगा | उपग्रहों रडारों आदि के द्वारा उसकी गति एवं दिशा को देखकर तूफ़ान से प्रभावित होने वाले देशों का पता लगा लिया जाता है | 

            कई बार एक दो सप्ताह तक लगातार वर्षा और बाढ़ होते देखी जाती है या एक दो सप्ताह के अंदर कई बार अनेकों तूफान आ जाते हैं | ऐसी वर्षा बाढ़ या तूफ़ान आदि कब तक आते रहेंगे और इस वर्ष इतनी अधिक संख्या में इनके  आने का कारण क्या है और कब तक ऐसा चलता रहेगा | इसका सही पूर्वानुमान लगाने के लिए  गणित विज्ञान के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान ही नहीं है | उपग्रहों रडारों के द्वारा तो केवल देख देख कर बताया जा सकता है कि किसी देश विशेष की ओर बादल या आँधी तूफ़ान बढ़ रहे हैं,लेकिन ये वर्षा कब तक होती रहेगी या ये तूफ़ान कब तक आते रहेंगे | इसे उपग्रहों रडारों के माध्यम से पता किया जाना संभव नहीं है |

          भविष्य में झाँकने के लिए कोई विज्ञान है नहीं !इसलिए प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है | किसी एक स्थान पर बरस रहे बादलों या घटित हो रहे आँधी तूफानों को उपग्रहों रडारों से देखकर उनकी गति कितनी है और किस दिशा की ओर जा रहे हैं उसके आधार पर यह अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कितने घंटे में किस देश या प्रदेश में पहुँच सकते हैं | 

        भूकंप और महामारियों को आते हुए उपग्रहों रडारों से देखा नहीं जा सकता है इसलिए इनके विषय में पूर्वानुमान के नाम पर अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता !जो लगाया भी जाता है वो गलत निकल जाता है | गणित विज्ञान के द्वारा ऐसी घटनाओं के विषय में भी अनुसंधानपूर्वक  पूर्वानुमान लगाए  जा सकते हैं | 

                                                                              अपनी बात 

         हमारे पिता पं श्री श्याम सुंदर वाजपेयी जी श्री करपात्री जी महाराज के शिष्य रहे थे | मैं 5 वर्ष का था तभी  पिता जी का देवलोक गमन हो गया था |वे विभिन्न शास्त्रीय विद्याओं में पारंगत होने के साथ साथ ज्योतिषशास्त्र के उद्भट विद्वान थे | उनके द्वारा किए गए अनुसंधानों से मुझे न केवल प्रेरणा मिली प्रत्युत पिता जी के ग्रंथ अनुसंधान आदि मुझे परंपरा से प्राप्त हुए | उन्हीं के आधार पर प्रकृति और जीवन से संबंधित प्राकृतिक घटनाओं के विषय में गणितीय अनुसंधान हमने लगभग 1980 में प्रारंभ कर दिए थे !उस समय वर्षा आँधी तूफानों आदि के विषय में पूर्वानुमान लगाया करते थे | उनमें से काफी पूर्वानुमान सच निकल जाया करते थे |अनुसंधानों में जो कमी छूट रही थी उसके लिए मुझे ज्योतिषमर्मज्ञ गुरु की आवश्यकता थी |इसके लिए सन 1986 में मैं वाराणसी में पढ़ने गया | वहाँ मुमुक्षु भवन के छात्रावास में रहकर गुरुजनों के घर जाकर उनसे अध्ययन करता था | विभिन्न गुरुजनों से अध्ययन किया आशीर्वाद लिया | उनमें गुरुवर पं श्री सत्यनारायण त्रिपाठी जी से ज्योतिष विद्या एवं वात्सल्य दोनों प्राप्त हुए और जिसके फलस्वरूप ज्योतिष के क्षेत्र में मेरी भी प्रतिष्ठा बनने लगी |

            सन 1990 में विश्व हिंदू परिषद के श्रीमान अशोक सिंघल जी मुमुक्षु भवन एक कार्यक्रम में आए | जिसमें मेरा भी कवितापाठ हुआ |उनसे ज्योतिष विषय परिचय हुआ | उन्होंने अगले दिन मुझे दीनदयाल जालान जी के घर बुलाया | अगले दिन मैं उनके घर गया जहाँ श्रीमान अशोक सिंघल जी तो थे ही आचार्य गिरिराज किशोर जी भी थे | उन्होंने हमसे हमारे ज्योतिष  संबंधी अध्ययन के विषय में बात की | इसके बाद कहा कि क्या कारण है कि ज्योतिष विद्वानों के द्वारा ज्योतिष शास्त्रीय क्षमता के विषय में जितने अच्छे भाषण दिए जाते हैं उतने अच्छे कार्य नहीं हो पाते हैं |ये तो कहा जाता है कि ज्योतिष के द्वारा मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ,किंतु क्या कारण है कि कोई ज्योतिषी ऐसा करके प्रत्यक्ष दिखा नहीं पाता है |दूसरी बात विद्वानों के भाषणों में यज्ञों के द्वारा बड़ी बड़ी प्राकृतिकआपदाओं या महामारियों को शांत करने की बातें तो की जाती हैं,किंतु जब प्राकृतिकआपदाएँ घटित होती हैं तब उन्हीं यज्ञों के द्वारा प्राकृतिकआपदाओं या महामारियों को शांत करना संभव नहीं हो पाता  है | इसलिए प्राचीनविज्ञान को जो सम्मान मिलना चाहिए, वो नहीं मिल पाता है| इन दोनों बातों को प्रमाणित किया जाना यदि संभव हो तो तुम इसके लिए अध्ययन अनुसंधान आदि कुछ करो | 

           इसके बाद मैं उसी प्रकार के अनुसंधानों एवं अनुष्ठानों की दिशा में लगातार प्रयत्नशील रहा |सन 2012 से इस दिशा में काफी विश्वसनीय परिणाम प्राप्त होने लगे |इसके बाद मौसमसंबंधी पूर्वानुमान मैं भारतीयमौसमविज्ञान विभाग को भी भेजता रहा हूँ | जो सही निकलते रहे हैं | कोरोना महामारी की लहरों के विषय में जो जो पूर्वानुमान सरकार की मेलपर भेजता रहा हूँ | इसके साथ ही भारत में भयावह होती जा रही महामारी की दूसरी लहर को घोषित तारीख पर ही मैंने अनुष्ठान के द्वारा रोकने में सफलता प्राप्त की है|इन बातों के स्पष्ट प्रमाण आज भी सरकार की मेलों पर देखे जा सकते हैं | 

            वर्तमानसमय प्रचलित अनुसंधान विधाएँ मौसम एवं महामारी को समझने एवं इनके विषय में पूर्वानुमान लगाने में कितनी उपयोगी सिद्ध हो पाती हैं !इसका अनुभव समाज को है किंतु अपने अनुसंधानों के विषय में मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि प्राकृतिक घटनाओं से पीड़ितों के लिए मेरे अनुसंधान बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं | इनके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं या महामारियों के विषय में पूर्वानुमान तो लगाया जा ही सकता है |यज्ञों के द्वारा प्राकृतिक आपदाओं  से संभावित नुक्सान को घटाकर सुरक्षित बचाया जा सकता है | 


    दो शब्द (समय विषयक )

    भूमिका (समय और महामारी विषयक )

     अपनी बात !(समय विषयक) 
    _________________________________
    पूर्वानुमान (मेलें)
     _______________________________
    महामारी पर नियंत्रण (मेल)
    ______________________________________ 


                                                              समय और गणितविज्ञान !
        समय का संचार तीन प्रकार का होता है |एक तो समय के अनुसार प्रकृति में कुछ निश्चित बदलाव होते हैं| दूसरा समय के अनुसार जीवन में कुछ निश्चित बदलाव होते हैं |तीसरा समय संचार के अनुसार प्रकृति और जीवन दोनों में बदलाव होते हैं |   
        प्रकृति में बरष ऋतुएँ महीना दिन रात प्रातः सायं आदि हैं| सृष्टि में ऐसा सबकुछ तो हमेंशा से होते आया है और हमेंशा ही होता रहेगा |  प्रकृति में सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ  आती जाती हैं |ऋतुओं के अनुसार ही संपूर्ण प्रकृति में ऐसे परिवर्तन होते रहते हैं |जो हमेंशा से होते देखे जाते रहे हैं | सर्दी में सर्दी का आना कोहरा पाला आदि आदि पढ़ना तापमान कम  हो जाना आदि इसी के अनुसार बृक्षों बनस्पतियों अनाज के पौधों शाक सब्जियों आदि में बदलाव होते रहते हैं |ऐसा सभी ऋतुओं में होता है | ऋतुओं के अनुसार प्राकृतिक वातावरण में बदलाव होते हैं| ऋतुओं के प्रभाव से बृक्षों बनस्पतियों अनाज के पौधों शाक सब्जियों आदि में भी ऋतुओं के अनुसार बदलाव होते देखे जाते हैं | 
        इसीप्रकार से जीवन में बचपन जवानी बुढ़ापा  जन्म मृत्यु आदि घटनाएँ प्रत्येक जीवन में समय के साथ साथ घटित होती ही हैं | 
        विशेष बात ये है कि प्रकृति और जीवन में अचानक कोई घटना नहीं घटित होती है| सभी प्राकृतिक घटनाएँ पूर्व निर्धारित होती हैं,किंतु कुछ प्राकृतिक घटनाएँ ऐसी भी होती हैं | उनका समय बर्षों ऋतुओं महीनों दिनों आदि की तरह निश्चित नहीं होता है कि इतने इतने समय के अंतराल में इस प्रकार की घटनाएँ हमेंशा घटित होंगी ही |इसीलिए सूर्यचंद्र ग्रहण भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान च्रक्रवात बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाएँ अलग अलग समय पर अलग अलग स्थानों पर अलग अलग आकार प्रकार की घटित होती हैं| ऐसी घटनाओं के घटित होने का समय  भी निश्चित होता है |ये घटनाएँ अपने अपने निश्चित समय पर घटित होते देखी जाती हैं| किस वर्ष के किस महीने के किस दिन कौन सी घटना घटित होनी है | ये अनुसंधान पूर्वक खोजना होता है |
        ऋतुओं के आते ही ऋतुप्रभाव दिखाई पड़ने लग जाता है|शिशिर ऋतु आते ही तापमान काफी गिर जाता है आकाश में कोहरा पाला छा जाता है | बसंतऋतु आने पर बृक्षों में पतझड़ होकर नई नई कोपलें निकलने लगती हैं| ग्रीष्मऋतु में तापमान बढ़ जाता है|नदियों तालाबों का पानी सूखने लग जाता है| उस प्रकार की गरम हवाएँ चलने लगती हैं |आकाश धूल धूसरित हो जाता है | वर्षा ऋतु आते ही उसी आकाश में बादल छा जाते हैं | चारों ओर काली काली घटाएँ घिर आती हैं | वर्षा होने लगती है | बाढ़ जैसे दृश्य दिखाई पड़ते हैं | 
        इसमें विशेष बात यह है कि शिशिर ऋतु आने पर जिस आकाश में कोहरा पाला छा जाता है|तापमान कम हो जाता है |ग्रीष्मऋतु आने पर तापमान बढ़ जाता है और आकाश धूल धूसरित हो जाता है |वर्षा ऋतु  आने पर उसी आकाश में बादल छा जाते हैं |धरती और आकाश हमेंशा एक जैसे रहते हैं फिर भी आकाश या प्राकृतिक वातावरण  में होने वाले ऐसे बदलावों  का कारण समय नहीं तो दूसरा और क्या हो सकता है अर्थात समय ही है |  
        कुलमिलाकर प्राकृतिक वातावरण समय के प्रभाव से प्रभावित होता है|समय एक जैसा कभी नहीं रहता है | उसमें हमेंशा अच्छे या बुरे बदलाव होते रहते हैं | समय में अच्छे बदलाव होते हैं तो प्रकृति और जीवन में अच्छी घटनाएँ घटित होती हैं और यदि बुरे बदलाव होते हैं तो प्रकृति और जीवन में बुरी घटनाऍं घटित होने लगती हैं |प्रकृति में किस वर्ष के किस महीने के किन दिनों में किस प्रकार की घटना घटित होने की संभावना है|इसका पूर्वानुमान लगाने के लिए पहले उस समय  का पूर्वानुमान लगाना होगा कि उस कालखंड में समय कैसा चल रहा होगा उसी के अनुसार घटनाएँ घटित होंगी | 
         समय कैसा चल रहा होगा |यह समझने के लिए भारत के प्राचीन गणितविज्ञान को समझना होगा | जिसके आधार पर सूर्य चंद्रग्रहणों के विषय में सही पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं |उसी गणित के आधार पर भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान च्रक्रवात बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं |
        जिस समय नीचे पृथ्वी में कोई हलचल नहीं होती, ऊपर आकाश भी बिल्कुल शांत होता है |उसी शांत वातावरण में अचानक भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान च्रक्रवात बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाएँ किसकी प्रेरणा से घटित होने लग जाती हैं | इतनी बड़ी बड़ी घटनाओं के घटित होने के लिए समय के अतिरिक्त इतनी भयंकर ऊर्जा और कहाँ से मिल सकती है !अर्थात समय ही सबसे अधिक शक्तिशाली है |समय सबकुछ बना बिगाड़ सकने में सक्षम है | इतने विशाल सूर्य चंद्र और पृथ्वी के पिंडों को एक सीध में खीच कर खड़ा करने वाला समय है|समय के आधार पर ही यह समझा जाता है कि कौन ग्रह कब कहाँ पहुँचेगा |
      कुलमिलाकर समय के संचार को समझने में एक मात्र गणित विज्ञान ही सक्षम है |सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले सही पूर्वानुमान लगाकर  गणितवैज्ञानिकों ने तो अपनी पूर्वानुमान लगाने की क्षमता को प्रमाणित करके यह सिद्ध कर दिया है कि गणित विज्ञान के द्वारा भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान च्रक्रवात बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा सकते हैं | किसी दूसरी विधा के वैज्ञानिकों के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अभीतक  ऐसा करने का साहस नहीं जुटाया जा सका है | इसलिए प्राकृतिक वातावरण को समझने के लिए गणित के अतिरिक्त कोई दूसरा ऐसा विज्ञान नहीं है |जिससे संबंधित वैज्ञानिकों के द्वारा प्रकृति को समझने की क्षमता को प्रमाण पूर्वक प्रस्तुत किया जा सका हो | 
                                                समय के प्रभाव से कैसे पैदा होती है महामारी !

        सृष्टि के निर्माण से लेकर उसके संरक्षण संचालन आदि में ऋतुओं की बहुत बड़ी भूमिका है|इनके उचित प्रभाव को पाकर ही प्राकृतिक वातावरण रहने लायक बन पाता है | इनके उचित प्रभाव का सेवन करके ही मनुष्य जीवन सुरक्षित रह सकता है| 
         ऋतुओं का आना जाना तो हर वर्ष लगा रहता है किंतु उनका प्रभाव हमेंशा एक जैसा नहीं रहता है| ऋतुओं का प्रभाव किसी वर्ष कम तो  किसी वर्ष अधिक होता है| कई बार कुछ ऋतुओं का प्रभाव  अपने निर्धारित समय से कम समय तक रहता है तो किसी वर्ष अधिक समय तक रहता है |ऋतुओं का प्रभाव असंतुलित होते ही प्राकृतिक वातावरण साँस लेने लायक नहीं रह जाता है | ऐसे वातावरण में साँस लेने से शरीर रोगी होने  लगते हैं | 
            आयुर्वेद में जिस कफ पित्त वात की चर्चा की गई है | वो शिशिर (सर्दी) ग्रीष्म (गर्मी) वर्षा  आदि ऋतुओं का प्रभाव ही तो है | जिस प्रकार से शरीरों में कफ पित्त वात की मात्रा असंतुलित होते ही शरीर रोगी होने लग जाते हैं | ऐसे ही प्राकृतिक वातावरण में कफ पित्त वात का आपसी अनुपात बिगड़ते ही प्राकृतिक वातावरण रोग पैदा करने वाला हो जाता है| इसप्रकार का असंतुलन यदि बहुत अधिक बढ़ जाता है तो महारोग अर्थात महामारी जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं  | 
        कभी कभी किसी एक ऋतु  का प्रभाव किसी दूसरी ऋतु में दिखाई पड़ता है |ऐसी परिस्थिति में  सर्दी और गर्मी की ऋतुओं में भी वर्षा होते देखी जाती है|कभी कभी तो दूसरी ऋतुओं में काफी अधिक वर्षा होने के कारण बाढ़ जैसे दृश्य देखे जाते हैं | 
         ऐसे ही सर्दी की ऋतु में तापमान जितना होना चाहिए |यदि उससे अधिक रहता है या कभी कभी वर्षाऋतु में तापमान अधिक बढ़ जाता है | इसप्रकार से ऋतुओं का प्रभाव जब असामान्य रूप से बढ़ने या घटने लगता है तब प्रकृति और जीवन दोनों में ही बिकार आने लग जाते हैं | 
         जिस प्रकार से भोजन निर्माण प्रक्रिया में या औषधि का निर्माण प्रक्रिया में जिन घटकद्रव्यों को जितनी मात्रा में डाला जाना होता है | यदि वे उतनी मात्रा में ही डाली जाएँ तभी उस खाद्य पदार्थ या औषधि का स्वाद सुंदर एवं प्रभाव उत्तम होता है | उनमें से कुछ द्रव्यों को यदि निर्धारित मात्रा से कम या अधिक डाल दिया जाए तो उस निर्मित भोजन या औषधि का स्वाद और प्रभाव दोनों बदल जाते हैं| यदि इस असंतुलन की मात्रा बहुत अधिक हो तो इनका स्वाद अत्यंत विकृत एवं स्वास्थ्य के लिए अहितकर हो सकता है | 
         इसीप्रकार से जिस ऋतु का जितना प्रभाव प्रकृति और जीवन के लिए आवश्यक होता है| ऋतुओं का प्रभाव उस निर्धारित मात्रा से कम या अधिक होगा तो प्राकृतिक उपद्रव शुरू होंगे तथा इसके न्यूनाधिक प्रभाव शरीर रोगी होने लगेंगे | 
        कुल मिलाकर प्रकृति और जीवन को जितनी मात्रा में वर्षा या तापमान की आवश्यकता होती है | उतनी मात्रा में   ही ये स्वस्थ रह सकते हैं |उस मात्रा से कम या अधिक ऋतु प्रभाव होने से प्राकृतिक वातावरण बिकारित होने लगता है|ऐसे वातावरण में  पैदा होने वाले बृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों अनाजों दालों शाक सब्जियों आदि में विकार पैदा होने लगते हैं | जिससे फल फूल अनाज दालें शाक सब्जी आदि भी रोगी होने  लग  जाते हैं | ऐसे वातावरण में साँस लेने से मनुष्य समेत समस्त जीव जंतु रोगी होने लगते हैं |
        ऐसे विकारित वातावरण में पैदा हुई या पली बढ़ी बनस्पतियाँ आदि  भी बिकारित होने लगती हैं | उन पर भी तो उसी प्रकार के वातावरण का प्रभाव पड़ा होता है | इसलिए जिस अनुपात में मनुष्य शरीरों में  जिन गुणों की कमी होने के कारण मनुष्य रोगी हुए होते हैं | मनुष्यों की तरह ही बनस्पतियों में भी उन गुणों की कमी उसी अनुपात में हो जाती है | 
         इसलिए ऐसे समय में मनुष्यों के शरीर जिस अनुपात में जिन तत्वों की कमी या अधिकता से रोगी रहे होते हैं | उन तत्वों की कमी या अधिकता उसी अनुपात में उस समय पैदा हुए फूलों फलों अनाजों दालों तथा शाक सब्जियों में भी होती है | इसलिए उन्हें खाने से भी उन तत्वों की भरपाई भोजन से भी नहीं हो पा रही होती है | उसी अनुपात में उन तत्वों की कमी या अधिकता उस समय की बनस्पतियों एवं अन्य औषधीय द्रव्यों में भी होती है | इसलिए ऐसे द्रव्यों से निर्मित औषधियों से भी ऐसे समय में रोगी हुए शरीरों  को कोई मदद नहीं मिल पाती है |  

           कुल मिलाकर ऐसे विकारित वातावरण में महामारी तीन प्रकार से पैदा होती और बढ़ती है | मनुष्य विकारित वातावरण में साँस लेने से रोगी होते हैं |विकारित वातावरण में  पैदा हुए फल फूल अनाज दालें शाक सब्जी आदि खाने से शरीरों में उन रोगों से लड़ने की क्षमता कमजोर हो चुकी होती है| विकारित वातावरण का प्रभाव उन बनस्पतियों एवं औषधीय द्रव्यों पर भी पड़ चुका होता है | जिनसे ऐसे रोगों की औषधियों का निर्माण किया जाता है | उन औषधियों में ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने की क्षमता ही नहीं रह जाती है | इसीलिए रोग दिनों दिन बढ़ते चले जाते हैं | 
         महामारी जनित रोगों में तथा अन्य समय के रोगों में एक अंतर होता है !महामारी के समय जिन तत्वों की कमियों या अधिकता से शरीर रोगी हो रहे होते हैं | उन तत्वों की उसी प्रकार की कमी या अधिकता उस समय के खान पान संबंधी वस्तुओं में भी होती है | उसी प्रकार की कमी या अधिकता बनस्पतियों एवं औषधीय द्रव्यों  में भी होती है इसलिए रोगों को नियंत्रित करने के लिए  कोई विकल्प होता ही नहीं है | 
          महामारी के अतिरिक्त सामान्य रोगों के समय ऐसा होता है कि केवल मनुष्य ही रोगी होते हैं |प्राकृतिक वातावरण रोगी नहीं होता है | खान पान की वस्तुओं में उस प्रकार के विकार नहीं होते हैं |बनस्पतियों एवं औषधीय द्रव्यों में उस प्रकार के बिकार नहीं होते हैं | इसलिए स्वस्थ हवा में साँस लेकर,स्वास्थ्य के अनुकूल भोजन करके एवं प्रभावी औषधियों का सेवन करके  ऐसे रोगों  से मुक्ति पा ली जाती है |महामारी में ऐसा किया जाना संभव नहीं होता है | इस समय मनुष्यों के साथ साथ खाने पीने की वस्तुएँ औषधियाँ आदि सबकुछ संक्रमित होती हैं | इसलिए रोग असाध्य होते चले जाते हैं |  

    समय का प्रभाव प्रकृति पर पड़ता है !
          गणित विज्ञान की समझ के अभाव में प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर भी अल्पकालीन समय के संचार को समझा जा सकता है | समय के आधार पर घटनाओं को समझा जाए या फिर घटनाओं के आधार पर समय को समझा जाए | ऋतुएँ जैसे ही आती हैं तो प्रकृति भी उसी प्रकार का आचरण करने लगती है | वर्षा बसंत में पतझड़ होना,हेमंत में  बीजों का अंकुरितहोना, काँसफूलना, ग्रीष्मऋतु की गर्मी होना,सर्दी में कोहरा पाला आदि | 
        
         अच्छी बुरी घटनाओं से समय के संचार का ज्ञान !
        जिसप्रकार से  दूर से देखने पर नदी के जल का बहाव नहीं दिखाई देता है किंतु नदी की धारा में बहते जा रहे काष्ठ खंड या पेड़ पौधे  आदि देखकर नदी की धारा के बहाव का अनुमान लगा लिया जाता है | ऐसे ही हवा दिखाई नहीं पड़ती है किंतु हवा में उड़ते हुए तिनकों पत्तों कपड़ों आदि को देखकर हवा के बहने का अनुमान लगा लिया जाता है | इसी प्रकार से निराकार समय को देखा नहीं जा सकता है किंतु  समय के आधार पर प्रकृति और जीवन में घटित हो रही घटनाओं को  देखकर उसके आधार पर समय के संचार का अनुभव कर लिया जाता है | 
        प्राकृतिक  या मनुष्यकृत घटनाओं में अंतर ! 
         जिसप्रकार से नदी में केवल एक वस्तु बह रही हो तो वो किसी मनुष्य की सहायता से या किसी यंत्र की सहायता से भी बहती हो सकती है किंतु पानी पर तैरने वाली भिन्न भिन्न प्रकार की अनेकों वस्तुएँ जब धारा में एक ही गति से बहती दिखाई पड़  रही हों  तो उसका कारण नदी की धारा का बहाव ही होता है | इसलिए ये घटना प्राकृतिक ही होती है|ऐसे ही कोई पतंग या खिलौना आदि आकाश में उड़ता जाता दिखे तो उसका कारण मनुष्यकृत प्रयत्न हो सकता है किंतु हवा में उड़ने वाली जब अनेकों वस्तुएँ एक ही गति से उड़ती दिखें तो इसका कारण प्राकृतिक ही हो सकता है | 
          महामारी प्राकृतिक थी या मनुष्यकृत !
          महामारी जैसी कोई भी मनुष्यकृत घटना किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित रहती है उसका विस्तार इतना अधिक नहीं हो सकता है|दूसरी बात मनुष्य किसी जगह माचिस की तीली जलाकर फ़ेंक तो सकता है,वहाँ वो तीली जलकर आग शांत हो जाएगी |उस तीली के जलने से आग भयंकर रूप तभी धारण कर सकती है,जब उस जलती हुई माचिस की तीली को ज्वलनशील ईंधन अधिक मात्रा में मिले| इसीलिए कोरोना महामारी पैदा होने के लिए किसी देश विशेष की प्रयोगशाला से निकले बिषाणुओं को जिम्मेदार मान भले लिया जाए,हो सकता है कि ऐसा हुआ भी हो किंतु उसे प्रकृति का उस प्रकार का सहयोग मिले बिना उस मनुष्यकृत महामारी का इतना अधिक विस्तार होना संभव न था कि वो संपूर्ण विश्व में फैल जाती |दूसरी बात मनुष्यकृत घटना से केवल मनुष्य परेशान हो सकते थे किंतु संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण में उसीप्रकार की उथल पुथल मनुष्यों के द्वारा की जानी संभव न थी |
         महामारी के समय तो पृथ्वी आकाश जल अग्नि वायु आदि से लेकर पेड़ों पौधों फूलों फलों आदि में प्राकृतिक रूप से उस प्रकार के परिवर्तन होने लगे थे |मनुष्य समेत सभी पशु पक्षी आदि  जीव जंतुओं को बारबार  बेचैन होते देखे जा रहे थे |इतना सबकुछ मनुष्यों के द्वारा किया जाना संभव न था | 
         
      पशु पक्षियों पर पड़ता है समय का प्रभाव !
    बसंत में कोयलें,वर्षा ऋतु में मेढक आदि! चातक पक्षी स्वाती नक्षत्र में बरसने वाले जल को बिना पृथ्वी में गिरे ही ग्रहण करता है | 
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    समय के अनुसार होते हैं स्वास्थ्य में बदलाव !
        ऋतुपरिवर्तन होने पर शरीर रोगी होने लगते हैं|अति गर्मी या अति सर्दी होने से भी शरीर रोगी होने लगते हैं !वर्षाऋतु आने पर शरीर रोगी होने लगते हैं | 
    पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान !  
         पूर्वानुमान लगाने का मतलब भविष्य की घटनाओं को देखना या उनके विषय में पता लगाना है | भविष्य की घटनाएँ देखने के लिए किसी ऐसे विज्ञान की आवश्यकता होती है | जिससे भविष्य में झाँका जा सके | इसके बिना भविष्य में  घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सकते हैं | 

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