वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए अनुमान 1008

महामारी विज्ञान के ब्लैक होल !

                   महामारी संबंधी अनुसंधानों से कितनी मदद मिली ?

          वैज्ञानिक अनुसंधान न हुए होते तो कितना नुकसान और हो सकता था ?
                                                  
                  महामारी विज्ञान 
                           भी 
                     दगा दे गया ?                                                   
__________________________________________________________________________जिन रोगोंके विषय में कुछ पता ही न हो किंतु वे दिनोंदिन नुक्सान  पहुँचाते   जा रहे हों उसे ही महामारी कहते हैं |  

कोरोना महामारी ------------------------------------        

                                         और 

                                              अपना अपना विज्ञान !

 महामारी विज्ञान का मतलब !   

   विज्ञान का अर्थ ही  है विशेषज्ञान।विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो अनुसंधान किसी उद्दिष्ट विषय की प्रकृति और सिद्धांतों को जानने के लिए  किए जाते हैं।इसमें साक्ष्य आधारित ऐसे अनुसंधानों की प्रमुख भूमिका होती है जो तर्क की कसौटी पर खरे उतरें |

   जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा एक से एक बड़े और नए-नए आविष्कार किए गए हैं, उनसे न केवल  संकटों  समस्याओं को कम किया जा सका है अपितु अपनी आवश्यकताओं की आपूर्ति को भी आसान बना लिया गया  है | इससे मनुष्य जीवन पहले की अपेक्षा अधिक आरामदायक हो गया है।इसीलिए  कोरोना महामारी से पीड़ित समाज को अपने उसी विज्ञान से बहुत बड़ी आशा थी किंतु वही विज्ञान आज अपेक्षित सहयोग करने में असमर्थ सा होता दिख रहा है | महामारी से बचाव के लिए वैज्ञानिक लोग जो भी अनुसंधानात्मक प्रयत्न कर रहे हैं | उनसे समाज को कुछ मदद नहीं मिल पा रही है | महामारी के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा जो जो कुछ बताया गया ,वह भी सही नहीं निकल पा रहा है | 

    महामारी से संबंधित घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार आधारभूत जो कारण वैज्ञानिकों के द्वारा बताए जा रहे हैं उन कारणों का घटनाओं के साथ कोई संबंध ही नहीं सिद्ध होता दिख रहा है | ऐसे कल्पित कारणों के आधार पर सही अनुमान पूर्वानुमान आदि कैसे लगाए जा सकते हैं | उनके द्वारा महामारी के विषय में जो जो कुछ बताया जा रहा है उसमें न तो पारदर्शिता होती है और न ही तर्क की कसौटी पर कसने लायक कुछ निकलता है | यहाँ तक कि उसके आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान भी सही निकलते नहीं देखे जा रहे हैं | वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी से बचाव के लिए  जो उपाय बताए जा रहे हैं उन उपायों का प्रभाव व्यवहार में प्रमाणित होता नहीं दिख रहा है | कोविड नियमों का पालन करने और न करने वाले दोनों में ही कोई विशेष अंतर नहीं दिखाई दे रहा है जबकि उपाय यदि प्रभावी हैं तो उनका परिणाम भी दिखाई पड़ना चाहिए था |

     ऐसे में प्रश्न उठता है कि उन नियमों को बनाने के लिए किस किस प्रकार के प्रतीक चुने गए थे अर्थात उन प्रतीकों का वैज्ञानिक आधार क्या है ? उनका परीक्षण किस प्रकार हुआ और वे कितने प्रभावी होते हैं | समाज यदि इस प्रभाव का अनुभव करना चाहे तो  किस प्रकार से कर सकता है |

    विशेष बात यह है कि जहाँ एक ओर साक्ष्य आधारित (Evidence-based) वैज्ञानिक अनुसंधानों की परिकल्पना की जाती है, वहीं दूसरी ओर न साक्ष्य दिखाई पड़ते हैं और न ही कोई साक्ष्य आधारित अनुसंधान और न ही उनसे कोई उस प्रकार का सकारात्मक परिणाम ही निकलता दिख रहा है |वैज्ञानिक अनुसंधानों के क्षेत्र में विज्ञान और अंधविश्वास की आपसी दूरी मिटती जा रही है |

    ऐसी परिस्थिति में वैज्ञानिकक्षेत्र में यदि तर्कसंगत प्रमाणों की परवाह नहीं की जाएगी तो सभी क्षेत्रों में अनुसंधानों का हाल महामारी जैसा ही हो जाएगा | वैज्ञानिक विषयों में  हर कोई अपने अपने मत व्यक्त करने लगेगा | महामारी के समय अनुसंधानों की शिथिलता का ही यह दुष्परिणाम था कि हर कोई महामारी से बचाव के लिए अपने अपने मनगढंत कारण बता रहा था,अनुमान व्यक्त कर रहा था,पूर्वानुमान बताने के नाम पर अफवाहें फैलाए जा  रहा था ! वही आधार विहीन लोग मनगढ़ंत उपाय और औषधियाँ बताते देखे  जा रहे थे जबकि महामारी के कठिन समय में आम समाज अपने वैज्ञानिकों से साक्ष्य आधारित अनुसंधानों की अपेक्षा कर रहा था | समाज चाह रहा था कि वैज्ञानिक वही बोलें जो विज्ञान सम्मत और सच हो ताकि उसका अनुपालन किया जा सके और उसके परिणाम भी दिखाई पड़ें |                      

                                     महामारियों की तैयारियाँ

     महामारियों का वेग बहुत अधिक होता है|ऐसे डरावने संकटकाल में नुक्सान तो तुरंत होना शुरू हो जाता है किंतु उस नुक्सान को तुरंत रोकने लायक कोई तैयारी ही नहीं होती है | ऐसी तैयारी करने के लिए साधन जुटाते जुटाते इतना समय यूँ ही निरर्थक बीत जाया करता है  सोचने समझने का समय मिल पाता है और न ही इतने कम समय में बचाव के लिए कुछ किया जाना संभव हो पाता है केवल खाना पूर्ति मात्र हुआ करती है| इसलिए बचाव के लिए पहले से करके रखी गई तैयारियाँ ही ऐसे अवसरों पर विशेष काम आ पाती हैं |

   महामारी आने के बाद तो जन धन की हानि होनी प्रारंभ हो ही जाती है इसलिए आवश्यक तैयारियाँ करके तो पहले से ही रखनी होती हैं !   ऐसा करने के लिए महामारी का आना आवश्यक नहीं होता है | इसके लिए महामारी के विषय में पहले से ही पूर्वानुमान लगाकर रखना पड़ता है | यदि पूर्वानुमान न लगाया जा सके तो अनुमान लगाकर उसी के आधार पर तैयारियाँ करके रखी जा सकती हैं| यदि अनुमान और पूर्वानुमान दोनों ही लगाकर रखना संभव न हो तो अभी तक आई हुई महामारियों से प्राप्त अनुभवों को आधार बनाकर महामारी से निपटने की अग्रिम तैयारियाँ करके रखी जा सकती हैं |  महामारी पहली बार तो आई नहीं होती है जो महामारी के आने पर ही इसके विषय में अध्ययन किया जा सकता है तभी कुछ पता लगेगा | वस्तुतः महामारियाँ तो हमेंशा से ही आती जाती रही हैं | उन्हीं अभी तक आई हुई महामारियों के आधार पर अनुभवों का संग्रह होता है | 

     ये सर्व विदित है कि महामारियाँ जब आती हैं तब अचानक ही आती हैं तथा भारी मात्रा में जनधन की हानि करती और चली जाती हैं |किसी भी महामारी को पूर्व सूचना देकर आते हुए कभी नहीं देखा गया है | इसलिए जिस किसी भी प्रकार से तैयारियाँ करके पहले से रखना संभव हो वो रास्ते अपनाए जाने चाहिए | महामारी से निपटने के लिए यदि कोई तैयारी पहले से करके नहीं रखी जा सकी है तो महामारी संबंधी अनुसंधान  जो हमेंशा चलते रहते हैं उनसे प्राप्त अनुभवों का उपयोग आखिर और कहाँ होता है | अनुसंधानों के नाम पर इतने लंबे समय तक जो कुछ होता रहता है उससे जनहित में परिणाम स्वरूप प्राप्त आखिर क्या होता है जो महामारी जैसे संकटों के समय काम आता है | महामारी आने के बाद ही यदि अनुसंधान होने होते हैं तो हमेंशा अनुसंधान करते रहने का औचित्य ही क्या रह जाता है |

     महामारी के स्वभाव लक्षण संक्रामकता आदि के विषय में यदि कुछ पता ही न हो तो महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए जो औषधियाँ  बनाई जा रही होती हैं उनका वैज्ञानिक आधार क्या होगा |  उन औषधियों का प्रभाव हो रहा है या नहीं ,यदि हो रहा है तो  कितना !ये किसी को कैसे पता चल पाता है |  

   प्रायः देखा जाता है कि वैज्ञानिकों के द्वारा जो बात एक बार बोली जाती है उसके गलत निकलते ही उसके बिपरीत कोई दूसरी बात बोल दी जाती है | कभी कभी वे दोनों बातें गलत निकलती हैं और कोई तीसरी घटना घटित होते देखी जा रही होती है | वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसे सभी मत मतांतरों का आधार विज्ञान को ही बताया जा रहा होता है ,किंतु ऐसा कैसे संभव है !ये क्या सबका अपना अपना विज्ञान होता है | यदि ये सभी विज्ञान ही है तो इससे निकले निष्कर्षों में  इतना बड़ा विरोधाभास होने का कारण क्या हो सकता है और उन परस्पर विरोधी बातों का उपयोग जनहित में कैसे किया जा सकता है |  

     कुलमिलाकर ऐसी  सभीप्रकार की घटनाओं के विषय में जनता जो अपने अनुभवों के आधार पर अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया करती है | यदि कुछ सही गलत वे बातें निकलती हैं तो  वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जाने वाले अनुमानों पूर्वानुमानों में भी यदि कुछ ही सही निकलेंगे तो जनता के तीर तुक्कों में और वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए अनुमानों पूर्वनुमानों में अंतर ही क्या रह जाएगा |महामारी जैसे इतने बड़े संकटकाल के समय में समाज को अपने वैज्ञानिकों से मजबूत मदद की अपेक्षा होती है | उस समय वैज्ञानिकों की ऐसी ढुलमुल बातें जनहित में उपयोगी कैसे हो सकती हैं | 

    महामारी कब पैदा हुई ! कैसे पैदा हुई ! कहाँ पैदा हुई ! इसके पैदा होने का कारण क्या है ! ये मनुष्यकृत है या प्राकृतिक ! इसका प्रसार माध्यम क्या है ! विस्तार कितना है !अंतर्गम्यता कितनी है ! संक्रामकता कितनी है !इसकी लहरों के आने जाने का कारण क्या है ! ये समाप्त कैसे होगी !आदि आवश्यक बातों का कोई संतोष जनक उत्तर खोजे बिना ही सीधे यह कह दिया जाए कि हमने तो महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए औषधि या वैक्सीन आदि खोज ली है तो यह बात इतनी आसानी से आम  जनता के लिए विश्वास करने योग्य नहीं होती है जैसा कि वैक्सीनेशन के प्रारंभिक दौर में देखा गया था | 

     कुल मिलाकर महामारी से निपटने के लिए यदि पहले से कोई तैयारी करके रखी ही न गई हो और महामारी आ जाने के बाद उसके विषय में अचानक कुछ तीर तुक्के लगाए जाने लगें तो उन्हें न तो विज्ञान सम्मत माना जा सकता है और न ही उसे इस प्रकार की तैयारी माना जा सकता है जिसके द्वारा महामारी जैसे संकट पर अंकुश लगाया जाना संभव हो  |

                                     समाज को वैक्सीन पर संशय क्यों हुआ ?     

     महामारी के समय में बार बार दिए गए वैज्ञानिकों के ऐसे ढुलमुल वक्तव्यों से समाज का विश्वास उठना स्वाभाविक ही था | इस अविश्वास की परिस्थिति यहाँ तक पहुँची कि महामारी जैसे इतने भीषण संकट से समाज को सुरक्षित बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने दिनरात परिश्रम करके जिस वैक्सीन  का निर्माण किया उस पर भी समाज भरोसा नहीं कर पा रहा था |

     इसका कारण यह था कि समाज का एक वर्ग इस संशय से जूझ रहा था कि किसी भी रोग या महारोग से मुक्ति दिलाने हेतु औषधि निर्माण करने के लिए रोग को पहचानना या रोग की प्रकृति को अच्छी प्रकार से समझना आवश्यक होता है | रोग को समझे बिना औषधि का निर्माण कैसे किया जा सकता है| 

     समाज की शंका स्वभाविक ही है कि जो वैज्ञानिक समुदाय महामारी से संबंधित किसी भी रहस्य का उद्घाटन नहीं कर सका है|  वही वैज्ञानिक लोग यदि किसी औषधि का निर्माण करके यह दावा करते हैं कि इससे महामारी से मुक्ति मिल सकती है |ऐसी बातों पर विश्वास किस आधार पर किया जा सकता है | जिन वैज्ञानिक अनुभवों अध्ययनों अनुसंधानों के द्वारा जिस महामारी के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाए जा सके,उन्हीं  अनुभवों अध्ययनों अनुसंधानों के आधार पर महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए कोई औषधि या वैक्सीन आदि कैसे बनाई जा सकती है | इसका प्रमाण यह है कि महामारी के विषय में लगाया गया प्रायः प्रत्येक अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत निकलता रहा है |

       चिकित्सा सिद्धांत के अनुशार  चिकित्सकों को अक्सर कहते सुना जाता है कि जिस रोग की प्रकृति पता न हो लक्षण पता हों ऐसे रोगों की चिकित्सा करना कठिन होता है | इसलिए किसी रोगी की चिकित्सा करने हेतु रोग की प्रकृति का पता लगना आवश्यक होता है |कोरोना महामारी के समय रोग की प्रकृति का पता लगे बिना भी रोगियों की चिकित्सा की जाती रही है | उनमें से जो रोगी स्वस्थ हो जाते हैं उनके स्वस्थ होने का श्रेय उस चिकित्सा पद्धति को दे  दिया जाता है और जो रोगी अस्वस्थ बने रहे या मृत्यु को प्राप्त हो जाते है उसके लिए महामारी को दोषी ठहरा दिया जाता है | 

    महामारीजनित संक्रमण का  प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर अलग अलग होते देखा जाता है | कुछ लोग संक्रमित होते हैं | कुछ बहुत अधिक संक्रमित होते हैं | कुछ बहुत कम संक्रमित होते हैं जबकि कुछ बिल्कुल ही संक्रमित नहीं होते हैं |इसके अतिरिक्त रोगियों के बलाबल के आधार पर भी चिकित्सा का निर्णय लिया जाता होगा | ऐसे सभीप्रकार के लोगों के लिए  कोई एक ही औषधि रोग मुक्तिदिलाने में कैसे सहायक हो सकती है | ये प्रश्न भी  समाज को आंदोलित करता है |

    प्लाज्मा थैरेपी जिसे लाभप्रद बताकर उससे बहुतों की चिकित्सा करने का दावा किया जाने लगा था |उससे बहुतों को जीवन दान मिला !ऐसा कहा जाने लगा था |  जिस वैज्ञानिक समुदाय के द्वारा प्लाज्मा थैरेपी की प्रशंसा में एक बार ऐसा सबकुछ बोला  जाता रहा इसके बाद उसी प्लाज्मा थैरेपी को उन्हीं वैज्ञानिकों ने न केवल निरुपयोगी बता दिया गया अपितु उसका प्रयोग ही बंद कर दिया गया |ऐसे अध्ययनों अनुसंधानों अनुभवों  प्रयासों से प्राप्त कोई भी औषधि आदि को कब निरुपयोगी बताकर बंद कर दिया जाएगा | समाज के मन में यह भी एक डर था |

     वैज्ञानिकों के एक वर्ग के द्वारा कहा जाता है कि कोरोना संक्रमितों पर मौसम का प्रभाव पड़ेगा तो वैज्ञानिकों के दूसरे वर्ग के द्वारा कह दिया जाता है कि मौसम का प्रभाव नहीं पड़ेगा !ऐसे ही वैज्ञानिकों के एक वर्ग के द्वारा कहा जाता है कि तापमान घटने बढ़ने का प्रभाव कोरोना संक्रमण पर पड़ेगा तो दूसरे वर्ग के द्वारा कहा जाता है कि कोरोना संक्रमण पर तापमान घटने बढ़ने का प्रभाव नहीं पड़ेगा | ऐसे ही वायुप्रदूषण के विषय में कहा जाता है कि वायुप्रदूषण कोरोना संक्रमण बढ़ने में सहयोगी होगा जबकि व्यवहार में देखा जाता है कि जिस समय वायु प्रदूषण बढ़ रहा होता है उस समय कोरोना संक्रमितों की संख्या कम हो रही होती है | दूसरी ओर जब वायुप्रदूषण घट रहा होता है उसी समय  कोरोना संक्रमण बढ़ रहा होता है |

      वैज्ञानिकों के द्वारा कोविडनियम इसलिए बनाए गए थे कि इनके पालन करने से कोविडसंक्रमण  से बचाव होगा किंतु बहुत साधन संपन्न वर्ग के लोगों ने कोरोनानियमों का पूर्ण पालन किया | वे एकांतबास करते हुए भी संक्रमित होते देखे गए |दूसरी ओर कमजोर वर्ग चाहकर भी कोविड नियमों का पालन मजबूरीबश नहीं कर सका ,उसके छोटे छोटे बच्चों को भोजन की लाइनों में लगना पड़ता  रहा है |घनी बस्तियों में छोटी छोटीजगहों में बहुत बहुत लोग एक ही साथ रहते खाते पीते नहाते धोते रहे,दिल्ली मुंबई सूरत जैसे शहरों से श्रमिकों का पलायन हुआ,दिल्ली में किसान आंदोलन में लोग बैठे रहे ! बिहार बंगाल आदि की चुनावी रैलियों में भीड़ें  उमड़ती रहीं,हरिद्वार में कुंभ आयोजित हुआ !ऐसी सभी जगहों में किसी भी प्रकार से न तो कोविड  नियमों का पालन हुआ और न ही कोरोना बढ़ा !ऐसी परिस्थिति में कोविडनियमों के पालन करने न करने के परिणामपर टोचिंतन किया ही जाना चाहिए | 

    प्रतिरोधक क्षमता के  द्वारा कोरोना संक्रमण से सुरक्षा होने की बात कही गई थी | जो साधन संपन्न वर्ग चिकित्सकों के हाथों में जन्म लेता है और वेंटिलेटर पर प्राण त्यागता है | सारे जीवन चिकित्सकों से पूछ पूछ कर खाता पीता है |यह वर्ग  एक से एक पौष्टिक पदार्थों का भोजन करता है |टॉनिक बिटामिन कैल्शियम आदि का उचित मात्रा में सेवन चिकित्सकों की सलाह पर किया करता है |इस वर्ग के शरीरों में वे सभी टीके समय से लगाए जा चुके होते हैं जो शरीरों की सुरक्षा करने में सहायक होते हैं | उनका रहन सहन वातानुकूलित होता है |ऐसी परिस्थिति में उनके शरीरों में तो प्रतिरोधक क्षमता साधन विहीन मजबूर वर्ग की अपेक्षा अधिक होनी चाहिए | इसलिए  संक्रमण से उनका बचाव भी अधिक होना चाहिए था,किंतु व्यवहार में इसका उल्टा होते देखा गया है |

      महामारी की एक एक लहर के विषय में कई कई वैज्ञानिकों के द्वारा कई कई प्रकार के पूर्वानुमान बताए जाते रहे हैं | कई बार एक ही लहर के विषय में एक ही वैज्ञानिक के द्वारा पूर्वानुमान के नाम पर कई कई बातें बोली जा रही हैं | एक भविष्यवाणी गलत होते ही दूसरी बोल दी जाती रही है और दूसरी गलत होते ही उस एक ही लहर के विषय में कोई तीसरी  भविष्यवाणी कर दी जाती रही है | ऐसी अलग अलग या परस्पर बिपरीत भविष्यवाणियों का आधार वैज्ञानिक कैसे हो सकता है | दूसरी बात  ऐसे भ्रमित अनुसंधानों से समाज को क्या लाभ मिल सकता है | ऐसे पूर्वानुमानों के आधार कोई योजना भी तो नहीं बनाई जा सकती है |ऐसे ढुलमुल पूर्वानुमानों से किसी भी प्रकार के जनहित की आशा कैसे की जा सकती है | 

     कुल मिलाकर किसी रोग या महारोग की चिकित्सा करने के लिए उसका निदान अर्थात रोग का परीक्षण सही होना चाहिए ! जिस रोग की प्रकृति को जितने अच्छे ढंग से पहचान लिया जाएगा उसकी चिकित्सा करना उतना ही अधिक प्रभावी एवं आसान होगा ! किसी रोग के विषय में सही जानकारी किए बिना उसके टीके आदि का निर्माण किया जाना कैसे संभव हो सकता है |विशेष बात यह है महारोग के स्वभाव को समझना अभी तक संभव नहीं हो  सका किंतु रोग से मुक्ति दिलाने वाले टीके का निर्माण  हो गया है | 

       वैज्ञानिकों के द्वारा पहले कहा गया था कि यदि महामारी का स्वरूप परिवर्तन हुआ तो वैक्सीन बनाने के काम में रुकावट आएगी ! इसके बाद महामारी का स्वरूप परिवर्तन भी होता रहा और  वैक्सीन भी  बन गई |

    कुलमिलाकर महामारी जैसे इतने बड़े संकटकाल से अपने को या अपने देश  समाज आदि को सुरक्षित बचाए रखने के लिए ऐसी भयानक घटनाओं के विषय में अग्रिम पूर्वानुमान लगाना सर्वाधिक आवश्यक होता है |इसके बिना महामारी से बचाव के लिए जो जो कुछ किया जाता है उससे समाज को ऐसी मदद मिल पाना केवल  कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है, जो महामारी से जूझती जनता की पीड़ा को कुछ कम कर सके | इसीलिए तरह तरह के वैज्ञानिक अनुसंधानों की परिकल्पना की गई है | इस प्रकार की जिम्मेदारी बड़े बड़े वैज्ञानिकों ने सँभाल रखी है किंतु  उनके प्रयासों के परिणाम कितने सकारात्मक रहे | समाज का ध्यान हमेंशा इस पर रहता है |

       महामारी के समय समाज इस चिंता से  जूझ रहा था कि  महामारी एवं उससे संबंधित लहरों के विषय में  सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाना चाहिए था |ऐसा क्यों नहीं किया जा सका ! अभी तक किए गए अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों से ऐसी कोई चिकित्सा व्यवस्था क्यों नहीं तैयार करके रखी जा सकी  जिसका उपयोग महामारी से जूझते समाज के बचाव के लिए तुरंत किया जा सकता हो | इसीलिए वैज्ञानिकों के वैक्सीन संबंधी वक्तव्यों पर समाज का विश्वास डिगता सा दिखाई दे रहा था ! 

               महामारी का जन्म कैसे हुआ !

     वैज्ञानिकों के एक वर्ग ने महामारी को मनुष्यकृत बताया तो दूसरे वर्ग ने प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ बता दिया  | इन्हीं दोनों में से कोई बात तो सही निकलेगी और जो सही निकलेगी वो भी किसी वैज्ञानिक के द्वारा ही कही हुई होगी |इसलिए दो में से किसी भी बात के सही निकलने पर वैज्ञानिक अनुसंधानों को सफल मान लिया जाता है | संशय पैदा करने वाली दोनों पक्षों की बात सुनकर जनता भ्रमित हो जाती है उसके लिए यह निर्णय करना ही कठिन  होता था कि इन दोनों प्रकार के वैज्ञानिकों में से सच कौन बोल रहा है और किस वर्ग के वैज्ञानिकों की बात पर विश्वास किया जाए | 

   ये दुविधा अंत तक ऐसी ही चलती रही है|महामारी का संक्रमण जब  बढ़ने लगता था तो महामारी को मनुष्यकृत मानने वाला वैज्ञानिकों का एक वर्ग ऐसी लहरों के लिए समाज के द्वारा कोविड  नियमों के पालन में लापरवाही को जिम्मेदार बताने लग जाता था | बहुत से वैज्ञानिक चीन के शहर में स्थित एक एनिमल मार्केट से पैदा हुआ मानते हैं । 

    बड़ी संख्या उन वैज्ञानिकों की भी है जो कोरोना महामारी को प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ महारोग मानते हैं | महामारी  को प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ मानने वाला वैज्ञानिकों का वर्ग इसके लिए मौसम संबंधी विभिन्न बदली हुई परिस्थितियों को जिम्मेदार मानता है| वैज्ञानिकों के द्वारा कही गई इस प्रकार की बातें सुनकर समाज को लगता रहा कि महामारी यदि प्राकृतिक ही है इसका पैदा होना घटना बढ़ना आदि सभी कुछ प्राकृतिक रूप से ही संचालित है तो फिर कोविड नियमों जैसे आत्मसंयम का पालन करना कितना आवश्यक था | 

    समाज को यह भी लगता था कि महामारी का घटना बढ़ना यदि प्रकृति के ही आधीन है तो बचाव के लिए किए जाने वाले लॉकडाउन  जैसे प्रयास कितने आवश्यक हैं क्योंकि जहाँ एक ओर महामारी  कठोर काल का स्वरूप धारण करती जा रही थी जिससे कोई कभी भी संक्रमित हो सकता था या जीवन समाप्त हो सकता था, वहीँ दूसरी ओर कोविड नियमों जैसे आत्मसंयम का पालन करने से रोजी रोजगार सब बर्बाद होते जा रहे थे | विद्यालय बंद हो रहे थे |यातायात बाधित था | उद्योगधंधे बंद होते जा रहे थे |महानगरों से मजदूरों का पलायन होते देखा जा रहा था |  यदि महामारी प्राकृतिक ही थी तो फिर मनुष्यकृत ऐसे उपायों का  औचित्य ही क्या रह जाता है | 

                                    महामारी विज्ञान के नाम पर कैसे कैसे अनुसंधान ! 

     वर्तमानसमय में विज्ञान विशेष उन्नत है प्रायः सभी क्षेत्रों में विज्ञान नितनूतन शिखर चूम रहा है| इसमें संशय नहीं है |ऐसी बड़ी वैज्ञानिकसफलताओं ने मानवजीवन की कठिनाइयाँ कम की हैं सुख सुविधाएँ उपलब्ध करवाई हैं और जीवन को सरल बनाया है इसमें संशय नहीं है | इसके बाद भी एक चिंता हमेंशा चित्त  को बिचलित किया करती है कि जिस मानव जीवन को सुख सुविधापूर्ण बनाने के लिए इतना सबकुछ है उसी जीवन को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित बचाने के लिए मनुष्यों के पास ऐसा क्या है|

    महामारी,भूकंप आदि प्राकृतिकआपदाएँ या फिर मौसमसंबंधी सभीप्रकार की घटनाएँ जिनसे मानव जीवन बहुत बुरी तरह से प्रभावित होता है |ऐसे अप्रत्याशित संकटों से लोगों को अचानक जूझना पड़ता है |जिसमें बहुतों का जीवन प्रभावित होता है | उन में से कुछ की जीवन लीला ऐसे संकटों में समाप्त ही हो जाती है | उनके भी  बहुमूल्य जीवन को बचाने के लिए कोई मजबूत उपाय खोजे जाने की आवश्यकता है |   

     ऐसी  परिस्थिति में उन भयंकर हिंसक घटनाओं को घटित होने से रोकना तो मनुष्यों के बश में है ही नहीं | उन घटनाओं से अपने और अपने समाज के बचाव के लिए  कुछ प्रयत्न अवश्य किए जा सकते हैं | इनसे बचाव किया जाना भी तभी संभव है जब ऐसी घटनाओं के घटित होने से पहले इनके विषय में कोई सही सटीक अनुमान पूर्वानुमान आदि पता हो |

     चूँकि ऐसी घटनाओं के विषय में पहले से कोई जानकारी नहीं होती है इसीलिए ऐसे बड़े संकट का सामना करने के लिए पहले से कोई तैयारी भी नहीं की गई होती है | जब ऐसी भयानक घटनाएँ घटित होने लगती हैं तब इनका वेग इतना अधिक होता है कि इनके पहले झटके में ही बहुत बड़ा नुक्सान हो चुका होता है | उसके बाद ऐसी घटनाओं के विषय में आम लोगों के साथ ही साथ वैज्ञानिकों को भी जानकारी मिल पाती है |इनके विषय में जब तक  कुछ सोचने समझने या अध्ययन अनुसंधान आदि के लिए प्रयत्न किया जाता है तब तक ये रौद्र रूप धारण कर लेती हैं और बड़ी संख्या में लोगों को अपनी चपेट में ले लेती हैं| ऐसी घटनाएँ अचानक इतना भयानक स्वरूप धारण कर लेती हैं कि इन्हें समझना ही संभव नहीं हो पाता है | इन पर अंकुश लगाना तो संभव ही नहीं है |

    कुल मिलाकर मानवता की रक्षा के लिए मनुष्य समाज के पास कुछ तो विकल्प होना ही चाहिए |वस्तुतः  महामारी भूकंप बाढ़ एवं आँधी तूफान जैसी प्राकृतिकआपदाओं के विषय में सही सही पूर्वानुमान लगाने के लिए मनुष्य समाज के पास ऐसा कोई विज्ञान नहीं है जो ऐसी हिंसक आपदाओं के विषय में आगे से आगे अवगत करवा सके| जिससे प्रयत्न पूर्वक अपना बचाव सुनिश्चित किया जा सके, क्योंकि ऐसी घटनाओं को रोका जाना तो संभव नहीं है इनसे अपना बचाव ही किया जा सकता है| इसके लिए सही सटीक पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है |जिसके लिए हमारी जानकारी के अनुशार अभी तक ऐसा कोई विज्ञान विकसित ही नहीं किया जा सका है जो मानव जीवन की इस आवश्यकता को पूरी कर सके ! 

     इसके अभाव में  हमारे द्वारा आज तक किए गए संपूर्ण विकास कार्य कभी भी शून्य हो सकते हैं क्योंकि उनकी उपयोगिता तभी तक है जब तक मानव जीवन सुरक्षित रहे |इसके बिना विकास संबंधी उपलब्धियाँ किसी काम की नहीं रह जाएँगी | 

  कई बार व्यक्तिगत जीवन या सामूहिक जीवन से संबंधित विकास के लिए जहाँ एक ओर बड़ी बड़ी योजनाएँ बनाई जा रही होती हैं उनके लिए बड़े बड़े आयोजन आयोजित किए जा रहे होते हैं बड़े बड़े उत्सवों की तैयारियाँ की जा रही होती हैं | उसी समय महामारी भूकंप बाढ़ एवं आँधी तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएँ अचानक घटित होकर संपूर्ण हर्षोल्लास के सुअवसर को मातम में बदल देती हैं | 

    कोरोना महामारी को ही लिया जाए तो बहुतों ने अपने जीवन या समाज के उत्थान के लिए न जाने कितनी बड़ी बड़ी योजनाएँ बनाकर रखी होंगी जिसमें न जाने कितनी धनराशि का व्यय हुआ होगा, बहुतों  ने वह धनराशि कर्जे में लेकर लगाई होगी | सरकारों तथा सामाजिक संगठनों की एक से एक उन्नत योजनाओं को अचानक रोका गया होगा |बड़े बड़े उद्योगपतियों व्यापारियों एवं फैक्ट्री चलाने वालों का अचानक बहुत बड़ा नुक्सान हो गया होगा !शिक्षा में अचानक बहुत बड़ी बढ़ा उत्पन्न हुई | बहुतों का अपना जीवन या स्वजनों का जीवन कालकवलित हुआ  | इसीप्रकार की और न जाने कौन कौन सी दुर्घटनाएँ  इस महामारी के कारण अचानक घटित हुईं| जिनसे बहुतों के जन धन का भारी नुक्सान हुआ है ,इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत के पड़ोसी देशों के साथ अभी तक जितने भी मध्यमस्तरीय युद्ध हुए हैं उनमें उतने लोग नहीं मरे जितने कोरोना महामारी में मारे गए ,फिर भी ऐसे सभी युद्धों अपनी सुरक्षा के लिए बड़ी बड़ी योजनाएँ बनाई जाती हैं एक से एक घातक हथियार ख़रीदे जाते हैं | सर्वोच्च मारकक्षमता संपन्न अस्त्र शास्त्रों का संग्रह करते प्रत्येक देश देखा जा रहा है | कुल मिलाकर युद्धक तैयारियों पर भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती है | विश्व के संपूर्ण देश जो हथियारों की इस प्रतिस्पर्द्धा में सम्मिलित हैं |जिनके पास ऐसे ऐसे हथियार संग्रहीत हैं जो कुछ समय में ही विश्व का विनाश करने में सक्षम हैं | 

     ऐसी परिस्थिति में संपूर्ण मानवता के लिए यह चिंता की बात है कि मनुष्यों के बिनाश के लिए इतनी बड़ी बड़ी घातक तैयारियाँ की जा चुकी हैं जबकि मनुष्य की सुरक्षा के लिए अभी तक की गई वैज्ञानिक तैयारियों को  कोरोनाकाल में दुनियाँ ने देखा है | विज्ञान कितना विवश था कुछ करने की स्थिति में तो था ही नहीं प्रत्युत कुछ कहने की स्थिति में भी नहीं था कि कोरोना महामारी के प्रभाव से कल क्या होगा | अगला महीना या वर्ष कैसा होगा ,महामारी कब तक रहेगी कितना और नुक्सान करेगी जैसी बातों का अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिकों के पास कोई स्पष्ट उत्तर नहीं था | ये आश्चर्य की बात है कि महामारी जैसी इतनी बड़ी आपदा अचानक घटित होने लगी हमारे उन वैज्ञानिकों को इसके विषय में भनक तक नहीं लगी जो इन्हीं विषयों से संबंधित अनुसंधान कार्य  में दिन रात लगे रहते हैं फिर भी ऐसी स्थिति है |

                वैज्ञानिकों के द्वारा बताया जा रहा था कुछ जबकि  निकलता रहा था  कुछ और !

    वैज्ञानिकों पर समाज बहुत अधिक विश्वास करता है इसीलिए उनके द्वारा कही हुई किसी भी बात को मंत्रों  की तरह सुनता और मानता है | वैज्ञानिकों के द्वारा कही हुई बातें जब गलत निकलने लगती हैं तब समाज को तनाव होना स्वाभाविक ही है | 
   जिन वैज्ञानिकों के द्वारा कोविड नियमों की परिकल्पना की गई है तथा जिन्हें जनहित के उद्देश्य से सरकारों ने कठोरता पूर्वक समाज में लागू किया है | ऐसे ही जिन वैज्ञानिकों ने वैक्सीन जैसी हितकारिणी औषधियों का निर्माण किया है उन्हें विश्वास पूर्वक सरकारों ने संपूर्ण मनोयोग से जन जन तक पहुँचाने का प्रयत्न किया है लोगों ने विश्वासपूर्वक उसे ग्रहण किया है |  
     विशेष बात यह है कि चिकित्सा का सिद्धांत है कि किसी भी रोग से मुक्ति दिलाने के लिए यदि आप किसी औषधि का निर्माण करना चाहते हैं तो आप  रोग के लक्षण पता करने पड़ेंगे उसकी प्रकृति अर्थात स्वभाव समझना पड़ेगा ! उसके लक्षण पहचानने पड़ेंगे ! इन सब के आधार पर उस रोग के विषय में आप जो समझे हैं वह सही है क्या इसका परीक्षण करने के लिए आपको उस रोग के विषय में कुछ अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने चाहिए यदि वे सही निकलते हैं इसका मतलब यह होता है कि आपने उस रोग को अच्छी प्रकार से समझ लिया है | इसलिए अब आप उस रोग से मुक्ति दिलाने के लिए  औषधिनिर्माण करने की प्रमाणित योग्यता रखते हैं| इसके साथ ही अब आप  रोग से पीड़ित रोगियों की चिकित्सा कर सकते हैं | 
    कोरोना महामारी के समय की चिकित्सा प्रक्रिया को यदि इसी कसौटी पर कसा जाए तो महामारी के विषय में वैज्ञानिकों ने जो जो कुछ कहा सरकार एवं समाज उन बातों को सुनता एवं विश्वास करता रहा ,उन्हें मानता रहा उनका पालन भी करता रहा किंतु जब  वे बातें ही गलत निकलने लगीं तब समाज का भ्रमित होना स्वाभाविक ही था कि ये बातें सच हैं भी या नहीं !क्योंकि महामारी संबंधित विभिन्न विषयों पर वैज्ञानिकों के द्वारा बोली गई बातें बहुत विश्वसनीय नहीं निकली हैं | जिन्हें सुनकर चिंता होनी स्वाभाविक ही है ! आखिर ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों से महामारी का सामना कैसे किया जा सकता है | इससे समाज का भला कैसे हो सकता है | वैज्ञानिकों  के द्वारा लगाए गए अनुमान ही यदि सही नहीं निकलेंगे तो उनकी कही हुई अन्य बातों पर विश्वास किस आधार पर किया जाना चाहिए |
    सच्चाई ये है कि हमारे पास पूर्वानुमान लगाने की जो विधियाँ अपनाई जा रही हैं वे प्रत्यक्ष साक्ष्यों पर आधारित हैं | इसलिए वे हमारी अपेक्षाओं को पूरी करने में सक्षम नहीं हैं| प्रत्यक्ष साक्ष्य प्रायः घटनाओं के साथ ही घटित होते देखे जाते हैं | इसलिए वे घटनाएँ और साक्ष्य दोनों लगभग एक साथ ही घटित होते हैं | इससे  साक्ष्य देखकर जब घटनाओं के विषय में बताया जा रहा होता है उस समय घटनाएँ घटित होनी प्रायः शुरू हो चुकी होती हैं | कई बार बादलों को आया हुआ देखकर वर्षा होने के  विषय में जब अनुमान लगाया जा रहा होता है उस समय वर्षा होना  प्रारंभ हो चुका होता है | ऐसी परिस्थति में साक्ष्यों संकेतों और घटनाओं में आपसी अंतर इतना कम होता है कि घटनाओं के विषय में भविष्य संबंधी पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं हो पाता है |कई बार साक्ष्य इतने निराधार होते हैं कि उनका घटनाओं के साथ कोई संबंध  ही नहीं होता है फिर भी उन संकेतों को उद्धृत कर कर के उन्हीं के आधार पर घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि बताए जा रहे होते हैं |जो गलत निकलते जाते हैं | कोरोना काल में ऐसा बार बार होता रहा है जिससे वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में लगाए जाते रहे अनुमान पूर्वानुमान आदि बार बार सही नहीं निकलते रहे |   
    दूसरी बात ऐसे अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए आवश्यक आँकड़े तो तभी मिलेंगे जब महामारी आने वाली होगी इससे पहले तो इसप्रकार के आँकड़े बिल्कुल नहीं मिल सकेंगे !  ऐसी परिस्थिति में किसी भी महामारी के विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान लगाने की आशा ही नहीं की जानी चाहिए | इसके लिए तो परोक्ष संकेतों का अध्ययन किया जाना ही उचित होगा | 
    कोरोना महामारी की लहरों के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए जो आधार चुने जाते रहे उनमें से वैक्सीनेशन की गति क्या है, संक्रामकता कैसी है,कोविड  नियमों का पालन कितनी कड़ाई से किया जा रहा है,लोगों में प्रतिरोधक क्षमता कैसी है! महामारी का स्वरूप परिवर्तन तो नहीं हो रहा है| महामारी का क्रम क्या है  आदि जितने भी आँकड़े जुटाकर विश्लेषण किया जाता है वो सारे न केवल प्रत्यक्ष हैं अपितु अस्थिर भी हैं | जिनमें कभी भी कैसा भी बदलाव संभव होता है है उस बदलाव के साथ ही उसके आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान भी बदल जाएँगे |इसलिए ऐसे अनुमान पूर्वानुमान आदि विशेष उपयोगी नहीं  हो सकते | इसके आधार पर लहरों के विषय में कोई सही गलत अंदाजा भले ही लगा लिया जाए किंतु इससे  महामारी के विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है ,क्योंकि जिन आँकड़ों के बल पर इस प्रकार के पूर्वानुमान लगाए जाते हैं वे स्थिर नहीं होते हैं |इस अस्थिरता के कारण ही उनके आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि सही नहीं निकल पाते हैं |महामारी के कालखंड में  इस प्रकार का भ्रम प्रायः हर विषय पर देखा जाता रहा है |  
________________________________________________________________________                        महामारी जैसी इतनी बड़ी समस्या के समाधान के लिए क्या ?         

    हमारे सैनिक एवं सरकारें शत्रु देशों की हर हरकत का मुखतोड़ जवाब देने में सक्षम हैं ये हम सबके लिए गौरव की बात है | देश की सीमाओं एवं नागरिकों की सुरक्षा के लिए अस्त्र शस्त्र बनाने  खरीदने में  भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती है | महँगे महँगे युद्धक विमान खरीदे जाते हैं | इसके साथ ही सेनाओं के लिए वे सभी आवश्यक संसाधन समय से उपलब्ध करवाए जाते हैं जिनसे देश की सीमाओं तथा नागरिकों के प्रति दुष्ट दृष्टि रखने वाले शत्रु देशों को मुखतोड़ जवाब दिया जा सके !इस प्रक्रिया में कहीं कोई थोड़ी भी चूक रह जाती है जिसके कारण कोई नुक्सान हो जाता है या नुक्सान होने की संभावना रहती है तो सरकारें तुरंत आवश्यक कदम उठाए जाते हैं |इसके बाद भी शत्रु यदि छल कपट पूर्वक कोई हमला आदि करने में सफल हो ही  जाए तो इसके लिए शत्रु की कायरता या शत्रु के द्वारा किए गए छल कपटपूर्ण हमले के लिए शत्रु को दोषी न ठहराकर उसके लिए अपनी कमजोर तैयारियों को या अपने द्वारा हुई चूक को जिम्मेदार मानकर माना जाता है | शत्रु के द्वारा छल छद्मपूर्वक किए गए हमले के विषय में पहले से कोई अंदाजा लगाने में हम असफल क्यों हुए |इसका आशय यह है कि हमें अपनी तैयारियाँ हमेंशा यह समझकर करनी चाहिए कि शत्रु हमें पराजित करने  के लिए वह सब कुछ करेगा जो जो करना उसके बश में होगा | हम बचना चाहें तो सतर्कता पूर्वक बच लें अन्यथा शत्रु के षड्यंत्रों का शिकार होते रहें  


 उसी के  अनुशार आगे की तैयारियाँ प्रारंभ की  जाती हैं | जाता है मन काभी भी शत्रु की जगह अपने को  जिम्मेदार ठहराया जाता है कि  

  जिन  देशवासियों  की सुरक्षा के  लिए शौर्य संपन्न सैनिक  देश की सीमाओं और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कितना त्याग बलिदान पूर्ण जीवन जीते हैं |अपने देश वासियों की सुरक्षा के लिए सैनिक लोग एक  से एक  दुर्गम जंगलों कंटकाकीर्ण पथों नदियों नालों बर्फ़ीली घाटियों एवं पर्वतों आदि पर कितना कठिन जीवन बिताना पड़ता है | वे दिन रात अपने प्राणों को हथेली पर लिए देश की  सीमाओं पर पहरा दिया करते हैं | अपनी एवं अपने परिवारों की परवाह किए बिना दर दर की ठोकरें खाते क्या ऐसे ही दिन के लिए फिरा करते हैं कि कोरोना जैसी महामारी आएगी और लाखों की संख्या में उनके दुलारे देश बासियों को मौत की नींद सुलाकर चली जाएगी ! हमारे सैनिकों के सुरक्षित रहते कोई दुश्मन देश हमारे देशवासियों को ऐसी चोट पहुँचाने की बात कभी स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था | जो दुस्साहस कोरोना महामारी ने किया है | 

       कोरोना जैसी इतनी बड़ी महामारी  जब कहर बन कर समाज पर टूटी थी उस समय इतने डरावने वातावरण में  को अपनी छाया छूने डर लगता था उस समय जो स्वास्थ्यसेवक अपनेप्राणों की परवाह न करते  हुए  अपने देश वासियों  को  सुरक्षित बचाने  के लिए प्रयत्न करते रहे | इस पुण्यकार्य लगे अनेकों स्वास्थ्य सैनिकों (चिकित्सकों) को प्रिय देश बासियों पर अपने बहुमूल्य जीवन न्योछावर करने पड़े हैं | ऐसी कोरोना महामारी कभी भुलाए नहीं भूलेगी | 

     स्वास्थ्य संकट कितना बड़ा है !

    महामारी से जूझता समाज इतना डरा हुआ है कि उसे हर समय आशंका रहती है कि न जाने किस सगे संबंधी स्वजन से हमारा साथ  कब छूट जाए ! प्रत्येक व्यक्ति को अपनी और अपनों की चिंता दिनरात बेचैन किए हुए है | महामारी संबंधी स्वास्थ्यसुरक्षा असफलता कारण हर कोई अपने को असुरक्षित महसूस कर रहा है, ये राष्ट्र की स्वास्थ्य सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण और गंभीर मामला है,क्योंकि महामारी के घातक हमले अब भी जारी हैं |उन पर अंकुश लगाने  कोई ऐसी विश्वसनीय विधा अभी तक विकसित नहीं की जा सकी है जिसके बलपर विश्वास पूर्वक  यह कहा जा सके कि महामारी संबंधी संक्रमण अब नहीं बढ़ेगा या फिर 'अमुक' दवा का जिस जिस ने सेवन कर लिया है उस उस को महामारी से अब कोई खतरा नहीं है | 

    सबसे दुखद बात यह है कि वैज्ञानिक अनुसंधानों के बलपर इतनी भयंकर महामारी से बचाव एवं मुक्ति दिलाने के सपने देखना तो बहुत बड़ी बात है महामारी के किसी भी पक्ष को अभी तक न तो ठीक ठीक समझा जा सका है और न ही इसके विषय में कोई विश्वसनीय अनुमान पूर्वानुमान आदि ही लगाए जा सके हैं | वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में जो अनुमान पूर्वानुमान आदि ही लगाए भी गए वे गलत निकलते चले गए | 

    इससे बड़ी चिंता की बात और क्या होगी कि महामारी जैसे कठिन काल में स्वास्थ्य सुरक्षा प्रबंधनों के द्वारा कोई विशेष राहत नहीं पहुँचाई जा सकी है | इस समय जनता को ऐसे स्वास्थ्य सहायक प्रबंधनों की सबसे अधिक आवश्यकता है | जनता के धन से हमेंशा चलाए जाते रहने वाले अनुसंधानों के द्वारा महामारी काल में प्राणों से खेल रही जनता को आखिर ऐसी क्या मदद पहुँचाई जा सकी है जो इतने उन्नत  वैज्ञानिक अनुसंधानों के बिना संभव न थी |ये अनुसंधान न हो रहे होते तो क्या इससे भी अधिक नुकसान  हो सकता था |ये चिंतन करने का विषय है |   

      कोरोना महामारी के समय में वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर महामारी से संबंधित जो जो कुछ कहा या किया जाता रहा !किसी दूसरे क्षेत्र में  ऐसा होता तो इसे इन्हीं जिम्मेदार लोगों के द्वारा अंधविश्वास कहा जाने लगता ! इसे पाखंड वाद रूढ़िवाद पोंगापंथ मूर्खमत आदि जाने किन किन नामों से उपमित किया जाता !कोरोना महामारी  निपटने के लिए पहले से ऐसी क्या तैयारी करके रखी जा सकी थी !जिसके बलपर महामारी का सामना करने सपने देखे जा रहे थे | यही स्थिति संपूर्ण विश्व की थी |  

       जिस समय शत्रु  किसी देश पर हमला कर दे उस समय तैयारियों के अभाव में ऐसी असफलताओं की कीमत सैनिकों को जान देकर चुकानी पड़ती है | कोरोना महामारी से चल रहे भीषण संग्राम के समय तैयारियों के अभाव में कई स्वास्थ्य सैनिकों के बहुमूल्य जीवन खोने पड़े हैं | मेरी जानकारी के अनुशार उन चिकित्सा विशेषज्ञों के पास महामारी से अपनी सुरक्षा के कोई सुनिश्चित साधन नहीं थे इसके बाद भी वे प्राण प्रण से मानवता की सेवा में लगे रहे | बहुत स्वास्थ्यसैनिकों के के साथ ऐसी दुर्भाग्य पूर्ण घटनाएँ घटित हुई हैं जनता में बहुतों ने अपनों को खोया है | बहुत घर बर्बाद हुए हैं बहुत बच्चे अनाथ हुए हैं | माहामारी कालग्रास में समाए वे सभी नागरिक इस समाज के विभिन्न रूपों में सहयोगी रहे हैं उनके जाने से जो रिक्तता हुई है उसकी भरपाई संभव नहीं है | 

    इसलिए भारीमन से ही सही आत्ममंथन पूर्वक आज अपनी कमजोरियाँ दूर करने का समय आ गया है ये अनुसंधान जनता की जिन कठिनाइयों को कम करने याजो  सुख सुविधाएँ प्रदान करने के लिए किए जाते रहे हैं महामारी के कठिन काल में उनकी उपयोगिता कुछ तो सिद्ध होनी ही चाहिए थी | ऐसे अनुसंधानों में उसी जनता का धन लगता है इसलिए उस जनता के प्रति कुछ जवाबदेही अनुसंधानों की भी होनी ही चाहिए | वैज्ञानिक अनुसंधान जिस समस्या के समाधान के लिए या जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए किए करवाए जाते हैं उसमें सफल होने पर ही उनकी सार्थकता सिद्ध होती है |        

      मेरी जानकारी के अनुसार महामारी समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अनुसंधान तो निरंतर चला ही करते हैं इसलिए बात वो उतनी महत्वपूर्ण नहीं है ,आवश्यक यह है कि महामारी से जूझते समाज को उन अनुसंधानों से ऐसा क्या मिला जो यदि इस प्रकार वैज्ञानिक अनुसंधान न किए जा रहे होते तो संभव न था | जो अनुसंधान मानव जीवन की कठिनाइयाँ कम करने एवं जीवन को आसान बनाने के लिए किए जाते हैं उन  अनुसंधानों से क्या लाभ यदि वे आवश्यकता पड़ने पर किसी काम न आवें |        

       विज्ञान के क्षेत्र में सभी अनुसंधानों की प्रारंभिक प्रक्रिया में कई बार असफलता मिलते देखी जाती है और यह स्वाभाविक भी है किंतु ये असफलताएँ उस अनुसंधान प्रक्रिया के प्रारंभिक समय तक ही सीमित रहनी चाहिए | ऐसी असफलताएँ निरंतर मिलना ठीक नहीं हैं और यदि बार बार ऐसा ही हो तो ऐसी असफलताओं को निरर्थक ढोया जाना ठीक नहीं है उनके विकल्प की खोज का समय आ गया है | ऐसा मानते हुए उस प्रकार की संभावनाओं की खोज प्रारंभ कर दी जानी चाहिए |

        महामारी के विषय में अभी तक किए गए वैज्ञानिक अनुसंधानों के योगदान को यदि जनता की दृष्टि से देखा जाए तो एक मात्र वैक्सीन को ही ऐसी अनुद्घाटित वैज्ञानिक उपलब्धि माना जा सकता है जिसके परिणाम के विषय में विशेषज्ञों के अलावा किसी और को कुछ पता नहीं है |आश्वासन बहुत कुछ दिए जा रहे हैं उनसे अलग देखा यह जा रहा है कि वैक्सीन की दो दो तीन तीन डोज लेने वाले लोग भी लोग संक्रमित होते देखे जा रहे हैं और वैक्सीन नहीं लेने वाले तो संक्रमित हो ही रहे हैं |______________________________________________________________
                                           महामारी को लेकर जनता की आशंकाएँ ! 
       महामारी का स्वरूप ही इतना भयावह था कि उसे समझना या उसके विषय में कोई भी जानकारी जुटाना या अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव ही नहीं है या फिर किए जा रहे वैज्ञानिक अनुसंधानों में ही महामारी  समझने की क्षमता नहीं थी या फिर वे अनुसंधान विज्ञान की जिस विधा के आधार पर किए जा रहे थे उस वैज्ञानिक अनुसंधान प्रक्रिया की  महामारी जैसे बड़े रोगों तक पहुँच ही नहीं थी| इसीलिए उनके  द्वारा महामारी को समझा  जाना संभव ही नहीं था |
     क्या यह सच है कि वैज्ञानिक आधार पर पहले से ऐसी कोई तैयारी करके नहीं रखी जा सकी थी जिसके  द्वारा महामारी के विषय में कोई भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव होता|वैज्ञानिकों के द्वारा इतनी बड़ी महामारी आने के विषय में  पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका था ! महामारी संपूर्ण रूप से समाप्त कब होगी इस विषय में अभी तक कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका है ,जबकि  महामारी जैसे इतने बड़े संकट से संबंधित सही अनुमानों  पूर्वानुमानों से समाज को बड़ी मदद मिलती है|इससे  बचाव कार्यों में लगे शासन प्रशासन को सहयोग मिल  सकता है किंतु महामारी की लहरों के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाए जा सके जो लगाए भी गए वे भी सच नहीं निकलते रहे हैं | 
   इनका सच न निकलना  चिंताप्रद इसलिए भी है क्योंकि ये आम आदमी के द्वारा लगाए हुए साधारण अंदाजे नहीं थे अपितु ये वर्तमान समय के समुन्नत  विज्ञान की उपलब्धियाँ थीं| इसलिए स्वदेश से लेकर विदेश तक के शीर्ष वैज्ञानिकों के दवारा लगाए जाते रहे महामारी विषयक अनुमानों  पूर्वानुमानों का इतनी बड़ी मात्रा में गलत निकलना भविष्य  के लिए गंभीर चिंता पैदा करता है |          
     वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में समय समय पर दिए जाते रहे वक्तव्य जब जब गलत निकलते रहे हैं तब तब इसका कारण वैज्ञानिक अनुसंधानों की कमजोरी स्वीकार करने के बजाए महामारी के स्वरूपपरिवर्तन की कल्पना करके महामारी को और अधिक भयावह बता दिया जाता रहा है |
  इसीलिए ऐसे वैज्ञानिक वक्तव्यों से  समाज निराश होने लगा था !इसका प्रभाव वैक्सीन लगाते समय प्रारंभिक काल में  दिखाई भी पड़ा था कुछ लोग वैक्सीन पर विश्वास करने को ही तैयार नहीं थे |उनमें वैसा उत्साह नहीं दिखा जैसा कि महामारी से पीड़ित समाज में वैक्सीन के प्रति होना चाहिए था |
   समाज को संशय होने लगा था कि जिन वैज्ञानिकों के द्वारा जिस रोग का निदान ही ठीक प्रकार से नहीं  किया सका हो उनके द्वारा उसी रोग से मुक्ति दिलाने  के लिए किसी औषधि का निर्माण किया जाना कैसे संभव है !चिकित्सा सिद्धांत के अनुसार किसी भी रोग से बचाव या मुक्ति दिलाने के लिए औषधि का निर्माण किया जाना तभी संभव है जब उस रोग की प्रकृति को भली प्रकार से समझा जा सका हो |
    कई बार सामान्य माने जाने वाले रोगों की भी यदि ठीक से पहचानकर समय पर उचित चिकित्सा न की जाए  तो वे भी भयावह होते देखे जाते हैं  | उनसे भी रोगियों की मृत्यु होते देखी जाती है | इसलिए यह स्पष्ट किया जाना बहुत आवश्यक है कि कोरोनाकाल में इतनी बड़ी संख्या में लोग अस्वस्थ हुए और उनमें से बहुत लोगों की मृत्यु हुई है | इसका कारण क्या था |
जनता ने अपने वैज्ञानिकों से जानना चाहा कि कोरोना महामारी वास्तव में भयावह है या उसे समझने का विज्ञान नहीं है !इसलिए ज्यादा भयावह लग रही है ? 
     महामारी के प्रकोप  से चिंतित संपूर्ण वैश्विक समाज को कई बार लगता है कि हो सकता है महामारी उतनी अधिक खतरनाक न भी रही हो किंतु महामारी को समझना ही संभव नहीं हो पाया है इसलिए महामारी से इतना अधिक नुक्सान हुआ  है | 
    इसलिए यह जानना आवश्यक है कि महामारी विज्ञान कोरोना महामारी को समझने में कितना सफल हुआ है और  उसके विषय में अनुसंधान  करने की हमारी क्षमता कितनी है |वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी  संबंधित विभिन्न पक्षों के विषय में लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत निकलने का कारण क्या है |उन्हीं वैज्ञानिकअनुसंधानों  के आधार पर बनाए गए कोविडनियम परीक्षण में कितने तर्कसंगत एवं उपयोगी सिद्ध हुए हैं आदि बातों पर गंभीर आत्मचिंतन होना चाहिए |  
    महामारी को भयावह बताने या मान लेने का वैज्ञानिक आधार क्या है ? भयावहता का परीक्षण कैसे किया जाए !जिससे यह पता लगे कि महामारी को अच्छी प्रकार से समझ लिया गया है और इन इन कारणों से महामारीमुक्ति के लिए किए जाते  रहे प्रयत्न निष्फल होते रहे हैं |सामान्य रूप से महामारी में दोष निकालना ठीक नहीं है अपितु जिन अनुसंधानों से महामारी को समझने के लिए प्रयत्न किए जाते रहे हैं उनसे महामारी को समझना संभव है क्या इसका परीक्षण किया जाना आवश्यक है | 
    जिसप्रकार से  परीक्षा में प्रश्न पत्र कठिन था यह कहने का अधिकार केवल उसी विद्यार्थी को होता है जिसने अपने पाठ्यक्रम को अच्छी प्रकार से तैयार किया हो फिर भी उसे कुछ समझ में न आ रहा हो ,इसका मतलब वास्तव में प्रश्न पत्र कठिन है | 
   ऐसे  ही  महामारी की भयावहता को तो तभी दोषी माना जा सकता है जब यह पता लगे कि  महामारी विज्ञान ऐसी के विषय में हमारी अपनी जानकारी कितनी है |महामारी काल में उस विज्ञान ऐसा कौन सा लाभ हुआ जो महामारीविज्ञान का सहयोग लिए बिना संभव न था !      
      वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में  लगाए जाते रहे अनुमान पूर्वानुमान आदि बार बार गलत निकलने का कारण न तो  महामारी का भयावह होना है और न ही महामारी का स्वरूप  परिवर्तन ही है अपितु महामारी में होने वाले इन स्वाभाविक परिवर्तनों को न समझपाने वाले वे लोग दोषी  हैं जो महामारी को समझने के लिए हमेंशा अनुसंधान करते रहते हैं |  
      इसके लिए महामारी को जिम्मेदार ठहराया जाना उसीप्रकार से ठीक नहीं है जिस प्रकार से किसी बंद ताले को खोलने  के लिए किसी  ऐसी चाभी का प्रयोग किया जा रहा हो जो उस ताले की हो  ही न ! उस चाभी से ताला न खुले इसका मतलब ताला खराब होना नहीं है और  ही ताला स्वरूप बदल बदलकर कर और अधिक खतरनाक होता जा रहा है, अपितु इसका कारण यह भी हो सकता है कि जिस चाभी से ताले को खोलने का प्रयास किया जा रहा है ! वह चाभी इस ताले की हो ही न ! यहाँ समस्या ताले के खतरनाक होने या वेरियंट बदलने की नहीं है |वस्तुतः जिस चाभी का उस ताले से कोई संबंध ही नहीं है उससे वह कैसे खुल जाएगा|यह बिचार किए जाने  की बात है | 
    इसके लिए यह तर्क देना उचित नहीं है कि चाभी खोजने के लिए कई बड़े वैज्ञानिक काफी समय से रिसर्च करते आ रहे  थे | उन्होंने ही यह निश्चय किया है कि ये चाभी उस ताले की हो सकती है | 
     ऐसी परिस्थिति में यह चाभी उस ताले की है या नहीं इसका प्रमाण न तो वे वैज्ञानिक हो सकते हैं और न ही उनके द्वारा किया गया रिसर्च !अपितु इसके परीक्षण का एक ही रास्ता है कि इस चाभी से उस  ताले को ख़ोल दिया जाए !ये चाभी उस ताले की है तो इससे उस ताले को खोलकर यह प्रमाणित कर दिया जाना चाहिए कि यह चाभी इसी ताले की है | ताला खुलते ही सारे संशय समाप्त हो जाएँगे !
      इसी प्रकार से महामारी के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान यदि सही निकल आते तो उन्हीं के साथ महामारी विज्ञान  की सच्चाई भी  प्रमाणित हो सकती है | जिस प्रकार से ताले का कोई कुशल कारीगर चाभी खो जाने के बाद भी उस बंद ताले की नई चाभी बनाकर उस ताले को आसानी से खोल लेता है ,इसीप्रकार से महामारी के रहस्य को समझने में सक्षम कुशल कारीगरों (वैज्ञानिकों) की आवश्यकता संपूर्ण कोरोनाकाल में कसकती रही है जिसके बिना आज तक महामारी के स्वभाव को  समझना संभव ही नहीं हो  पाया है |
                          महामारी को भयावह बताने का वैज्ञानिक आधार क्या है ?
    किसी रोग महारोग आदि का निदान जितना अच्छा होता है उस रोग को समझना उतना ही आसान होता है | रोग को अच्छीप्रकार से समझ लेने के बाद पीड़ितों की चिकित्सा करना भी उतना ही सुगम होता है | महामारी को ठीक ठीक समझे बिना रोग से मुक्ति दिलाना कैसे संभव है|किसी रोग से बचाव के लिए प्रतिरोधक क्षमता तैयार करने हेतु भी रोग की सही पहचान होनी तो आवश्यक मानी ही जाती है| महामारी को समझने की सामर्थ्य के अभाव में यदि इसे समझा ही नहीं जा सका है तो महामारी भयावह है भी या नहीं और यदि है तो कितनी आदि आवश्यक बातों का अंदाजा कैसे लगाया जा सकता है !
    महामारी धीरे धीरे बीतती जा रही है किंतु उसके विषय में अभी तक आवश्यक बातों की सच्चाई खोजी नहीं जा सकी है -  कोरोनामहामारी मनुष्यकृत है या प्राकृतिक ? इसकी उत्पत्ति का कारण क्या है अर्थात इसी वर्ष ऐसा नया क्या हुआ जिससे महामारी का जन्म हुआ है ? महामारी की उत्पत्ति कहाँ हुई है ? कैसे हुई ? कब हुई ? इसका स्वभाव कितना हिंसक है ? इसका स्वरूप परिवर्तनशील क्यों है ? इसका प्रभाव किस प्रकार के लोगों पर कैसा पड़ता है|इसका प्रभाव  किन किन लोगों पर किस किस  प्रकार का पड़ता है ?  भिन्न भिन्न  देशों प्रदेशों में इसका प्रभाव अलग अलग क्यों देखा जाता है ? महामारी का विस्तार कहाँ तक है केवल  पृथ्वी के बाहरी तल पर ही है या पृथ्वी  अंदर तक प्रविष्ट होने के साथ संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान है ? इसका प्रसार माध्यम क्या है? इसमें अंतर्गम्यता कितनी है अर्थात वस्तुओं के बाहरी अंश में  ही है याकि फल शाक आदि खाद्य पदार्थों के अंदर भी प्रविष्ट है | महामारी पर तापमान एवं वायु प्रदूषण बढ़ने और घटने का प्रभाव पड़ता है या नहीं !  इसके अतिरिक्त संक्रमण बढ़ने घटने पर मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं ? महामारी की अनुमानित कुल कितनी लहरें आने की संभावना है ? कोरोना संपूर्ण रूप से समाप्त कब होगा ?इस पर कोविड नियमों के पालन का प्रभाव कितना पड़ता है | इससे बचाव की दृष्टि से चिकित्सा का  योगदान कितना है ? महामारी  एक बार पूरी तरह से शांत हो जाए फिर कुछ दशक बीतने के बाद यदि फिर से महामारी लौटे तो क्या उसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लेना संभव हो पाएगा क्या ? इस महामारी के अनुभवों से ऐसा  आखिर क्या खोजा जा सका  है जिसके द्वारा भविष्य में संभावित महामारियों के विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया सकता है | 
    ऐसे विषयों में वैज्ञानिक अनुसंधानों  के द्वारा अभी तक ऐसी कोई सच्चाई सामने नहीं लाई जा सकी है,जबकि यह आवश्यक जानकारी जुटाना महामारी को समझने एवं इसकी चिकित्सा करने के लिए अत्यंत आवश्यक है ,किंतु वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा महामारी का रहस्य  समझना अभी तक संभव नहीं हो पाया है| ये चिंता की बात है | समाज आशा लगाए बैठा है कि वैज्ञानिक लोग हमें महामारी से मुक्ति दिलाएँगे जबकि  महामारी को ठीक ठीक प्रकार से समझने में ही अभी तक संशय बना हुआ है |  
   वस्तुतः  प्रकृति में प्रत्येक घटना अपने निर्धारित समय से घटित होती है किंतु जिस घटना से पहले घटित होने वाले छोटे छोटे लक्षणों को हम पहचानने लगते हैं उनके आधार पर उस प्रकार की घटना के घटित होने के विषय में पहले से अनुमान लगा लिया जाता है वो घटना अचानक घटित हुई नहीं लगती है |सूर्योदय होने से पहले की अरुणिमा को देखकर सूर्योदय होने वाला है ऐसा अंदाजा लगा लिया जाता है |ऐसे प्राकृतिक चिन्ह सभी प्राकृतिक  घटनाओं से पहले घटित होते देखे जाते हैं |उन्हें पहचानना सबसे कठिन काम होता है | इन्हें आगे  से आगे पहचानने में ही वैज्ञानिक अनुसंधानों की  सार्थकता होती है |  
     पहले घटित होने वाले ऐसे प्राकृतिक चिन्हों के आधार पर संभावित घटनाओं के स्वरूप स्वभाव लक्षणों आदि को पहचानने के लिए प्रयत्न किया जाता है यदि वे सही निकल जाते हैं तो उनके आधार पर विश्वासपूर्वक आगामी बदलावों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाता है |उनका सही निकलना ही  वैज्ञानिक अनुसंधानों की सफलता मानी जाती है | कोरोना महामारी के विषय में लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि इस कसौटी पर खरे नहीं उतर सके ! वैज्ञानिक अनुसंधानों से आशा लगाए बैठे समाज के भविष्य के लिए  ये गंभीर चिंता का विषय है |   
                                                                विशेष 
       भारत के पाकिस्तान के साथ तीन युद्ध हुए एवं चीन के  साथ एक युद्ध हुआ ! इनमें उतने लोग नहीं मारे गए जितने कोरोना महामारी में मृत्यु को प्राप्त हुए ! महामारी को समझने एवं उसका सामना करने की क्या तैयारियाँ हैं ? 
    महामारी वास्तव में इतनी भयंकर है या महामारी को समझने की एवं उसका सामना करने की क्षमता न होने के कारण भयवश  लोग उसे भयंकर मानने लगे हैं | इसीअभाव के कारण महामारी इतनी जनधन हानि करने में सफल  हुई !     
                                                                 
              
                         महामारी संबंधी अनुसंधानों में कमी कहाँ रह गई !
    कई बार किसी क्षेत्र में शत्रु भावना से कोई उपद्रवी तत्व घुसपैठ करता है या किसी हमले की साजिश रचता है  विस्फोट कर देता है या करना चाहता है |इसकी सूचना मिलते ही सेना वहाँ के ग्रामीणों  किसानों मजदूरों लकड़िहारों बकड़ी या भेड़ चराने वालों से उस क्षेत्र के विषय में पहले जानकारी जुटाती है उस जानकारी के छोटे छोटे अंशों को जोड़कर उस घटना के  रहस्य का उद्घाटन कर लेती है और संभावित वारदात को घटित होने पर अंकुश लगाने में सफल हो जाती है  | यह सेना की लक्ष्य लालषा ही है कि सेना अपने लक्ष्य साधन के लिए ग्रामीणों  किसानों मजदूरों लकड़िहारों बकड़ी या भेड़ चराने वालों से न केवल सहयोग लेती है अपितु उन्हीं की मदद से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो  जाती है | विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसे प्रकरणों में मदद करने वाले  ग्रामीण  किसान मजदूर आदि लोग सेना से संबंधित नहीं हैं | इन्होंने सैनिकों की तरह प्रशिक्षण भी नहीं लिया है फिर भी इनकी जानकारी और अनुभवों का लाभ सेना  को मिल गया और सेना उनकी मदद से लक्ष्य को हासिल करने में सफल हो जाती है |
     सेना तो लक्ष्य साधनके लिए उन ग्रामीणों  किसानों मजदूरों लकड़िहारों तक की मदद लेने में संकोच नहीं करती है जबकि मौसम या महामारी संबंधी अध्ययनों अनुसंधानों के क्षेत्र में वेदविज्ञान संबंधित अनुभवों का उपयोग करके भी मनुष्य समाज को  मदद पहुँचाई जा सकती थी,किंतु  उस अत्यंत प्राचीनवेद विज्ञान को यह कह कर  खारिज कर दिया गया कि यह विज्ञान नहीं है | उस ज्ञान विज्ञान से प्राप्त अनुभवों का कोरोना महामारी के समय जनहित में उपयोग नहीं किया जा सका | यह जानते हुए भी  कि महामारी का रहस्य अभी तक अनुद्घाटित बना  हुआ है |
     महामारी  और प्राकृतिक आपदा जैसे प्राकृतिक विषयों से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों के क्षेत्र में  सेना जैसी लक्ष्य लालषा नहीं दिखाई देती है |इस क्षेत्र में प्राचीन ज्ञान विज्ञान से संबंधित अनुभवों को इसलिए खारिज कर दिया जाता है क्योंकि वे वैज्ञानिक नहीं हैं या उनके पास संबंधित विषयों में कोई वैज्ञानिक डिग्री नहीं है | कोरोना और महामारी संबंधित अनुसंधानों के  क्षेत्र में यह गलती बार बार होती रहती है |महामारी का रहस्य अभी तक उद्घाटित न होने का  एक कारण यह भी हो सकता है | 
      महामारी की तरह ही  मौसमविज्ञान के क्षेत्र में भी  केवल आधुनिक विज्ञान से संबंधित अनुसंधान ही किए जा रहे हैं | उसके अतिरिक्त जितनी भी प्राचीन वैज्ञानिक विधाएँ रही हैं उन्हें इस योग्य नहीं समझा जा रहा है कि उनके  अनुभवों का भी मौसम संबंधी अनुसंधानों की दृष्टि से उपयोग किया जा सके ! इस दुराग्रह के कारण वेद विज्ञान से संबंधित अनुभवों को तो  खारिज कर ही दिया गया !उसके साथ ही मौसम संबंधी परिवर्तनों पर अत्यंत सूक्ष्म दृष्टि रखने वाले प्राचीन वैज्ञानिकों के अनुभवों का  भी जनहित में उपयोग नहीं किया जा सका है | यहाँ तक कि मौसम के विषय में अत्यंत अनुभव संपन्न महाकवि घाघ के भी अनुभवों का उपयोग इसीलिए नहीं किया जा सका क्योंकि उनके पास भी आधुनिक मौसमविज्ञान विषयक कोई डिग्री नहीं थी | 
    वेदविज्ञान जो हजारों लाखों वर्षों के अनुभव समेटे हुए है | उसके पास गणितविज्ञान जैसी अत्यंत सक्षम वैज्ञानिक पद्धति भी है जिसके द्वारा सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में हजारों वर्ष पहले से पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |उन्हीं गणित विज्ञान संबंधी अनुसंधानों के आधार पर यदि मौसम एवं महामारी संबंधी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाए तो इसमें आश्चर्य क्या है ?
     महामारियाँ तो हमेंशा से आती रही हैं| उनसे जूझते हुए मनुष्य समाज को अपने  बचाव के लिए हमेंशा से प्रयत्न करने पड़ते रहे हैं | उनमें से  बहुत सारे प्रयत्न सफल भी होते रहे होंगे | उनका उन्होंने जहाँ कहीं संग्रह किया है वर्तमान महामारियों का अध्ययन करने  दृष्टि से उनके  भी अध्ययन अध्यापन अनुसंधान आदि की आवश्यकता है |ऐसा कुछ  तो किया नहीं जा सका अपितु उस प्राचीन ज्ञान विज्ञान को केवल खारिज ही किया जाता रहा है |
     प्राचीन काल में आधुनिक विज्ञान  तो था नहीं  फिर भी मानव समाज उसी प्राचीन विज्ञान  संबंधित अनुभवों का आश्रय लेकर महामारी एवं प्राकृतिक आपदाओं के समय मनुष्य अपना बचाव करता रहा है | प्राचीन विज्ञान प्रकृति के स्वभाव के आधार पर मौसम  संबंधी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में मदद करता है जो घटनाएँ प्रत्यक्ष रूप से दूर दूर तक दिखाई नहीं पडती हैं या यूँ कह लें कि जो घटनाएँ पैदा भी नहीं हुई होती हैं दो चार दस महीने बाद पैदा होने की संभावना होती है |प्राचीन विज्ञान के द्वारा अनुसंधान पूर्वक उनके स्वभाव को भी समझकर अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लेना संभव है|महामारी पर मौसम के प्रभाव को समझने में यह वैज्ञानिक विधा बहुत मददगार सिद्ध हो सकती है| आधुनिक मौसमविज्ञान संबंधी अनुसंधानों में प्रकृति के  स्वभाव पर आधारित अनुसंधानों का अभाव है |इसलिए ये महामारी संबंधी अनुसंधानों की दृष्टि से उतने उपयोगी नहीं रहे हैं |
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Book    
दो  शब्द ! 
                                                  महामारीसंकट और आत्मरक्षा की तैयारियाँ !
    शत्रु देशों के साथ हुए भारत के छोटे-बड़े सभी युद्धों या चरमपंथी हमलों में न इतने लोगों की मृत्यु हुई है और न ही अर्थव्यवस्था को इतनी क्षति पहुँची है| इसका कारण देश के रक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों के द्वारा पहले से करके रखी गईं मजबूत तैयारियाँ हैं | 
    युद्ध या आतंकवादी हमले करते समय दुश्मन ने ऐसे सभीप्रकार के वेरियंट बदलबदल कर लड़ने के लिए प्रयत्न करते ही हैं | उन सभी का मुख तोड़ जवाब देते हुए सेना शत्रुओं के हिंसक हमलों से देश और देशबासियों को सुरक्षित रखती है |शत्रुओं के द्वारा छल छद्म पूर्ण मायावी युद्ध किए जाने पर सेना देश वासियों को कभी यह बताने नहीं आई कि शत्रु अब अपना स्वरूप परिवर्तन कर रहा है या अपनी रणनीति बदलकर और अधिकहिंसक होता जा रहा है !स्वरूप बदलकर वह और अधिक खतरनाक हो सकता है जबकि महामारी के विषय में ऐसी डरावनी आशंकाएँ बार बार जताई जाती रही हैं |जिन्हें सुनकर तनाव बढ़ने के अतिरिक्त समाज के पास विकल्प भी और दूसरा क्या था |   
   सेना की तरह ही कोरोनामहामारी जैसे इतने बड़े शत्रु से देश की स्वास्थ्य सीमाएँ सुरक्षित रखी जानी चाहिए थीं | महामारी से  निपटना भी हमें अपनी सेना से ही सीखना चाहिए | शत्रुकृत सभी षड्यंत्रों को विफल करते समय सेना को शत्रु के स्वरूप परिवर्तन की परवाह नहीं करती है, प्रत्युत शत्रुओं से निपटने  की अपनी  तैयारियाँ हमेंशा इतनी मजबूत करके रखती है कि हमलावर शत्रु कितने भी स्वरूप परिवर्तन कर ले  या कितने भी षड्यंत्र रच ले  फिर भी मुखतोड़ जवाब देते हुए सेना शत्रु को पराजित करती है |महामारी से निपटने के लिए भी ऐसी ही वैज्ञानिक तैयारियाँ पहले से करके रखी जानी चाहिए थीं |
   महामारी से लेकर प्राकृतिक आपदाओं तक  जिस किसी भी मोर्चे पर सेना को लगा दिया जाता है वहाँ परिणाम प्रायः वैसे ही निकलते हैं जैसा लक्ष्य लेकर सेना चलती है | इसीलिए किसी भी बड़े से बड़े संकट के समय देश अपने दुलारे सैनिकों को पुकार लेता है और सैनिक हमेंशा देशवासियों की आशाओं अपेक्षाओं पर खरे उतरते देखे जाते हैं |
      सैन्य तैयारियों की तरह ही मौसम और महामारी से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा तैयारियाँ तो हमेंशा की ही जाती हैं किंतु उनसे कितनी मदद मिली ये तभी पता लगता है जब  उनकी आवश्यकता पड़ती है |कोरोना महामारी से जूझती जनता ने जब वैज्ञानिक अनुसंधानों को अपनी  मदद के लिए पुकारा तब वेरियंट बदलने की बात बोली जाती रही है किंतु इसके लिए जनता क्या करे !यदि ऐसा हुआ भी हो तो इसका समाधान निकालकर महामारी से जनता का बचाव करना भी हो तो ऐसे क्षेत्रों में निरंतर चल रहे  अनुसंधानकार्यों एवं वैज्ञानिकों का ही कर्तव्य है |  
     सैन्यसाधना के क्षेत्र में लक्ष्य साधन  के लिए  केवल प्रयत्न किया जाना ही पर्याप्त नहीं माना जाता अपितु यहाँ लक्ष्य को हासिल करके भी दिखाना होता है !इसके लिए सेना को जहाँ से जो सहयोग मिलता है वो सब लेती है |कई बार किसी बम विस्फोट,घुसपैठ या शत्रु के द्वारा रचित किसी षड्यंत्र आदि को  उद्घाटित करने के लिए सेना वहाँ के ग्रामीणों  किसानों मजदूरों लकड़िहारों बकड़ी या भेड़ चराने वालों तक से मदद लेकर उस घटना के  रहस्य का उद्घाटन कर लेती है,जबकि ये लोग सेना से संबंधित नहीं होते हैं फिर भी उनके अनुभवों का उपयोग कर लिया जाता है ,किंतु मौसम या महामारी संबंधी अनुसंधानों के क्षेत्र में भारत के परंपरागत ज्ञान विज्ञान से प्राप्त अनुभवों का उपयोग किया जाना उचित नहीं समझा जाता है | वास्तव में लक्ष्य यदि समस्या का समाधान  खोजना हो तो संकीर्णता छोड़कर उदार भावना से उन सभी अनुभवों का उपयोग किया जाना चाहिए जिनके लक्ष्य साधन में सहायक होने की थोड़ी भी संभावना हो !   
                                            महामारी को समझने के लिए विज्ञान कहाँ है ?
    आधुनिकविज्ञान कुछ सौ वर्ष पूर्व ही आस्तित्व में आया है तब से कुछ बड़ी महामारियाँ मात्र दो चार बार ही आई हैं | मौसमसंबंधी अनुभव संग्रह भी मात्र सौ सवा सौ वर्षों  का ही है | इतने कमजोर अनुभवों को आधार बनाकर इतने लंबे समयांतराल में घटित होने वाली महामारियों के विषय में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँच पाना कैसे संभव है | 
    जलवायु परिवर्तन के विषय में कहा जाता है कि प्राकृतिक घटनाओं के दीर्घकालीन अनुभवों का संग्रह करके उसी के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है |मौसम संबंधी आधुनिक विज्ञान का इतिहास इतना लंबा नहीं है कि उसके आधार पर ऐसा कोई निश्चित निष्कर्ष निकाला जाना संभव हो सके कि प्रकृति के  जिन  दीर्घकालीन बदलावों को जलवायुपरिवर्तन के नाम से चिन्हित किया जा रहा है वो वास्तव में जलवायुपरिवर्तन ही है या ये प्रकृति में क्रमिक रूप से होते रहने वाला दीर्घकालीन स्वाभाविक परिवर्तन है |जिसे इस रूप  में पहचानना इसलिए संभव नहीं  हो पा रहा है क्योंकि इसे ठीक ठीक प्रकार से समझने के लिए जितने लंबे समय के प्राकृतिक परिवर्तनों का संग्रह चाहिए वो उपलब्ध नहीं है | इसलिए लंबे समयांतराल में घटित होने वाली प्रायः सभी प्रकार की बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ हमारे लिए नई होती हैं | जिन्हें देखकर हमें ऐसा आभाष होना कि ये घटना पहली बार घटित  हो रही है | इसलिए इसका कारण जलवायु परिवर्तन हो सकता है | ये बात आशंका मात्र भी हो सकती है |
     महामारियों के  पैदा  होने में या उसका वेग घटने बढ़ने में मौसम की भी कोई भूमिका हो सकती है |अनेकों वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर ऐसी आशंकाएँ भी व्यक्त की गई हैं | ये केवल आशंकाएँ ही हैं या इनका कोई वैज्ञानिक अनुसंधानों से अर्जित मजबूत आधार भी है | इसकी संभावनाएँ इसलिए बहुत कम हैं क्योंकि आधुनिक विज्ञान का उदय होने के बाद महामारियाँ दो चार बार ही तो आई हैं |अनुसंधानों के लायक उनसे ऐसे अनुभव पर्याप्त मात्रा में मिलना संभव नहीं था | जिनके द्वारा महामारियों पर पड़ने वाले मौसम के प्रभाव का परीक्षण होना संभव होता | दूसरी बात ऐसे कोई अध्ययन अनुसंधान आदि से प्राप्त अनुभवों  का यदि संग्रह होता तो उनका कोरोना महामारी संबंधी अध्ययनों अनुसंधानों में उपयोग अवश्य होता और उससे कुछ ऐसी मदद भी मिलती जिससे महामारी से जूझती जनता लाभान्वित भी होती | 
    महामारी जनित संक्रमण बढ़ने  के लिए कुछ वैज्ञानिकों  के द्वारा वायु प्रदूषण को भी जिम्मेदार बताया जाता रहा है,किंतु महामारियाँ तो पहले भी आती रही हैं जबकि उससमय वाहनों उद्योगों आदि प्रदूषण कारकों  की इतनी अधिकता तो नहीं थी | उससमय वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण क्या था ? इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में वायुप्रदूषण तो अक्सर बढ़ा ही रहता है |ऐसा होते दशकों से देखा जा रहा है किंतु महामारियाँ हमेंशा तो नहीं रहती हैं | इसीलिए  महामारी पर वायु प्रदूषण का  प्रभाव पड़ता है यह कह तो दिया  गया किंतु इसे प्रमाणित नहीं किया  जा सका |वैसे भी वायुप्रदूषण बढ़ने का कोई निश्चित कारण अभी तक खोजा ही नहीं जा सका है | 
    कुलमिलाकर मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाएँ एवं महामारी जैसी स्वास्थ्य संबंधी घटनाएँ तो अनादिकाल से घटित होती रही हैं उनके विषय में कोई अनुसंधानकरना  या अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना कैसे संभव है | इतने कम समय के अनुभवों के आधार पर मौसम एवं महामारी को समझ  लेना ,उसके स्वभाव  को समझ लेना,लक्षणों को  पहचान लेना, उसके संभावित परिवर्तनों के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लेना कैसे संभव है | महामारी में होते रहे स्वरूप परिवर्तनों के लिए वैज्ञानिकों ने मौसम संबंधी विभिन्न परिवर्तनों को जिम्मेदार ठहरा तो दिया किंतु जब इस बात  को प्रमाणित करने  आई तो उन्हें यह कहकर पीछे हटना पड़ा कि कोरोना महामारी पर मौसम का प्रभाव नहीं पड़ता है | 
    प्रकृति और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सभी प्रकार की घटनाएँ घटित होती हैं कुछ लाभ कारक तो कुछ हानि कारक होती हैं | कुछ तुरंत घटित होने वाली तो कुछ लंबे समयांतराल बाद घटित होती हैं जबकि कुछ बहुत लंबे समय अर्थात दशकों के बाद घटित होती हैं इतने लंबे अंतराल के बाद  घटित होने वाली घटनाओं के विषय में हमने कभी कुछ देखा सुना नहीं होता है जबकि वे प्राकृतिक क्रमानुशार अपने निर्धारित समय पर ही घटित हो रही होती हैं | उनके विषय में कोई अनुभव न होने के कारण वे अचानक घटित हुई सी लगती हैं उन्हें समझना संभव नहीं होता है |ऐसी घटनाओं को  जलवायुपरिवर्तन या महामारी के स्वरूप परिवर्तन  जैसे शब्दों से चिन्हित  करके छोड़ दिया जाता है | इसका मतलब यही निकाल लिया जाता है कि इनके विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए |
     ब्यवहार में भी अक्सर यही देखा जाता है कि प्रकृतिक्रम से  अपने अपने समयानुसार घटित होने वाली जिन प्राकृतिक घटनाओं के विषय में कभी कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सका या लगाया भी गया तो गलत निकल गया | इसलिए ऐसी  घटनाओं के घटित होने का कारण जलवायुपरिवर्तन को मान लिया गया |महामारी के स्वरूप परिवर्तन की भी यही  स्थिति है |
     भारत के प्राचीनविज्ञान के अनुशार  ऐसी घटनाओं का संबंध अत्यंतप्राचीन काल में घटित हुई कुछ प्राकृतिक घटनाओं से हो सकता है उनके विषय में यदि कुछ अनुभव संग्रह  हो तो उसके आधार पर उसी क्रम के अनुशार वर्तमान समय में घटित हो रही घटनाओं को न केवल समझा जा सकता है अपितु उसी के आधार पर ऐसी घटनाओं के विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि भी लगाया जा सकता है |इसके अभाव में ऐसा किया जाना संभव नहीं है | इसीलिए ऐसे अनुमान पूर्वानुमान आदि जो लगाए भी जाते हैं वे भी गलत निकल जाते हैं |
   इसके लिए स्वभाव आधारित मौसमसंबंधी सही एवं सटीक अनुमानों पूर्वानुमानों की आवश्यकता है | भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की  स्थापना हुए लगभग डेढ़ सौ वर्ष बीतने जा रहे  हैं किंतु मौसम वैज्ञानिक प्रकृति के स्वभाव पर आधारित मौसम संबंधी घटनाओं  को  समझने में  सफल नहीं हो पा रहे हैं |यही कारण है कि बीते कुछ दशकों में मौसम संबंधी जितनी भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनमें से  किसी के भी विषय में कोई सही अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सका  है | ऐसी स्थिति में महामारी पर पड़ने वाले मौसमसंबंधी प्रभाव का अध्ययन किया जाना या उसके आधार पर महामारी से संबंधित अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लेना कैसे संभव है |
     इसप्रकार से आधारवान पारदर्शी वैज्ञानिक अनुसंधानों के अभाव में महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में कोई सही सटीक अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं पाया है| जिस किसी भी  वैज्ञानिकपद्धति के आधार पर वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में जो जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाते रहे वे गलत निकलते रहे हैं | इस कारण उस वैज्ञानिकपद्धति की वैज्ञानिकता  सिद्ध नहीं हो पायी है |कुलमिलाकर महामारी को समझने के लिए जिसप्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधानों  की आवश्यकता है उनका अभीतक अभाव लगता है |
                           अभी तक नहीं खोजे जा सके हैं इन आवश्यक प्रश्नों के निश्चित उत्तर !
1. महामारीप्राकृतिक है या मनुष्यकृत !
2. महामारी के शुरू होने एवं घटने बढ़ने का कारण क्या है ?
3. महामारी समाप्त कब और कैसे होगी ?
4. हृदयरोगियों को महामारी से कितना भय है ? 
5.क्या महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव है ?
6. महामारी  पर तापमान बढ़ने घटने का  प्रभाव पड़ता है या  नहीं ?
7. वायु प्रदूषण के  प्रभाव से महामारीजनित संक्रमण बढ़ सकता है क्या ?
8. वर्षा  का  प्रभाव कोरोना महामारी पर भी  पड़ता है क्या ?
9. कोरोना महामारी का खतरा किसी उम्र विशेष लोगों  को  अधिक होता है क्या ?
10.कोरोनाकाल में हुई लोगों की मौतों का कारण महामारी ही थी या  कुछ और  ?
11.वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि  सही न निकलने कारण क्या है ?
12.लोगों के संक्रमित होने का  कारण उनमें प्रतिरोधक क्षमता  कमी ही था या कुछ और ?
13. महामारी का प्रारंभिक उद्भव प्राकृतिक वातावरण में हुआ था या मानव शरीरों में ?
14. महामारीजनित संक्रमण  का फलों के अंदर प्रवेश  हो  सकता है क्या ?
15. जिसप्रकार से वैक्सीन लगने से पहले महामारी संक्रमितों की संख्या बढ़ती घटती रही उसीप्रकार से वैक्सीन लगने  के बाद भी संक्रमितों की संख्या बढ़ती घटती रही | ऐसे में  वैक्सीन के  प्रभाव का परीक्षण कैसे हो ?
शत्रु का सामना करने की तैयारियाँ ऐसी हों तो सफलता कैसी होगी ! 
    महामारी से संबंधित वैज्ञानिकों के वक्तव्यों में हर जगह दुविधा दिखाई देती है ! किसी एक वैज्ञानिक के द्वारा एक बार कुछ बोल दिया जाता है कुछ समय बाद उसी के द्वारा कुछ दूसरा बोल दिया जाता है |कभी कभी दूसरे वैज्ञानिक के द्वारा उस बात का खंडन कर दिया  जाता है या कुछ और बोल दिया जाता है | ऐसे में  किसी निश्चित निदान के बिना चिकित्सा करने की आशा कैसे की जा सकती है |
महामारीप्राकृतिक है !
      चीन के वुहान में कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत कैसे हुई ? इसमें दुनिया भर के रिसर्चरों और पत्रकारों की रुचि रही है | कोरोना वायरस वुहान के मीट बाजार से फैला जहां चमगादड़ बेचे जा रहे थे. लेकिन अब बताया जा रहा है कि उस बाजार में चमगादड़ थे ही नहीं और वायरस चीन की लैब से निकला है. तो सच्चाई क्या है?  पश्चिमी मीडिया में रिपोर्ट किया जा रहा है कि पास के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से वायरस लीक हुआ | जनवरी के अंत में "साइंस" नाम की विज्ञान पत्रिका ने एक लेख छापते हुए चीन के आधिकारिक बयान पर सवाल उठाया जिसके अनुसार वायरस मीट बाजार में जानवरों से इंसानों में फैला. इसके बाद "द लैंसेंट" पत्रिका ने लिखा कि कोविड-19 संक्रमण के शुरुआती 41 मामलों में से 13 कभी वुहान के मीट बाजार गए ही नहीं !     

   6 मार्च 2020 - प्राकृतिक है कोरोना वायरस, लैब में नहीं बनाया गया ! अमेरिका समेत कई देशों की मदद से हुए एक वैज्ञानिक शोध में दावा किया गया है कि यह वायरस प्राकृतिक है। स्क्रीप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोध को नेचर मेडिसिन जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया है। शोध को अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ, ब्रिटेन के वेलकम ट्रस्ट, यूरोपीय रिसर्च काउंसिल तथा आस्ट्रेलियन लौरेट काउंसिल ने वित्तीय मदद दी है तथा आधा दर्जन संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हुए।

 26 मार्च 2020:प्राकृतिक है कोरोना वायरस, लैब में नहीं बनाया गया ! अमेरिका समेत कई देशों की मदद से हुए एक वैज्ञानिक शोध में दावा किया गया है कि यह वायरस प्राकृतिक है। स्क्रीप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोध को नेचर मेडिसिन जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया है। शोध को अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ, ब्रिटेन के वेलकम ट्रस्ट, यूरोपीय रिसर्च काउंसिल तथा आस्ट्रेलियन लौरेट काउंसिल ने वित्तीय मदद दी है तथा आधा दर्जन संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हुए।

23-4-2020:स्टैनफोर्ड मेडिकल स्कूल में संक्रामक रोगों के प्रोफेसर रॉबर्ट शेफर का कहना है -"प्रकृति में इस प्रकार की कई चीजें मौजूद हैं जिनसे इस प्रकार की महामारी पैदा हो सकती है |
23-4-2020: ट्यूलन स्कूल ऑफ़ मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ.रॉबर्ट गैरी का कहना है कि यह मानव निर्मित नहीं अपितु प्राकृतिक है | 
24 अप्रैल 2020: विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि वर्तमान तक के सभी उपलब्ध साक्ष्यों से पता चलता है कि कोरोना वायरस प्राकृतिक है और इसमें किसी तरह की कोई हेराफेरी नहीं है और न ही यह मानव निर्मित वायरस है।
1 मई 2020 अमेरिका ने अब माना, 'मानवनिर्मित' नहीं है कोविड-19 वायरस, मगर लैब में जॉंच होती रहेगी | 
 2मई 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन में आपात स्थितियों के प्रमुख डॉक्टर माइकल रायन ने कहा है कि WHO को भरोसा है कि कोरोना वायरस प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ है। रायन ने कहा कि WHO की टीम ने बार-बार बहुत सारे वैज्ञानिकों से इस पर चर्चा की है, जिन्होंने वायरस के जीन सीक्वेंस को देखा है और हमें इस बात का पूरा भरोसा है कि ये वायरस प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ है। उन्होंने ये भी कहा कि कोरोना वायरस से प्राकृतिक होस्ट का पता लगाना जरूरी है, ताकि इसके बारे में अधिक जानकारी मिल सके और भविष्य में ऐसे खतरे से बचा जा सके। 
12 मई 2020चीन में शानदोंगे फर्स्ट मेडिकल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा कि जहां शोधकर्ता चमगादड़ को वायरस का प्राकृतिक वाहक मान रहे हैं, वहीं वायरस की उत्पत्ति अब भी स्पष्ट नहीं है।    

विशेष बात :-

     महामारी मनुष्यकृत है या प्राकृतिक इसका निश्चय किसी के मान लेने या न मान लेने से नहीं होगा अपितु वे तर्क प्रस्तुत किए जाने चाहिए जिसके आधार पर यह निश्चय किया गया है कि महामारी प्राकृतिक है या मनुष्यकृत !जो वैज्ञानिक इसे मनुष्यकृत मानते हैं उन्हें यह बताना चाहिए कि ऐसा कहने के पीछे उनका वैज्ञानिक आधार क्या है ?इन्हीं कुछ वर्षों में मनुष्यों ने ऐसा नया क्या करना शुरू कर दिया  है जो बीते सौ वर्षों तक नहीं किया गया और अचानक शुरू कर दिया गया |

    इसी प्रकार से  यदि किसी देश विशेष की लैब से निकले वायरस को महामारी  के लिए जिम्मेदार कारण माना जाए तो उस वायरस से अपने अपने देश को सुरक्षित क्यों नहीं किया जा सका | एक देश ने पुरे विश्व में तवाही मचा दी तो अन्य देशों में भी तो वैज्ञानिक अनुसंधान होते ही थे जिनके द्वारा वे देश अपनी अपनी सुरक्षा भी नहीं कर सके | ये चिंता की बात है |  

   दूसरी बात किसी देश की लैब से निकला वायरस ही यदि महामारी पैदा होने के लिए जिम्मेदार मान लिया जाए तो वो तो एक बार निकला तो महामारी भी एक बार जितनी बढ़नी थी बढ़ जाती उसके बाद तो शांत होती औरजब शांत होती तब तो समाप्त होती चली जाती किंतु ऐसा नहीं हुआ तो प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि महामारी की लहरें आने और जाने के मनुष्यकृत ऐसे कौन से कारण थे जिनसे संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने या कम होने लगती थी |इससे भी बड़ा प्रश्न  महामारी आने के क्या कारण थे और जाने के क्या कारण रहे होंगे | इसके साथ ही यह अनुमान लगाया जाना भी आवश्यक है कि  महामारी मनुष्यकृत चिकित्सकीय प्रयासों से ही समाप्त होगी या प्राकृतिक रूप से अपने आपसे समाप्त होगी |यदि अपने आप से ही समाप्त होनी है तब तो वैज्ञानिक अनुसंधानों की भूमिका ही क्या बचती है | 

     कोरोना महामारी यदि प्राकृतिक है तो कहीं ऐसा तो नहीं कि महामारी का पैदा होना और समाप्त होना भी प्राकृतिक हो इसकी लहरों का आना जाना भी प्राकृतिक ही हो ,इसकी चिकित्सा भी प्राकृतिक प्रक्रिया से ही हो रही हो !कहीं ऐसा तो नहीं कि मनुष्य अपने निराधार प्रयासों का प्रदर्शन करके अकारण ही श्रेय लेने का प्रयत्न कर रहा है | ऐसे महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर भी अनुसंधान पूर्वक तर्क संगत ढंग से समाज को मिलना चाहिए | 

    महामारी को प्राकृतिक मान लेना भी आसान नहीं है !

    महामारी  यदि प्राकृतिक है जैसा कि अमेरिका समेत कई देशों की मदद से हुए एक वैज्ञानिक शोध में दावा किया गया है कि यह वायरस प्राकृतिक है। स्क्रीप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोध को नेचर मेडिसिन जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया है। शोध को अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ, ब्रिटेन के वेलकम ट्रस्ट, यूरोपीय रिसर्च काउंसिल तथा आस्ट्रेलियन लौरेट काउंसिल ने वित्तीय मदद दी है तथा आधा दर्जन संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हुए। 2मई 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन में आपात स्थितियों के प्रमुख डॉक्टर माइकल रायन का एक बयान समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ है जिसमें उन्होंने कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन बार-बार बहुत सारे वैज्ञानिकों से इस पर चर्चा की है जिसके आधार पर पूरा भरोसा है कि कोरोना वायरस प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ है।

    कुलमिलाकर वैज्ञानिकों का एक बड़ा वर्ग यदि यह मानता है कि कोरोना वायरस किसी लैब में नहीं बनाया गया है अपितु यह प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ है तो इससे संबंधित अध्ययन अनुसंधान आदि करने के लिए समय समय पर बदलते रहने वाली प्राकृतिक परिस्थितियों का अध्ययन करना आवश्यक है |लगभग सौ वर्ष के लंबे अंतराल के बाद प्राकृतिक परिदृश्य में ऐसा क्या बड़ा बदलाव आया था जो बीते नब्बे पंचानबे वर्षों में नहीं देखा जाता रहा है और अचानक कोरोना महामारी पैदा होने से पहले प्रकृति में उस प्रकार के परिवर्तन होने लगे जो पहले होते नहीं देखे गए थे  | 

    इसी क्रम में यह भी बिचार किया जाना चाहिए कि यदि महामारी पैदा होने का कारण प्राकृतिक है तो कोरोना महामारी के समय बीच बीच में जो लहरें आती और जाती थीं उस समय संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने और उसके बाद घटने लग जाती थी | ऐसा होने के आधार भूत वे जिम्मेदार प्राकृतिक कारण कौन थे अर्थात उसी समय प्रकृति में ऐसे क्या बड़े बदलाव होने लगते थे जिससे संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने और उसके बाद घटने लग जाती थी | 

   इसके साथ ही अनुसंधान पूर्वक इस बात का भी निश्चय किया जाना चाहिए कि प्रकृति में किस प्रकार के परिवर्तन दिखाई देने लगने के बाद महामारी के संपूर्ण रूप से समाप्त होने की आशा की जा सकती है | 

      वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा प्राकृतिक आधार पर लगाए गए इस प्रकार के लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान यदि सही निकलें तो यह प्रमाणित भी हो जाएगा कि महामारी वास्तव में प्राकृतिक रूप से ही पैदा हुई है | यदि ऐसा नहीं होता है तो वैज्ञानिक अनुसंधान की दृष्टि से यह मान लिया जाना उचित नहीं होगा कि महामारी प्राकृतिक रूप से ही पैदा हुई है भले यह सच हो तो भी इसे प्रमाणित करने के लिए हमारे पास ऐसे कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं हैं जिन्हें प्रस्तुत करते हुए हमारे द्वारा यह कहा जा सके कि कोरोना महामारी प्राकृतिक रूप से पैदा हुई है ऐसा  वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा  हमें पता लगा है | 

   जनता ने अपने वैज्ञानिकों से जानना चाहा कि कोरोना कब तक रहेगा ?

     इस विषय में भिन्न भिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा अलग अलग अंदाजे लगाए गए ! जिनसे जनता को उसके लिए आवश्यक उत्तर नहीं मिल पाया !वैज्ञानिक वक्तव्यों  ये निष्कर्ष निकालपाना संभव भी नहीं था कि कोरोना कबतक रहेगा !-

 2-4-2020 को प्रकाशित: चीन के सबसे बड़े कोरोना वायरस एक्सपर्ट डॉ. झॉन्ग नैनशैन ने दावा किया है कि"4 हफ्तों में कम होंगे कोरोना वायरस के मामले !"इसके आधार पर मई प्रारंभ से कोरोना संक्रमण समाप्त हो जाना चाहिए था |

17 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :"गृह मंत्रालय के आंतरिक सर्वेक्षण में पता चला है कि मई के पहले सप्ताह में कोरोना के मरीजों की संख्या में काफी तेजी देखने को मिलेगी." जबकि मई इसके बाद कोरोना मरीजों की संख्या धीरे-धीरे कम होने लगेगी.!

24 अप्रैल 2020  को नीति आयोग के सदस्य और चिकित्सा प्रबंधन समिति के प्रमुख वीके पॉल ने एक अध्ययन पेश किया था , जिसमें उन्होंने भविष्यवाणी की थी -"देश में कोरोना संक्रमण के नए मामले 16 मई तक खत्म हो जाएँगे | 

  26 Apr 2020 को आईआईटी कानपुर ने कहा -"भारत जल्द ही कोरोना संकट से उबरेगा ! 

27 अप्रैल 2020 को सिंगापुर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड डिजाइन के शोधकर्ताओं का एक रिसर्च प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने कहा है -"भारत में 27 मई 2020 तक कोरोना संक्रमण समाप्त हो सकता है !

8 May 2020 को एम्स के डायरेक्टर डॉ. गुलेरिया  ने जून-जुलाई में कोरोना संक्रमण चरम पर पहुंचने की बात कही थी | 

09 May 2020केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा-" जल्द फ्लैट ही नहीं रिवर्स हो जाएगा कोरोना ग्राफ  !"

09 May 2020 बिहार के बरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट डॉ. अजय कुमार ने कहा कि जून-जुलाई में कोरोना के मरीज बढ़ेंगे नहीं अपितु  घटने शुरू होंगे ! 

09 May 2020 डॉ. अमरकांत आईएमए, बिहार के निर्वाचित अध्यक्ष डॉ. अमरकांत झा ने कहा कि जून में कोरोना का संक्रमण स्थिर हो जायेगा। इसके बाद इसमें उत्तरोत्तर घटोत्तरी होगी।

 6 Jun 2020ऑनलाइन जर्नल एपीडेमीयोलॉजी इंटरनेशनल में प्रकाशित:"मध्य सितंबर के आसपास भारत में खत्म हो सकती है कोरोना महामारी ".

15 जून 2020 इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा गठित रिसर्च ग्रुप की ओर से कहा गया कि नवंबर महीने में कोरोना संक्रमण अपने पीक पर होगा!

 16- 6-2020 को भारतीय वैज्ञानिक न्यूकिलीयर एवं अर्थसाइंटिस्ट  डॉ. के  एल सुंदर ने दावा किया कि 21 जून 2020 को ग्रहण के साथ ही कोरोना वायरस समाप्त हो जाएगा | 

1 अगस्त, 2020 को सरकारी दृष्टि से महामारी को लेकर स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए हुई बैठक के बाद ये बयान जारी किया गया -" कोरोना वायरस महामारी के लंबे समय तक रहने की संभावना है.|" 
19 अक्टूबर 2010 को प्रकाशित दक्षिणी भारत वाणिज्य और उद्योग मंडल द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में विश्व स्वास्थ्य संगठन की चीफ साइंटिस्ट सौम्या विश्वनाथन का एक बयान -"2 साल तक कोरोना से राहत नहीं!"

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 महामारी से भयभीत जनता ने अपने वैज्ञानिकों से जानना चाहा  हृदयरोगियों के लिए कितना खतरा है ?
      विभिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा कोरोना महामारी अन्य लोगों की अपेक्षा हृदयरोगियों के लिए अधिक पीड़ाप्रद बताई जा रही थी | ऐसी अफवाहें समाज में खूब सुनी जा रही थीं | जिनसे  हृदयरोगियों एवं उनके परिजनों का चिंतित होना स्वाभाविक ही था | इन अफवाहों में सच्चाई कितनी है इसे जानने के लिए समाज अपने वैज्ञानिकों की ओर देखने लगा कि यहाँ से प्रमाणित जानकारी मिलेगी कि कोरोना महामारी से हृदयरोगियों को कितना खतरा है | 
    ऐसे में विभिन्न वैज्ञानिकों ने अपने अपने अनुमान बताए कि हृदय रोगियों पर कोरोना महामारी का कैसा प्रभाव रहेगा |वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए अनुमान केवल गलत ही नहीं निकले अपितु घटनाएँ उन अनुमानों के विरुद्ध भी घटित होते देखी गईं |
     ऐसी परिस्थिति में हृदयरोगियों को यह समझ में ही नहीं आया कि हृदयरोगियों के विषय में वैज्ञानिक कहना क्या चाह रहे हैं | उन्हें महामारी से अन्य लोगों की अपेक्षा खतरा कम है या अधिक ? 
    कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा बताया गया कोरोना महामारी से हृदयरोगियों को अधिक खतरा -
इस बिषय में कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर दिए गए विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित वक्तव्य :
1. - 13 अप्रैल 2020 को प्रकाशित लेख के अंश -"अमेरिकन हार्टएसोसिएशन उन लोगों के लिए सावधानी और तैयारी की सलाह दे रहा है जिन्हें दिल की बीमारी है या जो एक स्ट्रोक से बच गए हैं।  यदि उन्हें कोरोना वायरस संक्रमण होता है, तो स्ट्रोक से बचे लोगों को जोखिम बढ़ सकता है।"
2. 16 अगस्त 2020 : कोविड-19 रोगी जो हृदय रोग से ग्रसित हैं या जिनमें हृदय रोग होने का जोखिम है, उनके मरने की आशंका अधिक है.यह बात बड़े पैमाने पर हुए एक अध्ययन में सामने आई है | 
3. इटली के मैग्नाग्रेसेया विश्वविद्यालय के लेखकों ने कहा, “ज्यादातर लोगों के लिए कोरोनावायरस रोग (कोविड -19) हल्की बीमारी का कारण बनता है, हालांकि, यह गंभीर निमोनिया पैदा कर सकता है और कुछ लोगों में मृत्यु का कारण बन सकता है.” इस अध्ययन में शोध टीम ने एशिया, यूरोप और अमेरिका में कुल 77,317 अस्पताल में भर्ती मरीजों कोविड -19 रोगियों पर प्रकाशित 21 अवलोकन संबंधी अध्ययनों के आंकड़ों का विश्लेषण करके पता लगाया गया कि “कोविड -19 रोगियों में हृदय संबंधी जटिलताएं आम हैं और यह मृत्यु दर बढ़ाने में योगदान दे सकती हैं.”
4. डॉ. के.के.अग्रवाल, अध्यक्ष, हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने कहा – "यह एक हद तक सच है कि हार्ट पेशेंट में दूसरे लोगों के मुकाबले कोरोना वायरस का खतरा अधिक है और इसीलिए उन्हें सावधानी भी दूसरे लोगों से अधिक बरतने की ज़रुरत है ।" 
5. 07 Dec 2020 कुछ वैज्ञानिकों का मंतव्य -"कोरोना काल में घर से बाहर न निकलने से भी फेफड़ों में संक्रमण और हार्ट अटैक का खतरा अधिक  होता है "| 
6. 29 Sep 2020 पीएमसीएच के मेडिसिन रोग विभाग्ध्यक्ष व कोविड सेंटर के नोडल प्रभारी डॉ यूके ओझा ने कहा -"कोरोना सबसे ज्यादा फेफड़े व हृदय को प्रभावित कर रहा है। इससे हृदय रोगियों को अधिक गंभीर जटिलताओं के चलते खतरा बढ़ जाता है। जिसके चलते दिल में इंफेक्शन के खतरे के साथ ही हार्ट फेल होने की भी संभावना बढ़ जाती है।"
7. पीएलओएस वन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, हृदयरोग से ग्रसित कोविड-19 रोगियों का इलाज करने के दौरान चिकित्सकों को इनके जोखिम कारकों को समझना कठिन रहा !
8. 07 Dec 2020 कुछ वैज्ञानिकों का मंतव्य -"कोरोना काल में घर से बाहर न निकलने से भी फेफड़ों में संक्रमण और हार्ट अटैक का खतरा अधिक  होता है "| 
  
      हृदय रोगों से संबंधित खतरा बढ़ा है 
 25अगस्त  2020 प्रकाशित :दिल्ली के सबसे बड़े सुपरस्पेशलिटी अस्पतालों में से एक जी बी पंत हॉस्पिटल में दिल पर हुई स्टडी में  चौकाने वाली बातें सामने आई है. जांच में पता चला है कि यह वायरस दिल के मरीज़ों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहा है. इससे लोगों को हार्ट अटैक जैसे मामलों में भी बढ़ोत्तरी हो रही है.!जानकारी के मुताबिक स्टडी में 45 और 80 के बीच की उम्र के सात कोरोना संक्रमित रोगियों पर अध्ययन किया गया. इसमें कोरोना से दिल पर पड़ने वाले असर से जुड़ी समस्याएँ  सामने आईं !
30-9-2020प्रकाशित :कोरोना काल में हार्ट अटैक के मामले 20 प्रतिशत तक बढ़े!  
1.हाल ही में प्रकाशित एक शोध में यह जानकारी आई है कि कोरोना फेफड़ों को ही नहीं दिल को भी क्षति पहुँचा रहा है। हार्टअटैक की संभावना प्रबल हो जाती है। कोरोना को हराने वाले 100 मरीजों पर शोध किया गया था, जिनकी उम्र 45 से 53 के बीच में थी। उनकी एमआरआई कराने पर सामने आया कि 78 मरीजों के दिल के आकार में बदलाव देखने को मिला है। इस तरह के बदलाव केवल हार्ट अटैक के आने के बाद ही किसी मरीज में देखने को मिलते हैं। ऐसी आशंकाएँ  अन्य वैज्ञानिकों के द्वारा भी व्यक्त की जा रही थीं |सबका समावेश करना यहाँ संभव नहीं है |  
24दिसंबर 2020  प्रकाशित :  कोरोना से हार्ट अटैक के मामले 10 से 15 फीसदी बढ़ रहे हैं. चिकित्सकों का कहना है कि सबसे बड़ा कारण कोविड को लेकर डर है. लोग कोविड टेस्ट से बचने के लिए अस्पताल नहीं जा रहे हैं, जिससे मौतें बढ़ रही हैं. मृत घोषित होने के बाद जब अस्पताल लाया जाता है तो कोविड फोबिया सामने आता है. तमाम रोगों से ग्रस्त 90 फीसदी मरीज डॉक्टरों के संपर्क में नहीं हैं | इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के कार्डियो-थोरेसिक एंड वैस्कुलर सर्जरी के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. मुकेश गोयल कहते हैं, कोरोनाकाल में इमरजेंसी यूनिट में हार्ट अटैक के मामले कम आ रहे हैं। कोरोना के कारण मरीज अस्पताल आने से डर रहे हैं। इसलिए घर पर कार्डियक अरेस्ट के कारण होने वाली मौतों की संख्या बढ़ रही है। 
  अनुमानों  बिपरीत महामारी के समय  हार्ट अटैक की घटनाएँ कम घटित हुई हैं ! 
     कोरोना महामारी की शुरुआत से ही यह बात बताई जा रही है कि दिल के मरीजों को कोरोना संक्रमण होने का खतरा ज्यादा रहता है। दूसरी ओर एक राहत भरी बात यह सामने आई है कि इस कोरोना काल में हार्ट अटैक के मामले काफी कम हुए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना काल में न केवल भारत में हार्ट अटैक के मामले कम हुए, बल्कि विदेशों में भी यही स्थिति सामने आई है।चिकित्सा क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिका के प्रो. फरीद मुराद, अपोलो ग्रुप के सलाहकार और हृदयरोग विभागाध्यक्ष प्रो. एनएन खन्ना समेत कई विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति जताई कि हार्ट अटैक के मरीज बहुत कम हो गए हैं जबकि वैज्ञानिकों ने बहुत अधिक घटनाएँ घटित होने का अनुमान लगाया था |यथा -
1.-  28 अप्रैल 2020 को जीबिजिनेस में प्रकाशित: न्यूयॉर्क के माउंट सिनाई हार्ट में ऑपरेशंस एंड क्वॉलिटी के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट समिन के शर्मा के मुताबिक, कोरोना काल में हार्ट अटैक का खतरा कम हुआ है. दुनियाभर के कई देशों में हार्ट अटैक के मामलों में कमी देखने को मिली हैअस्पताल में हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या में 30-70% की कमी देखने को मिली है. खासकर अमेरिका में इसका काफी अच्छा रेशियो सामने आया है. अमेरिका के अलावा भारत, स्पेन और चीन में भी हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या कम हुई है |अन्य  डॉक्टर्स का भी मानना है कि कोरोना काल में सबसे ज्यादा फिट आपका दिल हुआ है. दरअसल, महामारी के इस दौर में हार्ट अटैक के मामले 30 से 70 प्रतिशत कम हुए हैं.see. ... https://www.zeebiz.com/hindi/india/covid-19-heart-attack-patients-reduced-by-up-to-70-per-cent-during-lockdown-fitness-mantra-to-keep-your-heart-fit-25705
2. - 02 Jul 2020 प्रो. एनएन खन्ना अपोलो ग्रुप के सलाहकार और अस्पताल में हृदयरोग विभागाध्यक्ष का प्रकाशित वक्तव्य :कोविड काल में हार्ट अटैक के मामले सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी कम आए हैं।  
3.- 02-08-2020 को हिंदुस्तान में प्रकाशित : कोरोनाकाल में 70 प्रतिशत कम हुए हार्टअटैक के मरीज !कोरोना के कारण बीते चार महीनों में अस्पतालों में हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या में गिरावट आई है। भारत में एम्स से लेकर राम मनोहर लोहिया अस्पताल, सफदरजंग अस्पताल सहित कई दूसरे अस्पतालों में हार्ट अटैक के मरीजों के मामलों में कमी देखने को मिली है। लॉकडाउन खुलने के बाद भी हार्ट अटैक वाले मरीजों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं हुई है।आरएमएल अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग में कार्यरत एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. तरुण कुमार ने बताया कि आरएमएल अस्पताल में 60-70 फीसदी की गिरावट हार्ट अटैक के मरीजों में देखने को मिली है। सिर्फ 3-4 हार्ट अटैक के मरीज ही अस्पताल पहुंच रहे है। लॉकडाउन खुल जाने के बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है, जबकि कोरोना से पहले 15 हार्ट अटैक के मरीज इलाज के लिए पहुंचते थे। अमेरिका में भी हुई 48 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है | डॉक्टर के मुताबिक, हार्ट अटैक के मरीज कम होने का असर दिल्ली में ही नहीं, बल्कि वैश्विक तौर पर भी देखने को मिला है। खासतौर पर जब से कोरोना का प्रकोप फैला है। उन्होंने एक शोध का हवाला देते हुए बताया कि अमेरिका के एक शहर में इस संबंध में अध्ययन किया गया, जिसमें कोरोना से पहले और कोरोना काल की अवधि में शोध हुआ। शोध में सामने आया कि हार्ट अटैक के मामलों में 48 फीसदी तक की गिरावट दर्ज हुई है।see...   https://www.livehindustan.com/ncr/story-good-news-heart-attack-patients-reduced-by-70-per-cent-due-to-corona-3391924.html
4.- 02 Aug 2020 : आरएमएल अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग में कार्यरत एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. तरुण कुमार ने बताया कि आरएमएल अस्पताल में 60-70 फीसदी की गिरावट हार्ट अटैक के मरीजों में देखने को मिली है। सिर्फ 3-4 हार्ट अटैक के मरीज ही अस्पताल पहुंच रहे है। लॉकडाउन खुल जाने के बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है | 
5. 12 Aug 2020 को प्रकाशित :  इस कोरोना काल में हार्ट अटैक के मामले 30 फीसदी कम हुए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना काल में न केवल भारत में हर्ट अटैक के मामले कम हुए, बल्कि विदेशों में भी यही स्थिति सामने आई है। 
 6.अमेरिका में भी हुई 48 फीसदी की गिरावट दर्ज :डॉक्टर के मुताबिक, हार्ट अटैक के मरीज कम होने का असर दिल्ली ही नहीं, बल्कि वैश्विक तौर पर भी देखने को मिला है। खासतौर पर जब से कोरोना का प्रकोप फैला है। उन्होंने एक शोध का हवाला देते हुए बताया कि अमेरिका के एक शहर में इस संबंध में अध्ययन किया गया, जिसमें कोरोना से पहले और कोरोना काल की अवधि में शोध हुआ। शोध में सामने आने पर कॉरोनाकाल कोया कि हार्ट अटैक के मामलों में 48 फीसदी तक की गिरावट दर्ज हुई है।
हार्टअटैक कम होते देखकर लॉकडाउन को हृदय रोगियों के लिए लाभप्रद बताया गया ! 
  12 Aug 2020 को प्रकाशित :विशेषज्ञों के मत से लॉकडाउन हार्ट अटैक रोगियों के लिए फायदेमंद साबित हुआ। अब विस्तार से इस बात का पता लगाने की कोशिश हो रही है कि वे कौन से जोखिम कारक हैं जो कोरोना काल में कम हुए हैं और जिसका सीधा असर साइलेंट यानी बिना लक्षणों वाले हर्टअटैक पर हुआ है। 'एशिया पेसेफिक वैस्कुलर इंटरवेंशन सोसाइटी' की ओर से इसके अध्ययन के लिए टीम का गठन किया गया है। 
12 Aug 2020 को प्रकाशित : चिकित्सा क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिका के प्रो. फरीद मुराद, अपोलो ग्रुप के सलाहकार और हृदयरोग विभागाध्यक्ष प्रो. एनएन खन्ना समेत कई विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति जताई कि हार्ट अटैक के मरीज या तो बहुत कम हो गए हैं या फिर अस्पतालों में कम पहुंच रहे हैं। दरअसल, हार्ट अटैक के लिए ट्रिगर माने जाने वाले कई रिस्क फैक्टर मतलब जोखिम कारक, जैसे कि बाहर का खानपान, प्रदूषण जैसी चीजें कोरोना काल में नहीं के बराबर हुई हैं। इस वजह से जो लोग पहले से ही हर्ट अटैक के रिस्क फैक्टर में थे, उन्हें राहत मिली।कुछ लोग बहुत समय के बाद अपनों के साथ अपने घरों में काम काज के तनाव से अलग इतना समय शांत एवं एकांत बिता सके !
    कोरोना काल में  मृतकोंकी संख्या बढ़ती देखकर मौतों का कारण यह बताया गया !
  02 Jul 2020 - लॉकडाउन के दौरान पूरे प्रदेश में कोरोना संक्रमण से जितनी लोगों की मौत हुई है, उससे कई गुना ज्यादा लोगों की मौत अकेले एससीबी मेडिकल में कोरोना के खौफ के कारण हुई है। जानकारी के मुताबिक साढ़े तीन महीने के लॉकडाउन के दौरान एससीबी मेडिकल में दूसरी बीमारी से पीड़ित 3 हजार लोगों ने दम तोड़ दिया है। इन लोगों के मृत्यु के पीछे का कारण कोरोना भय को माना गया है। क्योंकि कोरोना के भय के कारण विभिन्न गम्भीर बीमारी से पीड़ित लोग अपना इलाज कराने अस्पताल नहीं गए और जब अस्पताल पहुँचे तब तक उनकी हालत इतनी बिगड़ गई थी कि उन्हें बचाना मुश्किल हो गया।   
29 जुलाई  2020,एम्स के डॉ. अजय मोहन के अनुसार, कोविड-19 महामारी ने देश और दुनियाभर के लोगों के जीवन में कई स्तरों पर तनाव ला दिया है. लोग न केवल अपने परिवार के बीमार होने के बारे में चिंतित हैं, बल्कि वे आर्थिक और भावनात्मक मुद्दों, सामाजिक समस्याओं और संभावित अकेलेपन से निपट रहे हैं. अब ये तनाव शरीर और दिलों पर असर डाल रहा है!  
02 Aug 2020:एम्स में भी कमी :एम्स अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अंबुज रॉय बताते है कि एम्स ही नहीं दूसरे जगहों पर भी हार्ट अटैक के मरीजों में कमी आई है। कोरोना के डर से अस्पताल न आना इसकी मुख्य वजह हो सकती है।
02 Aug 2020 प्रकाशित : डर मुख्यकारण :सफदरजंग अस्पताल में भी हार्टअटैक के मरीजों की संख्या में गिरावट आई है। अस्पताल के एक डॉक्टर के अनुसार, पहले रोजाना दस हार्ट अटैक के मरीज इलाज के लिए आते थे। अब संख्या पांच पर सिमट गई है। इसका मुख्य कारण कोरोना के डर से अस्पताल इलाज के लिए न आना है। हल्का हार्ट अटैक होने पर मरीज उसे कोरोना के डर से दरकिनार कर रहा है। जब उसे दोबारा तकलीफ महसूस होती है तो हार्ट अटैक होने के बारे में पता चलता है। 
 6 जून, 2020  को एक लेख प्रकाशित हुआ उसमें लिखा था - वैज्ञानिकों के द्वारा कोरोना महामारी से संक्रमितों की मृत्यु बड़ी संख्या में हुई बताया जा रहा है !सांस लेने में तकलीफ या कोविड जैसे कुछ अन्य लक्षणों के कारण बिना डॉक्टरी सलाह के गलत दवा लेने से भी मौतें बढ़ी हैं| 
   मृतकों की  संख्या फिर भी अन्य वर्षों की अपेक्षा कम रही !
 18 Jul 2020 को एक लेख प्रकाशित हुआ उसमें लिखा था -" कोरोना महामारी में इतनी अधिक संख्या में मौतें होने के बाद भी मृतकों की संख्या पिछले साल के मुकाबले कम रही है !"
     इस बिषय में किए गए अनुसंधानों से संबंधित वक्तव्य : 
      30 सितंबर 2020 को प्रकाशित :वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट कहती है, कोरोना से रिकवर हो चुके मरीजों के हार्ट पर गहरा असर पड़ा है। संक्रमण के इलाज के बाद इनमें सांस लेने में दिक्कत, सीने में दर्द जैसे लक्षण दिख रहे हैं। हार्ट के काम करने की क्षमता पर बुरा असर पड़ रहा है। जो लंबे समय तक दिखेगा |  

30 सितंबर 2020 को प्रकाशित :अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक कोरोना से रिकवर होने वाले 100 में से 78 मरीजों के हार्ट डैमेज हुए और दिल में सूजन दिखी। रिसर्च कहती है, जितना ज्यादा संक्रमण बढ़ेगा भविष्य में उतने ज्यादा बुरे साइड-इफेक्ट का खतरा बढ़ेगा।

30 सितंबर 2020 को प्रकाशित:ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक कोरोना से रिकवर होने वाला हर 7 में से 1 इंसान हार्ट डैमेज से जूझ रहा है। यह सीधेतौर पर उनकी फिटनेस पर असर डाल रहा है।

 02 Aug 2020 प्रकाशित :कोरोना को हराने के बाद मरीज भले ही स्वस्थ्य हो गया हो, लेकिन बीमारी के संक्रमण ने शरीर के दूसरे अंगों को भी नुकसान पहुंचाया है। हाल ही में प्रकाशित एक शोध में यह जानकारी आई है कि कोरोना फेफड़ों को ही नहीं दिल को भी क्षति पहुंचा रहा है। हार्ट अटैक की संभावना प्रबल हो जाती है। कोरोना को हराने वाले 100 मरीजों पर शोध किया गया था, जिनकी उम्र 45 से 53 के बीच में थी। उनकी एमआरआई कराने पर सामने आया कि 78 मरीजों के दिल के आकार में बदलाव देखने को मिला है। इस तरह के बदलाव केवल हार्ट अटैक के आने के बाद ही किसी मरीज में देखने को मिलते हैं।

विशेष बात :- जनता ने अक्सर अपने प्रिय चिकित्सा वैज्ञानिकों से सुन रखा था कि कोरोनासंक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए अभी तक कोई उपयुक्त औषधि या वैक्सीन आदि नहीं बनी है जिससे कोरोना संक्रमितों की चिकित्सा की जा सके इसके बाद भी कहा जा रहा था कि कोरोना संक्रमित होने के बाद तुरंत चिकित्सा के लिए डॉक्टरों से संपर्क करें !लोग ऐसा कर भी रहे थे वे अस्पतालों में एडमिट भी किए जा रहे थे और उनकी चिकित्सा भी की जा रही थी| 

     ऐसी परिस्थिति में आम जनता के मन में शंका होना  स्वाभाविक ही था कि यदि कोरोना संक्रमण के लिए कोई औषधि बनी ही नहीं थी तो चिकित्सालयों में संक्रमितों को एडमिट करके चिकित्सा किस रोग की किन औषधियों से और कैसे की जा रही थी |

     जिन्हें  कोरोना महामारी का स्वभाव ही नहीं पता था | रोग का संक्रमण बढ़ने और घटने का कारण नहीं पता था | वेंटिलेटर लगे होने के बाद भी लोगों की मृत्यु होते देखी जा रही थी | इसके बाद भी चिकित्सा किया जाना संभव कैसे था !प्रत्येक कुशल चिकित्सक किसी रोगी की चिकित्सा करने से पूर्व रोग के वास्तविक स्वरूप को समझ लेना चाहता है उसके बाद ही उसके द्वारा की गई उस रोग की चिकित्सा सफल होते देखी जाती है ऐसी परिस्थिति में जिस रोग के बिषय में कुछ भी पता ही न हो उसकी चिकित्सा कैसे संभव है !फिर भी यदि कोई चिकित्सा करता ही है तो उस रोगी पर चिकित्सा के अच्छे या बुरे दोनों ही प्रकार के परिणाम होना  स्वाभाविक  है | 

       चिकित्सालयों में जाकर स्वस्थ होने वाले रोगियों के शरीरों में ही बाद में कुछ विशेष प्रकार के दूसरे रोग पनपते देखे गए जबकि कोरोना से संक्रमित तो बहुत बड़ा वर्ग हुआ बताया जाता है कुछ लोगों ने ही कोरोना संक्रमण की जाँच करवाई थी जबकि बहुत लोगों ने जाँच नहीं भी करवाई कोई दवा भी नहीं ली संक्रमण के लक्षण पहचानकर घरों में ही बने रहे और स्वस्थ भी हो गए उनके शरीरों में इस प्रकार के दुष्प्रभाव भी होते नहीं देखे गए ! इससे ये शंका होनी स्वाभाविक ही है कि रोग को समझे बिना जो चिकित्सा की जाती रही ये कहीं उसी के दुष्प्रभाव तो नहीं थे | 

हार्टअटैक के कारण होने लगीं अचानक मौतें !
   12 दिसंबर 2022 को प्रकाशित :कोरोना के बाद दिल की 'धोखेबाजी' से दहशत! यूपी में थम ही नहीं रहा अचानक से मौतों का सिलसिला !बैठे, चलते-फिरते, नाचते अचनाक से दिल का दौरा पड़ने और फिर मौत हो जाने के कई मामले सामने आने लगे हैं। मेरठ, बरेली, लखनऊ में हार्ट अटैक से मौत की घटनाएँ देखी जा रही हैं |
    ऐसा होने के पीछे के आधार भूत कारण वैज्ञानिकों के द्वारा बताए गए -
 नेचर पत्रिका में छपे एक लेख में बताया गया -कोरोना संक्रमित आई सीयू में भर्ती लोगों के दिल की सूजन का खतरा 20 गुना अधिक है | होम आइसोलेशन में  ठीक हुए लोगों में खतरा 8 गुना अधिक  है | BHU के हृदयरोग विभागाध्यक्ष प्रो.ओम शंकर ने  बताया कि हार्ट अटैक के करीब 25 प्रतिशत रोगी बढ़ गए हैं | अमेरिका में हृदयगति रुकने की घटनाएँ 45 प्रतिशत बढ़ने की बात कही गई है ,जबकि इटली में हृदयगति रुकने के 77 प्रतिशत मामले  बढ़ने की बात कही गई है |फ्राँस में दोगुने मामले बढ़ने की बात कही गई है | 
मुख्यबात:ऐसी परिस्थिति में यदि देखा जाए तो जो हृदयरोगी यह जानना चाहते थे कि कोरोना महामारी से हृदयरोगियों को कितना खतरा है| उस हिसाब से वे अपने बचाव  के लिए अग्रिम तैयारी करके सतर्कता पूर्वक समय व्यतीत करना चाहते थे |  वैज्ञानिकों  के इन वक्तव्यों से उन्हें कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिल पाया है | जब जो जैसा जैसा होता चला जाएगा वही यदि वैज्ञानिक वक्तव्यों में भी बताया जाना है,तब तो अनुसंधानों की उपयोगिता ही क्या रह जाएगी एवं उनकी सार्थकता कैसे सिद्ध होगी |
     महामारी विषयक अध्ययनों को यदि किया ही नहीं गया था तो इस प्रकार के भ्रामक वक्तव्य किस आधार पर दिए गए !महामारी का दुष्प्रभाव हृदय रोगियों पर अधिक पड़ेगा | सही अनुमान पूर्वानुमान यदि पता नहीं थे तो बोलने ही नहीं चाहिए थे अन्यथा वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर दिए जाने वाले इस प्रकार के वक्तव्यों से अफवाहें फैलनी स्वाभाविक ही हैं |वैसे भी अन्य लोगों की अपेक्षा   हृदयरोगियों को तनाव अधिक होता है|वैज्ञानिकों के द्वारा लगाने जाने वाले इस प्रकार के गलत अंदाजे  हृदयरोगियों की मानसिक समस्याएँ और अधिक बढ़ाने वाले होते हैं | कई बार तनाव से ब्लड प्रेशर बढ़ने की समस्याएँ बढ़ती हैं | कोरोना काल में जब चिकित्सकों से मिलना आसान नहीं था उस समय ब्लड प्रेशर बढ़ना घातक हो सकता था | इसलिए गलत अनुमानों को प्रसारित होने देने से बचा जाना चाहिए | ये लाभप्रद तो हो ही नहीं सकते हैं अपितु इनसे नुकसान अवश्य हो सकता है | 
              प्रारंभ में ही हृदय रोगियों ने वैज्ञानिकों से जानना चाहा कि हमें कितना खतरा है ?
    इस प्रश्न के उत्तर में विभिन्न वैज्ञानिकों ने अपनी अपनी रिसर्च के आधार पर कोरोना काल में हृदय रोगियों के लिए अधिक खतरा होने का अनुमान लगाया था किंतु ऐसा नहीं हुआ अपितु व्यवहार में देखा गया कि कोरोना काल में हॉर्ट अटैक बहुत कम हुए !
       इस पर वैज्ञानिकों ने यह पता लगाने के लिए दोबारा रिसर्च की कि हार्ट अटैक कम क्यों हुए ?
     इस बिषय में अनुसंधान करने के बाद उन्हें अंदाजा लगा कि कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण हृदयरोगी अस्पतालों में नहीं आए होंगे ! लॉकडाउन खुल जाने के बाद भी हृदयरोगी अधिक संख्या में अस्पतालों में नहीं पहुँचे |
   लॉकडाउन खुल जाने के बाद भी अधिक संख्या में हृदयरोगियों के अस्पताल न पहुँचने का कारण पता लगाने के लिए फिर से रिसर्च की गई - 
  इस बिषय में वैज्ञानिकों ने रिसर्च पूर्वक अंदाजा लगाया कि शायद कोरोना संक्रमित होने के डर के कारण हृदयरोगी अधिक संख्या में अस्पतालों में नहीं पहुँचे !ऐसे में कई प्रश्न उठ खड़े हुए कि यदि वे अस्पताल नहीं गए तब तो हृदयरोगियों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई होगी और हृदयरोगी घरों में दुबके बैठे रहे होंगे या फिर  चिकित्सा के अभाव में हृदयरोगियों की काफी अधिक संख्या में मृत्यु हुई होगी !
     इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए पुनः रिसर्च की गई उस रिसर्च के परिणाम स्वरूप एक और सच्चाई निकल कर सामने आई कि स्वदेश से लेकर विदेश तक कोरोना के चलते हार्टअटैक के केस 40 प्रतिशत से लेकर 70 प्रतिशत तक कम हुए हैं |        
    फिर प्रश्न हुआ कि यदि कोरोना काल में हार्टअटैक के केस इतने कम हुए तो लोगों की मृत्यु की संख्या क्यों बढ़ रही है ?यह पता लगाने के लिए फिर रिसर्च प्रारंभ किया गया तो पता लगा कि कोरोना की भयावहता के बिषय में अनुसंधान कर्ताओं के द्वारा कोरोना को लेकर तरह तरह की डरावनी अफवाहें फैलाने से लोगों में बढ़े मृत्युभय के कारण बहुत लोगों की मृत्यु होते देखी गई है | 
    प्रश्नउठा कि जिस कोरोना काल में हृदयरोगियों के लिए अधिक खतरा बताया गया था उसी कोरोना काल में हार्टअटैक के मामले लगभग पचास प्रतिशत कम होने का कारण क्या है ?इस बात की खोज करने के लिए पुनः रिसर्च प्रारंभ किया गया तो उस रिसर्च से पता लगा कि कोरोना काल में बाहर का खानपान, प्रदूषण जैसी चीजें कोरोना काल में नहीं के बराबर हुई हैं।लोगों को अधिकतर समय आने घरों में अपनों के बीच में बैठकर बिताने को मिला !दूसरी बात कोरोना वायरस और लॉकडाउन के कारण हमारी जीवनशैली में आए सुधार बड़ी वजह हैं। इस लिए भागदौड़ से अलग अच्छा वातावरण मिलने की वजह से जो लोग पहले से ही हार्टअटैक के रिस्क फैक्टर में थे, उन्हें राहत मिली।इसलिए कोरोना काल में हृदयरोगियों को स्वाभाविक रूप से हृदयरोगों से अधिक परेशानी नहीं उठानी पड़ी अपितु राहत मिली !ऐसे ही रिसर्चों से एक और अंदाजा लगाया जा सका कि जन्मजात हृदय रोगियों को कोरोना का खतरा नहीं है |
     विशेषबात :कुल मिलाकर जब तक कोरोना चला तब तक वैज्ञानिकों की रिसर्च चली किंतु अंत तक हृदय रोगियों के भय को दूर करने के लिए कोई प्रमाणित और निश्चित उत्तर नहीं दिया जा सका कि कोरोना संक्रमण का प्रभाव हृदय रोगियों पर क्या होगा ?
     ऐसी परिस्थिति में यदि इस प्रश्न का कोई निश्चित उत्तर चिकित्सा वैज्ञानिकों के पास नहीं था कि कोरोनासंक्रमण काल  का प्रभाव हृदयरोगियों पर कैसा पड़ेगा तो शुरू में ही उन्हें इस प्रकार की अफवाहें फैलाने से बचा जाना चाहिए था | 

जनता ने अपने वैज्ञानिकों से जानना चाहा कि कोरोना से सबसे अधिक खतरा किस उम्र के लोगों को है ?

 विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सबसे अधिक 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को बताया था जबकि संक्रमण का सबसे अधिक खतरा 18 से 44 वर्ष के लोगों को हुआ है | यहाँ भी वैज्ञानिकों का अनुमान सही नहीं निकला !

01 Apr 2020 जहाँ एक ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना वायरस संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा उन लोगों को को बताया था जिनकी उम्र 60 साल या इससे अधिक है |

 30 Dec 2020 को एक सर्वे के आंकड़े प्रकाशित किए गए जिसमें लिखा है -"18 से 44 वर्ष के लोग कोरोना से सबसे अधिक पीड़ित हुए हैं |"


            मधुमेह रोगियों पर कोरोना का प्रभाव पड़ने संबंधी अनुमान !
28 जून 2020 को प्रकाशित समाचार पत्र का संबंधित अंश -"जर्मनी की होल्सटीन यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी, ब्रिटेन की ग्लासगो यूनिवर्सिटी और बर्मिंघम यूनिवर्सिटी यानी इन चार यूनिवर्सिटी में किए गए साझा शोध के मुताबिक कोरोना वायरस इंसुलिन कोशिकाओं पर भी असर डालता है और कई बार उनको नष्ट भी कर देता है | इससे जिन्हें शुगर न हो उन्हें भी शुगर हो सकती है |"
    व्यवहार में ऐसा होते नहीं देखा गया !बहुत शुगर रोगी संक्रमित होकर भी स्वस्थ हुए फिर भी उन्हें न ही शुगर हुई और न ही उनके शुगर स्तर में कोई बढ़ोत्तरी ही हुई है | 
          तीसरी लहर बच्चों के लिए खतरनाक होने संबंधी अनुमान !
    विभिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा एक अनुमान लगाया गया कि पहले तो कहा जाता रहा कि कोरोना की आगामी लहर बच्चों के लिए अधिक खतरनाक होगी !उसका कारण बताया गया कि बड़े लोगों ने वैक्सीन लगवाई है इसलिए उनमें तो प्रतिरोधक क्षमता तैयार हो चुकी होगी किंतु छोटे बच्चों के वैक्सीन नहीं लगी है इसलिए वे ऐसी समस्या के अधिक शिकार हो सकते हैं | दूसरी बात पहली लहर में बुजुर्ग अधिक शिकार हुए दूसरी लहर में युवा अधिक शिकार हुए इसलिए अबकी बच्चे अधिक शिकार हो सकते हैं | 
  • नारायण हेल्थ के चेयरमैन और तीसरी लहर के लिए कर्नाटक सरकार की टास्क फोर्स के चेयरमैन डॉ. देवी प्रसाद शेट्टी का भी कहना है कि पहली लहर में किडनी, डायबिटीज और दिल की बीमारियों से घिरे बुजुर्ग निशाना बने। दूसरी लहर में कमाई के लिए घरों से निकलने वाले युवा ज्यादा संक्रमित हुए। अब अगला जोखिम बच्चों को है। वायरस अपने तरीके को बदलता रहता है।
  • कर्नाटक में कोविड वायरस जीनोम कन्फर्मेशन के नोडल ऑफिसर डॉ. वी रवि समेत कई एक्सपर्ट्स के मुताबिक पहली लहर के दौरान कुल संक्रमितों में केवल 4% बच्चे थे, दूसरी लहर में यह आंकड़ा 10-15% तक पहुंच गया। तीसरी लहर में नए वैरिएंट्स ज्यादा बच्चों को संक्रमित कर सकते हैं। तीसरी लहर से पहले बड़ी संख्या में वयस्क कोरोना का शिकार हो चुके होंगे। उनके शरीर में एंटीबॉडी पनप जाएंगे। अगर इससे पहले बड़ी संख्या में लोगों को वैक्सीन भी लगा दी गई तो बच्चे ही वायरस का सबसे सुरक्षित ठिकाना होंगे।
  • देश में बच्चों के डॉक्टरों के सबसे बड़े संगठन IAP (Indian Academy of Pediatrics) के अनुसार 20 दिसंबर से 21 जनवरी के बीच किए गए सीरो सर्वे (Sero survey) से यह पता चला है कि 10 से 15 साल के बच्चों में भी बड़ों की तरह संक्रमण की दर 20-25% थी। इससे साफ है कि बच्चों के भी बड़ों की तरह संक्रमित होने की आशंका है !

     वैज्ञानिकों के दूसरे वर्ग ने  किया है ऐसे अनुमानों  का खंडन ! 

24 मई 2021को कोरोना महामारी पर सरकार की रूटीन प्रेस कॉन्फ्रेंस में नीति आयोग में सदस्य (स्वास्थ्य) वीके पॉल ने कहा कि अब तक ऐसे कोई संकेत नहीं हैं कि तीसरी लहर में बच्चों पर गंभीर रूप से असर होगा। उन्होंने कहा कि अगर बच्चे कोरोना से संक्रमित होते भी हैं तो उनमें या तो लक्षण बिल्कुल नहीं होंगे या बेहद हल्के लक्षण होंगे। उन्हें आमतौर पर अस्पताल में भर्ती करने की की जरूरत नहीं होगी।

 24 मई 2021को स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दिल्ली के एम्स अस्पताल के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया नेकहा -"ऐसा कोई सबूत नहीं है कि भविष्य में COVID-19 की लहर में बच्चे गंभीररूप से संक्रमित होंगे।"(पहले  तो  कहा गया था कि तीसरी लहर में बच्चों को अधिक खतरा है | 

25 मई 2021को बच्चों के डॉक्टरों के सबसे बड़े संगठन Indian Academy of Pediatrics यानी IAP का कहना है कि बच्चों के बड़ों की तरह संक्रमित होने की आशंका होती है,बच्चों का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है. पहले और दूसरे वेब के आंकड़ों के मुताबिक, गंभीर रूप से संक्रमित बच्चों को भी ICU की जरूरत नहीं पड़ी |इसलिए  ऐसी  आशंका  नहीं की  जानी चाहिए | 

9 जून 2021 को चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र की प्रतिष्ठित पत्रिका लैनसेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात के अब तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि कोविड-19 महामारी की तीसरी संभावित लहर में बच्चों के गंभीर रूप से संक्रमित होने की आशंका है। लैंसेट कोविड-19 कमीशन इंडिया टास्क फोर्स ने भारत में 'बाल रोग कोविड-19' के विषय के अध्ययन के लिए देश के प्रमुख बाल रोग विशेषज्ञों के एक विशेषज्ञ समूह के साथ चर्चा करने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है। इसके लिए  तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के 10 अस्पतालों में इस दौरान भर्ती हुए 10 साल से कम उम्र के करीब 2600 बच्चों के क्लीनिकल आंकड़ों को एकत्र कर उसका विश्लेषण करने के बाद ही यह रिपोर्ट तैयार की गई है।इस में कहा गया है कि भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित बच्चों में उसी प्रकार के लक्षण पाए गए हैं, जैसा कि दुनिया के अन्य देशों में देखने को मिले हैं। 

    डॉ. अमित गुप्ता(क्लिनिकल डायरेक्टर, न्यूबॉर्न सर्विसेज, ऑक्सफोर्ड)का कहना है कि अगर आप केवल फैक्ट्स को देखें तो इस बात के बेहद कम सबूत है कि कोरोना वायरस का म्यूटेंट वास्तव में बच्चों में गंभीर संक्रमण कर रहा है। डेटा को छोड़िए, क्या देश में पीडियाट्रिक केयर यूनिट्स भर चुकी है, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है।कोरोना के कुल केसेज में बढ़ोतरी के हिसाब से बच्चों के केसेज में बढ़ोतरी हुई है।

     लैंसेट में पब्लिश हुई रिसर्च के मुताबिक कोरोना से बच्चों को बेहदकम खतरा है। अमेरिका, यूके, इटली, जर्मनी, स्पेन, फ्रांस और दक्षिण कोरिया में सभी बीमारियों के मुकाबले सिर्फ 0.48% बच्चों की कोरोना के चलते जान गई। 

 अनुमानों के आधार पर सरकारें सतर्कता बरतने लगीं !
  • 18 मई को कर्नाटक की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री शशिकला जोले ने राज्य के 30 जिलों में बच्चों के लिए विशेष कोविड केयर सेंटर बनाने की घोषणा की।
  •  20 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिलों के 10 राज्यों के कलेक्टर (DM या DC) और फील्ड अफसरों से बात करते हुए हर जिले में बच्चों और युवाओं में कोरोना के ट्रांसमिशन का डेटा जमा करने को कहा। उन्होंने कहा कि इस डेटा का नियमित रूप से अध्ययन करना चाहिए।
  • 22 मई को उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने पूरे राज्य में एक जून से 18-44 साल के सभी लोगों को वैक्सीन लगाने का अभियान शुरू करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि तीसरी लहर से पहले 10 साल तक के बच्चों के माता-पिता को वैक्सीन लगा दी जाएगी।
  • 19 मई को दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अगर कोरोना की तीसरी लहर आती है तो सरकार पहले से तैयार रहेगी। इसमें बच्चों को बचाने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स बनाई जाएगी।
  •  20 मई को नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने केंद्र को पत्र लिखकर जल्द से जल्द छोटे बच्चों को अस्पताल पहुंचाने की जरूरत के हिसाब से नेशनल इमरजेंसी ट्रांसपोर्ट सर्विस (NETS) यानी एंबुलेंस सर्विस को तैयार करने को कहा। कमीशन ने राज्यों से नवजातों के लिए नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट यानी NICU और बच्चों के आईसीयू यानी PICU की संख्या और उनके मौजूदा हाल की जानकारी देने और नोडल अधिकारी नियुक्त करने को कहा है। NCPCR ने ICMR से भी कोरोना संक्रमित बच्चों के इलाज और क्लीनिकल मैनेजमेंट के लिए गाइडलाइन को साझा करने को कहा है।
तीसरी  लहर बच्चों के लिए घातकहोगी यह कहने की आवश्यकता क्या थी ?
   महामारी की तीसरीलहर बच्चों के लिए घातक होगी ये सुनते ही बच्चों की सुरक्षा को  लेकर समाज भयभीत हो गया !माता पिता चिंतित हो गए ! ऐसी परिस्थिति का सामना करने की दृष्टि से सरकारें न केवल सतर्क हो गईं अपितु बच्चों की सुरक्षा के लिए आवश्यक संसाधन जुटाने लगीं !बचाव के लिए तरह तरह की व्यवस्था करने लगीं !जैसा कि ऊपर वर्णित है | समाज भी अपने अपने स्तर से बच्चों को तीसरी लहर से बचाने के लिए प्रयत्नशील हो उठा !
   तीसरी लहर जब आकर चली गई और  बच्चों के लिए घातक नहीं हुई तब इस बात का पता लगाया जाना शुरू किया गया कि तीसरी लहर संबंधी यह अनुमान किन अध्ययनों या वैज्ञानिक अनुसंधानों पर आधारित था !तब पता लगा कि ऐसा कोई अध्ययन ही नहीं हुआ है जिससे यह पता लगे कि COVID-19 की लहर में बच्चे गंभीररूप से संक्रमित होंगे।
    कई बार वैज्ञानिकों का कोई एक वर्ग जब किसी एक बात को बोलता है तब केवल जनता ही नहीं अपितु सरकारें भी उस पर भरोसा करने लगती हैं | इसके बाद  वैज्ञानिकों का कोई दूसरा वर्ग उसी विषय में कोई दूसरी बात बोल देता है जो कभी कभी  पहली बात की बिल्कुल विरोधी होती है | ऐसे समय जनता दुविधा में पड़ जाती है कि वो सच किसे  माने | 
   इसका मतलब यह हुआ कि तीसरी लहर बच्चों के लिए घातक होगी यह बात किन्हीं वैज्ञानिक अनुसंधानों पर आधारित नहीं थी ! ऐसा कहने की कोई आवश्यकता नहीं थी !इसलिए यदि प्रमाण नहीं थे तो ऐसा बोलने से बचा जा सकता था | यह बात सभी को पता है कि महामारी जैसे संकट से जूझ रही जनता वैज्ञानिकों की बात बड़े ध्यान से सुनती है |इसलिए तीसरी लहर में बच्चे विशेष संक्रमित होंगे ! इतनी बड़ी बात बिना किसी ठोस अनुसंधान के नहीं बोली जानी चाहिए थी | वैज्ञानिकों के पास इस अनुमान का यदि कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था कुछ कल्पित तीर तुक्कों के आधार पर इतनी बड़ी बड़ी बड़ी बातें क्यों बोल दी जाती रही हैं | 
     ऐसी काल्पनिक बातें वैज्ञानिकों के मुख से निकली  होने के कारण सरकारों और समाज को इनके लिए सतर्कता बरती शुरू कर देनी पड़ती है यदि ऐसा न किया जाए और थोड़ी भी कोई घटना घटित होनी शुरू हो जाए तो वैज्ञानिक यही कहेंगे कि मैंने तो बहुत पहले बता दिया था सरकार ही हाथ पर हाथ रखे बैठी रही | सरकारें और समाज यदि ऐसी परिस्थितियों से निपटने की तैयारी करनी शुरू कर देती है तो उसके लिए अतिरिक्त व्यवस्थाएँ करके रखनी पड़ती हैं जिसमें अतिरिक्त धनराशि की आवश्यकता पड़ती है| समाज में भय का वातावरण बनने लगता है |  ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिए सरकारें और समाज सक्रिय होता है इससे अफवाहें फैलने लगती हैं | इनके लिए जिम्मेदार वही लोग होते हैं जो बिना मजबूत आधार के ऐसी डरावनी बातें बोल दिया करते हैं | 
     इसका मतलब यह हुआ कि तीसरी लहर बच्चों के लिए घातक होगी बिना किसी प्रयोजन के ऐसा बोले जाने की आवश्यकता ही नहीं थी | 

 महामारी बढ़ने कारण वैज्ञानिकों  के द्वारा वायुप्रदूषण को बताया गया !

   महामारी जनित संक्रमण बढ़ने के लिए विभिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा वायु प्रदूषण बढ़ने को भी जिम्मेदार बताया है | इसके साथ ही उनके द्वारा यह भी कहा गया है कि अन्य क्षेत्रों में रहने की अपेक्षा वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को कोविड-19 के कारण मौत होने का खतरा अधिक होता है |

8 अप्रैल 2020  हिंदुस्तान में प्रकाशित : अधिक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहने से कोविड-19 के कारण मौत होने का अधिक जोखिम है। ऐसा अमेरिका में किए गए एक अध्ययन में दावा किया गया है।हार्वर्ड टी एच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने कहा कि शोध में सबसे पहले लंबी अवधि तक हवा में रहने वाले सूक्ष्म प्रदूषक कण (पीएम2.5) और अमेरिका में कोविड-19 से मौत के खतरा के बीच के संबंध का जिक्र किया गया है।https://www.livehindustan.com/lifestyle/story-covid-19-people-living-near-most-polluted-areas-are-most-prone-to-get-dead-by-coronavirus-3136597.html

21अप्रैल2020  को बीबी सी में प्रकाशित : प्रदूषण और कोरोना के लिंक पर छपी स्टडी के मुताबिक प्रदूषण स्तर बढ़ने पर कोरोना के मामले भी बढ़ने लगते हैं।वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के अधिकारियों ने कहा है कि वायु प्रदूषण का ऊंचा स्तर कोविड-19 के गंभीर मामलों के लिए एक रिस्क फैक्टर साबित हो सकता है | दो हालिया स्टडीज़ में ऊंचे वायु प्रदूषण और कोरोना वायरस से होने वाली मौतों की ज़्यादा दर के बीच एक लिंक सामने आया है. इन स्टडीज़ में से एक हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की है| डब्ल्यूएचओ के डिपार्टमेंट ऑफ़ पब्लिक हेल्थ एंड एनवायरनमेंट की डायरेक्टर डॉ. मारिया नीरा के मुताबिक, 'अगर देशों में प्रदूषण का उच्च स्तर होता है तो कोविड-19 से उनकी लड़ाई में इस पहलू पर भी विचार करना ज़रूरी है. ऐसा इसलिए है क्योंकि वायु प्रदूषण के चलते कोविड-19 मरीज़ों की मृत्यु दर में इजाफ़ा होने की आशंका है|https://www.bbc.com/hindi/science-52358603 
26 अप्रैल 2020 को दैनिक जागरण में प्रकाशित: वायु प्रदूषण के कणों पर कोरोना वायरस का चला पता, ज्यादा प्रदूषित इलाके में उच्च संक्रमण देखा गया है | इटली के वैज्ञानिकों ने बर्गामो प्रांत के एक शहरी और एक औद्योगिक स्थल पर बाहरी वायु प्रदूषण के नमूने एकत्र करने के लिए मानक तकनीकों का इस्तेमाल किया है ।https://www.jagran.com/news/national-scientists-in-italy-find-coronavirus-on-air-pollution-particles-high-infection-seen-in-more-polluted-area-20224117.html

 6 नवंबर 2020  को नवभारत में प्रकाशित:सरकार के सीनियर अधिकारियों ने संसद की एक समिति को जानकारी दी थी कि वायु प्रदूषण के कारण कोरोना वायरस का संक्रमण पहले के मुकाबले ज्यादा तेज गति से फैल सकता है |इसके अतिरिक्त कुछ अन्य वैज्ञानिकों ने भी महामारी से संबंधित संक्रमण बढ़ने घटने में वायु प्रदूषण के बढ़ते घटते स्तर को भी कारण माना है | उनके बिचार से महामारी को नियंत्रित करने के लिए वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के प्रयास करने होंगे !ttps://navbharattimes.indiatimes.com/india/air-pollution-may-lead-to-faster-spread-of-covid-19-infections-officials-tell-parliamentary-panel/articleshow/79084494.cms
 29 अप्रैल 2022 को प्रकाशित : विशेषज्ञ कोरोना की पहली लहर के बाद ही यह दावा कर चुके हैं कि खासकर दिल्ली में कोरोना वायरस के मामले बढ़ने के पीछे यहाँ के वायु प्रदूषण की भी भूमिका है। इसके साथ वायु प्रदूषण ऊपर से कोरोना, जानलेवा साबित होते हैैं। जानकारों का कहना है कि दिल्ली में इस साल अप्रैल का औसतन प्रदूषण मार्च की तुलना में 19 प्रतिशत  ज्यादा और फरवरी से 11 प्रतिशत ज्यादा रहा था। 

महामारी बढ़ने का कारण यदि वायुप्रदूषण है तो वायुप्रदूषण बढ़ने के कारण क्या हैं ?

      वैज्ञानिकों को यदि ऐसा ही लगता है कि वायुप्रदूषण बढ़ने का प्रभाव महामारी पर पड़ता है तो महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने  के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए  पहले वायुप्रदूषण घटने बढ़ने संबंधी अनुमानों पूर्वानुमानों की सही जानकारी करके रखनी होगी |जिसके आधार पर महामारी संबंधी संक्रमण घटने बढ़ने के  विषय में आगे से आगे अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सके |वायुप्रदूषण घटने बढ़ने संबंधी अनुमानों पूर्वानुमानों को आगे से आगे  जानने के लिए वायुप्रदूषण के बढ़ने घटने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण खोजने होंगे | वायु प्रदूषण के विषय में पूर्वानुमान लगाना तो दूर वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण क्या हैं?आज तक यही नहीं पता लगाया जा सका है | विभिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा वायुप्रदूषण बढ़ने घटने के लिए जिन कारणों को अभीतक  जिम्मेदार बताया गया है उनमें पर्याप्त मतभिन्नता है | इसलिए उन सबको एक साथ समेटते हुए उनके आधार पर वायु प्रदूषण बढ़ने घटने के  विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं लगता है | 

   ऐसी परिस्थिति में महामारी बढ़ने का कारण यदि वायु प्रदूषण बढ़ना  ही है वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण खोजे बिना वायु  प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए प्रभावी आवश्यक कदम कैसे उठाए जा सकते हैं | इस अवधारणा के आधार पर तो वायु प्रदूषण नियंत्रित हुए बिना महामारी पर नियंत्रण किया जाना संभव नहीं है |इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि सबसे पहले वे निश्चित कारण खोजे जाएँ जो वायु प्रदूषण के बढ़ने में सहायक होते हैं | वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण क्या है इस विषय में भिन्न भिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर दिए गए भ्रामक वक्तव्य !

वैज्ञानिकों  के द्वारा बताए गए वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण !

  2 नवंबर 2015  को प्रकाशित :दीपावली में पटाखों से निकलने वाले धुएँ से वायु प्रदूषण बढ़ता है | 

25 दिसंबर  2015 को प्रकाशित :एक रिसर्च के हवाले से कहा गया है कि वायु प्रदूषण बढ़ने का वास्तविक कारण किसी को नहीं पता |

  25अक्टूबर 2017 को प्रकाशित :तापमान अधिक होने से हवा में घुल रही गैस और तेज हवा में तैरने वाले धूल कणों  से  वायु प्रदूषण बढ़ता है !
13 नवंबर 2017 को प्रकाशित :केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अपर निदेशक दीपांकर साहा का मानना है कि दिल्ली की भौगोलिक स्थिति के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है । उन्होंने पराली जलने को भी वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार मानने से इन्कार किया है।

  4 अगस्त 2018   को प्रकाशित :मध्य पूर्व की आँधी से बढ़ता है वायु प्रदूषण !

15  अक्टूबर 2018 को प्रकाशित :  चीन के कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ते प्रदूषण के लिए हेयर स्प्रे ,परफ्यूम,एयर रिफ्रेशर में पाए जाने वाले वाष्पशील कार्वनिक यौगिकों से बढ़ता है प्रदूषण !

 17 अक्टूबर 2018 को प्रकाशित :दशहरे में रावण के पुतले जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है !इसलिए इस पर रोक के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने दोनों सरकारों से रिपोर्ट तैयार करने को कहा था !

30 अक्टूबर 2018 को प्रकाशित :चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन (सीआरएफ) और पुणे यूनिवर्सिटी ने दो साल पहले कुछ तथ्य सामने रखे थे. उसी में ये बात सामने आई थी कि काले रंग की गोली जैसी टिकिया यानी सांप पटाखा (स्नेक टैबलेट) सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाती है |  
 17  जनवरी 2019  को प्रकाशित :एनजीटी ने वायु प्रदूषण की दृष्टि से सरकार से हुक्का की जाँच करने को कहा है | 
28 अक्टूबर 2020 को प्रकाशित :पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली 'सफर' ने कहा कि हवा की गति धीमी होने और कम तापमान के कारण प्रदूषण कारक तत्व एकत्रित हो जाते हैं |
  3 नवंबर 2020 को प्रकाशित :पराली जलाने के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है| 
    ऐसे ही वैज्ञानिकों ने वाहनों एवं उद्योगों से निकलने वाले धुएँ को ,निर्माण कार्यों से निकलने वाली धूल को ,ईंट भट्ठों से निकलने वाले धुएँ को वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बताया है !  
   वायुप्रदूषण का स्तर बढ़ने और घटने का कारण वैज्ञानिकों के द्वारा मनुष्य के अपने क्रिया कलापों को माना जा रहा है | ऐसी परिस्थिति में मनुष्यकृत आचार व्यवहार का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है इसलिए वायु प्रदूषण के बढ़ते घटते स्तर के साथ साथ महामारी से संबंधित संक्रमण बढ़ने घटने का भी पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है |
                                             कोरोना महामारी और वायु प्रदूषण :
     दीपावली के पटाखों को वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बताने के लिए यह सोचना पड़ेगा कि चीन में तो दीपावली नहीं मनाई जाती या रावण नहीं जलाया जाता या पराली नहीं जलाई जाती ,वायु प्रदूषण चीन में क्यों बढ़ता  है |दूसरी बात  जिन देशों में वायु प्रदूषण नहीं बढ़ता है वहाँ कोरोना महामारी फैलने का कारण क्या है ?    
    ऐसी स्थिति में वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण खोजने के  विषय में जब वैज्ञानिक लोग ही एकमत नहीं हैं तो वे कभी वायु प्रदूषण  बढ़ने के विषय में कुछ भी अनुमान या  पूर्वानुमान लगा लेंगे यह कल्पना कैसे की जा सकती है और वायु प्रदूषण के प्रभाव का आकलन किए बिना महामारी पर पड़ने वाले  वायु प्रदूषण के प्रभाव का आकलन किया जाना कैसे संभव हो सकता है |यदि ऐसा हो भी जाए तो वायु प्रदूषण बढ़ने के विषय में कोई सही  पूर्वानुमान लगाए बिना उसके द्वारा बढ़ने वाली महामारी के विषय में कोई सही सटीक पूर्वानुमान लगा लेने की आशा कैसे की जा सकती है | 
     इसके लिए जिस प्रकार के वैज्ञानिक अध्ययनों अनुसंधानों की आवश्यकता है वे अभी तक खोजे नहीं जा सके हैं |ऐसा किए बिना यह किस वैज्ञानिक आधार पर कहा जा सकता है कि महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने में वायु प्रदूषण की भी भूमिका है | 

वायु प्रदूषण बढ़ने से कोरोना बढ़ने की बात तर्कसंगत नहीं है !
   
    वायु प्रदूषण जब बिल्कुल नहीं था तब भारत में भयानक दूसरी लहर आई थी |दूसरी बात  कोरोना महामारी को यदि वायु प्रदूषण के प्रभाव से बढ़ना होता तो सन 2020 के अक्टूबर नवंबर दिसंबर में वायु प्रदूषण तो बहुत बढ़ता जा रहा था किंतु कोरोना संक्रमितों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही थी | इसके बाद जनवरी 2021 से लेकर  अप्रैल मई तक निरंतर वर्षा होते रहने से वायु प्रदूषण क्रमशः कम होता जा रहा था |उस समय कोरोना  की भयंकर दूसरी लहर  आई थी |
 
     वायु प्रदूषण बढ़ने के प्रभाव से यदि महामारी संक्रमण बढ़ता होता तब तो सन 2020 के अक्टूबर नवंबर दिसंबर में जब वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा था तब महामारी संक्रमितों की संख्या भी बढ़नी चाहिए थी | इसके साथ ही सन 2021 के फरवरी  मार्च  अप्रैल में वायु प्रदूषण बिल्कुल कम होता जा रहा था उस समय महामारी संक्रमितों की संख्या भी कम होते जानी चाहिए थी | इसी समय भारतवर्ष में कोरोना सबसे अधिक हिंसक होता चला जा रहा था | वैसे भी वायुप्रदूषण पिछले कुछ  वर्षों से निरंतर बढ़ते देखा रहा है किंतु तब कोरोना संक्रमण तो नहीं देखा जा रहा था | 
     विशेष बात यह है कि जिन क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण बढ़ने  के लिए वायु प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया जाता है !उन्हीं क्षेत्रों के खुले वातावरण में रहने वाला साधन विहीन एक वर्ग ऐसा भी है जिसे बहुत कम मात्रा में संक्रमित होते देखा गया है ,जबकि बढ़े वायु प्रदूषण का प्रभाव उस वर्ग पर भी उतना ही पड़ रहा था |
    सन 2021 में मार्च अप्रैल के महीनों में  लॉकडाउन लगे रहने के कारण वायुप्रदूषण बढ़ने की संभावना तो थी ही नहीं ऊपर से मार्च से लेकर मई तक निरंतर वर्षा होते रही थी | जिससे  प्राकृतिक  वातावरण पूरी तरह से वायु प्रदूषण मुक्त हो गया था | वातावरण इतना स्वच्छ कि दिल्ली जैसे महानगरों का आसमान बिल्कुल स्वच्छ किसी हिल स्टेशन की तरह लग रहा था |वायु मंडल की स्वच्छता  के कारण ही तो सहारनपुर एवं जालंधर से हिमालय दिखने लगा था | इसी प्रकार से श्रीनगर से पीर पंजाल रेंज की खूबसूरती दिखाई देने लगी थी | इस समय  प्राकृतिक  वातावरण पूरी तरह से वायु प्रदूषण मुक्त था तभी सन 2021 के  मार्च  अप्रैल  में कोरोना सबसे अधिक हिंसक होता चला गया  था  | भारत वर्ष में कोरोना की सबसे अधिक डरावनी दूसरी लहर इसी समय आई थी |  

   कुलमिलाकर कोरोना महामारी में यदि  वायु प्रदूषण की भूमिका रही होती तब तो  2021 के मार्च अप्रैल में महामारी की  दूसरी लहर नहीं आनी  चाहिए थी, क्योंकि इस समय संपूर्ण वायु मंडल पूरी तरह से वायु प्रदूषण  मुक्त हो गया था | ये लहर  यदि आई भी थी तो काफी हल्की होनी चाहिए थी आखिर वायु प्रदूषण मुक्त वातावरण का कुछ प्रभाव तो महामारीजनित संक्रमण पर भी दिखाई देना ही चाहिए था ,किंतु इसी समय अत्यंत हिंसक  दूसरी लहर ने भयंकर उपद्रव मचाया हुआ था | आखिर वायु प्रदूषण नहीं तो उसका कारण क्या था समाज को भी पता तो लगना चाहिए | घटनाओं के विषय में लगाए जा रहे अनुमान घटनाओं के विरुद्ध जाते क्यों देखे जा रहे थे | वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए अनुमानों के विपरीत  घटनाएँ घटित हो रही थीं |

 वायुप्रदूषण बढ़ने से यदि कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़नी होती है तो सन 2020 के अक्टूबर नवंबर दिसंबर में वायु प्रदूषण तो बहुत बढ़ता जा रहा था किंतु कोरोना संक्रमितों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही थी | इसके दो ही कारण हो सकते हैं पहली बात तो वायु प्रदूषण बढ़ने से कोरोना पर कोई प्रभाव ही न पड़ता हो अर्थात कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ती ही न हो | दूसरी बात  जिसे वायु प्रदूषण समझा जा रहा है वह वायु प्रदूषण हो ही न !

  इसमें विशेष बात यह है कि वैज्ञानिक स्वतः स्वीकार कर रहे हैं कि पिछले कुछ वर्षों से सूरज की रोशनी पाँच गुणा तेजी  से घटी  है| ऐसी स्थिति में सूरज की किरणों की मंदता को भ्रमवश वायुप्रदूषण तो नहीं समझा जा रहा है | 

                                         महामारी का प्रसार हवा से होने संबंधी अनुमान !

    अचानक आक्रमण करने वाली महामारी जैसी भीषण आपदा के समय में पल पल में परिस्थितियाँ बिगड़ रही होती हैं इसलिए वहाँ रोग और रोग के  स्वभाव को अच्छी प्रकार से समझकर कोरोना संक्रमितों की प्रभावी चिकित्सा तुरंत प्रारंभ करनी होती है | ऐसी स्थिति में पहले से की गई तैयारियों से ही बचाव की संभावना रहती है इसके अतिरिक्त कोई भी प्रयत्न बहुत प्रभावी नहीं होते हैं | महामारी का वेग ही  इतना अधिक होता है | 
   ऐसी स्थिति में महामारी पैदा होने के 8 महीने बाद तक वैज्ञानिकों के विभिन्नवर्ग इसी संशय में बने रहे कि कोरोना वायरस हवा के जरिए भी फैल सकता है या नहीं | जहाँ तुरंत उपाय किए जाने की आवश्यकता थी वहाँ आठ आठ महीने यूँ ही बिता  दिए गए | 2020 की जुलाई के पहले सप्ताह में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह स्वीकार किया कि हाँ कोरोना वायरस हवा के जरिए भी फैल रहा है।ऐसा अन्य मामलों में भी हुआ है | पानी के विषय में तो एक वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद वैज्ञानिकों को लगा कि संक्रमण शायद पानी के माध्यम से भी फैल सकता है | ऐसी दुविधा सभी मामलों में देखी जाती रही है |
हवा से नहीं फैलता है !
5 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी (WHO) ने साफ किया है कि कोरोना वायरस सिर्फ संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलता है हवा से नहीं फैल सकता है | https://www.livehindustan.com/national/story-coronavirus-can-not-spread-through-the-air-says-who-on-the-basis-of-different-research-on-covid-19-3129242.html
कोरोनावायरस हवा से फैलता है !

24 मार्च 2020(को प्रकाशित :कोरोनावायरस क्या हवा से भी फैल सकता है ?

28 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :बीजिंग -वैज्ञानिकों ने हवा में कोरोना वायरस की आनुवंशिक सामग्री की उपस्थिति पता लगाया है।
07 जुलाई 2020 को प्रकाशित : 32 देशों के 239 वैज्ञानिकों ने कहा- कोरोना हवा से भी फैल सकता है,
जुलाई 2020 को प्रकाशित :WHO ने स्वीकारा, हवा के जरिए भी फैल सकता है कोरोना वायरस,! पहले WHO इस बात को मानने से इनकार कर रहा था लेकिन कुछ विशेष मामलों और इस बात के सुबूतों की पुष्टि करने के बाद अब उसने इस बारे में नया बयान जारी किया है,इसी बीच इस बात की आशंका जताई जा रही थी कि कोरोना वायरस हवा के जरिए भी फैल रहा है। अब WHO ने इस पर अपना बयान जारी किया है। 
8 मई 2021 को नव भारत में प्रकाशित :Coronavirus B.1.617 Strain एक्सपर्ट्स इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि ऐसे कोई ठोस सबूत नहीं है कि कोरोना वायरस हवा से नहीं फैलता है। एक्सपर्ट्स ने वायरस के हवा से फैलने को लेकर कई सबूत पेश किए हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक वायरस का ट्रांसमिशन आउटडोर (बाहर) की तुलना में इंडोर (अंदर) में ज्यादा होता है।https://navbharattimes.indiatimes.com/india/kya-novel-coronavirus-covid19-strain-b-1-617-hawa-se-fail-raha-hai/articleshow/82475952.cms
 महामारी का प्रसार जल से होने संबंधी अनुमान ! 
17अप्रैल 2021 को प्रकाशित :12 रिसर्चर्स की टीम में डॉ संदीप शुक्ला भी हैं जिनका कहना है कि ड्राइ सरफेस की तुलना में वायरस पानी में ज्यादा समय तक सक्रिय रह सकता है इसलिए हवा या जमीन से ज्यादा गंगा के बहते पानी से कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा है | 
     इसके अतिरिक्त भी स्वदेश से लेकर विदेशों तक कई नदी नालों के पानी में कोविड  के अंश पाए गए हैं  | 
महामारी का प्रसार पानी से नहीं होता है !
13 मई 2021को प्रकाशित :चिकित्सा विशेषज्ञों का दावा है कि कोरोना का वायरस पानी से शरीर में नहीं फैलता।वायरस की चपेट में आकर दम तोड़ने वाले का शव पानी में है तो उसके जरिये दूसरे लोगों तक वायरस पहुँचने का अभी तक कोई प्रमाण नहीं मिला है। इसलिए नदी में नहाने व पानी पीने से कोरोना संक्रमण होने की संभावना नहीं है |
 पशुओं पक्षियों में कोरोना होता है या नहीं !  
      इस विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा पहले मना किया जाता रहा किंतु बाद में पशुओं पक्षियों में कोविड के  लक्षण विभिन्न देशों में देखे गए हैं |भारत के  हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात और केरल जैसे राज्यों में भी हजारों पक्षियों के मौत के मामले सामने आ चुके हैं।
फलों में कोरोना होने के विषय में अनुमान 
6 जनवरी  2022 को प्रभात खबर में प्रकाशित : पहले तो कहा जा  था कि फलों में कोरोना नहीं है | इसलिए बाजार से फल लाने के बाद उन्हें गरम पानी से धोने के लिए कहा जा रहा था | इसके बाद चीन में फलों में कोरोना मिलने पर सुपर मार्केट बंद करने के आदेश दिए  गए हैं | चीन में फल बियतनाम से आए थे | चीन के झेजियांग और जियांग्शी प्रांत के नौ शहरों में फलों की जाँच की गई सभी फल संक्रमित निकले |  तंजानियाँ में भी पपीता आदि फलों  के अंदर कोरोना के लक्षण पाए गए थे |  
   महामारी पर तापमान का प्रभाव पड़ने संबंधी अनुमान !
20 मार्च 2020 को प्रकाशित : गर्मी की मदद से कोरोना वायरस को ख़त्म किया जा सकता है. कई दावों में पानी को गर्म करके पीने की सलाह दी जा रही है. यहाँ तक कि नहाने के लिए गर्म पानी के इस्तेमाल की बात कही जा रही है.गर्म पानी पीने और सूरज की रोशनी में रहने से इस वायरस को मारा जा सकता है.|
20 मार्च 2020 को प्रकाशित : कोरोनावायरस सूखी सतहों पर 8-10 दिनों के लिए सक्रिय रह सकता है. आमतौर पर सभी वायरस गर्मी बढ़ने पर निष्क्रिय या नष्ट हो जाते हैं, लेकिन कोरोनावायरस 37 डिग्री सेल्सियस पर मानव शरीर में जीवित रहता है, तो अभी तक वायरस को निष्क्रिय करने के लिए सटीक तापमान का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है|  
20 मार्च 2020 -कोरोना वायरस क्या गर्मी से मर जाता है?गर्मी की मदद से कोरोना वायरस को ख़त्म किया जा सकता है. कई दावों में पानी को गर्म करके पीने की सलाह दी जा रही है. यहां तक कि नहाने के लिए गर्म पानी के इस्तेमाल की बात कही जा रही है.गर्म पानी पीने और सूरज की रोशनी में रहने से इस वायरस को मारा जा सकता है.| 
10 अप्रैल 2020-अमेरिकन स्टडी का दावा- गर्म मौसम नहीं करेगा कोरोना वायरस को रोकने में मदद !
 24 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :   सनलाइट से जल्दी खत्म हो जाता है कोरोना वायरस, अमेरिकी वैज्ञानिकों ने किया रिसर्च में दावा | होमलैंड सुरक्षा सचिव के विज्ञान और तकनीकी विभाग के सलाहकार विलियम ब्रायन ने व्हाइट हाउस में पत्रकारों कहा कि सरकारी वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में पाया है कि सूरज की परा बैंगनी किरणें पैथोगेन यानी वायरस पर प्रभावशाली असर डालती हैं। उम्मीद है कि गर्मियों में इसका प्रसार कम होगा।
11 मई 2020 को प्रकाशित :  भारतीय विषाणु वैज्ञानिक नगा सुरेश वीरापु का कहना है कि उच्च तापमान से कोरोना वायरस के संक्रमण में कमी आएगी लेकिन गर्मी में वायरस के पूरी तरह के खत्म होने की धारणा पूरी तरह से निराधार है.
27 मई 2020 को प्रकाशित : विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ज्यादा तापमान कोरोना वायरस के लिए अनुकूल नहीं है और निर्जीव वस्तुओं को देर तक धूप में रखने से उन पर हुआ वायरस का असर खत्म हो जाता है, यानि ज्यादा तापमान पर वायरस नष्ट हो जाता है। 
3 जून 2020 को प्रकाशित : कैंब्रिज के माउंट ऑबर्न हॉस्पिटल के नए अध्ययन में पाया गया है कि पिछला 52 डिग्री फ़ारेनहाइट तक गर्म मौसम कोरोनो वायरस को बिल्कुल प्रभावित नहीं कर पाया। सूर्य की अल्ट्रा वॉयलट किरणें इस इंफेक्शन  को नए लोगों तक बढ़ने से रोकने में सहायक हैं। 
6 जून 2020 को प्रकाशित : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुंबई के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि गर्म और शुष्क मौसम में सतह पर कोरोना वायरस के सक्रिय रहने की गुंजाइश कम हो जाती है।
12 जून 2020 को प्रकाशित :भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुंबई के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि गर्म और शुष्क मौसम में सतह पर कोरोना वायरस के सक्रिय रहने की गुंजाइश कम हो जाती है।
11 अगस्त 2020 को प्रकाशित : विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि कोरोना वायरसमें मौसमी प्रवृत्ति दिखाई नहीं पड़ रही है। इसके चलते इस खतरनाक वायरस पर अंकुश पाना कठिन होता जा रहा है।डब्ल्यूएचओ के आपात मामलों के प्रमुख डॉ. माइकल रेयान ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि श्वसन तंत्र पर हमला करने वाले इंफ्लुएंजा जैसे वायरसों की तरह कोरोना नहीं है। इंफ्लुएंजा का खासतौर पर सर्दी के मौसम में प्रसार होता है। जबकि कोरोना महामारी गर्मी में भी बढ़ती जा रही है।
14 अगस्त 2020 को प्रकाशित :(बीबीसी)-वैज्ञानिकों को आशंका है कि सर्दी के मौसम में दुनिया को कोरोना वायरस की 'सेंकेंड वेव' का सामना करना पड़ सकता है | डर इस बात का है कि ठंडी हवाओं के साथ बदलते मौसम की वजह से, कोरोना वायरस अपनी अधिक ताक़त के साथ तेज़ी से फैल सकता है |  
10 अक्टूबर 2020 को प्रकाशित :नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने कहा कि सर्दियों में कोरोना के मामले बढ़ सकते हैं। इस वजह से उन्होंने दिल्ली सरकार को रोज 15 हजार नए मरीजों के अनुसार तैयारी करने की सलाह दी है ।
30 अप्रैल 2021को प्रकाशित :मौसम विज्ञानी प्रोफेसर एचएन मिश्रा ने बताया कि वैज्ञानिकों के शोध में सामने आया है कि मौसम में बदलाव कोरोना संक्रमण की कमी में प्रभावी भूमिका निभाएगा।
  
तापमान बढ़ने से नहीं समाप्त होगा कोरोना वायरस !
6 मार्च 2020 को प्रकाशित :भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के प्रमुख डाॅ. बलराम भार्गव का कहना है कि तापमान में गिरावट से वायरस का खतरा और नहीं बढ़ेगा।
20 मार्च 2020 को प्रकाशित :द एसोसिएशन ऑफ सर्जन्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. पी. रघु राम ने कोरोनावायरस के गर्मी से निष्क्रिय होने पर अलग विचार रखे वह कहते हैं, "अगर कोरोना वायरस गर्मी से मरता तो ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर जैसे देशों में कोरोनावायरस की घटना कम होनी चाहिए थी. इसलिए अभी भी बहुत कुछ है जो हमें नोवेल कोरोनोवायरस के बारे में जानने की जरूरत है."
10 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :अमेरिकन स्टडी का दावा- गर्म मौसम नहीं करेगा कोरोना वायरस को रोकने में मदद !
     तापमान बढ़ने का विपरीत प्रभाव पड़ता है !
27 मई 2020 को प्रकाशित :लापरवाही ना बरतें, कोरोना वायरस गर्मी में और जानलेवा हो गया है| कानपुर मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. जेएस कुशवाहा और डॉ. ब्रजेश कुमार का कहना है कि गर्मी लगने पर मस्तिष्क में तापमान नियंत्रित करने वाला सिस्टम ध्वस्त हो जाता है। इसके साथ ही कोरोना संक्रमण अधिक घातक हो सकता है। गर्मी से बचाव अधिक जरूरी है।
10 अगस्त 2020 को प्रकाशित :विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि कोरोना महामारी गर्मी में भी बढ़ती जा रही है।कोरोना वायरस में मौसमी प्रवृत्ति दिखाई नहीं पड़ रही है। इसके चलते इस खतरनाक वायरस पर अंकुश पाना कठिन होता जा रहा है।डब्ल्यूएचओ के आपात मामलों के प्रमुख डॉ. माइकल रेयान ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि श्वसन तंत्र पर हमला करने वाले इंफ्लुएंजा जैसे वायरसों की तरह कोरोना नहीं है। इंफ्लुएंजा का खासतौर पर सर्दी के मौसम में प्रसार होता है। 
                       महामारी पर पड़ने वाले तापमान के प्रभाव का परीक्षण  कैसे किया जाए ? 
    कोविड-19 की महामारी, अफ्रीका के कॉन्गो लोकतांत्रिक गणराज्य से लेकर लैटिन अमेरिका के पनामा और पैराग्वे जैसे देशों में तेज़ी से बढ़ती देखी जाती रही है जब कि इन देशों में औसत तापमान 25 डिग्री सेल्सियस रहता है |  दक्षिणी अमेरिका के देश इक्वेडोर में भी भारत से मिलता जुलता ही मौसम रहता है.कुछ समय तक  इक्वेडोर, दक्षिणी अमेरिका में कोरोना वायरस की महामारी के बड़े केंद्र के रूप में सामने आया है. वहीं, गर्मी और नमी भरे मौसम के कारण, सिंगापुर में भी तमाम कोशिशों के बावजूद कोरोना वायरस के संक्रमण के नए मामले आने बंद नहीं हुए !
   इस प्रकार से दुनिया के अलग-अलग देशों के इन उदाहरणों से बिल्कुल साफ़ है कि ज़्यादा तापमान से भी कोरोना की महामारी की रफ़्तार कम नहीं हुई है | 
    वुहान और चीन के अन्य इलाक़ों में कोविड-19 के संक्रमण के आंकड़ों के अध्ययन से ये निष्कर्ष निकाला गया था कि सूखे और ठंडे मौसम में नए कोरोना वायरस का प्रकोप ज़्यादा तेज़ी से फैलता है. ये अनुमान सही नहीं निकले | 
   महामारी किस तरह की जलवायु में ज़्यादा या कम फैलती है, इससे जुड़े अध्ययन पूरी तस्वीर नहीं पेश करते. क्योंकि, किसी भी महामारी से मौत का आंकड़ा हर क्षेत्र में बदल जाता है | 
    भारत में कोविड-19 की महामारी का प्रकोप बसंत के दौरान शुरू हुआ था. लेकिन, गर्मी के महीनों में ये लगातार बढ़ती रही और ये सिलसिला मॉनसून में भी जारी रहा |  ऐसे में महामारी के प्रकोप और जलवायु के बीच संबंध को समझना संभव नहीं हो पाया | 
     न्यूयॉर्क में महामारी के प्रकोप के आंकड़ों के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष में बताया गया कि हवा में नमी से महामारी के सीमित या व्यापक होने पर असर पड़ सकता है.इसके बाद कहा गया कि  कोरोना वायरस पर मौसम का बेहद मामूली असर पड़ता दिख रहा है| 
    इसी प्रकार से तापमान कब बढ़ेगा कब घटेगा इसके विषय में अभी  तक सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं हो पाया है इसलिए महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने या घटने पर महामारी के प्रभाव का परीक्षण किया जाना संभव नहीं है | 

कोरोना वायरस के संक्रमण को बारिश कमजोर का देती है -
1 जून 2020 को प्रकाशित :वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के ग्लोबल हेल्थ, मेडिसिन और एपिडिमियोलॉजी के प्रोफेसर जेई बेटेन कहते हैं कि बारिश कोरोना वायरस को डायल्यूट (घोलकर कमजोर कर देना) कर सकती है. जिस तरह धूल बारिश के पानी में घुलकर बह जाती है, वैसे ही यह वायरस भी बह सकता है|
06 मार्च 2020 को प्रकाशित :बारिश की वजह से नहीं बढ़ेगा कोरोना वायरस का खतरा!भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के प्रमुख डाॅ. बलराम भार्गव का  कहना है कि मौसम के बदले रुख का वायरस की सक्रियता पर ज्यादा असर नहीं होगा।
30अप्रैल 2021को प्रकाशित :मौसम विज्ञानी प्रोफेसर एचएन मिश्रा ने बताया कि वैज्ञानिकों के शोध में सामने आया है कि मौसम में बदलाव कोरोना संक्रमण की कमी में प्रभावी भूमिका निभाएगा। शोध पत्र के मुताबिक कोरोना वायरस तीन तरह से प्रभावी है। स्पर्श (कंटैजियस),  विस्तार (एक्सपेंसिव) और मेढ़क की चाल ( लीप फ्रांगिंग) की स्थितियों में कोरोना वायरस हवा में तैर रहा है। तेज गर्मी के बाद तेज बारिश होने से वायुमंडल से वायरस का प्रभाव कम होगा। 
 
 बारिश से कोरोना वायरस संक्रमण बढ़ सकता है -
04  मार्च 2020 को प्रकाशित :विशेषज्ञों का कहना है कि बारिश में तापमान गिरता है और ठंड बढ़ती है. इसलिए कोरोना वायरस में तेजी आने की संभावना बढ़  जाएगी | 
1 जून 2020 को प्रकाशित :यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावेयर की संक्रामक रोग विभाग की वैज्ञानिक जेनिफर होर्ने ने कहा है कि बारिश का पानी वायरस की सफाई नहीं कर सकता है. इससे वायरस फैलने और पनपने की रफ्तार भी धीमी नहीं होगी | 
1 जून 2020 को प्रकाशित :यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के मुताबिक, कोरोना के ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिनमें 17 दिनों के बाद भी सतह पर कोरोना वायरस मिला है. ऐसे में ये कहना मुश्किल ऐसे में ये कहना मुश्किल है कि बारिश से किसी सतह, मैदान या कुर्सी पर लगा वायरस खत्म हो जाएगा.
21मई 2021को प्रकाशित :आईसीएमआर द्वारा कोविड-19 के लिए बनाई गई रिसर्च एवं ऑपरेशन टीम भी बता चुकी है, बारिश का प्रभाव कोरोना संक्रमण की रफ्तार पर नहीं पड़ता। टीम के सदस्यों का कहना है कि बारिश में कोरोना के मामले कम होने की संभावना इसलिए भी नहीं है क्योंकि सिंगापुर और इंडोनेशिया जैसे देशों में जहां पूरे साल बारिश होती है, इस घातक वायरस के संक्रमण के मामले वहां भी मौजूद हैं। 
21मई 2021 को प्रकाशित :अमेरिका की जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में एप्लाइड फिजिक्स लेबोरेटरी के अध्ययन के अनुसार, ऐसा माना जा रहा है कि बारिश में मौजूद नमी के कारण वायरस अधिक सक्रिय हो जाएँगे जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
  महामारी पर मौसम का प्रभाव !
       कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बीच चक्रवाती तूफान ताउते ने कई राज्यों के मौसम को बदल दिया है। कई शहरों में प्री-मानसून की बौछारें भी शुरू हो गई हैं। बदलते मौसम के चलते दिल्ली समेत कई राज्यों में बारिश का दौर जारी है। मौसम में आए बदलाव के बीच ये दावा किया जाने लगा है कि बारिश होने से कोरोना संक्रमण की रफ्तार कम हो जाएगी। 
मौसम का कोई प्रभाव पड़ता है ! 
7 मई 2020 को प्रकाशित :राहुल गाँधी से बोले एक्सपर्ट- मौसम से कोरोना की रफ्तार पर फर्क पड़ता है, लेकिन पुख्ता सबूत नहीं ! 
मौसम का प्रभाव नहीं पड़ता है।
21 मई 2021 को प्रकाशित :कोरोना पर किसी भी मौसम का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस बारे में स्पष्ट कर चुका है कि मौसम और कोरोना का आपस में कोई भी लेना-देना नहीं है। इस बारे में कई रिसर्च और स्टडीज भी सामने आ चुकी है।
21 मई 2021 को प्रकाशित :आईसीएमआर द्वारा कोविड-19 के लिए बनाई गई रिसर्च एवं ऑपरेशन टीम भी बता चुकी है, किसी भी मौसम का प्रभाव कोरोना संक्रमण की रफ्तार पर नहीं पड़ता। टीम के सदस्यों का कहना है कि बारिश में कोरोना के मामले कम होने की संभावना इसलिए भी नहीं है क्योंकि सिंगापुर और इंडोनेशिया जैसे देशों में जहां पूरे साल बारिश होती है, इस घातक वायरस के संक्रमण के मामले वहाँ भी मौजूद हैं।

                 महामारी पूर्वानुमान के लिए सही मौसम का पूर्वानुमान आवश्यक है !
    महामारी पर मौसम का प्रभाव यदि पड़ता भी हो तो इसके लिए महामारी एवं उससे संबंधित लहरों का कोई संबंध यदि मौसम के बनने बिगड़ने से हो भी तो इसकी जानकारी तभी की जा सकती है जब मौसम संबंधी घटनाओं  विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की क्षमता अर्जित की जा  चुकी हो | प्रकृति के वास्तविक स्वभाव  एवं स्वाभाविक  परिवर्तनों को समझे बिना मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि कैसे लगाया जा सकता है | उपग्रहों रडारों के सहयोग से जो बादलों या आँधी तूफानों की किसी एक स्थान पर उपस्थिति देखकर उस की  गति और दिशा के हिसाब से जो अंदाजा लगाया जाता है कि  घटनाएँ कब कहाँ पहुँच सकती हैं | उपग्रहों रडारों की मदद से की जाने वाली प्राकृतिक घटनाओं के विषय में इस प्रकार की जासूसी का उपयोग  महामारी संबंधी अनुसंधानों में कैसे किया जा सकता है और उससे पता भी क्या लगाया जा सकेगा |  
       भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं अभी तक सही एवं सटीक निकलने वाली मानसून आने और जाने की तारीखें नहीं तय की जा सकी हैं जो तय की भी गई थीं वे अधिकाँश वर्षों में गलत निकल जाती रही हैं |इसीलिए मानसून आने और जाने के बिषय में सही पूर्वानुमान लगाने की वास्तविक वैज्ञानिक प्रक्रिया खोजने की बजाए अब मानसून आने और जाने की तारीखों में ही बदलाव किया जा रहा है | इस बदलाव का कोई मजबूत वैज्ञानिक आधार नहीं है इसलिए ये तारीखें भी गलत होंगी ही ,जब कुछ समय तक ये तारीखें गलत निकलती रहेंगी तब ऐसा क्यों हो रहा है यह पता लगाने के लिए तो प्रकृति स्वभाव आधारित अनुसंधान करने की अपेक्षा मानसून आने और जाने की  तारीखें ही फिर बदल दी जाएँगी | वैज्ञानिकों द्वारा ऐसे  अंदाजे लगाए जाते हैं | उनमें से जो तीर तुक्के  सही निकल जाते हैं उनका नाम मौसम भविष्यवाणी या मौसम पूर्वानुमान  रख दिया जाता है और जो गलत निकल जाते हैं  उनका कारण जलवायुपरिवर्तन बता दिया जाता है | मौसम विज्ञान के क्षेत्र में यह या तो अनुसंधान की क्षमता का अभाव है या फिर विज्ञान भावना के साथ यह खुला खिलवाड़ है |see more... https://drsnvajpayee1965.blogspot.com/2022/09/blog-post_66.html

                         महामारी से बचाव के लिए लॉकडाउन लगाना कितना आवश्यक था !
    लॉकडाउन लगाने से सभी कार्य व्यापार यातायात स्कूल आदि पूरी तरह से बंद कर दिए जाते रहे हैं |महामारी से बचाव के लिए कोविड नियमों का पालन करते हुए निर्धारित समय पर ही अत्यंत सावधानी पूर्वक घर से निकलना होता था | ऐसी परिस्थिति में लॉकडाउन लगाकर सभी कार्यों को रोक दिया जाना कितना आवश्यक था | ऐसे प्रयोगों का परीक्षण तो होना ही चाहिए क्योंकि जहाँ एक ओर समाज महामारी जैसे संकटों से परेशान होता है वहीं दूसरी ओर ऐसे उपाय अपनाए जाते हैं जिनका आधार वैज्ञानिक नहीं होता है |यदि उनसे कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकलता है तो वैज्ञानिक अनुसंधानों की गैर  जिम्मेदारी  के कारण ऐसे उपाय भी न केवल निरर्थक होते हैं अपितु जनता के लिए उत्पीड़क ही सिद्ध होते हैं |  
    इस विषय में स्वीडन का उदाहरण भी ध्यान रखना उचित होगा जहाँ संपूर्ण कोरोना काल में लॉकडाउन लगाया ही नहीं गया वहाँ बच्चों के स्कूल भी खुले रहे सारे कामकाज चलते रहे, फिर भी अन्य देशों की तरह ही वहाँ भी महामारी का उतार चढ़ाव देखने को मिलता रहा है| स्वीडन में दिसंबर- 2020 तथा अप्रैल -2021 को मध्यमस्तरीय एवं जनवरी- 2022 में कुछ अधिक संक्रमण बढ़ा था |लगभग ऐसा ही कुछ अन्य देशों में भी देखा जाता रहा है जबकि उनमें लॉकडाउन भी लगाया गया था और स्वीडन में लॉकडाउन न लगाए जाने पर भी वही स्थिति बनी रही थी |यूरोप का यह देश बिना लॉकडाउन लागू किए ही कोरोना की तीनों लहरों का सामना करता रहा |विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के ताजा आंकड़ों के अनुशार कोरोना की पहली लहर को छोड़कर यूरोपीय देशों में कोरोना से मौतों के मामले में स्वीडन काफी निचले स्थान पर है।यानी यहाँ कोरोना से कम मौतें हुई हैं । 2020 के मार्च-अप्रैल महीने में स्वीडन में कोविड मृत्यु दर अधिक थी।जिसके लिए स्वीडन को लॉकडाउन नहीं लगाने के कारण आलोचनाएँ झेलनी पड़ी थीं | उस समय स्वीडन की जिस नो लॉकडाउन रणनीति की आलोचना हो रही थी, आज अधिकतर देश उसी नीति को अपनाते देखे जा  रहे हैं।
   लॉकडाउन के प्रभाव का परीक्षण करना इतना आसान भी नहीं था | इसके लिए वैज्ञानिकों के एक वर्ग के द्वारा कहा गया कि कोरोना संक्रमण जिस मौसम में बढ़ने की संभावना हो उस  मौसम को आधार बना कर लॉकडाउन लगाया जाए और जिस मौसम में कोरोना संक्रमण घटने की संभावना हो उस मौसम में लॉकडाउन हटाया जाए |  ऐसा करके कोविड-19 की महामारी के प्रकोप पर लॉकडाउन के प्रभाव का अंदाज़ा मिल सकता है किंतु इसके लिए उस मौसम  की खोज किया जाना आवश्यक था जिसमें कोरोना संक्रमण के बढ़ने या कम होने की संभावना है किस मौसम को महामारी में सहायक मान कर ऐसा किया जाए वैज्ञानिकों के द्वारा इसकी खोज नहीं की जा सकी थी | इसलिए लॉकडाउन के प्रभाव का परीक्षण करने का यह प्रयोग सफल नहीं हो पाया | 
    इसप्रकार से लॉकडाउन का प्रभाव परीक्षण करने के लिए भी न केवल मौसम संबंधी अध्ययनों अनुसंधानों की आवश्यकता है अपितु मौसम संबंधी सही अनुमानों पूर्वानुमानों आदि की भी आवश्यकता है | चिंता की बात यह है कि अभी तक स्वभाव आधारित सही सही मौसम संबंधी अनुमानों पूर्वानुमानों की वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं की जा सकी है | इसलिए लॉकडाउन के प्रभाव का परीक्षण किया जाना संभव नहीं है | 
    महामारी के पैदा या समाप्त होने तथा घटने या बढ़ने का वास्तविक कारण क्या है ?
1 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :कोरोना वायरस की कोई दवा नहीं फिर भी देश में कैसे ठीक हो रहे हैं लोग ?
को प्रकाशित :कोरोना को लेकर इटली के एक सायंटिस्ट ने दावा किया है कि मरीजों पर कोरोना की पकड़ ढीली पड़ रही है ? इसकी पकड़ और गहनता में कमजोरी देखने को मिल रही है।
4 जून 2020 को प्रकाशित : खत्म हो रहा कोरोना? मरीजों की कमी से वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंता, वैक्सीन ट्रायल के लिए वॉलेंटियर नहीं मिल रहे हैं|वैक्सीन ट्रायल की रेस में लगे वैज्ञानिकों को कोरोना हॉटस्पॉट में ऐसे लोगों की तलाश है जो वॉलेंटियर बन सकें।अमेरिका और यूरोप के वैज्ञानिकों का कहना है कि सख्ती से लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग लागू होने के बाद मामलों में कमी आई है। ऐसे में अब यहाँ वैक्सीन ट्रायल के लिए हॉटस्पॉट की कमी होती जा रही है। बताया जा रहा है कि इस कमी की वजह से वैक्सीन का ट्रायल प्रभावित हो सकता है।       
    इसीप्रकार से कुछ वैज्ञानिकों  के द्वारा पहले कहा गया था कि महामारीजनित संक्रमण पशुओं पक्षियों में नहीं होगा, फूलों फलों में नहीं होगा, जल में नहीं होगा | इसीलिए शाक सब्जी फल आदि गरम पानी में धो धो कर खाए जाते रहे !बाद में पशुओं पक्षियों फूलों फलों को भी महामारी से संक्रमित होते देखा गया | नदियों नालों के जल में भी संक्रमण के अंश पाए गए |      

                    महामारी के विषय में  जो बताया जा रहा है वो गलत निकल रहा है !
        सबसे पहले कहा गया कि वायरस की पहुँच इंसानों तक ही है इसके बाद अन्य जीव जंतुओं को भी संक्रमित होते देखा गया | वायरस पहले दक्षिणी पूर्वी एशिया और उसके बाद यूरोप और अमेरिका तक फैल गया|  कोरोना वायरस और मौसम के ताल्लुक़ का पता लगाने के लिए इसकी तुलना फ्लू के वायरस और सीज़न के बीच संबंध के साथ की गई | उस में दिल्ली, न्यूयॉर्क या लंदन में प्रकोप फैलने की आशंका का कोई फ़र्क़ नहीं देखा गया | उसके आधार पर  ये अंदाजा लगाया गया कि उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में इस महामारी के शिखर पर पहुँचने में थोड़ा बहुत अंतर रहेगा | 
    वायरस के प्रकोप की भविष्यवाणी करने वाले ये कंप्यूटर मॉडल ये भी कहते हैं कि अगले कुछ वर्षों में कोविड-19 की महामारी दोबारा क़हर बरपा सकती है. कुछ कंप्यूटर मॉडलों के मुताबिक़, वर्ष 2025 में कोविड-19 की वापसी हो सकती है. और तब वायरस कुछ ख़ास सीज़न में ही लोगों को संक्रमित करेगा. वहीं, कुछ अन्य मौसमों में इसका प्रभाव न के बराबर होगा.
      कोरोना वायरस के प्रकोप को समझने के लिए बनाए गए इन सभी मॉडलों की सबसे बड़ी कमी ये है कि ये आबादी के स्थानांतरण को अपने आकलन में शामिल नहीं करते. न ही नए कोरोना वायरस के प्रति लोगों की इम्युनिटी को इन मॉडल में शामिल किया गया है. जिस एक और बात की अनदेखी की गई है, वो ये है कि हर क्षेत्र की अपनी अलग विशेषता होती है. मगर कंप्यूटर म़ॉडल तो एक मानक पर आधारित होते हैं. इनमें इस समीकरण को शामिल नहीं किया जाता कि संक्रमण रोकने के लिए लोग नियमों का पालन करने के लिए किस हद तक तैयार हैं. जैसे कि सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनना. आज दुनिया आपस में बेहद क़रीब से जुड़ी है. इसमें लोगों की एक देश से दूसरे देश को आवाजाही बेहद आम बात है | आबादी के इस स्थानांतरण से कोविड-19 पर किसी सीज़न के प्रभाव का अंदाज़ा बदल भी सकता है. क्योंकि, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग मौसम होता है. मान लें कि किसी सर्द इलाक़े में वायरस फैलता है. और गर्म क्षेत्र में इसका प्रकोप घट जाता है. लेकिन, अगर ठंडे क्षेत्र में रहने वाला अगर गर्म देश में आएगा, तो शायद वो अपने साथ इस वायरस को भी ले आए. ऐसे में कोविड-19 को नियंत्रित करने के लिए मौसम पर निर्भर रहना ख़तरनाक भी हो सकता है | इसलिए इन पर बहुत अधिक विश्वास किया जाना संभव नहीं है | 

                             महामारी के विषय में अभी तक क्या समझा जा सका !     
        
     6 फरवरी 21को प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि  इस समय अमेरिका व ब्रिटेन समेत कई विकसित देशों में टीकाकरण अभियान जोरों पर है, तब भी वहां कोरोना संक्रमण रफ्तार में है। भारत में कोरोना वायरस के मामलों में क्यों आ रही तेजी से गिरावट हो रही है | यह भी साफ हो चुका है कि कोरोना के मामलों में गिरावट जांच कम होने के कारण नहीं है। अब विशेषज्ञ यह पता लगाने में जुटे हैं कि क्या भारत में कोरोना महामारी समाप्ति की ओर है? क्या हर्ड इम्युनिटी विकसित हो चुकी है? लोगों में जागरूकता या मौसम है वजह? यहाँ तक कि त्योहार के सीजन यानी कि अक्टूबर और नवंबर में भी भारत में कोरोना के मामले गिरते नजर आए. वहीं, राजधानी दिल्ली से लगी सीमाओं पर भारी संख्या में किसान दो महीने से अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे हैं, बावजूद इसके कोरोना संक्रमण में तेजी नहीं पाई गई है. ऐसे में इसकी एक वजह बता पाना मुश्किल हो रहा है फिर भी कुछ वैज्ञानिकों ने इसे लोगों की जागरूकताका परिणाम तो कुछ ने भारत की गर्म और आर्द्र जलवायु को एवं कुछ ने माना कि आम लोगों में कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता ( इम्युनिटी) विकसित हो चुकी है | 
     बिना किसी मनुष्यकृत कारण के महामारी का पैदा होना एवं संक्रमण बढ़ते जाना तथा बिना  किसी मनुष्य कृत उपाय के महामारी का समाप्त होते जाना इस ओर संकेत करता है कि कोरोना के पैदा होने बढ़ने और समाप्त होने में मनुष्यकृत कार्यों एवं उपायों की कोई विशेष भूमिका नहीं है | 
    इस समय जो संक्रमित लोग बिना किसी औषधि के तेजी से संक्रमण मुक्त होते जा रहे हैं जिससे संक्रमितों की संख्या दिनों दिन कम होती जा रही है, वही लोग इसी समय यदि किसी कोरोनानाशक  औषधि या टीका आदि के परीक्षण में सम्मिलित किए गए होते तो यह भ्रम होना स्वाभाविक ही था कि परीक्षण में वह औषधि या टीका आदि सफल पाया गया है | ऐसे समय में समाज में कोई औषधि या टीका आदि दिया जा चुका होता तो इस प्रकार का भ्रम होना स्वाभाविक ही था कि उस औषधि या टीका आदि के प्रभाव से महामारी संक्रमितों की संख्या दिनों दिन कम होती जा रही है |  
     इस प्रकार के भ्रम का संशय और भी कई बार बना रहा !विशेषकर भारत वर्ष में 2020 के मई जून जुलाई तक जिन सामाजिक परिस्थितियों में संक्रमितों की संख्या दिनों दिन कम होती जा रही थी,उन्हीं सामाजिक परिस्थितियों के रहते हुए भी अगस्त के प्रथम सप्ताह से संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने लगी | इस समय लोगों ने ऐसा क्या नया करना शुरू कर दिया था जो महामारी के बढ़ने में सहायक  हो गया | इसके बाद 18 सितंबर 2020 से अचानक ऐसा क्या हुआ कि संक्रमितों की संख्या कम होनी शुरू हो गई और जनवरी 2021 तक क्रमशः कम होती चली गई | इसी बीच 2020 के नवंबर दिसंबर में बढ़ने वाले वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ा | सर्दियों में घटे हुए तापमान का सामना करना पड़ा !2020 की दिवाली धनतेरस जैसी त्योहारी बाजारों की भारी भीड़ का सामना करना पड़ा किंतु कोरोना संक्रमितों की संख्या दिनों दिन कम होती चली गई | इन्हीं सामाजिक परिस्थितियों में जब बार बार वर्षा होने के कारण वायु प्रदूषण दिनोंदिन घटता जा रहा था | सर्दी भी कम होने लगी थी इसके बाद भी फरवरी 2021 से कोरोना संक्रमितों की संख्या अचानक फिर बढ़ने लगी जो इसी क्रम अप्रैल भर चलती रही | इसके बाद बिना किसी विशेष औषधि प्रभाव के भी मई के प्रथम सप्ताह से भारत में संक्रमितों की संख्या अचानक घटने लगी  और धीरे धीरे कम होती चली गई | ऐसे बढ़ने घटने का क्रम आगे भी चलता रहा है जिसका वास्तविक कारण खोजा जाना आवश्यक था किंतु ऐसा नहीं किया जा सका | 
   इसके बिना महामारी संबंधी अध्ययनों अनुसंधानों की परिकल्पना कैसे की जा सकती है |इस उतार चढ़ाव का वास्तविक कारण खोजे बिना महामारी से मुक्ति दिलाने वाली औषधियों या टीकों आदि का परीक्षण किया जाना कैसे संभव हो सकता है | 
  अनुसंधानों की दृष्टि से यदि सोचा जाए तो कई बार बिना औषधियों टीकों आदि के भी महामारी के बढ़े वेग को अपने आपसे कम होते देखा गया है | यहाँ तक कि कई बार तो ऐसा लगा कि महामारी अब समाप्त हो जाएगी | ऐसी परिस्थिति में किसी भी टीके औषधि या लॉकडाउन जैसे उपायों के प्रभाव का परीक्षण किया जाना संभव न था | इस प्रकार का परीक्षण किए बिना महामारी की वास्तविकता   को समझना संभव नहीं है |
      इसी प्रकार से महामारी के पैदा होने के लिए यदि किसी देश विशेष को जिम्मेदार माना जाए  तो ऐसे अनुसंधानों को करते समय इस जिम्मेदारी का भी निर्वाह करना आवश्यक होगा कि यदि ऐसा होता तो अन्य देशों के वैज्ञानिक अपने चिकित्सकीय प्रयासों से अपने अपने देशों में महामारी का प्रवेश ही नहीं होने देते !कुछ लोग यदि संक्रमित  हो भी जाते तो उन्हें विशेष चिकित्सकीय व्यवस्था में रखकर महामारी जनित संक्रमण को वहीं समाप्त किया जा सकता था | ऐसा  न किए जा पाने का कुछ तो विशेष कारण होगा जिसे खोजा जाना आवश्यक है | ऐसे अनुसंधानों को करते समय यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि महामारी को पैदा करने वाला यदि कोई देश होता तो उसका प्रभाव जितना भी पड़ना होता वो एक बार ही पड़ता महामारी में बार बार का उतार चढ़ाव देखने को नहीं मिलता |       उस देश विशेष ने महामारी फैलाने वाला  छिड़काव बार बार तो किया नहीं होगा या ऐसा कोई वायरस बार बार तो नहीं लैब से निकलता | कुलमिलाकर जो भी किया गया होगा वह एक ही बार हुआ होगा !इसलिए उससे जनित महामारी जितनी भी बढ़नी थी एक ही बार बढ़ जाती, उसके बाद हमेंशा  हमेंशा के लिए समाप्त हो जानी  चाहिए थी किंतु बार बार लहरें आती जाती रहीं जिनके लिए कोई मजबूत वैज्ञानिक तर्क प्रस्तुत नहीं किया जा सका |  इसलिए महामारी पैदा होने के लिए जिम्मेदार किसी निश्चित कारण का पता ही नहीं लग पाया |
   प्राकृतिक घटनाओं के साथ ऐसा क्यों हो रहा है क्या इनसे महामारी का कोई संबंध है इस संबंध को खोजना अनुसंधानों की जिम्मेदारी है | यदि ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का महामारी से कोई संबंध  नहीं है तो इसी समय इतने अधिक ऐसी ऋतु विपरीत घटनाओं के घटित होने का कारण क्या  है |इस संबंध  को खोजने की वैज्ञानिकों की जिम्मेदारी है | इनघटनाओं के तुरंत बाद महामारी प्रारंभ हुई है इसलिए ये विशेष महत्त्व रखती हैं | 
   मौसम संबंधी सही अनुमानों पूर्वानुमानों आदि की भी आवश्यकता है | चिंता की बात यह है कि अभी तक स्वभाव आधारित सही सही मौसम संबंधी अनुमानों पूर्वानुमानों की वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं की जा सकी है | इसलिए लॉकडाउन के प्रभाव का परीक्षण किया जाना संभव नहीं है |इसके  साथ ही इस बात  का भी  पता लगाया जाना चाहिए कि विगत कुछ वर्षों में क्रमिक रूप से बढ़ते जा रहे वायु प्रदूषण का कोरोना महामारी से कोई संबंध था या नहीं इसका भी पता लगाया जाना  चाहिए | 

                       -चिकित्सा खंड- 
 महामारी  को समझे बिना ही तैयार कर लिया गया महामारी से मुक्ति दिलाने का सामान ?   

     वैज्ञानिकों के द्वारा पहले कहा गया था कि तापमान बढ़ने से महामारी पर अंकुश लगेगा !यदि ऐसा हो जाता तब तो यह मान लिया जाता कि प्रबुद्ध वैज्ञानिक महामारी  को समझने में सफल हो गए हैं | इसी के आधार पर इससे मुक्ति दिलाने के लिए औषधि या टीके आदि खोज लिए जाएँगे किंतु उनके द्वारा किए गए वे अनुमान सही नहीं निकले | इसीप्रकार से वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी को समझ लेने का बार बार दावा किया जाता रहा कि उन्होंने महामारी के स्वभाव को समझ लिया है अपने उसी अध्ययन अनुसंधान आदि के बल पर उन्होंने महामारी संबंधी विभिन्न पक्षों पर जितने भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए वे सब के सब गलत निकलते चले गए किंतु और भी 
चिकित्सा में निराशा- 
23 अप्रैल 2020 को प्रभातखबर में प्रकाशित : पर्यावरण सचिव ने जानकारी दी है कि कोरोना एक बड़ी चुनौती है. हमारा मूलमंत्र है कि जिंदगी कैसे बचाएं? हम लगातार टेस्टिंग बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं | 
23 अप्रैल 2020 को आजतक में प्रकाशित :दम घोंट देता है कोरोना, बेबस देखते हैं डॉक्टर, वेंटिलेटर भी काम नहीं आता !न्यूयॉर्क सिटी के बेलेउवे हॉस्पिटल के डॉक्टर रिचर्ड लेवितान ने कहा कि मैं दो दशकों से मेडिकल के छात्रों को वेंटिलेटर्स के बारे में सबकुछ बता रहा हूं उसकी ताकत के बारे में पढ़ाता हूं. लेकिन कोरोना वायरस की वजह से मरीजों का दम घुट रहा है. वेंटिलेटर और लाइफ सपोर्ट सिस्टम भी बेकार साबित हो रहे हैं. मरीजों को मरते हुए देखते रह जाते हैं |  
02अगस्त 2020 को प्रकाशित :विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सोमवार (2 अगस्त) को आगाह​ किया ​कि कोविड-19 की सटीक दवा कभी संभव नहीं है। उसने कहा कि हालात सामान्य होने में अभी वक्त लगेगा। 
14 मई 2020 को आजतक में प्रकाशित :WHO ने दी चेतावनी- कभी खत्म नहीं होगा कोरोना वायरस !विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक शीर्ष स्वास्थ्य अधिकारी ने चेतावनी देते हुए कहा है कि  COVID-19 हमारे आस-पास लंबे समय तक रह सकता है और यह भी हो सकता है कि कभी न जाए !  
प्लाज्मा थेरेपी:

24 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना वायरस ही नहीं, सार्स, मर्स, इबोला तक का इलाज हुआ है | कोरोना वायरस से जूझ रही दिल्ली के लिए अच्छी खबर है कि पहले स्टेज में प्लाज्मा थेरेपी कारगर साबित हुई है !  प्लाज्मा थेरेपी का भारत के अलावा अमेरिका, स्पेन, दक्षिण कोरिया, इटली, टर्की और चीन समेत कई देशों में इसका इस्तेमाल हो रहा है| चीन में कोरोना वायरस का मामला सामने आने पर प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल शुरू किया गया था. चीन में जहां कोरोना का मामला बढ़ा, वहाँ पर भी प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया गया. वहाँ भी रिजल्ट सकारात्मक रिजल्ट आए | इसी क्रम में प्लाज्मा थैरेपी से 162 कोरोना रोगियों के संक्रमण मुक्त होने की बात कही गई है | 

30 अप्रैल 2020 को प्रकाशित : प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना मरीजों में दिखे सुधार के लक्षण, कोविड-19 के इलाज में हो सकती है कारगर!किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की ब्लड ट्रांसफ्यूजन विशेषज्ञ डॉक्टर तूलिका चंद्रा ने उन्हें प्लाज्मा चढ़ाने के विषय में बताया कि प्लाज्मा थेरेपी का सॉर्स और एच1एन1 के समय काफी सफल इस्तेमाल हुआ था। कोविड के मामलों में भी इसका बेहतर परिणाम मिल रहा है। आईसीएमआर इस तरह के परीक्षणों का गहराई से निरीक्षण कर रहा है।
 24 अक्टूबर 2020 को प्रकाशित : बेकार नहीं...कारगर है प्लाजा थेरेपी, पीजीआई चंडीगढ़ का दावा- इन मरीजों को मिल सकता है फायदा!जिन मरीजों को प्लाज्मा थैरेपी दी गई, वे जल्दी ठीक हुए: पीजीआई|पीजीआई के इंटरनल मेडिसिन के प्रोफेसर व प्लाज्मा थेरेपी के प्रिंसिपल इन्वेस्टीगेटर डॉ. पंकज मल्होत्रा ने बताया कि पीजीआई में ट्रायल के दौरान दस मरीजों को शामिल किया गया था। इसमें पांच मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी दी गई, जबकि पांच को नहीं। जिन कोरोना मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी दी गई, वह जल्दी ठीक हुए।

प्लाज्मा थेरेपी से लाभ नहीं हुआ 
7  अगस्त 2020 को प्रकाशित :AIIMS स्टडी का दावा है कि प्लाज्मा थेरेपी कोरोना मृत्यु दर को कम करने में कारगर नहीं है|  डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने गुरुवार को बताया कि एम्स के 30 मरीजों पर यह स्टडी की गई. लेकिन परीक्षण के दौरान प्लाज्मा थेरेपी का कोई फायदा नज़र नहीं आया | 
कोरोना के इलाज से हटाई गई प्लाज्मा थेरेपी !
17 मई 2021 को प्रकाशित :केंद्र सरकार की नई गाइडलाइन जारी, कोरोना के इलाज से हटाई गई प्लाज्मा थेरेपी !
कोरोना की पहली लहर में कोरोना पेशंट्स के लिए कारगर मानी गई प्लाज्मा थैरेपी को केंद्र सरकार ने कोविड ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल से हटा दिया है। कुछ दिन पहले कोविड पर बनी नैशनल टास्क फोर्स की मीटिंग में इस पर चर्चा हुई थी जिसमें कहा गया था कि प्लाज्मा थेरेपी से फायदा नहीं होता है।
19 मई 2021को प्रकाशित :कोरोना संक्रमण में प्लाज्मा थेरेपी किसी काम की नहीं मिली। 39 अस्पतालों में 464 लोगों पर हुए शोध के बाद यह निष्कर्ष सामने आया कि इस थेरेपी से कोई फायदा नहीं है। इसके बाद इंडियन काउंसिल आफमेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) ने इस थेरेपी को कोविड के इलाज की अपनी गाइडलाइन से बाहर कर दिया है। एक तरह से अब प्लाज्मा थेरेपी पर रोक लगा दी गई है।आइसीएमआर द्वारा कराए गए शोध में शामिल 464 मरीजों में लगभग आधी संख्या ऐसे मरीजों की थी, जिन्हें प्लाज्मा थेरेपी दी गई थी। आधा ऐसे थे जिनपर इस थेरेपी का प्रयोग नहीं किया गया गया था। विशेषज्ञों ने लगातार उनकी निगरानी की। दोनों को समान दवाएं और सुविधाएं प्रदान की गईं।अंतर केवल प्लाज्मा थेरेपी का रखा गया। कई चरणों में हुए इस शोध में रिकवरी रेट में कोई अंतर नहीं आया। इसके बाद इस थेरेपी को आइसीएमआर ने कोविड इलाज की अपानी गाइडलाइन से बाहर कर दिया है
                                        वैक्सीन निर्माण  वैज्ञानिक प्रामाणिकता !
    वैक्सीननिर्माण के विषय में विभिन्नवैज्ञानिकों के द्वारा कही गई बातों का चिंतन करने से लगता है कि इसमें वैज्ञानिकता कम लीपापोती अधिक लगती है ! वैज्ञानिकवक्तव्यों में स्पष्टता एवं स्थिरता का नितांत अभाव है| इस विषय में अपनाई गई संपूर्ण प्रक्रिया को देखकर लगता है कि जहाँ जब जैसी परिस्थिति बनती दिख रही है वैक्सीन के  विषय में तब तैसी बातें बोली जाने लगती हैं !
    महामारीजनित संक्रमण 6 मई 2020 तक तेजी से बढ़ता जा रहा था !6 मई 2020 से लगभग 31 जुलाई 2020 तक  संक्रमण की गति क्रमशः धीमी होती जा रही थी ! इसके बाद लगभग 31 जुलाई 2020 से 18 सितंबर 2020 तक संक्रमण की गति तेजी बढ़ती जा रही  थी | उसके बाद बिना किसी चिकित्सा के संक्रमण की गति तेजी से कम होती जा रही थी |  
    इस क्रम में संक्रमण जबजब  बढ़ने लगता था तब वैज्ञानिकों के द्वारा वैक्सीन बनने पर संशय व्यक्त किया जाने लगता था और जैसे जैसे  संक्रमण की गति   कम होने लगती थी वैसे वैसे वैक्सीन बन जाने या वैक्सीन का ट्रायल सफल हो जाने की बात की जाने लगती थी | वैक्सीन को लेकर अंत तक यही क्रम चलता रहा |
     वैक्सीन के ट्रायल सफल होने की बात भी तभी कही गई थी जब संक्रमितों की संख्या स्वयं ही दिनोंदिन कम होती जा रही थी उस समय जो लोग ट्रायल में सम्मिलित थे या जो  लोग सम्मिलित नहीं भी थे वे दोनों ही प्रकार के लोग स्वस्थ होते  जा रहे थे | ऐसी  परिस्थिति में वैक्सीन का ट्रायल सफल हुआ  या नहीं इस विषय में  कोई निर्णय किया जाना आसान नहीं था | इसीलिए 6 मई 2020 से लगभग 31 जुलाई 2020 के बीच संक्रमितों की संख्या तेजी से कम हुई थी इसीसमय अधिकाँश  देशों में बनाई जा रही वैक्सीनों के ट्रॉयल को सफल मान लिया गया था !ये कितना सच और कितना भ्रम था इसका निर्णय उन्हीं पर छोड़ा जाना चाहिए | 
    वैक्सीन लगने के बाद भी वैक्सीन प्रभाव से यह विश्वास दिलाया जाना संभव नहीं था कि जिस जिसने वैक्सीन ले  ली है वह अब संक्रमित नहीं ही होगा और जिन्होंने वैक्सीन नहीं ली वे संक्रमित होंगे ही ऐसा भी नहीं कहा  सकता था | वैक्सीन लगने के बाद जिन देशों में कोरोना संक्रमण कम फैला या नहीं फैला था उन्होंने  इसे अपनी वैक्सीन का प्रभाव मान लिया किंतु यदि इस बात को सच माना जाए तो ऐसे देशों में भी जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगवाई थी उन्हें तो संक्रमित होना चाहिए था किंतु ऐसा नहीं हुआ इसका मतलब था कि उन  देशों में कोरोना संक्रमण बढ़ा ही  नहीं  था जिन देशों में संक्रमण बढ़ा वहाँ की  वैक्सीन की गुणवत्ता में कमी मान  ली गई | यही दुविधा अंत  तक बने रहने की संभावना है |इसी संशय के कारण महामारी वैक्सीन प्रभाव से समाप्त हुई है या अपने आप से यह विश्वासपूर्वक कहना कठिन होगा | 

संक्रमण बढ़ता देख वैज्ञानिकों ने वैक्सीन बनने में संशय व्यक्त किया |
 
  7 मई  2020 को प्रकाशित :बताया गया कि कोरोना स्वरूप बदल रहा है रूप बदलने पर अगर वायरस खतरनाक हो जाए तो नई बनाई गई वैक्सीन उस पर असर नहीं करेगी.म्यूटेशन (बदलाव) होना वैक्सीन की प्रक्रिया पर असर डाल सकता है | 
कोरोना संक्रमण 31 जुलाई 2020 के बाद दोबारा बढ़ने पर वैज्ञानिकों के वक्तव्य !
 
2सितंबर 2020 को प्रकाशित :खुद को बार-बार बदल रहा है कोरोना वायरस, ऐसे में कैसे बन पाएगी वैक्सीन, टेंशन में एक्सपर्ट !इस अध्यनन में कई रिसर्च इंसीट्यूट ने भाग लिया था जिसमें संक्रामक रोगों और वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रम में प्रतिरक्षा, मैकगिल विश्वविद्यालय स्वास्थ्य केंद्र के अनुसंधान संस्थान और मैकगिल इंटरनेशनल टीबी सेंटर, कनाडा के विशेषज्ञ शामिल थे। 
10 सितंबर 2020 को डाउन टू अर्थ में प्रकाशित :कोरोना वैक्सीन अपडेट: नोटिस के बाद सीरम इंस्टिट्यूट ने ट्रायल रोका !कोरोना वैक्सीनट्रायल में शामिल एक कार्यकर्ता के बीमार पड़ने पर एस्ट्राजेनेका ने फिलहाल काम रोक दिया है |
कोरोना के अपने आपसे कमजोर होने पर वैज्ञानिकों  के वक्तव्य !
को एशियनन्यूज में  प्रकाशित :इटली के टॉप डॉक्टर्स ने दावा किया है कि कोरोना वायरस धीरे-धीरे अपनी क्षमता खो रहा है और अब वह उतना जानलेवा नहीं रह गया है। डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना वायरस अब कमजोर पड़ रहा है। जेनोआ के सैन मार्टिनो अस्पताल में संक्रामक रोग प्रमुख डॉक्टर मैट्टेओ बासेट्टी ने ये जानकारी न्यूज एजेंसी ANSA को दी है | इसकी पकड़ और गहनता में कमजोरी देखने को मिल रही है।
को एशियन न्यूज में  प्रकाशित :खत्म हो रहा कोरोना? मरीजों की कमी से वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंतावैक्सीन ट्रायल के लिए नहीं मिल रहे वॉलेंटियर !
08 जुलाई 2020 को प्रकाशित :वैक्सीन नहीं बनी तो भारत में 2021 में रोजोना आएंगे कोरोना के 2.87 लाख केस, MIT के रिसर्च में दावा !मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के रिसर्च के मुताबिक, कोरोनो वायरस महामारी का सबसे बुरा दौर अभी आने वाला है। एमआईटी का यह रिसर्च 84 देशों के अध्ययन पर आधारित है, जिसमें दुनिया की 60 फीसदी आबादी (4.75 अरब लोग) शामिल हैं।भारत में भी कोरोना वैक्सीन या दवाई के बिना आने वाले महीनों में कोविड-19 के मामलों में भारी उछाल देखने को मिल सकता है। रिसर्च के अनुसार, 2021 के अंत तक हर दिन 2.87 लाख मामलों के साथ भारत दुनिया में सबसे अधिक प्रभावित देश बन सकता है।
5 मई 2020 से 14 अगस्त 2020 के बीच संक्रमण कम होता देख किए  वैक्सीन निर्माण के दावे ! 

इजरायल -
मई 2020 को प्रकाशित :इजरायल के रक्षा मंत्री नैफ्टली बेन्‍नेट ने दावा किया है कि इजरायल के डिफेंस बायोलॉजिकल इंस्‍टीट्यूट ने कोविड-19 का टीका बना लिया है।
भारत _
6 मई 2020 को प्रकाशित :कोरोना का अंत करीब! वैक्सीन की रिसर्च में अंतिम चरण पर भारत !क्या कोरोना की दवा मिल गई है? बताया जा रहा है कि भारत में कोरोना वायरस का काम तमाम करने वाली वैक्सीन और दवा बनाने का काम अंतिम चरण में है.
20 जुलाई  2020 को प्रकाशित :सात भारतीय फार्मा कंपनियां हैं कोरोना वैक्सीन बनाने की दौड़ में हैं | 

इटली -
7 मई 2020 को प्रकाशित : जल्द ही दुनिया से खत्म हो जायेगा कोरोना का नामोनिशान, अब इटली ने किया ये दावा ! दुनिया भर में जारी कोरोनावायरस महामारी संकट के बीच एक राहत की खबर सामने आयी है. कोरोना से सबसे प्रभावित देशों में से एक इटली  ने कहा है कि उसने कोरोना की वैक्सीन बना ली है और जल्दी ही कोरोनावायरस को रोक दिया जायेगा.साइंस टाइम्स की रिपोर्ट के हवाले से इटली सरकार ने बताया कि हमारे वैज्ञानिकों द्वारा कोरोना के एंटी बॉडी ढूंढ़ लिया गया है. जल्द ही इसको हम उपयोग में लायेंगे | 
अमेरिका :
8 मई 2020 को प्रकाशित :अमेरिका के कैलीफोर्निया में स्थित बायोफार्मास्यूटिकल कंपनी गिलियड साइंसेस ने कोरोना वायरस को खत्म करने वाली एंटीवायरस मेडिसिन बना ली है। इसे वेकलरी नाम दिया गया है।अमेरिका के वरिष्ठ संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एंथोनी फॉसी ने इस दवा को कोरोना वायरस को खत्म करने वाली एकमात्र दवा बताया है।इस दवा के इस्तेमाल को अमेरिका एक सप्ताह पहले ही मंजूरी दे चुका है।अमेरिका के बाद जापान ने भी गंभीर हालत वाले मरीजों पर इस दवा के इस्तेमाल मंजूरी दे दी है। 
19 मई 2020 को प्रकाशित :बड़ी खुशखबरी: कोरोना वायरस की दवा होगी तैयार! कामयाब और सफल रहा पहला ह्यूमन ट्रायल |अमेरिका की बायोटक्नोलॉजी कंपनी मॉडर्ना इंकने दावा किया है कि उसका पहला ट्रायल सफल हुआ है. वैक्सीन से शरीर में एंटीबॉडीज तैयार हो रही हैं. ये एंटीबॉडीज वायरस के हमले को काफी कमजोर बना देती हैं. पहले ह्यूमन ट्रायल के सफल होने के बाद अब दूसरी स्टेज की तैयारी है.
6 जून 2020 को हिंदुस्तान में प्रकाशित :अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि उनके देश में कोरोना महामारी की वैक्सीन खोज ली गई है। अमेरिका ने 20 लाख वैक्सीन बना ली है |
बांग्लादेश 
18 मई 2020 को प्रकाशित :बांग्लादेश के डॉक्टरों का दावा- खोज ली कोरोना की दवा, 4 दिन में ठीक हो गए 60 मरीज |  ढाका. बांग्लादेश में डॉक्टरों की एक टीम ने दावा किया है कि उन्होंने कोरोना वायरस  की दवा खोज ली है. उनका कहना है कि इन दवाओं का इस्तेमाल उन्होंने कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों पर किया है. दवाओं के इस्तेमाल से कोरोना के लक्षण 3 दिन में ही खत्म हो गए. उन्होंने दावा किया है कि उन दवाओं के इस्तेमाल से कोरोना के मरीज 4 दिन में ठीक हो गए | 
रूस -
13 जुलाई 2020 को प्रकाशित :कोरोना वैक्‍सीन बनाने में रूस ने मारी बाजी, ह्यूमन ट्रायल पूरा करने का दावा किया |
11अगस्त 2020 को प्रकाशित :रूस के राष्ट्रपति पुतिन की घोषणा- हमने वैक्सीन बनाकर रजिस्टर्ड कराई, पहला डोज अपनी बेटी को लगवाया; नाम दिया 'स्पुतनिक वी' | 
 20 जुलाई 2020 को प्रकाशित :दुनिया को कोरोना वायरस वैक्‍सीन का इंतजार जबकि समाचार पत्रों से पता लगा है कि रूसी अरबपतियों ने अप्रैल में ही टीका लगवा लिया था | 
चीन -
14 अगस्त 2020 को प्रकाशित :चीन का दावा, कहा- पहले हमने बनाई कोविड-19 की वैक्सीन, अप्रैल में ही हुआ था ट्रायल
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विशेष बात :-
 स्वरूप बदलने के बाद भी वैक्सीन बना  ली गई!
     वैज्ञानिकों के द्वारा पहले तो कहा गया कि महामारी का यदि स्वरूप परिवर्तन होगा तो वैक्सीन निर्माण में कठिनाई आएगी और बाद में महामारी के स्वरूप परिवर्तन की बात भी मानी गई और वैक्सीन बना लेने की बात भी कही गई | 
     इसका अभिप्राय क्या समझा जाए कि वैक्सीन निर्माण में महामारी का स्वरूप परिवर्तन बाधक होगा वैज्ञानिकों के द्वारा लगाया गया यह अनुमान सही नहीं था या फिर महामारी के स्वरूप परिवर्तन को समझने एवं अनुमान लगाने में चूक हुई है | 
   अगली महामारी के लिए तैयार रहने की बात कही गई है |  
8 सितंबर 2020 को प्रकाशित : डब्ल्यूएचओ प्रमुख की चेतावनी, दुनिया को अगली महामारी के लिए रहना होगा तैयार !डब्ल्यूएचओ ने एक बयान में कहा कि समिति ने कोविड-19 महामारी की लंबी अवधि के पूर्वानुमान को बताया है।विशेष बात :डब्ल्यूएचओ प्रमुखके कथन का अभिप्राय क्या हो सकता है कि वैज्ञानिक तैयारियों के बलपर इस महामारी को हमने जीत लिया है अब अगली महामारी के लिए तैयारी शुरू की  जानी चाहिए ,अथवा उनके कथन का आशय है कि इस महामारी के लिए हमारी तैयारियॉँ भले किसी काम नहीं आ सकीं फिर भी अब अगली महामारी के लिए तैयार रहना चाहिए किंतु जब इस महामारी का कुछ नहीं किया जा सका तो भविष्य की महामारियों के विषय में तैयारी किया जाना भी इतना आसान नहीं होगा | 
                                ! चिकित्सा पर मंथन !
     कोरोना वायरस के इलाज को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अब तक इसकी कोई दवा उपबल्ध नहीं है। दवा बनाने के लिए बहुत से देश लगातार कोशिश कर रहे हैं | अब सवाल यह उठता है कि कोरोना वायरस के इलाज के लिए अब तक कोई दवा दुनिया के किसी भी देश के पास उपलब्ध नहीं है तो फिर लोग ठीक कैसे हो रहे हैं?ये स्वयं में शोध का विषय है | 
     विशेष बात यह है कि कोरोना वायरस की किसी औषधि के बिना यदि अप्रैल 2020 में  रोगी स्वस्थ होने लग  सकते हैं ,ऐसे ही यदि जून जुलाई 2020 में  बिना किसी औषधि के रोगी इतने अधिक स्वस्थ हो सकते हैं कि वैक्सीन ट्रायल के लिए भी रोगी मिलने बंद हो गए थे | उस समय वैज्ञानिकों को यह कहना पड़ा कि लगता है अब बिना किसी वैक्सीन के ही महामारी समाप्त हो जाएगी |2020 के नवंबर दिसंबर में जब चिकित्सा का अभाव था ही सर्दी भी बढ़ने लगी थी,इस समय वायुप्रदूषण भी बहुत अधिक मात्रा में  बढ़ा हुआ था | 
    चिकित्सकों के अनुसंधानों के आधार पर इस समय तो महामारी बढ़नी चाहिए थी किंतु वैज्ञानिकों के अनुमानों के विपरीत उस समय तो संक्रमितों की संख्या दिनोंदिन घटती जा रही थी |इस समय तक वैज्ञानिकों के द्वारा किया गया ऐसा कोई चिकित्सकीय प्रयत्न नहीं प्रस्तुत किया जा सका था जिसे संक्रमितों की संख्या दिनोंदिन घटते जाने का श्रेय दिया जा सके |  सन 2020 के धन तेरस दिवाली जैसे त्योहार भी इसी समय थे | बाजारों में भारी भीड़ें उमड़ती रहीं महानगरों की बाजारों या साप्ताहिक बाजारों में यही स्थिति थी उस समय कोविड नियमों की धज्जियाँ उड़ाई जाती रहीं | 
   यह सब देखकर  संक्रमितों की संख्या बढ़ने का वैज्ञानिकों के द्वारा अनुमान भी व्यक्त किया गया था किंतु उनके अनुमान न केवल गलत निकले अपितु उनअनुमानों के बिपरीत संक्रमितों की संख्या दिनों दिन कम होती जा रही थी और इन भीड़ों में सम्मिलित प्रायः सभी लोग स्वस्थ बने रहे | यही दिल्ली में लंबे समय  चलते रहे किसान आंदोलन में हुआ | भारी भीड़ उमड़ती रही सब साथ साथ रहते खाते पीते सोते जागते रहे फिर भी सब स्वस्थ बने रहे |बड़ी संख्या में  दिल्ली के शाहीन बाग़ में आंदोलन पर बैठे लोगों के द्वारा किसी भी प्रकार से कोविड नियमों का पालन संभव ही नहीं था और न ही किया गया फिर भी वे लोग प्रायः संक्रमित नहीं हुए | इसी महामारी के समय में ही बिहार बंगाल आदि में चुनाव हुए उन चुनावी रैलियों में भारी भीड़ें उमड़ती रहीं जिनमें किसी भी प्रकार से कोविड नियमों का पालन नहीं किया गया फिर भी  संक्रमितों की संख्या नहीं बढ़ी | इसी कोरोना काल में हरिद्वार में कुंभ लगा जिसमें बहुत बड़ा जन समूह जुटा वहाँ कोविड नियमों का पालन होते नहीं देखा गया इसके बाद भी सभी स्वस्थ बने रहे | 
     ऐसे सभी उदाहरणों को ध्यान में रखते हुए  इस बात की समीक्षा अवश्य होनी चाहिए कि कोविड  नियमों का पालन करना कितना आवश्यक था | लॉक डाउन लगाना कितना आवश्यक था जिसके कारण सारा काम काज ठप्प हो गया | व्यापार बर्बाद हुए आवागमन बाधित हुए स्कूल बंद रहे | भविष्य के लिए ऐसे विषयों पर पुनर्बिचार अवश्य किया जाना चाहिए | 
   चिकित्सा की दृष्टि से यदि बिचार किया जाए तो अमेरिका जैसे बड़े देशों की चिकित्सा व्यवस्था अत्यंत उन्नत मानी जाती है तभी तो बड़े लोग अपनी चिकित्सा करवाने के लिए ऐसे देशों में जाते हैं |उन सक्षम देशों में कोरोना काल कितना डरावना बीता है ये दुनियाँ ने देखा है जहाँ वेंटीलेटरों पर पड़े चिकित्साधीन रोगी चिकित्सकों के सामने दम तोड़ते देखे जा रहे थे |
   भारत वर्ष में दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों को देश के अन्य शहरों की अपेक्षा चिकित्सकीय व्यवस्थाओं संसाधनों में अधिक सक्षम माना जाता है इसके बाद भी बताया जा रहा है कि दिल्ली और मुंबई में 40 प्रतिशत से अधिक लोग संक्रमित हैं | देश के ऐसे महानगरों में अन्य शहरों की अपेक्षा अधिक लोगों को संक्रमित होते देखा गया | 
    चिकित्सकीय सेवाओं का लाभ लेने में साधन  संपन्न धनी लोगों को सक्षम माना जाता है |वे सभी प्रकार से चिकित्सकीय लाभ लेते भी रहे|  कोविड नियमों  का पूरी तरह से  पालन करते रहे | इसके बाद भी उनमें से बहुत लोगों को संक्रमित होते देखा गया |उनका बचपन से  रहन सहन टॉनिक टीके टेबलेट खान पान सबकुछ नियमानुसार चिकित्सकों की सलाह के अनुशार चलता रहा | दूध दही घी मक्खन मेवा आदि सारी पौष्टिक वस्तुओं का सेवन करते रहे इनसे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने के कारण अन्य लोगों की अपेक्षा उन्हें अधिक अनुपात में स्वस्थ होना चाहिए था किंतु ऐसा नहीं हुआ | 
         कुल मिलाकर महामारी के समय में जहाँ एक ओर जनता इतने बड़े संकट से जूझती रही वहीं दूसरी ओर वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए अधिकाँश अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत होते चले जा रहे थे | ऐसा क्यों हुआ |यह खोजने के लिए भी वैज्ञानिकों के द्वारा न केवल अनुसंधान किए जाने चाहिए अपितु उन कारणों को भी सार्वजनिक किया जाना चाहिए जिनके कारण इतनी बड़ी घटना घटित होते समय समाज को वैज्ञानिक अनुसंधानों से कोई मदद नहीं मिल सकी |        

                     कोविड नियमों को महामारी की चिकित्सा की तरह प्रस्तुत किया गया | 
10 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :अमेरिकन स्टडी का दावा- सोशल डिस्टेंसिंग और निजी सुरक्षा ही फिलहाल कोरोना वायरस का इलाज है |
16 अप्रैल  2020 को प्रकाशित :टाइम्स फैक्ट - इंडिया आउटब्रेक रिपोर्ट' में भारत में कोरोना की कुछ संभावनाओं का अनुमान लगाया गया है, उनमें यह एक है। यह स्टडी ग्लोबल कंसल्टिंग फर्म प्रोटिविटी और टाइम्स नेटवर्क ने की है। 16 अप्रैल की इस रिपोर्ट में यह पता लगाया गया कि देश में कोरोना की बीमारी किस रफ्तार से फैलेगी,| कहा गया है कि मई के तीसरे हफ्ते तक कोरोना के भारत में मामले घटेंगे, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम कितना ऐहतियात बरतते हैं।
23 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :पर्यावरण सचिव ने जानकारी दी है कि कोरोना एक बड़ी चुनौती है. हमारा मूलमंत्र है कि जिंदगी कैसे बचाएं? हम लगातार टेस्टिंग बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं.| हमें देश में रैंप टेस्टिंग की जरूरत है.| 
4 जून 2020 को प्रकाशित :4 जून 2020 - खत्म हो रहा कोरोना? मरीजों की कमी से वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंता, वैक्सीन ट्रायल के लिए वॉलेंटियर नहीं मिल रहे हैं |अमेरिका और यूरोप के वैज्ञानिकों का कहना है कि सख्ती से लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग लागू होने के बाद मामलों में कमी आई है। ऐसे में अब यहां वैक्सीन ट्रायल के लिए हॉटस्पॉट की कमी होती जा रही है। बताया जा रहा है कि इस कमी की वजह से वैक्सीन का ट्रायल प्रभावित हो सकता है। 

19 अक्टूबर 2020 को प्रकाशित :सरकार द्वारा लॉकडाउन के प्रभाव और पूर्वानुमान के अध्ययन के लिए हैदराबाद IIT के प्रोफेसर एम. विद्यासागर की अध्यक्षता  में बनाई गई समिति ने कहा, 'हमारी तैयारियों में कमी के कारण स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई होती, जिससे कई अतिरिक्त मौतें होतीं.'मास्क, डिसइंफेक्टिंग, टेस्टिंग और क्वारनटीन के अभ्यास को लगातार जारी रखें. | अगर सभी प्रोटोकॉल्स को अच्छी तरह से लागू किया जाए अगले साल फरवरी के अंत तक इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है| 
19 अक्टूबर 2020 को प्रकाशित :विश्व स्वास्थ्य संगठन) की चीफ साइंटिस्ट सौम्या विश्वनाथन दक्षिणी भारत वाणिज्य और उद्योग मंडल द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में स्वामीनाथन ने कहा, 'हमें अनुशासित व्यवहार के लिए दो साल तक खुद को मानसिक रूप से तैयार कर लेना चाहिए| 
1अप्रैल 2021को प्रकाशित :दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. राणा अनिल कुमार सिंह ने कहा है कि लोगों की लापरवाही और उदासीनता के चलते देशभर में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में तेजी से इजाफा हुआ है। दिल्ली में भी इसीलिए ऐसे हालात बने हैं। 
19 जून 2021को प्रकाशित :अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक रणदीपगुलेरिया ने चेतावनी दी कि यदि कोविड-उपयुक्त व्यवहार का पालन नहीं किया गया और भीड़-भाड़ नहीं रोकी गई तो अगले छह से आठ सप्ताह में वायरल संक्रमण की अगली लहर देश में दस्तक दे सकती है। 
16 जुलाई 2021को प्रकाशित :दुनिया कोरोना महामारी की तीसरी लहर को लेकर सहमी हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूूएचओ) के प्रमुख टेड्रॉस ए. गेब्रेयेसिस ने कहा है कि कोरोना की तीसरी लहर अभी शुरुआती दौर में हैं। दुनियाभर में डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित मरीजों की संख्या अभी गिनती में हैं। अभी इसे बेकाबू होनेसे रोकना संभव है, हमेशा की तरह इस बार भी अगर लापरवाही हुई तो पहले से भी भयावह नतीजे सामने होंगे।
23 सितंबर 2021को प्रकाशित :कैसी हो सकती हैं भविष्य में कोरोना की लहरें?विश्व स्वास्थ्य संगठन और वैक्सीनएलायंस GAVI का आकलन है कि आने वाले कई वर्षों तक कोरोना वायरस कहींजाने वाला नहीं है. कम या ज्यादा प्रभावी रूप में ये अलग-अलग देशों और उनके अलग-अलग इलाकों में उभरता रहेगा. इससे निपटने के उपायों के साथ-साथ लोगों को इसके साथ जीने की आदत डालनी होगी.
4अक्टूबर2021 को प्रकाशित :  आईसीएमआर के बलराम भार्गव, समीरन पांडा और संदीप मंडल और इंपीरियल कॉलेज लंदन से तीसरीलहर अगर आती है तो दूसरी लहर जितनी मजबूत होगी ये अभी कहना उचित नहीं है. मालन अरिनामिनपथी द्वारा गणितीय मॉडल ‘कोविड-19 महामारी के दौरान और भारत के अंदर जिम्मेदार यात्रा’ पर आधारित यह ‘ओपिनियन पीस’ (परामर्श) ‘जर्नल ऑफ ट्रैवल मेडिसिन’ में प्रकाशित किया गया है.-"कोरोना वायरस संक्रमण और कोरोना की तीसरी लहर का खतरा मंडरा रहा है. यदि किसी कारण से भीड़ होती है तो कुछ राज्‍यों में कोरोना की तीसरी लहर की स्थिति भयावह हो सकती है. विशेषज्ञों ने कहा है कि छुट्टियों की एक अवधि संभावित तीसरी लहर की आशंका को 103 प्रतिशत तक बढ़ा सकती है और उस लहर में संक्रमण के मामले 43 प्रतिशत तक बढ़ सकते हैं |            

  महामारी से बचाव के लिए कोविड नियम कितने आवश्यक सिद्ध हुए ?
    
     जनता यदि अपने अनुभवों के आधार पर परीक्षण करना चाहे कि कोविड नियमों का पालन करना कितना आवश्यक था | इसके लिए जनता वैज्ञानिक तो है नहीं और न ही उसके पास अनुसंधान के संसाधन ही हैं | समाज तो महामारी काल में कोविड नियमों के पालन करने और न करने वालों संबंधी कुछ अनुभवों को आधार बनाकर ही कुछ सोचा जा सकता है | 
   वैज्ञानिकों  के द्वारा निर्धारित किए गए कोविड नियमों का पालन न करने से कोरोना बढ़ेगा ऐसा वैज्ञानिकों  का अनुमान था | इसलिए कोविड नियमों का पालन चिकित्सा की तरह किया और करवाया जा रहा था |इसी के लिए तो लॉकडाउन जैसे प्रयोग करने हेतु उद्योग धंधे बाजार  यातायात आदि सब कुछ बंद किए करवाए गए,शिक्षा बाधित हुई महीनों विद्यालय बंद रहे | 
07 मई 2020  को प्रकाशित :झारखण्ड के विषय में एक लेख प्रकाशित हुआ है उसका संबंधित अंश - "कोरोना मरीजों के नियमित संपर्क में रहने वाले लोगों को भी संक्रमण नहीं हो रहा है। झारखंड के कई मरीजों के साथ ऐसे मामले मिले हैं। नियमित संपर्क में रहने वाले लोगों को भी संक्रमण नहीं होते देख डॉक्टर हैरान हैं। उनके लिए कोरोना का असर और संक्रमण अबूझ पहेली बने हुए है। रिम्स के मेडिसिन विभाग के एचओडी प्रो डॉ जेके मित्रा कहते हैं कि कोरोना का असर और संक्रमण के लक्षण समझ में ही नहीं आ रहे हैं। यह शोध का विषय है। इसको लेकर ऑब्जर्वेशन किया जा रहा है।"
     इसी लेख में प्रकाशित  घटना का जिक्र है -"एक कोरोना संक्रमित महिला का प्रसव पिछले 15 अप्रैल 2020 को झारखंड के सदर अस्पताल में कराया गया। उसका पति भी संक्रमित था। अस्पताल में पति-पत्नि के संपर्क में आए चार स्वास्थ्यकर्मी और एक सुरक्षा कर्मी भी संक्रमण की चपेट में आ गये। नवजात के साथ पति-पत्नी को रिम्स में भर्ती कराया गया। महिला लगातार बच्ची को दूध पिलाती रही। लेकिन बच्ची संक्रमण मुक्त है।  इस तरह के दो और मामले रिम्स में मिले। इन संक्रमित महिलाओं का भी प्रसव हुआ लेकिन उनके शिशु निगेटिव रहे।" ऐसा कई अन्य स्थानों पर भी हुआ है | 
      13 अप्रैल 2021 को प्रकाशित :एक रिसर्च के आधार पर कहा गया है कि किसी संक्रमित सतह को छूने से संक्रमण फैलने का खतरा काफी कम है अखवार में प्रकाशित संबंधित अंश -"अमेरिका में की गई एक नई रिसर्च में दावा किया गया है कि किसी सतह को छूने से अब कोविड-19 संक्रमण फैलने का खतरा कम है. वह सतह भले ही संक्रमित ही क्यों न हो. सेंटर्स फॉर डिजीस कंट्रोल के मुताबिक, अब किसी सतह को छूने से संक्रमित होने की आशंका 10 हजार लोगों में से सिर्फ एक की है |"       
   भारत में दिल्ली मुंबई सूरत आदि से श्रमिकों का जब पलायन हुआ उस समय भी देखा गया था कि श्रमिकों के द्वारा कोविड नियमों का पालन बिल्कुल नहीं किया गया था |यह देखकर वैज्ञानिकों  के द्वारा  आशंका व्यक्त की  गई थी कि इसके बाद कोरोना संक्रमण बहुत अधिक बढ़ जाएगा ये जहाँ जहाँ जाएँगे वहाँ वहाँ भारी मात्रा में लोग संक्रमित होते चले जाएँगे किंतु वैज्ञानिकों  का यह अनुमान सही नहीं निकला और वहाँ ऐसा कहीं कुछ होते नहीं देखा गया ?
    महानगरों की घनी बस्तियों में छोटे छोटे घरों कमरों अधिक संख्या में लोग रहते रहे,फैक्ट्रियों आदि में एक एक हाल में बहुत लोग रहकर एक साथ खाते पीते सोते जागते रहे नहाते धोते रहे  शौचालयों का उपयोग करते रहे ,महानगरों में गरीबों के बच्चे दिन दिन भर भोजन की लाइनों में खड़े रहे जिसने जैसे हाथों से जो खाने पीने को दिया इसके बाद भी संक्रमण मुक्त बने रहे,सब्जी वाले, फल वाले धनी लोगों के यहाँ आवश्यक वस्तुएँ लेकर जाने वाले उनके कर्मचारी संक्रमण मुक्त बने रहे | धनी लोगों ने पूरी तरह कोविड नियमों  का पालन किया इसके बाद   भी उनमें से बहुत लोगों को संक्रमित होते देखा गया | उन संक्रमितों को अस्पताल ले जाने वाले उनके ड्राइवरों एवं उन रोगियों की परिचर्या करने वाले उनके नौकरों प्रायः संक्रमण मुक्त देखा जाता रहा |कई घरों कार्यस्थलों में ऐसा भी देखा गया कि जहाँ कई लोग एक साथ रहते खाते  सोते जागते रहे उनमें से किसी एक को कोरोना था इस बात का पता तब लगा जब जाँच रिपोर्ट आई | इसके पहले तो सब एक साथ ही थे, ऐसे संक्रमितों के साथ रहने वाले बाक़ी लोग पूरी तरह स्वस्थ बने रहे | 
    भारत में सन 2020 के धन तेरस दिवाली जैसे त्योहारों के समय बाजारों में भारी भीड़ें उमड़ती रहीं महानगरों की बाजारों या साप्ताहिक बाजारों में यही स्थिति थी उस समय भी संक्रमितों की संख्या बढ़ने का वैज्ञानिकों के द्वारा अनुमान व्यक्त किया गया था किंतु संक्रमितों की संख्यादिनों दिन कम होती जा रही थी |इनमें सम्मिलित प्रायः सभी लोग स्वस्थ बने रहे |
    बनारस और पुणे में एक एक केस ऐसा आया है जिसमें गर्भिणी माँ के संक्रमण मुक्त होने के बाद भी गर्भस्थ शिशु संक्रमित निकला वह कहाँ किसका स्पर्श करने गया आखिर वो संक्रमित कैसे हुआ | वैसे भी सबसे पहले जो व्यक्ति संक्रमित हुआ होगा वो कहाँ और किसको स्पर्श करने गया होगा कई लोग संक्रमितों के साथ सोते जागते खाते पीते रहे उठाते बैठते रहे !जाँच रिपोर्ट आने पर पता लगा कि उनमें से कोई एक संक्रमित है !ऐसी परिस्थिति में उन सभी को संक्रमित हो जाना चाहिए था किंतु उनमें से कोई संक्रमित नहीं हुआ !   
     वैज्ञानिक दृष्टि से प्रत्येक विषय को तर्कों के द्वारा बार बार प्रच्छालित किया जाता है उसके बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है | ऐसी स्थिति में कोविड नियमों के नाम पर जो जो कुछ अनिवार्य किया गया वो कितना आवश्यक था और उससे कितना लाभ हुआ | ये बिचार किया जाना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि कोविड  नियमों के पालन के लिए सभी रोजी रोजगार रोकना पड़ा ,यातायात बंद करना पड़ा ,विद्यालय बंद करने पड़े,विवाह कामकाज एवं तिथि त्योहारों के साथ समझौता करना पड़ा | ऐसे नियमों के अनुपालन से भी समाज को नुक्सान उठाना पड़ा है ,फिर भी बाकी सारे नुक्सान सही जा सकते हैं यदि ऐसे नियमों के पालन से महामारी से बचाव में थोड़ी भी मदद मिली हो | एक प्रतिशत भी यदि इस बात की संभावना रही हो कि ऐसे नियमों की कोरोना से बचाव में कोई बड़ी भूमिका नहीं रही है तो ये सहना आसान नहीं होगा क्योंकि महामारी काल में समाज ने जहाँ एक ओर महामारी के कारण बहुत कुछ खोया है वहीं दूसरी ओर ऐसे प्रतिबंधों से समाज को क़ाफी नुक्सान उठाना पड़ा है | जिस काल खंड में विज्ञान इतना उन्नत नहीं था उस युग में यदि ऐसा होता था तब तो सहज स्वीकार्य था किंतु वर्तमान समय में जब वैज्ञानिक उपलब्धियाँ नित नूतन उँचाइयाँ छू रही हों उस युग में ऐसा हो यह सहज सहनीय नहीं होगा | 
     सौ दो सौ वर्ष पहले वैज्ञानिक अनुसंधानों के  अभाव में यदि भयभीत समाज ऐसे प्रतिबंधों को बचाव के लिए अपनाता था | ये बचाव के लिए आवश्यक हों न हों फिर भी उस युग में चल जाता था किंतु वर्तमान वैज्ञानिक युग में समाज को केवल सार्थक प्रतिबंधों का परिपालन करने के लिए ही बाध्य किया जाना चाहिए था जिनका परिपालन आवश्यक रहा हो !यह वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं की जिम्मेदारी थी | 
    ऐसे प्रतिबंधों का परिपालन महामारी से बचाव के लिए कितना सहयोगी रहा है इसकी समीक्षा भविष्य को लेकर भी की जानी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी परिस्थिति पैदा ही न हो | कोविड नियमों के प्रति शंका होनी इसलिए भी स्वाभाविक है क्योंकि महामारी के समय वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि प्रायः सही नहीं निकले हैं उन्हीं के द्वारा बनाए गए कोविड नियम भी कहीं उसी प्रकार के काल्पनिक आधार की उपज तो नहीं थे | उस समय ऐसे प्रतिबंधों के कारण ही तो समस्त कार्य व्यापार आदि रोकने पड़े थे अन्यथा रोगियों की चिकित्सा होती रहती दूसरी ओर सारा रोजी रोजगार भी ठीक से चलता रहता जिससे आर्थिक समस्याएँ ही न पैदा होतीं | 
     

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      बिचारणीय 
    वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में जो जो कुछ कहा गया वो सब कुछ सही नहीं निकला ! इसका मतलब हुआ कि जिस आधार पर वो कहा गया वे आधार ही गलत थे ? वैज्ञानिक अनुसंधानों की  जिस प्रक्रिया के आधार पर उस प्रकार के अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए गए थे वो प्रक्रिया ही गलत थी ?  जिन वैज्ञानिकों ने महामारी के विषय में ऐसे अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए थे जो सही नहीं निकले प्रत्युत कई जगह तो उन अनुमानों  पूर्वानुमानों से विपरीत घटनाएँ घटित होते देखी गई हैं | ऐसा क्यों हुआ उसके कारण क्या थे ये स्वयं में अनुसंधान का विषय है | 
     ऐसे अनुमानों  पूर्वानुमानों के सही न निकलने का कारण जो भी रहा हो किंतु इतना तो सच ही है कि वे सुयोग्य एवं पद प्रतिष्ठा प्राप्त वैज्ञानिक  हैं |उनकी योग्यता पर संशय नहीं किया जा सकता है | इसके लिए वैज्ञानिकों ने जिस वैज्ञानिक विधा को आधार  बनाया वो वैज्ञानिक प्रक्रिया  प्रमाणित मानी जाती है |   वैज्ञानिक  लोग  संपूर्ण कोरोना काल में प्राण प्रण से लगे रहे उनके समर्पित प्रयासों पर भी संशय नहीं किया जा सकता |
     ऐसी परिस्थिति में जब विज्ञान भी सही है वैज्ञानिक अनुसंधान भी सही हैं वैज्ञानिकों के द्वारा प्रयत्न भी पर्याप्त किए गए हैं | इसके बाद भी महामारी जैसे इतने बड़े संकट के विषय में वैज्ञानिकों को भनक तक क्यों नहीं लगी | आखिर ऐसे संकटों के विषय में अनुसंधान तो वैज्ञानिक लोग  निरंतर किया ही करते हैं महामारी की दृष्टि से अभी तक किए जाते रहे उन अनुसंधानों की जनहित में  उपयोगिता आखिर क्या रही | 
    वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर लगाए जाते रहे महामारी से संबंधित अनुमान पूर्वानुमान आदि  गलत निकलते रहने का कारण क्या है ? चूक आखिर किससे हुई कहाँ हुई है  उस चूक को खोजे बिना उसे समझे और स्वीकार किए बिना महामारी को समझ लेने की कल्पना ही कैसे की जा सकती है |
      दूसरी बात महामारी को ठीक ठीक समझे बिना उससे बचाव के लिए जो कोविडनियम बनाए गए या जिन औषधियों का निर्माण किया गया और उनसे कोविड से बचाव या मुक्ति दिलाने का जो दावा किया जाता रहा |  उन्हें मानने के लिए समाज को बाध्य किया जाना कितना उचित था ? 
       आश्चर्य तब होता है जब महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए औषधियाँ बना लेने के दावे बहुत लोग करते देखे जा रहे थे किंतु उनमें से किसी में महामारी के स्वभाव को समझने की क्षमता नहीं दिखी | महामारी के विषय में किसे क्या जानकारी थी ये बताने के लिए तो कोई  तैयार नहीं है | ऐसे किसी भी रोग या महारोग को ठीक ठीक प्रकार से समझे बिना ही उससे मुक्ति दिलाने के लिए औषधियों का निर्माण कैसे किया जा सकता है ,किंतु ऐसा होते खूब देखा गया है बहुत लोगों ने महामारी की औषधि के निर्माण कर लेने का दावा किया | महामारी से भयभीत समाज उनकी अर्थ संग्रह की हबस का शिकार भी हुआ | किसी ने प्रतिरोधक क्षमता तैयार करने के नाम पर किसी ने महामारी से मुक्ति दिलाने के नाम पर न जाने क्या क्या बेचा है उन लोगों ने जो जो कुछ बेचा है उसका महामारी पीड़ितों पर कोई प्रभाव पड़ता भी था या नहीं किंतु परिस्थिति से सताए हुए लोग ऐसे निर्दयी लोगों की लोलुपता के शिकार होते रहे | 
     ऐसी भयावह परिस्थिति दोबारा न पैदा हो इसके लिए अभी से प्रयत्न प्रारंभ किए जाने आवश्यक हैं |भविष्य की किसी अन्य महामारी का इंतजार किया जाना ठीक नहीं है |  

महामारी विज्ञान के नाम पर कुछ भी बोल दिया जाना ठीक है क्या ?
   
     वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए महामारी विषयक अनुमान पूर्वानुमान आदि लगातार गलत होते चले गए ! एक बार नहीं अपितु बार बार गलत निकलते रहे |यहाँ तक कि अंत तक इस बात के विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सका कि महामारी कब तक रहेगी ! कब समाप्त होगी !कैसे समाप्त होगी | महामारी  अपने आपसे  समाप्त होगी या इसे समाप्त करने के लिए कुछ करना पड़ेगा !वैक्सीन लगाईं गई वो कितनी मदद करेगी ! वैक्सीन ले चुके लोगों को क्या यह विश्वास दिया जा सकता है कि यदि महामारी अभी न भी समाप्त हुई तो वैक्सीन प्रभाव से अब वे संक्रमित नहीं होंगे !यदि संक्रमित हो भी गए तो भी वैक्सीन ले चुके लोगों को मृत्यु होने का भय नहीं रहेगा |इतने लंबे समय से चलाए जा रहे अनुसंधानों के बल पर समाज को ऐसा कोई मजबूत भरोसा दिया जा सकता है क्या ?
     वैज्ञानिक अनुसंधान निरंतर चला ही करते हैं सरकारें अनुसंधानों के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध करवाया करती हैं और वैज्ञानिक निरंतर प्रयत्न किया करते हैं किंतु आज तक किए जाने रहे उन अनुसंधानों से ऐसा क्या हासिल किया जा सका जो महामारी से जूझती जनता के बचाव के लिए कुछ तो काम आया हो !या यूँ कह लिया जाए कि महामारी विषयक अभी तक जो भी अनुसंधान वैज्ञानिकों ने किए हैं यदि वे न किए गए होते तो इस इस प्रकार से जनता का नुक्सान और अधिक हो सकता था |महामारीकाल में  उन अनुसंधानों   की उपयोगिता आखिर क्या रही ?
 हम अपनी जिन वैज्ञानिक उपलब्धियों के विषय में अपनी पीठ ठोंका करते हैं  कहीं वह  काल्पनिक ही तो नहीं है |  हम जिस विज्ञान के भरोसे महामारी का सामना करना चाह रहे थे हमारा यह निर्णय कितना सही है | ऐसा करके हम कहीं कोई गलती  तो नहीं कर रहे हैं | 
    ऐसी स्थिति में जिस विज्ञान के आधार पर जिन वैज्ञानिकों के द्वारा  उसी विज्ञान के आधार पर उन्हीं वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी से बचाव के लिए जो जो सलाहें दी गईं या उपाय बताए गए या किए गए उनकी वैज्ञानिकता कितनी विश्वसनीय है ? जिन वैज्ञानिकों को महामारी के स्वभाव प्रभाव आदि के विषय में कुछ भी नहीं पता है उनके द्वारा महामारी के विषय में कुछ भी बोला  जाना आम जनता की तरह उनका व्यक्तिगत बिचार भी  हो सकता है या फिर विज्ञान सम्मत ही हो सकता है जो अनुसंधानजनित अनुभवों से पता लगा हो !यदि अनुसंधानजनित है तो विश्वसनीय होगा ही किंतु ऐसे अनुसंधानों का आधार क्या है और उन अनुसंधानों के लिए किस प्रकार के विज्ञान का उपयोग किया जाता है | जिस एक ही विज्ञान के आधार पर महामारी के विषय में लगाए जाने वाले प्रायः सभीप्रकार के अनुमान पूर्वानुमान आदि तो गलत निकलते हैं किंतु उन्हीं वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी से बचाव के लिए जो जो सलाहें दी गईं या उपाय बताए गए उनको सही मानकर उन पर विश्वास कर लिया जाना उनका पालन किया या करवाया जाना कितना तर्क संगत हो सकता है |  
      बचाव के लिए दी गई ऐसी सलाहों या उपायों के परीक्षण के लिए कोई पारदर्शी प्रक्रिया नहीं है जनता के अपने  अनुभवों में यह अक्सर देखा जाता रहा है कि ऐसी सलाहों को मानने वाले और न मानने वाले या ऐसे कोविड नियमों का पालन करने वाले या न करने वाले  ऐसे सभी प्रकार के लोगों में कोई विशेष अंतर नहीं दिखाई पड़ा है व्यवहार में दोनों प्रकार के ही लोगों को संक्रमित होते देखा गया है | इसी प्रकार से जिन देशों ने लॉक डाउन लगाया और जिन्होंने नहीं लगाया उन दोनों में विशेष अंतर रहा हो ऐसा नहीं दिखाई पड़ा है | 
     इसमें सबसे अधिक ध्यान देने वाली यह बात है कि अलग अलग देशों की अपनी अपनी क्षमता के अनुसार उपाय किए जाने में अंतर हो सकता है | कहीं सावधानियाँ  बरती गईं और कुछ देशों में नहीं बरती गईं ,कुछ देशों की चिकित्सा व्यवस्था बहुत उन्नत थी कुछ देशों की बहुत कमजोर थी !कुछ देश लॉकडाउन  अपना पाए कुछ देश नहीं अपना पाए ,कुछ देशों में वैक्सीन लगाईं जा सकी कहीं  जा सकी या देर से लगाई जा सकी किंतु एक समानता प्रायः सभी देशों में देखी गई कि महामारी की कोई भी लहर अधिकाँश देशों में लगभग एक साथ आती रही है और एक लगभग एक समय में ही जाती रही है |  इन पर मनुष्यकृत प्रयत्नों का कुछ बड़ा प्रभाव दिखाई पड़ा हो ऐसा नहीं है | इस अनुभव में वे दोनों प्रकार के देश भी सम्मिलित हैं जिनमें चिकित्सा व्यवस्था बहुत अच्छी थी और जिनमें चिकित्सा व्यवस्था बिल्कुल कमजोर थी | जिन देशों ने बहुत सक्रियता बरती या जो देश अपनी अपनी परिस्थितियों के कारण ऐसा कर पाने में प्रायः असमर्थ रहे |
    इस प्रकार का अंतर संक्रमित होने और न होने वाले दोनों प्रकार के लोगों में भी देखा गया है कुछ ऐसे संसाधन विहीन लोगों को अपनी अपनी मजबूरियों के कारण प्रायः कोविड नियमों के विपरीत व्यवहार करते देखा गया उन्हीं परिस्थितियों उनके छोटे छोटे बच्चे संक्रमण की परवाह किए बिना भोजन की आस में दर दर भटकते रहे | ऐसे परिवारों में इसी परिस्थिति में प्रसव हुए या यूँ कह लिया जाए कि ऐसे परिवारों में चाह कर भी वे सभी कार्य रोके नहीं जा सके जिन्हें कोरोना नियमों के विरुद्ध माना जाता रहा है फिर भी उन साधनविहीन गरीब परिवारों में महामारी जनित  संक्रमण उस प्रकार से बढ़ते नहीं देखा गया जैसा  कि कोविडनियम निर्माताओं का अनुमान था | 
    इसी प्रकार से साधन संपन्न उन लोगों को देखा जाए जिनके पैदा होने के पहले से ही चिकित्सकों की सतर्कता शुरू हो गई थी उनके बचपन से ही सभी टीके समय से लगे सभी बिटामिन कैल्सियम खान पान रहन सहन आदि सभी प्रकार की सावधानियाँ चिकित्सकों के निर्देशानुसार बरती जा सकीं | कोरोना काल में भी एकांतबास  से लेकर सभी प्रकार की सावधानियाँ बरतने में वे लोग सफल हुए !यहाँ तक कि कोरोना जैसे अत्यंत कठिन संकट काल में उनके लिए चिकित्सकीय सलाहों एवं चिकित्सा सुविधाओं की प्रायः कमी नहीं रही ,औषधियाँ भी उन्हें उनकी आवश्यकतानुसार प्रायः उपलब्ध रही हैं | 
     इस स्थिति में महामारी पर चिकित्सकीय सार्थकता सिद्ध होने के लिए आवश्यक था कि महामारी संक्रमण से  साधन संपन्न वर्ग का अधिक से अधिक बचाव होना चाहिए था यदि ऐसा नहीं भी हुआ तो कम कम इतना ही होता कि संक्रमित होकर स्वस्थ हो जाते उन्हें मृत्यु जैसे संकटों का ही सामना अपेक्षाकृत कम करना पड़ता किंतु साधन संपन्न और साधन विहीन वर्ग के बीच इतना अंतर नहीं देखा गया है | साधन संपन्न लोग सभी सुविधाओं के बाद भी  बहुत बड़ी संख्या में संक्रमित हुए हैं और उस वर्ग से भी मृतकों की संख्या कम नहीं रही है | दूसरी ओर साधन विहीन वर्ग सभी असावधानियों के बाद भी साधन संपन्न लोगों की तुलना में बहुत अधिक संक्रमित नहीं हुआ है और न ही बहुत अधिक मृत्यु का शिकार हुआ है | 

       इस तुलनात्मक अध्ययन को करने का मेरा उद्देश्य मात्र यह पता  लगाने का प्रयत्न है कि चिकित्सा समेत सभी क्षेत्रों में वैज्ञानिक अनुसंधानों के उन्नत शिखर पर पहुँचने के बाद भी महामारी जैसे इतने भयावह संकट का अनुमान पूर्वानुमान लगाने में महामारी का स्वभाव समझने में इसकी वृद्धि पर अंकुश लगाने में इसे नियंत्रित करने में वैज्ञानिक लोग अपने अनुसंधानों के द्वारा कितने प्रतिशत सफल हो सके हैं |उनकी सफलता को आधार बनाकर  वर्तमान  वैज्ञानिकअनुसंधानों के बल पर "पोलियोमुक्तअभियान की तरह ही भविष्य में क्या  "महामारी मुक्त समाज की संस्थापना" का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है या वर्तमान समय में कोरोना महामारी की तरह ही भविष्य में भी महामारियों से जनता को ही जूझना पड़ेगा और वैज्ञानिक अनुसंधानों से तब भी महामारी से जूझती जनता को कोई मदद नहीं मिल सकेगी | 
     यह सब करने के पीछे हमारा उद्देश्य मात्र इतना है कि मैंने भारत के उस प्राचीन वैज्ञानिक विधा के आधार पर महामारी विषयक अनुसंधान किया है जो महामारी को समझने में उसके स्वभाव को समझने में उसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाने में या उससे बचाव करने में सफल हुआ है मेल के माध्यम से सरकार को आगे से आगे सूचित करते हुए मैंने अपनी क्षमता के आधार पर समाज के हित साधन के लिए निरंतर प्रयत्न किया है ,किंतु भारत की उस प्राचीन वैज्ञानिक विधा को आधुनिक वैज्ञानिक लोग विज्ञान नहीं मानते हैं | इसलिए सही घटित होने के  बाद भी जनहित में उसका कोई उपयोग नहीं किया जा सका | 
    वैसे भी किसी बात को मानना या न मानना उन वैज्ञानिकों का विशेषाधिकार हो सकता है  इसलिए किसी बात को मानने या न मानने के लिए वे स्वतंत्र  हैं किंतु जनता के हित को ध्यान में रखते हुए इतना बिचार अवश्य किया जाना चाहिए था कि महामारी जैसे इतने बड़े संकट से जूझती जनता को जिस किसी भी प्रकार से  मदद मिलनी ही चाहिए थी इसके लिए किसी भी वैज्ञानिक विधा को अपनाया जाना चाहिए था | महामारी जैसे इतने बड़े संकटकाल में  जनता के बचाव के लिए स्वयं कुछ विशेष न कर पाना और  किसी अन्य विधाविद को कुछ करने न देना या उसे बिना किसी आधार के नकारते जाना तथा जनता को इतने बड़े संकट से जूझते रहने देने को बहुत सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता है | 
    हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सरकारों एवं वैज्ञानिकों के द्वारा किए जाने वाले प्रत्येक प्रयास का उद्देश्य जनता का हित करना ही होता है | जिससे जिस किसी भी प्रकार से जनता के संकटों को कम करके उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके एवं उनके जीवन को अधिक से अधिक  सुख सुविधा संपन्न बनाया जा सके |  

प्रथम अध्याय 
    कुछ क्षेत्रों में वैज्ञानिक अनुसंधानों की सफलता ने समाज को चमत्कृत कर दिया है जिस पर जितना गर्व किया जाए उतना कम है | ऐसे अनुसंधानों पर सरकारें जो धन खर्च किया करती हैं उससे समाज को संतोष होता है कि  टैक्स रूप में सरकारों को दिए गए धन की सार्थकता सिद्ध हुई | समाज इससे उत्साहित होता है ,जिन कार्यों में समाज का धन तो लगता है किंतु परिणाम प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देते हैं वहाँ समाज का उत्साह तो गिरता ही है इसके साथ ही साथ निराशा भी होती है ,समाज की अपनी आवश्यकताएँ तो होती ही हैं उनकी आपूर्ति के लिए सरकारें प्रयत्न करती हैं | आवश्यकताओं की आपूर्ति पर्याप्त  तब तो समाज को सहारा तो मिलता ही है साथ ही साथ समाज का मनोबल  भी बढ़ता है | उससे ये आशा बँधती है कि कोई बिपरीत परिस्थिति आएगी तो ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों से हमें मदद मिलेगी |  

     महामारियाँ भूकंप बाढ़ बज्रपात चक्रवात आँधी तूफ़ान जैसी भयंकर हिंसक प्राकृतिक घटनाओं से समाज हमेंशा डरा सहमा रहता है क्योंकि ऐसी घटनाएँ अचानक घटित होती हैं और इन्हें बड़ीमात्रा में जनधन की हानि करते देखा जाता है| इतना उन्नत विज्ञान होने के बाद भी ऐसी घटनाओं को मनुष्यकृत वैज्ञानिक प्रयत्नों से रोका जाना तो संभव नहीं है | इस बात को समाज भी अच्छी प्रकार से समझता है |
      ऐसे प्राकृतिक  उपद्रवों से डरा सहमा समाज कभी कभी यह सोच कर संतोष कर लेता है कि हमारे पास आपदा प्रबंधन के इतने सतर्क साधन हैं जो किसी भी संकट के समय समाज के लिए भगवान की तरह उपस्थिति होकर न केवल मोर्चा सँभाल लेते हैं अपितु बचाव कार्यों में प्राण प्रण से लग जाते हैं जिससे जनधन की अधिकतम सुरक्षा सुनिश्चित होती है |इसलिए संकट कालीन परिस्थितियों में उनका बहुत बड़ा भरोसा रहता है कि खबर पाते ही दौड़े चले आएँगे |
    विशेष बात यह है  कि हमारी आपदा प्रबंधन संबंधी तैयारियों से उतना ही बचाव हो पाता है जितना होने लायक होता है अन्यथा भूकंप जैसी किसी घटना के घटित होने पर अधिकाँश नुक्सान तो पहले झटके में  ही हो जाता है उसकी भी सुरक्षा करने के लिए कुछ ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों की  आवश्यकता है जिनसे ऐसी घटनाओं के विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जा सकें उसी के अनुशार बचाव के लिए सतर्कता बरती जा सकती है | ऐसा करके जनधन के नुक्सान को और अधिक कम किया जा सकता है |
    इसीप्रकार से हमारी सैन्य व्यवस्था इतनी मजबूत है कि शत्रु शक्तियों से स्वदेश की सुरक्षा करने के लिए हमारे सैनिक अपने प्राणों को हमेंशा हथेली पर रखे हुए सीमाओं पर पहरा दिया करते हैं|वे कितना स्नेह करते हैं अपने देशवासियों से यह सोच सोच कर उनके लिए अपना सिर अक्सर शृद्धा से झुक जाता है |इतनी बड़ी सैन्य संपदा से संपन्न समाज निसंदेह बहुत भाग्यशाली है |   
   कुलमिलाकर हमारी सैन्यशक्ति शत्रुसंबंधी संकट उपस्थित होने पर  शौर्य से समाज की सुरक्षा कर लिया करती है | कई बार किसी शत्रुदेश से मध्यमस्तरीय युद्ध छिड़ गया है तो कुछ सौ या कुछ हजार सैनिकों को अपना बहुमूल्य जीवन न्योछावर करना पड़ा है |उन कुछ सौ या कुछ हजार सैनिकों की भी शहादत क्यों देनी पड़ी ! इसकी समीक्षा होती है अपनी कमियों को चिन्हित किया जाता है और उन कमियों को दूर करने के लिए प्रयत्न किए जाते हैं ताकि भविष्य में दोबारा ऐसी परिस्थिति पैदा न  हो जिससे अपने सैनिकों के बहुमूल्य जीवनखोने पड़ें | 
     वहीं दूसरी ओर कोरोना महामारी में करोड़ों लोग संक्रमित हुए हैं जबकि लाखों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं | इस पर भी मंथन आवश्यक है | इतनी बड़ी संख्या में हुई लोगों की मृत्यु के लिए कोई जिम्मेदार है या नहीं ? ऐसा होने का कारण मनुष्य समाज से हुई गलती या कुछ और है | इससे बचाव करने के लिए हमारे पास साधन नहीं थे या महामारी ही इतनी अधिक भयावह थी या वैज्ञानिक अनुसंधानों की अक्षमता के कारण समाज को महामारी जनित इतनी बड़ी आपदा झेलनी पड़ी | महामारी को पहचानने में हमारे वैज्ञानिक सफल हुए या  नहीं | इसका पता लगाने  वैज्ञनिकों के द्वारा महामारी के विषय में लगाए गए अनुमानों पूर्वानुमानों का अध्ययन होना चाहिए | जितने प्रतिशत वे सही निकले हैं उतने प्रतिशत  महामारी को समझा जा सका है ऐसा जनहित में  विनम्रता पूर्वक स्वीकार किया जाना चाहिए ताकि भविष्य के लिए ऐसी कमजोरियों को दूर किया जा सके | जिससे दोबारा ऐसी परिस्थिति पैदा न  हो जिससे किसी महामारी में संक्रमित होकर समाज के इतने बड़े वर्ग को अपने  बहुमूल्य जीवन का परित्याग इस बेबशी में करना पड़े | 
       अनुसंधानों में कहाँ कितनी वैज्ञानिकता है और कोरोनामहामारी  जूझती जनता को ऐसे अनुसंधानों से कितना लाभ हुआ है | महामारी के प्रत्येक परिवर्तन पर अनुसंधानों के नाम पर कुछ अंदाजे रहे हैं! कुछ तीर तुक्के लगाए जाते रहे हैं कुछ संभावनाएँ बताई जाती रही हैं कुछ आशंकाएँ व्यक्त की जाती रही हैं कुछ अफवाहें फैलाई जाती रही हैं उन अफवाहों से अनेकों रोगियों की मृत्यु होते सुनी गई है |
       

 
















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