वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए अनुमान 1008
कोरोना महामारी ------------------------------------
और
अपना अपना विज्ञान !
महामारी विज्ञान का मतलब !
विज्ञान का अर्थ ही है विशेषज्ञान।विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो अनुसंधान किसी उद्दिष्ट विषय की प्रकृति और सिद्धांतों को जानने के लिए किए जाते हैं।इसमें साक्ष्य आधारित ऐसे अनुसंधानों की प्रमुख भूमिका होती है जो तर्क की कसौटी पर खरे उतरें |
जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा एक से एक बड़े और नए-नए आविष्कार किए
गए हैं, उनसे न केवल संकटों समस्याओं को कम किया जा सका है अपितु अपनी आवश्यकताओं की आपूर्ति को भी आसान बना लिया गया है | इससे मनुष्य जीवन
पहले की अपेक्षा अधिक आरामदायक हो गया है।इसीलिए कोरोना महामारी से पीड़ित समाज को अपने उसी विज्ञान से बहुत बड़ी आशा थी किंतु वही विज्ञान आज अपेक्षित सहयोग करने में असमर्थ सा होता दिख रहा है | महामारी से बचाव के लिए वैज्ञानिक लोग जो भी अनुसंधानात्मक प्रयत्न कर रहे
हैं | उनसे समाज को कुछ मदद नहीं मिल पा रही है | महामारी के विषय में
वैज्ञानिकों के द्वारा जो जो कुछ बताया गया ,वह भी सही नहीं निकल पा रहा है
|
महामारी से संबंधित घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार आधारभूत जो कारण वैज्ञानिकों के द्वारा बताए जा रहे हैं उन कारणों का घटनाओं के साथ कोई संबंध ही नहीं सिद्ध होता दिख रहा है | ऐसे कल्पित कारणों के आधार पर सही अनुमान पूर्वानुमान आदि कैसे लगाए जा सकते हैं | उनके द्वारा महामारी के विषय में जो जो कुछ बताया जा रहा है उसमें न तो पारदर्शिता होती है और न ही तर्क की कसौटी पर कसने लायक कुछ निकलता है | यहाँ तक कि उसके आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान भी सही निकलते नहीं देखे जा रहे हैं | वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी से बचाव के लिए जो उपाय बताए जा रहे हैं उन उपायों का प्रभाव व्यवहार में प्रमाणित होता नहीं दिख रहा है | कोविड नियमों का पालन करने और न करने वाले दोनों में ही कोई विशेष अंतर नहीं दिखाई दे रहा है जबकि उपाय यदि प्रभावी हैं तो उनका परिणाम भी दिखाई पड़ना चाहिए था |
ऐसे में प्रश्न उठता है कि उन नियमों को बनाने के लिए किस किस प्रकार के प्रतीक चुने गए थे अर्थात उन प्रतीकों का वैज्ञानिक आधार क्या है ? उनका परीक्षण किस प्रकार हुआ और वे कितने प्रभावी होते हैं | समाज यदि इस प्रभाव का अनुभव करना चाहे तो किस प्रकार से कर सकता है |
विशेष बात यह है कि जहाँ एक ओर साक्ष्य आधारित (Evidence-based) वैज्ञानिक अनुसंधानों की परिकल्पना की जाती है, वहीं दूसरी ओर न साक्ष्य दिखाई पड़ते हैं और न ही कोई साक्ष्य आधारित अनुसंधान और न ही उनसे कोई उस प्रकार का सकारात्मक परिणाम ही निकलता दिख रहा है |वैज्ञानिक अनुसंधानों के क्षेत्र में विज्ञान और अंधविश्वास की आपसी दूरी मिटती जा रही है |
ऐसी परिस्थिति में वैज्ञानिकक्षेत्र में यदि तर्कसंगत प्रमाणों की परवाह नहीं की जाएगी तो सभी क्षेत्रों में अनुसंधानों का हाल महामारी जैसा ही हो जाएगा | वैज्ञानिक विषयों में हर कोई अपने अपने मत व्यक्त करने लगेगा | महामारी के समय अनुसंधानों की शिथिलता का ही यह दुष्परिणाम था कि हर कोई महामारी से बचाव के लिए अपने अपने मनगढंत कारण बता रहा था,अनुमान व्यक्त कर रहा था,पूर्वानुमान बताने के नाम पर अफवाहें फैलाए जा रहा था ! वही आधार विहीन लोग मनगढ़ंत उपाय और औषधियाँ बताते देखे जा रहे थे जबकि महामारी के कठिन समय में आम समाज अपने वैज्ञानिकों से साक्ष्य आधारित अनुसंधानों की अपेक्षा कर रहा था | समाज चाह रहा था कि वैज्ञानिक वही बोलें जो विज्ञान सम्मत और सच हो ताकि उसका अनुपालन किया जा सके और उसके परिणाम भी दिखाई पड़ें |
महामारियों की तैयारियाँ
महामारियों का वेग बहुत अधिक होता है|ऐसे
डरावने संकटकाल में नुक्सान तो तुरंत होना शुरू हो जाता है किंतु उस
नुक्सान को तुरंत रोकने लायक कोई तैयारी ही नहीं होती है | ऐसी तैयारी करने
के लिए साधन जुटाते जुटाते इतना समय यूँ ही निरर्थक बीत जाया करता है
सोचने समझने का समय मिल पाता है और न ही
इतने कम समय में बचाव के लिए कुछ किया जाना संभव हो पाता है केवल खाना
पूर्ति मात्र हुआ करती है| इसलिए बचाव के लिए पहले से करके रखी गई तैयारियाँ ही ऐसे अवसरों पर विशेष काम आ पाती हैं |
महामारी आने के बाद तो जन धन की हानि होनी प्रारंभ हो ही जाती है इसलिए आवश्यक तैयारियाँ करके तो पहले से ही रखनी होती हैं ! ऐसा करने के लिए महामारी का आना आवश्यक नहीं होता है | इसके लिए महामारी के विषय में पहले से ही पूर्वानुमान लगाकर रखना पड़ता है | यदि पूर्वानुमान न लगाया जा सके तो अनुमान लगाकर उसी के आधार पर तैयारियाँ करके रखी जा सकती हैं| यदि अनुमान और पूर्वानुमान दोनों ही लगाकर रखना संभव न हो तो अभी तक आई हुई महामारियों से प्राप्त अनुभवों को आधार बनाकर महामारी से निपटने की अग्रिम तैयारियाँ करके रखी जा सकती हैं | महामारी पहली बार तो आई नहीं होती है जो महामारी के आने पर ही इसके विषय में अध्ययन किया जा सकता है तभी कुछ पता लगेगा | वस्तुतः महामारियाँ तो हमेंशा से ही आती जाती रही हैं | उन्हीं अभी तक आई हुई महामारियों के आधार पर अनुभवों का संग्रह होता है |
ये सर्व विदित है कि महामारियाँ जब आती हैं तब अचानक ही आती हैं तथा भारी मात्रा में जनधन की हानि करती और चली जाती हैं |किसी भी महामारी को पूर्व सूचना देकर आते हुए कभी नहीं देखा गया है | इसलिए जिस किसी भी प्रकार से तैयारियाँ करके पहले से रखना संभव हो वो रास्ते अपनाए जाने चाहिए | महामारी से निपटने के लिए यदि कोई तैयारी पहले से करके
नहीं रखी जा सकी है तो महामारी संबंधी अनुसंधान जो हमेंशा चलते रहते
हैं उनसे प्राप्त अनुभवों का उपयोग आखिर और कहाँ होता है | अनुसंधानों के
नाम पर इतने लंबे समय तक जो कुछ होता रहता है उससे जनहित में परिणाम
स्वरूप प्राप्त आखिर क्या होता है जो महामारी जैसे संकटों के समय काम आता
है | महामारी आने के बाद ही यदि अनुसंधान होने होते हैं तो हमेंशा अनुसंधान
करते रहने का औचित्य ही क्या रह जाता है |
महामारी के स्वभाव लक्षण संक्रामकता आदि के विषय में यदि कुछ पता ही न हो तो महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए जो औषधियाँ बनाई जा रही होती हैं उनका वैज्ञानिक आधार क्या होगा | उन औषधियों का प्रभाव हो रहा है या नहीं ,यदि हो रहा है तो कितना !ये किसी को कैसे पता चल पाता है |
प्रायः देखा जाता है कि वैज्ञानिकों के द्वारा जो बात एक बार बोली जाती है उसके गलत निकलते ही उसके बिपरीत कोई दूसरी बात बोल दी जाती है | कभी कभी वे दोनों बातें गलत निकलती हैं और कोई तीसरी घटना घटित होते देखी जा रही होती है | वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसे सभी मत मतांतरों का आधार विज्ञान को ही बताया जा रहा होता है ,किंतु ऐसा कैसे संभव है !ये क्या सबका अपना अपना विज्ञान होता है | यदि ये सभी विज्ञान ही है तो इससे निकले निष्कर्षों में इतना बड़ा विरोधाभास होने का कारण क्या हो सकता है और उन परस्पर विरोधी बातों का उपयोग जनहित में कैसे किया जा सकता है |
कुलमिलाकर ऐसी सभीप्रकार की घटनाओं के विषय में जनता जो अपने अनुभवों के आधार पर अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया करती है | यदि कुछ सही गलत वे बातें निकलती हैं तो वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जाने वाले अनुमानों पूर्वानुमानों में भी यदि कुछ ही सही निकलेंगे तो जनता के तीर तुक्कों में और वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए अनुमानों पूर्वनुमानों में अंतर ही क्या रह जाएगा |महामारी जैसे इतने बड़े संकटकाल के समय में समाज को अपने वैज्ञानिकों से मजबूत मदद की अपेक्षा होती है | उस समय वैज्ञानिकों की ऐसी ढुलमुल बातें जनहित में उपयोगी कैसे हो सकती हैं |
महामारी कब पैदा हुई ! कैसे पैदा हुई ! कहाँ पैदा हुई ! इसके पैदा होने का कारण क्या है ! ये मनुष्यकृत है या प्राकृतिक ! इसका प्रसार माध्यम क्या है ! विस्तार कितना है !अंतर्गम्यता कितनी है ! संक्रामकता कितनी है !इसकी लहरों के आने जाने का कारण क्या है ! ये समाप्त कैसे होगी !आदि आवश्यक बातों का कोई संतोष जनक उत्तर खोजे बिना ही सीधे यह कह दिया जाए कि हमने तो महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए औषधि या वैक्सीन आदि खोज ली है तो यह बात इतनी आसानी से आम जनता के लिए विश्वास करने योग्य नहीं होती है जैसा कि वैक्सीनेशन के प्रारंभिक दौर में देखा गया था |
कुल मिलाकर महामारी से निपटने के लिए यदि पहले से कोई तैयारी करके रखी ही न
गई हो और महामारी आ जाने के बाद उसके विषय में अचानक कुछ तीर तुक्के लगाए
जाने लगें तो उन्हें न तो विज्ञान सम्मत माना जा सकता है और न ही उसे इस
प्रकार की तैयारी माना जा सकता है जिसके द्वारा महामारी जैसे संकट पर अंकुश
लगाया जाना संभव हो |
समाज को वैक्सीन पर संशय क्यों हुआ ?
महामारी के समय में बार बार दिए गए वैज्ञानिकों के ऐसे ढुलमुल वक्तव्यों से समाज का विश्वास उठना स्वाभाविक ही था | इस अविश्वास की परिस्थिति यहाँ तक पहुँची कि महामारी जैसे इतने भीषण संकट से समाज को सुरक्षित बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने दिनरात परिश्रम करके जिस वैक्सीन का निर्माण किया उस पर भी समाज भरोसा नहीं कर पा रहा था |
इसका कारण यह था कि समाज का एक वर्ग इस संशय से जूझ रहा था कि किसी भी रोग या महारोग से मुक्ति दिलाने हेतु औषधि निर्माण करने के लिए रोग को पहचानना या रोग की प्रकृति को अच्छी प्रकार से समझना आवश्यक होता है | रोग को समझे बिना औषधि का निर्माण कैसे किया जा सकता है|
समाज की शंका स्वभाविक ही है कि जो वैज्ञानिक समुदाय महामारी से संबंधित किसी भी रहस्य का उद्घाटन नहीं कर सका है| वही वैज्ञानिक लोग यदि किसी औषधि का निर्माण करके यह दावा करते हैं कि इससे महामारी से मुक्ति मिल सकती है |ऐसी बातों पर विश्वास किस आधार पर किया जा सकता है | जिन वैज्ञानिक अनुभवों अध्ययनों अनुसंधानों के द्वारा जिस महामारी के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाए जा सके,उन्हीं अनुभवों अध्ययनों अनुसंधानों के आधार पर महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए कोई औषधि या वैक्सीन आदि कैसे बनाई जा सकती है | इसका प्रमाण यह है कि महामारी के विषय में लगाया गया प्रायः प्रत्येक अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत निकलता रहा है |
चिकित्सा सिद्धांत के अनुशार चिकित्सकों को अक्सर कहते सुना जाता है कि जिस रोग की प्रकृति पता न हो लक्षण पता न हों ऐसे रोगों की चिकित्सा करना कठिन होता है | इसलिए किसी रोगी की चिकित्सा करने हेतु रोग की प्रकृति का पता लगना आवश्यक होता है |कोरोना महामारी के समय रोग की प्रकृति का पता लगे बिना भी रोगियों की चिकित्सा की जाती रही है | उनमें से जो रोगी स्वस्थ हो जाते हैं उनके स्वस्थ होने का श्रेय उस चिकित्सा पद्धति को दे दिया जाता है और जो रोगी अस्वस्थ बने रहे या मृत्यु को प्राप्त हो जाते है उसके लिए महामारी को दोषी ठहरा दिया जाता है |
महामारीजनित संक्रमण का प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर अलग अलग होते देखा जाता है | कुछ लोग संक्रमित होते हैं | कुछ बहुत अधिक संक्रमित होते हैं | कुछ बहुत कम संक्रमित होते हैं जबकि कुछ बिल्कुल ही संक्रमित नहीं होते हैं |इसके अतिरिक्त रोगियों के बलाबल के आधार पर भी चिकित्सा का निर्णय लिया जाता होगा | ऐसे सभीप्रकार के लोगों के लिए कोई एक ही औषधि रोग मुक्तिदिलाने में कैसे सहायक हो सकती है | ये प्रश्न भी समाज को आंदोलित करता है |
प्लाज्मा थैरेपी जिसे लाभप्रद बताकर उससे बहुतों की चिकित्सा करने का
दावा किया जाने लगा था |उससे बहुतों को जीवन दान मिला !ऐसा कहा जाने लगा था | जिस वैज्ञानिक समुदाय
के द्वारा प्लाज्मा थैरेपी की प्रशंसा में एक बार ऐसा
सबकुछ बोला जाता रहा इसके बाद उसी प्लाज्मा थैरेपी को उन्हीं वैज्ञानिकों
ने न केवल निरुपयोगी बता दिया गया अपितु उसका प्रयोग ही बंद कर दिया गया
|ऐसे अध्ययनों अनुसंधानों अनुभवों प्रयासों से प्राप्त कोई भी औषधि आदि को
कब निरुपयोगी बताकर बंद कर दिया जाएगा | समाज के मन में यह भी एक डर था |
वैज्ञानिकों के एक वर्ग के द्वारा कहा जाता है कि कोरोना संक्रमितों पर मौसम का प्रभाव पड़ेगा तो वैज्ञानिकों के दूसरे वर्ग के द्वारा कह दिया जाता है कि मौसम का प्रभाव नहीं पड़ेगा !ऐसे ही वैज्ञानिकों के एक वर्ग के द्वारा कहा जाता है कि तापमान घटने बढ़ने का प्रभाव कोरोना संक्रमण पर पड़ेगा तो दूसरे वर्ग के द्वारा कहा जाता है कि कोरोना संक्रमण पर तापमान घटने बढ़ने का प्रभाव नहीं पड़ेगा | ऐसे ही वायुप्रदूषण के विषय में कहा जाता है कि वायुप्रदूषण कोरोना संक्रमण बढ़ने में सहयोगी होगा जबकि व्यवहार में देखा जाता है कि जिस समय वायु प्रदूषण बढ़ रहा होता है उस समय कोरोना संक्रमितों की संख्या कम हो रही होती है | दूसरी ओर जब वायुप्रदूषण घट रहा होता है उसी समय कोरोना संक्रमण बढ़ रहा होता है |
वैज्ञानिकों के द्वारा कोविडनियम इसलिए बनाए गए थे कि इनके पालन करने से कोविडसंक्रमण से बचाव होगा किंतु बहुत साधन संपन्न वर्ग के लोगों ने कोरोनानियमों का पूर्ण पालन किया | वे एकांतबास करते हुए भी संक्रमित होते देखे गए |दूसरी ओर कमजोर वर्ग चाहकर भी कोविड नियमों का पालन मजबूरीबश नहीं कर सका ,उसके छोटे छोटे बच्चों को भोजन की लाइनों में लगना पड़ता रहा है |घनी बस्तियों में छोटी छोटीजगहों में बहुत बहुत लोग एक ही साथ रहते खाते पीते नहाते धोते रहे,दिल्ली मुंबई सूरत जैसे शहरों से श्रमिकों का पलायन हुआ,दिल्ली में किसान आंदोलन में लोग बैठे रहे ! बिहार बंगाल आदि की चुनावी रैलियों में भीड़ें उमड़ती रहीं,हरिद्वार में कुंभ आयोजित हुआ !ऐसी सभी जगहों में किसी भी प्रकार से न तो कोविड नियमों का पालन हुआ और न ही कोरोना बढ़ा !ऐसी परिस्थिति में कोविडनियमों के पालन करने न करने के परिणामपर टोचिंतन किया ही जाना चाहिए |
प्रतिरोधक क्षमता के द्वारा कोरोना संक्रमण से सुरक्षा होने की बात कही गई थी | जो साधन संपन्न वर्ग चिकित्सकों के हाथों में जन्म लेता है और वेंटिलेटर पर प्राण त्यागता है | सारे जीवन चिकित्सकों से पूछ पूछ कर खाता पीता है |यह वर्ग एक से एक पौष्टिक पदार्थों का भोजन करता है |टॉनिक बिटामिन कैल्शियम आदि का उचित मात्रा में सेवन चिकित्सकों की सलाह पर किया करता है |इस वर्ग के शरीरों में वे सभी टीके समय से लगाए जा चुके होते हैं जो शरीरों की सुरक्षा करने में सहायक होते हैं | उनका रहन सहन वातानुकूलित होता है |ऐसी परिस्थिति में उनके शरीरों में तो प्रतिरोधक क्षमता साधन विहीन मजबूर वर्ग की अपेक्षा अधिक होनी चाहिए | इसलिए संक्रमण से उनका बचाव भी अधिक होना चाहिए था,किंतु व्यवहार में इसका उल्टा होते देखा गया है |
महामारी की एक एक लहर के विषय में कई कई वैज्ञानिकों के द्वारा कई कई प्रकार के पूर्वानुमान बताए जाते रहे हैं | कई बार एक ही लहर के विषय में एक ही वैज्ञानिक के द्वारा पूर्वानुमान के नाम पर कई कई बातें बोली जा रही हैं | एक भविष्यवाणी गलत होते ही दूसरी बोल दी जाती रही है और दूसरी गलत होते ही उस एक ही लहर के विषय में कोई तीसरी भविष्यवाणी कर दी जाती रही है | ऐसी अलग अलग या परस्पर बिपरीत भविष्यवाणियों का आधार वैज्ञानिक कैसे हो सकता है | दूसरी बात ऐसे भ्रमित अनुसंधानों से समाज को क्या लाभ मिल सकता है | ऐसे पूर्वानुमानों के आधार कोई योजना भी तो नहीं बनाई जा सकती है |ऐसे ढुलमुल पूर्वानुमानों से किसी भी प्रकार के जनहित की आशा कैसे की जा सकती है |
कुल मिलाकर किसी रोग या महारोग की चिकित्सा करने के लिए उसका निदान अर्थात रोग का परीक्षण सही होना चाहिए ! जिस रोग की प्रकृति को जितने अच्छे ढंग से पहचान लिया जाएगा उसकी चिकित्सा करना उतना ही अधिक प्रभावी एवं आसान होगा ! किसी रोग के विषय में सही जानकारी किए बिना उसके टीके आदि का निर्माण किया जाना कैसे संभव हो सकता है |विशेष बात यह है महारोग के स्वभाव को समझना अभी तक संभव नहीं हो सका किंतु रोग से मुक्ति दिलाने वाले टीके का निर्माण हो गया है |
वैज्ञानिकों के द्वारा पहले कहा गया था कि यदि महामारी का स्वरूप परिवर्तन हुआ तो वैक्सीन बनाने के काम में रुकावट आएगी ! इसके बाद महामारी का स्वरूप परिवर्तन भी होता रहा और वैक्सीन भी बन गई |
कुलमिलाकर महामारी जैसे इतने बड़े संकटकाल से अपने को या अपने देश समाज आदि को सुरक्षित बचाए रखने के लिए ऐसी भयानक घटनाओं के विषय में अग्रिम पूर्वानुमान लगाना सर्वाधिक आवश्यक होता है |इसके बिना महामारी से बचाव के लिए जो जो कुछ किया जाता है उससे समाज को ऐसी मदद मिल पाना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है, जो महामारी से जूझती जनता की पीड़ा को कुछ कम कर सके | इसीलिए तरह तरह के वैज्ञानिक अनुसंधानों की परिकल्पना की गई है | इस प्रकार की जिम्मेदारी बड़े बड़े वैज्ञानिकों ने सँभाल रखी है किंतु उनके प्रयासों के परिणाम कितने सकारात्मक रहे | समाज का ध्यान हमेंशा इस पर रहता है |
महामारी के समय समाज इस चिंता से जूझ रहा था कि महामारी एवं उससे संबंधित लहरों के विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाना चाहिए था |ऐसा क्यों नहीं किया जा सका ! अभी तक किए गए अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों से ऐसी कोई चिकित्सा व्यवस्था क्यों नहीं तैयार करके रखी जा सकी जिसका उपयोग महामारी से जूझते समाज के बचाव के लिए तुरंत किया जा सकता हो | इसीलिए वैज्ञानिकों के वैक्सीन संबंधी वक्तव्यों पर समाज का विश्वास डिगता सा दिखाई दे रहा था !
महामारी का जन्म कैसे हुआ !
वैज्ञानिकों के एक वर्ग ने महामारी को मनुष्यकृत बताया तो दूसरे वर्ग ने प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ बता दिया | इन्हीं दोनों में से कोई बात तो सही निकलेगी और जो सही निकलेगी वो भी किसी वैज्ञानिक के द्वारा ही कही हुई होगी |इसलिए दो में से किसी भी बात के सही निकलने पर वैज्ञानिक अनुसंधानों को सफल मान लिया जाता है | संशय पैदा करने वाली दोनों पक्षों की बात सुनकर जनता भ्रमित हो जाती है उसके लिए यह निर्णय करना ही कठिन होता था कि इन दोनों प्रकार के वैज्ञानिकों में से सच कौन बोल रहा है और किस वर्ग के वैज्ञानिकों की बात पर विश्वास किया जाए |
ये दुविधा अंत तक ऐसी ही चलती रही है|महामारी का संक्रमण जब बढ़ने लगता था तो महामारी को मनुष्यकृत मानने वाला वैज्ञानिकों का एक वर्ग ऐसी लहरों के लिए समाज के द्वारा कोविड नियमों के पालन में लापरवाही को जिम्मेदार बताने लग जाता था | बहुत से वैज्ञानिक चीन के शहर में स्थित एक एनिमल मार्केट से पैदा हुआ मानते हैं ।
बड़ी संख्या उन वैज्ञानिकों की भी है जो कोरोना महामारी को प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ महारोग मानते हैं | महामारी को प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ मानने वाला वैज्ञानिकों का वर्ग इसके लिए मौसम संबंधी विभिन्न बदली हुई परिस्थितियों को जिम्मेदार मानता है| वैज्ञानिकों के द्वारा कही गई इस प्रकार की बातें सुनकर समाज को लगता रहा कि महामारी यदि प्राकृतिक ही है इसका पैदा होना घटना बढ़ना आदि सभी कुछ प्राकृतिक रूप से ही संचालित है तो फिर कोविड नियमों जैसे आत्मसंयम का पालन करना कितना आवश्यक था |
समाज को यह भी लगता था कि महामारी का घटना बढ़ना यदि प्रकृति के ही आधीन है तो बचाव के लिए किए जाने वाले लॉकडाउन जैसे प्रयास कितने आवश्यक हैं क्योंकि जहाँ एक ओर महामारी कठोर काल का स्वरूप धारण करती जा रही थी जिससे कोई कभी भी संक्रमित हो सकता था या जीवन समाप्त हो सकता था, वहीँ दूसरी ओर कोविड नियमों जैसे आत्मसंयम का पालन करने से रोजी रोजगार सब बर्बाद होते जा रहे थे | विद्यालय बंद हो रहे थे |यातायात बाधित था | उद्योगधंधे बंद होते जा रहे थे |महानगरों से मजदूरों का पलायन होते देखा जा रहा था | यदि महामारी प्राकृतिक ही थी तो फिर मनुष्यकृत ऐसे उपायों का औचित्य ही क्या रह जाता है |
महामारी विज्ञान के नाम पर कैसे कैसे अनुसंधान !
वर्तमानसमय में विज्ञान विशेष उन्नत है प्रायः सभी क्षेत्रों में विज्ञान नितनूतन शिखर चूम रहा है| इसमें संशय नहीं है |ऐसी बड़ी वैज्ञानिकसफलताओं ने मानवजीवन की कठिनाइयाँ कम की हैं सुख सुविधाएँ उपलब्ध करवाई हैं और जीवन को सरल बनाया है इसमें संशय नहीं है | इसके बाद भी एक चिंता हमेंशा चित्त को बिचलित किया करती है कि जिस मानव जीवन को सुख सुविधापूर्ण बनाने के लिए इतना सबकुछ है उसी जीवन को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित बचाने के लिए मनुष्यों के पास ऐसा क्या है|
महामारी,भूकंप आदि प्राकृतिकआपदाएँ या फिर मौसमसंबंधी सभीप्रकार की घटनाएँ जिनसे मानव जीवन बहुत बुरी तरह से प्रभावित होता है |ऐसे अप्रत्याशित संकटों से
लोगों को अचानक जूझना पड़ता है |जिसमें बहुतों का जीवन प्रभावित होता है |
उन में से कुछ की जीवन लीला ऐसे संकटों में समाप्त ही हो जाती है | उनके
भी बहुमूल्य जीवन को बचाने के लिए कोई मजबूत उपाय खोजे जाने की आवश्यकता
है |
ऐसी परिस्थिति में उन भयंकर हिंसक घटनाओं को घटित होने से रोकना तो मनुष्यों के बश में है ही नहीं | उन घटनाओं से अपने और अपने समाज के बचाव के लिए कुछ प्रयत्न अवश्य किए जा सकते हैं | इनसे बचाव किया जाना भी तभी संभव है जब ऐसी घटनाओं के घटित होने से पहले इनके विषय में कोई सही सटीक अनुमान पूर्वानुमान आदि पता हो |
चूँकि ऐसी घटनाओं के विषय में पहले से कोई जानकारी नहीं होती है इसीलिए ऐसे बड़े संकट का सामना करने के लिए पहले से कोई तैयारी भी नहीं की गई होती है | जब ऐसी भयानक घटनाएँ घटित होने लगती हैं तब इनका वेग इतना अधिक होता है कि इनके पहले झटके में ही बहुत बड़ा नुक्सान हो चुका होता है | उसके बाद ऐसी घटनाओं के विषय में आम लोगों के साथ ही साथ वैज्ञानिकों को भी जानकारी मिल पाती है |इनके विषय में जब तक कुछ सोचने समझने या अध्ययन अनुसंधान आदि के लिए प्रयत्न किया जाता है तब तक ये रौद्र रूप धारण कर लेती हैं और बड़ी संख्या में लोगों को अपनी चपेट में ले लेती हैं| ऐसी घटनाएँ अचानक इतना भयानक स्वरूप धारण कर लेती हैं कि इन्हें समझना ही संभव नहीं हो पाता है | इन पर अंकुश लगाना तो संभव ही नहीं है |
कुल मिलाकर मानवता की रक्षा के लिए मनुष्य समाज के पास कुछ तो विकल्प होना ही चाहिए |वस्तुतः महामारी भूकंप बाढ़ एवं आँधी तूफान जैसी प्राकृतिकआपदाओं के विषय में सही सही पूर्वानुमान लगाने के लिए मनुष्य समाज के पास ऐसा कोई विज्ञान नहीं है जो ऐसी हिंसक आपदाओं के विषय में आगे से आगे अवगत करवा सके| जिससे प्रयत्न पूर्वक अपना बचाव सुनिश्चित किया जा सके, क्योंकि ऐसी घटनाओं को रोका जाना तो संभव नहीं है इनसे अपना बचाव ही किया जा सकता है| इसके लिए सही सटीक पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है |जिसके लिए हमारी जानकारी के अनुशार अभी तक ऐसा कोई विज्ञान विकसित ही नहीं किया जा सका है जो मानव जीवन की इस आवश्यकता को पूरी कर सके !
इसके अभाव में हमारे द्वारा आज तक किए गए संपूर्ण विकास कार्य कभी भी शून्य हो सकते हैं क्योंकि उनकी उपयोगिता तभी तक है जब तक मानव जीवन सुरक्षित रहे |इसके बिना विकास संबंधी उपलब्धियाँ किसी काम की नहीं रह जाएँगी |
कई बार व्यक्तिगत जीवन या सामूहिक जीवन से संबंधित विकास के लिए जहाँ एक ओर बड़ी बड़ी योजनाएँ बनाई जा रही होती हैं उनके लिए बड़े बड़े आयोजन आयोजित किए जा रहे होते हैं बड़े बड़े उत्सवों की तैयारियाँ की जा रही होती हैं | उसी समय महामारी भूकंप बाढ़ एवं आँधी तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएँ अचानक घटित होकर संपूर्ण हर्षोल्लास के सुअवसर को मातम में बदल देती हैं |
कोरोना महामारी को ही लिया जाए तो बहुतों ने अपने जीवन या समाज के उत्थान के लिए न जाने कितनी बड़ी बड़ी योजनाएँ बनाकर रखी होंगी जिसमें न जाने कितनी धनराशि का व्यय हुआ होगा, बहुतों ने वह धनराशि कर्जे में लेकर लगाई होगी | सरकारों तथा सामाजिक संगठनों की एक से एक उन्नत योजनाओं को अचानक रोका गया होगा |बड़े बड़े उद्योगपतियों व्यापारियों एवं फैक्ट्री चलाने वालों का अचानक बहुत बड़ा नुक्सान हो गया होगा !शिक्षा में अचानक बहुत बड़ी बढ़ा उत्पन्न हुई | बहुतों का अपना जीवन या स्वजनों का जीवन कालकवलित हुआ | इसीप्रकार की और न जाने कौन कौन सी दुर्घटनाएँ इस महामारी के कारण अचानक घटित हुईं| जिनसे बहुतों के जन धन का भारी नुक्सान हुआ है ,इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत के पड़ोसी देशों के साथ अभी तक जितने भी मध्यमस्तरीय युद्ध हुए हैं उनमें उतने लोग नहीं मरे जितने कोरोना महामारी में मारे गए ,फिर भी ऐसे सभी युद्धों अपनी सुरक्षा के लिए बड़ी बड़ी योजनाएँ बनाई जाती हैं एक से एक घातक हथियार ख़रीदे जाते हैं | सर्वोच्च मारकक्षमता संपन्न अस्त्र शास्त्रों का संग्रह करते प्रत्येक देश देखा जा रहा है | कुल मिलाकर युद्धक तैयारियों पर भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती है | विश्व के संपूर्ण देश जो हथियारों की इस प्रतिस्पर्द्धा में सम्मिलित हैं |जिनके पास ऐसे ऐसे हथियार संग्रहीत हैं जो कुछ समय में ही विश्व का विनाश करने में सक्षम हैं |
ऐसी परिस्थिति में संपूर्ण मानवता के लिए यह चिंता की बात है कि मनुष्यों के बिनाश के लिए इतनी बड़ी बड़ी घातक तैयारियाँ की जा चुकी हैं जबकि मनुष्य की सुरक्षा के लिए अभी तक की गई वैज्ञानिक तैयारियों को कोरोनाकाल में दुनियाँ ने देखा है | विज्ञान कितना विवश था कुछ करने की स्थिति में तो था ही नहीं प्रत्युत कुछ कहने की स्थिति में भी नहीं था कि कोरोना महामारी के प्रभाव से कल क्या होगा | अगला महीना या वर्ष कैसा होगा ,महामारी कब तक रहेगी कितना और नुक्सान करेगी जैसी बातों का अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिकों के पास कोई स्पष्ट उत्तर नहीं था | ये आश्चर्य की बात है कि महामारी जैसी इतनी बड़ी आपदा अचानक घटित होने लगी हमारे उन वैज्ञानिकों को इसके विषय में भनक तक नहीं लगी जो इन्हीं विषयों से संबंधित अनुसंधान कार्य में दिन रात लगे रहते हैं फिर भी ऐसी स्थिति है |
वैज्ञानिकों के द्वारा बताया जा रहा था कुछ जबकि निकलता रहा था कुछ और !
हमारे सैनिक एवं सरकारें शत्रु देशों की हर हरकत का मुखतोड़ जवाब देने में सक्षम हैं ये हम सबके लिए गौरव की बात है | देश की सीमाओं एवं नागरिकों की सुरक्षा के लिए अस्त्र शस्त्र बनाने खरीदने में भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती है | महँगे महँगे युद्धक विमान खरीदे जाते हैं | इसके साथ ही सेनाओं के लिए वे सभी आवश्यक संसाधन समय से उपलब्ध करवाए जाते हैं जिनसे देश की सीमाओं तथा नागरिकों के प्रति दुष्ट दृष्टि रखने वाले शत्रु देशों को मुखतोड़ जवाब दिया जा सके !इस प्रक्रिया में कहीं कोई थोड़ी भी चूक रह जाती है जिसके कारण कोई नुक्सान हो जाता है या नुक्सान होने की संभावना रहती है तो सरकारें तुरंत आवश्यक कदम उठाए जाते हैं |इसके बाद भी शत्रु यदि छल कपट पूर्वक कोई हमला आदि करने में सफल हो ही जाए तो इसके लिए शत्रु की कायरता या शत्रु के द्वारा किए गए छल कपटपूर्ण हमले के लिए शत्रु को दोषी न ठहराकर उसके लिए अपनी कमजोर तैयारियों को या अपने द्वारा हुई चूक को जिम्मेदार मानकर माना जाता है | शत्रु के द्वारा छल छद्मपूर्वक किए गए हमले के विषय में पहले से कोई अंदाजा लगाने में हम असफल क्यों हुए |इसका आशय यह है कि हमें अपनी तैयारियाँ हमेंशा यह समझकर करनी चाहिए कि शत्रु हमें पराजित करने के लिए वह सब कुछ करेगा जो जो करना उसके बश में होगा | हम बचना चाहें तो सतर्कता पूर्वक बच लें अन्यथा शत्रु के षड्यंत्रों का शिकार होते रहें
उसी के अनुशार आगे की तैयारियाँ प्रारंभ की जाती हैं | जाता है मन काभी भी शत्रु की जगह अपने को जिम्मेदार ठहराया जाता है कि
जिन देशवासियों की सुरक्षा के लिए शौर्य संपन्न सैनिक देश की सीमाओं और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कितना त्याग बलिदान पूर्ण जीवन जीते हैं |अपने देश वासियों की सुरक्षा के लिए सैनिक लोग एक से एक दुर्गम जंगलों कंटकाकीर्ण पथों नदियों नालों बर्फ़ीली घाटियों एवं पर्वतों आदि पर कितना कठिन जीवन बिताना पड़ता है | वे दिन रात अपने प्राणों को हथेली पर लिए देश की सीमाओं पर पहरा दिया करते हैं | अपनी एवं अपने परिवारों की परवाह किए बिना दर दर की ठोकरें खाते क्या ऐसे ही दिन के लिए फिरा करते हैं कि कोरोना जैसी महामारी आएगी और लाखों की संख्या में उनके दुलारे देश बासियों को मौत की नींद सुलाकर चली जाएगी ! हमारे सैनिकों के सुरक्षित रहते कोई दुश्मन देश हमारे देशवासियों को ऐसी चोट पहुँचाने की बात कभी स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था | जो दुस्साहस कोरोना महामारी ने किया है |
कोरोना जैसी इतनी बड़ी महामारी जब कहर बन कर समाज पर टूटी थी उस समय इतने डरावने वातावरण में को अपनी छाया छूने डर लगता था उस समय जो स्वास्थ्यसेवक अपनेप्राणों की परवाह न करते हुए अपने देश वासियों को सुरक्षित बचाने के लिए प्रयत्न करते रहे | इस पुण्यकार्य लगे अनेकों स्वास्थ्य सैनिकों (चिकित्सकों) को प्रिय देश बासियों पर अपने बहुमूल्य जीवन न्योछावर करने पड़े हैं | ऐसी कोरोना महामारी कभी भुलाए नहीं भूलेगी |
महामारी से जूझता समाज इतना डरा हुआ है कि उसे हर समय आशंका रहती है कि न जाने किस सगे संबंधी स्वजन से हमारा साथ कब छूट जाए ! प्रत्येक व्यक्ति को अपनी और अपनों की चिंता दिनरात बेचैन किए हुए है | महामारी संबंधी स्वास्थ्यसुरक्षा असफलता कारण हर कोई अपने को असुरक्षित महसूस कर रहा है, ये राष्ट्र की स्वास्थ्य सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण और गंभीर मामला है,क्योंकि महामारी के घातक हमले अब भी जारी हैं |उन पर अंकुश लगाने कोई ऐसी विश्वसनीय विधा अभी तक विकसित नहीं की जा सकी है जिसके बलपर विश्वास पूर्वक यह कहा जा सके कि महामारी संबंधी संक्रमण अब नहीं बढ़ेगा या फिर 'अमुक' दवा का जिस जिस ने सेवन कर लिया है उस उस को महामारी से अब कोई खतरा नहीं है |
सबसे दुखद बात यह है कि वैज्ञानिक अनुसंधानों के बलपर इतनी भयंकर महामारी से बचाव एवं मुक्ति दिलाने के सपने देखना तो बहुत बड़ी बात है महामारी के किसी भी पक्ष को अभी तक न तो ठीक ठीक समझा जा सका है और न ही इसके विषय में कोई विश्वसनीय अनुमान पूर्वानुमान आदि ही लगाए जा सके हैं | वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में जो अनुमान पूर्वानुमान आदि ही लगाए भी गए वे गलत निकलते चले गए |
इससे बड़ी चिंता की बात और क्या होगी कि महामारी जैसे कठिन काल में स्वास्थ्य सुरक्षा प्रबंधनों के द्वारा कोई विशेष राहत नहीं पहुँचाई जा सकी है | इस समय जनता को ऐसे स्वास्थ्य सहायक प्रबंधनों की सबसे अधिक आवश्यकता है | जनता के धन से हमेंशा चलाए जाते रहने वाले अनुसंधानों के द्वारा महामारी काल में प्राणों से खेल रही जनता को आखिर ऐसी क्या मदद पहुँचाई जा सकी है जो इतने उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधानों के बिना संभव न थी |ये अनुसंधान न हो रहे होते तो क्या इससे भी अधिक नुकसान हो सकता था |ये चिंतन करने का विषय है |
जिस समय शत्रु किसी देश पर हमला कर दे उस समय तैयारियों के अभाव में ऐसी असफलताओं की कीमत सैनिकों को जान देकर चुकानी पड़ती है | कोरोना महामारी से चल रहे भीषण संग्राम के समय तैयारियों के अभाव में कई स्वास्थ्य सैनिकों के बहुमूल्य जीवन खोने पड़े हैं | मेरी जानकारी के अनुशार उन चिकित्सा विशेषज्ञों के पास महामारी से अपनी सुरक्षा के कोई सुनिश्चित साधन नहीं थे इसके बाद भी वे प्राण प्रण से मानवता की सेवा में लगे रहे | बहुत स्वास्थ्यसैनिकों के के साथ ऐसी दुर्भाग्य पूर्ण घटनाएँ घटित हुई हैं जनता में बहुतों ने अपनों को खोया है | बहुत घर बर्बाद हुए हैं बहुत बच्चे अनाथ हुए हैं | माहामारी कालग्रास में समाए वे सभी नागरिक इस समाज के विभिन्न रूपों में सहयोगी रहे हैं उनके जाने से जो रिक्तता हुई है उसकी भरपाई संभव नहीं है |
इसलिए भारीमन से ही सही आत्ममंथन
पूर्वक आज अपनी कमजोरियाँ दूर करने का समय आ गया है ये अनुसंधान जनता की
जिन कठिनाइयों को कम करने याजो सुख सुविधाएँ प्रदान करने के लिए किए जाते
रहे हैं महामारी के कठिन काल में उनकी उपयोगिता कुछ तो सिद्ध होनी ही चाहिए
थी | ऐसे अनुसंधानों में उसी जनता का धन लगता है इसलिए उस जनता के प्रति
कुछ जवाबदेही अनुसंधानों की भी होनी ही चाहिए | वैज्ञानिक अनुसंधान जिस समस्या के समाधान के लिए या जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए किए करवाए जाते हैं उसमें सफल होने पर ही उनकी सार्थकता सिद्ध होती है |
विज्ञान के क्षेत्र में सभी अनुसंधानों की प्रारंभिक प्रक्रिया में कई बार
असफलता मिलते देखी जाती है और यह स्वाभाविक भी है किंतु ये असफलताएँ उस अनुसंधान प्रक्रिया के प्रारंभिक समय तक ही सीमित रहनी चाहिए | ऐसी असफलताएँ निरंतर मिलना
ठीक नहीं हैं और यदि बार बार ऐसा ही हो तो ऐसी असफलताओं
को निरर्थक ढोया जाना ठीक नहीं है उनके विकल्प की खोज का समय आ गया है |
ऐसा मानते हुए उस प्रकार की संभावनाओं की खोज प्रारंभ कर दी जानी चाहिए |
6 मार्च 2020 - प्राकृतिक है कोरोना वायरस, लैब में नहीं बनाया गया ! अमेरिका समेत कई देशों की मदद से हुए एक वैज्ञानिक शोध में दावा किया गया है कि यह वायरस प्राकृतिक है। स्क्रीप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोध को नेचर मेडिसिन जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया है। शोध को अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ, ब्रिटेन के वेलकम ट्रस्ट, यूरोपीय रिसर्च काउंसिल तथा आस्ट्रेलियन लौरेट काउंसिल ने वित्तीय मदद दी है तथा आधा दर्जन संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हुए।
26 मार्च 2020:प्राकृतिक है कोरोना वायरस, लैब में नहीं बनाया गया ! अमेरिका समेत कई देशों की मदद से हुए एक वैज्ञानिक शोध में दावा किया गया है कि यह वायरस प्राकृतिक है। स्क्रीप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोध को नेचर मेडिसिन जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया है। शोध को अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ, ब्रिटेन के वेलकम ट्रस्ट, यूरोपीय रिसर्च काउंसिल तथा आस्ट्रेलियन लौरेट काउंसिल ने वित्तीय मदद दी है तथा आधा दर्जन संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हुए।
विशेष बात :-
महामारी मनुष्यकृत है या प्राकृतिक इसका निश्चय किसी के मान लेने या न मान लेने से नहीं होगा अपितु वे तर्क प्रस्तुत किए जाने चाहिए जिसके आधार पर यह निश्चय किया गया है कि महामारी प्राकृतिक है या मनुष्यकृत !जो वैज्ञानिक इसे मनुष्यकृत मानते हैं उन्हें यह बताना चाहिए कि ऐसा कहने के पीछे उनका वैज्ञानिक आधार क्या है ?इन्हीं कुछ वर्षों में मनुष्यों ने ऐसा नया क्या करना शुरू कर दिया है जो बीते सौ वर्षों तक नहीं किया गया और अचानक शुरू कर दिया गया |
इसी प्रकार से यदि किसी देश विशेष की लैब से निकले वायरस को महामारी के लिए जिम्मेदार कारण माना जाए तो उस वायरस से अपने अपने देश को सुरक्षित क्यों नहीं किया जा सका | एक देश ने पुरे विश्व में तवाही मचा दी तो अन्य देशों में भी तो वैज्ञानिक अनुसंधान होते ही थे जिनके द्वारा वे देश अपनी अपनी सुरक्षा भी नहीं कर सके | ये चिंता की बात है |
दूसरी बात किसी देश की लैब से निकला वायरस ही यदि महामारी पैदा होने के लिए जिम्मेदार मान लिया जाए तो वो तो एक बार निकला तो महामारी भी एक बार जितनी बढ़नी थी बढ़ जाती उसके बाद तो शांत होती औरजब शांत होती तब तो समाप्त होती चली जाती किंतु ऐसा नहीं हुआ तो प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि महामारी की लहरें आने और जाने के मनुष्यकृत ऐसे कौन से कारण थे जिनसे संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने या कम होने लगती थी |इससे भी बड़ा प्रश्न महामारी आने के क्या कारण थे और जाने के क्या कारण रहे होंगे | इसके साथ ही यह अनुमान लगाया जाना भी आवश्यक है कि महामारी मनुष्यकृत चिकित्सकीय प्रयासों से ही समाप्त होगी या प्राकृतिक रूप से अपने आपसे समाप्त होगी |यदि अपने आप से ही समाप्त होनी है तब तो वैज्ञानिक अनुसंधानों की भूमिका ही क्या बचती है |
कोरोना महामारी यदि प्राकृतिक है तो कहीं ऐसा तो नहीं कि महामारी का पैदा होना और समाप्त होना भी प्राकृतिक हो इसकी लहरों का आना जाना भी प्राकृतिक ही हो ,इसकी चिकित्सा भी प्राकृतिक प्रक्रिया से ही हो रही हो !कहीं ऐसा तो नहीं कि मनुष्य अपने निराधार प्रयासों का प्रदर्शन करके अकारण ही श्रेय लेने का प्रयत्न कर रहा है | ऐसे महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर भी अनुसंधान पूर्वक तर्क संगत ढंग से समाज को मिलना चाहिए |
महामारी को प्राकृतिक मान लेना भी आसान नहीं है !
महामारी यदि प्राकृतिक है जैसा कि अमेरिका समेत कई देशों की मदद से हुए एक वैज्ञानिक शोध में दावा किया गया है कि यह वायरस प्राकृतिक है। स्क्रीप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोध को नेचर मेडिसिन जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया है। शोध को अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ, ब्रिटेन के वेलकम ट्रस्ट, यूरोपीय रिसर्च काउंसिल तथा आस्ट्रेलियन लौरेट काउंसिल ने वित्तीय मदद दी है तथा आधा दर्जन संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हुए। 2मई 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन में आपात स्थितियों के प्रमुख डॉक्टर माइकल रायन का एक बयान समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ है जिसमें उन्होंने कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन बार-बार बहुत सारे वैज्ञानिकों से इस पर चर्चा की है जिसके आधार पर पूरा भरोसा है कि कोरोना वायरस प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ है।
कुलमिलाकर वैज्ञानिकों का एक बड़ा वर्ग यदि यह मानता है कि कोरोना वायरस किसी लैब में नहीं बनाया गया है अपितु यह प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ है तो इससे संबंधित अध्ययन अनुसंधान आदि करने के लिए समय समय पर बदलते रहने वाली प्राकृतिक परिस्थितियों का अध्ययन करना आवश्यक है |लगभग सौ वर्ष के लंबे अंतराल के बाद प्राकृतिक परिदृश्य में ऐसा क्या बड़ा बदलाव आया था जो बीते नब्बे पंचानबे वर्षों में नहीं देखा जाता रहा है और अचानक कोरोना महामारी पैदा होने से पहले प्रकृति में उस प्रकार के परिवर्तन होने लगे जो पहले होते नहीं देखे गए थे |
इसी क्रम में यह भी बिचार किया जाना चाहिए कि यदि महामारी पैदा होने का कारण प्राकृतिक है तो कोरोना महामारी के समय बीच बीच में जो लहरें आती और जाती थीं उस समय संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने और उसके बाद घटने लग जाती थी | ऐसा होने के आधार भूत वे जिम्मेदार प्राकृतिक कारण कौन थे अर्थात उसी समय प्रकृति में ऐसे क्या बड़े बदलाव होने लगते थे जिससे संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने और उसके बाद घटने लग जाती थी |
इसके साथ ही अनुसंधान पूर्वक इस बात का भी निश्चय किया जाना चाहिए कि प्रकृति में किस प्रकार के परिवर्तन दिखाई देने लगने के बाद महामारी के संपूर्ण रूप से समाप्त होने की आशा की जा सकती है |
वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा प्राकृतिक आधार पर लगाए गए इस प्रकार के लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान यदि सही निकलें तो यह प्रमाणित भी हो जाएगा कि महामारी वास्तव में प्राकृतिक रूप से ही पैदा हुई है | यदि ऐसा नहीं होता है तो वैज्ञानिक अनुसंधान की दृष्टि से यह मान लिया जाना उचित नहीं होगा कि महामारी प्राकृतिक रूप से ही पैदा हुई है भले यह सच हो तो भी इसे प्रमाणित करने के लिए हमारे पास ऐसे कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं हैं जिन्हें प्रस्तुत करते हुए हमारे द्वारा यह कहा जा सके कि कोरोना महामारी प्राकृतिक रूप से पैदा हुई है ऐसा वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा हमें पता लगा है |
जनता ने अपने वैज्ञानिकों से जानना चाहा कि कोरोना कब तक रहेगा ?
इस विषय में भिन्न भिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा अलग अलग अंदाजे लगाए गए ! जिनसे जनता को उसके लिए आवश्यक उत्तर नहीं मिल पाया !वैज्ञानिक वक्तव्यों ये निष्कर्ष निकालपाना संभव भी नहीं था कि कोरोना कबतक रहेगा !-
2-4-2020 को प्रकाशित: चीन के सबसे बड़े कोरोना वायरस एक्सपर्ट डॉ. झॉन्ग नैनशैन ने दावा किया है कि"4 हफ्तों में कम होंगे कोरोना वायरस के मामले !"इसके आधार पर मई प्रारंभ से कोरोना संक्रमण समाप्त हो जाना चाहिए था |
24 अप्रैल 2020 को नीति आयोग के सदस्य और चिकित्सा प्रबंधन समिति के प्रमुख वीके पॉल ने एक
अध्ययन पेश किया था , जिसमें उन्होंने भविष्यवाणी की थी -"देश में कोरोना संक्रमण के नए मामले
16 मई तक खत्म हो जाएँगे |
27 अप्रैल 2020 को सिंगापुर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड डिजाइन के
शोधकर्ताओं का एक रिसर्च प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने कहा है -"भारत में
27 मई 2020 तक कोरोना संक्रमण समाप्त हो सकता है !
09 May 2020केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा-" जल्द फ्लैट ही नहीं रिवर्स हो जाएगा कोरोना ग्राफ !"
09 May 2020 बिहार के बरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट डॉ. अजय कुमार ने कहा कि जून-जुलाई में कोरोना के मरीज बढ़ेंगे नहीं अपितु घटने शुरू होंगे !
09 May 2020 डॉ. अमरकांत आईएमए, बिहार के निर्वाचित अध्यक्ष डॉ. अमरकांत झा ने कहा कि जून में कोरोना का संक्रमण स्थिर हो जायेगा। इसके बाद इसमें उत्तरोत्तर घटोत्तरी होगी।
6 Jun 2020ऑनलाइन जर्नल एपीडेमीयोलॉजी इंटरनेशनल में प्रकाशित:"मध्य सितंबर
के आसपास भारत में खत्म हो सकती है कोरोना महामारी ".
15 जून 2020 इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा गठित रिसर्च ग्रुप की ओर से कहा गया कि नवंबर महीने में कोरोना संक्रमण अपने पीक पर होगा!
16- 6-2020 को भारतीय वैज्ञानिक न्यूकिलीयर एवं अर्थसाइंटिस्ट डॉ. के एल सुंदर ने दावा किया कि 21 जून 2020 को ग्रहण के साथ ही कोरोना वायरस समाप्त हो जाएगा |
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30 सितंबर 2020 को प्रकाशित :अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक कोरोना से रिकवर होने वाले 100 में से 78 मरीजों के हार्ट डैमेज हुए और दिल में सूजन दिखी। रिसर्च कहती है, जितना ज्यादा संक्रमण बढ़ेगा भविष्य में उतने ज्यादा बुरे साइड-इफेक्ट का खतरा बढ़ेगा।
30 सितंबर 2020 को प्रकाशित:ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक कोरोना से रिकवर होने वाला
हर 7 में से 1 इंसान हार्ट डैमेज से जूझ रहा है। यह सीधेतौर पर उनकी फिटनेस
पर असर डाल रहा है।
02 Aug 2020 प्रकाशित :कोरोना को हराने के बाद मरीज भले ही स्वस्थ्य हो गया हो, लेकिन बीमारी के संक्रमण ने शरीर के दूसरे अंगों को भी नुकसान पहुंचाया है। हाल ही में प्रकाशित एक शोध में यह जानकारी आई है कि कोरोना फेफड़ों को ही नहीं दिल को भी क्षति पहुंचा रहा है। हार्ट अटैक की संभावना प्रबल हो जाती है। कोरोना को हराने वाले 100 मरीजों पर शोध किया गया था, जिनकी उम्र 45 से 53 के बीच में थी। उनकी एमआरआई कराने पर सामने आया कि 78 मरीजों के दिल के आकार में बदलाव देखने को मिला है। इस तरह के बदलाव केवल हार्ट अटैक के आने के बाद ही किसी मरीज में देखने को मिलते हैं।
ऐसी परिस्थिति में आम जनता के मन में शंका होना स्वाभाविक ही था कि यदि कोरोना संक्रमण के लिए कोई औषधि बनी ही नहीं थी तो चिकित्सालयों में संक्रमितों को एडमिट करके चिकित्सा किस रोग की किन औषधियों से और कैसे की जा रही थी |
जिन्हें कोरोना महामारी का स्वभाव ही नहीं पता था | रोग का संक्रमण बढ़ने और घटने का कारण नहीं पता था | वेंटिलेटर लगे होने के बाद भी लोगों की मृत्यु होते देखी जा रही थी | इसके बाद भी चिकित्सा किया जाना संभव कैसे था !प्रत्येक कुशल चिकित्सक किसी रोगी की चिकित्सा करने से पूर्व रोग के वास्तविक स्वरूप को समझ लेना चाहता है उसके बाद ही उसके द्वारा की गई उस रोग की चिकित्सा सफल होते देखी जाती है ऐसी परिस्थिति में जिस रोग के बिषय में कुछ भी पता ही न हो उसकी चिकित्सा कैसे संभव है !फिर भी यदि कोई चिकित्सा करता ही है तो उस रोगी पर चिकित्सा के अच्छे या बुरे दोनों ही प्रकार के परिणाम होना स्वाभाविक है |
चिकित्सालयों में जाकर स्वस्थ होने वाले रोगियों के शरीरों में ही बाद में कुछ विशेष प्रकार के दूसरे रोग पनपते देखे गए जबकि कोरोना से संक्रमित तो बहुत बड़ा वर्ग हुआ बताया जाता है कुछ लोगों ने ही कोरोना संक्रमण की जाँच करवाई थी जबकि बहुत लोगों ने जाँच नहीं भी करवाई कोई दवा भी नहीं ली संक्रमण के लक्षण पहचानकर घरों में ही बने रहे और स्वस्थ भी हो गए उनके शरीरों में इस प्रकार के दुष्प्रभाव भी होते नहीं देखे गए ! इससे ये शंका होनी स्वाभाविक ही है कि रोग को समझे बिना जो चिकित्सा की जाती रही ये कहीं उसी के दुष्प्रभाव तो नहीं थे |
जनता ने अपने वैज्ञानिकों से जानना चाहा कि कोरोना से सबसे अधिक खतरा किस उम्र के लोगों को है ?
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सबसे अधिक 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को बताया था जबकि संक्रमण का सबसे अधिक खतरा 18 से 44 वर्ष के लोगों को हुआ है | यहाँ भी वैज्ञानिकों का अनुमान सही नहीं निकला !
01 Apr 2020 जहाँ एक ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना वायरस संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा उन लोगों को को बताया था जिनकी उम्र 60 साल या इससे अधिक है |
30 Dec 2020 को एक सर्वे के आंकड़े प्रकाशित किए गए जिसमें लिखा है -"18 से 44 वर्ष के लोग कोरोना से सबसे अधिक पीड़ित हुए हैं |"
- नारायण हेल्थ के चेयरमैन और तीसरी लहर के लिए कर्नाटक सरकार की टास्क फोर्स के चेयरमैन डॉ. देवी प्रसाद शेट्टी का भी कहना है कि पहली लहर में किडनी, डायबिटीज और दिल की बीमारियों से घिरे बुजुर्ग निशाना बने। दूसरी लहर में कमाई के लिए घरों से निकलने वाले युवा ज्यादा संक्रमित हुए। अब अगला जोखिम बच्चों को है। वायरस अपने तरीके को बदलता रहता है।
- कर्नाटक में कोविड वायरस जीनोम कन्फर्मेशन के नोडल ऑफिसर डॉ. वी रवि समेत कई एक्सपर्ट्स के मुताबिक पहली लहर के दौरान कुल संक्रमितों में केवल 4% बच्चे थे, दूसरी लहर में यह आंकड़ा 10-15% तक पहुंच गया। तीसरी लहर में नए वैरिएंट्स ज्यादा बच्चों को संक्रमित कर सकते हैं। तीसरी लहर से पहले बड़ी संख्या में वयस्क कोरोना का शिकार हो चुके होंगे। उनके शरीर में एंटीबॉडी पनप जाएंगे। अगर इससे पहले बड़ी संख्या में लोगों को वैक्सीन भी लगा दी गई तो बच्चे ही वायरस का सबसे सुरक्षित ठिकाना होंगे।
- देश में बच्चों के डॉक्टरों के सबसे बड़े संगठन IAP (Indian Academy of Pediatrics) के अनुसार 20 दिसंबर से 21 जनवरी के बीच किए गए सीरो सर्वे (Sero survey) से यह पता चला है कि 10 से 15 साल के बच्चों में भी बड़ों की तरह संक्रमण की दर 20-25% थी। इससे साफ है कि बच्चों के भी बड़ों की तरह संक्रमित होने की आशंका है !
वैज्ञानिकों के दूसरे वर्ग ने किया है ऐसे अनुमानों का खंडन !
24 मई 2021को कोरोना महामारी पर सरकार की रूटीन प्रेस कॉन्फ्रेंस में नीति आयोग में सदस्य (स्वास्थ्य) वीके पॉल ने कहा कि अब तक ऐसे कोई संकेत नहीं हैं कि तीसरी लहर में बच्चों पर गंभीर रूप से असर होगा। उन्होंने कहा कि अगर बच्चे कोरोना से संक्रमित होते भी हैं तो उनमें या तो लक्षण बिल्कुल नहीं होंगे या बेहद हल्के लक्षण होंगे। उन्हें आमतौर पर अस्पताल में भर्ती करने की की जरूरत नहीं होगी।
24 मई 2021को स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दिल्ली के एम्स अस्पताल के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया नेकहा -"ऐसा कोई सबूत नहीं है कि भविष्य में COVID-19 की लहर में बच्चे गंभीररूप से संक्रमित होंगे।"(पहले तो कहा गया था कि तीसरी लहर में बच्चों को अधिक खतरा है |
25 मई 2021को बच्चों के डॉक्टरों के सबसे बड़े संगठन Indian Academy of Pediatrics यानी IAP का कहना है कि बच्चों के बड़ों की तरह संक्रमित होने की आशंका होती है,बच्चों का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है. पहले और दूसरे वेब के आंकड़ों के मुताबिक, गंभीर रूप से संक्रमित बच्चों को भी ICU की जरूरत नहीं पड़ी |इसलिए ऐसी आशंका नहीं की जानी चाहिए |
9 जून 2021 को चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र की प्रतिष्ठित पत्रिका लैनसेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात के अब तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि कोविड-19 महामारी की तीसरी संभावित लहर में बच्चों के गंभीर रूप से संक्रमित होने की आशंका है। लैंसेट कोविड-19 कमीशन इंडिया टास्क फोर्स ने भारत में 'बाल रोग कोविड-19' के विषय के अध्ययन के लिए देश के प्रमुख बाल रोग विशेषज्ञों के एक विशेषज्ञ समूह के साथ चर्चा करने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है। इसके लिए तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के 10 अस्पतालों में इस दौरान भर्ती हुए 10 साल से कम उम्र के करीब 2600 बच्चों के क्लीनिकल आंकड़ों को एकत्र कर उसका विश्लेषण करने के बाद ही यह रिपोर्ट तैयार की गई है।इस में कहा गया है कि भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित बच्चों में उसी प्रकार के लक्षण पाए गए हैं, जैसा कि दुनिया के अन्य देशों में देखने को मिले हैं।
डॉ. अमित गुप्ता(क्लिनिकल डायरेक्टर, न्यूबॉर्न सर्विसेज, ऑक्सफोर्ड)का कहना है कि अगर आप केवल फैक्ट्स को देखें तो इस बात के बेहद कम सबूत है कि कोरोना वायरस का म्यूटेंट वास्तव में बच्चों में गंभीर संक्रमण कर रहा है। डेटा को छोड़िए, क्या देश में पीडियाट्रिक केयर यूनिट्स भर चुकी है, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है।कोरोना के कुल केसेज में बढ़ोतरी के हिसाब से बच्चों के केसेज में बढ़ोतरी हुई है।
लैंसेट में पब्लिश हुई रिसर्च के मुताबिक कोरोना से बच्चों को बेहदकम खतरा है। अमेरिका, यूके, इटली, जर्मनी, स्पेन, फ्रांस और दक्षिण कोरिया में सभी बीमारियों के मुकाबले सिर्फ 0.48% बच्चों की कोरोना के चलते जान गई।
- 18 मई को कर्नाटक की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री शशिकला जोले ने राज्य के 30 जिलों में बच्चों के लिए विशेष कोविड केयर सेंटर बनाने की घोषणा की।
- 20 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिलों के 10 राज्यों के कलेक्टर (DM या DC) और फील्ड अफसरों से बात करते हुए हर जिले में बच्चों और युवाओं में कोरोना के ट्रांसमिशन का डेटा जमा करने को कहा। उन्होंने कहा कि इस डेटा का नियमित रूप से अध्ययन करना चाहिए।
- 22 मई को उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने पूरे राज्य में एक जून से 18-44 साल के सभी लोगों को वैक्सीन लगाने का अभियान शुरू करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि तीसरी लहर से पहले 10 साल तक के बच्चों के माता-पिता को वैक्सीन लगा दी जाएगी।
- 19 मई को दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अगर कोरोना की तीसरी लहर आती है तो सरकार पहले से तैयार रहेगी। इसमें बच्चों को बचाने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स बनाई जाएगी।
- 20 मई को नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने केंद्र को पत्र लिखकर जल्द से जल्द छोटे बच्चों को अस्पताल पहुंचाने की जरूरत के हिसाब से नेशनल इमरजेंसी ट्रांसपोर्ट सर्विस (NETS) यानी एंबुलेंस सर्विस को तैयार करने को कहा। कमीशन ने राज्यों से नवजातों के लिए नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट यानी NICU और बच्चों के आईसीयू यानी PICU की संख्या और उनके मौजूदा हाल की जानकारी देने और नोडल अधिकारी नियुक्त करने को कहा है। NCPCR ने ICMR से भी कोरोना संक्रमित बच्चों के इलाज और क्लीनिकल मैनेजमेंट के लिए गाइडलाइन को साझा करने को कहा है।
महामारी जनित संक्रमण बढ़ने के लिए विभिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा वायु प्रदूषण बढ़ने को भी जिम्मेदार बताया है | इसके साथ ही उनके द्वारा यह भी कहा गया है कि अन्य क्षेत्रों में रहने की अपेक्षा वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को कोविड-19 के कारण मौत होने का खतरा अधिक होता है |
8 अप्रैल 2020 हिंदुस्तान में प्रकाशित : अधिक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहने से कोविड-19 के कारण मौत होने का अधिक जोखिम है। ऐसा अमेरिका में किए गए एक अध्ययन में दावा किया गया है।हार्वर्ड टी एच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने कहा कि शोध में सबसे पहले लंबी अवधि तक हवा में रहने वाले सूक्ष्म प्रदूषक कण (पीएम2.5) और अमेरिका में कोविड-19 से मौत के खतरा के बीच के संबंध का जिक्र किया गया है।https://www.livehindustan.com/lifestyle/story-covid-19-people-living-near-most-polluted-areas-are-most-prone-to-get-dead-by-coronavirus-3136597.html
वैज्ञानिकों को यदि ऐसा ही लगता है कि वायुप्रदूषण बढ़ने का प्रभाव महामारी पर पड़ता है तो महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए पहले वायुप्रदूषण घटने बढ़ने संबंधी अनुमानों पूर्वानुमानों की सही जानकारी करके रखनी होगी |जिसके आधार पर महामारी संबंधी संक्रमण घटने बढ़ने के विषय में आगे से आगे अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सके |वायुप्रदूषण घटने बढ़ने संबंधी अनुमानों पूर्वानुमानों को आगे से आगे जानने के लिए वायुप्रदूषण के बढ़ने घटने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण खोजने होंगे | वायु प्रदूषण के विषय में पूर्वानुमान लगाना तो दूर वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण क्या हैं?आज तक यही नहीं पता लगाया जा सका है | विभिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा वायुप्रदूषण बढ़ने घटने के लिए जिन कारणों को अभीतक जिम्मेदार बताया गया है उनमें पर्याप्त मतभिन्नता है | इसलिए उन सबको एक साथ समेटते हुए उनके आधार पर वायु प्रदूषण बढ़ने घटने के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं लगता है |
ऐसी परिस्थिति में महामारी बढ़ने का कारण यदि वायु प्रदूषण बढ़ना ही है वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण खोजे बिना वायु प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए प्रभावी आवश्यक कदम कैसे उठाए जा सकते हैं | इस अवधारणा के आधार पर तो वायु प्रदूषण नियंत्रित हुए बिना महामारी पर नियंत्रण किया जाना संभव नहीं है |इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि सबसे पहले वे निश्चित कारण खोजे जाएँ जो वायु प्रदूषण के बढ़ने में सहायक होते हैं | वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण क्या है इस विषय में भिन्न भिन्न वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर दिए गए भ्रामक वक्तव्य !
25 दिसंबर 2015 को प्रकाशित :एक रिसर्च के हवाले से कहा गया है कि वायु प्रदूषण बढ़ने का वास्तविक कारण किसी को नहीं पता |
25अक्टूबर 2017 को प्रकाशित :तापमान अधिक होने से हवा में घुल रही गैस और तेज हवा में तैरने वाले धूल कणों से वायु प्रदूषण बढ़ता है !13 नवंबर 2017 को प्रकाशित :केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अपर निदेशक दीपांकर साहा का मानना है कि दिल्ली की भौगोलिक स्थिति के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है । उन्होंने पराली जलने को भी वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार मानने से इन्कार किया है।
4 अगस्त 2018 को प्रकाशित :मध्य पूर्व की आँधी से बढ़ता है वायु प्रदूषण !
17 अक्टूबर 2018 को प्रकाशित :दशहरे में रावण के पुतले जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है !इसलिए इस पर रोक के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने दोनों सरकारों से रिपोर्ट तैयार करने को कहा था !
ऐसे ही वैज्ञानिकों ने वाहनों एवं उद्योगों से निकलने वाले धुएँ को ,निर्माण कार्यों से निकलने वाली धूल को ,ईंट भट्ठों से निकलने वाले धुएँ को वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बताया है !
कुलमिलाकर कोरोना महामारी में यदि वायु प्रदूषण की भूमिका रही होती तब तो 2021 के मार्च अप्रैल में महामारी की दूसरी लहर नहीं आनी चाहिए थी, क्योंकि इस समय संपूर्ण वायु मंडल पूरी तरह से वायु प्रदूषण मुक्त हो गया था | ये लहर यदि आई भी थी तो काफी हल्की होनी चाहिए थी आखिर वायु प्रदूषण मुक्त वातावरण का कुछ प्रभाव तो महामारीजनित संक्रमण पर भी दिखाई देना ही चाहिए था ,किंतु इसी समय अत्यंत हिंसक दूसरी लहर ने भयंकर उपद्रव मचाया हुआ था | आखिर वायु प्रदूषण नहीं तो उसका कारण क्या था समाज को भी पता तो लगना चाहिए | घटनाओं के विषय में लगाए जा रहे अनुमान घटनाओं के विरुद्ध जाते क्यों देखे जा रहे थे | वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए अनुमानों के विपरीत घटनाएँ घटित हो रही थीं |
इसमें विशेष बात यह है कि वैज्ञानिक स्वतः स्वीकार कर रहे हैं कि पिछले कुछ वर्षों से सूरज की रोशनी पाँच गुणा तेजी से घटी है| ऐसी स्थिति में सूरज की किरणों की मंदता को भ्रमवश वायुप्रदूषण तो नहीं समझा जा रहा है |
महामारी का प्रसार हवा से होने संबंधी अनुमान !
24 मार्च 2020(को प्रकाशित :कोरोनावायरस क्या हवा से भी फैल सकता है ?