महामारी मौसम के आधार पर ! 1008

                                                     

                               मौसम के आधार पर लगाया जाएगा महामारी का पूर्वानुमान !

       महामारी जैसे अत्यंत कठिन संकटकाल का सामना करने के लिए महामारी आने के विषय में पूर्वानुमान पता होना सबसे अधिक आवश्यक होता है ताकि बचाव की तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल सके | इसी उद्देश्य से महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर प्रयत्न किए जा रहे हैं |

    जिस मौसम को समझकर जब जो भविष्यवाणी की गई उस समय उस मौसम का उस प्रकार का प्रभाव ही नहीं था | वर्षा या आँधी तूफ़ान से संबंधित भविष्यवाणियाँ गलत निकलते देखी जाती हैं !अलनीनो  लानिना के आधार पर की गई भविष्यवाणियाँ गलत होती रहती हैं !जलवायु परिवर्तन के नाम पर की गई भविष्यवाणियाँ भी सही नहीं होती हैं ! 

                          महामारी को समझने के लिए किया जाएगा मौसम का अध्ययन !

    22 दिसंबर 2020 को (दृष्टि) डेली न्यूज में प्रकाशित : सरकार के द्वारा एक ऐसी विशिष्ट 'प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली' (Early Health Warning System) विकसित की जा रही है, जिससे देश में किसी भी रोग के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकेगा।गौरतलब है कि इस अनुसंधान प्रक्रिया में भारतीय मौसम विभाग को भी सम्मिलित किया जा रहा है |यह अनुसंधान  मौसम में आने वाले परिवर्तन और रोग की घटनाओं के बीच संबंधों पर आधारित है। ज्ञात हो कि ऐसे कई रोग हैं, जिनमें मौसम की स्थिति अहम भूमिका निभाती है।विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली एक ऐसी निगरानी प्रणाली है, जो त्वरित सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप को संभव बनाने के लिये ऐसे रोगों से संबंधित सूचना एकत्र करती है, जो भविष्य में महामारी का रूप ले सकते हैं।https://www.drishtiias.com/hindi/daily-news-analysis/early-health-warning-system

      बताया जाता है कि प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली के आधार पर ऐसे रोगों से संबंधित सूचना एकत्र की जाती है, जो भविष्य में महामारी का रूप ले सकते हैं। इस प्रकार से मौसम की महत्ता समझते हुए मौसम वैज्ञानिकों को  भी इस विशिष्ट प्रणाली के विकास अध्ययन और अनुसंधान प्रक्रिया में शामिल किया गया है।

  विशेष बात : महामारी संबंधी अनुसंधानों की इस प्रक्रिया में मौसम वैज्ञानिकों को भी इसीलिए शामिल किया गया है।उनका मानना है कि  महामारी पैदा होने का कारण यदि मौसम ही है तो मौसम के आधार पर ही महामारी के विषय में भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | इस दृष्टि से महामारी संबंधी अनुसंधानों में  मौसम संबंधी अनुसंधानों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है| इस प्रक्रिया में रोगों महारोगों (महामारी) से  संबंधित अनुसंधान मौसम संबंधी अनुसंधानों पर ही आधारित होंगे | इस अनुसंधान पद्धति को सफल बनाने के लिए सही सही मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होगी |मौसम संबंधी अनुसंधान जितने प्रतिशत सही होंगे महामारी से संबंधित अनुसंधान भी उतने ही प्रतिशत सच होंगे |ऐसी आशा की जानी चाहिए | यदि मौसम संबंधी अनुमान पूर्वानुमान सच नहीं होंगे तो उसके आधार पर किए गए महामारी से संबंधित अनुसंधान कैसे सच हो सकते हैं |
    इसप्रकार के अनुसंधानों की एक कठिनाई यह भी है कि अपनी कमियों के कारण इन अनुसंधानों के असफल होने का अर्थ यह लगा लिया जाता है कि मौसम और महामारी का कोई संबंध ही नहीं हुआ है जबकि इसका वास्तविक कारण यह होता है कि ऐसे अनुसंधानों को सही सही मौसम संबंधी अनुमान पूर्वानुमान आदि ही नहीं मिल पाते हैं जिनके आधार पर इन अनुसंधानों को किया जा रहा होता है | इसीलिए अनुसंधान की यह पद्धति   सफल नहीं हो पाई होती है |  संभवतः इसीलिए अनुसंधानों की इस प्रक्रिया में भारतीय  मौसम विज्ञान विभाग को भी सम्मिलित किया गया है ताकि यह परिस्थिति पैदा ही न हो | 
     इसमें ध्यान दिए जाने वाली विशेष बात यह है कि इस अनुसंधान प्रक्रिया में मौसम वैज्ञानिकों  को सम्मिलित कर लेने मात्र से इस लक्ष्य को हासिल करना संभव नहीं होगा अपितु ऐसे अनुसंधानों में वही मौसम वैज्ञानिक अपना योगदान दे सकते हैं जो सूखा वर्षाबाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में सही एवं सटीक पूर्वानुमान लगाने में सक्षम होंगे |ऐसे  मौसम वैज्ञानिकों को महामारी में मौसम संबंधी भूमिका का अध्ययन करने के लिए सम्मिलित किया जा रहा होगा जो योग्य ही होंगे इसमें कोई संशय नहीं है | वे अपनी योग्यता के बलपर मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में सही सटीक अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में सक्षम होंगे | 
   ये बात याद रखनी इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि पिछले एक दो दशकों में जितनी भी बड़ी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनके विषय में मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा पूर्वानुमान या तो बताए नहीं जा सके हैं या फिर जो बताए गए हैं वे सही नहीं निकले हैं |महामारी संबंधी अनुसंधानों में ऐसे मौसम वैज्ञानिकों  को सम्मिलित कर लेने से भी किसी सफलता की आशा नहीं रखी जानी चाहिए जिनके द्वारा मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में लगाए जाने वाले अनुमान पूर्वानुमान आदि सही न घटित होते हों |

                              मौसम संबंधी घटनाओं के नहीं बताए जा सके  पूर्वानुमान !

 

  मुंबई में आई भीषण बाढ़:2005 में मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में भीषण बाढ़ आई थी!|इसमें करीब 850 से ज्यादा लोगों की मौतें हुई थीं. अकेले मुंबई में मरने वालों की संख्या करीब 400 से ज्यादा थी | मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा इसके विषय में पूर्वानुमान बताए नहीं जा सके हैं |

केदारनाथ जी में भयंकर सैलाव : सन 2013 में 16 \17 जून की रात केदारनाथ जी में भयंकर सैलाव आया था | लाखों श्रद्धालुओं की आस्था के प्रतीक तीर्थस्थल केदारनाथ और इसके आसपास भारी बारिश, बाढ़ और पहाड़ टूटने से सबकुछ तबाह हो गया और हजारों लोग मौत के आगोश में समा गए थे। इसके  बिषय में मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा पहले से कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |

 जम्मू कश्मीर में आई भीषण बाढ़: सितंबर 2014 में मूसलाधार मानसूनी वर्षा के कारण भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर ने अर्ध शताब्दी की सबसे भयानक बाढ़ आई। यह केवल जम्मू और कश्मीर तक ही सीमित नहीं थी अपितु पाकिस्तान नियंत्रण वाले आज़ाद कश्मीर, गिलगित-बल्तिस्तान व पंजाब प्रान्तों में भी इसका व्यापक असर दिखा। 8 सितंबर 2014 तक, भारत में लगभग 200 लोगों तथा पाकिस्तान में 190 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। 450 गाँव जल समाधि ले चुके थे।मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा इस घटना की जानकारी किसी भी रूप में पहले से नहीं दी गई थी |

 भीषण वर्षा के कारण बनारस में प्रधानमंत्री जी की दो दो सभाएँ रद्द करनी पड़ीं :28 जून 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की वाराणसी में सभा होने वाली थी किंतु भीषण वर्षा के कारण उस सभा को रद्द करना पड़ा |वही सभी दूसरी बार 16 जुलाई 2015 को वर्षा से निपटने की अधिक तैयारियों के साथ आयोजित की गई वो भी भीषण वर्षा के कारण रद्द करनी पड़ी | लगातार घटित हुई इन दोनों घटनाओं के विषय मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया था |

मद्रास में भीषण बाढ़ : नवंबर 2015 में चैन्नई में भीषण बाढ़ एक महीने से अधिक समय तक रही थी !उसमें भी काफी जनधन की हानि हुई थी ,किंतु इनमें से किसी भी बाढ़ के बिषय में पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |

 2016 अप्रैल मई में आग लगने की भीषण दुर्घटनाएँ : अप्रैल मई जून आदि के महीनों में गर्मी तो हर वर्ष होती है किंतु  2016 के अप्रैल मई में आधे भारत में गरमी से संबंधित अचानक अलग प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगीं ! जमीन के अंदर का जलस्तर तेजी से नीचे जाने लगा बहुत इलाके पीने के पानी के लिए तरसने लगे | पानी की कमी के कारण ही पहली बार पानी भरकर दिल्ली से लातूर एक ट्रेन भेजी गई थी |गर्मी का असर केवल जमीन के अंदर ही नहीं था अपितु प्राकृतिक वातावरण में इतनी अधिक ज्वलन शीलता विद्यमान थी कि आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक घट रही थीं | यह स्थिति उत्तराखंड के जंगलों में तो 2 फरवरी 2016  से ही प्रारंभ हो गई थी जो  क्रमशः धीरे धीरे बढ़ती चली जा रही थी 10 अप्रैल 2016 के बाद ऐसी घटनाओं में बहुत तेजी आ गई थी ! ऐसा होने के पीछे का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था |इस वर्ष आग लगने की घटनाएँ इतनी अधिक घटित हो रही थीं इस बिषय में संबंधित वैज्ञानिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे उन्हें खुद कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था | अंत में आग लगने की घटनाओं से हैरान परेशान होकर 28 अप्रैल 2016 को बिहार सरकार के राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने ग्रामीण इलाकों में सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक खाना न पकाने की सलाह दी थी . इतना ही नहीं अपितु इस बाबत जारी एडवाइजरी में इस दौरान पूजा करने, हवन करने, गेहूँ  का भूसा और डंठल जलाने पर भी पूरी तरह रोक लगा दी गई थी |   इस बिषय में जब वैज्ञानिकों से पूछा गया कि इसी वर्ष ऐसा क्यों हो रहा है और यदि ऐसा होना ही था तो इसका पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका ?तो उन्होंने कहा कि इस बिषय में हमें स्वयं ही कुछ नहीं पता है कि इस वर्ष ऐसा क्यों हुआ !ये तो रिसर्च का बिषय है इसलिए ऐसे बिषयों पर अनुसंधान की आवश्यकता है |वैसे इसका कारण ग्लोबलवार्मिंग  हो सकता है | 

 असम में भीषण वर्षा और बाढ़ : इसी वर्ष में 13 अप्रैल 2016 से असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में भीषण वर्षा और बाढ़ का भयावह दृश्य था त्राहि त्राहि मची हुई थी | यह वर्षा और बाढ़ का तांडव 60 दिनों से अधिक समय तक लगातार चलता रहा था |इसके विषय में भी कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | 

 2018 के अप्रैल मई के हिंसक आँधी तूफान:  इस वर्ष के अप्रैल मई में ऐसी  घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं | 2 \3 मई की रात्रि में आए तूफ़ान और बिजली गिरने से पांच राज्यों में 124 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना में 400 लोग घायल भी हुए थे। सबसे ज्यादा नुकसान उत्तर प्रदेश में हुआ था। यहां 73 लोगों की जान चली गई थी जबकि 91 घायल हुए थे। सबसे ज्यादा मौतें आगरा क्षेत्र में हुई थीं। राजस्थान में 35 लोग मारे गए थे जबकि 206 लोग घायल हुए थे।" ऐसे तूफानों के बिषय में किसी को कुछ पता ही नहीं था मौसम वैज्ञानिकों को स्वयं कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि ऐसे बिषयों में क्या बोला जाए !इनके बिषय में कभी कोई पूर्वानुमान बताया ही नहीं जा सका था |

केरल में भीषण बाढ़ :3 अगस्त 2018 को मौसम विज्ञान विभाग की ओर से जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई उसमें भविष्यवाणी की गई थी कि अगस्त और सितंबर महीने में दक्षिण भारत में सामान्य वर्षा की संभावना है !जबकि 5 अगस्त से ही भीषण बारिश प्रारंभ हो गई थी जिससे केरल कर्नाटक आदि दक्षिण भारत में त्राहि त्राहि माही हुई थी | जिसके बिषय में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने स्वीकार भी किया कि यदि मौसम विभाग की भविष्यवाणी झूठी न निकली होती तो बाढ़ से जनता इतनी अधिक पीड़ित न हुई होती | इसके बिषय में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के महा निदेशक महोदय डॉ.के जे रमेश जी से एक टीवी चैनल ने पूछा तो उन्होंने कहा कि केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसलिए इसके बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | इसका कारण जलवायु परिवर्तन है | 

बिहार में आई भीषण बाढ़ :सितंबर 2019 में बिहार में आई भीषण बाढ़ के बिषय में कोई पूर्वानुमान बताने में मौसम विभाग असफल रहा था !मौसम पूर्वानुमान बताने वाले वैज्ञानिक लोग कुछ भी नहीं बता ही पा रहे थे और जो बता रहे थे वो गलत होते देखा जा रहा था | इस विषय में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने पत्रकारों से बात करते हुए स्वीकार किया था कि मौसम विभाग वाले लोग कुछ बता ही नहीं पा  रहे हैं जोबट रहे हैं वो गलत निकल रहा है | उनकी बातों में कोई स्पष्टया तथा स्थिरता  है | वर्षा के बिषय में वे सुबह कुछ कहते हैं दोपहर में कुछ दूसरा कह देते हैं और शाम होते होते कुछ और कहने लगते हैं | 

    1 अक्टूबर 2019 एनडीटीवी पर : "सीएम नीतीश कुमार के बाद अब केंद्रीय मंत्री ने भी बिहार में बाढ़ के लिए 'हथिया नक्षत्र' को बताया जिम्मेदार" पत्रकारों ने मुख्य मंत्री नीतीश कुमार जी से पूछा कि इस बाढ़ के बिषय में आप जनता से क्या कहना चाहेंगे तो नीतीश जी ने कहा कि मेरा मानना है कि हथिया नक्षत्र के कारण यह अधिक बारिश हो रही है | इसीप्रकार से केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे जी ने भी पत्रकारों के पूछने पर यही कहा था कि हथिया नक्षत्र के कारण ही बिहार में  अधिक बारिश हो रही है | मौसम विज्ञान पर विश्वास न करके ज्योतिष की नक्षत्र विद्या के ही गुण गाने लगे थे | भारतीय मौसम विज्ञान विभाग यदि मुख्यमंत्री जी को वर्षा के विषय स्पष्ट पूर्वानुमान उपलब्ध करवा सका होता तो वे इतना निराश क्यों होते ! 

 अत्यधिक बारिश हुई जिसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका : सन 2020 के अप्रैल मई में  इतनी अधिक बारिश हुई जितनी इन महीनों में पहले कभी नहीं हुई थी।इस समय बारिश होने के विषय में मौसम विभाग के द्वारा  बारिश होने के विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं बताया जा सका था |
                               घटनाओं के विपरीत निकलीं मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणियाँ !
9 अगस्त 2015 को 'नईदुनियाँ' में प्रकाशित : मौसम विभाग ने कहा था सूखा पड़ेगा, अब बारिश बनी मुसीबत :   "आखिर भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) कब सटीक जानकारी देना शुरू करेगा?129 साल से मौसम विभाग हर साल बारिश का पूर्वानुमान लगाए जा रहा है, बिना इस बात की चिंता किए कि भविष्यवाणी कितनी बार सटीक रही? इस साल भी यही हुआ। पहले 22 अप्रैल फिर 2 जून को कमजोर मानसून की भविष्यवाणी की गई। सूखे की आहट भांपने में हमेशा असफल रहे | विभाग ने इस बार सूखे की आशंका जता दी।हालांकि जून में हीमानसून अनुमान से 16 प्रतिशत अधिक बरस गया। अब गुजरात, पश्चिम बंगाल, ओडीशा, झारखंड और मध्यप्रदेश में हालात पानी-पानी हैं। ऐसे में सब यही पूछ रहे हैं कि आखिर भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) कब सटीक जानकारी देना शुरू करेगा?"
7 मई 2018 को दैनिक जागरण में प्रकाशित :"अगले दो दिन डराएगा मौसम, 13 राज्यों को चेतावनी जारी; आंधी-तूफान के खतरे से सहमे लोग !मौसम विभाग का दावा है कि आंधी की तीव्रता 7-8 मई के बीच बढ़ने की संभावना है। विभाग का यह भी दावा है कि यह तूफान केवल दिल्‍ली तक सीमित नहीं रहेगा। आसपास के राज्‍यों (पंजाब, हरियाणा, राजस्‍थान, हिमाचल प्रदेश और उत्‍तर प्रदेश) में भी इसका असर हो सकता है।"   गृह मंत्रालय की ओर से भी कहा गया है "जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के कई स्थानों में आंधी-तूफान और ओलावृष्टि के साथ बारिश हो सकती है। " 
 7 मई 2018 को 'आजतक' की साइट में प्रकाशित :"दिल्ली से मेरठ तक स्कूल बंद, राजस्थान-हरियाणा में अलर्ट जारी ! अगले 48 घंटे यानी मंगलवार और बुधवार को उत्तर भारत के कई राज्यों में लोगों को सतर्क रहने की चेतावनी दी गई है. हरियाणा में दो दिनों के लिए स्कूल बंद किए  गए हैं तो राजस्थान में भी दो दिनों के लिए अलर्ट जारी किया गया है दिल्ली सरकार ने अडवाइजरी में कहा है कि मंगलवार को शाम की पारी के स्कूल बंद रखे जाएंगे. स्थानीय मौसम विभाग और भारत सरकार के भू-विज्ञान मंत्रालय के हवाले से कहा गया है कि दिल्ली में दोपहर 3 बजे से शाम 7 बजे तक 50-50 किमी प्रति घंटे की तेजी से धूल भरी हवाएं चलेंगी और शाम 5.30 बजे यह तूफान अपने चरम पर हो सकती हैं !"
विशेष बात :7 और 8 मई में आँधी तूफ़ान :2018 में  7 और 8 मई को मौसम वैज्ञानिकों ने दिल्ली और उसके आस पास भीषण तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की थी बड़े जोर शोर से कर दी यह सुन कर कुछ प्रदेशों की भयभीत सरकारों के द्वारा अपने अपने प्रदेशों में स्कूल कालेज बंद कर दिए किंतु उन दो दिनों में हवा का एक झोंका भी नहीं आया !समाचार पत्रों के माध्यम से पता लगा कि इस बिषय का बाद में पीएमओ ने भी संज्ञान लिया था |इसके अतिरिक्त भी वैज्ञानिक लोगों ने भविष्यवाणियाँ करने के लिए जो कुछ तीर तुक्के लगाए वे भी पूरी तरह से गलत निकलते चले गए | 
    11अक्टूबर  2019- नागपुर से समाचार पत्र में प्रकाशित:  "पूर्वानुमान देने में मौसम वैज्ञानिक पूरी तरह असफल रहे। 1अगस्त से 18 सितंबर तक यानी करीब डेढ़ माह में 8 बार भारी बारिश नहीं हुई या बिल्कुल बारिश नहीं हुई, जबकि भारी बारिश होने की भविष्यवाणी की गई थी। मौसम की बिल्कुल विपरीत ही प्रतिक्रिया देखने को मिली। जब रेड अलर्ट या ऑरेंज अलर्ट की चेतावनी दी गई, तब धूप निकल आई और जब बारिश बंद होने की संभावना जताई गई, तो तेज फुहारों ने वैज्ञानिकों के विश्लेषण को गलत साबित कर दिया।कुल मिलाकर  मौसम विभाग की भविष्यवाणियाँ  लगातार गलत साबित हो रही हैं।"
9-अप्रैल- 2020 को दैनिक जागरण में प्रकाशित :इसमें वर्षा न होने की संभावना जताई गई और कहा गया कि 15 अप्रैल तक दिल्ली का अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा।- (अप्रैल मई में वर्षा ही होती रही इसलिए मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा बताया गया यह पूर्वानुमान भी सही नहीं निकला )
12 मई 2020 को 'हिंदुस्तान' में प्रकाशित : इस बार अप्रैल में इतनी बारिश हुई जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। अब मई की बारिश ने भी चौका दिया है। इन दो माह में अब तक कुल 51.4 मिमी बारिश हो चुकी है। मौसम विभाग की मानें तो अभी भी चक्रवाती हवाएं चलने और इसके साथ बारिश की संभावना बनी हुई है।मौसम के बदलाव ने इस बार मौसम विज्ञानियों को अचरज में डाल दिया है।
11 जुलाई 2021 को नवभारत में प्रकाशित :आईएमडी ने 13 जून को अपने पूर्वानुमान में कहा था कि दक्षिणपश्चिम मानसून 15 जून तक दिल्ली पहुंच जाएगा। इसके एक दिन बाद मौसम वैज्ञानिकों ने कहा कि इस क्षेत्र में मानसून के आने के लिए परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं।इसके बाद  आईएमडी ने एक जुलाई को कहा कि सात जुलाई तक मानसून के पहुँचने के लिए परिस्थितियाँ  अनुकूल हो सकती हैं, किंतु यह भी  अनुमान सही नहीं निकला !  
1नवंबर 2022 को अमर उजाला में प्रकाशित : दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने कहा कि  इस बार नवंबर के दौरान शीत लहर की स्थिति कम होगी। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि दक्षिण प्रायद्वीपीय भारत में नवंबर के दौरान सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना है। 
      2020 में तापमान घटने बढ़ने के विषय में की गई भविष्यवाणियाँ गलत निकलीं !
     2020 में सर्दी में कम होने की भविष्यवाणी की गई जो गलत निकली और मार्च अप्रैल में गर्मी अधिक होने की भविष्यवाणी की गई वह गलत निकली और मार्च अप्रैल मई तक वर्षात ही होती रही !इसके बाद गर्मी कम होने की भविष्यवाणी की गई किंतु जून से गर्मी इतनी अधिक शुरू हुई कि सितंबर में भी भीषण गरमी पड़ी और मार्च अप्रैल मई तक वर्षा होने के बाद भी 2020 को अधिक गर्मी वाला वर्ष माना गया !जबकि मौसम विभाग के द्वारा की जाती भविष्यवाणियाँ लगातार गलत निकलती रहीं !
   2020 संक्षेप में- 01दिसंबर 2019 को मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा सर्दी कम होने की भविष्यवाणी की गई !किंतु सर्दी  बहुत अधिक हुई मौसम विभाग की यह भविष्यवाणी गलत निकली | इसके बाद 28 फरवरी 2020 को मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा भविष्यवाणी की गई कि इस वर्ष गर्मी अधिक पड़ेगी ! भविष्यवाणी के विरुद्ध 15 मार्च 2020 तक वर्षा ही होती रही |इसके बाद 9 अप्रैल 2020 को मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा दोबारा भविष्यवाणी की गई  कि आने वाले सप्ताह में लोगों को झुलसाएगी गर्मी !गर्मी और तापमान में वृद्धि होगी  मौसमवैज्ञानिकों की इस भविष्यवाणी के विपरीत अप्रैल मई तक लगातार बारिश होती रही !इसलिए मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा की गई ये भविष्यवाणी भी गलत निकली ! इसके बाद 9 अप्रैल 2020 कोअधिक गर्मी होने संबंधी भविष्यवाणी में सुधार करते हुए 13 मई 2020 को एक नई भविष्यवाणी की गई जिसमे कहा गया -"इस बार गर्मी का मौसम असामान्य रहेगा और लोगों को सूरज के तपिश की मार कम सहन करना पड़ेगी।इस वर्ष ज्यादा गर्मी के आसार नहीं हैं !मौसम विभाग के अनुसार भीषण गर्म इलाकों में भी इस बार तापमान के सामान्य से कम रहने का अनुमान है।"यह भविष्यवाणी भी न केवल  गलत निकली अपितु इसके विपरीत घटनाएँ घटित होती चली गईं !  इस भविष्यवाणी के बिपरीत जून जुलाई अगस्त सितंबर तक गर्मी दिनोंदिन बढ़ती चली गई !सितंबर के महीन में गर्मी से व्याकुल लोग कहते सुने जा रहे थे -'सितंबर में पड़ रही अप्रैल-मई जैसी गर्मी!'
          2020  में सर्दी कम होने की भविष्यवाणी की गई जो गलत निकली !
01 दिसंबर 2019 को हिंदुस्तान में प्रकाशित : मौसम विभाग के महानिदेशक एम. महापात्र ने कहा कि दक्षिणी हिस्सों में न्यूनतम तापमान सामान्य से एक डिग्री तक ज्यादा रहने की संभावना है। जबकि देश के करीब-करीब सभी हिस्सों में सर्दियों में तापमान आधा डिग्री ज्यादा रहेगा। तीसरी महत्वपूर्ण भविष्यवाणी यह है कि उत्तर भारतीय राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान एवं दिल्ली में शीत लहर का प्रकोप कम रहेगा ! महापात्रा  ने कहा कि यह संकेत मिले हैं कि सर्द दिनों और शीत लहर चलने की घटनाओं में कमी आएगी।
    मौसम विभाग की इस भविष्यवाणी के बिपरीत सर्दी बहुत अधिक हुई और भविष्यवाणी गलत हुई -
1 फरवरी 2020 को दैनिक जागरण में प्रकाशित: दिसंबर 2019 ने सर्दी तो जनवरी 2020 ने तोड़ा बारिश का रिकॉर्ड ! गत दिसंबर माह में दिल्ली की सर्दी ने 118 साल का रिकॉर्ड तोड़ा तो जनवरी माह में बारिश का रिकॉर्ड टूट गया है।प्रादेशिक मौसम विज्ञान केंद्र, दिल्ली के प्रमुख कुलदीप श्रीवास्तव ने बताया कि इस जनवरी रिकॉर्ड बारिश हुई है ।
  सर्दियों के बिषय में  मौसम विभाग की गलत हुई भविष्यवाणी :सन 2019 \2020 की सर्दियों के बिषय में  मौसम विभाग की पुणे इकाई ने भी सामान्य से कम सर्दी का अनुमान व्यक्त किया था लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिए । इस पर पत्रकारों ने मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा कि सर्दी की दस्तक से पहले मौसम विभाग ने कहा था कि इस साल सर्दी सामान्य से कम रहेगी,(सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिए। पूर्वानुमानों में इतनी बड़ी गलती कि पूर्वानुमान सीधे सीधे इतने विपरीत चले गए |) 
  अब अपने द्वारा की हुई भविष्यवाणियों के गलत होने का अहसास हुआ ! 
    14 अगस्त 2020 को 'आजतक' की साइट में प्रकाशित : अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणियाँ गलत निकलीं :मौसम विभाग के डीजी मृत्युंजय महापात्रा ने कहा कि इस बार की सर्दियाँ  पहले के मुकाबले अधिक सर्द होंगी. इसका मुख्य कारण ला नीना कंडिशन हैं, शीतऋतु में अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की गई थी | (इस वर्ष जनवरी माह से ही तापमान बढ़ने लग गया था | ऐसा होने के पीछे का कारण जब उन भविष्यवक्ताओं से पूछा गया तब उन्होंने वही जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग को कारण बता दिया था )
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  2020 मार्च से मई तक गर्मी अधिक होने की भविष्यवाणी की गई जो गलत निकली !
28 फरवरी 2020 को अमर उजाला में प्रकाशित : "इस साल मार्च से मई तक ज्यादा झुलसाएगी गर्मी, लू भी बरपाएगी कहर: मौसम विभाग !ग्लोबल वार्मिंग और मौसम चक्र में बदलाव के कारण इस साल मार्च से मई तक भारत के अधिकतर हिस्सों में सामान्य से अधिक गर्मी पड़ेगी। मौसम विभाग ने कहा कि इस दौरान लू की स्थिति भी सामान्य से ज्यादा होगी।  (यह पूर्वानुमान सही नहीं निकला और अप्रैल मई में वर्षा ही होती रही ) 
दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई हिस्सों में मार्च के पहले 15 दिनों में रिकॉर्ड तोड़ बारिश और ओलावृष्टि हुई है.भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक के जे रमेश के मुताबिक़, "ये भारत के मैदानी भागों में होने वाली सबसे भीषण ओलावृष्टि थी जो कि एक असामान्य घटना थी | 
   2020 में मार्च से मई तक अधिक गर्मी होने की ये दोनों भविष्यवाणियाँ गलत निकलीं !
1 मई 2020 को 'हिंदुस्तान'  में प्रकाशित : "वर्षा ऋतु जैसी हुई इस बार अप्रैल-मई में बारिश" इस बार अप्रैल में इतनी बारिश हुई जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। अब मई की बारिश ने भी चौका दिया है। अप्रैल में मात्र 4.9 मिमी बारिश का औसत है लेकिन यह छह गुना से अधिक हो गई। मई माह में अब तक 19.6 मिमी बारिश हो चुकी है जो चौंकाने वाली है। अप्रैल और मई में अब तक कुल 51.4 मिमी बारिश हो चुकी है।
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  2020  मई के बाद गर्मी कम होने की भविष्यवाणी की गई वह भी गलत निकली !
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13 मई 2020 नई दुनियाँ में प्रकाशित  -इस बार असामान्य रहेगा गर्मी का मौसम, लोगों को राहत मिलने के आसार !मौसम विभाग के अनुसार इस बार गर्मी का मौसम असामान्य रहेगा और लोगों को सूरज के तपिश की मार कम सहन करनी  पड़ेगी।इस वर्ष ज्यादा गर्मी के आसार नहीं हैं !मौसम विभाग के अनुसार भीषण गर्म इलाकों में भी इस बार  तापमान के सामान्य से कम रहने का अनुमान है।  
    विशेष बात :प्रतिवर्ष मार्च से तापमान बढ़ने लगता है अप्रैल के उत्तरार्द्ध तक पहुँचते पहुँचते तो गर्मी काफी अधिक पड़ने लगती है | मई जून के महीने तो गरमी के होते ही हैं आधे जून के बाद तो मानसून आने की भविष्यवाणी कर दी जाती है | ऐसी परिस्थिति में आधे मई तक गर्मी का लगभग आधा समय बीत ही जाता है| ऐसे  समय में मौसमवैज्ञानिकों  के द्वारा तब  बताया जाना कि इस बार तापमान के सामान्य से कम रहने का अनुमान है। इसमें पूर्वानुमान क्या है और ऐसे पूर्वानुमान बताने के लिए वैज्ञानिकों की आवश्यकता कहाँ है तथा ऐसे पूर्वानुमानों से जनता को कितनी और कैसे मदद पहुँचाई जा सकती है |
यह भविष्यवाणी भी गलत निकली और सितंबर तक भीषण गर्मी होती रही !
    महामारी से बचाव के लिए जो आवश्यक उपाय करने हैं उनकी जानकारी करने के लिए कोई वैज्ञानिक आधार पूर्ण तर्कसंगत व्यवस्था अभी तक नहीं खोजी जा सकी है | कोरोना से मुक्ति दिलाने वाली औषधियों का निर्माण भी तभी संभव है जब महामारी को ठीक ठीक प्रकार से समझा जा सके|महामारी को अच्छी प्रकार से समझे बिना इससे बचाव के लिए उपाय खोजना या औषधि आदि उपचार खोजना संभव ही नहीं है |
       महामारी को ठीक ठीक प्रकार से समझने के लिए बहुत से वैज्ञानिकों ने मौसम संबंधी विविध प्रकार की घटनाओं को जिम्मेदार माना है | उन्हें लगता है कि महामारी को प्रभावित करने में मौसम की भूमिका भी हो सकती है | अक्सर मौसम बदलते समय रोग पैदा होते देखे जाते हैं | मौसम संबंधी वातावरण में अचानक आने वाले बदलावों से कई बार रोगों को पनपते देखा जाता है किंतु उन मौसमी परिवर्तनों का समाज को अनुभव भी है और सहने का अभ्यास भी है इसलिए लोग स्वतः अपने आहार बिहार खान पान पर संयम रखते हुए अपनी सुरक्षा कर लिया करते हैं कई बार कुछ औषधियों का भी सेवन करना पड़ता है |
     महामारी के लिए भी लगता है कि यह शायद मौसम संबंधी ही किसी अप्रत्यक्ष परिवर्तन का परिणाम हो |जो वैज्ञानिक अनुभवों अनुसंधानों से ही समझा जा सकता हो | इसके लिए महामारी वैज्ञानिकों को मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में सही सटीक अनुमान पूर्वानुमान आदि चाहिए होंगे |इस मदद की अपेक्षा मौसम वैज्ञानिकों से ही की जा सकती है |मौसम वैज्ञानिक लोग यदि मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में ही सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगा पाएँगे तो महामारी संबंधी संक्रमण के घटने बढ़ने या महामारी के पैदा और समाप्त होने में मौसम संबंधी भूमिका के विषय में अनुसंधान किया जाना संभव ही नहीं है |       ____________________________________  
                                        मौसम संबंधी अनुसंधानों पर आत्म मंथन 
      मौसमसंबंधी अनुसंधानों का उद्देश्य ही मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना होता है | उन पूर्वानुमानों से समाज एवं सरकारों को बहुत मदद मिल सकती है |किसानों को कृषि योजनाएँ बनाने में मदद मिलेगी | चिकित्सा वैज्ञानिकों को मौसम पर आश्रित संभावित रोगों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में बड़ी मदद मिलेगी| इन्हीं आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए मौसम संबंधी अनुसंधानों की परिकल्पना की गई है |  
     मौसम संबंधी ऐसी घटनाओं के विषय में यदि अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं किए जा सकेंगे या जो किए जाएँगे वे गलत निकलते रहेंगे तो उनके आधार पर लगाए जाने वाले अन्य विषय के अनुमान पूर्वानुमान आदि भी प्रभावित होंगे !ऐसा अक्सर देखा भी जाता है |संभव है कि चिकित्सा वैज्ञानिकों को समय से मौसम संबंधी सही अनुमान पूर्वानुमान आदि उपलब्ध करवाए जा सके होते  तो उनके आधार पर लगाए गए महामारी संबंधी अनुमान पूर्वानुमान आदि भी सही निकले होते | मौसम संबंधी सही अनुसंधानों के अभाव में केवल महामारी ही नहीं अपितु प्रकृति एवं जीवन से संबंधित कई और भी आवश्यक अनुसंधान या घटनाएँ प्रभावित हुई हैं | 
    2015 में भीषण वर्षा के कारण बनारस में प्रधानमंत्री जी की दो दो सभाएँ रद्द करनी पड़ीं | 2019 में  महाराष्ट्र में मौसम के कारण ही प्रधानमंत्री जी की सभा रद्द करनी पड़ी | 28 जून 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की वाराणसी में सभा होने वाली थी किंतु भीषण वर्षा के कारण उस सभा को रद्द करना पड़ा |वही सभा दूसरी बार 16 जुलाई 2015 को वर्षा से निपटने की अधिक तैयारियों के साथ आयोजित की गई किंतु यह भी अति वर्षा  के कारण रोक देनी  पड़ी  थी | 
    चिंता की बात तो यह है कि ऐसी सभाओं में भीषण वर्षा के कारण भारत के प्रधानमंत्री जी के बहुमूल्य समय का उपयोग नहीं किया जा सका | दूसरी चिंता की बात यह है कि प्रधानमंत्री जी की सभाओं का आयोजन मामूली बात नहीं होती है | इसके लिए बड़ी व्यवस्थाएँ बनानी पड़ती हैं जिन पर भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती है | इसकी सार्थकता तभी है जब कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न किए जा सकें |
   इसके बाद भी भीषण वर्षा के कारण आगे पीछे दो दो सभाएँ रद्द करनी पड़ीं ये बहुत बड़ी चिंता की बात इसलिए भी है कि जनता के खून पसीने की कठोर कमाई से प्राप्त टैक्स के पैसे जहाँ एक ओर मौसम पूर्वानुमान संबंधी जिन अनुसंधानों पर व्यय किए जाते हैं उसी जनता के पैसे दूसरी ओर प्रधानमंत्रियों मुख्यमंत्रियों आदि के सभा सम्मेलनों के आयोजनों पर खर्च हो रहे होते हैं |मौसम वाले मौसम संबंधी अनुमान पूर्वानुमान आदि न बता पावें या सही न बता पावें और जो बतावें वे गलत निकल जाएँ | इसी प्रकार से सरकारों के द्वारा सभा सम्मेलन आदि न आयोजित हो पावें या आयोजित होकर भी उन्हें रोकना या टालना पड़े तो दोनों तरफ से आर्थिक नुक्सान तो जनता का ही होता है |
   मौसम संबंधी ऐसे अनुसंधान जनता के आखिर किस काम आ सके |इस घटना में मौसम विभाग की सार्थकता क्या रही |  दोनों सभाओं के आयोजन पर खर्च की गई भारी भरकम धनराशि मौसम विभाग की निष्क्रियता के कारण जनता के किसी काम नहीं आ सकी | 
    इसी प्रकार से  सन 2016 के अप्रैल मई में घटित हुई परस्पर विरोधी दोनों घटनाओं के बिषय में वैज्ञानिकों से पत्रकारों ने पूछा कि इन दोनों घटनाओं के बिषय में पहले से कोई पूर्वानुमान क्यों नहीं बताया जा सका था | इस पर वैज्ञानिकों ने कहा कि असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में हो रही भीषण वर्षा और बाढ़ का कारण जलवायु परिवर्तन है तथा बिहार उत्तरप्रदेश राजस्थान मध्यप्रदेश महाराष्ट्र आदि में अधिक गर्मी एवं आग लगने की अधिक घटनाओं का कारण ग्लोबल वार्मिंग है|जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता | ऐसा कह देने मात्र से समाज को मदद कैसे पहुँचाई जा सकती है |
     ऐसे ही सन 2018 में पूर्वोत्तर भारत में बार बार आते रहे आँधी तूफानों से संबंधित एक  निजी टीवी चैनल में एक परिचर्चा हुई ,जिसमें भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के महा निदेशक महोदय डॉ.के जे रमेश जी से प्रश्न किया गया कि क्या कारण है कि आपका विभाग इतने भयंकर आँधी तूफानों के बिषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगा सका और जो लगाए भी गए वे गलत निकलते चले गए !इस पर डॉ.के जे रमेश जी ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसे तूफ़ान आ रहे हैं इसीलिए इनके बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पा रहा है | ये आँधी तूफ़ान अचानक आ जा रहे हैं पता ही नहीं लग पा रहा है | अगले दिन कई अखवारों में हेडिंग छपी थी -"चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"ऐसी बातें बोलकर मौसम वैज्ञानिक भले अपनी जिम्मेदारी से बच जाएँ किंतु ऐसी निष्क्रियता से समाज को लाभ पहुँचाने का उद्देश्य तो बाधित हो ही गया !

                              मौसम पूर्वानुमान लगाने की

 तैयारियों पर एक दृष्टि -

   वस्तुतः सन 1864 में चक्रवात के कारण कलकत्ते में हुई क्षति और 1866 और 1871 के अकाल के बाद, मौसम संबंधी विश्लेषण और संग्रह कार्य एक ढ़ांचे के अंतर्गत आयोजित करने का निर्णय लिया गया। नतीजतन, 1875 में 'भारतीयमौसमविज्ञानविभाग' की स्थापना इसलिए की गई थी ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएँ घटित होने से पहले उनके विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके ।जिससे जितना संभव हो उतना तो बचाव किया जा सके और जहाँ बचाव न हो पावे वहाँ आपदा प्रबंधन संबंधी तैयारियाँ आगे से आगे की जा सकें |
    भारतीय मौसम विभाग की स्थापना हुए लगभग डेढ़ सौ वर्ष बीतने जा रहे हैं अभी भी लगभग वही स्थिति है जो 1864 से पहले थी |डेढ़ सौ वर्षों का समय कोई कम तो नहीं  होता है |मौसम संबंधी पूर्वानुमानों किकसौटी पर यदि कसा जाए तो 'भारतीयमौसमविज्ञानविभाग' की बीते इन डेढ़ सौ वर्षों की उपलब्धियाँ क्या रही हैं ?
     पिछले कुछ दशकों में 'भारतीयमौसमविज्ञानविभाग' के द्वारा मानसून आने और जाने की तारीखों का पूर्वानुमान लगाया जाता रहा उसमें से आधे से अधिक गलत निकल जाते रहे !ऐसे अंदाजे तो आम तौर पर किसानों के द्वारा लगा लिए जाते हैं  जो कभी सही कभी गलत निकला करते हैं !' यही भारतीयमौसमविज्ञानविभाग' के द्वारा यदि किया जाएगा  तो ऐसे अनुसंधानों में वैज्ञानिकता कहाँ है और इनकी सार्थकता क्या है ?
     बीते डेढ़ सौ वर्षों में अभी तक मानसून आने और जाने की सही सही तारीखें निश्चित नहीं की जा सकीं हैं |1901 से 1940 तक के आँकड़ों के आधार पर मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा यह निष्कर्ष निकला गया कि मानसून के छँटने की शुरुआत 1 सितंबर से राजस्थान से होती है !उनका यह अनुमान सही नहीं निकला जिसे स्वीकार करते हुए फिर से 1971 से 2019 तक के आँकड़ों को आधार बनाया गया जिसके आधार पर मानसून छटने की तारीख 17 सितंबर तय की गई | अब तो अक्टूबर तक वर्षा होते देखी जा रही है तो संभव है कि कुछ वर्षों बाद मानसून के जाने की कोई तारीख अक्टूबर मास की ही चुननी  पड़े !इस प्रकार से घटनाएँ घटित होती जाएँगी | तारीखें बढ़ाई जाती रहेंगी !ऐसा ही मानसून आने के समय में किया जाता है |यही कला वर्षा आँधी तूफानों भूकंपों आदि के विषय में भी अपनाई जाती है | वायु प्रदूषण बढ़ने घटने के अभी तक आधारभूत वास्तविक कारण नहीं खोजे जा सके हैं तो उसके अनुमान पूर्वानुमान लगाने की उम्मींद कैसे की जा सकती है | यही कला महामारी के समय में भी अपनाई जाती रही है | 
     कुल मिलाकर  जैसा जो कुछ दीखता जाएगा यदि वही देख देखकर बताना है तब तो मौसम वैज्ञानिकों और आम जनता के अंदाजों में अंतर क्या रह जाएगा ! भूकंप और महामारी जैसी घटनाएँ उपग्रहों रडारों से नहीं दिखती हैं इसलिए उनके विषय में पहले ही हार मान ली गई है कि इनके विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है |उपग्रहों रडारों का मतलब क्या ? आखिर वे भी तो कैमरे ही हैं |कैमरों से देख देखकर जैसा होता जाएगा यदि वैसा ही बताना है तो वो तो समाज स्वयं भी देख ही रहा है | इसमें विज्ञान का उपयोग ही कहाँ है |इसके लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता ही क्या है?इससे उस समाज को  लाभ क्या होगा जो ऐसे अनुसंधानों से सही सही मौसम पूर्वानुमान पाने की आश  लगाए बैठा है | 
   महामारी संबंधी अनुसंधानों में भी यदि मौसमवैज्ञानिकों का योगदान लेना ही है तो इसके लिए वही मौसमवैज्ञानिक उपयोगी हो सकते हैं जो  मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में सक्षम हों | जो वैज्ञानिक मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगा पाते हैं अथवा जो लगाते भी हैं वो गलत निकल जाता है ऐसे लोगों को यदि महामारी संबंधित अनुसंधानों में सम्मिलित कर भी लिया जाता है तो इससे मौसम आधारित महामारी संबंधी सफलता की आशा लगाए जाने का आधार ही क्या है !
                मौसम को समझते समझते इतने वर्ष बीत गए फिर भी समझ में नहीं आया मौसम !
   मौसम को समझना ही अभी तक संभव नहीं हो पाया है तो मौसम संबंधी घटनाओं के द्वारा महामारी को समझा जाना कैसे संभव हो सकता है | महामारी जैसा इतना बड़ा संकट जब उपस्थित हुआ तब तक महामारी संबंधी अनुसंधान इतने सक्षम नहीं  हैं कि उनके द्वारा महामारी को समझना संभव हो |इसके लिए मौसम संबंधी अनुसंधानों का भी अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है |
     यही कारण है कि महामारी पर मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं ये अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है इस विषय में अभी तक वैज्ञानिकों के द्वारा ढुलमुल बातें बोली जाती रही हैं | तापमान बढ़ने घटने, वर्षा होने न होने एवं वायु प्रदूषण बढ़ने न बढ़ने का प्रभाव महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने पर पड़ता है या नहीं !इस विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा अभी तक स्पष्ट रूप से कुछ कहा नहीं जा सका है |
    इसके अतिरिक्त भी मौसम संबंधी पूर्वानुमानों की आवश्यकता महामारी के अतिरिक्त भी विभिन्न कार्यों में पड़ती है | वर्षा ऋतु के चार महीनों में से किस महीने में वर्षा कैसी होगी कृषि कार्यों के लिए यह बहुत उपयोगी एवं आवश्यक होता है | सभी प्रकार के मौसम संबंधी या प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित अनुमान पूर्वानुमान आदि पता लग जाने से मनुष्यजीवन की कठिनाइयाँ तो कम होती ही हैं  इससे उसे काफी सहयोग भी मिल जाता है |                  लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व  मौसम संबंधी कुछ बड़ी घटनाएँ घटित होने के कारण काफी अधिक मात्रा में जनधन की हानि हुई थी | उन्हीं से आहत होकर भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना की आवश्यकता समझी गई थी | लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं अभी तक सही सही दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान किसानों को उपलब्ध नहीं करवाया जा सका है | ये चिंता की बात होनी चाहिए | 
     किसान मार्च अप्रैल के महीने में एक फसल पूरी हो जाने के बाद जुलाई अगस्त में बोई जाने वाली दूसरी फसल के बिषय में योजना बनाते हैं | वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार फसलों का चयन किया जाता है उसी के हिसाब से ऊँचे नीचे आदि खेतों के हिसाब से इस वर्ष में किस प्रकार की फसल बोना हितकर होगा |इसके साथ ही वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार ही वे एक वर्ष के लिए आनाज भूसा आदि का संरक्षण करते हैं बाक़ी मार्च अप्रैल के महीने में ही फसल पूरी हो जाने पर खर्चे के लिए बेच लिया करते हैं | कृषिक्षेत्र के अतिरिक्त सैन्य आदि अन्य क्षेत्रों में भी दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है | 
    अल्पावधि मौसम पूर्वानुमान की स्थिति यह है कि इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान भावना का कोई विशेष योगदान नहीं होता है इसमें तो रडारों एवं उपग्रहों के सहयोग से जो घटना एक जगह घटित होते देख ली जाती है उसकी गति और दिशा के हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये इतने दिन में उस देश प्रदेश या जिले आदि में पहुँच सकती है | बीच में हवाओं का रुख बदल जाने से लगाया हुआ अंदाजा गलत हो जाता है | वैसे भी जो बादल जिधर जिधर जाते हैं सभी जगह तो नहीं बरसते हैं कुछ जगहों पर बरसकर वापस लौट जाते हैं | तूफानों चक्रवातों में ऐसे कैमरों से मिली तस्बीरें कई बार काम आ जाती हैं कभी नहीं भी आती हैं तो वर्षा संबंधी अल्पावधि भविष्यवाणियाँ भी गलत होती हैं ऐसा होने पर नुक्सान भी होता है | 
      कई बार कहीं वर्षा होना जब शुरू हो जाता है उसके साथ मौसम भविष्यवक्ता लोग भविष्यवाणी करने लग जाते हैं जैसे जैसे वर्षा होती चली जाती है वैसे वैसे  वे भी दो दो दिन बढ़ाते चले जाते हैं अभी दो दिन और बरसेगा लोग समझते हैं दो दिन बाद बंद हो जाएगा फिर कह दिया जाता है अभी तीन दिन और बरसेगा लोग सोचते हैं कि चलो तीन दिन और बरसेगा काम चला लेते हैं तो घर में पानी भर जाने के बाद भी लोग छत पर काम चलाने के लिए रह जाते हैं उसके बाद भी पानी बरसते रहता है तो ये कहते हैं तीन दिन और बरसेगा तब तक पानी छत के करीब आ चुका होता है ऐसी परिस्थिति में तब लोग घर छोड़कर कहीं जाने लायक भी नहीं रह जाते हैं और न छत पर ही रहने की परिस्थिति रह पाती है ! लोगों का सामान भी सड़ जाता है और खुद भी हादसे के शिकार होते हैं !
    मौसम पूर्वानुमान संबंधी  ऐसे तीरतुक्कों को मौसम संबंधी वैज्ञानिक पूर्वानुमान कैसे कहा जा सकता है और इसमें विज्ञान कहाँ होता  है ! 2015 के नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ का कारण कुछ ऐसा ही होना था | प्रशांत महासागर से चली बादलों की श्रृंखला जिस और जिस गति से जाती है उस गति से उस दिशा के हिसाब से अनुमान लगा लिया जाता है किंतु तब तक जितने बादल दिखाई पड़ रहे होते हैं उतने के बिषय में ही अंदाजा लगाया जा सकता है तीन दिन बाद भी यदि बादलों की श्रृंखला टूटती नहीं है तो तीन दिन और बरसेगा उसके बाद भी बादल दिखाई पड़ते रहें तो तीन दिन और बरसेगा ऐसे अंदाजे लगाए जाते रहते हैं | 
     ऐसे अनुमान यदि मौसम विज्ञान के आधार पर लगाए जा रहे होते तो बिना बादलों को देखे ही पहले से पता होता कि बादल कितने दिनों तक बरस सकते हैं | ऐसा विज्ञान महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में मदद कर सकता है किंतु ऐसा करने की योग्यता रखने वाले मौसम वैज्ञानिक कहाँ हैं जिन की योग्यता पर भरोसा करके महामारी से संबंधित अनुसंधान प्रारंभ किए जा सकते हैं |
            मौसम ही नहीं समझ में आया तो कैसे समझी जाएँगी मौसम के आधार पर महामारियाँ !
अलनीनो लानीना जैसी कल्पनाओं के बिषय में भी हमारा यही कहना है कि 2020-21 में लानीना जैसे लक्षणों का अनुभव जिनके द्वारा किया गया उन्होंने ही कहा इस वर्ष लानीना के कारण सर्दी अधिक पड़ेगी किंतु इस वर्ष तो जनवरी फरवरी से ही तापमान बढ़ने लग गया था | ऐसा होने का कारण पूछे जाने पर उन्हीं के द्वारा कहा गया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण यह अनुमान सही नहीं निकला ,किंतु ऐसा तो कभी भी किसी भी पूर्वानुमान के गलत निकल जाने पर  जिम्मेदारी से बचने के लिए कहा जा सकता है | ऐसे प्रकरणों में मौसम संबंधी भविष्यवाणी करने से पहले अलनीनो लानिना जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग जैसे प्रत्येक दृष्टिकोण से जाँच परख लिया जाना चाहिए | इसके बाद विश्वास पूर्वक भविष्यवाणी की जानी चाहिए जिसके गलत होने की संभावना कम से कम हो ,ताकि बाद में भविष्यवाणी गलत होने पर मौसम वैज्ञानिकों को लज्जित कर देने वाली इस प्रकार की  बातें न करनी पड़ें | विज्ञान के नाम पर  ऐसा अन्य घटनाओं के बिषय में भी देखा जा सकता है |  
       वैज्ञानिकों के दावों पर यदि विश्वास किया जाए तो दो चार दिन पहले का सही सही मौसम पूर्वानुमान न लगा पाने वाले वही लोग आज  के सैकड़ों वर्ष बाद घटित होने वाली संभावित प्राकृतिक घटनाओं के विषय में बड़ी बेबाकी से भविष्यवाणियाँ  किया करते  हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद में मौसमसंबंधी कैसी कैसी भयानक प्राकृतिक घटनाएँ घटित होंगी |इसके विषय में धड़ल्ले से भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं आखिर ऐसी भविष्यवाणियों का वैज्ञानिक आधार क्या होता है | मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा तापमान बढ़ते जाने के विषय में भी बार बार भविष्यवाणियाँ की जा रही  हैं | वायुप्रदूषण बढ़ने के विषय में भी वैज्ञानिक लोग बार बार भविष्यवाणियाँ करते देखे जा रहे हैं |उसके कारण भी बताते देखे जा रहे  हैं |
     वैज्ञानिकों की इस प्रकार की महीनों वर्षों दशकों एवं शतकों पहले की भविष्यवाणियाँ देख सुनकर उनकी भविष्यवाणियों पर भरोसा किया जाए तो अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों पर गर्व होता है कि हमारे विद्वान् वैज्ञानिक लोग आज के सैकड़ोंवर्ष बाद घटित होने वाली मौसम संबंधी संभावित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने में सक्षम हैं |वही वैज्ञानिक जब दो चार दिन पहले के पूर्वानुमान नहीं लगा पाते हैं या लगाते हैं जो गलत  निकल जाते हैं तब उनकी भविष्य संबंधी लंबी चौड़ी भविष्यवाणियों पर संशय होता है |
      ऐसी परिस्थिति में महामारी पैदा होने का कारण यदि मौसमी परिवर्तनों को मान लिया जाए या तापमान और वायु प्रदूषण के बढ़ने को ही मान लिया जाए तो  उसके विषय में महीनों वर्षों पहले पूर्वानुमान लगा लेने में हमारे वैज्ञानिक लोग कितने सक्षम हैं |सक्षम वैज्ञानिकों को मौसमी असंतुलन  के कारण पैदा होने वाली महामारी और उसकी बार बार आने जाने वाली लहरों से संबंधित पूर्वानुमान लगाने में उन वैज्ञानिकों को कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए |     
                   पूर्वानुमान गलत होने पर इसके वास्तविक कारण खोजे जाने चाहिए !
     जिन वैज्ञानिक प्रतीकों को आधार मानकर मानसून आने और जाने की तारीखों के बिषय में अनुसंधान करके जो पूर्वानुमान बताए जाते हैं वे पूर्वानुमान जितने प्रतिशत सच घटित होते हैं उतने प्रतिशत ही उस अनुसंधान प्रक्रिया को सफल माना जाना चाहिए | यदि उनकी सफलता का प्रतिशत 50 प्रतिशत से भी कम रहता है तो उसे वैज्ञानिक अनुसंधान मानना ठीक नहीं होगा क्योंकि पचास प्रतिशत तक तो उन लोगों के द्वारा लगाए गए तीरतुक्के भी कई बार सही निकल जाते हैं जो बिना किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया के आधार पर अनपढ़ों के द्वारा लगाए जाते हैं |  
         मानसून आने और जाने की तारीखों के बिषय में सही सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका इसके लिए आवश्यकता तो सही सही पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान खोजने की थी उसके आधार पर लगाया गया सही सही पूर्वानुमान जनता के काम तो आता किंतु वह तो किया नहीं जा सका बल्कि पूर्वानुमान न लगा पाने के कारण ही अब तारीखों में ही बदलाव करने की जरूरत समझ ली गई ! माना कि ऐसा करके भी कुछ वर्ष या कुछ दशक और इसी बहाने बिता लिए जा सकते हैं किंतु इस प्रकार से जनता की मौसम संबंधी आवश्यकताओं की आपूर्ति कैसे संभव है और मौसम पूर्वानुमान के नाम पर ऐसी कल्पित कहानियाँ सुनाकर समय आखिर कब तक पास किया जा सकेगा |कभी न कभी तो सच्चाई का सामना करना ही होगा कि किसकी लापरवाही के कारण मानसून के आने और जाने के बिषय में सही सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका या फिर अभीतक उस मौसम विज्ञान की खोज ही नहीं की जा सकी जिसके द्वारा ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं |मौसम विज्ञान मौसम विज्ञान का उद्देश्य वैज्ञानिक अनुसंधानों  के नाम पर उपग्रहों रडारों की मदद से बादलों की जासूसी करना मात्र नहीं  है |
       इसलिए अनुसंधानों को उलझाकर नहीं रखा जाना चाहिए अपितु वैज्ञानिक अनुसंधानों के क्षेत्र में पारदर्शिता स्पष्टवादिता सत्य स्वीकार्यता बहुत  आवश्यक है | भारतीय मौसम विज्ञान विभाग अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा बीते लगभग 145 वर्षों में मौसम पूर्वानुमान के बिषय में यदि कुछ भी नहीं कर पाया है तो उसे सच्चाई स्वीकार करने में हिचक नहीं होनी चाहिए और विकल्पों की तलाश होती रहनी चाहिए  |
    वर्षा आँधी तूफ़ान आदि के बिषय में जिन मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा जहाँ एक ओर तो भविष्य वाणी करने के बड़े बड़े दावे किए जाते हैं उन्हीं भविष्यवाणियों के गलत निकल जाने पर लज्जावश जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग जैसे बहाने बनाए जा रहे होते हैं |ये ढंग ठीक नहीं है |जलवायु परिवर्तन का इतना ही बड़ा प्रभाव है तो बाद में गलत होने से अच्छा है कि मौसम पूर्वानुमानों के नाम पर जानबूझकर झूठी अफवाहें फैलाई ही नहीं जानी  चाहिए |जितना सच लगे उतना ही बताया जाना चाहिए | 
   प्रकृति के स्वभाव को समझने की क्षमतावान वैज्ञानिकों के द्वारा ही प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली जैसी स्वास्थ्य संबंधी पूर्वानुमान प्रक्रिया को सफल बनाया जा सकता है |वर्तमान समय में महामारी या प्राकृतिक आपदाओं से प्राप्त अनुभवों की जनता को जब सबसे अधिक आवश्यकता होती है उस समय वैज्ञानिक बिल्कुल खाली हाथ खड़े होते हैं | वे उस संकट से बचाव के लिए कुछ कर क्यों नहीं पा रहे हैं | इसके लिए उनके द्वारा महामारी के स्वरूप परिवर्तन या जलवायु परिवर्तन होने को कारण के रूप में प्रस्तुत कर दिया जाता है | दूसरी बात ऐसे विषयों पर भविष्य में रिसर्च किए जाने की बात कह दी जाती है | महामारी या प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रही जनता का इन बातों से कोई भला नहीं होता है |उन्हें तो ऐसे अवसर पर मदद चाहिए होती है | 

  सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने पर एक नए प्रकार के रिसर्च की घोषणा करने का रिवाज सा चल पड़ा है |इसके तहत उस प्राकृतिक आपदा से संबंधित रिसर्च को बढ़ावा देने की घोषणा कर दी जाती है | इसके लिए कुछ फंड पास कर लिया जाता है कुछ सुपर कंप्यूटर खरीद लिए जाते हैं कुछ स्थानों पर उपग्रह रडारों आदि की अतिरिक्त व्यवस्था करने की घोषणा कर दी जाती है |

     भूकंप जैसी बड़ी घटनाओं के बाद कुछ स्थानों पर रिसर्च के नाम पर कुछ गड्ढे खोदे जाने लगते हैं कुछ जगहों पर जमीन के अंदर कुछ मशीने लगाईं जाने लगती हैं | जनता का ध्यान भटकाने के लिए ऐसा बहुत कुछ किया जाता है जिस प्रकार से अभी महामारी आई है तो सरकार के द्वारा एक ऐसी विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली विकसित करने की बात भी कहीं उसी प्रकार के रीति रिवाजों का निर्वहन मात्र तो नहीं है | 

   ऐसा हमें इसलिए भी सोचना पड़ रहा है क्योंकि 1864 में चक्रवात के कारण कलकत्ता में हुई क्षति तथा 1866 एवं 1871 के अकाल के बाद, मौसम संबंधी विश्लेषण और संग्रह कार्य एक ढ़ांचे के अंतर्गत आयोजित करने का निर्णय लिया गया। नतीजतन, 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुई थी लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं उस लक्ष्य को हासिल करने में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग आजतक आंशिक रूप से भी सफल नहीं हो पाया है |उपग्रहों रडारों की मदद से ऐसी घटनाओं की जासूसी कर लेना एक जुगाड़ मात्र है किंतु यह मौसम विज्ञान की उपलब्धि नहीं है | 

   ऐसी ढुलमुल परिस्थिति में मौसमसंबंधी अनुसंधानों के माध्यम से अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में असफल रहे लोगों को सम्मिलित करके प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली जैसी पूर्वानुमान प्रक्रिया को कैसे सफल बनाया जा सकता है ?

 कोलंबिया यूनिवर्सिटी के इनवॉयरमेंटल हेल्थ साइंसेज़ डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर मिकेला मार्टिनेज़ का जो बदलते मौसम के साथ किसी वायरस के स्वरूप में आने वाले बदलावों का वैज्ञानिक अध्ययन करती हैं.मिकेला मार्टिनेज़ का मानना है कि संक्रामक रोगों के ग्राफ में सालभर उतार-चढ़ाव आता रहता है.वो कहती हैं, "इंसानों में होने वाले हर संक्रामक रोग का एक ख़ास मौसम होता है. जैसे सर्दियों में फ्लू और कॉमन-कोल्ड होता है, उसी तरह गर्मियों में पोलिया और वसंत के मौसम में मीज़ल्स और चिकन-पॉक्स फैलता है. चूंकि सारे संक्रामक रोग मौसम के हिसाब से बढ़ते हैं, इसलिए ये माना जा रहा है कि कोरोना भी सर्दी में बढ़ेगा."कोरोना वायरस see....https://www.bbc.com/hindi/international-53762975                                              

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