महामारी मौसम के आधार पर ! 1008
मौसम के आधार पर लगाया जाएगा महामारी का पूर्वानुमान !
महामारी जैसे अत्यंत कठिन संकटकाल का सामना करने के लिए महामारी आने के विषय में पूर्वानुमान पता होना सबसे अधिक आवश्यक होता है ताकि बचाव की तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल सके | इसी उद्देश्य से महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर प्रयत्न किए जा रहे हैं |
जिस मौसम को समझकर जब जो भविष्यवाणी की गई उस समय उस मौसम का उस प्रकार का प्रभाव ही नहीं था | वर्षा या आँधी तूफ़ान से संबंधित भविष्यवाणियाँ गलत निकलते देखी जाती हैं !अलनीनो लानिना के आधार पर की गई भविष्यवाणियाँ गलत होती रहती हैं !जलवायु परिवर्तन के नाम पर की गई भविष्यवाणियाँ भी सही नहीं होती हैं !
महामारी को समझने के लिए किया जाएगा मौसम का अध्ययन !
22 दिसंबर 2020 को (दृष्टि) डेली न्यूज में प्रकाशित : सरकार के द्वारा एक ऐसी विशिष्ट 'प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली' (Early Health Warning System) विकसित की जा रही है, जिससे देश में किसी भी रोग के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकेगा।गौरतलब है कि इस अनुसंधान प्रक्रिया में भारतीय मौसम विभाग को भी सम्मिलित किया जा रहा है |यह अनुसंधान मौसम में आने वाले परिवर्तन और रोग की घटनाओं के बीच संबंधों पर आधारित है। ज्ञात हो कि ऐसे कई रोग हैं, जिनमें मौसम की स्थिति अहम भूमिका निभाती है।विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली एक ऐसी निगरानी प्रणाली है, जो त्वरित सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप को संभव बनाने के लिये ऐसे रोगों से संबंधित सूचना एकत्र करती है, जो भविष्य में महामारी का रूप ले सकते हैं।https://www.drishtiias.com/hindi/daily-news-analysis/early-health-warning-system
बताया जाता है कि प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली के आधार पर ऐसे रोगों से संबंधित सूचना एकत्र की जाती है, जो भविष्य में महामारी का रूप ले सकते हैं। इस प्रकार से मौसम की महत्ता समझते हुए मौसम वैज्ञानिकों को भी इस विशिष्ट प्रणाली के विकास अध्ययन और अनुसंधान प्रक्रिया में शामिल किया गया है।
मौसम संबंधी घटनाओं के नहीं बताए जा सके पूर्वानुमान !
मुंबई में आई भीषण बाढ़:2005 में मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में भीषण बाढ़ आई थी!|इसमें
करीब 850 से ज्यादा लोगों की मौतें हुई थीं. अकेले मुंबई में मरने वालों
की संख्या करीब 400 से ज्यादा थी | मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा इसके विषय
में पूर्वानुमान बताए नहीं जा सके हैं |
केदारनाथ जी में भयंकर सैलाव : सन 2013 में 16 \17 जून की रात केदारनाथ जी में भयंकर सैलाव आया था | लाखों श्रद्धालुओं की आस्था के प्रतीक तीर्थस्थल केदारनाथ और इसके आसपास भारी बारिश, बाढ़ और पहाड़ टूटने से सबकुछ तबाह हो गया और हजारों लोग मौत के आगोश में समा गए थे। इसके बिषय में मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा पहले से कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |
जम्मू कश्मीर में आई भीषण बाढ़: सितंबर 2014 में मूसलाधार मानसूनी वर्षा के कारण भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर ने अर्ध शताब्दी की सबसे भयानक बाढ़ आई। यह केवल जम्मू और कश्मीर तक ही सीमित नहीं थी अपितु पाकिस्तान नियंत्रण वाले आज़ाद कश्मीर, गिलगित-बल्तिस्तान व पंजाब प्रान्तों में भी इसका व्यापक असर दिखा। 8 सितंबर 2014 तक, भारत में लगभग 200 लोगों तथा पाकिस्तान में 190 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। 450 गाँव जल समाधि ले चुके थे।मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा इस घटना की जानकारी किसी भी रूप में पहले से नहीं दी गई थी |
भीषण वर्षा के कारण बनारस में प्रधानमंत्री जी की दो दो सभाएँ रद्द करनी पड़ीं :28
जून 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की वाराणसी में सभा होने वाली
थी किंतु भीषण वर्षा के कारण उस सभा को रद्द करना पड़ा |वही सभी दूसरी बार 16 जुलाई 2015 को वर्षा से निपटने की अधिक तैयारियों के साथ आयोजित की गई वो भी भीषण वर्षा के कारण रद्द करनी पड़ी | लगातार घटित हुई इन दोनों घटनाओं के विषय मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया था |
मद्रास में भीषण बाढ़ : नवंबर 2015 में चैन्नई में भीषण बाढ़ एक महीने से अधिक समय तक रही थी !उसमें भी काफी जनधन की हानि हुई थी ,किंतु इनमें से किसी भी बाढ़ के बिषय में पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |
2016 अप्रैल मई में आग लगने की भीषण दुर्घटनाएँ : अप्रैल मई जून आदि के महीनों में गर्मी तो हर वर्ष होती है किंतु 2016 के अप्रैल मई में आधे भारत में गरमी से संबंधित अचानक अलग प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगीं ! जमीन के अंदर का जलस्तर तेजी से नीचे जाने लगा बहुत इलाके पीने के पानी के लिए तरसने लगे | पानी की कमी के कारण ही पहली बार पानी भरकर दिल्ली से लातूर एक ट्रेन भेजी गई थी |गर्मी का असर केवल जमीन के अंदर ही नहीं था अपितु प्राकृतिक वातावरण में इतनी अधिक ज्वलन शीलता विद्यमान थी कि आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक घट रही थीं | यह स्थिति उत्तराखंड के जंगलों में तो 2 फरवरी 2016 से ही प्रारंभ हो गई थी जो क्रमशः धीरे धीरे बढ़ती चली जा रही थी 10 अप्रैल 2016 के बाद ऐसी घटनाओं में बहुत तेजी आ गई थी ! ऐसा होने के पीछे का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था |इस वर्ष आग लगने की घटनाएँ इतनी अधिक घटित हो रही थीं इस बिषय में संबंधित वैज्ञानिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे उन्हें खुद कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था | अंत में आग लगने की घटनाओं से हैरान परेशान होकर 28 अप्रैल 2016 को बिहार सरकार के राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने ग्रामीण इलाकों में सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक खाना न पकाने की सलाह दी थी . इतना ही नहीं अपितु इस बाबत जारी एडवाइजरी में इस दौरान पूजा करने, हवन करने, गेहूँ का भूसा और डंठल जलाने पर भी पूरी तरह रोक लगा दी गई थी | इस बिषय में जब वैज्ञानिकों से पूछा गया कि इसी वर्ष ऐसा क्यों हो रहा है और यदि ऐसा होना ही था तो इसका पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका ?तो उन्होंने कहा कि इस बिषय में हमें स्वयं ही कुछ नहीं पता है कि इस वर्ष ऐसा क्यों हुआ !ये तो रिसर्च का बिषय है इसलिए ऐसे बिषयों पर अनुसंधान की आवश्यकता है |वैसे इसका कारण ग्लोबलवार्मिंग हो सकता है |
असम में भीषण वर्षा और बाढ़ : इसी वर्ष में 13 अप्रैल 2016 से असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में भीषण वर्षा और बाढ़ का भयावह दृश्य था त्राहि त्राहि मची हुई थी | यह वर्षा और बाढ़ का तांडव 60 दिनों से अधिक समय तक लगातार चलता रहा था |इसके विषय में भी कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था |
2018 के अप्रैल मई के हिंसक आँधी तूफान: इस वर्ष के अप्रैल मई में ऐसी घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं | 2 \3 मई की रात्रि में आए तूफ़ान और बिजली गिरने से पांच राज्यों में 124 लोगों की
मौत हो गई थी। इस घटना में 400 लोग घायल भी हुए थे। सबसे ज्यादा नुकसान
उत्तर प्रदेश में हुआ था। यहां 73 लोगों की जान चली गई थी जबकि 91 घायल हुए
थे। सबसे ज्यादा मौतें आगरा क्षेत्र में हुई थीं। राजस्थान में 35 लोग
मारे गए थे जबकि 206 लोग घायल हुए थे।"
ऐसे तूफानों के बिषय में किसी को कुछ पता ही नहीं था मौसम वैज्ञानिकों को
स्वयं कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि ऐसे बिषयों में क्या बोला जाए !इनके
बिषय में कभी कोई पूर्वानुमान बताया ही नहीं जा सका था |
केरल में भीषण बाढ़ :3 अगस्त 2018 को मौसम विज्ञान विभाग की ओर से जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई उसमें भविष्यवाणी की गई थी कि अगस्त और सितंबर महीने में दक्षिण भारत में सामान्य वर्षा की संभावना है !जबकि 5 अगस्त से ही भीषण बारिश प्रारंभ हो गई थी जिससे केरल कर्नाटक आदि दक्षिण भारत में त्राहि त्राहि माही हुई थी | जिसके बिषय में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने स्वीकार भी किया कि यदि मौसम विभाग की भविष्यवाणी झूठी न निकली होती तो बाढ़ से जनता इतनी अधिक पीड़ित न हुई होती | इसके बिषय में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के महा निदेशक महोदय डॉ.के जे रमेश जी से एक टीवी चैनल ने पूछा तो उन्होंने कहा कि केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसलिए इसके बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | इसका कारण जलवायु परिवर्तन है |
1 अक्टूबर 2019 एनडीटीवी पर : "सीएम
नीतीश कुमार के बाद अब केंद्रीय मंत्री ने भी बिहार में बाढ़ के लिए
'हथिया नक्षत्र' को बताया जिम्मेदार" पत्रकारों ने मुख्य मंत्री नीतीश
कुमार जी से पूछा कि इस बाढ़ के बिषय में आप जनता से क्या कहना चाहेंगे तो
नीतीश जी ने कहा कि मेरा मानना है कि हथिया नक्षत्र के कारण यह अधिक बारिश
हो रही है | इसीप्रकार से केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार
चौबे जी ने भी पत्रकारों के पूछने पर यही कहा था कि हथिया नक्षत्र के कारण
ही बिहार में अधिक बारिश हो रही है | मौसम विज्ञान पर विश्वास न करके
ज्योतिष की नक्षत्र विद्या के ही गुण गाने लगे थे | भारतीय मौसम विज्ञान विभाग यदि मुख्यमंत्री जी को वर्षा के विषय स्पष्ट पूर्वानुमान उपलब्ध करवा सका होता तो वे इतना निराश क्यों होते !
मौसम पूर्वानुमान लगाने की
तैयारियों पर एक दृष्टि -
सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने पर एक नए प्रकार के रिसर्च की घोषणा करने का रिवाज सा चल पड़ा है |इसके तहत उस प्राकृतिक आपदा से संबंधित रिसर्च को बढ़ावा देने की घोषणा कर दी जाती है | इसके लिए कुछ फंड पास कर लिया जाता है कुछ सुपर कंप्यूटर खरीद लिए जाते हैं कुछ स्थानों पर उपग्रह रडारों आदि की अतिरिक्त व्यवस्था करने की घोषणा कर दी जाती है |
भूकंप जैसी बड़ी घटनाओं के बाद कुछ स्थानों पर रिसर्च के नाम पर कुछ गड्ढे खोदे जाने लगते हैं कुछ जगहों पर जमीन के अंदर कुछ मशीने लगाईं जाने लगती हैं | जनता का ध्यान भटकाने के लिए ऐसा बहुत कुछ किया जाता है जिस प्रकार से अभी महामारी आई है तो सरकार के द्वारा एक ऐसी विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली विकसित करने की बात भी कहीं उसी प्रकार के रीति रिवाजों का निर्वहन मात्र तो नहीं है |
ऐसा हमें इसलिए भी सोचना पड़ रहा है क्योंकि 1864 में चक्रवात के कारण कलकत्ता में हुई क्षति तथा 1866 एवं 1871 के अकाल के बाद, मौसम संबंधी विश्लेषण और संग्रह कार्य एक ढ़ांचे के अंतर्गत आयोजित करने का निर्णय लिया गया। नतीजतन, 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुई थी लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं उस लक्ष्य को हासिल करने में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग आजतक आंशिक रूप से भी सफल नहीं हो पाया है |उपग्रहों रडारों की मदद से ऐसी घटनाओं की जासूसी कर लेना एक जुगाड़ मात्र है किंतु यह मौसम विज्ञान की उपलब्धि नहीं है |
ऐसी ढुलमुल परिस्थिति में मौसमसंबंधी अनुसंधानों के माध्यम से अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में असफल रहे लोगों को सम्मिलित करके प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली जैसी पूर्वानुमान प्रक्रिया को कैसे सफल बनाया जा सकता है ?
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