समय महामारी 2-1-2025



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समयविज्ञान !

       विज्ञान का अर्थ किसी विषय का विशेष ज्ञान होता है |इसलिए  सबसे पहले समयविज्ञान अर्थात समय की शक्ति एवं समय के संचार को समझने के लिए गंभीर प्रयत्न किए जाने चाहिए | इसके बिना न तो किसी घटना को सही सही समझा जा सकता है और न ही सही पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं |   

    इसलिए समय की समझ प्रत्येक व्यक्ति को होनी चाहिए |समय के अतिरिक्त बाक़ी जितने भी प्रकार के विज्ञान हैं | वे समय के ही आधीन हैं | किसी भी कार्य को करने के लिए प्रयत्न तो किए जा सकते हैं किंतु परिणाम समय के अनुसार ही प्राप्त होते हैं |प्रयत्न और समय दोनों के संयोग से ही सफलता मिलती है|किसी कार्य में सफलता  मिलने का समय पता न हो तो कई कई बार प्रयत्न करके समय का परीक्षण करते रहना होता है| जब समय अच्छा आता है तब सफलता मिल जाती है |

     वैज्ञानिकों के द्वारा कुछ अनुसंधान बड़े विश्वास पूर्वक प्रारंभ किए जाते हैं | उनमें बहुत संसाधन लगते हैं | बहुत धन लगता है |अत्यंत परिश्रम पूर्वक कार्य करने के बाद भी प्रयत्न असफल होते देखे जाते हैं | कई बार असफल होने के बाद एक बार सफलता मिलती है | इसका मतलब यह  ही नहीं है कि जो प्रयत्न असफल हुए उनके  करने में कोई कमी रह गई थी प्रत्युत इसका कारण यह भी हो सकता है कि उस समय उस कार्य के सफल होने का समय ही न आया हो ,जब सफल होने का समय आया तब सफलता मिली | 

   कुछ लोग सफल होने के लिए बहुत परिश्रम करते हैं ,फिर भी सफल नहीं हो पाते हैं | उन्हें सफलता मिलनी है या नहीं | इसका निर्णय उस व्यक्ति के अपने अच्छे या बुरे समय एवं उस कार्य के होने या न होने के समय के अनुसार ही होता है |  

     चिकित्सक चिकित्सा करते हैं किंतु किसी को स्वस्थ करने की जिम्मेदारी नहीं लेते हैं|उन्हें ये पता होता है कि रोगी का स्वस्थ होना या न होना रोगी के अपने समय के अनुसार ही निश्चित होता है| ऐसे ही किसी रोगी के आपरेशन से पहले उसके परिजनों से लिखवा लिया जाता है| इसका मतलब ये नहीं है कि अयोग्य चिकित्सक ऑपरेशन करेंगे या उन्हें रोगी के स्वस्थ होने में संशय है | वस्तुतः उन्हें ये विश्वास होता है कि इस आपरेशन का परिणाम क्या होगा | ये उस रोगी के समय के आधार पर निश्चित होगा | समय संचार को समझे बिना उस परिमाण का पता लगा पाना संभव नहीं है |  

    किसी चिकित्सालय में बहुत सारे एक जैसे रोगियों की चिकित्सा की जाती है| उस चिकित्सा का परिणाम चिकित्सा के अनुसार न मिलकर उन रोगियों के अपने अपने समय के अनुसार मिलता है| इसी लिए कुछ रोगी स्वस्थ होते हैं कुछ अस्वस्थ रहते हैं कुछ की मृत्यु हो जाती है|जिस रोगी का जब जैसा समय होता है चिकित्सा का उस पर वैसा प्रभाव पड़ता है |  

     किसी प्राकृतिकआपदा से बहुत सारे लोग एक जैसे प्रभावित होते हैं,किंतु उनमें से कुछ लोगों को खरोंच भी नहीं लगती कुछ लोग घायल होते हैं जबकि कुछ लोगों की मृत्यु हो जाती है | उस प्राकृतिकआपदा से एक जैसा प्रभावित होने पर भी परिणाम अलग अलग दिखाई पड़ने का कारण उन सबका अपना अपना समय होता है | 

    चिकित्सालयों का निर्माण तो रोगियों को स्वस्थ करने के लिए होता है,उसमें शवगृहों का निर्माण किए जाने का कारण समय का ही भय है | प्रयत्न तो रोगियों को स्वस्थ करने के लिए किए जाएँगे किंतु यदि परिणाम प्रयत्नों के अनुरूप न मिलकर रोगियों के अपने अपने समय के अनुसार मिलते हैं | जिन लोगों का समय ही मृत्यु का चल रहा होता है | उन पर चिकित्सा का प्रभाव पड़ेगा ही उनका जीवन पूरा होगा ही| किसका समय कैसा चल रहा है इसकी जानकारी न होने के कारण चिकित्सालयों में  शवगृहों का निर्माण किया जाता है | 

    कोरोना जैसी महामारी के आने पर संक्रमित केवल वही लोग होते हैं जिनका अपना समय खराब चल रहा होता है !अन्यथा बाक़ी लोग उन्हीं परिस्थितियों में रहते हुए उन्हीं संक्रमितों के साथ उठते बैठते खाते पीते सोते जागते भी संक्रमित नहीं होते हैं |  

    शिक्षा के क्षेत्र में भी समय की बहुत बड़ी भूमिका होती है| बहुत परिश्रम करने के बाद भी बहुत विद्यार्थी सफल नहीं हो पाते हैं| शिक्षक और विद्यार्थी दोनों ही सफल होने के लिए बहुत परिश्रम करते हैं किंतु इसके बाद भी अनेकों विद्यार्थियों को असफल होते देखा जाता है | उसका कारण उनमें से जिस विद्यार्थी का जैसा समय चल रहा होता है |  वैसा उन्हें परिणाम मिलता है | 

    कुछ लड़के लड़कियाँ एक दूसरे के जिन गुणों बात व्यवहार सुंदरता आदि से प्रभावित होकर एक दूसरे से प्रेम करते हैं फिर विवाह भी कर लेते हैं | कुछ समय साथ रहने के बाद उनकी एक दूसरे से अरुचि होने लगती है | वे धीरे धीरे एक दूसरे से घृणा करने लगते हैं फिर विवाह विच्छेद हो जाता है | कुछ लोग तो एक दूसरे के शत्रु तक बन जाते हैं |इसमें विशेष बिचार करने योग्य बात यह है कि एक दूसरे की जिन अच्छाइयों से प्रभावित होकर वे दोनों एक दूसरे से प्रभावित हुए थे | वे सारी अच्छाइयाँ उन दोनों में उस समय भी वैसी ही विद्यमान थीं जब उन दोनों एक दूसरे से घृणाकरते हुए विवाह विच्छेद  किया था | इसलिए उनके एक दूसरे से मिलने और बिछुड़ने का कारण उन दोनों के गुण दुर्गुण न होकर प्रत्युत उन दोनों का अपना अपना समय ही है | जब तक समय एक दूसरे के अनुकूल चलता रहा तब तक वे एक दूसरे से जुड़े रहे और जैसे ही समय बदलकर एक दूसरे के प्रतिकूल चलने लगा वैसे ही वे दोनों एक दूसरे से अलग हो जाते हैं | 

     कुल मिलाकर कर किसी कार्य का बनना बिगड़ना प्रयत्न और समय के आधार पर निश्चित होता है | जिस प्रकार से कुछ घास फूस के बीज मार्च अप्रैल के महीने में खेतों में झड़ जाते हैं | खेतों में पड़े पड़े अपने अंकुरित होने की प्रतीक्षा किया करते हैं | बरसात में भीगने पर भी वे अंकुरित नहीं होते हैं | अक्टूबर नवंबर में उनके अंकुरित होने का समय होता है | उस समय के आने पर अपने आप ही अंकुरित होने लगते हैं | ऐसे ही आम के बृक्ष में कितना भी खाद पानी लगातार देते रहा जाए लेकिन उनमें बौर बसंत का समय आने पर ही लगता  है | ऐसे ही परिश्रम कितना भी क्यों न कर लिया जाए किंतु सफलता समय आने पर ही मिलती है |इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को समय की समझ होनी ही चाहिए,अन्यथा बार बार निरर्थक प्रयत्न करते रहना पड़ता है | 

     जिस प्रकार से कहीं जाने के लिए कोई ट्रेन पकड़नी हो तो ट्रेन कब आएगी यह जानने के लिए या तो स्टेशन पर पहुँचकर ट्रेन के आने की तब तक प्रतीक्षा करते रहनी पड़ती है जब तक ट्रेन न आवे या फिर रेलवे समयसारिणी देखकर ट्रेन के आने का समय पता लगाकर उसीसमय स्टेशन पर पहुँचे | जो समय ट्रेन के आने का हो तो ट्रेन की प्रतीक्षा में बहुत समय प्रयत्न पूर्वक निरर्थक नहीं बर्बाद करना पड़ता है| इसी प्रकार से समय की जानकारी यदि हो तो कार्य समय पर ही प्रारंभ कर लिया जाता है | सफलता के लिए बार बार प्रयत्न नहीं करते रहना पड़ता है | 

                                     समय को समझना ही है सबसे बड़ा विज्ञान |
  समाज के तेजी से रोगी होने का कारण यदि प्रतिरोधक क्षमता की कमी को माना जाए तो जिस साधन संपन्नवर्ग का खान पान रहन सहन आगे से आगे औषधि सेवन आदि सबकुछ स्वास्थ्य के अनुकूल ही होता है| इसका निर्णय उनके पारिवारिक चिकित्सक लेते हैं |  जन्म से लेकर सारा जीवन चिकित्सकों की देख रेख में ही बीतता है | उस वर्ग में प्रतिरोधक क्षमता की कमी होने का कारण क्या है | इस वर्ग के अधिक रोगी होने का कारण क्या रहा है | 

    दूसरा संसाधन विहीन वर्ग जो हमेंशा अभावों में ही जीवन जीता रहा|मलिन बस्तियों में रहन सहन अभावयुक्त खानपान रहा | इस वर्ग को जहाँ जैसा जो कुछ मिलता रहा | वो वही खाकर पले बढ़े | उसमें ऐसी प्रतिरोधक क्षमता कैसे तैयार हुई कि वो वर्ग महामारी से  उतना  रोगी  नहीं हुआ |       

   कोरोनामहामारी आने के कुछ वर्ष पहले से विभिन्नप्रकार की प्राकृतिकआपदाओं एवं मनुष्यकृत हिंसक घटनाओं कुछ देशों के आपसी युद्धों आंदोलनों मार्ग दुर्घटनाओं आतंकीघटनाओं से बड़ी संख्या में लोग मृत्यु को प्राप्त होते देखे जा रहे थे |इनमें बहुत लोगों की मृत्यु होते देखी जा रही थी | उन मौतों के लिए उन उन युद्धों या दुर्घटनाओं को जिम्मेदार मान लिया जाता रहा है | मौतों का क्रम बढ़ते बढ़ते बहुत अधिक बढ़ गया | इसके बाद धीरे धीरे मौतों की संख्या घटने लगी | धीरे धीरे विराम लगता जा रहा था | 

    इन मौतों में एक विशेष देखी गई कि जब तक प्राकृतिकआपदाओं ,मनुष्यकृत हिंसक घटनाओं, कुछ देशों के आपसी युद्धों, आतंरिक हिंसक आंदोलनों, मार्ग दुर्घटनाओं, आतंकीघटनाओं में लोगों की मृत्यु होती रही,महारोग ( महामारी ) फैलने पर  लोगों की मृत्यु होने लगी तब तक लोगों की मृत्यु होने के लिए उन उन घटनाओं को जिम्मेदार मान लिया जाता रहा है | इसके बाद एक समय ऐसा भी आया जब लोग बिना रोगी हुए बिना किसी दुर्घटना से पीड़ित हुए ही उठते बैठते हँसते खेलते सोते जागते नाचते गाते अभिनय करते मृत्यु को प्राप्त होते देखे जा रहे थे | छोटे छोटे बच्चे बूढ़े जवान आदि बिना किसी कारण के मृत्यु को प्राप्त हो रहे थे | 

     समय की समझ के अभाव में इसी समय इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मौतें होने के वास्तविक कारण को खोजा नहीं जा सका | मौतों के साथ घटनाओं  को चिपकाया जाता रहा |लोग  जबतक संक्रमित होकर मृत्यु को प्राप्त होते रहे तब तक तो उन्हें महामारी से होने वाली मौतें माना जाता रहा किंतु जब बिना किसी दुर्घटना या रोग के भी जब लोगों की मौतें होती जा रही थीं तब ये भ्रम भी टूट गया कि मौतों का कारण महामारी ही है |

                                              समय  की समझ का अभाव है या जलवायु परिवर्तन !

        समय के संचार एवं उसके प्रभाव को समझे बिना या सम्मिलित किए बिना प्राकृतिक घटनाओं के विषय में जो अनुसंधान किए जाते हैं | उनके परिणाम न तो विश्वसनीय होते हैं और न ही उनसे उस लक्ष्य की पूर्ति होती है,जिसके लिए वे अनुसंधान किए जाते हैं | ऐसे अनुसंधान बिना किसी निष्कर्ष पर पहुँचे ही रोक दिए जाते हैं | जो उन घटनाओं के विषय में होने वाली निरर्थक चर्चा के काम आते हैं |

     भूकंपों के विषय में किए जाने वाले अनुसंधानों से यदि ये पता लगा भी लिया जाए कि किस  भूकंप का केंद्र कहाँ था कितनी गहराई पर था कितनी तीव्रता थी | भूमिगत प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप आया था या भूमिगत ऊर्जा बाहर निकलने के दबाव से भूकंप आया था | ऐसे काल्पनिक किस्से कहानियों को जान लेने से भूकंप संबंधी आपदा से होने वाली जनधन हानि को कैसे कम किया जा सकेगा | भूकंप संबंधी अनुसंधानों को करने का लक्ष्य तो उससे होने वाली जनधन हानि को रोकना या कम करना ही है | 

     कुल मिलाकर समयबिहीन अनुसंधानों के नाम पर होता बहुत कुछ है लेकिन उनसे होता कुछ नहीं है |ऐसे अनुसंधानों  से न तो उन घटनाओं के विषय में कुछ पता लग पाता है और न ही उन घटनाओं के विषय में लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान ही सही निकल पाते हैं | ये भी पता लगाना संभव नहीं हो पाता है कि उन संकटों से निपटने के लिए क्या उपाय किए जाएँ या जो उपाय किए जा रहे हैं वे क्या सही दिशा में हो रहे हैं या नहीं | ये भी पता नहीं लग पाता है | ऐसे मनगढंत काल्पनिक कारणों के आधार पर बोला तो बहुत कुछ जा सकता है किंतु उसे तर्कसंगत  ढंग से स्थापित नहीं किया जा सकता है | ऐसे अनुसंधानों से  समाज की मदद कैसे की जा सकती है | 

   कुल मिलाकर सदियों से अनुसंधान होते आ रहे हैं | ऐसे अनुसंधानों पर भारी भरकम धनराशि खर्च होती है ,किंतु अनुसंधानों के आधार पर अभी तक घटनाओं को समझना ही संभव नहीं हो पा रहा है | 

     उपग्रहों रडारों से आकाश में बादल उड़ते दिखाई पड़े तो अंदाजा लगा लिया जाता है कि कहीं वर्षा हो सकती है | वे जितनी गति से जिस ओर जाते दिखे उसी आधार पर कल्पना कर ली गई कि ये कब कहाँ पहुँच सकते हैं | उसी हिसाब से वर्षा होने के विषय में अंदाजा लगा लिया जाता है कि अमुक देश प्रदेश में वर्षा हो सकती है | ऐसे ही उपग्रहों रडारों से आकाश में आँधी तूफ़ान दिखाई पड़े तो उनकी गति और दिशा के अनुसार ये अंदाजा लगाया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँच सकते हैं |

       महामारी में भी ऐसे ही जुगाड़ों से काम चलाया जा रहा है |अचानक बड़ी संख्या में लोग रोगी होने लगे और औषधियों से लाभ न मिल पा रहा हो तो महामारी मान ली जाती है |अधिक लोग संक्रमित होने लगे तो महामारी का वेग अधिक मान लिया जाता है और कम लोग संक्रमित हुए तो महामारी का वेग कम मान लिया जाता है| संक्रमितों की संख्या समाप्त होने लगी तो महामारी समाप्त मान ली जाती है | जो सामने घटित होता दिखाई पड़ा यदि उसे ही मानना है तो अनुसंधानों की आवश्यकता ही क्या बचती है |

     ऐसे जुगाड़ों को विज्ञान नहीं कहा जा सकता है | ये विज्ञान तो तब होते जब उपग्रहों रडारों से देखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती |केवल अनुसंधानों के आधार पर ही महीनों वर्षों पहले यह पूर्वानुमान लगा लिया जाता कि अमुक वर्ष के अमुक महीने के अमुक दिनों में वर्षा या आँधी तूफान जैसी घटना घटित हो सकती है या महामारी आ सकती है | सूर्यचंद्र ग्रहणों के विषय में ऐसे ही तो सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है तो ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में यह क्यों नहीं किया जा सकता है | 

     कुछ प्राकृतिक घटनाओं को देखकर  ही यदि कुछ दूसरी प्राकृतिक घटनाओं को समझा जाना है तो अनुसंधानों की आवश्यकता ही क्या है | जो घटनाओं को समझने एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए किए जाते हैं |

                                                     समय और घटनाओं के संबंध    

     समय की समझ न होने से घटनाओं के वास्तविक कारणों को समझना संभव नहीं हो पा रहा है| इसलिए काम बिगड़ने या असफल होने के लिए या संबंध बिच्छेद होने के लिए कुछ ऐसे कारणों की कल्पनाएँ कर ली जाती हैं | जिनका उन घटनाओं से कोई संबंध ही नहीं होता है | इसीलिए ऐसे गलत कारणों को सच मानकर इनके आधार पर जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाते हैं | वे गलत निकल जाते हैं| इनके गलत होने के लिए वे आधार विहीन कल्पित कारण जिम्मेदार होते हैं |मौसम संबंधी अनुमान पूर्वानुमान आदि  गलत निकले तो उनके लिए जलवायु परिवर्तन  एवं महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि  गलत निकले तो महामारी के  स्वरूप परिवर्तन को जिम्मेदार बताया जाता है |ऐसी बातों के समर्थन में न कोई तर्क होते हैं न कोई प्रमाण न विज्ञान  और न ही अनुसंधान | इनके विषय में कोई परीक्षण भी नहीं होते हैं | अनुसंधानों के नाम पर ऐसे ही कुछ अन्य घटनाओं के विषय में भी भ्रमात्मक कारणों को स्थापित किया जाता है |  

     जिस प्रकार से कमल के खिलने और सूर्योदय होने का समय एक ही होता है |दोनों घटनाएँ प्राकृतिक रूप से अपने अपने समय पर घटित हो रही होती हैं | समय की समझ न होने के कारण इन दोनों घटनाओं को एक दूसरे के साथ जोड़ दिया जाता है| कहा जाता है सूर्योदय होने पर कमल खिलता है |

     विशेष बात ये है कि सूर्योदय होने का कारण कमल का खिलना  है या कमल खिलने का कारण सूर्योदय होना है | सूर्योदय होने और कमल के खिलने का आपस में कोई संबंध है भी या नहीं | दोनों घटनाओं के एक समय पर घटित होने के कारण  एक दूसरे से संबंध जोड़कर देखा जाता है |

      ऐसे ही कहा जाता है कि समुद्र में उठने वाली लहरों का संबंध चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण शक्ति से है। ऐसा पूर्णिमा और अमावस्या से अगली रात को होता है। इन समयों में पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य की एक रेखा में होने से  पृथ्वी और चंद्रमा की गुरूत्वाकर्षण शक्ति मिलकर समुद्र की लहरों पर प्रभाव डालकर उन्हें  उपर उठाती हैं।

      विशेष बात ये है कि ये घटना पूर्णिमा और अमावस्या  रूपी समय पर घटित होती है| इसलिए ऐसी घटना के घटित होने का कारण समय ही हो सकता है|इसके लिए यदि चंद्रमा के आकर्षण को कारण माना जाए तो ये तर्कसंगत इसलिए नहीं लगता है , क्योंकि कई बार पूर्णिमा  और अमावस्या जैसी तिथियों में भी वर्षा होते देखी जाती है | इन तिथियों में चंद्रमा यदि यदि समुद्र के जल को आकर्षित कर सकता है तो कई बार इन्हीं तिथियों में बादलों से झरने वाली छोटी छोटी बूँदों को चंद्रमा अपनी ओर आकर्षित क्यों नहीं कर सकता है | 

    समय की समझ के अभाव में ऐसी बहुत सारी घटनाएँ एक दूसरे से जोड़कर देखी जाने लगी हैं | यदि ये कहा जाने लगे कि कमलों के खिलने पर सूर्य उगता है तो इसे किस आधार पर गलत मान लिया जाएगा | 

     इसीसमय अचानक तेजी से लोग रोगी होने लगे |ऐसा होने का कारण कुछ लोगों ने महामारी को माना तो कुछ दूसरे वर्ग ने लोगों के रोगी होने का कारण प्रतिरोधक क्षमता की कमी को माना | इससे शंका हुई कि लोगों के रोगी होने का कारण महामारी का वेग था या लोगों में प्रतिरोधक क्षमता की कमी | समय की समझ के अभाव में ये पता ही नहीं लगाया जा सका कि ये महामारी है या प्रतिरोधक क्षमता की कमी | 

                                          प्रकृति के संगीत को समझने की आवश्यकता !

   जिसप्रकार से कोई तबला बादक गीत की लय के अनुसार भिन्न भिन्न प्रकार से अलग अलग स्थानों पर अलग अलग प्रकार से थापें मारता है | कहीं अँगुली कहीं अँगूठा तो कहीं हथेली से कहीं तेज कहीं धीमी थाप मारता है | इसमें एक रूपता न होती है और न ही हो सकती है |इसलिए तबले पर अगली थाप कहाँ कैसे लगेगी! इसका पूर्वानुमान लगाने के लिए  गीत और उसकी लय समझनी होगी जिसके साथ तबला बजाया जा रहा होता है |  

     इसलिए इतने बार तबले पर अँगुली अँगूठा या हथेली तेज या धीमे मारी जा चुकी है | इसका मतलब इसका यही क्रम होता होगा | आगे भी ऐसा ही होता रहेगा| ऐसी निराधार कल्पना करके उसी के आधार पर  कुछ भविष्यवाणियाँ  कर दी जाएँ कि तबलावादक अगली बार कहाँ कैसी थाप मारेगा तो ये भविष्यवाणियाँ सही नहीं निकलेंगी|ऐसी भविष्यवाणियाँ यदि गलत निकल जाएँ तो ये गलती आधार विहीन काल्पनिक भविष्यवाणी करने वाले की है न कि तबलावादन का जलवायुपरिवर्तन  है |     

     जिस प्रकार से  गीत की लय को समझे बिना केवल तबलावादक  के द्वारा तबले पर मारी जा रही थापों  के आधार पर  तबलावादक अगली बार कहाँ कैसी थाप मारेगा |इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है | उसी प्रकार से प्रकृति का भी अपना एक संगीत है |इसमें समय का संचार ही गीत है| विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ ही थापें हैं| जिसप्रकार से तबले की थापें समझने के लिए गीत के लय उतार चढ़ाव आदि को समझना आवश्यक है | उसी प्रकार से भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बादलों चक्रवातों बज्रपातों आदि को समझने एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए समय के संचार को समझना आवश्यक है | जिस प्रकार से तबले की थापों को समझने के लिए संगीतज्ञ होना आवश्यक है | उसीप्रकार से प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए समय वैज्ञानिक होना आवश्यक है | जिस प्रकार से तबले पर पड़ रही थापों को देखकर उनके आधार पर इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता कि अगली थाप कहाँ कैसी पड़ेगी | इसीप्रकार से केवल प्राकृतिक घटनाओं को देखकर उन्हीं के आधार पर कुछ दूसरी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है | महामारी संक्रमितों को देखकर उनके आधार पर महामारी के विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सकता है | 

   जिसप्रकार से तबले पर पड़ रही थापों को देखकर ये नहीं कहा जा सकता कि इसके बाद वाली थापें भी इसी प्रकार की इन्हीं स्थानों पर लगेंगी|ऐसे ही प्राकृतिक  घटनाओं के विषय में ऐसा कुछ नहीं कहा जा सकता है कि ये घटनाएँ अभी जैसी घटित हो रही हैं | वैसी ही आगे भी घटित होती रहेंगी | इसके आधार पर कोई भविष्यवाणी कर दी जाए | यदि वो सच न निकले तो इसके लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार मान लिया जाए | ये ठीक नहीं है | 

                                                       समय और प्रकृति 

   समय हमेशा बदलता रहता है |समय के साथ साथ संपूर्ण ब्रह्मांड में बदलाव होते रहते हैं | समय के अनुसार प्रकृति और जीवन में बदलाव होते हैं |समय बदलने के साथ प्रकृति भी बदलते दिखाई पड़ती है|

     समय जब जैसा बदलता है | उस समय प्रकृति भी उसीप्रकार का स्वरूप धारण करने लगती है| शिशिर का अर्थ होता है ठंडा और ऋतु का अर्थ होता है समय !शिशिरऋतु का अर्थ होता है ठंडासमय | शिशिरऋतु में सूर्य की किरणें मंद पड़ने लगती हैं| तापमान काफी गिर जाता है|कोहरा पाला आदि आकाश को ढक लेते हैं|लोग सर्दी से काँपने लगते हैं |इस प्रकार से शिशिरऋतु के नाम के अनुसार ही संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण बनता चला जाता है |  प्रकृति भी समय के अनुरूप व्यवहार करने लगती है |इससे यह  प्रमाणित होता है कि प्रकृति में हो रहे सभी बदलावों (घटनाओं) का कारण समयका प्रभाव ही है |

     ग्रीष्म शब्द का अर्थ होता है उष्ण (गरम) ऋतु का अर्थ है समय ! ग्रीष्मऋतु का अर्थ होता है उष्ण अर्थात गरम समय ! ग्रीष्मऋतु के प्रभाव से तापमान काफी बढ़ जाता है |हवाएँ भी गरम चलने लगती हैं| ग्रीष्मऋतु में हवाओं के गरम होने से उनकी गति बढ़ जाती है |इसीलिए  आँधी तूफ़ान आने की घटनाएँ अधिक घटित होने लग जाती हैं | नदियों तालाबों आदि का पानी सूख जाता है | गरमऋतु के प्रभाव से संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण होने से ये विश्वास होता है कि समय के अनुरूप प्रकृति भी अपना स्वरूप बदलने लगती है | 

    ऐसे ही वर्षाऋतु का अर्थ है बारिश का समय ! इसीलिए वर्षाऋतु के प्रभाव से आकाश में  बादलों का आना जाना प्रारंभ हो जाता है| बादलों की काली काली घटाएँ घिरने लग जाती हैं| बादल बरसने लगते हैं | उससे नदियाँ तालाब आदि भर जाते हैं | बाढ़ आने लगती है |तापमान कम होने लगता है| वर्षाऋतु में तरह तरह के रोग पैदा होने लगते हैं | ऐसा प्राकृतिक वातावरण तब बना जब प्रकृति पर वर्षाऋतु  के समय का प्रभाव पड़ा तो संपूर्ण प्रकृति उसी प्रकार का स्वरूप धारण करती चली गई | 

      इसप्रकार से समय के प्रभाव से प्रकृति में परिवर्तन होते हैं ये प्रमाणित हो जाता है | इसलिए प्रकृति में घटित होने वाली उन सभी घटनाओं के लिए समय को जिम्मेदार माना जाना चाहिए | जिनके घटित होने में मनुष्यकृत प्रयत्न सम्मिलित न हों | 

     जिसप्रकार की घटनाएँ जब घटित होती दिखाई दें तब उस प्रकार का समय चल रहा होगा ऐसा विश्वास किया जाना चाहिए | कब किस प्रकार का समय चल रहा है |  यह पता लगाने के लिए दो ही मार्ग हैं या तो गणितविज्ञान के द्वारा अच्छे  बुरे समय की पहचान की जाए या फिर अच्छी बुरी प्राकृतिक घटनाओं को देखकर अच्छे बुरे समय की पहचान की जाए | इसमें गणितविज्ञान के द्वारा समय संबंधी जो  जानकारी मिलती है | उसके आधार पर अच्छे बुरे समय के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता  है | अच्छे बुरे समय के विषय में पूर्वानुमान लगते ही समय के प्रभाव से घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं के विषय में भी सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान  लगाना संभव हो पाएगा | 

    वात पित्त और कफ के असंतुलित होते ही प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटित होने लगती हैं यदि यह असंतुलन शरीर में बन जाए तो शरीर रोगी होने लगते हैं | वर्षाऋतु ही वात है ,ग्रीष्मऋतु  ही पित्त है और शिशिरऋतु  ही कफ है |ये ऋतुएँ  समय स्वरूपा हैं | समय को समझने के लिए गणित ही सर्वोत्तम विकल्प है |गणित के द्वारा ही भविष्य के अच्छे बुरे समय के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए | उसी के अनुसार प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |  

     जिसप्रकार से ऋतुओं के आने जाने का समय निश्चित है| अमावस्या पूर्णिमा का समय  निश्चित है|सूर्यादि ग्रहों के उदय और अस्त होने का समय निश्चित है| प्राकृतिक घटनाएँ अपनी अपनी ऋतुओं में घटित होती हैं उनका भी अपना अपना समय निश्चित है|इसीप्रकार से भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बादलों चक्रवातों बज्रपातों आदि के भी आने जाने का समय  भी निश्चित होता है|जिस घटना के घटित होने का जब समय आता है तब वो घटना घटित हो जाती है |अंतर इतना है कि ऋतुओं तथा अमावस्या पूर्णिमा आदि तिथियों एवं ग्रहों के उदय अस्त होने के समय को गणितविज्ञान के द्वारा अनुसंधानपूर्वक खोज लिया गया है | इसलिए इनके विषय में आगे  से आगे  पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |सूर्य चंद्र ग्रहणों  के  विषय में भी सैकड़ों  वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | 

   भूकंपों आँधी तूफानों वर्षा बादलों चक्रवातों बज्रपातों आदि से संबंधित समय की पहचान आदिकाल में ही कर ली गई थी |उस युग में ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा भी लिए जाते थे | वर्तमान समय में ऐसी घटनाओं के विषय में समय आधारित अनुसंधानों की परंपरा ही विलुप्त होती जा रही है | इसी कारण प्रकृति एवं जीवन से संबंधित घटनाएँ अचानक घटित होते दिखाई दे रही हैं |आवश्यकता ऐसी घटनाओं के घटित होने के निश्चित समय को खोजे जाने की है न कि इनके घटित होने के लिए किसी जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहराने की है | 

                                         प्रकृति पर समय के प्रभाव की पहिचान !       

      कोरोनामहामारी के समय भी ऐसा ही होते देखा गया था | कोरोनामहामारी से संक्रमितों की संख्या कभी बहुत अधिक बढ़ जाती थी और कभी बहुत कम हो जाती थी | ऐसा लगता था कि कोरोना अब समाप्त हो गया | कुछ महीनों बाद संक्रमितों की संख्या फिर बढ़ने लग जाती थी | ऐसे ही कुछ दिनों में संक्रमण का बहुत अधिक बढ़ जाना और कुछ दिनों में बहुत कम होने लगते देखा जाता था |अचानक बढ़ने घटने या महामारी के समाप्त होने का क्या कारण है |

    महामारीसंक्रमण बढ़ने के लिए कोविड  नियमों के न पालन को जिम्मेदार ठहराया जाता था,किंतु कोविड  नियमों का पालन तो महामारी आने के पहले भी नहीं किया जाता था | ऐसा भी नहीं है कि कोविड नियमों का पालन करने ही महामारी को समाप्त किया जा सका हो | उसके बाद कोविड नियमों का पालन लगातार किया जा रहा हो |इसलिए महामारी जनित संक्रमण उसके बाद न बढ़ पा रहा हो |  

   ऐसे ही हेमंत और शिशिरऋतु में कुछ क्षेत्रों में वायु प्रदूषण कुछ दिन अधिक बढ़ता है | इसके बाद कुछ दिन तक सामान्य रहता है | कुछ दिन फिर काफी अधिक बढ़ जाता है | उसके बाद  फिर सामान्य हो जाता है | इसके बार बार घटने बढ़ने का कारण क्या हो सकता है | 

     चीन या ईरान जैसे जिन देशों में दिवाली नहीं मनाई जाती है| उन देशों में भी उन्हीं दिनों में वायुप्रदूषण बढ़ता है | दिवाली के कुछ दिन होते हैं | वह वर्ष में एक बार आती है | पराली कुछ समय जलाई जाती है | वायुप्रदूषण तो उसके बाद भी बढ़ता है| जिससमय ऐसी घटनाएँ नहीं घटित होती हैं | इसलिए वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण यदि दिवाली या पराली होती तो उसके बाद वायु प्रदूषण नहीं बढ़ना चाहिए,किंतु उसके बाद भी बढ़ता है | बढ़ता तो अन्य ऋतुओं में भी है |उद्योग ,वाहन और निर्माण कार्य तो बारहों महीने चलते हैं |वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण यदि ये होते तो हर ऋतु में एक जैसा बढ़ा रहना चाहिए था | ईंटभट्ठे वर्षाऋतु को छोड़कर आठ महीने चलते हैं | वायु प्रदूषण  बढ़ने का कारण यदि उन्हें माना जाए तो सर्दी और गर्मी के पूरे समय में एक जैसा वायुप्रदूषण बढ़ा रहना चाहिए | वायु प्रदूषण के कुछ दिनों में अधिक बढ़ने और कुछ दिनों में सामान्य रहने का कारण क्या है |  कुछ दिनों में वायुप्रदूषण बहुत अधिक बढ़ा रहता है | कुछ दिन सामान्य रहता है | उसके बाद फिर बढ़ जाता है |सर्दी के अतिरिक्त कुछ अन्य ऋतुओं में भी इन्हीं कुछ दिनों में वायु प्रदूषण बढ़ जाता है | वो सर्दी की ऋतु के जितना भले न बढ़ता हो लेकिन उन कुछ दिनों में भी बढ़ तो अवश्य जाता है |विशेष बात यह है कि उन कुछ दिनों में बढ़ता है  तो  सभी जगह बढ़ता है | 

   शिशिर ग्रीष्म एवं वर्षा आदि ऋतुएँ सर्दी गर्मी एवं वर्षा होने के लिए जानी जाती है| इसमें विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि शिशिर आदि ऋतुओं में उनका प्रभाव एक जैसा नहीं दिखाई पड़ता है |ऋतुओं के प्रभाव का समय और स्तर घटता बढ़ता रहता है | 

    ऋतुओं के शुरू और समाप्त होने का समय निश्चित है | इसलिए ऋतुओं का प्रभाव भी ऋतुओं के के साथ ही शुरू और समाप्त हो जाना चाहिए,किंतु ऐसा कभी कभी ही होता है | कभी कभी ऋतुओं  का समय शुरू होने के पहले से ही ऋतुओं के समाप्त होने के बाद तक ऋतु प्रभाव चलते देखा जाता है | ऐसे ही कई बार ऋतुएँ शुरू होने के काफी बाद में ऋतुप्रभाव प्रारंभ होता है और ऋतुओं के समाप्त होने से पहले ही ऋतु  प्रभाव समाप्त हो जाता है | इस प्रकार से अपनी अपनी ऋतुओं में भी कभी कभी निर्धारित समय से कम या अधिक समय तक सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का प्रभाव रहते देखा जाता है |

     कई बार ऋतुओं के लिए निर्धारित समय में ही ऋतुओं का प्रभाव काफी अधिक बढ़  या घट जाता है | कभी सर्दी बहुत अधिक पड़ती है तो कभी बहुत कम पड़ती है |ऐसे ही गर्मी  वर्षा  आदि का भी प्रभाव काफी अधिक बढ़ते या घटते देखा जाता है | 

    कई बार ऋतुओं का प्रभाव कुछ दिन बहुत अधिक बढ़ जाता है फिर सामान्य हो जाता है| उसके बाद कुछ दिनों के लिए ऋतुप्रभाव फिर बहुत अधिक बढ़ जाता है |उसके बाद फिर कम हो जाता है |एक एक ऋतु  में ऐसा कई कई बार होते देखा जाता है |  शिशिर (सर्दी) ऋतु में सर्दी कुछ दिन बहुत अधिक बढ़ती है | कुछ दिन सामान्य होती है | कुछ दिन फिर बढ़ जाती है | कुछ दिन फिर सामान्य रहती है | ऐसे ही ग्रीष्मऋतु में गर्मी के प्रभाव में उतार चढ़ाव होते देखा जाता है |वर्षा ऋतु में वर्षा भी किसी दिन बहुत अधिक होती है | किसी दिन बिल्कुल नहीं होती | किसी दिन सामान्य होती है और किसी दिन फिर बहुत अधिक होती है | 

         इसमें विशेष बात ये है कि ऋतुओं में ऋतु कम प्रभाव हो ये तो ठीक है |कुछ दिन बहुत अधिक ऋतुप्रभाव रहने एवं कुछ दिन सामान्य रहने तथा फिर कुछ दिन बहुत अधिक रहने का कारण क्या हो सकता है |  

     विशेष बात ये है कि जिस प्रकार से वर्ष के कुछ महीनों में सर्दी अधिक होने का कारण शिशिर ऋतु अर्थात समय है | उसी प्रकार से शिशिर ऋतु में कुछ दिन सर्दी बहुत अधिक बढ़ने का कारण भी समय ही है | ऐसे ही सर्दी बढ़ाने वाला यह समय ग्रीष्म(गर्मी)की  ऋतु में भी आता है | उस दिन या  तो वर्षा हो जाती है या कुछ अन्य कारणों से या बिना किसी कारण केवल समय के प्रभाव से इन दिनों में अन्य दिनों की अपेक्षा तापमान कम हो जाता है | 

    ऐसा ही वर्ष के कुछ महीनों में गर्मी अधिक होने का कारण ग्रीष्म(गर्मी)ऋतु अर्थात समय का प्रभाव है |ग्रीष्म(गर्मी)ऋतु के कुछ दिनों में गर्मी विशेष अधिक बढ़ जाने का कारण भी समय का ही प्रभाव है| यही कुछ दिन जब सर्दी की ऋतु में आते हैं | सर्दी के भी उन दिनों में तापमान अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ बढ़ा रहता है | 

     ऐसे ही वर्षा के कुछ महीनों में वर्षा अधिक होती है | इसका कारण वर्षाऋतु  अर्थात समय है | वर्षा ऋतु के महीनों में ही कुछ दिनों में वर्षा  बहुत अधिक होती है | यही कुछ दिन जब दूसरी ऋतुओं में आते हैं उनमें भी कुछ वर्षा होते देखी जाती है | 

     कुछ दिनों में सर्दी के अधिक बढ़ने का कारण क्या हो सकता है | सर्दी अधिक बढ़ने का महीनों और दिनों से क्या संबंध है |उन महीनों और दिनों में ऐसा विशेष क्या होता है | महीनों के लिए तो सूर्य के परिभ्रमण को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है किंतु सर्दी की ऋतु के कुछ दिनों में सर्दी अधिक होने फिर कम हो जाने और फिर अधिक हो जाने का कारण क्या है |उन कुछ दिनों में जब सर्दी अधिक बढ़ती है | ऐसी स्थिति में सर्दी बढ़ने का उन कुछ दिनों से क्या संबंध है |  

   कुछ दिनों में ऐसी घटनाएँ बहुत अधिक घटित होती हैं,फिर कुछ दिन तक सामान्य रहती हैं | उसके बाद कुछ दिनों तक फिर बहुत अधिक तापमान बढ़ जाता है |

     कोरोना महामारी एक बार आई उसी समय जितना बढ़ना होता बढ़ जाती फिर शांत हो जाती तो समाप्त हो जाती !किंतु महामारी संबंधी लहरों के आने और जाने का कारण क्या रहा होगा | एक बार महामारी बहुत अधिक बढ़ गई फिर घटी कैसे और यदि घट ही गई तो दुबारा बढ़ने का कारण क्या रहा होगा | इस घटना की पुनरावृत्ति बार बार होती रही !कुछ महीने शांत रहने के बाद फिर कुछ दिनों के लिए कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ने का कारण क्या रहा होगा |इसके बाद कोरोना महामारी के समाप्त होने का क्या कारण रहा होगा | 

     कुछ निश्चित दिनों में वर्षा बाढ़ के अधिक दृश्य देखे जाते हैं | ऐसी वर्षा सर्दी गर्मी एवं वायु प्रदूषण बढ़ने जैसी प्राकृतिक घटनाएँ एक साथ अनेकों देशों में घटित होते देखी जाती हैं | 

   कई बार ग्रीष्मऋतु के अतिरिक्त कुछ दूसरी ऋतुओं के भी कुछ दिनों में आँधी तूफ़ान आते हैं | ऐसे ही ग्रीष्मऋतु के अतिरिक्त कुछ दूसरी ऋतुओं में भी उन ऋतुओं के अपने स्वभाव की अपेक्षा तापमान बढ़ जाता है|

     इसमें विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि वर्षाऋतु का समय आने पर भी कुछ दिनों में वर्षा अधिक होती है | इसके अतिरिक्त कुछ दूसरी ऋतुओं का समय आने पर भी कुछ दिनों में वर्षा होती है | अंतर इतना होता है कि वर्षा ऋतु में अन्य ऋतुओं  की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है |

    इसीप्रकार से कोरोना जैसी महामारियों के विषय में कहा जाता है कि ऐसी महामारियाँ लगभग एक सौ वर्ष के अंतराल में एक बार आती हैं | ऐसी घटना पिछले कुछ सदियों से घटित हो रही है | सौ वर्ष के निश्चित अंतराल में ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण क्या है | 

    विशेष बात यह है कि प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने में अंतराल चाहें वर्षों का हो या महीनों का या दिनों का किंतु एक निश्चित अंतराल में ऐसी घटनाओं के घटित होने से ऐसा तो लगता है कि इन घटनाओं के घटित होने का कारण समय ही है | 

                                  समय प्राकृतिक घटनाएँ रोग और महामारियाँ 

    शिशिर (सर्दी) ऋतु में सर्दी होती ही है,ऐसे ही ग्रीष्मऋतु में गर्मी होती है| वर्षाऋतु में वर्षा होती है | ये सब ऋतुप्रभाव है | इसमें विशेष बात यह है कि इन ऋतुओं में भी किसी बार ऋतुओं का प्रभाव बहुत लंबा खिंच जाता है |कभी कभी कम समय में ही ऋतुप्रभाव समाप्त हो जाता है |कई बार ऋतुओं का प्रभाव काफी अधिक हो जाता है तो कई बार ऋतुप्रभाव बहुत कम होता है |

    इसलिए कभी शिशिर (सर्दी) ऋतु में सर्दी अपने निर्धारित समय से शुरू होकर अपने निर्धारित समय तक ही रहती है |कभी कभी सर्दी समय से पहले शुरू होकर अपने समय के बाद तक चला करती है | कभी कभी सर्दी उचित मात्रा में पड़ती है तो कभी बहुत अधिक मात्रा में पड़ती है और कभी बहुत कम मात्रा में सर्दी पड़ती है|

     शिशिर ऋतु में उचित मात्रा में सर्दी पड़ने का मतलब स्वस्थ प्रकृति एवं स्वस्थ शरीरों के लिए जितनी मात्रा में सर्दी की आवश्यकता है उतनी सर्दी पड़ी है | उससे कम या अधिक पड़ने का मतलब सर्दी का प्रभाव प्रकृति एवं स्वास्थ्य के लिए  हितकर नहीं है |

    जिसप्रकार से सब्जी बनाते समय नमक कम रहे तो ठीक नहीं होता और अधिक पड़ जाए तो सब्जी के स्वाद और गुण दोनों बिगड़ जाते हैं|उसी प्रकार से सर्दी  निर्धारित मात्रा से कम हो जाए या अधिक प्रकृति और जीवन दोनों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता है |ऐसी सब्जी रोटी के साथ खाई जाए या चावल के साथ उनके अपने भी स्वाद और  गुण दोनों को बिगाड़ देती है | 

    इसीप्रकार से जिस वर्ष सर्दी कम या अधिक पड़ती है | उस वर्ष सर्दी अर्थात कफ की कमी या अधिकता का प्रभाव प्राकृतिक वातावरण पर पड़ता है |जिसमें साँस लेने से मनुष्य शरीर रोगी होने लगते हैं | उसी वातावरण में पैदा होने के कारण इसका प्रभाव उस वर्ष पैदा होने वाले वृक्षों बनस्पतियों अनाजों दालों तथा शाक सब्जियों पर पड़ता है| उन्हीं बिकारित द्रव्यों बनस्पतियों आदि से जो औषधियाँ बनाई जाती हैं | उनमें भी कफ की अधिकता या न्यूनता रहेगी | जिससे उनके स्वाद में तो विकार आते ही हैं गुणों में भी बिकार आते हैं | 

     ऐसीस्थिति में प्राकृतिक वातावरण  में कफ धातु के न्यूनाधिक्य से शरीर रोगी होते हैं|उसी वातावरण में पैदा हुए अनाजों दालों तथा शाक सब्जियों को खाने से प्रतिरोधक क्षमता घटती है तथा रोग बढ़ते हैं |उसी वातावरण में पैदा हुए औषधीय द्रव्यों से बनी औषधियों का उपयोग करने से लाभ नहीं होता है क्योंकि उनमें भी उन तत्वों की कमी या अधिकता रही होती है |

     ऐसी परिस्थिति में जिन रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए जिन औषधियों को जाना जाता है |उन रोगों से पीड़ितों पर उन्हीं औषधियों का प्रभाव न पड़े और रोग बढ़ते चले जाएँ तो चिंतनीय हो जाते हैं| ऐसे तत्वों का असंतुलन यदि बहुत अधिक हो जाए तो ऐसे ही असंतुलनों से महारोग या महामारी पैदा होते देखी जाती है | 

    विशेष बात यह है कि कफ बढ़ेगा तो पित्त कमजोर पड़ेगा | पित्त बढ़ेगा तो कफ कमजोर पड़ेगा | कफ या पित्त में जब जो बलवान होगा | वायु तत्व उसी का साथ देने लगता है | शिशिर ऋतु के प्रभाव से चलने वाली ठंडी ठंडी हवाएँ ग्रीष्म ऋतु का प्रभाव पड़ते ही गर्म लू बनकर झुलसाने लगती हैं | 

     ऐसी स्थिति में कफ आदि किसी एक में बिकार होने पर तीनों बिकारित होने लगते हैं|ये असंतुलन यदि थोड़ा बढ़े तो ऐसे रोग पैदा होते हैं जिनपर औषधियों का प्रभाव धीरे धीरे एवं बहुत कम मात्रा में पड़ता है | यदि ये असंतुलन बहुत अधिक बढ़ जाए तो महामारी जैसा बड़ा संकट पैदा हो जाता है |

       

                                              प्रकृति दे रही थी महामारी आने के संकेत !

     समय के साथ साथ प्रकृति में बदलाव होते रहते  हैं| समय के संचार में कब कैसे बदलाव हो सकते हैं | इसका पूर्वानुमान गणित के द्वारा सूर्य चंद्र ग्रहणों की तरह सैकड़ों वर्ष पहले लगाया जा सकता है | दूसरी बात समय में कब कैसे बदलाव हो रहे हैं | यह बहुत सूक्ष्मता से देखते  रहना होता है | प्राकृतिक घटनाओं के माध्यम से मिलने वाले संकेतों को समझना होता है| यह  जानने के लिए एक तो गणित का माध्यम है और दूसरा प्राकृतिक वातावरण एवं पशु पक्षियों के बदलते व्यवहार को बहुत बारीकी से देखते रहना होता है | 

      प्राकृतिक परिवर्तनों की स्थिति इतनी बिगड़ती जा रही थी कि ऋतुएँ अपनी मर्यादा छोड़ती जा रही थीं | जनवरी फरवरी में तापमान का अस्वाभाविक रूप से बढ़ गया था | अप्रैल मई तक वर्षा होती रही थी !सितंबर में जून की तरह गर्मी होने लगी थी | प्राकृतिक दृष्टि से देखा जाए तो ये मानवता पर काफी बड़ा प्राकृतिक संकट था | ऋतुओं के असंतुलन से आनाज शाक सब्जियों फूलों फलों के गुणधर्म बदलने लगे थे |जिन  वृक्षों के लिए कहा जाता है कि कितना भी खाद पानी दो किंतु ये अपने समय से पहले फूलते फलते नहीं हैं | उन वृक्षों को बिना ऋतु आए भी फूलते फलते देखा जा रहा था |कुछ फलों का आकार प्रकार रंग रूप स्वाद आदि बदला बदला सा लग रहा था | लीचियों के आकार अपेक्षाकृत छोटे होने लगे थे | 

     कुल मिलाकर कोरोना महामारी प्रारंभ होने के कुछ वर्ष पहले से प्राकृतिक वातावरण बहुत तेजी से बदलने लगा था |सन 2014 के बाद  दिनोंदिन भूकंप की आवृत्तियाँ बढ़ती जा रही थीं |  बार बार भूकंप आते देखे जा रहे थे |हिंसक आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात बाढ़ जैसी हिंसक घटनाएँ बार बार घटित होते देखी जा रही थीं |  हैरान परेशान आवारा पशुओं के आक्रामक व्यवहार से किसान परेशान थे | दुनियाभर में कोरोना काल में जानवरों के नए रूप अधिक आक्रमक देखने को मिल रहे  थे।ऐसा पहले नहीं होता था और न ही महामारी के बाद उस प्रकार की आक्रामकता रहेगी | महामारीजनित प्रभाव से जीव जंतुओं का स्वभाव आहार विहार आदि काफी बदल गया था |टिड्डियों पक्षियों पशुओं तथा चूहों का प्रजनन अधिक होने से इनकी संख्या अचानक बहुत अधिक बढ़ गई थी |  इसी बेचैनी का शिकार होकर  कोरोना काल में अनेकों देश एक दूसरे से युद्ध लड़ते देखे जा रहे थे|कई देशों के अंदर अंतर्कलह से बड़ी संख्या में लोग हिंसा की भेंट चढ़ते जा रहे थे |कुछ देशों के अंदर हिंसक घटनाएँ,दंगे,आतंकी घटनाएँ हिंसक विस्फोट एवं हिंसक आंदोलन आदि होते देखे जा रहे थे | कुछ असहिष्णु लोग छोटी छोटी बातों पर दूसरे की हत्या करते देखे जा रहे थे |भारत की दिल्ली समेत समस्त उत्तर भारत में एवं मणिपुर आदि स्थानों पर हिंसक दंगे ,पड़ोसी म्यांमार में हिंसक दंगे होते देखे जा रहे थे |ऐसे ही कोरोनाकाल में मनुष्यों पशुओं पक्षियों आदि में बेचैनी काफी अधिक बढ़ गई थी | 

    ऐसी प्राकृतिक उथलपुथल का कारण यदि जलवायु परिवर्तन को भी माना जाए तो भी इसे अनुसंधानों की दृष्टि से अत्यंत गंभीरता से लिया जाना चाहिए था | परिस्थितियाँ वर्ष दर वर्ष बिगड़ती चली गईं | दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन होने का उलाहना तो दिया जाता रहा किंतु उसके जो दुष्परिणामों पर भी गंभीर अनुसंधान किए जाने चाहिए थे | 

    कुलमिलाकर ऋतुओं का प्रभाव जब उचित मात्रा में होता है तो प्राकृतिक वातावरण उत्तम बना रहता है | आनाज शाक सब्जी फल फूल आदि शक्तिबर्द्धन करने वाले होते हैं |स्थूल रूप से देखा जाए तो चार महीने सर्दी चार महीने गर्मी और चार महीने वर्षा के होते हैं | उचित मात्रा में सर्दी और उचित मात्रा में गर्मी एवं उचित मात्रा में वर्षात हो तो प्रकृति अपने स्वास्थ्य के अनुकूल वर्ताव करती है | मनुष्य समेत सभी प्राणी स्वस्थ सुखी बने रहते हैं |      ऋतुओं का समय अथवा  प्रभाव यदि घटने बढ़ने लगे तो प्राकृतिक वातावरण में विकार आने लगते हैं | मनुष्य समेत समस्त प्राणियों में रोग एवं बेचैनी बढ़ने लगती है | ऐसी स्थिति में ऋतुएँ जब अपनी मर्यादा छोड़ने लगी थीं | जनवरी फरवरी में तापमान अस्वाभाविक रूप से बढ़ने लगा था |अप्रैल मई तक वर्षा होती रहना !सितंबर में जून की तरह गर्मी होने लगी थी तो रोग या महारोग के रूप में इसके दुष्परिणाम भी सामने आने ही थे | 

  भोजन निर्माण प्रक्रिया में किसी ब्यंजन को बनाते समय सभी द्रव्य उचित मात्रा में डाले जाएँ तभी वह स्वादिष्ट बनता है |नमक मिर्च या कोई घटक द्रव्य कम या अधिक पड़ दिया जाए तो उसका स्वाद तो बदलता ही है गुण धर्म भी बदल जाता है |किसी औषधि का निर्माण करते समय घटकद्रव्य यदि उचित अनुपात में न डाले जाएँ तो निर्मित औषधियाँ लाभ पहुँचाने की जगह हानिकर भी हो सकती हैं |

     इसीप्रकार से ऋतुओं का  प्रभाव जब अवभाविक रूप से घटने बढ़ने बढ़ने लगा तो ये प्रकृति और स्वास्थ्य दोनों पर ही प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला था | इससे एक ओर शरीर तो रोगी हो ही रहे थे दूसरी ओर प्रकृति भी बिकारित हो रही थी | इसका दुष्प्रभाव यह हुआ जिन रोगों से शरीर  रहे थे उन्हीं रोगों का शिकार पेड़ पौधे बनस्पतियाँ अनाज शाक सब्जियाँ आदि हो रहे थे | इसके कारण कुछ महामारी का समय होने के कारण  वातावरण में साँस लेने से लोग रोगी हो रहे थे | कुछ रोगी हो चुके  अनाज शाक सब्जियाँ आदि खाने से रोगी हो रहे थे | कुछ लोग विकारित बनस्पतियों से निर्मित औषधियों का सेवन करने से रोग बढ़ते जा रहे थे | 

     मौसम में आ रहे थे बड़े बदलाव ! दे रहे थे महामारी आने की सूचना |

     2020 की जनवरी इतिहास की सबसे गर्म जनवरी बताई जा रही थी ! कुल मिलाकर सर्दी के सीजन  में सर्दी  बहुत कम हुई एवं गर्मी के सीजन में गर्मी कम हुई !मार्च अप्रैल तक वर्षा होती रही |   यूरोप में जनवरी का तापमान औसत से 3 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया , जबकि  पूर्वोत्तर यूरोप के कई हिस्सों में औसत से 6 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया !जनवरी माह का वैश्विक तापमान अपने चरम पर पहुँच गया था। 

     भारत में लगातार वर्षा होते रहने के कारण अप्रैल 2020  सबसे ठंडा बीत रहा था,जबकि ब्रिटेन में लू चल रही थी !बताया जाता है कि ब्रिटेन में गर्मी ने  पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है.|अप्रैल 2020 में कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका की हालत दिनोंदिन बिगड़ रहे थे | में बारिश-बाढ़ और भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं से चीन का बुरा हाल हुआ जा रहा था  ! सितंबर 2020 में दिल्ली बासियों को मई-जून जैसी तपिश झेलनी पड़ रही थी ।मॉनसून की विदाई देर से हुई थी | जो पहले 1 सितंबर से होनी शुरू हो जाती थी, वो  17 सितंबर के करीब विदा हुआ था | 

    कुल मिलाकर कोरोना काल में एशिया, यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका, चीन और रूस आदि में मौसम का प्रचंड रूप देखा जा रहा था |  दुनिया के कई देशों में मौसम के बदलते मिजाज को देखा गया है. यूरोप से लेकर एशिया और नॉर्थ अमेरिका से लेकर रूस तक कहीं बाढ़ है, कहीं गर्म हवाएँ हैं  तो कहीं पर सूखे की स्थिति है. यूरोप के देश , नॉर्थ अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में कहीं बाढ़, कहीं तूफान, कहीं हीट वेव, कहीं जंगलों में लगी आग तो कहीं सूखे की स्थिति थी | रूस, चीन, अमेरिका और न्‍यूजीलैंड में लोग गर्मी, बाढ़ और जंगलों में लगी आग से परेशान थे |पश्चिमी यूरोप में भारी बारिश हो रही थी कहा जा रहा था कि एक सदी में पहली बार ऐसी बाढ़ आई है|  बेल्जियम, जर्मनी, लक्‍जमबर्ग और नीदरलैंड्स में 14और15जुलाई 2020 को इतनी अधिक बारिश हो गई है जितनी दो माह में होती थी |  नॉर्थ यूरोप में गर्मी से हालात बिगड़ते जा रहे थे | फिनलैंड जहाँ गर्मी कभी नहीं पड़ती थी , वहाँ भी गर्मी पड़ रही थी | देश के कई हिस्‍सों में तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से भी ज्‍यादा हो गया था | रूस में साइबेरिया का तापमान इतना बढ़ गया था कि 216 ये ज्‍यादा जंगलों में आग लगी हुई थी | वहीं पश्चिमी-उत्‍तरी अमेरिका में अत्‍यधिक गर्मी ने हालात खराब कर दिए थे | कैलिफोर्निया, उटा और पश्चिमी कनाडा में सर्वाधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया था |  कैलिफोर्निया की डेथ वैली में पिछले दिनों ट्रेम्‍प्रेचर 54.4 डिग्री सेंटीग्रेट तक पहुँच गया था | इसी तरह से एशिया के कई देशों जैसे कि चीन, भारत और इंडोन‍ेशिया के कुछ हिस्‍सों में बाढ़ की स्थिति थी | इसीप्रकार की और बहुत सारी घटनाएँ ऋतुओं की सीमाएँ लाँघकर घटित होते देखी जा रही थीं | 

           बुरे समय के प्रभाव से आंदोलित हो रहे थे  पंचतत्व!

     भूकंप आँधी तूफान जैसी जिन प्राकृतिक घटनाओं के लिए पंचतत्वों को दोषी  माना जाता है | जल एवं वायु परिवर्तन को दोषी बताया जाता है | वे पंचतत्व भी तो समय के ही आधीन होते हैं | समय के परिवर्तन के साथ साथ उन्हें भी परिवर्तित होना पड़ता है|प्रकृति के संचालन में उन पंचतत्वों की बड़ी भूमिका होती है और पंचतत्वों के  संचालन में समय की बड़ी भूमिका होती है | प्रातः काल जलतत्व प्रबल होता है, मध्यान्ह काल में अग्नि तत्व प्रबल रहता है और अपराह्न काल में वायुतत्व प्रबल रहता है |सूर्यास्त के समय सुषुम्ना प्रवाह में आकाशतत्व का प्राबल्य रहता है| इसी प्रकार से रात्रि में या भिन्न भिन्न ऋतुओं में पंचतत्वों के प्रभाव में समय के अनुशार परिवर्तन होते देखे जाते हैं |जब जैसा समय होता है तब तैसे बदलाव होते देखे जाते हैं | 

      बुरे समय के प्रभाव से जब अचानक पंचतत्वों में कुछ ऐसे बदलाव होने लगते हैं |जो लंबे समय से चले आ रहे प्रकृति क्रम से अलग हटकर घटित होते हैं |पंचतत्व उसप्रकार के परिवर्तन को सहने के अभ्यासी नहीं रहे होते हैं |जिन परिवर्तनों को  उन्हें अचानक सहने के लिए बाध्य होना पड़ता है | ऐसे समय में पंचतत्व स्वयं आंदोलित होने लगते हैं | जिनकी बेचैनी उनसे संबंधित प्राकृतिक घटनाओं के माध्यम से देखी एवं अनुभव की जा सकती है |             महामारी के समय केवल वायु ही प्रदूषित नहीं होती है उसके साथ साथ पृथ्वी जल अग्नि आकाश आदि सभी विकारों से युक्त असंतुलित  होने लगते हैं |सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं के समय प्रभाव आदि में ऐसे बदलाव होने लगते हैं ,जो हमेंशा होते नहीं देखे जाते हैं| शिशिर(सर्दी)ऋतु में सर्दी का बहुत अधिक या बहुत कम होना या सर्दी की अवधि का घट - बढ़ जाना | ऐसा ही ग्रीष्मऋतु में  गर्मी का बहुत अधिक या बहुत कम होना या ग्रीष्मऋतु की अवधि का घट - बढ़ जाना ! ऐसा ही असंतुलन वर्षाऋतु में देखा जाता है !भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं के  बार बार घटित होने जैसे लक्षण जितने कम या अधिक होते हैं उतने ही बड़े रोग या महारोग के पैदा होने का संकेत दे रहे होते हैं | ऐसी घटनाओं के आगे या पीछे घटित होने वाली छोटी बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ भी उन संकेतों के बारे में ही कुछ सूचित कर रही होती हैं | ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाएँ जिस समय घटित होती हैं उस समय का  भी महत्त्व होता है |कोरोना महामारी के समय प्राकृतिक वातावरण में ऐसा असंतुलन होते बार बार देखा गया था |  

  पृथ्वी तत्व -

     कोरोना महामारी के समय पृथ्वी तत्व काफी अधिक आंदोलित था | जो भूकंप पहले कभी कभी आते देखे सुने जाते थे | सन 2014  के बाद वही भूकंप बार बार घटित होते देखे जा रहे थे |इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि  कोरोनाकाल के एक वर्ष में वैश्विक स्तर पर 38,816 बार भूकंप आ चुके थे | डेढ़ वर्ष में केवल भारत में ही 1000 से अधिक भूकंप आए थे | मार्च -अप्रैल  2020  के मात्र डेढ़ महीने में दिल्ली-एनसीआर में  10 बार भूकंप आए थे |   23 नवंबर 2020 को पूरी दुनिया में कुल 95 स्थानों पर भूकंप आए थे | एक सप्ताह में 700 जगहों पर भूकंप आये। एक महीने में 3105 भूकंप पूरी दुनिया में आये। भूकंपों की इतनी अधिकता पहले तो नहीं देखी जा रही थी | इसी समय ऐसा क्यों हुआ ?         

   17\18जुलाई 2020 को अनेकों स्थानों पर काफी अधिक संख्या में भूकंप आए हैं |इनके बाद 19 जुलाई 2020 से भारत में कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड शुरू हो गया था !

    क्या इन  भूकंपों से महामारी का भी कोई संबंध होता है | यदि ऐसा नहीं है तो इसी समय इतने अधिक भूकंपों के आने का कारण क्या  है |इस संबंध को खोजना अनुसंधानों की जिम्मेदारी है |

अग्नि तत्व 
    ऑस्ट्रेलिया में आग लगने की भयंकर घटनाएँ घटित होते देखी जाती रहीं ,जो लंबे समय तक चलती रही हैं |कुछ अन्य देशों में भी ऐसी घटनाएँ देखने को मिलती रही हैं |उत्तराखंड के जंगलों में तो 2 फरवरी 2016   से ही आग लगने की घटनाएँ प्रारंभ हो गई थी जो  क्रमशः धीरे धीरे बढ़ती चली जा रही थीं | 10 अप्रैल 2016 के बाद ऐसी घटनाओं में बहुत तेजी आ गई थी !आग लगने की घटनाओं से हैरान परेशान होकर 28 अप्रैल 2016 को बिहार सरकार के राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने ग्रामीण इलाकों में सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक खाना न पकाने की सलाह दी थी . इतना ही नहीं अपितु इस बाबत जारी एडवाइजरी में इस दौरान हवन करने, गेहूँ  का भूसा और डंठल जलाने पर भी पूरी तरह रोक लगा दी गई थी | इसी समय जमीन के अंदर का जलस्तर तेजी से नीचे जाने लगा था, बहुत इलाके पीने के पानी के लिए तरसने लगे | पानी की कमी के कारण ही पहली बार पानी भरकर दिल्ली से लातूर एक ट्रेन भेजी गई थी |प्राकृतिक वातावरण में बहुत अधिक ज्वलन शीलता बढ़गई  थी | ऐसा होने के पीछे का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था |इस वर्ष आग लगने की घटनाएँ इतनी अधिक घटित हो रही थीं | ये अनुसंधान का विषय होना चाहिए था कि क्या ऐसी घटनाओं का भी महामारी से कोई संबंध था !
जल में कोरोना -
 19-1-2020- ऑस्ट्रेलिया मूसलाधार बारिश और बाढ़ झेल रहा है।मौसम विभाग के मुताबिक यह 100 साल में सबसे अधिक होने वाली बारिश है | पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन और क्वींसलैंड में भारी तबाही हुई है। 
   सूखा वर्षा बाढ़ जैसी  भयानक हिंसक घटनाएँ पिछले कुछ वर्षों से विश्व के अनेकों देशों प्रदेशों  में घटित होते देखी जा रही हैं | भारत में भी असम  केरल कश्मीर बिहार महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में समय समय पर घटित होती देखी जाती रही हैं | अगस्त 2018 में केरल में भीषण बाढ़ आई ! 2020 के  अप्रैल में इतनी बारिश हुई जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। मई की बारिश ने भी चौका दिया है।गरमी की ऋतु में  मई जून तक वर्षा होती रही |ऐसी बहुत सारी घटनाएँ घटित होती रही हैं | ऐसी घटनाएँ इतनी अधिकता में पहले तो नहीं घटित होती थीं | ऐसा होने का कारण आगे आने वाली कोरोना महामारी ही तो नहीं थी |
आकाश तत्व 
     26 Apr 2020-वैज्ञानिकों का दावा: अपने आप ठीक हुआ ओजोन परत पर बना सबसे बड़ा छेद ! दुनिया इस समय कोविड-19 महामारी से लड़ रही है। वहीं एक अच्छी खबर यह है कि पृथ्वी के बाहरी वातावरण की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार ओजोन परत पर बना सबसे बड़ा छेद स्वत: ही ठीक हो गया है। वैज्ञानिकों ने पुष्टि है कि आर्कटिक के ऊपर बना दस लाख वर्ग किलोमीटर की परिधि वाला छेद बंद हो गया है। इसके बारे में वैज्ञानिकों को अप्रैल महीने की शुरुआत में पता चला था। ऐसे और भी बदलाव वातावरण में आए थे |
वायु तत्व -19 जून 2020 ऑस्ट्रेलिया में  100 साल का सबसे भीषण तूफान आया है |इस प्रकार के हिंसक आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि पिछले कुछ वर्षों से विश्व के अनेकों देशों में घटित होते देखे जाते रहे हैं | विशेषरूप से  भारत में भी ऐसी आपदाएँ अक्सर घटित होते देखी जाती  रही हैं | 

   2018 के अप्रैल और मई में पूर्वोत्तर भारत में हिंसक  आँधी तूफान  आए थे | ऐसी आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं | 2 मई 2018 की रात्रि में आए तूफ़ान से काफी जन धन हानि हुई थी | इसी समय आँधीतूफानों के कारण  ऐसी ही कई और हिंसक घटनाएँ घटित हुई थीं  | ऐसी  वायु तत्व संबंधी असंतुलित घटनाएँ क्या भावी महामारी की सूचना दे रही थीं | 

पंचतत्वों के  असंतुलित होते ही पैदा होने लगते हैं रोग और महारोग  !

          मौसम में जब इतने बड़े बड़े बदलाव होने लगते हैं,तो उसका प्रभाव भी उसीप्रकार का होगा यह स्वाभाविक ही है | कोरोना महामारी के समय भी प्राकृतिक घटनाओं का  काल,क्रम ,अनुपात आदि सबकुछ  तेजी से बिगड़ने लगा था | भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ चक्रवात बज्रपात वायु प्रदूषण तापमान आदि बार बार घटित होते देखे जा रहे थे |प्राकृतिक घटनाओं का संतुलन दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा था | इससे महामारी जैसी स्वास्थ्यविरोधी बड़ी दुर्घटनाओं का घटित होना स्वाभाविक ही था |जिसे समय से समझा नहीं जा सका था |

   ब्यवहार में भी देखा जाता है कि किसी विमान का पायलट जब देखता है कि विमान संचालन में कुछ घटनाएँ उसके अनुमान से अलग हटकर घटित होते दिखाई दे रही हैं या अनुमान के विरुद्ध घटित हो रही हैं तो पायलट इसकी सूचना  कंट्रोलरूम को तुरंत इस आशंका के साथ देता है कि कुछ गड़बड़ होने वाला है |ऐसे ही मौसम संबंधी अनुसंधानों में लगे वैज्ञानिकों  को लीक से हटकर घटित हो रहे प्राकृतिक परिवर्तनों को समझना चाहिए था | प्राकृतिक घटनाओं को असंतुलित होते देखकर इतनी बड़ी महामारी के विषय में समाज को तुरंत सतर्क कर दिया जाना चाहिए था |   

   कुशल रसोइया भोजन बनाते समय अनेकों तेल मशालों को उचित अनुपात में डालकर एक से एक स्वादिष्ट ब्यंजन तैयार करते देखे जाते हैं |उसी  ब्यंजन में सारे मशाले डाले जाएँ किंतु उनका अनुपात बिगड़ जाए तो वह ब्यंजन स्वादिष्ट नहीं बनेगा | यह अनुपात जितना बिगड़ता है भोजन  का स्वाद भी उतना ही बिगड़ जाता है |विशेष बात यह है कि मशालों का अनुपात बिगड़ते ही रसोइए को अनुमान लग जाता है कि ब्यंजन का स्वाद बिगड़ जाएगा !उसमें इस मशाले की कमी या बढ़ोत्तरी दिखाई देगी !उसके सुधार के लिए वह उस अनुपात को संतुलित करने के प्रयास भी उसी समय करता है जिसमें कई बार वह सफल भी होता है यही उस  रसोइए का विशेष गुण होता है |

     मौसम भी उसी ब्यंजन की तरह ही होता है | जिसमें सर्दी गर्मी वर्षा  आदि जब तक उचित अनुपात में होती रहती है | तब तक प्रकृति और जीवन दोनों ही स्वस्थ बने रहते हैं | ये अनुपात बिगड़ते ही दोनों का स्वस्थ्य बिगड़ने लगता है |  

   ऐसे ही किसी औषधि के निर्माण में घटक द्रव्यों का अनुपात यदि बिगड़ जाए तो निर्मितऔषधि लाभ की जगह नुक्सान भी पहुँचा सकती है |जिसका अनुमान कुशल चिकित्सक पहले ही लगा लिया करते हैं | 

    ऐसे ही मौसम वैज्ञानिकों से लेकर चिकित्सा वैज्ञानिकों तक की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे प्रतिपल होते प्राकृतिक परिवर्तनों को न केवल देखते समझते रहें अपितु उनके अभिप्राय तथा उनसे प्राप्त भविष्य संबंधी संकेतों  को भी समझते रहें तभी उनके द्वारा किए गए अनुसंधान समाज के लिए उपयोगी हो सकते हैं ,अन्यथा ऐसे अनुसंधानों को करने का प्रयोजन ही क्या बचता है | 

                                          ऋतुध्वंस का ही मतलब है  जलवायुपरिवर्तन !

      जल और वायु भी तो पंचतत्वों में ही सम्मिलित हैं| परिवर्तन होगा तो पाँचोंतत्वों में एक साथ होगा !किसी एक तत्व में परिवर्तन शुरू होते ही दूसरे तत्व भी उससे प्रभावित होने लगते हैं|किसी गाड़ी के चार पहियों में से कोई एक पहिया भी यदि खाँचे में चला जाए तो शेष तीनों पहियों की भी गति बाधित हो जाती है |ऐसी स्थिति में यह कैसे संभव है कि जलवायु परिवर्तन हो किंतु बाक़ी तीन तत्वों में कोई परिवर्तन ही न हो |  तापमान बढ़ने के बाद सर्दी को कम करना नहीं पड़ता है अपितु सर्दी स्वतः कम हो जाती है|

      हमारे कहने का अभिप्राय जलवायुपरिवर्तन का मतलब केवल जल और वायु तत्व में ही परिवर्तन न होकर प्रत्युत पाँचों तत्वों में होने वाला परिवर्तन है | अचानक तापमान बढ़ने लगे या सर्दी अधिक बढ़ने लगे, बार बार  तूफ़ान आने लगें ! हिंसक महामारी आ जाए !लीक से हटकर घटित होने वाली  ऐसी सभी घटनाओं के घटित होने के लिए जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार माना जाता है ,किंतु ऐसा कैसे हो सकता है | तापमान बढ़ने का कारण जल और वायु में होने वाले परिवर्तन न होकर प्रत्युत अग्नि तत्व में होने वाला परिवर्तन है | भूकंप जैसी घटनाएँ पृथ्वी अग्नि एवं वायुतत्व  के संयोग से  घटित होती हैं |तूफ़ान जैसी घटनाएँ अग्नि एवं वायु के संयोग से घटित होती हैं | इसलिए सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के लिए केवल जलवायुपरिवर्तन को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया  जा सकता है |  

    चिकित्साशास्त्र में भी प्रकृति एवं जीवन को प्रभावित करने वाले जिन वातपित्तकफ के असंतुलन चर्चा की जाती है वह भी जलवायुपरिवर्तन ही तो है | उसमें अग्नि तत्व को भी सम्मिलित किया गया है जिसके बिना  केवल जलवायुपरिवर्तन प्रकृति एवं जीवन को प्रभावित करने में सक्षम नहीं है |वातपित्तकफ के असंतुलन से संपूर्ण प्रकृति एवं जीवन पर बिपरीत प्रभाव पड़ता है | त्रितत्वों के वैषम्य से संपूर्ण प्रकृति प्रभावित होती है | खाने पीने की चीजें प्रभावित होती हैं |उन्हें खाने पीने से स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है |ऐसी हवा में साँस लेने से  रोग पैदा होते हैं 

   वर्षा आदि होने न होने तथा कम या अधिक होने का कारण केवल जलवायुपरिवर्तन ही नहीं अपितु पंचतत्वों का वैषम्य होता है |ऐसी बिषमता का कारण समय में होने वाले परिवर्तन होते हैं | समय के संचार में होने वाले परिवर्तनों को  समझे बिना पंचतत्वों के वैषम्य को समझना या इनके विषय में अनुमान  पूर्वानुमान आदि लगाना कठिन होता है |इसके बिना भूकंप आँधी तूफ़ान आदि किसी भी प्राकृतिक घटना को समझना केवल  कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी है | 

    विभिन्न प्राकृतिकघटनाओं के लिए केवल जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा देने मात्र से अनुसंधानों का उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता है |लक्ष्य तो प्राकृतिक आपदाओं के कारणों एवं उनके समाधानों को खोजना होता है | ऐसी घटनाएँ यदि जलवायुपरिवर्तन के कारण घटित होती हैं,तो जलवायुपरिवर्तन होने का कारण खोजना होगा | उसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाना होता है |तभी ऐसे अनुसंधानों से लक्ष्य साधन हो सकता है | 

      पंचतत्वों के संतुलन से ही जीवधारियों के रहने लायक वातावरण का निर्माण हो पाता है | समस्त जीवधारियों को इसीप्रकार के वातावरण में रहने की आदत सी पड़ी हुई है | इस वातावरण  में जितना परिवर्तन होता है उतना ही जीवन के लिए असहनीय होता जाता है|  जिसे  सहने का जीवन को अभ्यास ही नहीं है |इसीलिए रोग महारोग  आदि पैदा होने लगते हैं | ऐसे समय मनुष्यों से लेकर पशु पक्षियों समेत समस्त जीवधारियों में बेचैनी  घबड़ाहट आदि बढ़ने लगती है |

      ऐसी  बेचैनी  घबड़ाहट आदि बढ़ने  के लिए वो अपने खान पान रहन सहन आहार बिहार आदि को जिम्मेदार मान लेते हैं| कुछ लोग अपने सुख साधनों का सहारा लेकर मन की ऐसी बेचैनी घटाने का प्रयत्न करते हैं |कुछ लोग इसके लिए मनोरंजक साधनों का सहारा लेते हैं | इसीलिए हास्यकविसम्मेलनों ने कोरोना महामारी आने से पहले काफी जोर पकड़ा था | ऐसी बातों से मनुष्यों का ध्यान दूसरी ओर भटक जाता है !जिससे उन्हें प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव नहीं हो पाता है | इसी बेचैनी को न सह पाने के कारण अपराध उन्माद हिंसात्मकप्रवृत्ति आंदोलन भावना आदि दिनों दिन बढ़ते जा रहे होते हैं |

     इसलिए जलवायु परिवर्तन का मतलब केवल उतना ही नहीं होता है,प्रत्युत जलवायु परिवर्तन  का मतलब प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के पैदा होने का पूर्व संकेत होता है |

महामारी आने के कारण बेचैन थे पशु पक्षी !

     भारत के कई प्रदेशों  में किसानों को आवारा पशुओं के क्रोध का शिकार होना पड़ रहा था | सारी खेती चौपट होती जा रही थी | इन्हीं कुछ वर्षों में पशु अचानक इतने अधिक बढ़ गए थे | पशुओं के स्वभाव में ऐसा बदलाव हुआ था कि वे अपने स्वभाव से अलग आचरण करते देखे जा रहे थे | ये  बुरे समय का प्रभाव था | 

गाय ने मुर्गा खाया : 

        मार्च 2019 की घटना थी जब समाचार माध्यमों से किसी गौशाला का वीडियो प्रसारित किया गया जिसमें गाय मुर्गा खा रही थी ! गाय मांसाहारी नहीं होती फिर भी यदि ऐसी घटना घटित हुई है तो ये गाय का स्वभाव नहीं प्रत्युत उस बुरे समय का प्रभाव है | जिसके कारण जीवों के स्वभाव व्यवहार आदि में बदलाव आ जाते हैं |

टिड्डियों का आतंक  - 

    28-5-2020- टिड्डियों  दिसंबर 2019 से आरंभ हुआ है। टिड्डियों ने सबसे पहले गुजरात तबाही मचाई। अनुमान के तौर पर सिर्फ दो जिलों के 25 हजार हेक्टेयर की फसल तबाह होने का आंकड़ा राज्य सरकार ने पेश किया है।भारत में टिड्डों से प्रभावित राज्य,राजस्थान,पंजाब,मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश इन टिड्डियों से प्रभावित है।

मौसम और टिड्डियों के बीच संबंध !

       टिड्डी दल ओमान के रेगिस्‍तानों में भारी बारिश के बाद तैयार होते हैं। हिंद महासागर में भी साइक्‍लोन आने से रेगिस्‍तान में बारिश होने लगी है, इस वजह से भी टिड्डियां पैदा होती हैं। भारत में अप्रैल महीने के बीच टिड्डियों ने राजस्‍थान में एंट्री की थी। तब से वे पंजाब, हरियाणा, मध्‍य प्रदेश और महाराष्‍ट्र तक फैल चुकी हैं।
       2018 में आए साइक्‍लोन की वजह से ओमान के रेगिस्‍तान में टिड्डियों के लिए परफेक्‍ट ब्रीडिंग ग्राउंड बना। इसके बाद, टिड्डी दल यमन की ओर बढ़ा फिर सोमालिया और बाकी ईस्‍ट अफ्रीकी देश पहुँचा। दूसरी तरफ, ईरान, सऊदी अरब और यमन से एक और झुंड निकला। यही दल पाकिस्‍तान और भारत में घुसा है।
       वर्ष 2019 में मानसून पश्चिमी भारत में समय से पहले (जुलाई के पहले सप्ताह से छह सप्ताह पहले) शुरू हुआ, विशेषकर टिड्डियों से प्रभावित क्षेत्रों में। यह सामान्य रूप से सितंबर/अक्टूबर माह के बजाय एक माह आगे नवंबर तक सक्रिय रहा। विस्तारित मानसून के कारण टिड्डी दल के लिये उत्कृष्ट प्रजनन की स्थितियाँ पैदा हुई। इसके साथ ही प्राकृतिक वनस्पति का भी उत्पादन हुआ, जिससे वे लंबे समय तक भोजन के लिये आश्रित रह सकती थीं।
     
    • रेगिस्तानी टिड्डे आमतौर पर अफ्रीका के निकट, पूर्वी और दक्षिण-पश्चिम एशिया के अर्ध-शुष्क और शुष्क रेगिस्तान तक सीमित होते हैं, जो वार्षिक रूप से 200 मिमी से कम बारिश प्राप्त करते हैं।
    • सामान्य जलवायुवीय परिस्थितियों में, टिड्डियों की संख्या प्राकृतिक मृत्यु दर या प्रवासन के माध्यम से घट जाती है।
    • कुछ मौसम विज्ञानियों का मानना है कि टिड्डियों का इस प्रकार प्रजनन, जो कृषि कार्यों के लिये चिंता का विषय है, हिंद महासागर के गर्म होने का एक अप्रत्यक्ष परिणाम है।
    • पश्चिमी हिंद महासागर में सकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव या अपेक्षाकृत अधिक तापमान पाया गया परिणामस्वरूप भारत समेत पूर्वी अफ्रीका में घनघोर वर्षा हुई।
    • वर्षा के कारण नम हुए अफ्रीकी रेगिस्तानों ने टिड्डियों के प्रजनन को बढ़ावा दिया और वर्षा की अनुकूल हवाओं द्वारा इन्हें भारत की ओर बढ़ने में सहायता मिली।
     
    चूहों का आतंक बढ़ा :-

    26 -7- 2016 को प्रकाशित चूहों से संक्रमण और बीमारियां तेजी से फैलती हैं इसलिए प्रधानमंत्री जॉन की ने 2050 तक चूहों और अन्‍य उपद्रवी जानवरों से छुटकारा पाने की महत्‍वकांक्षी योजना की घोषणा की है | 

    8-6-2020-कोरोना वायरस: क्या लॉकडाउन ने चूहों को भी गुस्सैल बना दिया है?

    28-5-2021चूहों  जन्मदर बढ़ी - 29 -5 -2021 ऑस्ट्रेलिया में चूहों से हाहाकार, खेतों को किया बर्बाद अब घर में लगा रहे आग, भारत को 5 हजार लीटर जहर का ऑर्डर !आस्ट्रेलिया चूहों से बहुत ज्यादा परेशान है. फैक्ट्री और खेतों से निकलने वाले इन चूहों की संख्या लाखों में है, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया के लोगों को न सिर्फ परेशान कर दिया है बल्कि वहां लोग चूहों से डरे हुए हैं.| ऑस्ट्रेलिया के कृषि मंत्री एडम मार्शल ने कहा है कि 'अगर हम वसंत तक चूहों की संख्या को कम नहीं कर पाते हैं तो ग्रामीण और क्षेत्रीय साउथ वेल्स में आर्थिक और सामाजिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।' । लाखों की तादाद में चूहों ने किसानों और फैक्ट्री मालिकों को परेशान कर रखा है। लाखों चूहें ऑस्ट्रेलिया के अलग अलग फैक्ट्री और खेतों से निकल रहे हैं  | 

    24-10- 2021यूपी के कानपुर में चूहों ने करीब 40 करोड़ की पुल को कुतर दिया है. कानपुर में 4 साल पहले राज्य सेतु निगम की ओर से खपरा मोहाल रेलवे ओवरब्रिज बनाया गया था. चूहों की वजह से पुल का एक हिस्सा भरभरा कर गिर गया है | 
    16-12-2021-चूहे मारने पर लाखों खर्च कर चुका है रेलवे, फिर भी कम नहीं हो रहा आतंक !
    चूहों से होने वाले नुकसान की खबरें अक्सर सामने आती रहती हैं. रेलवे स्टेशन !कोई भी हो हर जगह मोटे-मोटे चूहे आपको आसानी से दिख जाएंगे. झांसी से लेकर नागपुर तक इन चूहों को मारने के लिए रेलवे द्वारा बड़ी रकम खर्च की जा चुकी है.  लेकिन चूहों के आतंक (Rat's Terror) से Indian Railways को मुक्ति नहीं मिल सकी है

     20-1-2022-हांगकांग में चूहे भी हो रहे कोरोना पॉजिटिव, 2000 से ज्यादा चूहों को मारने का आदेश !22 दिसंबर से पालतू जानवरों की दुकानों से चूहे खरीदने वालों को भी अनिवार्य रूप से कोविड-19 की जांच करानी होगी

    21-2-2022कोरोना महामारी के बाद ब्रिटेन में फैला चूहों का आतंक, टॉयलेट के रास्ते घरों में घुस रहे बिल्ली के आकार के चूहे !कोरोना के कारण चूहों की संख्या में हर साल 25% की वृद्धि ब्रिटेन में चूहों की संख्या में हुए विस्फोट से अफरातफरी मची हुई है। एक अनुमान के अनुसार उनकी संख्या 150 मिलियन तक पहुंच गई है, जो की अब तक की सबसे अधिक है। हेलैंड्स ने कहा कि कोविड महामारी के कारण इसमें हर साल 25% की वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि लोग काफी डरे हुए हैं और ये स्वभाविक है। ब्रिटेन में पहले से कहीं अधिक चूहें हैं और वे लगातार हावी हो रहे हैं। मैंने कुछ बिल्लियों के आकार के चूहे भी देखे हैं। 

    सन 2020 में प्रकाशित -यूके में लॉकडाउन में डेढ़ फुट लम्बे गुस्सैल चूहों का आतंक; भूख ऐसी कि एक-दूसरे को खा रहे, इन पर जहर भी बेअसर हो रहा है | ब्रिटेन में चूहे इतने बढ़ गए, जितने कि 200 साल पहले की औद्योगिक क्रांति के दौरान भी नहीं थे |लॉकडाउन में चूहे खाने और रहने के नए ठिकाने ढूंढ़ने में लगे हैं |बताया जाता है कि चूहों से 55 तरह की बीमारियां फैलती है | दुनियाभर में लॉकडाउन के दौरान जानवरों के नए रूप देखने को मिले हैं। लेकिन, ब्रिटेनवासी कोरोना के साथ-साथ बड़े चूहों से बेहद परेशान और खौफ में हैं। 18 इंच तक लम्बे इन चूहों को जाइंट रेट कहा जाता है और लॉकडाउन के दौरान इन्होंने अपने व्यवहार को अधिक आक्रामक बना लिया है | बीते दो महीनों से ये सीवर-अंडरग्राउंड नालियों से निकल कर रहवासी इलाकों में घुस रहे हैं। बंद शहरों से दूर ये उपनगरीय कस्बों की ओर बढ़ रहे हैं। पता चला है कि ये इतने भूखे हैं कि अब एक-दूसरे को खाने लगे हैं। इन पर रेट पॉयजन का भी असर नहीं हो रहा है।

    भारत में भी मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और राजस्थान समेत कई राज्यों से चूहों के आतंक और करोड़ों के माल की नुकसान की खबरें मिली हैं, हालांकि हमारे यहाँ के चूहे ब्रिटेन के चूहे जितने बड़े नहीं हैं।

    ब्रिटेन के चूहों की मुंह से लेकर पूंछ तक की लंबाई करीब 18 से 20 इंच तक देखी गई है। ब्रिटेन ही नहीं, दुनिया के अन्य देश भी लॉकडाउन के दौरान चूहों के आतंक का सामना कर रहे हैं। अमेरिका में, सेंटरफॉर डिसीज कंट्रोल ने चूहों के आक्रामक हो रहे व्यवहार के बारे में लोगों को सचेत किया है।ब्रिटिश पेस्ट कंट्रोल एसोसिएशन के एक सर्वे से पता चला है कि ब्रिटेन में बड़े चूहों के उपद्रव की घटनाओं में 50 फीसदी का इजाफा हुआ है। द सन अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में चूहे पकड़ने वालों ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा है कि उनका काम बढ़ गया है। एसोसिएशन की टेक्निकल ऑफिसर नताली बुंगे के मुताबिक: "हमारे पास अब तक ये रिपोर्ट आती थी कि चूहे खाली इमारतों में ठिकाने बना रहे हैं लेकिन,अब ऐसा लगता है कि उनके रहवास का पैटर्न भी बदल रहा है | मैनचेस्टर के रैट कैचर मार्टिन किर्कब्राइड ने टेलीग्राफ को बताया कि, ब्रिटेन में चूहे इतने बढ़ गए हैं जितने कि 200 साल पहले की औद्योगिक क्रांति के दौरान भी नहीं थे। वैज्ञानिकों ने लॉकडाउन के शुरू होने के बाद से ही यहां के उपनगरों में बड़े चूहों की आबादी में बढ़ोतरी देखी है। कुतरने वाले जीवों पर पीएचडी करने वाले अर्बन रोडेन्टोलॉजिस्ट बॉबी कोरिगन कहते हैं कि:हमने मानव जाति के इतिहास में देखा है, जिसमें लोग जमीन पर कब्जा करने की कोशिश करते हैं। वे पूरी सेना के साथ धावा बोलते हैं और जमीन हथियाने के लिए आखिरी सांस तक लड़ते हैं। और, चूहे भी अब ऐसा ही कर रहे हैं।दिलचस्प बात यह है कि चीनी कैलेंडर के हिसाब से कोरोनावायरस की भेंट चढ़ा साल 2020 चूहों का साल माना गया है।

    पशुओं पक्षियों में कोरोना 

     20 Apr 2020-अमेरिका में एक बाघ में कोरोना पाया गया. वहीं कई जगहों में कुत्तों में भी कोरोना के निशान मिले. अब फ्रांस की राजधानी पेरिस में पानी में कोविड पाया गया है | 

    05 May 2020-राष्ट्रपति ने कहा-टेस्ट किट सही नहींकोरोना वायरस के ये सैंपल बकरी  भेड़ से लिए गए थे। सैंपल को जांच के लिए तंजानिया की लैब में भेजा गया, जहां बकरी आदि कोरोना पॉजिटिव निकले।

    28Jul 2020,ब्रिटेन में बिल्ली कोरोना पॉजिटिव, पालतू जानवर में कोविड-19 के मामले मिले | 

    13Aug2020-चीन से आई चौंकाने वाली खबर, चिकन में भी कोरोना वायरस!चीन ने फ्रोजन चिकनके पंख में भी कोविड-19 के होने की पुष्टि की है.| 

    17-7-2020 कोरोना वायरस: स्पेन में एक लाख ऊदबिलाव को मारने का आदेश !
    उत्तर-पूर्वी स्पेन के एक फ़ार्म में कई ऊदबिलाव कोरोना वायरस संक्रमित पाए गए हैं जिसके बाद यह फ़ैसला किया गया है| 
     30 जून 2020-चरवाहे को हुआ कोरोना वायरस, बकरियों और भेड़ों को सांस लेने में दिक्कत!

    विशेष बात :विश्व के कई देशों प्रदेशों में पक्षियों के मरने की घटनाएँ सुनाई देती रही हैं |  भारत के कई प्रदेशों मेंबड़ी संख्या में  कौवों के मरने की घटनाएँ दिखाई सुनाई देती रहीं | 
      मई 2020 में गोरखपुर बरेली बिहार मध्यप्रदेश आदि में कोरोना काल में बहुत बड़ी संख्या में मरे हुए चमगादड़ पाए गए हैं। एक साथ इतनी बड़ी संख्‍या में चमगादड़ों की मौत से ग्रामीणों में अज्ञात सा डर फैल गया है। 
       लंपी रोग से बड़ी संख्या में गायों को मरते देखा जा रहा है |                                  
            हामारी और प्राकृतिक वातावरण  

          कोरोना जैसी महामारियों एवं  भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात आदि मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए प्राकृतिक वातावरण को समझना होगा |संपूर्ण ब्रह्मांड में सबकुछ प्राकृतिक वातावरण के द्वारा ही नियंत्रित किया जा रहा है| इसीलिए महामारी ,मौसम एवं प्राकृतिक आपदाओं को अच्छी प्रकार से समझने के लिए एवं इनके विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए हवाओं के न केवल अच्छे बुरे प्रवाह को समझना होगा |प्रत्युत ये भी समझना होगा कि हवाओं के पास शक्ति कितनी है|वह शक्ति उनकी अपनी है या उनकी शक्ति का स्रोत कहीं और है |
         हवाओं की शक्ति के विषय में कल्पना की जाए तो  ग्रहों नक्षत्रों का पिंड रूप में बना रहना,उनकी गति आदि हवाओं के द्वारा नियंत्रित है |बादलों के निर्माण से लेकर उन्हें कहीं लाने  ले जाने का कार्य हवाएँ ही सँभालती हैं|वर्षा होना आदि हवाओं के सहज प्रवाह से ही संभव हो पाता है | 
         आकाश में तारों के टूटने,पृथ्वी में भूकंपों के आने ,समुद्रों में सुनामी के आने  एवं समुद्रों में लहरों के उठने आदि का कारण प्रकुपित हवाएँ ही हैं |आँधीतूफ़ान चक्रवात बज्रपात उल्कापात आदि अप्रिय घटनाएँ भी वायु के प्रकुपित होने से ही घटित होती हैं |
         इसके बिपरीत सहज स्वच्छ शीतल सुगंधित एवं वायु का मंद प्रवाह प्रकृति और जीवन दोनों के लिए ही अच्छा होता है | ऐसी हवा में साँस लेने से मनुष्यों के शरीर स्वस्थ रहते हैं | दूसरी बात ऐसी स्वच्छ सुंदर हवाओं के संयोग से उस समय जो अन्न फूल फल शाक सब्जियाँ आदि पैदा होते हैं |उन्हें खाने से मनुष्यों के शरीर स्वस्थ एवं सबल बनते हैं |तीसरी बात ऐसी हवाओं का स्पर्श पाकर पली बढ़ी औषधीयबनस्पतियाँ एवं उनसे निर्मित औषधियाँ रोगों से मुक्ति दिलाकर शरीरों को स्वस्थ करने में सक्षम होती हैं | 
        प्रकुपित हवाओं में साँस लेने से मनुष्यों के शरीर रोगी होने लगते हैं | दूसरी बात उसी प्रदूषित वातावरण में उन्हीं प्रदूषित हवाओं का स्पर्श पाकर पले बढ़े अन्न फूल फल शाक सब्जियाँ आदि खाने से रोग बढ़ने लगते हैं| तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रदूषित हवाओं के संयोग से पली बढ़ी औषधीयबनस्पतियाँ एवं उनसे निर्मित औषधियाँ स्वयं विकारित हो जाती हैं |ऐसी औषधियाँ  रोगों से मुक्ति दिलाने की जगह कई बार रोगों के बढ़ने में सहायक होने लगती हैं | ऐसी स्थिति बनते ही रोग असाध्य होते चले जाते हैं | 
          विशेष बात ये है कि यदि विषैले वातावरण में साँस लेने  शरीर रोगी होते जा रहे हों | उसी विकारित वातावरण में पैदा हुए अन्न फूल फल शाक सब्जियाँ आदि खाने से पाचनतंत्र बिगड़ता  जा रहा हो|वैसे ही बिपरीत वातावरण में पली बढ़ी औषधीयबनस्पतियों से निर्मित औषधियों के सेवन से रोगों को नियंत्रित किया जाना संभव न हो पा रहा हो | महामारी पैदा होने के लिए यही अवस्था जिम्मेदार होती है |        
         महामारियों के पैदा होने  का क्रम यही होता है | कुछ वर्ष पहले से हवाएँ प्रदूषित होनी प्रारंभ हो जाती हैं |उससे शरीरों में वात पित्त कफ आदि असंतुलित होने लगते हैं |जिससे धीरे धीरे शरीर रोगी होने शुरू हो जाते हैं | ऐसे प्रदूषित वातावरण में पले बढ़े अन्न फूल फल शाक सब्जियाँ खाने से पाचनतंत्र बिगड़ने लगता है |उसी प्रदूषित वातावरण में पली बढ़ी बनौषधियों में बिकार आने लगते हैं| जिससे वे जिन रोगों से मुक्ति दिलाने में सक्षम मानी जाती हैं | वे उन गुणों से हीन होकर  कुछ दूसरे गुणधर्म से युक्त हो जाती हैं |ऐसी परिस्थिति में रोग पैदा होते हैं | भोजन विकारों से रोग मजबूत होते चले जाते हैं | बिकारित औषधियों के प्रयोग से रोग मुक्ति मिल नहीं पाती है और रोग बढ़ते चले जाते हैं | 
          ऐसी परिस्थिति में समाज को यदि स्वस्थ और प्रसन्न रखना है तो प्राकृतिक वातावरण  एवं वायुप्रवाह का सत् परीक्षण करते रहना चाहिए | प्राचीन काल में ऋषि मुनि महात्मा आदि इसी प्राकृतिक वातावरण का अनुभव अध्ययन आदि करने के लिए  जंगलों में आश्रम बनाकर रहते थे | त्रिकाल संध्या करते  थे | संध्या का प्राण प्राणायाम होता है | प्राणायाम करते समय स्वरोदय विज्ञान के आधार पर निरंतर पंचतत्वों का परीक्षण करते रहते थे | वायु प्रवाह बिगड़ना जैसे ही प्रारंभ होता था | उसी समय से उसे नियंत्रित करने की दृष्टि से प्रभावी प्रयत्न प्रारंभ कर दिए जाते थे |यहीं से प्राकृतिक वातावरण  सुधरने लगता था  | जिससे  अन्न फूल फल शाक सब्जियाँ आदि प्रदूषित होने से बच जाती थीं | इससे महामारी जैसे रोग प्रारंभ में ही नियंत्रित होने लग जाते थे | प्रारंभिक समय में ही जिन बनौषधियों का संग्रह करके रख लिया जाता था | उनसे निर्मित औषधियाँ अत्यंत प्रभावी होती थीं | महामारी के विषाणुओं से  कुछ लोग यदि संक्रमित हो भी गए तो उन औषधियों से तुरंत नियंत्रित कर लिया जाता था | इस प्रक्रिया से प्राचीन काल में महामारियाँ  उतनी अनियंत्रित नहीं हो पाती हैं | 
           कोरोना जैसी महामारियों के अनियंत्रण में यह भी एक बड़ा कारण रहा कि जब बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त होने लगे | उस समय इतने भयंकर महारोग को समझने के लिए समय ही कहाँ था | सही निदान के बिना उचित औषधि के विषय में निर्णय कैसे लिया जाए | औषधीय द्रव्यों का इतनी बड़ी मात्रा में तुरंत कैसे संग्रह किया जाए |  इतने कम समय में इतनी अधिक मात्रा में औषधि का निर्माण करके जनजन तक पहुँचाना अत्यंत कठिन कार्य था | महामारी से हुए जनधन के नुक्सान के लिए यह भी एक बड़ा कारण बना है | 
          
                                         समय के अनुसार चलती हैं हवाएँ और बनता है वातावरण !   
          प्राचीन काल में मनुष्यों  ने वर्षों ऋतुओं महीनों पक्षों दिनों के रूप में समय की कल्पना की होगी । ऐसे ही  सूर्य की विभिन्न अवस्थाओं के आधार पर प्रात: दोपहर संध्या एवं रात्रि की कल्पना की गई है। वस्तुतः ये समय का स्थूल और प्रत्यक्ष स्वरूप है | इसलिए ऋतुओं तथा प्रात: दोपहर संध्या  रात्रि आदि शुरू और समाप्त होते प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है |ऐसे ही समय का परोक्ष स्वरूप भी होता है | जिसे प्रत्यक्ष नेत्रों से देखा जाना संभव नहीं होता है ,फिर भी वो प्रकृति और जीवन दोनों को ही प्रभावित करता है | 
         जिसप्रकार से तूफ़ान आने पर हवाएँ अत्यंत तेज चलने के कारण अपने साथ बड़े बड़े पेड़ छप्पर आदि उड़ाकर ले जा रही होती हैं|बड़े बड़े घर गिराती  जा रही होती हैं | हर कोई कह रहा होता है कि तूफ़ान बहुत तेज है | इतनी तेज चलने वाली शक्तिशाली हवाएँ भी प्रत्यक्ष रूप से किसी को दिखाई नहीं पड़ती हैं|इसलिए उन  हवाओं के साथ उड़ रहे धूल तिनके पत्ते वस्त्र आदि वस्तुओं को देखकर ही हवाओं के तेज चलने का अनुमान लगाना पड़ता है |इन उड़ने वाली वस्तुओं  का हवाओं से केवल इतना ही संबंध होता है कि उन्हें हवाओं के द्वारा उड़ाया जा रहा होता है |इसमें विशेष बात यह भी है कि हवाएँ अपनी धुन में उड़ती जा रही होती हैं उड़ने वाली चीजें उनके साथ उड़ती जा रही होती हैं |
         इसीप्रकार से शक्तिशाली समय प्रत्यक्षरूप से दिखाई भले न पड़ता हो किंतु उस समय के साथ जो घटनाएँ घटित हो रही होती हैं |उन्हें देखकर अच्छे बुरे समय की पहचान कर ली जाती है|यदि अच्छी अच्छी घटनाएँ घटित हो रही होती हैं तो अच्छा समय चल रहा होता है और यदि  मनुष्यों को पीड़ित करने वाली बुरी घटनाएँ या प्राकृतिक आपदाएँ घटित हो रही होती हैं | वह बुरे समय का प्रवाह होता है| इस प्रकार से अच्छे बुरे  समय के अनुसार घटित होने वाली घटनाओं को देखकर अच्छे या बुरे समय की पहचान कर ली जाती है| बुरे समय में भूकंप आँधी तूफानों बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी घटनाओं के घटित होने की कल्पना कर ली जाती है| समय के अनुसार ही ऐसी घटनाओं के घटित होने के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | 
         कुल मिलाकर प्राकृतिक वातावरण जब बिगड़ने लगता है तो उसका प्रभाव समस्त पेड़ों पौधों बनस्पतियों तथा किसानों के द्वारा की जाने वाली फसलों में कुछ छोटे छोटे ऐसे बदलाव होने लगते हैं |जिन्हें वही लोग पहचान पाते हैं जो उसी वातावरण में रहकर इसका निरंतर अनुभव किया करते हैं |  
         ऐसे प्राकृतिक परिवर्तनों का प्रभाव मनुष्य समेत समस्त जीवों के स्वास्थ्य और स्वभाव पर पड़ता है |जिससे सभी जीव जंतुओं के शरीरों में स्वास्थ्य संबंधी बिकार पैदा होने लगते हैं और मानसिक बेचैनी बढ़ने लगती है| 
        बुरे समय के प्रभाव से लोगों के स्वास्थ्य बिगड़ते हैं| उनके मन परेशान होते हैं | इसके लिए मनुष्य अपने अनियमित आहार बिहार सोने जागने आदि को जिम्मेदार मान लेते  हैं|ऐसे समय उन्हें जो मानसिक बेचैनी होती है |इसके लिए वे अपनी उन परिस्थितियों को जिम्मेदार  मान लेते हैं| जो प्रायः प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में स्वस्थ अस्वस्थ लाभ हानि एवं लोगों के अच्छे बुरे व्यवहार के कारण प्रतिदिन घटित होती रहती हैं |
        मनुष्य चिकित्सा आदि का लाभ लेकर अपनी सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान निकाल लिया करते हैं| मानसिक बेचैनी शांत करने के लिए मनोरंजनात्मक साधन अपना लेते हैं| कहीं भ्रमण पर निकल जाते हैं| अपने सुख देने वाले स्वजनों के साथ समय बिता लिया करते हैं | इन सबसे उन्हें प्राकृतिक परिवर्तनों का अधिक अनुभव नहीं हो पाता  है |
        समयपरिवर्तन संबंधी बदलाव प्राकृतिक वातावरण में सबसे पहले उभरते हैं|इनका अनुभव करने के लिए प्राकृतिक जीवन जीना आवश्यक होता है |प्राचीनकाल में ऋषियों मुनियों महात्माओं को बनों में रहकर तपस्या करते देखा जाता था | राजा लोग ऋषियों मुनियों महात्माओं का बहुत सम्मान किया करते थे |उनके दर्शन करने बनों में स्थित आश्रमों में आया करते थे |ऋषियों मुनियों के पहुँचने पर उनका बहुत स्वागत किया करते थे |
         इसमें विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि ऋषियों मुनियों में बहुत लोग गृहस्थ होते थे | उन्हें सुख सुविधापूर्ण जीवन जीने की आवश्यकता भी होती थी | उनके पत्नी बच्चों की भी वही आवश्यकताएँ होती थीं |जो आम गृहस्थ की होती हैं | वे चाहते तो राजालोग उन्हें राजधानियों में आवास देने में समर्थ भी थे | राजाओं ने न तो उनसे कभी राजधानियों में रहने के लिए कहा और न ही ऋषियों मुनियों ने राजधानियों में रहने की इच्छा जताई | तपस्या तो वे महानगरों में रहकर भी कर सकते थे किंतु समाजहित के उद्देश्य से प्राकृतिक वातावरण को समझने के लिए पत्नी बच्चों  के साथ जंगलों में कठिन जीवन जीते रहे | अच्छे बुरे समय के शुरुआती सूक्ष्मपरिवर्तनों का अनुभव प्राकृतिक जीवन जीकर ही किए जा सकते हैं |उन्हीं के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं महामारियों के आने से पहले उनके विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगा लिए जाते थे |  
        प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव प्राकृतिक जीवन जीने वाले बनबासियों किसानों पशुचारकों तथा जीव जंतुओं को अधिक होता है | इसलिए ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से पहले ऐसे लोगों एवं जीवजंतुओं को ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वाभाष हो जाया करता है | भूकंपों महामारियों आदि के आने से पहले प्राकृतिक जीवन जीने वाले बनबासियों तथा जीव जंतुओं के स्वभाव व्यवहार आदि में कुछ अलग प्रकार के परिवर्तन होते देखे जाते हैं | 
         जंगलों गाँवों खेतों आदि में रहकर प्राकृतिक वातावरण का अनुभव करने वाले लोग तथा पशु पक्षी आदि प्राणी ऐसे परिवर्तनों का अनुभव आगे से आगे कर लिया करते हैं |प्राकृतिक वातावरण में रहकर तपस्या करने वाले ज्ञान विज्ञान से संपन्न ऋषि मुनि आदि प्रत्येक प्राकृतिक घटना को घटित होते देखते  हैं |ऐसे  प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव हमेंशा किया करते हैं |जिसके आधार पर उनके द्वारा लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि सही निकला करते हैं | प्राकृतिक वातावरण में रहने  वाले पशु पक्षी आदि भी ऐसी घटनाओं का अनुमान आगे से आगे लगा लिया करते हैं |जिसके संकेत उनके स्वभाव व्यवहार आदि से मिला करते हैं | इन्हें समझकर ही महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | 

       इसके अतिरिक्त प्राकृतिक वातावरण से दूर महानगरों के वातानुकूलित भवनों में बैठकर ऐसे प्राकृतिक विषयों पर कोई अनुसंधान किया जाना कैसे संभव है | किसी नदी तालाब आदि में उतरे बिना जैसे तैरना नहीं सीखा जा सकता है ,वैसे ही प्रकृति के बीच रहकर प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव किए बिना भूकंप आँधी तूफानों वर्षा बाढ़ एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं को समझना एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना असंभव है |  

                          

                                                    


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    इसे आधुनिक विज्ञान के पहले लगाना होगा 

    जलवायु परिवर्तन और उसका समाधान !

            वर्तमान समय में जितनी भी बड़ी घटनाएँ अचानक घटित होती हैं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाता है | कई बार किसी घटना के विषय में लगाया हुआ पूर्वानुमान  गलत निकल जाता है | ऐसा होने का कारण पूर्वानुमान लगाने वाले विज्ञान एवं अनुसंधानों की कमजोरी है,जबकि इसका कारण  जलवायु परिवर्तन को बता दिया जाता है |जलवायु परिवर्तन  के कारण यदि पूर्वानुमान  नहीं लगाए जा सकते हैं या लगाए हुए पूर्वानुमान  गलत निकल सकते हैं तो तब तक ऐसे प्रयास ही क्यों करने जब तक इसके लिए विज्ञान एवं जिम्मेदार अनुसंधानों की व्यवस्था नहीं हो जाती है | प्राकृतिक विषयों पूर्वानुमान लगाने के लिए विश्वसनीय वैज्ञानिक विकल्प खोजे जाने की आवश्यकता है | 

        किसी मनोरोगी को चिकित्सक ने नींद की यदि एक गोली खाने की सलाह दी है किंतु रोगी यदि छै गोलियाँ खा लेता है तो उसके दुष्प्रभाव  भी होंने लगते हैं |जिनका समाधान चिकित्सकों  को तुरंत खोजना पड़ता है | केवल यह कह देने मात्र  से बात नहीं बन जाती है कि उसने नींद की छै गोलियाँ खा ली थीं इसलिए नींद आ रही है | 

          विशेष बात यह भी है कि यदि ऋतुप्रभाव में इतना बड़ा बदलाव हो ही रहा है कि  जलवायुपरिवर्तन जैसी घटना घटित होते देखी जा रही है तो केवल यह कह देना ही पर्याप्त नहीं है कि जलवायुपरिवर्तन  हो रहा है | पहले की अपेक्षा तापमान यदि अचानक बढ़ने या घटने लगे तो ऐसा होने का कारण भले  जलवायुपरिवर्तन  ही क्यों न हो किंतु इसके कुछ परिणाम भी तो होंगे जिनका अध्ययन किया जाना आवश्यक है |जलवायुपरिवर्तन  क्यों हो रहा है | इसके दुष्प्रभाव क्या होंगे !प्राकृतिक घटनाओं एवं मनुष्यों के स्वास्थ्य पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा | इसपर भी अनुसंधान होना चाहिए | जिससे यह पता लगाया जा सके कि महामारी जैसी घटनाओं के पैदा होने का कारण कहीं जलवायुपरिवर्तन  का होना ही तो नहीं है | इसके भविष्य में पड़ने वाले अच्छे बुरे प्रभावों का भी सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना पड़ेगा |

           कई बार सुनने को मिलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद सूखा पड़ेगा, आँधी तूफ़ान भूकंप महामारी आदि घटनाएँ बार बार घटित होंगी |तापमान बढ़ जाएगा ,ग्लेशियर पिघल जाएँगे  तो ऐसी भविष्य संबंधी बातें तब विश्वास करने योग्य होंगी जब पूर्वानुमान विज्ञान के द्वारा मानसून आने जाने की सही तारीखों का पता लगाया जाना संभव होगा |  मौसमसंबंधी दीर्घावधि मध्यावधि  पूर्वानुमान पता लगाए जा  सकेंगे |

          जिस अनुसंधान प्रक्रिया के द्वारा विगत बीस वर्षों में किसी बड़ी प्राकृतिक घटना या महामारी का पूर्वानुमान  नहीं लगाया जा सका है | उस प्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा  यह कैसे कहा  जा सकता है कि  जलवायु परिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद कैसा कैसा प्राकृतिक वातावरण बनेगा | 

         प्रकृति में यदि इतने बड़े बड़े बदलाव होंगे तो उस परिस्थिति में मनुष्यादि समस्त प्राणियों का जीवन कितना सुरक्षित होगा | उस प्रकार का वातावरण क्या जीवों के सहने लायक होगा | उस प्रकार के दुष्प्रभाव क्या सौ दो सौ वर्ष बाद एक साथ ही दिखाई देंगे या धीरे धीरे क्रमशः होते देखे  जाएँगे |

       उसप्रकार का डरावना वातावरण बनने के दुष्प्रभाव क्या मनुष्य जीवन पर भी पडेंगे | उससे रोग महारोग जैसी घटनाएँ भी क्या घटित होंगी | उनसे सुरक्षा के लिए अभी से क्या सतर्कता बरती जानी चाहिए | यह भी पता लगाया जाना चाहिए |

      कुल मिलाकर हमें यदि जलवायु परिवर्तन होने की जानकारी अभी से पता लग गई है  ,जिसके परिणाम स्वरूप भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पता लगा ही लिया गया है तो उससे बचाव के लिए भी अभी से आवश्यक प्रयत्न शुरू कर दिए जाने चाहिए तभी इस जानकारी का सदुपयोग हो पाएगा |


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