'कर्मण्येवाधिकारस्ते' मा फलेषु कदाचन !
कार्य होने का कारण कर्म है या कुछ और !
किसी भी कार्य को करने के लिए कर्म किया जाना कितना आवश्यक होता है| प्रत्येक कर्म का कोई न कोई फल होता है| उस फल की आशा से ही सभी कार्य किए जाते हैं |यदि कह दिया जाए कि कर्म के फल पर कर्म करने वाले का अधिकार ही नहीं है तो कोई कर्म करेगा ही क्यों ?जो कार्य करे वो फल की इच्छा क्यों न करे |
भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि 'कर्मण्येवाधिकारस्ते' मा फलेषु कदाचन ! इसका अर्थ है कि कर्म पर आपका अधिकार है किंतु फल पर नहीं है | इसका भावार्थ है कि कार्य के लिए प्रयत्न(कर्म)आप कर सकते हो,किंतु परिणाम (फल)पर आपका अधिकार नहीं है | ऐसे में प्रश्न उठता है कि कर्मफल पर कर्म करने वाले का अधिकार क्यों नहीं है | दूसरा प्रश्न यह है कि कर्म का फल होता भी है या नहीं !कहीं सब कुछ भाग्य और समय के अनुसार ही तो नहीं घटित होता है | कर्मफल पर यदि कर्म करने वाले का ही अधिकार नहीं है तो फिर है किसका !जिसका भी है उसका क्यों है ? जिसने कर्म किया है कर्मफल पर अधिकार उसी का होना चाहिए | वस्तुतः कर्म का फल होता नहीं है या कर्म करने वाले को मिलता नहीं है या उस कर्म का फल कहीं और चला जाता है| कहीं ऐसा तो नहीं है कि कर्म करना मनुष्य की मजबूरी ही हो,बाक़ी मनुष्यों को वही मिलता हो जो कुछ प्राकृतिक रूप से मिलना होता हो |मनुष्यों को जो जो कुछ मिलना हो यदि वो प्राकृतिक रूप से ही मिलता हो | तो कर्म करने की आवश्यकता ही क्या बचती है| वैसे भी कर्म का अधिकार मिल जाने से मनुष्यों का क्या लाभ है | कर्मफल क्या होता है ? व्यवहार में ऐसा देखा जाता है कि जो कार्य किए जाते हैं | उनके बदले जो मिलता है | उसे कर्मफल मान लिया जाता है |
सिद्धांततः कर्म के फल को कर्म के अनुरूप होना चाहिए ,किंतु व्यवहार में ऐसा होते नहीं देखा जाता है | कुछ रोगियों को स्वस्थ करने के लिए उनकी चिकित्सा शुरू की जाती है |चिकित्सा का लाभ लेने के बाद तीन घटनाएँ घटित होती हैं | पहली उनमें से कुछ रोगी स्वस्थ हो जाते हैं | दूसरी कुछ रोगी अस्वस्थ बने रहते हैं | तीसरी कुछ रोगियों की मृत्यु हो जाती है |चिकित्सा के बाद ये तीन घटनाएँ घटित हुईं | इनमें चिकित्सा का परिणाम किस घटना को किस आधार पर माना जाए | कुछ लोगों के स्वास्थ्य सुधरने को यदि चिकित्सा का परिणाम माना जाए तो चिकित्सा के बाद ही जिन लोगों का स्वास्थ्य और अधिक बिगड़ जाता है या जिन लोगों की मृत्यु हो जाती है |प्रयास तो उन्हें भी स्वस्थ लेने के लिए ही किए गए थे ,किंतु प्रयासों के अनुरूप वहाँ परिणाम नहीं मिले | वहाँ तो प्राकृतिक रूप से जो होना था वही हुआ है | ऐसी स्थिति में समय की दृष्टि से देखा जाए तो जो स्वस्थ हुए हैं | उनके स्वस्थ होना भी प्रयासों का परिणाम न मानकर प्रत्युत प्राकृतिक इसलिए माना जाना चाहिए !क्योंकि यदि ये भी स्वस्थ न हुए होते या इनकी भी मृत्यु हो जाती तो चिकित्सकीय प्रयत्न करने वालों के पास इन्हें स्वस्थ कर लेने या जीवित कर लेने का कोई विकल्प नहीं था |
कर्म के अनुसार यदि फल मिलता तब तो जो कर्म करता उसी को भोजन मिलता !स्वास्थ्य या मनोदशा बिगड़ने के कारण कुछ लोग कर्म करने में असमर्थ होते हैं|भोजन वस्त्र की आवश्यकताएँ उनकी भी होती हैं| ऐसे ही सृष्टि के कण कण में विद्यमान असंख्य जीव जंतु होते हैं| भूख तो उन्हें भी लगती है ,जबकि वे कर्म नहीं कर पाते हैं |ईश्वर को उनकी भी भोजन आदि आवश्यकताएँ पूरी करनी होती हैं | विशेष बात ये है कि कर्म निरर्थक नहीं होते !प्रत्युत उन कर्मों का परिणाम उस समय न मिलकर प्रत्युत वही कर्म पुण्यरूप में परिवर्तित होकर उनका फल (परिणाम )कालान्तर में मिलता है | जिस प्रकार से प्रारंभिक कक्षाओं में छोटे छोटे बच्चों की परीक्षा लेते समय कुछ बच्चों को कागज़ पेंसिल रंग आदि देकर उस सामान से किसी चित्र को बनाने का काम दिया जाता है | ऐसे ही कुछ दूसरे बच्चों को मिट्टी,रंग तथा कुछ सींकें बिंदी आदि देकर उस सारे सामान का उपयोग करते हुए कोई खिलौना बनाने के लिए कहा जाता है |
विशेष बात यह है कि परीक्षा के नाम पर बच्चे से ये सब कुछ बनवाया तो जाएगा,किंतु इसके बदले उस बच्चे को मिलेगा क्या !ये नहीं बताया जाता है | वैसे भी प्रत्यक्ष रूप से ऐसा कुछ मिलता भी नहीं है,फिर भी बच्चे उस कार्य को करते हैं |उसका फल भी उन्हें उस समय मिलते भले न दिखे किंतु उस कर्म का फल उन्हें मिलता अवश्य है | वह किसी भी स्वरूप में मिल सकता है | इसमें विशेष बात यह होती है कि उस परीक्षा में बच्चे को कागज़ पेंसिल रंग आदि देकर जो कुछ बनाने को कहा जाता है |उसमें जो जो कुछ दिया गया होता है,उस सबका उपयोग करके खिलौना आदि बनाना होता है | यदि कागज पेंसिल रंग मिला है तो रंग का उपयोग किए बिना ही केवल कागज़ पर पेंसिल से भी कोई चित्र बनाया जा सकता है,किंतु ये मान्य नहीं होगा | इसके लिए उसे यदि तीन चीजें मिली हैं तो उसे उन तीनों चीजों का उपयोग करके उस चित्र या खिलौने आदि का निर्माण करना होता है | इसीप्रकार से ईश्वर ने जिस व्यक्ति को जो कुछ करने लायक शरीर स्वास्थ्य संपत्ति एवं संसाधन आदि दिए होते हैं |उन सभी का उपयोग करते हुए मनुष्य को अपना कर्तव्य समझकर अच्छा से अच्छा कर्म करना होता है | ऐसा सोचे बिना कि उसके बदले में क्या मिलेगा !फल की आशा मनुष्य को इसलिए नहीं करनी चाहिए ,क्योंकि मनुष्य वही कर्म कर पाता है जो करने लायक उसे शरीर स्वास्थ्य संपत्ति एवं संसाधन आदि ईश्वर के द्वारा दिए गए होते हैं | इसलिए ईश्वर जिन्हें अपनी विशिष्ट पहचान बनाने के लिए महत्वाकाँक्षा आत्मसम्मान आदि की भावना देता है |उन्हें उसप्रकार के बड़े कार्य करने के बड़े संकल्प करने की शक्ति देता है| सभी प्रतिकूल परिस्थितियाँ सहने की सामर्थ्य देता है| संघर्ष करने की क्षमता देता है | उसप्रकार के गुण विद्या बुद्धि आदि प्रदान करता है|उन्हें उसप्रकार के कार्य करने के लिए स्वस्थ और मजबूत शरीर देता है| उसप्रकार के कार्य करने की इच्छा देता है |ऐसी ईश्वर कृपा से प्राप्त हुए संसाधनों से जो कर्म किए जाते हैं | उनके फल पर कोई मनुष्य अधिकार कैसे कर सकता है | विशेष बात यह है कि यदि फल की आशा न हो तो कर्म ही क्यों किए जाएँ| कर्म किए बिना ये कैसे पता लगाया जा सकता है कि किस व्यक्ति को जीवन के किस क्षेत्र में कितना विस्तार करना है | सामान्य रूप से कर्म करने वालों के कुछ कार्य असफल और कुछ सफल होते हैं | असफल कार्यों से संकेत मिलता है कि हमारे जीवन के विस्तार के लिए जिस क्षेत्र में ईश्वर ने जो सीमाएँ निर्धारित की हैं | उनके अनुसार हमें उस क्षेत्र में नहीं जाना है | किसी क्षेत्र विशेष में सफलता मिलने का मतलब होता है कि हमें आगे बढ़ने के लिए ईश्वर ने ये मार्ग निश्चित किया है | इस प्रकार से असफल कार्यों को छोड़ते एवं सफल कार्यों की ओर बढ़ते बढ़ते जीवन का वह चित्र तैयार हो जाता है | जिसे बनाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को जीवन मिलता है |
कुलमिलाकर सुख दुःख हानिलाभ जन्म मृत्यु जैसी घटनाएँ समय संचार के साथ होने वाले परिवर्तन हैं| इसलिए जिसे जो जितना सुख दुःख हानि लाभ आदि मिलना छूटना होता है |वो सब समय बीतने के साथ साथ मिलता छूटता जाता है | किसी का रोगी होना, किसी को सुख दुःख मिलना, हानि लाभ होना या जन्ममृत्यु होने जैसी घटनाओं के घटित होने का प्राकृतिक रूप से ही समय निर्धारित है | प्रकृति और जीवन से संबंधित ऐसी सभी घटनाएँ अपनी अपनी बारी की प्रतीक्षा किया करती हैं| जब जिसके घटित होने का समय आता है तब वे घटित होते चली जाती हैं| समय संचार का ज्ञान न होने के कारण अज्ञान वश उन घटनाओं को एक दूसरे के साथ जोड़ दिया जाता है |
का मतलब क्या यह माना जाए कि जिसके कारण हमें सुख या दुःख मिलता है |उसका हमारे द्वारा किए जाने वाले कर्म से कोई संबंध ही नहीं है |कुछ लोगों को वृद्धावस्था में बहुत कष्ट मिलते हैं ,जबकि उन्होंने ने अपना संपूर्ण जीवन अत्यंत संयम तथा सदाचरण पूर्वक बिताया होता है | ऐसे ही कुछ लोगों में अनेकों दोष दुर्गुण आदि होते हैं | वे दूसरों को बहुत पीड़ित करते हैं फिर भी उनका जीवन सुख सुविधापूर्ण व्यतीत होता है | ऐसी स्थिति में सदाचारियों को दुःख दरिद्रता मिलना ये कर्म का फल नहीं हो सकता है और न ही दुराचारियों को सुख शांति मिलना ही कर्मफल हो सकता है | यदि इसे उनके कर्मों का फल मान लिया जाएगा तो कोई सदाचरण अपनाएगा ही क्यों ?
ज्योतिष आदि समय संबंधी विद्याओं के द्वारा समयसंचार के विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाकर प्रत्यक्ष रूप से सफल असफल हुए बिना ही यह पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि किस व्यक्ति के जीवन के किस क्षेत्र में कितना सफल होना है या विस्तार की सीमाएँ क्या हैं |
इनमें बहुत सारी उस प्रकार की घटनाएँ होती हैं | जिनके लिए किसी ने कभी प्रयास ही नहीं किया होता है |रोग दुःख संकट तनाव मृत्यु नुक्सान अपमान आदि प्राप्त करने के लिए तो कोई कभी प्रयत्न ही नहीं करता है,फिर भी उस प्रकार की घटनाएँ उसके जीवन में घटित होते देखी जाती हैं|ऐसे ही भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात महामारी जैसी घटनाओं के लिए कोई कभी प्रयत्न ही नहीं करता है,फिर भी अपना समय आने पर ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं | ऐसी दुःख देने वाली घटनाएँ घटित ही न हों इसके लिए लोग हमेंशा भगवान से प्रार्थना किया करते हैं ,फिर भी उन घटनाओं को घटित होते देखा जाता है |
कुछ प्रयत्न ऐसे होते हैं | जिनमें कई बार संयोगवश प्रयासों के अनुरूप परिणाम आते दिखते हैं किंतु ऐसा ही होगा ,यह निश्चित नहीं होता है | जिसप्रकार के प्रयत्न किए जाएँ कभी वैसा हो जाता है और कभी नहीं भी होता है | ऐसे कार्य भी मनुष्यकृत ही होते हैं | प्रकृति और जीवन दोनों में ही कुछ घटनाएँ ऐसी भी होती हैं| जिनके लिए कोई प्रयास करे या न करे,किंतु वे घटित होती ही हैं| ऐसी घटनाओं में कुछ अच्छी और कुछ बुरी घटनाएँ होती हैं | ऐसी घटनाओं में विशेष बात यह है कि हर कोई चाहता है कि उसके जीवन में अच्छी अच्छी घटनाएँ घटित हों !इसलिए अच्छी घटनाओं के लिए लोग हमेंशा छोटे बड़े प्रयत्न किया ही करते हैं |प्रयत्नों के बाद जितना जो कुछ अच्छा घटित होता है | उसे वे अपने कर्म का फल मान लेते हैं |
बुरी घटनाओं के लिए कोई प्रयत्न ही नहीं करता है | सबकुछ अच्छा अच्छा करने के बाद भी कभी कभी बुरी घटनाएँ घटित होती हैं |उन्हें उन प्रयत्नों का परिणाम माना क्यों जाए या न माना जाए |
Comments
Post a Comment