चतुर्थ : कार्यकारण संबंध और महामारी खंड 4, book 18-11-20024

 कार्य-कारण संबंधों में उलझा है महामारी का रहस्य !

 
     मैने कार्य कारण संबंध के आधार पर महामारी को समझने के लिए प्रयत्न किया है | मेरे सामने सबसे बड़ी चुनौती महामारी पैदा होने के लिए जिम्मेदार कारण खोजना होता है | कार्य - कारण संबंध प्रायः प्रत्येक काल में प्राच्य - पाश्चात्य विचारकों के चिंतन का विषय रहा है।महर्षि कपिल हों, महात्मा बुद्ध हों अथवा अरस्तु हों, सभी ने कार्य - कारण संबंध पर विचार अवश्य  किया है |  प्रकृति या जीवन में घटित होने वाली प्रत्येक घटना परिस्थिति मनस्थिति आदि के लिए जिम्मेदार कोई न कोई कारण अवश्य होता है | कोई भी घटना या कार्य बिना कारण के नहीं घटित होता है| इसीलिए प्रकृति और जीवन से प्रत्येक घटना को समझने के लिए उसका कारण खोजना मनुष्यों के स्वभाव में सम्मिलित है |किसी रोगी के रोगी होने का कारण चिकित्सक जानना चाहता है | समाज में बढ़ते अपराधों,तनावों, हिंसक आंदोलनों आदि का कारण हर कोई जानना चाहता है | जिन घटनाओं के कारण पता लगे उनका पूर्वानुमान भी पता लग जाता है और यदि संभव हुआ तो उन समस्याओं के समाधान भी निकल जाते हैं |
  
     जिस प्रकार से कड़ाही में पक रहे दूध में उबाल आने पर दूध आग में गिरने लगता है | उससे आग का वेग धीमा हो जाने के कारण उबाल कुछ समय के लिए रुक जाता है | उसके बाद आग फिर तेज होती है | उससे  दूध को फिर उबलते देखा जाता है |उसी प्रकार से कोरोना महामारी  संक्रमण बार बार बढ़ने लग रहा था | इसके बाद स्वतः शांत होने लगता था|उसके कुछ समय बाद फिर संक्रमण बढ़ने लगता था फिर शांत होता था |उसके बाद भी संक्रमण बढ़ते देखा जाता था |
      दूध में उबाल आना पूरी तरह से कब बंद होगा ! उबलते हुए दूध को देखकर यह पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं है |इसके लिए दूध के उबलने का कारण उस आग को खोजना होगा जो कड़ाही के नीचे जल रही है | वो आग कब तक जलेगी इसका अनुमान आग में पड़े हुए ईंधन के आधार पर लगाना होगा | इसका मतलब हुआ कि जितनी देर आग जलती रहेगी उतनी देर उबाल आता रहेगा ,तथा आग कब तक जलती रहेगी जबतक आग में ईंधन बना रहेगा| ऐसी स्थिति में दूध में उबाल कबतक आते रहेंगे ! इसके लिए आग में जल रहे ईंधन के आधार पर अनुमान लगाना होगा | 
      इसी प्रकार से महामारी संबंधी संक्रमण पूरी तरह से बंद कब होगा !यह पता लगाने के लिए  महामारी पैदा होने या घटने बढ़ने के लिए जिम्मेदार कारण को खोजकर उसके आधार पर पूर्वानुमान लगाना होता है | 
    महामारी पैदा होने की घटना के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार माना जाता  रहा है | उन उन के विषय में सही सही पूर्वानुमान लगाकर उनके आधार पर महामारी के घटने बढ़ने और समाप्त होने के विषय में पूर्वानुमान लगाना होगा |
      महामारी पैदा होने का कारण मौसमसंबंधी घटनाओं को बताया जाता रहा है |यदि वास्तव में महामारी पैदा होने या उससे संबंधित संक्रमण बढ़ने घटने के लिए मौसमसंबंधी घटनाएँ ही वास्तव में जिम्मेदार होती हैं,तो मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में सही सटीक पूर्वानुमान लगाकर उसके आधार पर महामारी के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान लगाने होंगे |मौसमसंबंधी पूर्वानुमान जितने प्रतिशत सही लगाए जा सकेंगे महामारी संबंधी पूर्वानुमान भी उतने प्रतिशत ही सही निकल पाएँगे |
   ऐसे ही महामारी पैदा होने के लिए तापमान कम होने को जिम्मेदार बताया जाता रहा है| यदि ये अनुमान सच है कि महामारी पैदा होने एवं संक्रमण बढ़ने के लिए तापमान का कम होना सबसे बड़ा कारण है | ऐसी स्थिति में महामारी बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए तापमान कम कब होगा ! इसके विषय में पहले पूर्वानुमान लगाना  होगा | उसके आधार पर ही महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
     इसीप्रकार से महामारी पैदा होने एवं संक्रमण बढ़ने के लिए वायु प्रदूषण बढ़ने  को जिम्मेदार बताया जाता रहा है |इसे यदि सच माना जाए तो महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए वायुप्रदूषण बढ़ने के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना होगा |उसी के आधार पर वायुप्रदूषण जब जब बढ़ेगा तब तब महामारी संबंधी संक्रमण भी बढ़ेगा | ऐसा पूर्वानुमान लगाना होगा !
     विशेष बात यह है कि मौसमसंबंधी घटनाएँ हों या तापमान कम होने संबंधी घटनाएँ या फिर वायुप्रदूषण बढ़ने संबंधी घटनाएँ इनके विषय में सही सही पूर्वानुमान लगाए बिना महामारी के विषय में सही सही पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं है | 
  मौसमविज्ञान और महामारीविज्ञान से संबंधित अनुसंधानों की भी यही स्थिति है,जो घटना किसी भी रूप में घटित होते दिखाई दे रही होती है |केवल उसी के  विषय में कुछ अंदाजा लगा लिया जाता है ,किंतु  उस घटना के बाद क्या होगा |इस विषय में किसी को कुछ पता नहीं होता है |  
     कुलमिलाकर दूध के उबलने का कारण आग है| यह पता लग जाने के कारण आग के आधार पर दूध के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि दूध में उबाल कब तक आएगा |
     इसीप्रकार से कोरोनामहामारी पैदा होने का कारण यदि वर्षा संबंधी वातावरण में बदलाव हैं अपने प्राकृतिक कारण से पैदा हुई थी | प्राकृतिक कारण से ही उसका संक्रमण बढ़ते घटते देखा जा रहा था |  महामारी समाप्त भी अपने प्राकृतिक कारण से ही हुई है |
    विशेष बात यह है कि दूध के उबलने का कारण  कड़ाही के नीचे जलने वाली आग है | यह पता लग जाने से आग के आधार पर दूध के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि इसमें उबाल कब तक आएगा !किंतु महामारी पैदा होने का वास्तविक कारण क्या है ये आज तक पता नहीं लगाया जा सका !जो कारण गिनाए जाते रहे | उनके विषय में  ऐसी स्थिति में महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगा  पाना कैसे संभव हो सकता है |  
                                                          घटनाएँ और उनके कारण     
       
     जिस किसी भी घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना होता है| सबसे पहले उसके घटित होने के निश्चित कारण खोजे जाने बहुत आवश्यक होते हैं |कारणों को जाने बिना लगाए गए पूर्वानुमान विश्वसनीय नहीं होते हैं | वे गलत निकलते इसीलिए देखे जाते हैं क्योंकि पूर्वानुमान लगाने वालों को उनके निश्चित कारण पता नहीं होते | जिन कारणों को  सच मानकर वे पूर्वानुमान लगाते हैं |यदि  वे वास्तविक कारण नहीं होते तो उनके आधार पर लगाए गए पूर्वानुमान गलत  निकल जाते हैं |
     मौसमसंबंधी घटनाओं के निर्माण होने का कारण क्या है |स्वच्छ आकाश में अचानक बादल क्यों आ जाते हैं !कभी बरसते हैं | कभी कम बरसते हैं तो कभी अधिक बरसते हैं | कभी बिना बरसे ही चले जाते हैं |इसके बाद आकाश फिर साफ हो जाता है| ऐसा होने का कारण क्या है ? ऐसे ही शांत स्वच्छ आकाशीय वातावरण में कभी अचानक आँधी तूफ़ान आ जाते हैं| उनका वेग कभी कम तो कभी अधिक तो कभी बहुत अधिक हो जाता है| ऐसा होने के लिए जिम्मेदार आधारभूत कारण क्या होता है | उस कारण की खोज किए बिना मौसम को समझना कैसे संभव है और इसके बिना पूर्वानुमान लगाया जाना बिल्कुल संभव नहीं है |
      विशेष बात यह है कि मौसमसंबंधी घटनाओं के घटित होने के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार माना जाता है | वे कितने सही हैं | इसका परीक्षण करने के लिए उन कारणों के आधार पर मौसम संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाए जाएँ | यदि ये सही निकल  जाते हैं | इसका मतलब है कि मौसम संबंधी घटनाओं के लिए वही कारण जिम्मेदार हैं |ऐसे कारणों की खोज किए बिना मौसम को न तो समझना संभव है और न ही उसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना ही संभव है | उस मुख्य कारण की खोज किए बिना यह भी विश्वास पूर्वक नहीं कहा जा सकता है कि जलवायुपरिवर्तन जैसी कोई घटना घटित होती भी है या नहीं !उसका प्रभाव मौसम पर कोई प्रभाव पड़ता भी है या नहीं |      
      नहरें मनुष्यों द्वारा उचित ढलान देकर बनाई जाती हैं | इसीलिए नहरों में न तो गड्ढे होते हैं और न ही नदियों की तरह कहीं कहीं तालाब होते हैं ,न ही अधिक ढलान होता है | नहरों में पानी मनुष्यों के द्वारा ही अपनी इच्छा के अनुसार उचित मात्रा में छोड़ा जाता है| उस पानी की मात्रा प्रवाह ढलान ठहराव आदि सब कुछ मनुष्यों के द्वारा नियंत्रित हो रहा होता है | इसलिए उस पानी में बहते जा  रहे लकड़ी के टुकड़ों ,फूलों फलों पत्तियों आदि के विषय में ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये यदि इतने घंटों में इतनी दूर जा सकते हैं ,तो इतनी दूरी और तय करने के लिए इन्हें कितने घंटे और चाहिए | उस हिसाब से अंदाजा इसलिए लगाया जा सकता है ,क्योंकि यहाँ सब कुछ मनुष्य निर्मित है |
        नदियाँ प्राकृतिक होती हैं  इसलिए उन पर ये बात संपूर्ण रूप से लागू नहीं होती है | नदियों कर रुख समझने के लिए उनसे संबंधित प्राकृतिक परिस्थितियों को समझना होता है | नदी की धारा ढलान पर तेज बहती है | कहीं कहीं चौड़ाई बढ़ने के कारण तालाब जैसा बन जाता है | वहाँ गति धीमी हो जाती है ! कई जगह नदियाँ मुड़ती हुई जाती हैं | बाढ़ के समय कहीं कहीं भँवरें पड़ती हैं | वहाँ पानी तेजी से घूमता है | ये सब कुछ नदी के बहाव में देखने को मिलता है |विशेष बात ये है कि पानी के बहाव में जो ये विभिन्न प्रकार की घटनाएँ घटित होती दिखाई पड़ रही होती हैं | इसका प्रभाव नदी के बहाव पर पड़ने से उसकी गति घटती बढ़ती रहती है | इसलिए नदी के पानी में बहते जा  रहे लकड़ी के टुकड़ों ,फूलों फलों पत्तियों आदि के बहाव के विषय में नहरों की तरह इतना सही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है |
       नहरों का बहाव मनुष्यों द्वारा नियंत्रित होता है,जबकि नदियों का बहाव स्वतंत्र होता है |नदी को जहाँ जब जैसी प्राकृतिक परिस्थितियाँ मिलती हैं |नदी की धारा को वहाँ वैसा ही बहना पड़ता है! इसलिए नदी की धारा में बहते जा रहे लकड़ी के टुकड़े,  फल फूल पत्तियों आदि के विषय में यदि जानना हो कि ये बहकर कब कहाँ पहुँचेंगे,तो इसका अनुमान पूर्वानुमान आदि नदी की धारा के अनुसार ही लगाया जा सकेगा ,क्योंकि लकड़ी के टुकड़े,फल फूल पत्तियों आदि का बहाव नदी की धारा के आधीन है | नदी की धारा अपनी प्राकृतिक परिस्थितियों के आधीन है | इसलिए उन परिस्थितियों के आधार पर नदी के बहाव के विषय में अंदाजा लगाना पड़ेगा और नदी के बहाव के आधार पर नदी में बहते लकड़ी के टुकड़ों ,फलों  फूलों पत्तियों आदि के विषय में यह पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा | ये कितनी गति से बहकर कैसे कैसे कब कहाँ पहुँच पाएँगे | 
     इसीप्रकार से उपग्रहों रडारों के द्वारा बादलों आँधीतूफानों को दूर से देख लिया जाता है| वे जिस दिशा में जितनी गति जा रहे होते हैं| उसी के आधार पर  यह अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँच सकते हैं| इसमें विशेष ध्यान देने की बात ये है कि ये अंदाजा तब सही निकलेगा जब उसी गति से उसी दिशा में आगे बढ़ते रहें ,किंतु अक्सर ऐसा होता नहीं है | हवाओं का रुख कभी भी बदल सकता है|उसके बदलते ही मौसम भविष्यवाणियाँ गलत हो जाती हैं |
     मौसमसंबंधी वर्षा बादलों एवं आँधी तूफानों से संबंधित पूर्वानुमानों के लिए ऐसी घटनाओं को पहले से उपग्रहों रडारों से देख लिया जाता है वे जिस दिशा में जितनी गति से जा रहे होते हैं उसी के अनुशार आगे के विषय में अनुमान लगा लिया जाता है | ऐसे पूर्वानुमान वर्षा बादलों एवं आँधी तूफानों को देखकर लगाए जाते हैं |वे स्वयं स्वतंत्र नहीं होते वे जिन  वायु समूहों के साथ उड़ रहे होते हैं | उन वायु समूहों के अचानक मुड़ जाने से वर्षा बादलों एवं आँधी तूफानों को भी उसी ओर मुड़ना होगा | 
      ऐसी घटनाओं से संबंधित मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ जिन हवाओं का रुख बदल जाने के कारण गलत निकल जाती हैं | उन हवाओं के विषय में अनुसंधान पूर्वक यह पता लगाना होगा कि हवाओं के चलने का कारण क्या होता है | हवाओं की गति घटने बढ़ने का कारण क्या होता है | हवाओं की दिशा बदलने का कारण क्या होता है|हवाओं के विषय में यह सब कुछ पता लगा लिए जाने के बाद ही उसके आधार पर वर्षा बादलों एवं आँधी तूफानों से संबंधित सही पूर्वानुमानों को लगाना संभव हो पाएगा | हवाओं की गति कब कितनी हो सकती है और हवाओं के बहने की दिशा कब कौन सी बदल सकती है| हवाओं का रुख भविष्य में कब कैसा बदलेगा | इसका पूर्वानुमान लगाए बिना मौसम के विषय में सही पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं है | ऐसे ही मौसमसंबंधी दीर्घावधि (लंबीअवधि ) के पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसमसंबंधी घटनाओं के निर्माण का कारण खोजना होगा !
     ऐसे ही महामारी के पैदा और समाप्त होने में या संक्रमण के घटने बढ़ने के वास्तविक कारणों को खोजकर उनके आधार पर लगाए गए महामारी संबंधी पूर्वानुमान सही निकल सकते हैं | इसके अतिरिक्त ऐसी आशा नहीं करनी चाहिए | 
                                      
                            प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने का कारण कौन ?
    भूकंप आँधी तूफान बाढ़ बज्रपात जैसी सभीप्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ आती जाती रहती हैं|महामारियाँ हमेंशा से  आती जाती रहती हैं |  ये प्रकृति का नियम है | इसे वैज्ञानिक अनुसंधानों या प्रयत्नों के द्वारा न तो बदला जा सकता है और न ही रोका जा सकता है |
    भूकंप आएँगे तो धरती हिलेगी ही| इसके बिना भूकंप नहीं आ सकते | आँधी तूफ़ान आएगा तो हवाएँ तेज चलेंगी ही ! धीरे धीरे हवाएँ चलके तूफ़ान नहीं आता है|अधिक वर्षात हुए बिना बाढ़ नहीं आती| इसलिए धरती हिलना,तेज हवाओं का चलना एवं अधिक वर्षा होना इन्हें रोका नहीं जा सकता है | महामारियाँ आएँगी बड़ी संख्या में लोग संक्रमित भी होंगे और मृत्यु को भी प्राप्त होंगे | ये तो प्राकृतिक घटनाएँ हैं जो घटेंगी ही | ये उनके अपने अपने स्वरूप हैं | उनसे ये अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वे ऐसा न करें |         
     धरती हिलने पर भी बहुत भवन सुरक्षित बने रहते हैं |भूकंप आने के लिए धरती को हिलना ही होगा ! धरती हिलेगी तो कमजोर भवन आदि गिरेंगे ही !भवनों में रहने या उसके आस पास रहने या आने जाने वाले लोग उन भवनों के मलबे में दबेंगे भी ,किंतु दबाने से उनकी मृत्यु हो ही जाएगी ये निश्चित इसलिए नहीं है क्योंकि दबे हुए सभी लोग मृत्यु को प्राप्त नहीं होते हैं | ऐसे बहुत लोग तो कई कई दिनों बाद तक जीवित निकलते हैं | 
     इसका मतलब भूकंप आने का कारण जो है वो मकानों के गिरने का कारण नहीं है और मकानों के गिरने का जो कारण है वो लोगों की मृत्यु का कारण नहीं है और लोगों की मृत्यु का जो कारण है वो मकानों के मलबे में दबा रहना नहीं है | प्रत्येक घटना कार्य कारण भाव से अलग अलग घटित हो रही होती है| ऐसा ही आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात आदि में होता है |
     तूफ़ान आने के कारण अचानक तेज हवाएँ  चलने लगती हैं|जिन हवाओं को अपने तेज भागने की पड़ी होती है उन्हें किसी का सामान उड़ाने या किसी व्यक्ति को नुक्सान पहुँचाने का समय कहाँ होता है | इसी प्रकार से बाढ़ आने पर जो जनधन का नुक्सान होता है वो बाढ़ का लक्ष्य नहीं होता है | बाढ़ तो अपने कारण से आती है !नदियों के जल का वेग बहुत अधिक हो जाता है| जनधन का नुक्सान हो जाए तो इसके लिए बाढ़ क्या करे !बज्रपात जहाँ होता है वहाँ उपस्थित लोगों को उसका नुक्सान उठाना पड़ता है |महामारी जहाँ आती है वहाँ का प्राकृतिक वातावरण इतना अधिक बिगड़ जाता है |लोग अस्वस्थ होने तथा मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं |  
       ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाएँ बिल्कुल उसी प्रकार की होती हैं जैसे बस चलती है |  रास्ते में खड़े कुछ यात्री उस में बैठ जाते हैं | कुछ दूर जाने के बाद रास्ते में जाम लगा होता है |तो उस गाड़ी का चालक अपनी गाड़ी को किसी अन्य रास्ते में मोड़ लेता है | वहाँ उधर से कोई बस तेज गति से आ रही होती है उससे टक्कर हो जाने के कारण उन यात्रियों की मृत्यु हो जाती है | ऐसी स्थिति में उन यात्रियों की मृत्यु का कारण उस बस को मना जाए जिस पर वे बैठे हैं या उस बस को माना जाए जिसने टक्कर मार दी या उस बस चालक को माना जाए जिसने जाम देखकर अपनी गाड़ी को अन्य रास्ते में मोड़ लिया |
      इस घटना को प्रत्यक्ष दृष्टि से देखा जाए तो उन दोनों बस चालकों में से किसी एक या फिर दोनों बस चालकों की गलती से यह बस दुर्घटना घटित हुई है |जिसमें उन यात्रियों की मृत्यु हुई है |
    इस घटना पर यदि गंभीरता से बिचार किया जाए तो उन दोनों बस चालकों का उद्देश्य न तो बसों को लड़ाना था और न ही उन यात्रियों को मारना ही था और न ही उन्हें इससे कोई लाभ था | बस में बैठे यात्रियों का उद्देश्य ही मृत्यु को प्राप्त करना था |रास्ते में जो जाम लगा था वो भी उस उद्देश्य से नहीं लगाया गया था कि यहाँ जाम लगने से यह बस दूसरी और मुड़कर जाए और किसी दूसरी बस से टकराए जिससे यात्रियों की मृत्यु हो जाए |विपरीत दिशा से आ रही बस का भी यह उद्देश्य नहीं था|वह अपनी योजना के अनुसार अपने रास्ते पर चली आ रही थी |
    कुलमिलाकर इस दुर्घटना में  हर कोई अपनी अपनी इच्छा परिस्थिति उद्देश्य तथा योजना के अनुसार आचरण कर रहा था|जिसमें यात्रियों की मृत्यु हो गई| जिसप्रकार से सभी घटनाएँ अपने आप से घटित हुई हैं|उन यात्रियों की मृत्यु भी उसीप्रकार की एक घटना है |जो अपने आपसे घटित हुई है | उसमें किसी बस या चालक को या उन यात्रियों को कारण मानना उचित नहीं होगा | ऐसी घटनाएँ किसी अन्य शक्ति  से प्रेरित होकर घटित होती हैं | उस शक्ति को समझे बिना इन घटनाओं को समझा जाना संभव नहीं है |
      उस अप्रत्यक्ष शक्ति को रोका जाना किसी व्यक्ति के वश की बात होती तो चिकित्सालयों में शवगृह नहीं बनाने पड़ते ! कोरोना महामारी के समय इतने लोगों के बहुमूल्य जीवन नहीं खोने पड़ते |किसी रोगी के कोमा में जाने के बाद उसे होश में लाने के लिए किसी अप्रत्यक्ष शक्ति के सामने नहीं गिड़गिड़ाना पड़ता |
     संसार में ऐसी घटनाएँ अनेकों बार घटित होते देखी जाती हैं | जिनके घटित होने का कारण किसी को पता नहीं होता है|उन्हें देखने में ऐसा लगता है कि वे किसी मनुष्य के द्वारा की गई हैं!जबकि मनुष्य बार बार सफाई दे रहा होता है|मैंने ऐसा सोचा भी नहीं था जो उसके मुख से निकल गया !जो गलती उससे हो गई वो उसे करना नहीं चाहता था| किसी ने किसी को गोली मारी लेकिन वो उसे न लगकर किसी दूसरे को लग गई | जिसे लगी वो उसका अपना था| इसी श्रेणी में गैर इरादतन किए गए अपराध आते हैं |कई बार लोग अपनेअपने चोट मारने,अपने को नुक्सान पहुँचाने या आत्महत्या करने जैसे जघन्य कृत्य कर डालते हैं ,जबकि वे अपने एक सुई चुभोने में भी डरा करते थे |
      कुलमिलाकर जिसने जो सोचा ही नहीं वो उसके मुख से निकल गया,जिस कार्य को  जो करना ही नहीं चाह  रहा था | वो कार्य उससे हो गया | इन सबसे इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि केवल प्राकृतिक घटनाएँ ही नहीं प्रत्युत मनुष्य जीवन में भी बहुत ऐसी घटनाओं को घटित होते देखा जाता है | जिनमें वो मनुष्य मानसिक रूप से सम्मिलित ही नहीं होता है,जबकि वे घटनाएँ उसी के द्वारा करवाई जा रही होती हैं |   

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