परंपरा विज्ञान में है महामारी का समाधान
महामारी के रहस्य को सुलझाने का प्रयास !
दो शब्द
वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप आदि आपदाएँ तो प्राचीनकाल में भी घटित होती रही होंगी |जीवन को सुरक्षित बचाने की चुनौती तो तब भी कठिन होती रही होगी |उस समय उपग्रहों रडारों की व्यवस्था नहीं थी | सुपर कंप्यूटर नहीं थे |रोगों का परीक्षण करने के लिए ऐसे प्रभावी चिकित्सासहायक यंत्र नहीं थे | दूरसंचार माध्यम नहीं थे, यातायात के साधन नहीं थे | नए प्रकार की सोच रखने वाले आधुनिक चिकित्सक नहीं थे | इतने बड़े बड़े चिकित्सालय नहीं थे |
महामारियाँ प्राचीन युग में भी आया करती रही होंगी |उन्हें समझना तब कैसे संभव होता होगा | अनुमान पूर्वानुमान आदि कैसे लगाया जाता होगा | उनसे उससमय लोग अपना बचाव कैसे करते रहे होंगे |उस युग में जनसंख्या भी बहुत कम रही होगी| यदि सुरक्षा की सुदृढ़ व्यवस्था न होती तब तो सृष्टि का क्रम आगे बढ़ पाना संभव ही न हो पाता |उस समय भी जनसंख्या बढ़ती रही !आपदाओं के घटित होने के बाद भी लोग स्वस्थ सुरक्षित बने रहे !इससे ये विश्वास किया जाना चाहिए कि उस युग में भी ऐसा कोई विज्ञान तो अवश्य रहा होगा | जिससे लोग अपनी सुरक्षा कर लिया करते थे |
जिस विज्ञान के द्वारा उस युग में प्राकृतिक घटनाओं एवं महामारियों से सुरक्षा हो जाया करती थी | उस वैज्ञानिक विधा का उपयोग वर्तमान समय में करके क्या पहले की तरह ही अब भी प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से सुरक्षा की जा सकती है |वो विज्ञान क्या था ,उसके अनुसंधान की प्रक्रिया क्या थी | कितनी प्रभावी थी !ऐसी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना कैसे संभव होता था !ऐसी हिंसक घटनाओं से मानवमात्र की सुरक्षा आखिर कैसे कर ली जाती थी |उस प्राचीन वैज्ञानिक विधा को खोजा जाना चाहिए |
परतंत्रता के समय देश की बहुत वैज्ञानिक विधाएँ विधर्मियों के द्वारा नष्ट की जा चुकी हैं ,फिर भी जो बची हैं जितनी बची हैं | उनका उपयोग अभी भी जनहित में किया जा सकता है |उससे जितना सहयोग मिलेगा उतना ही बहुत होगा | प्राकृतिक घटनाओं के विषय में उस प्राचीन काल की वैज्ञानिक प्रक्रिया का उपयोग करते हुए अभी भी यदि अनुसंधान किए जाएँ तो संभव है कि वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप आदि घटनाओं को समझने में उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में विशेष मदद मिल सकती है | इसी उद्देश्य से मैंने उस वैज्ञानिक विधा के अनुशार ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुसंधान करने का प्रयत्न किया है |
भूमिका
कुछ बड़ी वैज्ञानिक सफलताओं को प्राप्त करके आत्ममुग्ध विश्व नितनूतन कीर्तिमान स्थापित करता जा रहा था|उन सफलताओं से प्रभावित समाज के मन में वैज्ञानिकों एवं उनकी शक्तियों संसाधनों पर भरोसा बढ़ना स्वाभाविक ही था|विशेषकर चिकित्सा वैज्ञानिकों के विशेष योगदान के कारण उन्हें भगवान का दूसरा स्वरूप समझा जाने लगा था|कुछ लोग तो चिकित्सा वैज्ञानिकों के भरोसे भगवान को भूलने लगे थे | कुछ लोग तो ईश्वर के आस्तित्व पर ही प्रश्न खड़ा करने लगे थे| उन्हें विश्वास था कि चिकित्सक उन्हें रोगों से मुक्ति दिला सकते हैं और मृत्यु से बचा सकते हैं|
इसप्रकार से लोगों को धन के द्वारा सभी समस्याओं का समाधान होते दिखाई देने लगा | इसीलिए लोग धर्म कर्म यज्ञ अनुष्ठान नैतिकता सदाचरण आदि सब कुछ भूलकर केवल धनसंग्रह में लगे हुए| राजपुरुषों का भ्रष्टाचार महामारी रूपी आग में तेल डालने का काम कर रहा था | धन संग्रह होते ही प्रदूषित आहार बिहार व्यापार आदि अपनाए जाने लगे |भ्रष्टाचार ,ब्यभिचार आदि पापपूर्ण आचरणों की प्रवृत्ति दिनोंदिन बढ़ने से लोगों का तेजी से पुण्यक्षय होता जा रहा था| सदाचरण विहीन लोग अत्यंत तेजी से अपनी आयु एवं प्रतिरोधक क्षमता खोते जा रहे थे |
कई बार किसी गाँव में घुसकर कोई हाथी उपद्रव मचाने लगता है |गाँव के कुत्ते हाथी के आगे पीछे भौंकते तो हैं किंतु बेचारे उस हाथी को गाँव से बाहर भगा नहीं पाते हैं | हाथी जब तक चाहता है तब तक उपद्रव मचाता रहता है |बेवश कुत्ते उसे ताकते घूरते भौंकते रहते हैं |हाथी जब गाँव से जाने लगता है तो कुत्तों को भ्रम होता है कि उनके भौंकने से डरकर ही हाथी भगा जा रहा है | इससे उत्साहित होकर कुत्ते और तेज तेज भौंकने लगते हैं |इसी बीच हाथी दोबारा लौटकर फिर उपद्रव मचाने लगता है ! ऐसा बार बार होता रहता है | कोरोना महामारी उसी उन्मत्त हाथी की तरह निरंकुश थी और महामारी को भगाने के लिए किए जा रहे सभी प्रकार के मनुष्यकृत प्रयत्न उन बेवश लाचार ग्रामीण कुत्तों के भौंकने जैसे निरर्थक थे! न कोई अनुमान सहीं निकल रहा था और न ही पूर्वानुमान !जिसे जो मन आ रहा था वो वही कहे जा रहा था |
इसी प्रकार से महामारी में चिकित्सकीय प्रयत्नों का योगदान रहा | समय प्रभाव से संक्रमितों की संख्या जब कम होने लगती तब जो औषधि आदि दी जा रही होती थी | संक्रमण कम होने का श्रेय उसी औषधि को देने लग जाते थे | संक्रमितों की संख्या कम होने का कारण उसी औषधि आदि का प्रभाव मान लिया जाता था!संक्रमितों की संख्या बढ़ने पर उसी औषधि आदि का प्रयोग जब दोबारा किया जाता तो उस औषधि का संक्रमितों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था, तब यह भ्रम टूटता कि पहले भी जो लोग स्वस्थ हुए थे वे किसी औषधि के प्रभाव से नहीं अपितु समय के प्रभाव से ही स्वस्थ हुए थे |इसके बाद उन औषधियों को महामारी की चिकित्सा व्यवस्था से अलग कर दिया जाता |
जिसप्रकार से गाँव में उपद्रव मचा रहे हाथी को गाँव छोड़कर कभी तो जाना ही होता है | इसलिए हाथी जब जी भर उपद्रव मचाकर चला जाता तब भी उन कुत्तों को यही भ्रम बना रहता है कि उनके भौंकने के भय से भयभीत होकर ही हाथी गाँव से बाहर चला गया है | महामारी से निपटने के लिए हम मनुष्यों के द्वारा किए गए प्रयासों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही रही है |महामारी भी उस उन्मत्त हाथी की तरह जितना उपद्रव मचाना था वो मचाकर ही गई है |मनुष्यकृत प्रयासों से उसे रोका जाना संभव नहीं हो सका है |
अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की तरह महामारी चीन के वुहान से निकलती है और मनुष्यों को संक्रमित करती हुई निर्ममतापूर्वक आगे बढ़ती जाती है |संपूर्ण विश्व का चक्कर लगाकर भारत पहुँचती है| इस विश्वपरिक्रमा में उसे अन्य देशों के साथ साथ कुछ विकासशील देश तो कुछ विकसित देश भी मिले |जिनकी चिकित्सा व्यवस्था अति उन्नत मानी जाती है | कोई भी देश अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं के बल पर अपने देश वासियों को ऐसा कोई महामारीसुरक्षाकवच उपलब्ध नहीं करवा जा सका |जिसके बल पर यह लगे कि महामारी से अब कोई विशेष भय नहीं है |
इसमें विशेष चिंता की बात यह है कि महामारी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा मनुष्यकृत प्रयासों से कहीं रोका नहीं जा सका |महामारी महीनों वर्षों तक संपूर्ण विश्व को रौंदती रही और लोग सहते रहे | महामारी जब वापस लौटने लगती तो चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न लोग महामारी को पराजित कर देने के दावे करने लग जाते !महामारी पुनः संक्रमित करने लग जाती ! ऐसा कई बार हुआ | इसीलिए महामारी बार बार घट घट कर बढ़ते देखी जा रही थी |ऐसा सबकुछ वर्षों तक होता रहा | उस समय कोई भी देश अपनी वैज्ञानिक तैयारियों के बलपर महामारी का सामना करने का साहस नहीं जुटा सका | कोई अनुसंधान औषधि उपाय आदि महामारी के सामने ठहर नहीं सका ! महामारी अपने अश्वमेध यज्ञ को संपूर्ण समझकर दिग्विजय पताका लहराती हुई अंतर्ध्यान हो गई |इससे संबंधित अनुसंधान अधूरे ही बने रहे |
एक बार कुछ दृष्टिबाधित (अंधे) लोगों को हाथी के विषय में रिसर्च का काम सौंपा गया !हाथी कैसा होता है उन्हें यह पता लगाना था | उन्होंने हाथी के विषय में पहले कभी कुछ सुना नहीं था !इसलिए उन्हें कुछ पता भी नहीं था | ऐसे लोगों ने हाथी कैसा होता है यह पता लगाने के लिए अपनी अपनी सुविधा के अनुशार हाथी को छुआ तो जिसका हाथ उस हाथी के जिस अंग पर पड़ा उसे लगा कि हाथी वैसा ही है |हाथी के पैर पर जिसका हाथ पड़ा उसे हाथी खंभे जैसा लगा !पेट पर जिसका हाथ पड़ा उसे हाथी पहाड़ जैसा लगा !इसी प्रकार से सभी ने अपने अपने अनुभवों का संग्रह किया !उस पर थीसिस तो बहुत बड़ी तैयार हो गई किंतु उस पूरे शोधप्रबंध को पढ़कर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका कि वास्तव में हाथी होता कैसा है |
इसी प्रकार से महामारी के विषय में जितने मुख उतनी बातें सुनी जा रही थीं !कोरोना महामारी के विषय में बड़े बड़े वैज्ञानिकों के द्वारा वक्तव्य दिए जा रहे थे किंतु उन सभी के वक्तव्यों का मंथन करके भी कोरोना महामारी की विभिन्न अवस्थाओं के विषय में किसी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सका |
वर्तमान समय में शत्रु देशों से निपटने के लिए तो हमारे पास बहुत कुछ है किंतु शत्रु महारोगों से बचाव के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है | जिस पर भरोसा करके यह कहा जा सके कि हम सुरक्षित हैं !जबकि यह अधिक आवश्यक है | बिचार किया जाना चाहिए कि पड़ोसी देशों के साथ भारत को तीन युद्ध लड़ने पड़े उन तीनों युद्धों में जितने लोग नहीं मारे गए उससे बहुत अधिक लोग अकेले कोरोना महामारी में ही मृत्यु को प्राप्त हुए हैं |
इसलिए महामारी जैसे बड़े संकट के समय उस परंपराविज्ञान की भी मदद ली जानी चाहिए | जिसके बल पर ऐसी महामारियों के प्रकोप से भारत लाखों वर्षों तक सुरक्षित रहता रहा है |उस परंपराविज्ञान से संबंधित अनुसंधानों से ऐसी आपदाओं में मदद मिलने की आशा की जा सकती है |
अपनी बात !
परंपराविज्ञान से महामारी की पहचान ! :- परंपराविज्ञान से संबंधित भारत के प्राचीन ग्रंथों में संभावित प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कुछ दूसरी घटनाओं के आधार पर जो विधि बताई गई है वो प्राचीन काल में सही घटित हो ही रही थी !इस युग में भी सही घटित होते देखी जा रही है |दुर्भाग्य से इस विषय में अनुसंधान नहीं किए जा रहे हैं जो लोग कर भी रहे होंगे सरकारी उपेक्षा के कारण उसका जनहित में उपयोग नहीं हो पा रहा है | इसीलिए कोई बड़ी प्राकृतिक घटना घटित होने से पहले उसके विषय में सूचना देने के लिए कुछ छोटी छोटी घटनाएँ घटित होती हैं ,उधर कोई ध्यान ही नहीं देता है | इसबार महामारी आने से पहले भी ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित हो रही थीं | जिन्हें मैंने न केवल संग्रहीत किया है प्रत्युत उनके आधार पर ही महामारी के विषय में अनुसंधान भी किया है |
परंपरा विज्ञान का मानना है कि जब जितना खराब समय आता है उस समय उतनी बड़ी प्राकृतिक आपदाएँ घटित होती हैं |उनसे पीड़ित वही होते हैं जिनका अपना व्यक्तिगत समय भी बुरा चल रहा होता है | बुरे समय के प्रभाव से ही महामारी आने से पहले बाढ़ बज्रपात चक्रवात आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक आपदाएँ बार बार घटित होरही थीं | सदाचार विहीन पृथ्वी में बार बार कंपन हो रहा था |बादलों के फटने की हिंसक घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं | ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ विगत कई वर्षों से घटित होते देखी जा रहीं थीं |उनका संबंध महामारी से था | जिसकी पूर्वसूचना देने के लिए वे घटित हो रही थीं | आकाशीय लक्षणों से बार बार अशुभ संकेत मिल रहे थे |
वायुप्रदूषण से आकाश आक्षादित होने से प्राकृतिक वातावरण बिषैला होता जा रहा था ! जिससे खान पान की सभी वस्तुएँ अनाज दालें शाक सब्जियाँ फल फूल जल वृक्ष बनस्पतियाँ निर्मित औषधियाँ बिषैलेपन से प्रभावित हो रहे थे |जिन्हें खाना पीना पचाना हर किसी के वश का नहीं था | बुरे समय से पीड़ित कुछ लोग बिषैली हवा में साँस लेने से तो कुछ लोग बिषैले आनाज दालें शाक सब्जियाँ फल फूल आदि खाने से रोगी होते जा रहे थे | बिषैली बनस्पतियों औषधियों से की गई चिकित्सा का प्रभाव विपरीत पड़ रहा था | इसलिए उनका स्वस्थ होना कठिन हो रहा था |जो औषधियाँ अपने जिन गुणों के कारण जिन रोगों में लाभप्रद मानी जाती रहीं वातावरण के बिषैलेपन से प्रभावित होने के कारण वे गुणों से हीन हो चुकी थीं | कुछ तो अपने स्वभाव के विपरीत गुणों से प्रभावित हो गई थीं | ऐसे डरावने समय में बचाव केवल उन्हीं का हो पा रहा था ,जिनका अपना समय अच्छा चल रहा था | संक्रमित होने से केवल वही बच पा रहे थे |
ऐसा डरावना वातावरण न सह पाने के कारण बेचैन पशु पक्षी पागलों की तरह अनियंत्रित होते जा रहे थे | चूहों टिड्डियों का प्रकोप बढ़ता जा रहा था | उन्मादग्रस्त लोग एक दूसरे के दुश्मन बनते जा रहे थे |छोटी छोटी बातों में हत्या आत्महत्या जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जा रही थीं | जातियों समुदायों संप्रदायों देशों प्रदेशों का वातावरण एक दूसरे के प्रति हिंसक होता जा रहा था |इसी बेचैनी के कारण सभी प्रकार के अपराध उन्माद आंदोलन आदि बढ़ते जा रहे थे | आतंकी घटनाएँ विस्फोट आदि घटित होते देखे जा रहे थे |
समाज से प्रसन्नता का वातावरण दिनों दिन समाप्त होता जा रहा था |किसी अज्ञात भय से भयभीत लोग दिनों दिन तनावपूर्ण जीवन जीने के लिए विवश थे |प्रसन्नता के अभाव में तिथि त्यौहार विवाह धर्म कर्म आदि से संबंधित उत्सव उत्साह विहीन होते जा रहे थे ! ऐसा सदाचार विहीन समाज दिनों दिन महामारी जैसी किसी बड़ी प्रकृति आपदा की ओर बढ़ता जा रहा था |प्राकृतिक वातावरण से ऐसे संकेत वर्षों पहले से मिलने लगे थे |
ऐसी परिस्थिति पैदा होने का कारण बिचार किए बिना हैरान परेशान लोगों को भयमुक्त करने के लिए मनोरंजन का व्यापार दिनों दिन बढ़ता जा रहा था |ये महामारी का ही प्रभाव था कि धार्मिक कथा मंचों पर रामायण भागवत की पोथियाँ बंद करके रख ली जाती थीं | वैराग्य की कथाएँ कहने वाले लोग नाचते -गाते चुटकुले सुनाते देखे जा रहे | यज्ञों का प्रचलन समाप्त होता जा रहा था | धर्मकर्म केवल प्रदर्शन मात्र बनकर रह गया था |कथाकार्यक्रम राजनैतिक रैलियों की तरह से भीड़ इकठ्ठा करने के साधन मात्र बने हुए थे | कविसम्मेलनों में हास्य एवं बासना प्रधान चुटकुले सुनाए जा रहे थे | मनोरंजन के लिए इतना सबकुछ होने के बाद भी तनाव घटने का नाम नहीं ले रहा था | उस समय तक महामारी जैसी किसी बड़ी आपदा के आने से पूर्व के संकेत साफ साफ दिखने लगे थे |
इसी समय हरिप्रेरित महामारी विश्व की वैज्ञानिक क्षमताओं को चुनौती देती हुई दिग्विजय के लिए निकल पड़ी | महामारी के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा एक एक देश की चिकित्सा व्यवस्था को ललकारता रौंदता हुआ आगे बढ़ता रहा !अपनी अपनी वैज्ञानिक तैयारियों के बलपर लोग महामारी को चुनौती देने निकल पड़े,किंतु महामारी के सामने कोई देश टिक नहीं सका सबके घमंड चूर चूर होते चले गए | महामारी को नियंत्रित करना तो बड़ी बात थी उसके स्वभाव को समझना एवं उसके लक्षणों को पहचानना तथा उसके विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना भी संभव नहीं हो पाया |
परंपरा विज्ञान की दृष्टि से यह महामारी के रूप में भगवती महामाया का प्रकोप ही था |महामारी के क्रोध का निशाना सबसे अधिक साधन संपन्न अमेरिका जैसे विकसित देश बने,देशों में भी विशेष विकसित दिल्ली मुंबई जैसे महानगर बने |उनमें भी साधन संपन्न धनवान लोग ग़रीबों की अपेक्षा अधिक संक्रमित होते देखे गए |साधू संत पंडित पुजारी किसान मजदूर गरीब ग्रामीण बनवासी आदिवासी आदि साधन संपन्न लोगों की अपेक्षा कम संक्रमित होते देखे जा रहे थे |
ऐसे किसी संभावित स्वास्थ्य संकट से सुरक्षा हेतु लोग विकसित देशों एवं विकसित नगरों महानगरों की ओर रुख करने लगे थे | उन्हें विश्वास था कि ऐसे विकसित स्थानों पर अत्यंत उन्नत चिकित्सा व्यवस्था होती है| वहाँ शीघ्र पहुँचकर अपने प्राणों की रक्षा की जा सकती है| धन और संसाधनों के घमंड में चूर कुछ लोग भगवान का भय भूलकर अपने धन और चिकित्सा के बल पर अपने को सुरक्षित समझने लगे थे | ऐसा धर्म संकट उपस्थित होने पर ईश्वरीय शक्तियाँ घमंडभंजन करने पर तुली हुई थीं |
प्रथम अध्याय !
महामारी से बचाव की तैयारी आखिर क्या थी ?
वैज्ञानिक अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों के द्वारा यदि महामारी के प्रकोप से जनधन को सुरक्षा कर ली जाती तो उत्तम होता ! यदि ऐसा नहीं किया जा सका तो महामारी के विषय में पहले से पूर्वानुमान ही लगा लिया जाता तो भी ठीक था |यदि ऐसा नहीं किया जा सका तो उसकी लहरों के विषय में पूर्वानुमान लग पाता तब भी ठीक होता|पहली लहर के विषय में पूर्वानुमान लगाने में यदि चूक हो भी गई थी तो दूसरी लहर के विषय में सही पूर्वानुमान लगा ही लिए जाते और यदि दूसरी लहर में भी सही पूर्वानुमान लगाया जाना संभव न हो सका तो तीसरी लहर के विषय में तो सही पूर्वानुमान लगा ही लिया जाना चाहिए था |ऐसा यदि कुछ भी नहीं किया जा सका तो फिर प्रश्न उठता है कि महामारी से निपटने की तैयारी पहले से करके रखी आखिर क्या गई थी |
महामारी पैदा होने का कारण पता लगना चाहिए था !संक्रमितों की संख्या बढ़ने घटने का निश्चित कारण खोजा जाना चाहिए था | महामारी का विस्तार कहाँ से कहाँ तक था !इसमें अंतर्गम्यता कितनी थी,इसका प्रसार माध्यम क्या था ?इस पर मौसम संबंधी परिवर्तनों का प्रभाव पड़ता था या नहीं !इस पर वायुप्रदूषण बढ़ने का प्रभाव पड़ता था या नहीं !तापमान बढ़ने घटने का प्रभाव पड़ता था या नहीं | वर्षा होने का प्रभाव पड़ता है या नहीं |महामारी संबंधी अनुसंधानों के लिए ऐसे आवश्यक प्रश्नों का उत्तर आगे से आगे खोज कर रखा जाना चाहिए था !
महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने पर यदि मौसम संबंधी घटनाओं का प्रभाव पड़ता ही होगा तो महामारी के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसम संबंधी परिवर्तनों का आगे से आगे सही सटीक पूर्वानुमान लगाकर पहले से रखना होगा |उसके बिना महामारी के विषय में सही पूर्वानुमान लगाया जाना संभव ही नहीं होगा |
इसीलिए महामारी संबंधी अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों की महामारी के समय जब आवश्यकता पड़ी तो वे किस रूप में कितने प्रभावी रहे !ये पता ही नहीं लग सका |महामारी संबंधी संक्रमण घटने बढ़ने के लिए पहले मौसमसंबंधी घटनाओं को जिम्मेदार ठहराया गया| इससे लगा कि महामारी समझने के लिए मौसम संबंधी अनुसंधानों को करने की आवश्यकता है !
इसमें भी चिंता की बात यह है कि बीते डेढ़ सौ वर्षों में किए गए अनुसंधानों के बलपर जो पता किया जाना संभव नहीं हो सका वो इतने कम समय में पता किया जाना कैसे संभव था |महामारी के समय अचानक मौसमसंबंधी अनुसंधानों की आवश्यकता पड़ने पर उन अनुसंधानों को तुरंत कैसे कर लिया जाता |उनके आधार पर इतने कम समय में महामारियों को समझा जाना कैसे संभव कैसे हो सकता है '| अभी तक मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के न तो निश्चित कारण खोजे जा सके हैं और न ही सही अनुमान पूर्वानुमान ही लगाए जा पाते हैं |इसीलिए बीते 20 वर्षों में जितनी भी प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुई हैं उनमें से कुछ चक्रवातों को छोड़कर किसी के भी विषय में सही पूर्वानुमान पता नहीं लगाए जा सके हैं | मानसून आने जाने की तिथियों में अभी तक अनिश्चय की स्थिति बनी हुई है | दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान लगाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है |वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण तथा पूर्वानुमान पता नहीं लगाया जा सका |तापमान बढ़ने के विषय में सही पूर्वानुमान नहीं खोज जा सका |
ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का प्रभाव यदि महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने पर पड़ता होगा तो ऐसी घटनाओं के घटित होने के वास्तविक कारणों को खोजे बिना उनके विषय में सही पूर्वानुमान लगाए बिना महामारी को समझना कैसे संभव है और महामारी के विषय में सही पूर्वानुमान कैसे लगाया जाना कैसे संभव हो सकता है | यदि ऐसा कुछ भी नहीं था तो प्रश्न उठता है कि किसी भी संभावित महामारी से सुरक्षा के लिए पहले से ऐसी तैयारी करके रखी आखिर क्या गई थी | जिसके बलपर संभावित महामारी से सुरक्षा का आश्वासन दिया जा रहा था |
वैसे भी महामारी जैसी इतनी भयंकर आपदा के समय जब पल पल प्राणों से खेलना पड़ रहा था |उस समय तो बचाव के लिए तुरंत प्रभावी प्रयत्न किए जाने की आवश्यकता थी | ऐसे अवसर पर इतना समय कहाँ होता है कि पहले मौसमसंबंधी अनुसंधान किए जाते और बाद में मौसम के आधार पर महामारी के विषय में अनुसंधान किए जाते ! जिससे मौसम भी समझ लिया जाता तथा महामारी भी समझ ली जाती एवं उपाय भी कर लिए जाते |
महामारी यदि प्राकृतिक रोग है तो इसकी औषधि भी प्राकृतिक ही होगी |इसीलिए मनुष्यकृत प्रयासों से महामारी पर अंकुश लगाना तो दूर महामारी को पहचानना भी संभव नहीं हो पाया | किसी रोग को ठीक ठीक पहचाने बिना उस रोग की चिकित्सा कैसे की जा सकती है | प्राकृतिक रोगों के निश्चित लक्षण तो पता होते नहीं हैं | इसलिए उनसे मुक्ति दिलाने वाली औषधि का निर्माण नहीं हो पाता है |
महामारी संबंधित अनुसंधानों में चूक कहाँ हो रही है !
चोर डाकू लुटेरे घुसपैठिए उग्रवादी आतंकवादी आदि जब जहाँ कहीं हमला करते हैं तो जनधन का नुक्सान होता है | उससे पूरी तरह तो सुरक्षा तो तभी हो सकती है जब ऐसी घटनाओं के घटित होने के विषय में पहले से पता लगा लिया जाए |जब जहाँ ऐसी घटनाएँ घटित होने की संभावना पता लगे तब तहाँ सुरक्षा व्यवस्था अधिक मजबूत करके उस प्रकार की घटना घटित ही न होने दी जाए !यदि ऐसा हो भी जाए तो जनधन हानि कम से कम हो |इस प्रक्रिया से काफी बचाव हो जाता है |
ऐसी घटनाओं के घटित होने के विषय में यदि पहले से पता न हो तो ऐसी संभावित घटनाओं से सुरक्षा के लिए हर समय हर प्रकार की तैयारियाँ इस लक्ष्य के साथ करके रखनी पड़ती हैं कि चोर डाकू लुटेरे घुसपैठिए उग्रवादी आतंकवादी आदि चाहें जितना स्वरूप परिवर्तन कर लें या चाहें जिस प्रकार से हमला घुस पैठ आदि करने का प्रयास करें,उनसे देश और समाज की सुरक्षा कर ही ली जाएगी |इतनी मजबूत तैयारियाँ हर समय करके रखनी पड़ती हैं | ऐसा किया जाना इसलिए आसान नहीं होता है क्योंकि सभी जगह हर समय सुरक्षा व्यवस्था अत्यंत मजबूत रखने के लिए काफी अधिक संसाधनों की आवश्यकता होती है | इसलिए ऐसा किया जाना काफी कठिन होता है | इसीलिए शासन प्रशासन में गुप्तचरों को सक्रिय करके ऐसी संभावित घटनाओं के विषय में आगे से आगे पता लगाने के लिए प्रयत्न किया जाता है |
चोरों डाकुओं आतंकवादियों आदि की तरह ही प्राकृतिक आपदाएँ और महामारियाँ भी अचानक ही हमला करती हैं | ऐसी आपदाएँ और महामारियाँ भी बिना बुलाए और बिना बताए ही आती हैं | इनका भी कोई समय स्थान आदि पहले से किसी को पता नहीं होता है|इनके द्वारा कभी भी कहीं भी कैसा भी हमला किया जा सकता है | इसलिए ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में भी आगे से आगे पता करके रखना आवश्यक होता है |ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना यदि संभव न हो तो सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से सुरक्षा के लिए सभी प्रकार की तैयारियाँ पहले से करके रखनी होती हैं|ऐसी घटनाओं में आक्रामकता एवं वेग इतना अधिक होता है कि तुरंत की तैयारियों के बलपर इतनी बड़ी आपदाओं से बचाव किया जाना संभव नहीं होता है |उस समय तैयारी करना या अनुसंधान करना कहाँ संभव होता है तब तो तुरंत बचाव करना होता है | तैयारी करने या अनुसंधान करने के समय ही कहाँ मिल पाता है |इसलिए ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना आवश्यक होता है |
चोरी नशाखोरी डकैती या आतंकी आदि घटनाओं में से जिस भी प्रकार की संभावित घटना के विषय में पहले से पता करना होता है|गुप्तचरों को उस क्षेत्र के उसीप्रकार के लोगों से संपर्क बढ़ाकर गुप्त रूप से उनसे संबंधित गतिविधियों का पता करना होता है |
इसीप्रकार से भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफानों चक्रवात बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए ऐसी घटनाओं के आगे पीछे घटिति होने वाली कुछ दूसरी प्राकृतिक घटनाओं पर ध्यान देना होता है | उनके घटित होने के समय पर ध्यान देना होता है |
जिस प्रकार से चोर डाकू लुटेरे आदि तरह तरह के आपराधिककृत्य वेष बदल बदल कर करते हैं ,फिर भी उनकी ईमानदार कर्मठ प्रशासन अत्यंत सक्रियता पूर्वक ऐसे अपराधियों को पकड़कर उन्हें दंडित करता है | इस प्रकार से प्रशासन ऐसे अपराधों पर अंकुश लगा लेता है |
इसीप्रकार से दुश्मन देश के घुसपैठिए अपने देश में घुसपैठ करने के लिए वेषभूषा बदल बदल कर बार बार प्रयत्न किया करते हैं |घुसपैठ करने के लिए तरह तरह के आडंबर रचते हैं गुप्त रूप से सुरंगें खोजते हैं |इसके बाद भी अपने देश के बलवान सैनिक उनकी हर चाल का पता लगाकर उन्हें उनके उद्देश्य में सफल नहीं होने देते हैं | जिससे अपने देश की सीमाओं की और देश वासियों की सुरक्षा कर लिया करते हैं | अपनी इसी विशेषता के कारण वे जाने जाते हैं |
कुलमिलाकर यदि चोर डाकू लुटेरे आदि यदि वेष बदलकर किसी बड़ी वारदात को अंजाम दे दें और शासन प्रशासन हाथ पर हाथ रखे बैठा रहे तो यह कहने से बात नहीं बन जाएगी कि चोर डाकू लुटेरों आदि का वेष परिवर्तन हो गया था |ऐसे ही घुसपैठिए उग्रवादी आतंकवादी आदि यदि वेष बदलकर देश की सीमा में घुस आवें और कोई हमला कर दें तो सैनिकों की यह कह देने मात्र से क्या जिम्मेदारी पूरी मान ली जाएगी कि आतंकवादियों को वेषपरिवर्तन कर लेने के कारण पहचाना नहीं जा सका |
ऐसी चूक के कारण यदि एक से अधिक बार ऐसी दुर्घटनाएँ घटित हो जाएँ तो अपेक्षा की जाती है कि दोबारा ऐसी घटना न घटित हो ! यदि ऐसा दोबारा भी हुआ तो पूछा जाने लगेगा कि पिछली घटनाओं से सबक आखिर क्या सीखा !
इसीप्रकार से मौसमसंबंधी जितनी भी बड़ी घटनाएँ पिछले बीसवर्षों में घटित हुई हैं | उनमें से कुछ चक्रवातों को छोड़कर किसी अन्य घटना के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका | जो लगाया जाता रहा वो गलत निकलता रहा !ऐसी घटनाओं को बार बार जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बताया जाता रहा |
इसीप्रकार से वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी संबंधी लगाए जाते रहे पूर्वानुमान बार बार गलत निकलते रहे ! जिसके लिए महामारी के स्वरूपपरिवर्तन को जिम्मेदार बताया जाता रहा |
पूर्वानुमान लगाने का मतलब भविष्य में झाँकना होता है | भविष्य में झाँकने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं है इसलिए पूर्वानुमान लगाए ही नहीं जा सकते हैं | अंदाजे चाहें जिस विषय में लगा लिए जाएँ | उनसे किसी प्रकार के लाभ की संभावना नहीं होती है ,क्योंकि वे जितने प्रतिशत सही हो सकते हैं उतने ही प्रतिशत गलत भी हो सकते हैं |
इसका कारण पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान न होना है जबकि इसके लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा | यदि इसका कारण जलवायु परिवर्तन ही है तो एक घटना से प्राप्त अनुभवों का उपयोग दूसरी घटना में करके तीसरी चौथी बार तो सुधार होना ही चाहिए था |
भविष्य में झाँकने के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त कोई दूसरा विज्ञान नहीं है ! आधुनिक विज्ञान से संबंधित लोग ज्योतिष को विज्ञान नहीं मानते| इस स्थिति में ऐसा कोई विज्ञान ही नहीं है जिसके द्वारा किसी भी घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके | और के गलत होने का कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन बताया जाना कितना उचित है | देने से संबंधित विषयों में अनुसंधानों की आवश्यकता ही समाप्त हो जाती है |
स्वाभाविक प्रश्न उठने लगेंगे कि पिछली घटनाओं से सबक आखिर क्यों नहीं सीखा गया | इस तरह चोर डाकुओं आतंकवादियों आदि के स्वरूप परिवर्तन होने को कोई कारण न मानते हुए सुरक्षा व्यवस्था को तुरंत कटघरे में खड़ा कर दिया जाएगा |उनसे ये अपेक्षा होती है कि ऐसे स्वरूप परिवर्तनों को पहचानने एवं उन्हें नियंत्रित करने की क्षमता के कारण ही आप विशेष हैं | हमें हर हाल में सुरक्षा देना आपका कर्तव्य है | इसीलिए देश की सीमाएँ सुरक्षित रह पा रही हैं |
प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित अनुसंधानों के क्षेत्र में भी ऐसी ही सक्रियता दिखाई जानी चाहिए | जलवायु परिवर्तन हो या महामारी का स्वरूप परिवर्तन केवल एक बार असफल होने का कारण मानकर सुना एवं सहा जा सकता है बार बार नहीं |
भी जितने प्रकार के परिवर्तन होने संभव हों !ऐसे सभी प्राकृतिक या महामारी संबंधी परिवर्तनों का सामना करते हुए समाज को सुरक्षित बचाने के लिए
घटनाओं को घुसपैठिए उग्रवादी आतंकवादी आदि अपनी पहचान छिपाने के लिए वेषबदल बदल कर घटनाओं को अंजाम देते हैं या हमले करते हैं | उसी प्रकार से प्राकृतिक घटनाओं का समय, स्वरूप एवं हमले का प्रकार आदि सबकुछ बदला हो सकता है | जलवायु परिवर्तन हो या महामारी का स्वरूप परिवर्तन और भी जितने प्रकार के परिवर्तन होने संभव हों !ऐसे सभी प्राकृतिक या महामारी संबंधी परिवर्तनों का सामना करते हुए समाज को सुरक्षित बचाने के लिए
इसके बाद ट्रेन वाला उदाहरण
महामारी संबंधी अनुसंधानों को करते समय भी वैज्ञानिकों का उद्देश्य महामारी से सुरक्षा करना होता है | इसीलिए हमेंशा अनुसंधान किए जाते रहते हैं | उन अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों से अभीतक आखिर ऐसा क्या मिला, जिससे महामारी से जूझती जनता को मदद पहुँचाई जा सकी हो | इसका बिचार इस दृष्टि से भी किया जाना चाहिए कि महामारी संबंधित अनुसंधान यदि न किए गए होते तो क्या कोरोनामहामारी में इससे भी अधिक लोग संक्रमित होकर और अधिक संख्या में मृत्यु को प्राप्त हो सकते थे | यदि नहीं तो उन अनुसंधानों से ऐसा आखिर मिला क्या ?जिन्हें जनहित में उपयोगी समझा जा सके |
महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान और चिकित्सा के नामपर जिसका जो मन आता वो वही बोलने और करने लगता था |वही खाने या पीने लगता था | उसी समय यदि संक्रमितों की संख्या कम होने लगती तो उसे अपने प्रयासों का परिणाम मान लेता |उससमय जिसने जो खाया पिया या रहन सहन में बदलाव किया उसे औषधि या उपाय मान लिया जाता | जिससमय संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगती उस समय जो जो कुछ खाया पिया जा रहा होता है उसे ही संक्रमितों की संख्या बढ़ने के लिए जिम्मेदार मानकर उसे चिकित्सा के प्रयोग से अलग कर दिया जाता |
समय के प्रभाव से महामारीजनित संक्रमण जब कम होता जा रहा था ! उससमय प्लाज्मा जैसे प्रयोगों को प्रारंभ किया गया तो ऐसा भ्रम हुआ कि प्लाज्मा के प्रभाव से ही संक्रमण घट रहा है ,तो उसे औषधि की तरह प्रयोग किया जाने लगा | इसके बाद उसी समयक्रम से दूसरी लहर में जब संक्रमण फिर बढ़ने लगा उस समय प्लाज्मा के प्रयोग से लाभ न होने के कारण उसे चिकित्साप्रक्रिया से अलग कर लिया गया |
कुलमिलाकर कोरोनाकाल में संक्रमितों की संख्या स्वयं ही घटती और बढ़ती रही है | महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए प्रयोग के तौर पर कोई न कोई औषधि हमेंशा दी जाती रही है |समय के प्रभाव से संक्रमण जब स्वयं ही कम होने लगता है | उस समय दी जा रही औषधि की कोई भूमिका रही हो या न रही हो किंतु उस औषधि को सफल इसलिए मान लिया जाता ,क्योंकि जब वह स्वस्थ हुआ तब प्रयोग के तौर पर वही औषधि दी जा रही होती थी |
ऐसे ही जब संक्रमण बढ़ने लग जाता उस समय दी जा रही औषधि को असफल इसलिए मान लिया जाता है क्योंकि वह औषधि संक्रमण बढ़ते समय दी गई होती है | ऐसी औषधि जिसे पहले सफल माना जा चुका था | उसी औषधि का प्रयोग जब दूसरी लहर में संक्रमण बढ़ते समय किया गया तो उसका कोई प्रभाव ही नहीं दिखा ! ऐसे समय महारोग का स्वरूप परिवर्तन मान लिया जाता और उस औषधि को चिकित्सा व्यवस्था से बाहर कर दिया जाता है |
कोरोना संक्रमित लोग समय प्रभाव से स्वस्थ हो रहे थे किंतु समय का प्रभाव न मानने वाले लोग उनके स्वस्थ होने का कारण उन औषधियों को मान रहे थे | जो प्रयोग के तौर पर उस समय दी जा रही थीं | सब कुछ अंदाजे पर आधारित था | महामारी अंत तक यह रहस्य ही बनी रही | उस पर चिकित्सा का कोई प्रभाव पड़ा भी है या नहीं | यह पता लगाना भी अभी तक रहस्य ही बना हुआ है |
कुल मिलाकर महामारी का आना जाना घटना बढ़ना आदि प्राकृतिक है या मनुष्यकृत !इससे बचाव मनुष्यकृत किसी चिकित्सकीय प्रयास से होगा या फिर प्राकृतिक रूप से ही होगा !इस सच्चाई का जिससे पता लग सके ! वैसे सक्षम विज्ञान को भविष्य के लिए खोजे जाने की आवश्यकता है |
महामारी आखिर है क्या ?
महामारी कोई रोग है महारोग है या प्रतिरोधक क्षमता की कमी के कारण उत्पन्न हुई कमजोरी की अवस्था है ! इस समय अनुसंधानपूर्वक ये पता किया जाना बहुत आवश्यक है कि लोग कोरोना महामारी से रोगी हुए हैं या प्रतिरोधक क्षमता अचानक घट जाने से लोग रोगी हुए हैं| कहीं प्राकृतिक वातावरण में ही तो ऐसा कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है |जिससे इतनी बड़ी संख्या में लोगों की प्रतिरोधक क्षमता अचानक घट गई हो |प्रतिरोधक क्षमता जैसे ही संतुलित होती हो या कर ली जाती हो वैसे ही वे स्वस्थ हो जाते हों |ऐसी स्थिति में प्रतिरोधक क्षमता घटने से ही लोग रोगी हुए हों !
इसमें अनुसंधानों के द्वारा विशेष रूप से यह भी पता लगाया जाना चाहिए कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों की प्रतिरोधक क्षमता एक साथ अचानक कम कम होने का कारण क्या है ?प्रतिरोधक क्षमता के कम होने का कारण यदि प्राकृतिक है तो उसका प्रभाव सभी पर एक समान पड़ता है तो सभी को प्रभावित होना चाहिए था या किसी को नहीं होना चाहिए था | उससे कुछ लोग प्रभावित हुए और बाक़ी क्यों नहीं हुए |प्रतिरोधक क्षमता घटने का कारण यदि मनुष्यकृत है तो वो ऐसा कारण क्या है जिसका प्रभाव कुछ लोगों पर ही होता है ,बाक़ी लोगों पर नहीं होता है | उन कुछ लोगों में ऐसा विशेष क्या है जो बाक़ी लोगों में नहीं है |जिससे कुछ लोग संक्रमित हुए और बाक़ी लोग नहीं हुए |
इसी प्रकार से महामारी प्राकृतिक है या मनुष्यकृत !यदि प्राकृतिक है तो इसका प्रभाव सभी पर समान पड़ना चाहिए और यदि मनुष्यकृत है तो कुछ लोग महामारी से संक्रमित हैं और कुछ लोग नहीं संक्रमित हैं तो संक्रमित होने और न होने वालों के रहन सहन खानपान आदि में ऐसा अंतर क्या है जो इस प्रकार की परिस्थिति पैदा करने के लिए जिम्मेदार है |
अनुसंधानों के द्वारा यह भी पता किया जाना चाहिए कि महामारी का विस्तार कितना है !प्रसार माध्यम क्या है ! अंतर्गम्यता कितनी है !इस पर मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं ,तापमान और वायु प्रदूषण के बढ़ने का प्रभाव पड़ता है या नहीं!महामारी संक्रमितों के स्पर्श से फैलती है या अन्य प्रकार से !इसकी लहरों के आने और जाने का कारण क्या है !महामारी संक्रमितों पर कोविड नियमों का प्रभाव पड़ता है या नहीं | महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है या नहीं ,यदि हाँ तो इसके लिए ऐसी वैज्ञानिक प्रक्रिया कहाँ है जिसके द्वारा भविष्य में झाँका जाना संभव हो !भविष्य को देखने की क्षमता के बिना पूर्वानुमान लगाया जाना कैसे संभव है | आदि प्रश्नों के प्रमाणित उत्तर खोजे जाने चाहिए |
महामारी से संबंधित अनुसंधानों से जनधन हानि को रोकने में अभी तक क्या और कितनी ऐसी मदद मिल सकी है |जो ऐसे अनुसंधानों के बिना संभव न थी | महामारी के विषय में अभी तक जो भी अनुसंधान किए गए हैं वे यदि नहीं किए गए होते तो क्या महामारी से जनधन नुक्सान इससे भी अधिक हो सकता था !
इस महामारी से अभी तक जो अनुभव मिले हैं उनके आधार पर क्या भविष्य में आने वाली महामारियों के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं ?जिन औषधियों का प्रयोग किया गया है ?उनसे जो परिणाम मिले हैं उनके प्रभाव पर क्या यह विश्वास किया जा सकता है कि भविष्य में यही महामारी यदि दोबारा लौट कर आवे और उससे यदि कोई संक्रमित हो ही गया तो चिकित्सा के द्वारा क्या उसे नियंत्रित कर लिया जाएगा ! इसमें कितनी सच्चाई है कि कोरोना नियमों का पालन करके भविष्य में संभावित महामारी संक्रमण को फैलने नहीं दिया जाएगा !
कोरोना महामारी से प्राप्त अभी तक के अनुभवों आधार पर क्या भविष्य में महामारी मुक्त समाज की संरचना की जा सकती है | इतनी बड़ी अपेक्षा यदि न भी की जाए तो क्या ऐसी कोई आशा की जा सकती है कि भविष्य में आने वाली ऐसी किसी महामारी से जनधन की सुरक्षा अभी की अपेक्षा अधिक कर ली जाएगी |
ऐसा कोई संतोष जनक भरोसा मिलता है तब तो ठीक है और यदि नहीं मिल पाता है तो प्राचीन भारत में प्रचलित उस परंपराविज्ञान के आधार पर भी अनुसंधान किए जाने चाहिए ! जिनके बल पर महामारी समेत सभी प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा कर ली जाती रही है |क्या वह वैज्ञानिक अनुसंधान प्रक्रिया अभी भी उतनी ही प्रासंगिक है या नहीं |
महामारी के विषय में अभी तक जितनी बातें की गई हैं | जितने बिचार दिए गए हैं या जितने प्रकार की शंकाएँ व्यक्त की गई हैं | उनसे महामारी का रहस्य और अधिक उलझ गया है | इतनी बड़ी महामारी के अनसुलझे रहस्य को यूँ ही अधूरा नहीं छोड़ा जा सकता है | भविष्य की महामारियों के समय कुछ प्रभावी भूमिका अदा करने के लिए इस रहस्य को अभी सुलझाया जाना बहुत आवश्यक है |
परंपराविज्ञान !
अनुसंधान की दो विधाए हैं एक साक्ष्य आधारित अनुसंधान और दूसरे समय आधारित अनुसंधान ! ये दोनों विधाएँ एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग होती हैं |
इनमें साक्ष्य आधारित अनुसंधानों में अपनी आँखों से प्रत्यक्ष या किसी यंत्र की सहायता से देखकर,या किसी संबंधित व्यक्ति से पूछताछ करके जो जानकारी जुटाई जाती है | उसके आधार पर उस घटना का विश्लेषण किया जाता है |
समयआधारित अनुसंधानों में ऐसी मान्यता है कि प्रत्येक घटना के घटित होने की अपनी पूर्वनिर्द्धारित समयसारिणी होती है | उसे खोजने के लिए अनेकों प्रकार से अनुसंधान किए जाते हैं | जिस दिन वो सारिणी मिल जाती है | उस दिन उस प्रकार की घटनाओं का संपूर्ण रहस्य खुल जाता है |
उदाहरण : किसी ट्रेन के विषय में पता करना हो कि वो किस दिन कितने बजे किस स्टेशन से चलकर चलेगी | कितने कितने बजे किन किन स्टेशनों पर पहुँचेगी !
इसका पूर्वानुमान यदि समय आधारित अनुसंधानों के अनुशार लगाया जाए तो रेलवे द्वारा पूर्वनिर्द्धारित समयसारिणी देखकर कर ट्रेनों को देखे बिना भी उनके विषय में संपूर्ण जानकारी जुटा ली जाएगी |भविष्य में उनका संचालन किस दिन किस प्रकार का होगा उसके विषय में भी जानकारी मिल जाएगी जो बिल्कुल सही होगी | यही पूर्वानुमान है |
इसी घटनाओं को यदि साक्ष्य आधारित अनुसंधानों की दृष्टि से देखा जाए तो ट्रेन को जाते हुए देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये ट्रेन इतनी गति से इस दिशा में जा रही है इसलिए इतने समय अमुक स्टेशन पर पहुँच सकती है | बादलों या आँधी तूफानों की तरह ही उपग्रहों रडारों से यदि ट्रेनों को भी दूर से देखने की सुविधा हो तो उन ट्रेनों को कुछ पहले से देखकर कुछ बाद तक देखे रहा जा सकता है |जिससे कुछ अधिक अनुभव मिल सकते हैं और कुछ अन्य स्टेशनों पर भी ट्रेन को देखा जा सकता है उसके आधार पर कुछ आगे की स्टेशनों के विषय में भी अंदाजा लगाया जा सकता है | ये संपूर्ण प्रक्रिया लगभग उसी प्रकार की है जिस प्रकार से उपग्रहों रडारों की मदद से बादलों या आँधी तूफानों को देखकर उनकी गति और दिशा के अनुशार उनके विषय में अंदाजा लगा लिया जाता है ,कि यदि ये इसी दिशा में इतनी ही गति से आगे बढ़ते रहे तो इतने दिनों में वहाँ पहुँच सकते हैं | उसके आधार पर अंदाजा लगाकर भविष्यवाणी कर दी जाती है | यदि इनकी गति और दिशा में बदलाव हुआ तो भविष्यवाणी बदल जाती है या गलत निकल जाती है |
इस प्रक्रिया में पूर्वानुमान लगाने के नाम पर केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है | जिनके सच निकलने की संभावना जितने प्रतिशत होती है उतने ही प्रतिशत गलत निकलने की भी संभावना होती है | इसमें सच्चाई कितने प्रतिशत होगी कहा जाना कठिन है |
इस विधा में आज का ट्रेन संचालन देखकर उसी के अनुशार कल परसों आदि के विषय में अंदाजा लगा लिया जाता है |कुछ ट्रेनों में ऐसा अंदाजा सही भी घटित होता है | कुछ ट्रेनों का एक सप्ताह में तीन तीन दिनों के लिए रोड बदल जाता है | उस समय ऐसे अंदाजे गलत निकल जाते हैं |जिनके लिए हम ट्रेन के रूटपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं | यदि ऐसा न होता तो हम अंदाजा गलत न होता !पहले इसी रूट से बजे इतनी ही गति से ट्रेन आती थी|आज इस रूट से ट्रेन नहीं आई इसलिए अंदाजा गलत निकल गया|मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के गलत होने पर अक्सर ऐसी बातें सुनी जाती हैं | पहले ऐसा होता था अब वैसा नहीं हुआ| इसलिए हमारी मौसम संबंधी भविष्यवाणी गलत निकल गई | इस बात को कहा इसी प्रकार से जाता है किंतु प्रदर्शित यह किया जाता है कि गलती हमारे पूर्वानुमान लगाने की नहीं अपितु उस घटना की है जो उस प्रकार से नहीं घटित हुई जैसा सोचकर हमने अंदाजा लगाया था|प्राकृतिक घटनाओं के विषय में प्रकृति को अपने अनुशार नहीं चलाया जा सकता है, प्रत्युत प्रकृति के अनुशार चलकर ही हमें प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुसंधान करना होगा |
इस घटना को समयविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो यदि ऐसी घटनाओं की समयसारिणी पता होती तो ट्रेन को प्रत्यक्ष देखे बिना भी यह पता होता कि ट्रेन सप्ताह के किन दिनों में किस रूट से जाएगी | यह सही जानकारी मिल सकती थी | मौसम के क्षेत्र में भी यदि समयसारिणी खोज ली जाए तो ये पहले से पता होता कि पिछले वर्ष इस महीने के इस सप्ताह में इस स्थान पर इतनी बारिश हुई थी अबकी बार उसकी अपेक्षा कब या अधिक बारिश होने की संभावना क्यों है और उसका कारण क्या है |
ऐसे पूर्वानुमानों के गलत निकलने का कारण उन घटनाओं से संबंधित समयसारिणी के विषय में जानकारी न होना होता है ,जबकि अनुसंधान संबंधी ऐसी अपनी गलतियों का दोष उन प्राकृतिक घटनाओं के मत्थे मढ़ा जाता है | ट्रेन संबंधी समय सारिणी पता न होने के कारण हम उसके रूट परिवर्तन को नहीं समझ सके और गलत अंदाजा लगा बैठे वैसा घटित नहीं हुआ तो अपनी कमी न स्वीकार करते हुए इसके लिए ट्रेन के रूटपरिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में लगाए गए अंदाजे गलत निकल जाने पर जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | महामारी के विषय में ऐसे अंदाजे गलत निकल जाने पर उसके लिए महामारी के स्वरूप परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है |
ऐसी घटनाओं में परिवर्तनों का कोई दोष नहीं होता है परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है ! हमारे साक्ष्य आधारित अनुसंधानों में वो क्षमता ही नहीं है जिसके आधार पर इसप्रकार के परिवर्तनों को आगे से आगे समझा जा सके और उनके विषय में सही पूर्वानुमान लगाया जा सके |
समयआधारित अनुसंधानों के द्वारा ऐसा किया जा सकता है | समयविज्ञान के द्वारा सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों हजारों वर्ष पहले लगाए हुए पूर्वानुमान जिसप्रकार से अभी भी सही निकलते हैं|उसीप्रकार से उसी समयविज्ञान के द्वारा यदि मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में,महामारी के विषय में अनुसंधान पूर्वक यदि वह समयसारिणी खोज ली जाती है ,जिसके आधार पर ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं,तो ऐसी घटनाओं के विषय में न केवल सही सही पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं,अपितु उनके घटित होने के आधारभूत कारण भी खोजने में सफलता मिल सकती है |
समयविज्ञान के द्वारा खोजे जा सकते हैं कुछ शंकाओं के समाधान !
भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाएँ प्राकृतिक हैं या मनुष्यकृत! ये पता किया जाना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि ऐसी घटनाएँ जब बार बार घटित होने लगती हैं तो उसके लिए ग्लोबलवार्मिंग या जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जाता है| यदि ये सही है तो ऐसी घटनाओं को समझने के लिए ग्लोबलवार्मिंग या जलवायुपरिवर्तन होने का कारण खोजना पड़ेगा |इसके लिए औद्योगीकरण है, जंगलों की कटाई , पेट्रोलियमपदार्थों का धुआँ,फ़्रिज, एयरकंडीशनर आदि मनुष्यकृत कार्यों को जिम्मेदार बताया जाता है |
ऐसी बातों पर यदि विश्वास करके उन कार्यों को करना यदि बंद कर दिया जाए तो तो इस बात की कितनी संभावना है कि इसके कारण घटित होने वाली ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन जैसी घटनाओं पर अंकुश लग जाएगा !ऐसा होते ही क्या भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाओं का प्रकोप काफी हद तक कम हो जाएगा | यदि इसप्रकार के परिणामों के निकलने की संभावना है तो भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाओं के प्रकोप को कम करने के लिए समाज ऐसा आत्मसंयम वरत कर सकता है |बशर्ते ! उसे यह भरोसा दिलाया जा सके कि इतना आत्मसंयम वरत लेने से ऐसी प्राकृतिक आपदाओं महामारियों पर एक सीमा तक अंकुश लग ही जाएगा |
समाज को इसबात का भरोसा दिलाने के लिए कुछ विश्वसनीय ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने होंगे !जो प्राकृतिक घटनाओं के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा कहा गया हो वो बाद में सही घटित भी हुआ हो|महामारी एवं मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा कही गई ऐसी अनेकों बातें व्यवहार में सही नहीं निकल पाई हैं |
वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जितने भी कारण बताए गए वे व्यवहार में सही नहीं घटित हुए !एक कारण बताया गया उसके बीतने के बाद भी जब वायु प्रदूषण कम नहीं हुआ तो दूसरे कारण बताए गए ऐसे ही तीसरे चौथे पाँचवें आदि कारण बताए जाते रहे किंतु उन कारणों के कमजोर पड़ने पर भी वायुप्रदूषण कमजोर नहीं पड़ा |जिसे लेकर ये प्रश्न उठता है कि वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार माना गया, उन कारणों के समाप्त होने के बाद भी वायुप्रदूषण कम न होने का कारण क्या है ?
ऐसे ही महामारी की लहरें बार बार आने के लिए जो कारण जिम्मेदार बताए जाते हैं | उन कारणों के समाप्त हो जाने के बाद तो ऐसा नहीं होना चाहिए लेकिन इसके बाद भी वैसा होता है | उसका कारण क्या है ?
ऐसी परिस्थिति में प्राकृतिक घटनाओं के विषय में समयविज्ञान के द्वारा कुछ सही भविष्यवाणियाँ करके समाज के विश्वास को जीता जाना अति आवश्यक है | समयविज्ञान के द्वारा ऐसी प्राकृतिकघटनाओं की समयसारिणी खोजने की प्राचीनकाल से ही परंपरा रही है|जिसके आधार पर ऐसी घटनाओं की समयसारिणी खोजने के लिए अनुसंधान किया जाता है|यदि वह खोजने में सफलता मिल जाती है तब तो सूर्य चंद्र ग्रहणों की तरह ही भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि पूरी तरह से सही निकल सकते हैं | सही समयसारिणी जब तक नहीं मिल पाती है तब तक यूं तो ऐसे ही अंदाजे लगाए जा सकते हैं जो कभी सही कभी गलत निकलते रह सकते हैं |
इसके अतिरिक्त भी परंपराविज्ञान में पूर्वानुमान लगाने के लिए एक और रास्ता भी है जो उतना सही तो नहीं है किंतु कई बार पूर्वानुमान सही निकलते देखे जाते हैं|इसमें कुछ प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के समय के आधार पर कुछ दूसरी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाता है |यह विधा बिल्कुल उसीप्रकार की होती है |जिसप्रकार से किसी ट्रेन के जाने के समय का अनुमान उसके पहले गई ट्रेन के समय के आधार पर लगाया जाता है,अथवा अब सिग्नल हो गया है इसका मतलब इतनी देर बाद ट्रेन जाएगी | ऐसे और भी छोटे छोटे संकेत होते हैं | जिनके आधार पर समय सारिणी के बिना भी ट्रेनों के आवागमन के विषय में अंदाजा लगा लिया जाता है |
इसीप्रकार से प्राकृतिक वातवरण में घटित हो रही कुछ प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर कुछ दूसरी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | वह भी प्रायः सही निकलते देखा जाता है |इतना अवश्य है कि इसके आधार पर लगाए गए पूर्वानुमानों के समय में कुछ अंतर निकलते देखा जाता है |
परंपराविज्ञान का मानना है कि प्रत्येक प्राकृतिक घटना स्वयं तो घटित हो ही रही होती है |इसके साथ ही साथ कुछ दूसरी घटनाओं के घटित होने के विषय में कुछ प्रत्यक्ष तो कुछ अप्रत्यक्ष सूचनाएँ दे रही होती है |उन्हें यदि समय से समझ लिया जाए तो कुछ भावी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि समय से लगाया जा सकता है |
महामारी अनुसंधान और परंपरा विज्ञान
सूर्यग्रहण के विषय में पूर्वानुमान पता करना हो तो सूर्य चंद्र और पृथ्वी के विषय में जानकारी पूरी जुटानी पड़ती है | इसी प्रकार से यदि चंद्रग्रहण के विषय में पूर्वानुमान लगाना हो तो भी ग्रहण की गणना करते समय सूर्य चंद्र और पृथ्वी तीनों के विषय में जानकारी पूरी रखनी होती है |
ऐसे ही जिस भी प्राकृतिक घटना के विषय में अनुसंधान करना होता है उसके सभी पक्षों के विषय में जानकारी पूरी जुटानी होती है | कोरोना महामारी के विषय में ही यदि सोचा जाए तो ये कहानी केवल इतनी ही नहीं रहेगी कि महामारी आई और महामारी के प्रभाव से लोग रोगी होने लगे | ऐसा करने से अनुसंधान केवल महामारी पर ही केंद्रित होकर रह जाते हैं | जिससे महामारी की वास्तविकता तक पहुँचना संभव नहीं होता है |
जिस प्रकार से किसी सैनिक पर शत्रु के द्वारा जानघातक प्रहार कर देने मात्र से उसकी मृत्यु नहीं हो जाती है अपितु उस प्रहार का प्रभाव उसके शरीर पर कैसा पड़ता है | यह निर्णायक होता है | जिसने गोली चलाई हो उसका निशाना चूक भी सकता है | बीच में कोई दूसरा ऐसा अवरोध भी उत्पन्न हो सकता है| जिससे उस पर प्रहार तो हो किंतु उसका प्रभाव ही न पड़े | उसने कोई ऐसा सुरक्षा कवच पहन रखा हो, जिस पर गोली असर ही न करती हो | ऐसे सभी कारण उसकी सुरक्षा के पक्ष में होते हैं | जिससे उसका बचाव हो सकता है | इसलिए उस पर जानघातक प्रहार कर दिए जाने के बाद भी उसके परिणाम का आकलन तब तक नहीं किया जा सकता है जब तक उस व्यक्ति के विषय में प्रहार से बचाव की वास्तविक क्षमता का पता न लगा लिया जाए !जिस पर प्रहार किया गया होता है | ऐसे महामारी या कोई रोग उस व्यक्ति स्वास्थ्य पर प्रहार की तरह है | जिससे उसका बचाव उसकी अपनी स्वास्थ्य सुरक्षक क्षमता के आधार पर होता है | इसलिए किसी के रोगी होने के लिए जितना कोई रोग जिम्मेदार होता है उतनी ही स्वास्थ्य संबंधी कमजोरी जिम्मेदार होती है | दोनों के विषय में ठीक ठीक आकलन करके ही इस बात का सही सही निर्णय लिया जा सकता है कि रोग बलवान है या रोगी कमजोर है | रोगी होने का कारण आखिर क्या है ?
इसी प्रकार से महामारी को समझने के लिए सबसे पहले यह पता लगाना होता है कि महामारी मनुष्यकृत है या प्राकृतिक है |यदि मनुष्यकृत है तब तो उसका कारण प्रत्यक्ष दिखाई पड़ना चाहिए | जिसे तर्कों प्रमाणों की कसौटी पर कसा जा सकता है |जिनसे यह निश्चय होता हो कि महामारी मनुष्यकृत ही है | यदि महामारी प्राकृतिक है तो उसके आगे पीछे घटित होने वाली कुछ अन्य प्राकृतिक घटनाओं की संगति महामारी के साथ बैठनी चाहिए ,क्योंकि कोई भी प्राकृतिक घटना कभी भी अकेली नहीं घटित होती है |ऐसी प्रत्येक घटना का अपना समूह होता है | जिसमें उस मुख्यघटना की सहायक अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ एक समूह में सम्मिलित होती हैं | जिसकी कुछ घटनाएँ मुख्य घटना के घटित होने से कुछ पहले घटित हो चुकी होती हैं कुछ साथ में घटित हो रही होती हैं और कुछ उस मुख्य घटना के बाद में घटित होती हैं | ऐसी सभीप्रकार की घटनाओं के साथ यदि संगति बैठ जाती है ,तो उसे प्राकृतिक घटना माना जा सकता है |
जिसप्रकार से पूर्णिमा का चंद्र आकाश में निकलता है, किंतु लहरें समुद्र में उठती हैं पृथ्वी में नहीं उठती हैं जबकि चंद्रमा का उतना ही प्रभाव पृथ्वी पर भी पड़ रहा होता है |इसलिए लहरें उठने का कारण केवल चंद्रमा ही नहीं है प्रत्युत समुद्र भी है |दोनों के संयोग से लहरें घटित होती हैं |
इसी प्रकार से महामारी का कारण केवल महामारी में ही न होकर अपितु उन लोगों के शरीरों में भी है जो संक्रमित होते हैं और उन लोगों के शरीरों में भी है जो मृत्यु को प्राप्त होते हैं | महामारी का प्रभाव तो सभी पर एक समान पड़ रहा होता है !इसके बाद भी उसका परिणाम अलग अलग दिखते हैं | कुछ लोग बिल्कुल स्वस्थ बने रहते हैं कुछ लोग संक्रमित हो जाते हैं जबकि कुछ लोग मृत्यु को प्राप्त होते हैं | इससे ये स्पष्ट होता है कि लोगों के संक्रमित होने या मृत्यु को प्राप्त होने के लिए केवल महामारी ही जिम्मेदार नहीं है | वस्तुतः इसके लिए महामारी जितनी जिम्मेदार है उतने ही जिम्मेदार संक्रमित होने और मृत्यु को प्राप्त होने वाले शरीर भी हैं | ऐसी स्थिति में महामारी पैदा होने के कारण उसके लक्षण प्रभाव प्रसारमाध्यम आदि पता लगाया जाना जितना आवश्यक है | उतना ही आवश्यक उन शरीरों के विषय में अनुसंधान किया जाना है | जो महामारी के समय भी संक्रमित नहीं हुए जो संक्रमित तो हुए किंतु बच गए और जो संक्रमित हुए तथा मृत्यु को प्राप्त हो गए | कुछ लोग ऐसे भी थे जो बिना संक्रमित हुए ही बिना किसी कारण के महीनों बाद तक मृत्यु को प्राप्त होते रहे | ऐसे लोग हँसते खेलते नाचते गाते पड़े बैठे अचानक मृत्यु को प्राप्त होते देखे गए | वे तो महामारी से संक्रमित भी नहीं हुए फिर भी मृत्यु को प्राप्त हो गए | इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि लोगों के अस्वस्थ होने का कारण यदि महामारी को मान भी लिया जाए तो जो बिना अस्वस्थ हुए ही मृत्यु को प्राप्त हो गए उनकी मृत्यु का कारण क्या है |यह भी अनुसंधान पूर्वक खोजा जाना चाहिए !
महामारी का पूर्वानुमान लगाया जाना संभव है !
प्रत्येक ट्रेन को चलाने और रोकने की प्रक्रिया उसके अंदर ही विद्यमान होती है,उसी से उसे चलाया और रोका जाता है | ट्रेन जिस समय सारिणी के अनुशार चलती और रुकती है |उस समय सारिणी को बनाने वाली शक्ति न ट्रेन के अंदर होती है और न ही उसके बाहर होती है | वह कहीं दूर होती है जिसने पहले कभी वह समय सारिणी बनाकर ट्रेन परिचालन विभाग को सौंप दी है | उस पूर्वनिर्धारित समय सारिणी के अनुशार ट्रेन चलती और रुकती आ रही है |
समयसारिणी बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि उस ट्रेन के आने से पहले और बाद में किस किस प्रकार घटनाएँ घटित होंगी | उस के पहले किन किन दूसरी ट्रेनों का आना और जाना होगा |सिग्नल आदि कब कैसे रखे जाएँगे और क्या क्या सावधानियाँ पहले और पीछे बरतनी होंगी | ट्रेन आने से पहले घटित होने वाली उन छोटी बड़ी घटनाओं को देखकर यह अल्पावधिक पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |कुछ दिन पहले या कुछ सप्ताह पहले ट्रेन के आवागमन के विषय में दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाने के लिए उस समयसारिणी की आवश्यकता होती है |उसके बिना ऐसा किया जाना संभव ही नहीं है |
इसमें विशेष बात यह है कि ट्रेन के आने से कुछ पहले यदि अल्पावधि पूर्वानुमान पता लगाने हैं तो यह पहले दे पता होना चाहिए कि किस ट्रेन के आने से पहले किस किस प्रकार की घटनाएँ दिखाई देती हैं | इसी प्रकार से दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाने के लिए वह समयसारिणी पता होनी चाहिए | जिसके आधार पर ट्रेनों परिचालन होता है |
इसीप्रकार से भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के अधिक घटित होने के विषय में अल्पावधि पूर्वानुमान यदि पता करने हों तो उन प्रमुख घटनाओं से पहले घटित होने वाली घटनाओं के विषय में सही सही जानकारी होनी चाहिए | जिन्हें देखकर यह अनुमान लगाया जा सके कि किस घटना के कितने समय बाद कौन सी घटना घटित होने वाली है |
ऐसी ही भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में यदि दीर्घावधि पूर्वानुमान पता करने हों तो वह समयसारिणी पता होनी चाहिए |जिसमें निर्द्धारित समय के अनुशार भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाएँ अपने अपने समय से घटित होती हैं |
महामारी के प्रकोप को रोका जाना क्या संभव है ?
पूर्वनिर्द्धारित समयसारिणी के अनुशार ही प्रत्येक ट्रेन चलाई और रोकी जा सकती है|ट्रेन को चलाने और रोकने की प्रक्रिया उसके अंदर ही विद्यमान होती है,उसी से उसे चलाया और रोका जा सकता है| ट्रेन से बाहर खड़े होकर उसे चलाया जाना तो किसी भी प्रकार से संभव नहीं है ! संभव उन्हें रोका जाना भी नहीं है फिर भी यदि ट्रेन या ट्रेन के पथ को दुर्घटनाग्रस्त आदि करके रोक भी दिया जाए, समय सारिणी का अनुपालन तब भी किया जाएगा !उसी समय ट्रेन के पथ को ठीक करके ट्रेन के समय पर ही उसी नाम से कोई दूसरी ट्रेन चला दी जाएगी ! कुल मिलाकर समय सारिणी में निर्धारित ट्रेन के परिचालन को अधिक समय तक रोक कर रखा जाना संभव नहीं है | इसी प्रकार से प्राकृतिक समयसारिणी के अनुशार निर्द्धारित भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी घटनाओं को न तो शुरू किया जा सकता है और न ही समाप्त ! ये तो अपने अपने समय से ही घटित होती हैं |
कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर जो यह आशंका व्यक्त की जाती है कि बढ़ता औद्योगीकरण,जंगलों की कटाई, पेट्रोलियमपदार्थों का धुआँ ,फ़्रिज या एयरकंडीशनर आदि से निकलीउष्णता ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के पैदा होने के लिए विशेष जिम्मेदार हो सकती है | यद्यपि परंपरा विज्ञान ऐसी मनुष्यकृत घटनाओं में इतनी क्षमता नहीं मानता है कि ये प्राकृतिक वातावरण को इतना प्रभावित करने में समर्थ हो सकती हैं | इसीलिए जब तक ऐसे कार्यों का बंद किया जाना संभव नहीं है तब तक के लिए ऐसी आशंकाओं को सच भले मान लिया जाए किंतु ऐसे मनुष्यकृत कार्यों रोका जाना कभी संभव हो सका तो यह सच्चाई भी सामने आ जाएगी कि ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण कुछ मनुष्यकृत कार्य नहीं हैं | इसी प्रकार से ऐसी घटनाओं का रोका जाना भी मनुष्यकृत प्रयासों से संभव नहीं है | इससे जनधन हानि कम से कम हो इसके लिए प्रयत्न अवश्य किए जा सकते हैं |
प्राकृतिक घटनाओं का संबंध अनुसंधानों के साथ सिद्ध होना चाहिए
प्राकृतिक घटनाओं को देखने की कुछ विशेष दृष्टि तो वैज्ञानिकों के पास होनी ही चाहिए | वो यदि प्राकृतिक घटनाओं को आमलोगों की दृष्टि से ही देखेंगे तो उनकी वैज्ञानिक विशेषता को अलग से कैसे पहचाना जाएगा |
वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जितने भी कारण बताए गए वे व्यवहार में सही नहीं घटित हुए !एक कारण बताया गया उसके बीतने के बाद भी जब वायु प्रदूषण कम नहीं हुआ तो दूसरे कारण बताए गए ऐसे ही तीसरे चौथे पाँचवें आदि कारण बताए जाते रहे किंतु उन कारणों के कमजोर पड़ने पर भी वायुप्रदूषण कमजोर नहीं पड़ा |जिसे लेकर ये प्रश्न उठता है कि वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार माना गया, उन कारणों के समाप्त होने के बाद भी वायुप्रदूषण कम न होने का कारण क्या है ? एक जैसी परिस्थिति रहने पर भी सप्ताह में तीन दिन वायुप्रदूषण बहुत अधिक बढ़ जाने एवं तीन दिन कम हो जाने का कारण क्या है ?
इसी घटना को परंपरा विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण प्राकृतिक माना जाता है | समय संचार के प्रभाव से वायुप्रदूषण कुछ दशकों या कुछवर्षों में कुछ महीनों में और कुछ दिनों अन्य समय की अपेक्षा अधिक बढ़ता ही है !किंतु जिन दशकों वर्षों महीनों और दिनों में वायु प्रदूषण बढ़ने वाले समय में तेज हवा चलने लगे या वर्षा होने लगे तो बढ़ा हुआ वायुप्रदूषण भी या तो धुल जाता है या फिर तेज हवा में उड़ जाता है| इसलिए उस समय में बढ़ा हुआ वायुप्रदूषण भी दिखाई ही नहीं पड़ता है | विशेष कर सर्दी की ऋतु में वर्षा होना बहुत कम हो जाता है और हवाओं की गति भी बहुत धीमी हो जाती है | जिससे वायुप्रदूषण का बढ़ना दिखाई पड़ता है जबकि अन्य ऋतुओं में हवा एवं वर्षा के प्रभाव से बढ़ा हुआ वायुप्रदूषण भी कम दिखाई नहीं पड़ता है |
जिससे क्या जाए इसमें विशेष बात यह है कि ऐसी घटनाओं के घटित होने का वास्तविक कारण पता नहीं लगाया जा सका है | वो जानना आवश्यक इसलिए है ,क्योंकि ऐसी घटनाएँ जब जब घटित होती हैं तब तब भारी जनधन हानि होते देखी जाती है |उसके लिए यदि वास्तव में मनुष्यों के द्वारा किए जाने वाले कुछ कार्य ही जिम्मेदार हैं तो मनुष्य उन कार्यों को कुछ कष्ट सहकर भी छोड़ देंगे ,ताकि भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात जैसी घटनाओं से सुरक्षा हो सके |
भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बज्रपात जैसी घटनाओं को रोका जाना इसीलिए संभव नहीं है क्योंकि वे प्राकृतिक हैं |इसीलिए उन्हें रोकने के लिए प्रयत्न भी नहीं किया जाता है |यदि किया भी जाए तो उन घटनाओं पर मनुष्यकृत प्रयत्नों को कोई प्रभाव ही नहीं पड़ेगा | वे घटनाएँ अपने हिसाब से घटित होती रहेंगी | प्रयत्नों का प्रभाव तो पड़ेगा नहीं ,किंतु प्रयत्नों के नाम पर कुछ किया जा रहा है ये दिखाई अवश्य पड़ता रहेगा | वैसे भी भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बज्रपात जैसी घटनाएँ हमेंशा तो घटित नहीं होती रहेंगी ,अन्य प्राकृतिक घटनाओं की तरह ये भी कभी तो रुकेंगी और जब रुकेंगी तब तक यदि प्रयत्न किए जाते रहेंगे तो ये कहा जा सकता है कि ये हमारे द्वारा किए जा रहे प्रयत्नों के प्रभाव से ही रुकी हैं ,अन्यथा रुकती नहीं अभी लंबे समय तक घटित होती रहतीं |
महामारी के विषय में - कोरोना महामारी के समय जो संक्रमित हुए या जिनकी मृत्यु हुई है उसका कारण क्या है ?इस महामारी के पैदा होने का कारण प्राकृतिक है या मनुष्यकृत !यदि ये प्राकृतिक है तब तो प्राकृतिक रूप से ही रुकेगा |
ऐसी प्राकृतिक घटनाओं
हजारों वर्षों से वर्ष सर्दी गर्मी
लोग सैकड़ों वर्षों से जैसे रहते रहे हैं, जो कुछ खाते पीते रहे हैं,जैसे सोते जागते रहे हैं उसी प्रकार से
समाज में महामारी में बहुत लोगों की
सबसे पहले भूकंप के विषय में - जिस प्रकार से बहुत सारे देशों में से किसी एक देश में भूकंप आया !उसके बहुत सारे प्रदेशों में से किसी एक प्रदेश में भूकंप आया ,वहाँ बहुत सारे मकान बने हुए थे,उनमें से कुछ मकान गिर गए,वहाँ से बहुत सारे लोग निकल रहे थे, जिनमें से कुछ लोग मकान के मलबे में दब गए |उन दबे हुए लोगों में से कुछ लोग मृत्यु को प्राप्त हुए |
कहीं भूकंप आया वहाँ आने पर कोई मकान गिरा उसमें कुछ लोग दब गए जिनमें कुछ लोगों की मृत्यु हो गई
अतीत कोरोना महामारी के समय
प्लाज्मा आदि
उन घटनाओं से संबंधित अतीत में घटित हुई घटनाओं का समय के साथ मिलान कर लिया जाता है उसी के आधार पर भविष्य के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है जो बिल्कुल सही निकलता है |
जिसके अनुशार वो मुख्य घटना तो घटित होती ही है उसके आगे पीछे की घटनाएँ भी उसी सारिणी के अनुशार ही घटित होती हैं | उस समय सारिणी को खोजने के लिए अनुसंधान किए जाते हैं | इस समयसारिणी को खोजने के लिए
उस समय सारिणी को का समय होता है |उस समयसारिणी को उस समय उस घटना के समय के आधार पर एवं उस घटना के आगे पीछे घटित हुई प्राकृतिक घटनाओं के समय के आधार पर उस मुख्य घटना के विषय में विश्लेषण किया जाता है | इसका मुख्य आधार समय और घटनाओं की प्रकृति होती है |
साक्ष्य आधारित अनुसंधानों की दृष्टि से यदि यह पता करना हो
वर्तमान में प्रचलित आधुनिक विज्ञान संबंधी अनुसंधानों में साक्ष्यों के आधार पर घटनाओं का विश्लेषण किया जाता है | जिन घटनाओं में प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं होते उनमें कुछ अप्रत्यक्ष साक्ष्यों की कल्पना कर ली जाती है | ऐसे साक्ष्यों को आधार बनाकर घटनाओं के विषय में अनुसंधान किए जाते हैं|भूकंपों के घटित होने का कारण प्रत्यक्ष कभी किसी ने देखा नहीं है किंतु लावा पर तैरती भूमिगत टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने को या संचित ऊर्जा के निकलने को भूकंपों के घटित होने को कल्पना के आधार पर कारण मान लिया गया है |
समय आधारित अनुसंधानों में सबसे पहले समय पर बिचार किया जाता है कि यह प्राकृतिक घटना इसी समय क्यों घटित हुई है |इस समय में ऐसा विशेष क्या है | इसके आगे और पीछे किस किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुई हैं उनके घटित होने का समय क्या रहा है |उन सभी घटनाओं का उनके घटित होने के समय के आधार पर विश्लेषण होता है |
के अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाते हैं समय आधारित अनुसंधानों में साक्ष्यों को भी सम्मिलित किया जाता है|
इस अनुसंधान प्रक्रिया में समय प्रमुख होता है प्रत्येक प्राकृतिक घटना से संबंधित सभी पक्षों को अनुसंधान का विषय बनाया जाता है | चेतन कोई भी प्राकृतिक घटना जितने पक्षों से संबंधित होती है उन सभी पक्षों घटित होने में जितने पक्ष संबंधित
इसमें सभी अध्ययन समय से संबंधित होते हैं | सभी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में समय के आधार पर ही अनुसंधान किए जाते हैं |प्रतिपल होने वाले समय संबंधी परिवर्तनों एवं प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली घटनाओं को एक साथ जोड़कर अनुसंधान किए जाते हैं | समय में किस प्रकार का बदलाव आने से कैसी घटना घटित हुई है या कोई भी घटना जब घटित हुई तब कैसा समय चल रहा था |
"किसी क्षेत्र में अचानक तेजबादल उठें और बहुत तेज वर्षा करने लगें जिससे बाढ़ आ जाए |उसमें कई गाँव डूब जाएँ जिससे बहुत बड़ी जनधनहानि हो जाए | "
इस प्रकरण में इसी समय इतनी अधिक वर्षा अचानक होने का कारण क्या रहा ? ये प्राचीन परंपरा विज्ञान के द्वारा ही खोजना पड़ेगा | प्राकृतिक घटनाओं के विषय में भविष्यसंबंधी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने की विधि प्राचीन विज्ञान में बताई गई है |
समय आधारित अनुसंधान पद्धति के अनुशार बिचार किया जाना होता है कि इतने कम समय में इतनी अधिक वर्षा हमेंशा तो नहीं होती है ! इस बार ऐसा होने का कारण समय संबंधी ऐसा कौन सा परिवर्तन रहा है ! जिसे न पहचान पाने के कारण पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है | उस कारण को खोजा जाता है | सही कारण पता लग जाने के बाद वह अनुभव भविष्य के लिए काम आता है |समय आधारित अनुसंधान पद्धति में प्राकृतिक परिवर्तनों को प्रतिपल देखना एवं उनके विषय में गणितीय अनुसंधान करना होता है |इस प्रक्रिया के अनुपालन में थोड़ी भी कमी छूट जाती है तो पूर्वानुमान या तो लग नहीं पाते हैं या फिर गलत निकल जाते हैं |
प्राचीन काल की अनुसंधान पद्धति !
प्राचीनकाल में ऋषि मुनि महात्मा आदि जंगलों में रहा करते थे | उनमें से कुछ तो गृहस्थ होते थे | इसलिए उनके संतानें भी होती थीं | उनके लिए जंगलों में उस प्रकार की सुविधाएँ नहीं मिल पाती थीं | जो गृहस्थ जीवन के लिए आवश्यक होती थीं | इसलिए उन्हें और उनके परिवारों को काफी संघर्ष पूर्ण जीवन जीना पड़ता था,फिर भी वे जंगलों में रहना नहीं छोड़ते थे |
राजा महाराजा लोग समय समय पर जंगलों में स्थित ऋषि मुनि महात्माओं के आश्रमों में स्वयं जाया करते थे | ऋषियों मुनियों महात्माओं को भी राजदरवारों में कभी कभी पहुँचते देखा जाता था | ऐसी स्थिति में न केवल राजा उनके चरणों में दंडवत प्रणाम करते थे प्रत्युत संपूर्ण राजदरवार उनके सामने नतमस्तक होते देखा जाता था | उनका सभी प्रकार से आदर किया जाता था |
इसमें विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि जिन ऋषि मुनि महात्माओं को राजाओं से इतना सम्मान प्राप्त होता था|इसके बाद भी वे जंगलों में रहकर ऐसा संघर्षपूर्ण जीवन जीते थे | वे चाहते तो महानगरों के सुख सुविधा संपन्न भवनों में उनके रहने की व्यवस्था हो सकती थी | बड़े बड़े राजा महाराजा प्रसन्नता पूर्वक उनके लिए इतनी व्यवस्था कर सकते थे ,किंतु क्या कारण है कि न तो राजा महाराजाओं ने उनसे कभी महानगरों के सुख सुविधा संपन्न भवनों में रहने का आग्रह किया और न ही उन ऋषियों मुनियों महात्माओं ने ही राजाओं से कभी महानगरों में रहने की इच्छा जताई |राजा लोग हमेंशा राजभवनों में और ऋषिमुनि महात्मा जंगलों में ही रहते रहे हैं |
प्राचीनकाल में ऋषिमुनि महात्मा ही प्रकृतिवैज्ञानिक हुआ करते थे | ऐसे प्राकृतिक विषयों पर वही अनुसंधान करते थे | इसलिए उन्हें प्रकृति के बीच जंगलों में रहकर प्रकृति के प्रत्येक परिवर्तन पर दृष्टि रखनी पड़ती थी | उनका मानना था कि जिस प्रकार से किसी नदी तालाब आदि के जल में जाए बिना तैरना नहीं सीखा जा सकता है उसी प्रकार से प्राकृतिक वातावरण में रहे बिना प्रकृति में प्रतिपल हो रहे परिवर्तनों का अनुभव नहीं किया जा सकता है |
भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि घटनाएँ प्राकृतिक परिवर्तन ही तो हैं | महामारी भी प्राकृतिक परिवर्तन ही है | ऐसे परिवर्तनों का अनुभव किया जाना प्राकृतिक वातावरण में रहे बिना संभव नहीं है | महानगरों के सुख सुविधा संपन्न वातानुकूलित भवनों में बैठकर प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुभव कैसे किया जा सकता है | इसके बिना वर्षा बाढ़ भूकंप आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं एवं महामारियों के न तो स्वभाव को समझा जाना संभव है और न ही इनके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना ही संभव है |
समय आधारित अनुसंधान पद्धति
समय आधारित अनुसंधानों को लगातार करते रहा जाता है | ये किसी भी घटना के घटित होने से पहले शुरू कर दिए जाते हैं | इसके आधार पर भविष्य में घटित होने वाली घटना के घटित होने का कारण एवं पूर्वानुमान खोजना होता है |
विज्ञान के नाम पर वर्तमान समय में प्रचलित परंपरा साक्ष्य आधारित अनुसंधान पद्धति है | इसमें प्रत्यक्ष साक्ष्यों की श्रृंखला बनानी पड़ती है ये साक्ष्य कितने सही हैं कितने कल्पित हैं ये बात अनुसंधानों के आगे बढ़ने पर स्पष्ट होती है | समय और साक्ष्य आधारित अनुसंधान पद्धतियों में में विशेष ध्यान देने योग्य बात ये है कि साक्ष्य आधारित अनुसंधानों में घटना घटित होने के बाद समाधान खोजे जाते हैं,क्योंकि साक्ष्य तो तभी मिलेंगे जब घटना घट चुकी होगी |
इसमें संशय तब पैदा होता है जब प्रतिरोधक क्षमता आदि के प्रभाव से महामारी आने पर भी लोग संक्रमित होने से बच जाएँ | ऐसी स्थिति में महामारी आने के साक्ष्य तो मिल नहीं पाएँगे इसका मतलब ये तो नहीं है कि महामारी आई ही नहीं है | महामारी तो तब भी आई हुई हो सकती है |महामारी काल में भी पूर्व में करके रखी गई मजबूत तैयारियों के बल पर यदि लोगों को संक्रमित होने से बचा लिया जाए | इससे यह प्रमाणित नहीं हो जाता है कि महामारी आई ही नहीं होगी ,जबकि प्रत्यक्ष साक्ष्य तो ऐसे ही हैं |
वर्षा आने पर पहले से करके रखी गई व्यवस्था के कारण लोग यदि भीगने से बच जाएँ,इसका मतलब ये तो नहीं है कि वर्षा नहीं हुई है | वर्षा होने का प्रमाण वर्षा होने में लोगों का भीगना भीगना नहीं हो सकता है !वर्षा होना और लोगों का भीगना ये दोनों घटनाएँ बिल्कुल अलग अलग हैं | कई बार लोग अपने अपने घरों में होते हैं वर्षा होती और चली जाती है | इसमें कुछ लोग भीगते हैं और कुछ नहीं भी भीगते हैं |
वस्तुतः महामारी को पहचानने की अभी तक कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं है |इसीलिए महामारी के प्रभाव से जब लोग संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं |उन्हें देखकर महामारी आने की आशंका होती है | इसके अतिरिक्त ऐसी कोई विधि नहीं है जिसके द्वारा महामारीकाल में लोगों के संक्रमित न होने पर भी महामारी को पहचाना जा सके | यदि महामारी आकर चली जाए और लोग संक्रमित न हों तो महामारी आई भी थी ये पता ही नहीं लग पाएगा | ऐसे ही कई बार बहुत लोगों की आयु पूर्ण होकर मृत्यु तो होती है किंतु उस समय महामारी नहीं होती है |
अनुभवों की उपेक्षा करके अनुसंधान नहीं किए जा सकते !
प्राकृतिक घटनाओं को दो प्रकार से समझा जा सकता है एक समय आधारित भारत की अत्यंत प्राचीन अनुसंधान पद्धति है |जिसे परंपराविज्ञान के नाम से जाना जाता है | दूसरी प्रत्यक्ष साक्ष्य आधारित अनुसंधान पद्धति है जिसे आधुनिकविज्ञान के नाम से जाना जाता है !दोनों प्रकार के अनुसंधानों को अपनाकर प्राकृतिक घटनाओं के वास्तविक रहस्यों को समझा जा सकता है |
शिक्षा और अनुभव दोनों का अपना अपना महत्त्व है | इसलिए उपेक्षा किसी की नहीं की जा सकती है |किसी नदी में बाढ़ का सर्वे करने गए बड़े बड़े विद्वानों अधिकारियों से भरी नाव यदि नदी की धारा के बीच में जाकर डगमगाने लगे तो वहाँ उन विद्वानों अधिकारियों की विद्वत्ता काम नहीं आएगी प्रत्युत वहाँ वह नाविक ही अपने अनुभव अभ्यास के बलपर नदी को सुरक्षित वापस ला पाता है | ऐसे ही किसी विद्वान का बच्चा यदि नदी में डूबने लगे तो वो भी कुशल गोताखोर से बचाने की गोहार लगाते हैं | क्योंकि ये उसको पता होता है कि इसे इस विषय का अनुभव अच्छा है ये हमारे बच्चे को डूबने से बचा लेगा |
कुल मिलाकर पारिवारिक जीवन में ,व्यवहारिक जीवन में,व्यापारिक जीवन में ,सामाजिक जीवन में जिन अनुभवों को इतना अधिक महत्त्व दिया जाता है | उन्हीं अनुभवों की अनुसंधानों के क्षेत्र में उपेक्षा क्यों कर दी जाती है |
कुल मिलाकर शिक्षा का महत्त्व तो ठीक है किंतु अनुभव की उपेक्षा ठीक नहीं है |जिसने जिस विषय का जितना अच्छा अध्ययन किया हो उसका उतना अधिक महत्त्व होता है |ऐसे ही जिसने जिस विषय का जितना अच्छा अनुभव किया हो उस क्षेत्र में उसका भी उतना ही महत्त्व होता है | इसीलिए अपने अपने देश का कल्याण चाहने वाले सत्तासीन शासक प्रत्येक क्षेत्र में जितना महत्त्व शिक्षा को देते हैं उतना ही महत्त्व उस क्षेत्र के विश्वसनीय अनुभवों को भी देते हैं |अनुसंधान केवल शिक्षित लोग ही नहीं करते हैं ,अशिक्षित लोगों के अनुसंधान भी देश और समाज के कार्यों में सहायक होते हैं | शिक्षित लोग शिक्षा के आधार पर अनुसंधान करते हैं और अशिक्षित लोग अपने अनुभवों के आधार पर अनुसंधान करते हैं |
कोरोना महामारी के समय शिक्षितों के अनुसंधानों से पता लगा कि कोरोना के समय लोगों के एक दूसरे को छूने से कोरोना फैलेगा !इसलिए किसी को घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए | यह सुनकर भयभीत लोग जहाँ तहाँ दुबके हुए थे|
ऐसे शिक्षित अनुसंधानों पर अशिक्षितों ने अपने अनुसंधान शुरू किए |जिनसे
उन्हें अनुभव हुआ कि एक दूसरे को छूने से कोरोना नहीं फैलता है | शिक्षित
वैज्ञानिकों की सलाहों की परवाह न करते हुए दिल्ली मुंबई सूरत आदि
महानगरों के श्रमिकों ने अपने अनुभवों के आधार पर निर्णय लिए और
अपने अपने गाँवों की ओर जाने के लिए निकल पड़े | उस समय शिक्षित
वैज्ञानिकों के द्वारा कहा गया कि कोविड नियमों का उल्लंघन करके ये जहाँ
जहाँ जाएँगे वहाँ सुपर स्प्रेडर सिद्ध होंगे ,किंतु ऐसा तो नहीं हुआ |इससे
समाज में व्याप्त भय कुछ कम हुआ | ऐसे ही हरिद्वार के कुंभ में, दिल्ली
के किसान आंदोलन में,बिहार बंगाल की चुनावी रैलियों में सम्मिलित लोग इस
बात से बिल्कुल भयभीत नहीं थे कि किसी के छूने से उन्हें कोरोना हो जाएगा |
ये उन्हें उनके अनुभवजनित अनुसंधानों के आधार पर भरोसा था |
शिक्षित वैज्ञानिक लोग उन्हें अशिक्षित समझकर उनके अनुभवों को अपने अनुसंधानों में सम्मिलित भले न करते हों ,किंतु सच्चाई सामने आने पर समाज उसका अनुशरण करता है | उनकी भाषा रहन सहन शिक्षा डिग्रियाँ आदि वैज्ञानिकों जैसी भले न होती हों ,किंतु अनुभव बहुत मजबूत होते हैं| वे जो कहते हैं वैसा इसलिए निकलता है क्योंकि ये उनका अपना अनुभव होता है | अपनी बातों के समर्थन में उनके पास तर्क भी होते हैं |
कोरोना के समय दिल्ली के किसान आंदोलन में सम्मिलित कुछ किसानों से उनके अनुभवों पर बात हुई, तो उनमें से एक किसान ने कहा कि भूकंपवैज्ञानिक लोग भूकंपों के विषय में अभी तक ऐसा कुछ नया नहीं खोज पाए हैं ,जो अनुभव में सही सिद्ध होता हो | जमीन के अंदर प्लेटें टकराती हैं या नहीं,संचित ऊर्जा निकलने से भूकंप आते हैं या नहीं | ये न उन्होंने अपनी आँखों से देखा है और न ही मैंने अपनी आँखों से देखा है !
दूसरे किसान ने वायुप्रदूषण के विषय में कहा कि पराली जलाना वे तब तक नहीं रोकना चाहते हैं जब तक कोई वैज्ञानिक इस बात की जिम्मेदारी नहीं लेगा कि हम पराली जलाना रोक दें तो वायु प्रदूषण बढ़ना बंद हो ही जाएगा !उन्होंने कहा कि ये हमारा अपना अनुभव है कि वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण पराली जलाना नहीं है | इसलिए पराली हम हमेंशा से जलाते आ रहे हैं तब तो ऐसा किसी को नहीं लगा कि पराली का धुआँ स्वास्थ्य के लिए हानि कारक होता है | चावल हानिकारक नहीं है तो उसका धुआँ हानिकारक कैसे हो सकता है | यदि ऐसा होता तो वैज्ञानिकों के कथनानुसार 2020 के अक्टूबर नवंबर में वायु प्रदूषण तो बहुत बढ़ता जा रहा था किंतु महामारी की लहर क्रमशः समाप्त होती जा रही थी | शिक्षित वैज्ञानिकों ने तो पहले से कह रखा था कि वायु प्रदूषण बढ़ने पर कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ेगा | ऐसे ही 2021 के मार्च अप्रैल में जब बिल्कुल वायु प्रदूषण मुक्त आकाश था | उस समय अमृतशर से हिमालय के दर्शन हो रहे थे | इसके बाद भी इसी समय भारत में सबसे भयंकर कोरोना लहर आई थी |जिससे जनधन का सर्वाधिक नुक्सान हुआ था | कुल मिलाकर वायु प्रदूषण बढ़ने से संक्रमितों की संख्या बढ़ी नहीं और वायु प्रदूषण घटने से संक्रमितों की संख्या घटी नहींदेखा जाना कितना उचित फिर स्वास्थ्य को वायु प्रदूषण से जोड़कर देखा जाना कितना उचित है |
एक किसान ने कहा कि जून जुलाई और अगस्त आदि महीनों में कितनी वर्षा होगी
यह जानकारी हमें अपने अनुभव के आधार पर ही मार्च अप्रैल के महीने में ही
लगानी पड़ती है | उसके अनुशार हम खाने के लिए अन्न एवं पशुओं के लिए चारा संरक्षित रखते हैं ,बाक़ी बेच लेते हैं | उसी के अनुशार हमलोग खरीफ की फसल के
विषय में योजना बनाते हैं |अधिक वर्षा होने की संभावना लगी तो अधिक वर्षा
में होने वाली पहले अधिक बोते हैं और कम वर्षा हुई तो कम वर्षा में होने
वाली फसलें अधिक बोते हैं | ऊँचे पर स्थित खेतों में क्या बोना है नीची
जमीन में स्थित खेतों में या बोना है | ऐसे सभी निर्णय हमें मार्च अप्रैल
में लेकर उसके अनुशार बीज,बेढ़ आदि
की व्यवस्था करके रखनी होती है |ऐसे सभी निर्णय हम लोगों को अपने मौसम
संबंधी अनुभवों के आधार पर ही लेने होते हैं | इसमें मौसम संबंधी अनुसंधान
हमारी कितनी मदद कर पाते हैं | उनके द्वारा लगाए गए दीर्घावधि पूर्वानुमान
एक ऐसा अंदाजा होता है जिस पर भरोसा करके किसी फसल के विषय में कोई योजना
नहीं बनाई जा सकती है,क्योंकि वो प्रायः सही नहीं निकलता है |मानसून आने
जाने की अभी तक तारीखें ही आगे पीछे की जा रही हैं |
ऐसी स्थिति में न
तो मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ हमारे काम की होती हैं और न ही वैज्ञानिकों
के द्वारा की गई उन भविष्यवाणियों पर ही हम भरोसा कर पाते हैं | जिसमें वे
कहते हैं कि महामारी पर मौसम का प्रभाव पड़ता है | यदि ऐसा होगा भी तो जब
मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में ही अनुमान पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई ऐसा
विज्ञान नहीं है जिसके द्वारा मौसम के विषय में लगाए गए पूर्वानुमान अनुभव
की कसौटी पर सही निकल सकें | यदि मौसम को समझने के लिए ही ऐसा सक्षम मौसम
विज्ञान नहीं है तो कोरोना महामारी पर मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं और
यदि पड़ता है तो मौसमक के आधार पर महामारी के विषय में कोई पूर्वानुमान कैसे
लगाया जा सकेगा और वो सही कितना निकलेगा !
कुलमिलाकर अशिक्षित या अल्पशिक्षित लोगों के अनुभवों को शिक्षित वैज्ञानिक लोग गंभीरता से नहीं लेते हैं , और अल्पशिक्षित अनुभवी लोग प्राकृतिक विषयों में उनके आंकड़ों पर भरोसा नहीं करते हैं | अनुभवों की बार बार उपेक्षा की जाती है | जिसके दुष्परिणाम समस्त समाज को सहने पड़ते हैं |
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