मौसम संबंधी इन घटनाओं के नहीं बताए जा सके पूर्वानुमान !1008
मौसम संबंधी इन घटनाओं के नहीं बताए जा सके पूर्वानुमान !
मुंबई में आई भीषण बाढ़:2005 में मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में भीषण बाढ़ आई थी!|इसमें करीब 850 से ज्यादा लोगों की मौतें हुई थीं. अकेले मुंबई में मरने वालों की संख्या करीब 400 से ज्यादा थी |
केदारनाथ जी में भयंकर सैलाव :16 जून 2013 को केदारनाथ जी में भयंकर सैलाव आया उसमें हजारों लोग मारे गए !16 जून, 2013 को उत्तराखंड में आई भीषण जलप्रलय की। लाखों श्रद्धालुओं की आस्था के प्रतीक तीर्थस्थल केदारनाथ और इसके आसपास भारी बारिश, बाढ़ और पहाड़ टूटने से सबकुछ तबाह हो गया और हजारों लोग मौत के आगोश में समा गए थे।इनमें से किसी घटना के बिषय में मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |
असम में भीषण वर्षा और बाढ़ : इसी वर्ष में 13 अप्रैल 2016 से असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में भीषण वर्षा और बाढ़ का भयावह दृश्य था त्राहि त्राहि मची हुई थी |यह वर्षा और बाढ़ का तांडव 60 दिनों से अधिक समय तक लगातार चलता रहा था |
वैज्ञानिकों के वक्तव्य : सन 2016 के अप्रैल मई में घटित हुई परस्पर विरोधी इन दोनों घटनाओं के बिषय में वैज्ञानिकों से पत्रकारों ने पूछा कि इन दोनों घटनाओं के बिषय में पहले से कोई पूर्वानुमान क्यों नहीं बताया जा सका था | इस पर वैज्ञानिकों ने कहा कि असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में हो रही भीषण वर्षा और बाढ़ का कारण जलवायु परिवर्तन है तथा बिहार उत्तर प्रदेश राजस्थान मध्यप्रदेश महाराष्ट्र आदि में अधिक गर्मी एवं आग लगने की अधिक घटनाओं का कारण ग्लोबल वार्मिंग है | जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता |
केरल में भीषण बाढ़ :केरल में जब भीषण बाढ़ आई तो उसमें भी मौसम विज्ञान विभाग की ऐसी ही ढुलमुल भूमिका रही !3 अगस्त 2018 को मौसम
विज्ञान विभाग की ओर से जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई उसमें भविष्यवाणी
की गई थी कि अगस्त और सितंबर महीने में दक्षिण भारत में सामान्य वर्षा की
संभावना है !जबकि 5 अगस्त से ही भीषण बारिश प्रारंभ हो गई थी जिससे केरल
कर्नाटक आदि दक्षिण भारत में त्राहि त्राहि माही हुई थी | जिसके बिषय में
केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने स्वीकार भी किया कि यदि मौसम विभाग की
भविष्यवाणी झूठी न निकली होती तो बाढ़ से जनता इतनी अधिक पीड़ित न हुई होती |
इसके बिषय में मौसम निदेशक डॉ.के. जे. रमेश से एक टीवी चैनल ने पूछा तो
उन्होंने कहा कि केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसलिए इसके बिषय में
पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | इसका कारण जलवायु परिवर्तन है जबकि दक्षिण भारत में 2018 के अगस्त महीने में हुई इसी भीषण वर्षा के बिषय में 2018 के अगस्त महीने का मौसम पूर्वानुमान मैंने मौसम विभाग के निदेशक डॉ.के
जे रमेश जी की
मेल पर 29 जुलाई 2018 को ही भेज दिया था !उसमें लिखा है कि अगस्त की एक
से ग्यारह तारीख के बीच इतनी भीषण वर्षा दक्षिण भारत में होगी कि बीते कुछ
दशकों का रिकार्ड टूटेगा !वर्षा का स्वरूप इतना अधिक डरावना होगा !"यह
हमारी मेल पर अभी भी पड़ा है जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया था कि मेरा
वर्षा पूर्वानुमान सही निकला है |
सर्दियों के बिषय में मौसम विभाग की गलत हुई भविष्यवाणी : सन 2019 \2020 की सर्दियों के बिषय में मौसम विभाग की पुणे इकाई ने सामान्य से कम सर्दी का अनुमान व्यक्त किया था
लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिए । इस पर पत्रकारों ने मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा कि सर्दी की दस्तक से पहले मौसम विभाग ने कहा था कि इस साल सर्दी सामान्य से
कम रहेगी,लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिए। पूर्वानुमानों में इतनी बड़ी गलती कि पूर्वानुमान सीधे सीधे इतने विपरीत चले गए |
मौसम वैज्ञानिक का वक्तव्य : मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा गया कि पहले मानसून और अब सर्दी का पूर्वानुमान भी गलत साबित हुआ क्यों ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि कड़ाके की ठंड मौसम की चरम गतिविधि का नतीजा है जिसका सटीक पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है |भारत जैसे ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्र में मौसम के इस तरह के अनपेक्षित और अप्रत्याशित रुझान का सटीक पूर्वानुमान लगाने की तकनीक दुनिया में कहीं भी नहीं है।सर्दी ही नहीं, अतिवृष्टि और भीषण गर्मी जैसी मौसम की चरम गतिविधियों का दीर्घकालिक अनुमान संभव ही नहीं है।मौसम की चरम गतिविधियों के दौरान, मौसम का मिजाज तेजी से बदलने की प्रवृत्ति प्रभावी होने के कारण अल्पकालिक अनुमान भी मुश्किल से ही सटीक साबित होता है| मौसम के तेजी से बदलते मिजाज को देखते हुये चरम गतिविधियों का दौर भविष्य में और अधिक तेजी से देखने को मिल सकता है। इनकी आवृत्ति में भी तेजी देखी जा सकती है। ऐसे में बारिश के अनुकूल परिस्थिति बनने पर मूसलाधार बारिश होना या गर्मी का वातावरण तैयार होने पर अचानक तापमान में उछाल या गिरावट जैसी घटनायें भविष्य में बढ़ सकती हैं। मौसम संबंधी शोध और अनुभव से स्पष्ट है कि इस तरह की घटनाओं का समय रहते पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल है। ऐसे में पूर्वानुमान के गलत साबित होने की संभावना भी रहेगी।
अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी गलत हुई :2020-21 में लानीना का प्रभाव बताकर शीतऋतु में अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की गई थी किंतु अबकी बार तो जनवरी से ही तापमान बढ़ने लग गया था ऐसा होने के पीछे का कारण जब उन भविष्यवक्ताओं से पूछा गया तब उन्होंने वही जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग को कारण बता दिया था |
अत्यधिक बारिश हुई जिसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका !: इस बार सन 2020 के अप्रैल मई में इतनी अधिक बारिश हुई जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। इन दो माह में अब तक कुल 51.4 मिमी बारिश हो चुकी है।इसके बाद मौसम विभाग की ओर से और अधिक बारिश होने का अनुमान बताया गया |
19 -9- 2020- सितंबर में पड़ रही अप्रैल-मई जैसी गर्मी, मौसम विभाग ने बताई आखिर क्या है वजह !प्रादेशिक मौसम विज्ञान केंद्र के प्रमुख कुलदीप श्रीवास्तव ने बताया कि इन दिनों आसमान में बादल बहुत कम हैं। बीच में कोई अवरोधक न होने से सूरज की रोशनी सीधे भी जमीन तक पहुँच रही है।
15 Oct 2020 :इस साल पड़ेगी कड़ाके की सर्दी !मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय मोहापात्रा ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए की तरफ से 'शीत लहर के खतरे में कमी' पर आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि इस साल कड़ाके की ठंड पड़ सकती है। पिछले साल सर्दी के मौसम के दौरान शीत लहर अधिक लंबा खींची थी। इस साल कड़ाके की ठंड पड़ने की क्या वजह बताई कि इस साल ला नीना की स्थिति के कारण कड़ाके की ठंड पड़ सकती है।
वर्षा ऋतु के चार महीनों में से किस महीने में वर्षा कैसी होगी कृषि कार्यों के लिए यह बहुत उपयोगी एवं आवश्यक होता है किंतु इसी उद्देश्य से की गई भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना को लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं किंतु बीते 145 वर्षों में सही सही दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान किसानों को उपलब्ध नहीं करवाया जा सका है | ये चिंता की बात होनी चाहिए | किसान मार्च अप्रैल के महीने में एक फसल पूरी हो जाने के बाद जुलाई अगस्त में बोई जाने वाली दूसरी फसल के बिषय में योजना बनाते हैं | वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार फसलों का चयन किया जाता है उसी के हिसाब से ऊँचे नीचे आदि खेतों के हिसाब से इस वर्ष में किस प्रकार की फसल बोना हितकर होगा |इसके साथ ही वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार ही वे एक वर्ष के लिए आनाज भूसा आदि का संरक्षण करते हैं बाक़ी मार्च अप्रैल के महीने में ही फसल पूरी हो जाने पर खर्चे के लिए बेच लिया करते हैं | कृषिक्षेत्र के अतिरिक्त सैन्य आदि अन्य क्षेत्रों में भी दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है |
अल्पावधि मौसम पूर्वानुमान की यह स्थिति है कि इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान भावना का कोई विशेष योगदान नहीं होता है इसमें तो रडारों एवं उपग्रहों के सहयोग सेजो घटना एक जगह घटित होते देख ली जाती है उसकी गति और दिशा के हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये इतने दिन में उस देश प्रदेश या जिले आदि में पहुँच सकती है | बीच में हवाओं का रुख बदल जाने से लगाया हुआ अंदाजा गलत हो जाता है | वैसे भी जो बादल जिधर जिधर जाते हैं सभी जगह तो नहीं बरसते हैं कुछ जगहों पर बरसकर वापस लौट जाते हैं | तूफानों चक्रवातों में ऐसे कैमरों से मिली तस्बीरें कई बार काम आ जाती हैं जिनसे कुछ तीर तुक्के सही फिट भी हो जाते हैं इस कैमरा जुगाड़ से कभी कभी निकट भविष्य में होने वाली जनधन की हानि से बचाव हो जाता है ,क्योंकि इनमें बादलों की तरह बिना बरसे लौटने की गुंजाइस बहुत कम रहती है ये जहाँ पहुँचते हैं वहाँ नुक्सान करते ही हैं |
जुगाड़ और वैज्ञानिक अनुसंधानों में अंतर होता है !
जुगाड़ तो केवल जुगाड़ ही होता है ये विज्ञान नहीं हो सकता है |जिसमें दीर्घकालीन अनुसंधान भावना न होकर प्राप्त परिस्थिति में जिस किसी प्रकार से चला लेना जुगाड़ होता है जो किसी वैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित नहोने के कारण उभयपक्षी होता है | उसमें सही गलत हानि लाभ दोनों होने की संभावना होती हैं | काम बनेगा तो बनेगा अन्यथा बिगड़ तो रहा ही है | इस भावना से किसी विषय में जुगाड़ पद्धति अपनाई जाती है | जुगाड़ प्रक्रिया किसी सिद्धांत से न बँधी होने के कारण ये सही गलत दोनों ही होती है | एक ही प्रक्रिया एक बार सही तो दूसरी बार गलत हो जाती है |
उदाहरण -किसी जंगल में हाथी बहुत रहा करते थे वे आस पास के गाँवों में कभी कभी उपद्रव मचा आया करते थे | जिससे काफी नुक्सान हो जाया करता था | इससे परेशान होकर उन गाँव वालों ने अपने अपने गाँव के बाहर जंगल की ओर कैमरे लगाने का जुगाड़ सोचा और गाँव के जिस ओर जंगल था उस ओर कैमरे लगा दिए फिर जब हाथियों का झुंड गाँव की ओर आता दिखाई पड़ता था तो गाँव वाले इकट्ठे होकर हाथियों को जंगल में ही खदेड़ आते थे जिससे गाँव वालों का नुक्सान होने से कभी कभी बच जाया करता था|कभी बचाव होने और कभी न होने का कारण यह था कि गाँव वालों ने अपने अपने गाँवों में कैमरे केवल जंगल की तरफ लगवा रखे थे उधर से ही हाथियों के आने की अधिक संभावना रहती थी|इसलिए जब उधर से आते थे तब तो हाथियों का झुंड दिखाई पड़ जाता था उन्हें खदेड़ कर अपना बचाव कर लिया जाता था |कभी कभी हाथियों का झुंड जगल की ओर से प्रवेश न करके किसी दूसरी ओर से गाँव में घुस कर उपद्रव मचा दिया करता था जिससे काफी नुक्सान हो जाया करता था |ऐसे समय में यह जुगाड़ निष्फल हो जाया करता था | हमें यह याद रखना चाहिए कि यह मात्र एक जुगाड़ है विज्ञान नहीं है |
इसमें यदि वैज्ञानिक प्रक्रिया अपनाई जाती तो हाथियों के स्वभाव का अध्ययन किया जाता उसके अनुशार यह पता लगाने का प्रयत्न किया जाता कि हाथी अपनी किस आवश्यकता की पूर्ति के लिए गाँव की ओर आते हैं और आते भी हैं तो ऐसा उपद्रव क्यों करते हैं इससे उन्हें क्या मिलता है | यदि वे सुविधाएँ उन्हें जंगल में ही मिलने लगें तो संभव है कि हाथी जंगलों से निकलें ही नहीं और न किसी गाँव में घुसें और न ही उनका नुक्सान करें |
इसमें पहला वैज्ञानिक अनुसंधान तो इसलिए करना होगा कि आखिर हाथी जंगलों से बाहर निकलते क्यों हैं ?इसका अनुसंधान पूर्वक अनुमान लगाना होगा !
दूसरी बात हाथी जंगलों से बाहर निकलते कब हैं ? इसका अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए !
तीसरी बात हाथियों का झुंड जंगलों से यदि निकलें भी तो गाँवों की ओर न जाएँ इसके लिए क्या उपाय किया जाना चाहिए !
हाथी जंगलों से बाहर निकलते क्यों हैं ? इस विषय में हाथियों के स्वभाव का अध्ययन करके यह पता लगाया जा सका कि जंगलों में जब हाथियों के खाने के लिए चारा और पीने के लिए पानी नहीं बचता है तब वे जंगलों से निकलकर गाँवों की ओर जाने का रुख करते हैं ?
हाथी जंगलों से बाहर निकलते कब हैं ?चारा वैज्ञानिक अनुसंधान पूर्वक यह पता लगाया जाना चाहिए कि जंगलों में हाथियों के खाने पीने की कमी वर्ष के किन किन महीनों में होने की संभावना रहती है | अनुसंधान पूर्वक यह पता लगाया गया कि ग्रीष्म ऋतु में जब तालाब सूख जाते हैं नदियों में पानी बहुत कम हो जाता है उस समय पेड़ पौधे झुलसने लग जाते हैं तब हाथियों को भोजन और पानी दोनों की समस्या हो जाती है | ऐसे समय में हाथियों जंगलों से बाहर निकलने की संभावना अधिक रहती है|उसमें भी जिस दिन तापमान जितना अधिक होगा उस दिन व्याकुलता भी उतनी अधिक होगी |उस दिन अन्य दिनों की अपेक्षा हाथियों के जंगलों से बाहर निकलने की संभावना विशेष अधिक रहती है |इन सभी विन्दुओं पर अध्ययन पूर्वक हाथियों के जंगलों से बाहर निकलने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
इसमें भी यदि पता लग जाए कि सबसे अधिक गर्मी होने की संभावना तब होती है जबतक सूर्य मृगशिरा नक्षत्र में रहता है | प्रतिवर्ष कब से कब तक सूर्य मृगशिरा नक्षत्र में रहता है | खगोलीय गणित विज्ञान के द्वारा इसकी गणना करके वर्षों पहले इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है इसी के आधार पर वर्षों पहले इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि किस वर्ष के किस महीने के किन किन दिनों में हाथियों के जंगलों से बाहर निकलने की संभावना अधिक रहेगी |
हाथियों का झुंड गाँवों की ओरजाने से रोकने के लिए क्या उपाय करने चाहिए ?-
मौसम संबंधी इन घटनाओं के नहीं बताए जा सके पूर्वानुमान !
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह मात्र एक जुगाड़ है इसमें कोई विज्ञान नहीं है जो महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में किसी सहयोग लायक हो |
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वर्षा संबंधी अल्पावधि भविष्यवाणियाँ भी गलत होती हैं ऐसा होने पर नुक्सान भी होता है | कई बार कहीं वर्षा होना जब शुरू हो जाता है उसके साथ मौसम भविष्य वक्ता लोग भी शुरू हो जाते हैं जैसे जैसे वर्षा होती चली जाती है वैसे वैसे वे भी दो दो दिन बढ़ाते चले जाते हैं अभी दो दिन और बरसेगा लोग समझते हैं दो दिन बाद बंद हो जाएगा फिर कह दिया जाता है अभी तीन दिन और बरसेगा लोग सोचते हैं कि चलो तीन दिन और बरसेगा काम चला लेते हैं तो घर में पानी भर जाने के बाद भी लोग छत पर काम चलाने के लिए रह जाते हैं उसके बाद भी पानी बरसते रहता है तो ये कहते हैं तीन दिन और बरसेगा तब तक पानी छत के करीब आ चुका होता है ऐसी परिस्थिति में तब लोग घर छोड़कर कहीं जाने लायक भी नहीं रह जाते हैं और न छत पर ही रहने की परिस्थिति रह पाती है ! लोगों का सामान भी सड़ जाता है और खुद भी हादसे के शिकार होते हैं ! ऐसे तीरतुक्कों को मौसम पूर्वानुमान कैसे कहा जा सकता है और इसमें विज्ञान कहाँ होता है ! 2015 के नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ का कारण कुछ ऐसा ही होना था | प्रशांत महासागर से चली बादलों की श्रंखला जिस और जिस गति से जाती है उस गति से उस दिशा के हिसाब से अनुमान लगा लिया जाता है किंतु तब तक जितने बादल दिखाई पड़ रहे होते हैं उतने के बिषय में ही अंदाजा लगाया जा सकता है तीन दिन बाद भी यदि बादलों की श्रृंखला टूटती नहीं है तो तीन दिन और बरसेगा उसके बाद भी बादल दिखाई पड़ते रहें तो तीन दिन और बरसेगा ऐसे अंदाजे लगाए जाते रहते हैं | ऐसे अनुमान यदि मौसम विज्ञान के आधार पर लगाए जा रहे होते तो बिना बादलों को देखे ही पहले से पता होता कि बादल कितने दिनों तक बरस सकते हैं | ऐसा विज्ञान महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में मदद कर सकता है किंतु ऐसा करने की योग्यता रखने वाले मौसम वैज्ञानिक हैं कहाँ जिन की योग्यता पर भरोसा करके महामारी से संबंधित अनुसंधान प्रारंभ किए जा सकते हैं |
व वालों का हाथियों से होने वाले नुक्सान से बचाव हो जाता था यह सह है किंतु यह एक जुगाड़ मात्र है इसे हाथीविज्ञान नहीं कहा जा सकता है |
वर्षा संबंधी अल्पावधि भविष्यवाणियाँ भी गलत होती हैं ऐसा होने पर नुक्सान भी होता है | कई बार कहीं वर्षा होना जब शुरू हो जाता है उसके साथ मौसम भविष्य वक्ता लोग भी शुरू हो जाते हैं जैसे जैसे वर्षा होती चली जाती है वैसे वैसे वे भी दो दो दिन बढ़ाते चले जाते हैं अभी दो दिन और बरसेगा लोग समझते हैं दो दिन बाद बंद हो जाएगा फिर कह दिया जाता है अभी तीन दिन और बरसेगा लोग सोचते हैं कि चलो तीन दिन और बरसेगा काम चला लेते हैं तो घर में पानी भर जाने के बाद भी लोग छत पर काम चलाने के लिए रह जाते हैं उसके बाद भी पानी बरसते रहता है तो ये कहते हैं तीन दिन और बरसेगा तब तक पानी छत के करीब आ चुका होता है ऐसी परिस्थिति में तब लोग घर छोड़कर कहीं जाने लायक भी नहीं रह जाते हैं और न छत पर ही रहने की परिस्थिति रह पाती है ! लोगों का सामान भी सड़ जाता है और खुद भी हादसे के शिकार होते हैं ! ऐसे तीरतुक्कों को मौसम पूर्वानुमान कैसे कहा जा सकता है और इसमें विज्ञान कहाँ होता है ! 2015 के नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ का कारण कुछ ऐसा ही होना था | प्रशांत महासागर से चली बादलों की श्रंखला जिस और जिस गति से जाती है उस गति से उस दिशा के हिसाब से अनुमान लगा लिया जाता है किंतु तब तक जितने बादल दिखाई पड़ रहे होते हैं उतने के बिषय में ही अंदाजा लगाया जा सकता है तीन दिन बाद भी यदि बादलों की श्रृंखला टूटती नहीं है तो तीन दिन और बरसेगा उसके बाद भी बादल दिखाई पड़ते रहें तो तीन दिन और बरसेगा ऐसे अंदाजे लगाए जाते रहते हैं | ऐसे अनुमान यदि मौसम विज्ञान के आधार पर लगाए जा रहे होते तो बिना बादलों को देखे ही पहले से पता होता कि बादल कितने दिनों तक बरस सकते हैं | ऐसा विज्ञान महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में मदद कर सकता है किंतु ऐसा करने की योग्यता रखने वाले मौसम वैज्ञानिक हैं कहाँ जिन की योग्यता पर भरोसा करके महामारी से संबंधित अनुसंधान प्रारंभ किए जा सकते हैं |
इन्हीं बिषयों में काफी पहले मेरे द्वारा की हुई भविष्यवाणियाँ सही होती जा रही थीं उसके प्रमाण आज भी इंटरनेट पर विद्यमान हैं इसी बिषय में चर्चा करने के लिए मैं मौसम विज्ञान विभाग में गया था वहाँ एक मौसम वैज्ञानिक महोदय से मिलाया गया वहाँ उनके पास एक पत्रकार महोदय बैठे इन्हीं बिषयों पर चर्चा कर रहे थे उसी क्रम में पत्रकार महोदय ने उन वैज्ञानिक महोदय से निजी चर्चा में पूछा कि यह कैसे पता लगे कि मौसम संबंधी कौन सी घटना जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित हो रही है और कौन सी घटना अपने आप से घटित हो रही है जिसके बिषय में पूर्वानुमान के सही होने की आशा की जाए !इस पर हँसते हुए उन्होंने कहा कि सीधी सी बात है हमारे विभाग के द्वारा लगाया गया जो पूर्वानुमान सही निकले उसे मौसम संबंधी सामान्य घटना मान लीजिए और हमारे विभाग के द्वारा लगाया गया जो पूर्वानुमान सही न निकले उसे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटना मान लेना चाहिए | दोनों लोग हँसने लगे चर्चा समाप्त हुई और मैं भी चला आया !
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