मौसम संबंधी इन घटनाओं के नहीं बताए जा सके पूर्वानुमान !1008

                         मौसम संबंधी इन घटनाओं के नहीं बताए जा सके पूर्वानुमान !

 मुंबई में आई भीषण बाढ़:2005 में मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में भीषण बाढ़ आई थी!|इसमें करीब 850 से ज्यादा लोगों की मौतें हुई थीं. अकेले मुंबई में मरने वालों की संख्या करीब 400 से ज्यादा थी | 

केदारनाथ जी में भयंकर सैलाव :16 जून 2013 को केदारनाथ जी में भयंकर सैलाव आया उसमें हजारों लोग मारे गए !16 जून, 2013 को उत्तराखंड में आई भीषण जलप्रलय की। लाखों श्रद्धालुओं की आस्था के प्रतीक तीर्थस्थल केदारनाथ और इसके आसपास भारी बारिश, बाढ़ और पहाड़ टूटने से सबकुछ तबाह हो गया और हजारों लोग मौत के आगोश में समा गए थे।इनमें से किसी घटना के बिषय में मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |

जम्मू कश्मीर में आई भीषण बाढ़: सितंबर 2014 में मूसलाधार मानसूनी वर्षा के कारण भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर ने अर्ध शताब्दी की सबसे भयानक बाढ़ आई। यह केवल जम्मू और कश्मीर तक ही सीमित नहीं थी अपितु पाकिस्तान नियंत्रण वाले आज़ाद कश्मीर, गिलगित-बल्तिस्तान व पंजाब प्रान्तों में भी इसका व्यापक असर दिखा। 8 सितंबर 2014 तक, भारत में लगभग 200 लोगों तथा पाकिस्तान में 190 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। 450 गाँव जल समाधि ले चुके थे।
भीषण वर्षा के कारण बनारस में प्रधानमंत्री जी की दो दो सभाएँ रद्द करनी पड़ीं !
28 जून 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की वाराणसी में सभा होने वाली थी किंतु भीषण वर्षा के कारण उस सभा को रद्द करना पड़ा |वही सभी दूसरी बार 16 जुलाई 2015 को वर्षा से निपटने की अधिक तैयारियों के साथआयोजित की गई वो भी भीषण वर्षा के कारण रद्द करनी पड़ी |चिंता की बात तो यह है कि भीषण वर्षा के कारण प्रधानमंत्री जी के बहुमूल्य समय का उपयोग नहीं किया जा सका | दूसरी चिंता की बात यह है कि प्रधानमंत्री जी की सभाओं का आयोजन मामूली बात नहीं होती है बड़ी व्यवस्थाएँ बनानी पड़ती हैं जिन पर भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती है | इसके बाद भी भीषण वर्षा के कारण आगे पीछे दो दो सभाएँ रद्द करनी पड़ीं ये बहुत बड़ी चिंता की बात इसलिए भी है कि जनता के खून पसीने की कठोर कमाई से प्राप्त टैक्स के पैसे मौसम पूर्वानुमान संबंधी जिन अनुसंधानों पर व्यय किए जाते हैं वे अनुसंधान आखिर किस काम आ सके |इस घटना में मौसम विभाग की सार्थकता आखिर क्या रही |  
मद्रास में भीषण बाढ़ : नवंबर 2015 में चैन्नई में भीषण बाढ़ एक महीने से अधिक समय तक रही थी !उसमें भी काफी जनधन की हानि हुई थी ,किंतु इनमें से किसी भी बाढ़ के बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | 
2016 अप्रैल मई में आग लगने की भीषण दुर्घटनाएँ : अप्रैल मई जून आदि के महीनों में गर्मी तो हर वर्ष होती है किंतु  2016 के अप्रैल मई में आधे भारत में गरमी से संबंधित अचानक अलग प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगीं ! जमीन के अंदर का जलस्तर तेजी से नीचे जाने लगा बहुत इलाके पीने के पानी के लिए तरसने लगे | पानी की कमी के कारण ही पहली बार पानी भरकर दिल्ली से लातूर एक ट्रेन भेजी गई थी |गर्मी का असर केवल जमीन के अंदर ही नहीं था अपितु प्राकृतिक वातावरण में इतनी अधिक ज्वलन शीलता विद्यमान थी कि आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक घट रही थीं | यह स्थिति उत्तराखंड के जंगलों में तो 2 फरवरी 2016  से ही प्रारंभ हो गई थी जो  क्रमशः धीरे धीरे बढ़ती चली जा रही थी 10 अप्रैल 2016 के बाद ऐसी घटनाओं में बहुत तेजी आ गई थी ! ऐसा होने के पीछे का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था |इस वर्ष आग लगने की घटनाएँ इतनी अधिक घटित हो रही थीं इस बिषय में संबंधित वैज्ञानिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे उन्हें खुद कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था | अंत में आग लगने की घटनाओं से हैरान परेशान होकर 28 अप्रैल 2016 को बिहार सरकार के राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने ग्रामीण इलाकों में सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक खाना न पकाने की सलाह दी थी . इतना ही नहीं अपितु इस बाबत जारी एडवाइजरी में इस दौरान पूजा करने, हवन करने, गेहूँ  का भूसा और डंठल जलाने पर भी पूरी तरह रोक लगा दी गई थी |   इस बिषय में जब वैज्ञानिकों से पूछा गया कि इसी वर्ष ऐसा क्यों हो रहा है और यदि ऐसा होना ही था तो इसका पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका ?तो उन्होंने कहा कि इस बिषय में हमें स्वयं ही कुछ नहीं पता है कि इस वर्ष ऐसा क्यों हुआ !ये तो रिसर्च का बिषय है इसलिए ऐसे बिषयों पर अनुसंधान की आवश्यकता है |वैसे इसका कारण ग्लोबलवार्मिंग  हो सकता है |  

 असम में भीषण वर्षा और बाढ़ : इसी वर्ष में 13 अप्रैल 2016 से असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में भीषण वर्षा और बाढ़ का भयावह दृश्य था त्राहि त्राहि मची हुई थी |यह वर्षा और बाढ़ का तांडव 60 दिनों से अधिक समय तक लगातार चलता रहा था |

    वैज्ञानिकों के वक्तव्य :     सन 2016 के अप्रैल मई में घटित हुई परस्पर विरोधी इन दोनों घटनाओं के बिषय में वैज्ञानिकों से पत्रकारों ने पूछा कि इन दोनों घटनाओं के बिषय में पहले से कोई पूर्वानुमान क्यों नहीं बताया जा सका था | इस पर वैज्ञानिकों ने कहा कि असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में हो रही भीषण वर्षा और बाढ़ का कारण जलवायु परिवर्तन है तथा बिहार उत्तर प्रदेश राजस्थान मध्यप्रदेश महाराष्ट्र आदि में अधिक गर्मी एवं आग लगने की अधिक घटनाओं का कारण ग्लोबल वार्मिंग है | जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता | 

     बिहार में आई भीषण बाढ़ :सितंबर 2019 में बिहार में आई भीषण बाढ़ के बिषय में कोई पूर्वानुमान बताने में मौसम विभाग असफल रहा था !मौसम पूर्वानुमान बताने वाले लोग कुछ बता ही नहीं पा  रहे थे और जो बता रहे थे वो गलत होता जा रहा था तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने पत्रकारों से बात करते हुए स्वीकार किया था कि मौसम विभाग वाले लोग कुछ बता ही नहीं पा  रहे हैं वर्षा के बिषय में वे सुबह कुछ कहते हैं दोपहर में कुछ दूसरा कहते हैं और शाम होते होते कुछ और कहने लगते हैं | पत्रकारों ने पूछा तो इस बाढ़ के बिषय में आप जनता से क्या कहना चाहेंगे तो नीतीश जी ने कहा कि मेरा मानना है कि हथिया नक्षत्र के कारण यह अधिक बारिश हो रही है | इसीप्रकार से स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे जी ने भी पत्रकारों के पूछने पर यही कहा था कि हथिया नक्षत्र के कारण ही बिहार में  अधिक बारिश हो रही है | मौसम विज्ञान पर विश्वास न करके ज्योतिष की नक्षत्र विद्या के ही गुण गाने लगे थे |   

 2018 के अप्रैल और मई में हिंसक आँधी तूफान:    2018 के अप्रैल और मई में हिंसक आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं 2 मई की रात्रि में आए तूफ़ान से काफी जन धन हानि हुई थी | ऐसे तूफानों के बिषय में किसी मौसम वैज्ञानिक के द्वारा पहले से कुछ भी नहीं बताया गया था | मौसम वैज्ञानिकों को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि ऐसे बिषयों में क्या बोला जाए !इस विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई विज्ञान तो था नहीं समाज एवं सरकार उनसे पूर्वानुमान जानने की अपेक्षा रखते थे | विवश होकर वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणियाँ करने के लिए कुछ तीर तुक्के लगाए भी किंतु वे पूरी तरह से गलत निकलते चले गए !जिस दिन वे बतावें कि इस दिन आँधी तूफ़ान आएगा उस दिन न आवे और जिस दिन के लिए न बतावें उस दिन आ जाए |3 मई को आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की गई उस दिन नहीं आई और 5 मई के लिए नहीं की गई उस दिन तूफ़ान आ गया | इसके बाद मौसम वैज्ञनिकों ने दिल्ली एवं उसके आस पास 7 और 8 मई 2018 को भीषण आँधी तूफ़ान आने की एक ऐसी भविष्यवाणी कर दी जिससे यहाँ के निवासियों में दहशत का वातावरण बन गया | यहाँ तक कि इस भविष्यवाणी से भयभीत होकर कुछ प्रदेशों की भयभीत सरकारों ने अपने अपने प्रदेशों में 7 और 8 मई 2018 को स्कूल कालेज बंद कर दिए छुट्टियाँ घोषित कर दी गईं |  इतने धूम धाम से भविष्यवाणी कर देने के बाद 7 और 8 मई 2018 को आँधी तूफ़ान तो दूर  हवा का एक झोंका भी नहीं आया ! यह भी नहीं हुआ कि दिल्ली और उसके आस पास न आकर कुछ दूर दराज के देशों प्रदेशों में आ जाता तो यही कहने लायक हो जाता कि आँधी तूफ़ान आया तो किंतु उसकी दिशा बदल गई | इसके बाद समाचार पत्रों में पढ़ने को मिला कि इस बिषय को बाद में पीएमओ ने संज्ञान में भी लिया था और जिम्मेदार लोगों सेइतनी बड़ी चूक होने के आधार भूत कारण भी पूछे गए थे| इसी घटना के बिषय में एक निजी टीवी चैनल के साथ परिचर्चा में मौसम विज्ञान विभाग के तत्कालीन निदेशक महोदय डॉ.के जे रमेश जी से एक पत्रकार महोदय ने प्रश्न कर दिया कि क्या कारण है कि आपका विभाग इतने भयंकर आँधी तूफानों के बिषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगा सका और जो लगाए भी गए वे गलत निकलते चले गए !इस पर डॉ.के जे रमेश जी ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसे आँधी तूफ़ान आ रहे हैं इसीलिए इनके बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पा रहा है और अचानक आ  रहे हैं आँधी तूफ़ान पता ही नहीं लग पा रहा है | अगले दिन कई अखवारों में हेडिंग छपी थी -"चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"

केरल में भीषण बाढ़ :केरल में जब भीषण बाढ़ आई तो उसमें भी मौसम विज्ञान विभाग की ऐसी ही ढुलमुल भूमिका रही !3 अगस्त 2018 को मौसम विज्ञान विभाग की ओर से जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई उसमें भविष्यवाणी की गई थी कि अगस्त और सितंबर महीने में दक्षिण भारत में सामान्य वर्षा की संभावना है !जबकि 5 अगस्त से ही भीषण बारिश प्रारंभ हो गई थी जिससे केरल कर्नाटक आदि दक्षिण भारत में त्राहि त्राहि माही हुई थी | जिसके बिषय में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने स्वीकार भी किया कि यदि मौसम विभाग की भविष्यवाणी झूठी न निकली होती तो बाढ़ से जनता इतनी अधिक पीड़ित न हुई होती | इसके बिषय में मौसम निदेशक डॉ.के. जे. रमेश से एक टीवी चैनल ने पूछा तो उन्होंने कहा कि केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसलिए इसके बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | इसका कारण जलवायु परिवर्तन है जबकि दक्षिण भारत में 2018 के अगस्त महीने में हुई इसी भीषण वर्षा के बिषय में 2018 के अगस्त महीने का मौसम पूर्वानुमान मैंने मौसम विभाग के निदेशक डॉ.के जे रमेश जी की मेल पर 29 जुलाई 2018 को ही भेज दिया था !उसमें लिखा है कि अगस्त की एक से ग्यारह तारीख के बीच इतनी भीषण वर्षा दक्षिण भारत में होगी कि बीते कुछ दशकों का रिकार्ड टूटेगा !वर्षा का स्वरूप इतना अधिक डरावना होगा !"यह हमारी मेल पर अभी भी पड़ा है जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया था कि मेरा वर्षा पूर्वानुमान सही निकला है |
सर्दियों के बिषय में  मौसम विभाग की गलत हुई भविष्यवाणी : सन 2019 \2020 की सर्दियों के बिषय में  मौसम विभाग की पुणे इकाई ने सामान्य से कम सर्दी का अनुमान व्यक्त किया था लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिए । इस पर पत्रकारों ने मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा कि सर्दी की दस्तक से पहले मौसम विभाग ने कहा था कि इस साल सर्दी सामान्य से कम रहेगी,लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिए। पूर्वानुमानों में इतनी बड़ी गलती कि पूर्वानुमान सीधे सीधे इतने विपरीत चले गए | 

     मौसम वैज्ञानिक का वक्तव्य : मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा गया कि पहले मानसून और अब सर्दी का पूर्वानुमान भी गलत साबित हुआ क्यों ?   इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि कड़ाके की ठंड मौसम की चरम गतिविधि का नतीजा है  जिसका सटीक पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है |भारत जैसे ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्र में मौसम के इस तरह के अनपेक्षित और अप्रत्याशित रुझान का सटीक पूर्वानुमान लगाने की तकनीक दुनिया में कहीं भी नहीं है।सर्दी ही नहीं, अतिवृष्टि और भीषण गर्मी जैसी मौसम की चरम गतिविधियों का दीर्घकालिक अनुमान संभव ही नहीं है।मौसम की चरम गतिविधियों के दौरान, मौसम का मिजाज तेजी से बदलने की प्रवृत्ति प्रभावी होने के कारण अल्पकालिक अनुमान भी मुश्किल से ही सटीक साबित होता है| मौसम के तेजी से बदलते मिजाज को देखते हुये चरम गतिविधियों का दौर भविष्य में और अधिक तेजी से देखने को मिल सकता है। इनकी आवृत्ति में भी तेजी देखी जा सकती है। ऐसे में बारिश के अनुकूल परिस्थिति बनने पर मूसलाधार बारिश होना या गर्मी का वातावरण तैयार होने पर अचानक तापमान में उछाल या गिरावट जैसी घटनायें भविष्य में बढ़ सकती हैं। मौसम संबंधी शोध और अनुभव से स्पष्ट है कि इस तरह की घटनाओं का समय रहते पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल है। ऐसे में पूर्वानुमान के गलत साबित होने की संभावना भी रहेगी। 

अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी गलत हुई :2020-21 में  लानीना का प्रभाव बताकर शीतऋतु में अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की गई थी किंतु अबकी  बार तो जनवरी से ही तापमान बढ़ने लग गया था ऐसा होने के पीछे का कारण जब उन भविष्यवक्ताओं से पूछा गया तब उन्होंने वही जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग को कारण बता दिया था |   

अत्यधिक बारिश हुई जिसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका !: इस बार सन 2020 के अप्रैल मई में  इतनी अधिक बारिश हुई जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। इन दो माह में अब तक कुल 51.4 मिमी बारिश हो चुकी है।इसके बाद मौसम विभाग की ओर से और अधिक बारिश होने का अनुमान बताया गया | 

13 May 2020-इस बार पड़ेगी सूरज के तपिश की मार नहीं पड़ेगी , इस वर्ष ज्यादा गर्मी के आसार नहीं हैं !ये मौसमवैज्ञानिकों  के द्वारा बताया गया पूर्वानुमान  प्रकाशित हुआ |  

19 -9- 2020- सितंबर में पड़ रही अप्रैल-मई जैसी गर्मी, मौसम विभाग ने बताई आखिर क्या है वजह !प्रादेशिक मौसम विज्ञान केंद्र के प्रमुख कुलदीप श्रीवास्तव ने बताया कि इन दिनों आसमान में बादल बहुत कम हैं। बीच में कोई अवरोधक न होने से सूरज की रोशनी सीधे भी जमीन तक पहुँच रही है।

15 Oct 2020 :इस साल पड़ेगी कड़ाके की सर्दी !मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय मोहापात्रा ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए की तरफ से 'शीत लहर के खतरे में कमी' पर आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि इस साल कड़ाके की ठंड पड़ सकती है। पिछले साल सर्दी के मौसम के दौरान शीत लहर अधिक लंबा खींची थी। इस साल कड़ाके की ठंड पड़ने की क्या वजह बताई कि इस साल ला नीना की स्थिति के कारण कड़ाके की ठंड पड़ सकती है। 

 04 Mar 2021-साल 1901 में जब से भारतीय मौसम विभाग ने रिकॉर्ड रखना शुरू किया, तब से आज तक कुल 120 सालों में इस साल की सर्दी तीसरी सबसे गर्म सर्दी रही यानी तीसरा सबसे कम सर्दी वाला मौसम रहा। खास बात यह कि शीतलता प्रदान करने वाली भौगोलिक घटना ला-नीना के असर के बावजूद जनवरी से फरवरी के बीच सर्दी गर्म रही।
5 Jan 2021- 1901 के बाद आठवां सबसे ज्यादा गर्म साल 2020 रहा !भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) कहा कि 1901 के बाद से 2020 आठवां सबसे अधिक गर्म वर्ष रहा !


विशेष बात :

            वर्षा ऋतु के चार महीनों में से किस महीने में वर्षा कैसी होगी कृषि कार्यों के लिए यह बहुत उपयोगी एवं आवश्यक होता है किंतु इसी उद्देश्य से की गई भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना को लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं किंतु बीते 145 वर्षों में सही सही दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान किसानों को उपलब्ध नहीं करवाया जा सका है | ये चिंता की बात होनी चाहिए | किसान मार्च अप्रैल के महीने में एक फसल पूरी हो जाने के बाद जुलाई अगस्त में बोई जाने वाली दूसरी फसल के बिषय में योजना बनाते हैं | वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार फसलों का चयन किया जाता है उसी के हिसाब से ऊँचे नीचे आदि खेतों के हिसाब से इस वर्ष में किस प्रकार की फसल बोना हितकर होगा |इसके साथ ही वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार ही वे एक वर्ष के लिए आनाज भूसा आदि का संरक्षण करते हैं बाक़ी मार्च अप्रैल के महीने में ही फसल पूरी हो जाने पर खर्चे के लिए बेच लिया करते हैं | कृषिक्षेत्र के अतिरिक्त सैन्य आदि अन्य क्षेत्रों में भी दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है | 

     अल्पावधि मौसम पूर्वानुमान की यह स्थिति है कि इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान भावना का कोई विशेष योगदान नहीं होता है इसमें तो रडारों एवं उपग्रहों के सहयोग सेजो घटना एक जगह घटित होते देख ली जाती है उसकी गति और दिशा के हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये इतने दिन में उस देश प्रदेश या जिले आदि में पहुँच सकती है | बीच में हवाओं का रुख बदल जाने से लगाया हुआ अंदाजा गलत हो जाता है | वैसे भी जो बादल जिधर जिधर जाते हैं सभी जगह तो नहीं बरसते हैं कुछ जगहों पर बरसकर वापस लौट जाते हैं | तूफानों चक्रवातों में ऐसे कैमरों से मिली तस्बीरें कई बार काम आ जाती हैं जिनसे कुछ तीर तुक्के सही फिट भी हो जाते हैं इस कैमरा जुगाड़ से कभी कभी निकट भविष्य में होने वाली जनधन की हानि से बचाव हो जाता है ,क्योंकि इनमें बादलों की तरह बिना बरसे लौटने की गुंजाइस बहुत कम रहती है ये जहाँ पहुँचते हैं वहाँ नुक्सान करते ही हैं | 

जुगाड़ और वैज्ञानिक अनुसंधानों में अंतर होता है !

    जुगाड़ तो केवल जुगाड़ ही होता है ये विज्ञान नहीं हो सकता है |जिसमें दीर्घकालीन अनुसंधान भावना न होकर प्राप्त परिस्थिति में जिस किसी प्रकार से चला लेना जुगाड़ होता है जो किसी वैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित नहोने के कारण उभयपक्षी होता है | उसमें सही गलत हानि लाभ दोनों होने की संभावना होती हैं | काम बनेगा तो बनेगा अन्यथा बिगड़ तो रहा ही है | इस भावना से किसी विषय में जुगाड़ पद्धति अपनाई जाती है | जुगाड़ प्रक्रिया किसी सिद्धांत से न बँधी होने के कारण  ये सही गलत दोनों ही होती है | एक ही प्रक्रिया एक बार सही तो दूसरी बार गलत हो जाती है | 

  उदाहरण -किसी जंगल में हाथी बहुत रहा करते थे वे आस पास के गाँवों में कभी कभी उपद्रव मचा आया करते थे | जिससे काफी नुक्सान हो जाया करता था | इससे परेशान होकर उन गाँव वालों ने अपने अपने गाँव के बाहर जंगल की ओर कैमरे लगाने का जुगाड़ सोचा और गाँव के जिस ओर जंगल था उस ओर कैमरे लगा दिए फिर जब हाथियों का झुंड गाँव की ओर आता दिखाई पड़ता था तो गाँव वाले इकट्ठे होकर हाथियों को जंगल में ही खदेड़ आते थे जिससे गाँव वालों का नुक्सान होने से कभी कभी बच जाया करता था|कभी बचाव होने और कभी न होने का कारण यह था कि गाँव वालों ने अपने अपने गाँवों में कैमरे केवल जंगल की तरफ लगवा रखे थे उधर से ही हाथियों के आने की अधिक संभावना रहती थी|इसलिए जब उधर से आते थे तब तो हाथियों का झुंड दिखाई पड़ जाता था  उन्हें खदेड़ कर अपना बचाव कर लिया जाता था |कभी कभी हाथियों का झुंड जगल की ओर से प्रवेश न करके किसी दूसरी ओर से गाँव में घुस कर उपद्रव मचा दिया करता था जिससे काफी नुक्सान हो जाया करता था |ऐसे समय में यह जुगाड़ निष्फल हो जाया करता था | हमें यह याद रखना चाहिए  कि यह मात्र एक जुगाड़ है विज्ञान नहीं है | 

      इसमें यदि वैज्ञानिक प्रक्रिया अपनाई जाती तो हाथियों के स्वभाव का अध्ययन किया जाता उसके अनुशार यह पता लगाने का प्रयत्न किया जाता कि हाथी अपनी किस आवश्यकता की पूर्ति के लिए गाँव की ओर आते हैं और आते भी हैं तो ऐसा उपद्रव क्यों करते हैं इससे उन्हें क्या मिलता है | यदि वे सुविधाएँ उन्हें जंगल में ही मिलने लगें तो संभव है कि हाथी जंगलों से निकलें ही नहीं और न किसी गाँव में घुसें और न ही उनका नुक्सान करें | 

    इसमें पहला वैज्ञानिक अनुसंधान तो इसलिए करना होगा कि आखिर हाथी जंगलों से बाहर निकलते क्यों हैं ?इसका अनुसंधान पूर्वक अनुमान लगाना होगा !

    दूसरी बात हाथी जंगलों से बाहर निकलते कब हैं ? इसका अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए !

   तीसरी बात हाथियों का झुंड जंगलों से यदि निकलें  भी तो गाँवों की ओर  न जाएँ इसके लिए क्या उपाय किया जाना चाहिए !

      हाथी जंगलों से बाहर निकलते क्यों हैं ? इस विषय में हाथियों के स्वभाव का अध्ययन करके यह पता लगाया जा सका कि जंगलों में जब हाथियों के खाने के लिए चारा और पीने के लिए  पानी नहीं बचता है तब वे जंगलों से निकलकर गाँवों की ओर जाने का रुख करते हैं ?  

  हाथी जंगलों से बाहर निकलते कब हैं ?चारा वैज्ञानिक अनुसंधान पूर्वक यह पता लगाया जाना चाहिए कि जंगलों में हाथियों के खाने पीने की कमी वर्ष के किन किन महीनों में होने की संभावना रहती है | अनुसंधान पूर्वक यह पता लगाया गया कि ग्रीष्म ऋतु में जब तालाब सूख जाते हैं नदियों में पानी बहुत कम हो जाता है उस समय पेड़ पौधे झुलसने लग जाते हैं तब हाथियों को भोजन और पानी दोनों की समस्या हो जाती है | ऐसे समय में हाथियों जंगलों से बाहर निकलने की संभावना अधिक रहती है|उसमें भी जिस दिन तापमान जितना अधिक होगा उस दिन व्याकुलता भी उतनी अधिक होगी |उस दिन अन्य दिनों की अपेक्षा  हाथियों के जंगलों से बाहर निकलने की संभावना विशेष अधिक रहती है |इन सभी विन्दुओं पर अध्ययन पूर्वक हाथियों के जंगलों से बाहर निकलने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | 

     इसमें भी यदि पता लग जाए कि सबसे अधिक गर्मी होने की संभावना तब होती है जबतक  सूर्य मृगशिरा नक्षत्र में रहता है | प्रतिवर्ष कब से कब तक सूर्य मृगशिरा नक्षत्र में रहता है | खगोलीय गणित विज्ञान के द्वारा इसकी गणना करके वर्षों पहले इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है इसी के आधार पर वर्षों पहले इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि किस वर्ष के किस महीने के किन किन दिनों में हाथियों के जंगलों से बाहर निकलने की संभावना अधिक रहेगी |   

हाथियों का झुंड गाँवों की ओरजाने से रोकने के लिए क्या उपाय करने चाहिए ?-

 मौसम संबंधी इन घटनाओं के नहीं बताए जा सके पूर्वानुमान !

     


     हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह मात्र एक जुगाड़ है इसमें कोई विज्ञान नहीं है जो महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में किसी सहयोग लायक हो | 

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      हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह मात्र एक जुगाड़ है इसमें कोई विज्ञान नहीं है जो महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में किसी सहयोग लायक हो | जुगाड़ तो केवल जुगाड़ ही होता है | किसी गाँव के एक छोर पर एक जंगल था उस जंगल से निकलकर हाथियों का झुण्ड कई बार गाँव में घुस आता था और काफी नुक्सान कर जाया करता था इससे परेशान होकर गाँव वालों ने कैमरे लगाने का जुगाड़ सोचा गाँव के जिस ओर जंगल था उस ओर कैमरे लगा दिए फिर जब हाथियों का झुण्ड गाँव की ओर आता दिखाई पड़ता था तो गाँव वाले इकट्ठे होकर हाथियों को जंगल में ही खदेड़ आते थे जिससे गाँव वालों का हाथियों से होने वाले नुक्सान से बचाव हो जाता था यह सह है किंतु यह एक जुगाड़ मात्र है इसे हाथीविज्ञान नहीं कहा जा सकता है | 

     वर्षा संबंधी अल्पावधि भविष्यवाणियाँ भी गलत होती हैं ऐसा होने पर नुक्सान भी होता है | कई बार कहीं वर्षा होना जब शुरू हो जाता है उसके साथ मौसम भविष्य वक्ता लोग भी शुरू हो जाते हैं जैसे जैसे वर्षा होती चली जाती है वैसे वैसे  वे भी दो दो दिन बढ़ाते चले जाते हैं अभी दो दिन और बरसेगा लोग समझते हैं दो दिन बाद बंद हो जाएगा फिर कह दिया जाता है अभी तीन दिन और बरसेगा लोग सोचते हैं कि चलो तीन दिन और बरसेगा काम चला लेते हैं तो घर में पानी भर जाने के बाद भी लोग छत पर काम चलाने के लिए रह जाते हैं उसके बाद भी पानी बरसते रहता है तो ये कहते हैं तीन दिन और बरसेगा तब तक पानी छत के करीब आ चुका होता है ऐसी परिस्थिति में तब लोग घर छोड़कर कहीं जाने लायक भी नहीं रह जाते हैं और न छत पर ही रहने की परिस्थिति रह पाती है ! लोगों का सामान भी सड़ जाता है और खुद भी हादसे के शिकार होते हैं ! ऐसे तीरतुक्कों को मौसम पूर्वानुमान कैसे कहा जा सकता है और इसमें विज्ञान कहाँ होता  है ! 2015 के नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ का कारण कुछ ऐसा ही होना था | प्रशांत महासागर से चली बादलों की श्रंखला जिस और जिस गति से जाती है उस गति से उस दिशा के हिसाब से अनुमान लगा लिया जाता है किंतु तब तक जितने बादल दिखाई पड़ रहे होते हैं उतने के बिषय में ही अंदाजा लगाया जा सकता है तीन दिन बाद भी यदि बादलों की श्रृंखला टूटती नहीं है तो तीन दिन और बरसेगा उसके बाद भी बादल दिखाई पड़ते रहें तो तीन दिन और बरसेगा ऐसे अंदाजे लगाए जाते रहते हैं | ऐसे अनुमान यदि मौसम विज्ञान के आधार पर लगाए जा रहे होते तो बिना बादलों को देखे ही पहले से पता होता कि बादल कितने दिनों तक बरस सकते हैं | ऐसा विज्ञान महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में मदद कर सकता है किंतु ऐसा करने की योग्यता रखने वाले मौसम वैज्ञानिक हैं कहाँ जिन की योग्यता पर भरोसा करके महामारी से संबंधित अनुसंधान प्रारंभ किए जा सकते हैं |

  व वालों का हाथियों से होने वाले नुक्सान से बचाव हो जाता था यह सह है किंतु यह एक जुगाड़ मात्र है इसे हाथीविज्ञान नहीं कहा जा सकता है | 

     वर्षा संबंधी अल्पावधि भविष्यवाणियाँ भी गलत होती हैं ऐसा होने पर नुक्सान भी होता है | कई बार कहीं वर्षा होना जब शुरू हो जाता है उसके साथ मौसम भविष्य वक्ता लोग भी शुरू हो जाते हैं जैसे जैसे वर्षा होती चली जाती है वैसे वैसे  वे भी दो दो दिन बढ़ाते चले जाते हैं अभी दो दिन और बरसेगा लोग समझते हैं दो दिन बाद बंद हो जाएगा फिर कह दिया जाता है अभी तीन दिन और बरसेगा लोग सोचते हैं कि चलो तीन दिन और बरसेगा काम चला लेते हैं तो घर में पानी भर जाने के बाद भी लोग छत पर काम चलाने के लिए रह जाते हैं उसके बाद भी पानी बरसते रहता है तो ये कहते हैं तीन दिन और बरसेगा तब तक पानी छत के करीब आ चुका होता है ऐसी परिस्थिति में तब लोग घर छोड़कर कहीं जाने लायक भी नहीं रह जाते हैं और न छत पर ही रहने की परिस्थिति रह पाती है ! लोगों का सामान भी सड़ जाता है और खुद भी हादसे के शिकार होते हैं ! ऐसे तीरतुक्कों को मौसम पूर्वानुमान कैसे कहा जा सकता है और इसमें विज्ञान कहाँ होता  है ! 2015 के नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ का कारण कुछ ऐसा ही होना था | प्रशांत महासागर से चली बादलों की श्रंखला जिस और जिस गति से जाती है उस गति से उस दिशा के हिसाब से अनुमान लगा लिया जाता है किंतु तब तक जितने बादल दिखाई पड़ रहे होते हैं उतने के बिषय में ही अंदाजा लगाया जा सकता है तीन दिन बाद भी यदि बादलों की श्रृंखला टूटती नहीं है तो तीन दिन और बरसेगा उसके बाद भी बादल दिखाई पड़ते रहें तो तीन दिन और बरसेगा ऐसे अंदाजे लगाए जाते रहते हैं | ऐसे अनुमान यदि मौसम विज्ञान के आधार पर लगाए जा रहे होते तो बिना बादलों को देखे ही पहले से पता होता कि बादल कितने दिनों तक बरस सकते हैं | ऐसा विज्ञान महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में मदद कर सकता है किंतु ऐसा करने की योग्यता रखने वाले मौसम वैज्ञानिक हैं कहाँ जिन की योग्यता पर भरोसा करके महामारी से संबंधित अनुसंधान प्रारंभ किए जा सकते हैं |

     इन्हीं बिषयों में काफी पहले मेरे द्वारा की हुई भविष्यवाणियाँ सही होती जा रही थीं उसके प्रमाण आज भी इंटरनेट पर विद्यमान हैं इसी बिषय में चर्चा करने के लिए मैं मौसम विज्ञान विभाग में गया था वहाँ एक मौसम वैज्ञानिक महोदय से मिलाया गया वहाँ उनके पास एक पत्रकार महोदय बैठे इन्हीं बिषयों पर चर्चा कर रहे थे उसी क्रम में पत्रकार महोदय ने उन वैज्ञानिक महोदय से निजी चर्चा में पूछा कि यह कैसे पता लगे कि मौसम संबंधी कौन सी घटना जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित हो रही है और कौन सी घटना अपने आप से घटित हो रही है  जिसके बिषय में पूर्वानुमान के सही होने की आशा की जाए !इस पर हँसते हुए उन्होंने कहा कि सीधी सी बात है हमारे विभाग के द्वारा लगाया गया जो पूर्वानुमान सही निकले उसे मौसम संबंधी सामान्य घटना मान लीजिए और हमारे विभाग के द्वारा लगाया गया जो पूर्वानुमान सही न निकले उसे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटना मान लेना चाहिए | दोनों लोग हँसने लगे चर्चा समाप्त हुई और मैं भी चला आया !



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